होम > प्रजा अधीन > अध्याय 32 – `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` – लोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`

अध्याय 32 – `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` – लोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`

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32.7  प्रस्तावित प्रजा अधीन-राजा के खंड को और अच्छे से समझना चाहूँगा –

प्रस्तावित प्रजा अधीन-लोकपाल के खंड जनलोकपाल के किसी भी खण्डों को समाप्त नहीं करेगा , यानी कि ये खंड सिर्फ जनलोकपाल या सरकारी लोकपाल के साथ जोड़े जाएँगे और जनलोकपाल या सरकारी ड्राफ्ट में से कुछ भी घटाया नहीं जायेगा | अब 24 करोड़ नागरिक कैसे निर्णय करेंगे कि कोई लोकपाल अच्छा है या नहीं इस पर निर्णय करता है कि आज का (वर्त्तमान) लोकपाल कितना अच्छा या बुरा है |

यदि आज का लोकपाल अच्छा है (या बुरा है ,लेकिन बुरा एक सीमा में है) , तो नागरिक कोई ध्यान नहीं देंगे | लेकिन यदि वर्त्तमान लोकपाल बहुत बुरा है, तो वो दूसरे लोकपाल के लिए देखेंगे/ढूंढेंगे | और इस प्रक्रिया/तरीके में पांच लोगों को स्वीकृति/समर्थन दे सकते हैं, इसीलिए एक अच्छे उम्मीदवार को समर्थन देने से दूसरे अच्छे उम्मीदवार को भी समर्थन दिया जा सकता है, ये कृपया ध्यान दीजिए |

और असल में , मुद्दा क्या है ? यदि नागरिकों के पास कोई व्यक्ति के लिए आम सहमति नहीं है, तो दूसरा व्यक्ति नहीं आएगा और बदलाव नहीं होगा | ये तो प्राकृतिक है | मुद्दा ये है कि क्या यदि नागरिकों कि कोई आम सहमति हो तो ? उदाहरण के लिए हम लोग अलग-अलग हैं लेकिन बहुत लोग `नरेंद्र मोदी ` को पसंद करते हैं | तो मेरे अनुसार आम सहमति हमेशा गायब नहीं रहेगी | और यदि आम सहमति है , तो क्या कोई दूसरे व्यक्ति को नहीं आने देना चाहिए ?

और कृपया अपना मन बनाएँ | एक तरफ कहते हैं — अमीर आम सहमति बना कर मतदाताओं को खरीद लेंगे और अगले पल, हम सुनते हैं कि कोई आम सहमति नहीं होगी | जहाँ तक मैं सोचता हूँ , अमीर आदमी मतों को खरीद नहीं पाएंगे प्रस्तावित प्रजा अधीन-लोकपाल/राईट टू-लोकपाल की प्रक्रिया में, क्योंकि मतदातों को अपने मत/स्वीकृति रद्द करने की छूट है | इसलिए अमीर व्यक्ति को रोज 100 रुपये देना होगा करोड़ों लोगों को , जो संभव नहीं है ,यदि भारत के सारे अमीर भी एक साथ अपना पैसा लगाएं तो | तो पैसे से मतदातों को खरीदना प्रश्न से बाहर है |

इसी तरह , गुंडों और मीडिया द्वारा भी मतदाताओं को खरीदना संभव नहीं है क्योंकि गुंडे पालने के लिए भी पैसे लगते हैं और कोई महीनों के लिए इतने गुंडे नहीं रख सकता कि करोड़ों मतदातों को प्रभावित कर सके | और ये प्रक्रियाएँ आने पर मीडिया का `पैसे लेकर समाचार देना` बंद हो जायेगा क्योंकि पारदर्शी शिकायत प्रणाली (सिस्टम) खुद एक मीडिया होगा क्योंकि ये एक ऐसी जानकारी देगा जो कोई भी जांच सकता है , जो मीडिया नहीं देता |

प्रश्न- नागरिक लोकपाल के उम्मीदवार के बारे में कैसे जानेंगे ?

