बहुत लोगों ने मुझसे ये प्रश्न पूछा “ 1947 में, लाला लाजपत राइ, भगत सिंह जी, सुभाष चन्द्र बोस जी, आदि ने सही कहा था कि केवल बंदूकें ही हमें आजादी दे सकती हैं और फिर मोहनभाई(गाँधी) आये जिसने कहा कि हमको बंदूकें नहीं चाहिए, लेकिन चरखा-चलाने और भजन गाने से हमें आजादी मिलेगी | ऐसे फ़ालतू विचार पर लोगों ने विश्वास कैसे कर लिया | क्या सभी लोग उस समय मूर्ख थे ?”
असलियत ये है : 1930 और 1940 के दशक में भारतियों ने कभी भी ये फ़ालतू विचार को स्वीकार/माना नहीं | इसका सबूत ये है —- सुभाष जी ने 1939 कांग्रेस के चुनाव जीते और मोहनभाई का चमचा पट्टाभाई हार गया , क्योंकि कांग्रेस कार्यकर्ता को कोई विश्वास नहीं था मोहनभाई के चरखा-चलाने और भजन-गाने में | लेकिन अंग्रेजों ने मीडिया को पैसे दिए मोहनभाई का गुण-गान करने के लिए और मोहनभाई के लिए एक भावनात्मक/भावुक समर्थन बनाया , और मोहनभाई ने इस भावात्मक समर्थन को ,चालाकी से प्रयोग/इस्तेमाल किया अपने खतरनाक “अहिंसा” सिद्धांत/असूल को आगे बढाने के लिए |
मैं क्यों `अहिंसा` को एक खतरनाक सिद्धांत/असूल कहता हूँ ?
इस अहिंसा के सिद्धांत/असूल के कारण , हिंदुओं ने फैसला किया कोई भी हथियार नहीं रखने के लिए | और केवल हथियार कि कमी के कारण, कुछ 10 लाख हिंदू मारे गए, कुछ एक करोड़ इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर हो गए और 4 करोड़ हिंदुओं ने अपनी सारी संपत्ति खो दी और 1947 के बंटवारे में , भागने के लिए मजबूर हो गए | और इसकी कोई गिनती नहीं कि कितने लाख महिलाएं/औरतों का बलात्कार हुआ, अफारण हुआ, जबरदस्ती/जबरन धर्म-परिवर्तन हुआ, और जबरदस्ती/जबरन शादी कराई गयी | ये मार-पीट और अव्यवस्था मोहनभाई के प्रस्तावित `अहिंसा` के बकवास के कारण ही था |
सब मिलाकर, अहिंसा सबसे ज्यादा खतरनाक असूल साबित हुआ जो भारत ने कभी देखा था |
क्या 1930 और 1940 के दशक में भारतीय इतने मूर्ख/बेवकूफ थे कि उन्होंने ये बकवास को देखा नहीं ? फिर क्यों उन्होंने इस बकवास के खिलाफ बोला नहीं ? ऐसा है, वे बेवकूफ थे | उन्होंने देखा था कि अहिंसा बकवास है, उन्होंने देखा था कि भजन-गाना, चरखा-चलाना बेकार है ,केवल टाइम-पास हैताकि कार्यकर्तओं के पास कम समय हो राजनीति और अन्य जरूरी विषय/मुद्दों पर बात करने के लिए | लेकिन समाचार-पत्रों ने इतना भावात्मक माहौल बना दिया मोहनभाई के लिए और मोहनभाई ने ये भावात्मक/भावुक माहौल का उपयोग/इस्तेमाल किया अपनी बात पर जोर डालने के लिए कि “ देखो, मैं अंग्रेजों द्वारा गिरिफ्तार किया जा रहा हूँ, मुझे सताया जा रहा है, इसीलिए मैं सही हूँ “ |
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आज, हम वो ही घटना दोहराते हुए देख रहे हैं | कांग्रेस ने अन्ना हजारे को गिरफ्तार/कैद किया 6 बजे सुबह,आधी रात को नहीं, ताकि सारा देश टी.वी पर लाइव देख सके | उन्हें तिहार जेल में भेजा गया बजाय कि सरकारी गेस्ट-हाउस/अतिथि-गृह के , ताकि अन्ना हजारे जी को ज्यादा हमदर्दी/सहानुभूति मिले | हम सब को मालूम है कि कांग्रेस के बड़े नेता विदेशी कंपनियों के एजेंट है | ये सब ने अन्ना हजारे यानी मोहनभाई-2 के लिए हमदर्दी/सहानुभूति बड़ा दी| और अब अन्ना के साथी , चालाकी से ये हमदर्दी का दुरुपयोग कर रहे हैं “बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल” के लिए समर्थन दिखाने के लिए |
