अमरीका में नागरिकों के पास पुलसी कमिश्नर को निकलने का अधिकार है और यही एक मात्र कारण है की अमरीका के पोलिस में भ्रष्टाचार कम है इसी तरह अमरीका के नागरिकों के पास उच्च न्यायलय के मुख्य न्यायाधीश और जिला न्यायधीशों को भी निकलने का अधिकार है |यही कारण है की कार्यवाही बहुत तेज होती है और अमेरिका के निचली अदालतों में भ्रष्टाचार बहुत कम है I अमरीका के नागरिकों के पास राज्यपाल, विधायक, जिला शिक्षा अधिकारी , मेयेर/महापौर, जिला/राज्य सरकारी दंडाधिकारी इत्यादि पर राइट टू रिकॉल है I यह ध्यान दें कि अमरीका में कोई भी लोकपाल (ओम्बुड्समेन/ प्रशासनिक शिकायत जाँच अधिकारी) नहीं है इसके बावजूद अमरीका के राज्य/जिलों में अधिकतर विभागों में भ्रष्टाचार कम है क्योकि अधिकतर राज्य/जिलो में राइट टू रिकॉल/`भ्रष्ट कों बदलने का अधिकार` है I वही अमरीका में केंद्र के मंत्रियों(सीनेटरों) और केन्द्र के अधिकारियो में भ्रष्टाचार अधिक मात्रा में है क्योंकि केंद्र के मंत्रियों और केन्द्र के अधिकारियो पर राइट टू रिकॉल नहीं है I
वर्ष 2004 में मैंने सुझाव दिया था कि हमें `राइट टू रिकॉल-सूचना अधिकार कमिश्नर(भ्रष्ट सूचना अधिकार कमिश्नर कों बदलने का नागरिकों का अधिकार)` के खंड/धारा `सूचना अधिकार अधिनियम(आर.टी.आई)` में लाया जाए अन्यथा ज्यादातर सूचना अधिकार कमिश्नर भ्रष्ट और बेकार/अयोग्य हो जाएँगे और सूचना अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई) के आवेदकों(उपयोग करने वाले) कों यहाँ-वहाँ भटकते ही रहना पड़ेगा जानकारी प्राप्त करने के लिए |
लेकिन पुनः मुझे यह उत्तर मिला की हम एकता पर ही अधिक ध्यान देना चाहिए हम सूचना अधिकार अधिनियम (आर.टी.आई) को बिना राइट टू रिकॉल के समर्थन करते हैं और अभी हम सूचना अधिकार कमिश्नर पर राइट टू रिकॉल का विरोध करते हैं हम सूचना-अधिकार कमिश्नर पर राइट टू रिकॉल बाद में लायेंगे Iयह बाद क्या है ? अगले जन्म में ? मेरे विचार से इस बार हमें यह मांग करनी होगी कि लोकपाल में राइट टू रिकॉल की खंड/धारा का ड्राफ्ट 15 अगस्त के पहले जुड जाना चाहिए I मै यह नहीं निवेदन/प्रार्थना करता हूँ कि मेरे राईट टू रिकाल-लोकपाल का ही समर्थन करें, मै यह विनती करता हूँ की आप इससे भी अच्छा प्रस्ताव प्रस्तुत करने की कोशिश करें |
कुछ व्यक्तियों ने जोर दिया है की वे राइट टू रिकॉल का समर्थन करते हैं पर वे लोकपाल में राइट टू रिकॉल लाने की चर्चा का भी विरोध करते हैं इस जन्म में Iवे यह बात पर जोर डालते हैं कि राइट टू रिकॉल ,सरपंच से शुरू होकर ऊपर की ओर जाना चाहिए | मुझे आश्चर्य है कि क्यों वे राइट टू रिकॉल लोकपाल पर नहीं लाना चाहते हैं वे कहते है कि यह पहले गांव और फिर तहसील और फिर जिला और फिर राज्य ,तब राष्ट्र स्तर पर लागू होना चाहिए I क्यों सर्वप्रथम केंद्र के लोकपाल पर नहीं मांग करते ?