    इन प्रस्तावित तरीकों में से एक तरीका है पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली, जिसके द्वारा जो भी जानकारी मिलेगी , उसको नागरिक खुद जांच कर सकता है क्योंकि हर अर्जी देने वाले को और अर्जी का समर्थन/विरोध करने वाले को अंगुली की छाप, वोटर आई.डी. , फोटो आदि द्वारा अपनी जाँच करवानी होगी और ये सब वेबसाइट पर आ जायेगी , जो कभी भी कोई आम-नागरिक देख और जांच कर सकता है |
यदि कोई उम्मीदवार ने समाज के लिए बुरा काम किया है, तो उसके खिलाफ ज्यादा शिकायत करने वाले और समर्थक होंगे और यदि किसी उम्मीदवार ने कोई अच्छा कम किया है समाज के लिए तो उसके लिए लोग अर्जी में अच्छी बातें लिखेंगे और दूसरे इसका समर्थन कर सकते हैं |

 

32.8   कैसे जनलोकपाल भारत को कमजोर बना सकता है और भारत को विदेशी कंपनियों का गुलाम बनने में मदद कर सकती है

बहुत कम भारत के नागरिकों को ये सच्चाई समझ आई है – कि भ्रष्टाचार से दस गुना भारत में हो रहा है|  क्या ? हमारी खेती, हथियार बनाने का सामर्थ्य/क्षमता और गणित/विज्ञानं की शिक्षा दिन बार दिन कमजोर हो रही है | ये इसीलिए क्योंकि विदेशी कम्पनियाँ, केंद्र और राज्य में हमारे मंत्रियों, बाबूओं को रिश्वत दे रही हैं , हमारी खेती, हथियार बनाने की ताकत और गणित/विज्ञान की शिक्षा को कमजोर बनाने के लिए | और जनलोकपाल इस स्थिति को और खराब बना सकती है | कैसे ?

लोकपाल चुनाव समिति में कोई 10-12 लोग हैं, जो बहू-राष्ट्रीय/विदेशी कम्पनियाँ आसानी से खरीद सकती हैं या धमकी दे सकती हैं , राडिया जैसे दलाल/बिचौलियों द्वारा | और इस तरह विदेशी कम्पनिय ये पक्का कर सकते हैं की विदेशी कंपनियों के एजेंट , साफ़-सुथरी छवि/नाम के साथ, लोकपाल बनें | इन लोकपाल के एजेंटों के साथ , विदेशी कंपनियां निचले स्तर के भ्रष्टाचार (कलेक्टर के स्तर के नीचे) को दबाएंगे, क्योंकि निचले स्तर के भ्रष्टाचार विदेशी कंपनियों को अधिक नुकसान करती हैं छोटे-माध्यम स्तर के व्यापारियों के मुकाबले | औरसाथ ही, लोकपाल खेती, हथियार बनाने की ताकत और गणित/विज्ञान शिक्षा को कमजोर बनने वाली नीतियां/तरीके को बढ़ावा देंगे , ताकि भारत और ज्यादा विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहें | विदेशी कम्पनियाँ ऐसी नीतियां को कैसे बढ़ावा दे सकते हैं ? लोकपाल द्वारा बाबू, जज, मंत्रियों को परेशान करके(उनके खिलाफ झूठे मामले बनाकर) जो इन नीतियों/तरीकों का विरोध करते हैं और उन मंत्रियों, जज, बाबूओं का पक्ष/तरफदारी लेकर, जो ऐसी नितियों का समर्थन/मदद करते हैं |

(अलग से : मुझे समझाने दीजिए क्यों निचले स्तर का भ्रष्टाचार छोटे-माध्यम स्तर के व्यापारियों को फायदा करते हैं विदेशी कंपनियों के मुकाबले | मान लीजिए एक व्यक्ति दिल्ली, अहमदाबाद जैसे शहर में 5-10 होटलों का मालिक है | और एक और होटल खोलना चाहता है और स्थानीय अफसर उससे रिश्वत मांगते हैं, कहें 5 लाख की | तो वो रिश्वत दे देता है |

अब दूसरी और, एक विदेशी व्यापारी/मालिक अमेरिका में बैठा है और उसको भी एक और होटल खोलना है | मान लीजिए स्थानीय अफसरों को 5 लाख की रिश्वत चाहिए इस के लिए | अब विदेशी व्यापारी सीधे तो स्थानीय अफसर से सौदा नहीं कर सकता , इस के लिए उसे दलाल चाहिए | अब दलाल कहेंगे कि अफसर 50 लाख रिश्वत मांग रहे हैं !! विदेशी व्यापारी जो अमेरिका में बैठा है,को कोई साधन नहीं है , ये जानने का और वो 10 गुना रिश्वत देता है , उस के मुकाबले जो स्थानीय/देशी व्यापारी को देना होता है |

श्रेणी: प्रजा अधीन