लगबग सभी लोगों ने , बहुत वफादार `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन` के कार्यकर्ताओं सहित, इस बात पर सहमत हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज पुलिस-कर्मियों जितने ही भ्रष्ट हैं | जिन लोगों से मैंने बात की , वो इस बात से सहमत हैं कि लोकपाल भ्रष्ट हो सकता है, वैसे ही जैसे मंत्री, सांसद, सुप्रीम-कोर्ट के जज ,सभी भ्रष्ट हो गए हैं | और इसीलिए वे “राईट टू रिकाल भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल(भ्रष्ट लोकपाल को आम नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार) के साथ जनलोकपाल “ की कीमत समझते हैं |
लेकिन अभी भावुक अपील/विनती का उपयोग करके , `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल`के प्रायोजक इस बात को आगे बढ़ावा दे रही है कि “ देखो , अन्ना जी को सताया जा रहा है और इसीलिए `बिना राईट टू रिकाल-लोकपाल के जनलोकपाल` सही है “ | ये तो ऐसा हुआ जैसे कहना कि “ देखो , राजीव गाँधी ने अपनी माँ खोयी है, इसीलीये हम सब को उसके लिए वोट करना चाहिए “ | विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित टी.वी चैनलों और समाचार-पत्रों ने एक बहुत बड़ा भावुक माहौल खड़ा कर दिया है अन्ना जी के पक्ष में , और “ बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल /प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल “ के प्रायोजक इस का उपयोग/इस्तेमाल कर रहे हैं कहने के लिए “ देखो अन्ना जी को सताया गया , इसीलिए हमें बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल का समर्थन करना चाहिए “|
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समाधान :
1. हम `प्रजा अधीन-राजा` के कार्यकर्ताओं को खुले आम मांग करनी चाहिए चिदंबरम की पब्लिक में (सार्वजनिक) नारको-जांच के लिए , ताकि हमें उसके इरादे पता चलें अन्ना जी को गिरफ्तार करने में,और हमें सुप्रीम-कोर्ट के जजों को कहना चाहिए प्रभारी को गिरफ्तार/कैद करने के लिए जिसने अन्ना के गिरफ्तारी का गलत आदेश दिया था |
2. फिर हमें सभी को ये समझाना चाहिये कि अन्ना जी को सताया गया है , इसका ये मतलब नहीं कि “ बिना राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल के जनलोकपाल “ सही है | यदि नागरिकों के पास राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल नहीं होगा ,तो भ्रष्ट लोकपाल विदेशी कंपनियों के एजेंट बन जाएँगे और दूसरे विदेशी एजेंट के गिरोह जैसे सुप्रीम कोर्ट के जजों के साथ मिल जाएँगे और भारत को बरबाद कर देंगे |
3. इसीलिए हमें “राईट टू रिकाल-भ्रष्ट लोकपाल/प्रजा अधीन-भ्रष्ट लोकपाल के साथ जनलोकपाल” का समर्थन करना चाहिए |
32.11 कुछ महत्वपूर्ण सूत्र |
1) `इंडिया अगेंस्ट कोर्रुप्शन` का सबसे बड़े नेता ये कहते हैं कि यदि लोकपाल अध्यक्ष और सदस्य भ्रष्ट हो जाएँगे , तो सुप्रीम-कोर्ट के जज उन्हें निकाल देंगे |
हमारे पास पहले से ही क़ानून है कि यदि सांसद भ्रष्ट हो जाए, तो हाई-कोर्ट के जज/सुप्रीम-कोर्ट के जज उसे निकाल सकते हैं और इसके लिए *उन्हें किसी की भी इजाजत नहीं लेनी पड़ती | लेकिन हम ये देखते हैं कि हाई-कोर्ट के जज कभी भी सांसदों को जायज सज़ा नहीं देते या सज़ा देते ही नहीं |