होम > प्रजा अधीन > अध्याय 32 – `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` – लोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`

अध्याय 32 – `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` – लोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`

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खंड/धारा 8-(`नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को बनाये रखने का अधिकार)

नागरिक यह प्रक्रिया/पद्धति का प्रयोग किसी `नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को बनाये रखने के लिए या वापस लाने के लिए, यदि कोई `नागरिक द्वारा रखे गए लोकपाल सदस्य` को निकाल दिया गया था परन्तु नागरिक उसे पद पर बनाये रखना चाहते हैं I अतः यह खंड/धारा `लोकपाल को बनाये रखने का अधिकार`(राईट टू रिटेन) के लिए भी निर्दिष्ट किया जाता है/जाना जायेगा I

खंड/धारा 9-( लोकपाल को ख़ारिज करने का अधिकार(राईट टू रिजेक्ट))

यदि कोई नागरिक पटवारी के दफ्तर जाकर और किसी लोकपाल के कमिटी/समिति के सदस्य जो नागरिकों द्वारा रखा गया है ,का नाम लेकर उसके विरोध में `ना` दर्ज करवाना चाहे तो पटवारी उसका नाम दर्ज करेगा, मतदाता संख्या/नंबर और उम्मीदवार की संख्या/नंबर और 3 रुपया का शुल्क/ फी लेकर उसे रसीद देगा I और यदि 24 करोड नागरिक उस `नागरिकों द्वारा रखा गया लोकपाल सदस्य` के ऊपर `ना` दर्ज करवाते हैं, तो  लोकपाल चयन समिति उसे लोकपाल सदस्य समिति से इस्तीफा देने के लिए विनती कर सकती है  I

खंड/धारा 10-( कलेक्टर को निर्देश)

यदि कोई नागरिक इस कानून में बदलाव करना चाहे, तो वे अपना एफिडेविट जिला कलेक्टर के दफ्तर पर जमा करेगा और जिला कलेक्टर या उसके क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रुपये प्रति पन्ना का शुल्क/ फी लेकर लोकपाल के वेबसाइट पर रखेगा |

खंड/धारा 11-( तलाटी या पटवारी को निर्देश)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी खंड/धारा के विरोध दर्ज करवाना चाहे या किसी ऊपर दिए हुए खंड/धारा के द्वारा गए किसी जमा किये हुए एफिडेविट पर अपना हाँ/ना दर्ज करवाना चाहे तो वह तलाटी के दफ्तर जाकर ,अपने मतदान पत्र लेकर, तलाटी को 3 रुपये का शुल्क/ फी देना पड़ेगा | तलाटी हाँ/ना को लोकपाल के वेबसाइट पर दर्ज करेगा और उसे रसीद देगा |

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प्रश्न : क्या कोई व्यक्ती मतदाताओं को खरीद सकता है ऊपर दिए हुए प्रक्रिया/पद्धति में ?

उत्तर : नहीं | क्यों? Iयदि ऐसा मान लें कि कोई धनी/पैसे वाला व्यक्ती 100 रुपया देता है एक करोड नागरिकों को `हाँ` दर्ज करवाने के लिए तो खंड/धारा 5 के अनुसार वोटर अपने `हाँ` दर्ज किये हुए को अगले दिन बदल सकता है I अब यदि 1000 धनी व्यक्ती मिलकर अपना सारा पैसा भी खर्च करें, फिर भी वे हर नागरिक को प्रतिदिन 100 रुपया नहीं दे सकते I इसी लिए `हाँ` दर्ज करवाने के लिए किसी को खरीदना, ऊपर दिए हुए राईट टू रिकाल/`भ्रष्ट कों नागरिकों द्वारा बदले जाने का अधिकार`में संभव नहीं है I

प्रश्न : क्या करोडो नागरिक एक लोकपल उम्मीदवार कों पसंद करेंगे/अनुमोदन देंगे ?

उत्तर : निर्भर करता है कि लोकपाल कितने बुरे हैं और अच्छे विकल्प कितने हैं Iकुछ 60% से 75% नागरिक लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वोट देते हैं बावजूद इसके कि उनके सामने जो विकल्प होते हैं, उनसे कोई नागरिकों कों कोई आशा नहीं होती Iइससे यह पता चलता है कि नागरिक बदलाव करने के लिए पहल जरूर करते हैं Iयदि विकल्प में उम्मीदवार होनहार/आशाजनक हैं, और यदि लोकपाल भ्रष्ट है तो नागरिक बदलाव करने के लिए  पहल करेंगे I

प्रश्न : राइट टू रिकॉल जैसे कानून को अमरीका जैसे शिक्षित देश में ही सिमित रखना चाहिए न की भारत जैसे अनपढ़ देश में

उत्तर : अमरीका के पास अच्छी शिक्षा है क्योंकि वहाँ के नागरिकों के पास उनके जिला शिक्षा अधिकारी पर राइट टू रिकॉल है !! पर हमारे पास जिला शिक्षा अधिकारी पर राइट टू रिकॉल नहीं है और इसी कारण भ्रष्ट शिक्षा, शिक्षा के ऊपर खर्च होने वाले राशि को गायब कर देता है इसिलए अधिकतर नागरिक अशिक्षित रह जाते हैं I जब अमेरिका में राईट तो रिकाल आया था, वहाँ शिक्षित लोग बहुत कम थे |

