होम > प्रजा अधीन > अध्याय 32 – `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` – लोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`

अध्याय 32 – `जनता द्वारा राईट टू रिकाल-लोकपाल` – लोकपाल को विदेशी कंपनियों के एजेंट बनने से रोकने के लिए जरूरी है `भ्रष्ट लोकपाल को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार`

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यदि वे कहते हैं, कि सुप्रीम-कोर्ट के जज, मंत्रियों, सासदों को सज़ा तो देते हैं, को फिर पूछें कि क्यों उनको लोकपाल बिल को लाने की जरुरत है और क्यों वे सुप्रीम-कोर्ट के जज को नहीं लिखते हैं, जिनपर उनको इतना विश्वास है बजाय कि करोड़ों रुपये लोकपाल पर खर्च करने के ?
यदि वे कहते हैं कि सुप्रीम-कोर्ट के जजों के पास अधिकार नहीं हैं सांसद, मंत्रियों को सज़ा देने या उनपर कार्यवाई करने के लिए तो उन्हें `हिंदू` समाचार पत्र में ये लेख दिखाएँ , जहाँ सुप्रीम-कोर्ट के जज कह रहे हैं कि  `उनके अधिकारों की सीमा आसमान जितनी ऊंची है ` |
(“The limits of power exercised by the Supreme Court when it chases injustice, are the sky itself, a Bench of the apex court has said.
http://www.thehindu.com/news/national/article2288114.ece )

3) नाम जरूरी नहीं है, प्रक्रिया/तरीका/विधि जरूरी है |

तीन राज्यों में –राजस्थान, बिहार और छत्तीसगढ़ में, एक क़ानून है, जिसका नाम है `राईट टू रिकाल-कार्पोरेटर` लेकिन इन तीनों राज्यों में इस के प्रक्रियाएँ/तरीके अलग-अलग हैं और हमारा प्रस्तिवित क़ानून भ्रष्ट कर्पोराटर(पार्षद) को बदलने/निकालने के लिए अलग है | इसीलिए कृपया प्रक्रिया पर ध्यान दें और `प्रजा अधीन-राजा`-विरोधी को बोलें कि ड्राफ्ट/क़ानून के धाराएं को प्रस्तुत करे/बताये , जिसके बारे में बात कर रहा है |

4) कृपया केवल प्रक्रिया और धाराओं/खंड पर ध्यान दीजिए , कैसे वे हमारे देश को फायदा या नुकसान करेंगी कोई परिस्थिति में |

`प्रजा अधीन-रजा` के विरोधी अपनी पूरी कोशिश करेंगे असली मुद्दे से हटाने के लिए , व्यक्तियों के बारे में बात कर के और व्यक्तियों को एक दूसरे से तुलना कर के | केवल प्रक्रियाएँ/तरीके सिस्टम में बदलाव ला सकती हैं, अच्छी या बुरी | इसीलिए , कृपया प्रक्रियाएँ/तरीकों पर ध्यान दीजिए |

और, प्रक्रिया/तरीका बताता है कि क़ानून अच्छा है या बेकार | ऊपर लिखित `प्रजा अधीन-कोर्पोरेटर` क़ानून तीनों राज्यों में एक दम बेकार हैं क्योंकि वे आम नागरिकों को भ्रष् कोर्पोरेटर को हटाने/बदलने का अधिकार नहीं देते | उदाहरण- बिहार का `राईट टू रिकाल-कोर्पोरेटर`क़ानून कहता है कि उस क्षेत्र के 66% नागरिक, यदि अपने हस्ताक्षर इकठ्ठा करके कलेक्टर को दें, तो कलेक्टर हस्ताक्षरों की जांच करेगा , और यदि हस्ताक्षर सही पाए गए , तो वो कोर्पोरेटर हटा दिया जायेगा | लेकिन ,हमारे देश में हस्ताक्षरों की जांच नहीं हो सकती क्योंकि सरकार के पास नागरिकों के हस्ताक्षरों का कोई रिकोर्ड नहीं है | इसीलिए हमें, प्रक्रियाएँ/तरीकों और ड्राफ्ट और उनके धाराओं पर ध्यान देना चाहिए, केवल प्रस्ताव पर नहीं |

5) दो देशों या दो क्षेत्रों के भ्रष्टाचार की तुलना करना –

दो देशों या दो क्षेत्रों के भ्रष्टाचार की तुलना करते समय, भ्रष्टाचार को एक देश/क्षेत्र के विभाग से दूसरे देश/क्षेत्र के विभाग से तुलना करें , जिला,राज्य और राष्ट्र स्तर पर | जो प्रक्रियाएँ/तरीके अभी (वर्त्तमान) हैं, उनकी तुलना प्रस्तावित प्रक्रियाएँ/तरीकों से करें और  सटीक/सही परिस्थिति दें कि कैसे प्रस्तावित प्रक्रियाएँ/तरीके देश को नुकसान या फायदा पहुंचा सकते हैं वर्त्तमान/मौजूदा प्रक्रियाएँ/तरीकों कि तुलना में , प्रक्रियाओं-ड्राफ्ट के खंड/धाराओं को बताते हुए |