उनका कहना कि राइट टू रिकॉल, सरपंच के स्तर पर ही होना चाहिए ना की केन्द्र/राज्य स्तर पर, यह तो ऐसा कहना हुआ की “एक रुपये का सिक्का लो और 100 रुपये , 500 रुपये और 1000 रुपये के नोट को भूल जाओ ” और यह भी कहना है कि राइट टू रिकॉल आज से ही सरपंच पर ही होना चाहिए और राइट टू रिकॉल लोकपाल, राइट टू रिकॉल प्रधानमंत्री, राइट टू रिकॉल न्यायधीश पर बाद में लागू होना चाहिए | बाद में का अर्थ अगले जन्म भी हो सकता है |
राइट टू रिकॉल की अनुपस्थिति/गैर-हाजिरी में एक व्यक्ती जो पद में है , भ्रष्ट होकर सारी सीमाएं पार कर जाता है I उदाहरण के लिए , हाल ही में माननीय उच्चतम न्यायलय के मुख्य न्यायधीश (सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज) खरे ने एक स्विट्ज़रलैंड के अरबपति व्यक्ती को जिसने 38 वर्षीय बच्चियो का बलात्कार किया था और इसे वीडियो टेप किया था ,उसी निर्दयी व्यक्ती को जमानत दे दी थी I माननीय जज खरे ने वीडियो टेप होने के बावजूद उस अरबपति को जमानत दे दी जब कि निचली अदालत ने उसे अपराधी घोषित किया था I इस तरह के दुर्भाग्यपूर्ण फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज के ऊपर राइट टू रिकॉल न होने के कारण का फल है I इसी तरह यदि नागरिकों के पास लोकपाल को निकलने/बदलने का अधिकार ना हो तो वह भी माननीय सुप्रीम-कोर्ट के प्रधान जज की तरह भ्रष्ट/भाई-भतीजावाद वाला हो जाएगा |
अभी, `सिविल सोसाइटी` के कमिटी के सदस्य अभी पद में हैं और यह स्थिति में हैं कि वे पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम) और राइट टू रिकॉल-लोकपाल खंड/धारा को लोकपाल ड्राफ्ट में जोड़ सकते हैं I वह 5 मंत्री इस बात को स्वीकार कर या नहीं भी कर सकते है – यह एक अलग बात है I लेकिन यदि `सिविल सोसाइटी` के सदस्य खुद पारदर्शी शिकायत प्रणाली/ राइट टू रिकॉल-लोकपाल को 15 अगस्त के पहले जोड़ने का विरोध करेंगे, यह पूरी तरह दर्शाता है की राइट टू रिकॉल लाने की इनकी कोई मंशा नहीं है | मैं यह आशा करता हूँ की ऐसी बात न हो
जय हिंद |
32.6 लोकपाल बोल सकता है : तुमने शिकायत कभी नहीं भेजी | |
हमने से कई लोगों ने ये देखा है कि सूचना अधिकार के लिए हम को एक जगह से दूसरी जगह भागना पड़ता है और सुचना अधिकार का कमिश्नर तारीख पर तारीख देता रहता है | अभी जनलोकपाल ड्राफ्ट कहता है कि परिणाम एक साल में आ जाएँगे | लेकिन ड्राफ्ट में, लोकपाल के खिलाफ कोई भी सज़ा नहीं बताई गयी , यदि लोकपाल मामले को सुलझाने के लिए 10 साल भी लगाता है | तो फिर, यदि हमारे लोकपाल ,हमारे प्रिय सूचना अधिकार के कमिश्नर जैसे ही हों , तो वे तारीख पर तारीख दे सकते हैं और सालों बिता सकते हैं | इसको रोकने के लिए कोई खंड हैं क्या?
पहले , हम शिकायत करने के जनलोकपाल में दिए गए तरीके से शुरू करते हैं | उसमें लोकपाल को लिखित भेजनी होगी| मान लें कि आपने पचास पन्नों का पत्र रेजिस्ट्री से भेजा है , जिसमें शिकायत की अधिक जानकारी है | यदि लोकपाल शरद पवार जितना ईमानदार है ,तो फिर वो पहले 10 पन्ने निकाल देगा और तीन महीनों बाद, एक पत्र लिखेगा आपको कि “आपने पूरी शिकायत नहीं भेजी” |
इस तरह से ये एक चाल/तरीका है जिसके द्वारा लोकपाल या लोकपाल का कोई भ्रष्ट कर्मचारी आप के साथ खेल सकता है , वो है कि “ ये आप की गलती है- आपने पूरी शिकायत नहीं भेजी” और फिर वो आप पर जुर्माना भी डाल सकता है , उसी तरह जैसे जज , जन-हित याचिका दायर करने वालों पर जुर्माना डालते हैं |