राईट टू रिकाल और पारदर्शी शिकायत प्रणाली पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्नों के लिए www.righttorecall.info/004.h.pdf देखें |

 

32.4 पारदर्शी शिकायत/सुझाव प्रणाली के खंड/धारा पर अधिक जानकारी

वर्ष 2004 में मैंने अनेक कार्यकर्ताओं को सुझाव दिया कि हमें पारदर्शी शिकायत प्रणाली को भी उस समय के प्रस्तावित `सूचना के अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` में जोड़ना चाहिए I अन्य शब्दों में, `सूचना के अधिकार` में एक खंड/धारा जोड़ीं जाये कि यदि कोई व्यक्ति/आवेदनकर्ता चाहता है कि उसकी शिकायत कोई सार्वजनिक वेबसाइट(जैसे प्रधान-मंत्री/लोकपाल की वेबसाइट) पर आये और जागरूक नागरिक अपना नाम तलाटी/पटवारी/लेखपाल के दफ्तर जाकर जोड़े Iमुझे यह उत्तर मिला की अभी के लिए `सूचना के अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` बिना पारदर्शी शिकायत प्रणाली के रखेंगे और इसे हम बाद में जोड़ देंगे I 6 वर्ष बीत चुके है लेकिन वो `बाद` हमें अभी तक देखने को नहीं मिला I तो इस समय मैं सभी नागरिकों से विनती करता हूँ कि सुनिश्चित करें कि यह खंड/धारा 15 अगस्त के पहले तक जोड़ दिया जाए ना की बाद में | मैं पुनः विनती करता हूँ की आप सभी मेरे खंड/धारा का समर्थन न करे लेकिन 15 अगस्त के निश्चित समय के पहले कोई बेहतर खंड/धारा अवश्य लायें I मै विरोध करता हूँ ये तर्क का कि `प्रक्रियात्मक विवरण/जानकारी को अगले जन्म में आना चाहिए I मेरे विचार से सभी प्रक्रियात्मक विवरण/जानकारी 15 अगस्त के निर्धारित समय से पहले निश्चित कर लिए जाए I
लोकपाल बिल कहता है नागरिक अपने सुझावों को `खोज और चयन समितियों` में भेज सकते हैं I लेकिन इसके लिए कोई भी प्रक्रिया/पद्धति नहीं दी गयी है I मान लीजिए 1 लाख या 50 लाख या 20 करोड नागरिक अपने सुझाव भेजना चाहते हैं I सुझाव ई-मेल के द्वारा भेजना सही विकल्प नहीं होगा क्योंकी अनेक व्यक्ती हजारों जाली ई-मेल भेज सकते है I चिट्ठियाँ भेजना भी सही विकल्प नहीं होगा क्यूंकि `खोज और चयन समितियों` के पास इतना समय नहीं है की वह 1 लाख चिट्ठियों को खोले और पढ़े |और चिट्ठियों को नष्ट भी किया जा सकता है, `खोज और चयन समितियों` में पहुँचने के पहले | यदि `खोज और चयन समितियां` भ्रष्ट हों ,तो  वे यह कह सकते हैं कि उन्हें किसी भी तरह के सुझाव नहीं मिली हैं | तो ये हमारा प्रस्ताव है की नागरिक एक एफिडेविट (अपनी सुझाव के साथ) जमा कर सकता है कलेक्टर के दफ्तर में और कलेक्टर उसे स्कैन करके लोकपाल की वेबसाइट पर रखेगा | यह सबसे अच्छा रास्ता है जो मैं सोच सकता हूँ , हालाँकि यदि कोई इससे अच्छी प्रक्रिया/पद्धति जनता है तो मैं उससे विनती करता हूँ की वह 15 अगस्त निर्धारित समय से पहले सबके सामने रखे, न कि अगले जन्म की प्रतीक्षा करे I
इस प्रस्ताव की दूसरी खंड/धारा यह है की नागरिक को यह अनुमति दी जाए कि कलेक्टर के दफ्तर में जमा कोई भी शिकायत पर अपने हाँ/ना को दर्ज कर सके ,तलाटी के दफ्तर जाकर | यह तब उपयोगी है जब  हजारों, लाखों या करोड़ों नागरिकों की एक ही शिकायत है I वह सभी को एक सी शिकायत भेजने की जरुरत नहीं पड़ेगी I खंड/धारा 2 के हटने से केवल सिस्टम और देश को नुकसान हो जाएगा I

 

32.5  राइट टू रिकॉल लोकपाल, राइट टू रिकॉल प्रधानमंत्री, राइट टू रिकॉल न्यायधीश इत्यादि पर अधिक जानकारी

राइट टू रिकॉल/प्रजा अधीन राजा/`भ्रष्ट को निकालने का अधिकार` कोई विदेशी विचार नहीं है I सत्यार्थ प्रकाश कहता है की राजा को प्रजा के अधीन होना ही चाहिए अन्यथा वह नागरिकों को लूट लेगा और और इस तरह देश का नाश हो जाएगा | दयानंद सरस्वती जी ने यह श्लोक अथर्ववेद से लिए हैं | तो राइट टू रिकॉल/प्रजा अधीन राजा कोई अमरीकी या विदेशी विचार नहीं है ,यह सम्पूर्ण भारतिय  है |

श्रेणी: प्रजा अधीन