 

32.13     कुछ और चालें  जो `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी जो इस्तेमाल करते हैं असल मुद्दे से हटाने के लिए

बहुत जल्दी , सभी नेता `प्रजा अधीन-राजा` की बात करने पर मजबूर हो जाएँगे और असल मुद्दे से ध्यान हटाने से कोशिश करंगे , यानी भ्रष्ट लोकपाल , प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जज, आदि आम नागरिकों द्वारा से ध्यान हटाने कि कोशिश करेंगे |

हमें कार्यकर्ताओं को बताना है वे चालें जो `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी इस्तेमाल करते हैं असली मुद्दे से हटाने के लिए | कौन सी चालें ?
1. `प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी बेकार और प्रबंध न किया सकने वाला हस्ताक्षर-आधारित प्रक्रिया पर जोर देंगे और हाजिरी-आधारित भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने की प्रक्रियाएँ/तरीकों का विरोध करेंगे |

और इसीलिए हम कार्यकर्ताओं को बताएँगे कि सच्चे `प्रजा अधीन-राजा` के कार्यकर्ता हमेशा `हाजिरी वाले भ्रष्ट को बदलने के तरीकों ` को समर्थन करेंगे | हजारी वाले तरीकों में ,व्यक्ति को खुद पटवारी/टालती के दफ्तर जाना होता है और अधिकारी के विकल्प को समर्थन देना होता है | जबकि हस्ताक्षर वाले तरीके में, कार्यकर्तओं को हस्ताक्षर इकठ्ठा करना होता है और सरकारी अफसर को हस्ताक्षर जांच करना होता है, जो कि संभव नहीं है क्योंकि हमारे देश में सरकार के रिकोर्ड में नागरिकों का हस्ताक्षर नहीं है |

2. `प्रजा अधीन-राजा ` के विरोधी `प्रजा अधीन-सरपंच`,`प्रजा अधीन-कोर्पोरेटर (पार्षद) आदि का समर्थन करेंगे और `प्रजा अधीन-लोकपाल , `प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री` का विरोध करेंगे |
हमें सभी कार्यकर्ताओं को बताना है कि ऐसा व्यक्ति जो `प्रजा अधीन-सरपंच` जैसे  भीख और चिल्लर की बात करता है , वो नकली `प्रजा अधीन-राजा` का समर्थक है | क्योंकि ये सब पद-सरपंच , कोर्पोरेटर आदि के पास `प्रधानमंत्री ,मुख्यमंत्री आदि के मुकाबले कुछ खास अधिकार नहीं होते और इसीलिए ऐसे पदों पर `प्रजा अधीन-राजा`भीख समान है |

3. `प्रजा अधीन-राजा` का विरोधी ड्राफ्ट/मसौदे पर चर्चा से बचना कहेगा |

हमें उसका सामना करना चाहिए और उसकी बेइज्जती भी करनी चाहिए कि “ क्या तुम ड्राफ्ट अगले जन्म में दोगे? “

और भी चलें हैं | मैं बाद में सभी चालों की लिस्ट/सूची बनंगा जो ,`प्रजा अधीन-राजा` के विरोधी इस्तेमाल करते हैं | और हमें कार्यकर्ताओं को जवाबी चलें भी पहले से बतानी हैं |

 

32.14    बिना `राईट टू रिकाल-लोकपाल(प्रजा अधीन-लोकपाल) जनता द्वारा` के जनलोकपाल का खेल और कैसे विदेशी कम्पनियाँ लोगों का गुस्सा का इस्तेमाल कर रही हैं भारत को फिर से गुलाम बनने के लिए

क्या होगा यदि जनलोकपाल विदेशी कंपनियों  से रिश्वत लेते हैं और विदेशी बैंकों में पैसा जामा कर देते हैं और इस तरह विदेशी कंपनियां या ईसाई धर्म-प्रचारकों के या सौदी अरब के इस्लाम के धर्म-प्रचारकों के एभ्रष्ट एजेंट बन जाते हैं ?

मैं एक सवाल पूछता हूँ-क्या होगा यदि जनलोकपाल भ्रष्ट हो जाते हैं ? उससे भी बुरा कि वे विदेशी कंपनियों से रिश्वत लेते हैं, और विदेशी बैंकों में पैसा जमा करके , विदेशी कंपनियों ,ईसाई धर्म-प्रचारकों, इस्लामी कट्टरपंथियों के एजेंट बन जाते हैं ?

क्या यदि 2012 की चुनाव समिति, खुद इन एजेंटों से भर जाती है, जो ऐसे व्यक्तियों को लोकपाल बनाये जिनकी साफ़-सुथरी छवि/नाम है , लेकिन अंदर से  विदेशी कंपनियों के एजेंट हैं ? इसका जवाब ये समझायेगा कि क्यों टी.वी चैनल `बिना `नागरिकों द्वारा भ्रष्ट लोकपाल को निकालने के अधिकार (राईट टू रिकाल-लोकपाल) के धाराओं के साथ जनलोकपाल का घंटो-घंटों प्रचार कर रहे हैं |

श्रेणी: प्रजा अधीन