साथ ही, जब तक कि कोई बच्चा 14 वर्ष का नहीं हो जाता तब तक उसका भुगतान उसके माता-पिता के खाते में जाएगा और इसलिए क्लर्कों की जरूरी/अपेक्षित संख्या लगभग 30 प्रतिशत घटकर अब केवल 160,000 क्लर्क ही रह जाएगी। दूसरे शब्दों में, भारत भर में लगभग 160,000 कैशियरों, लगभग 10000 निरीक्षकों और 10000 अन्य स्टॉफ को काम पर लगाकर प्रतिमाह 110 करोड़ भुगतान भेजना संभव है। और क्योंकि ए टी एम का प्रसार काफी हो रहा है (ए टी एम की संख्या लगातार बढ़ रही है) इसलिए इस संख्या में भी कमी लाई जा सकती है। और प्रतिमाह नकद भुगतान की संख्या बढ़ाई जा सकती है।
( ढोंगी रूप बनाकर) धोखाधड़ी करने वालों की संख्या में कमी लाने के लिए लोग किसी मुहल्ले में कम से कम 10 व्यक्ति और ज्यादा से ज्यादा 20 व्यक्तियों का एक दल बना सकते हैं। जिसे “आपसी गवाह समूह” का नाम दिया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति 10 के समूह का सदस्य है तो उसपर इस बात का प्रतिबंध होगा कि जब वह पैसा निकालने जाए तो उस समूह में से कम से कम 5 लोग उसके साथ अवश्य जाएं । आम तौर पर सभी 10 लोग एक ही दिन और एक ही समय पैसा निकालने जाएंगे। यदि कोई व्यक्ति ऐसे समूह का सदस्य है तो उस समूह में से सभी को एक ही साथ पैसा मिल जाएगा। और किन्हीं 5 लोगों के अंगुठे का निशान भुगतान रसीद पर ले लिया जाएगा।
एक तर्क/दलील जो `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) के विरूद्ध मुझे दी जाती है वह है 200,000 क्लर्कों के नेटवर्क का संचालन करना असंभव होगा और इसलिए क्यों न इस पैसे को शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर खर्च किया जाए। देखिए 5 से 17 आयुवर्ग के 25 करोड़ बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रति 100 छात्र कम से कम एक शिक्षक होगा । स्कूल में प्रति छात्र कम से कम एक वर्ग-मीटर क्षेत्र की जरूरत होगी । अर्थात 25 करोड़ वर्ग-मीटर क्षेत्र। अस्पतालों में 100 करोड़ नागरिको को सेवा प्रदान करने के लिए हम प्रति 2000 नागरिकों पर कम से कम एक डॉक्टर की जरूरत होगी अर्थात 500,000 डॉक्टर ओर लगभग 10,00,000 नर्स ।
इसके अलावा हमें अस्पताल के लिए हजारों भवनों की जरूरत पड़ेगी । दूसरे शब्दों में 25 करोड़ छात्रों को शिक्षा देने और 100 करोड़ नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा देने के लिए 100 करोड़ किराया भुगतान भेजने के लिए काम करने वाले स्टाफ से 20 से 100 गुना ज्यादा स्टाफ की जरूरत होगी । इसलिए शिक्षा स्वास्थ्य आदि की बात मानने के बाद भी मै क्लर्कों की संख्या के आधार पर किराया भेजने की योजना को रद्द करने की जरूरत नहीं समझता। प्रत्येक महीने 100 करोड़ भुगतान भेजने के लिए आवश्यक क्लर्कों की संख्या 200,000 से अधिक नहीं है और यह दूसरी वैकल्पिक योजनाओं में लगने वाले स्टाफ से बहुत ही कम है।
(5.14) क्या इससे सरकारी आय कम नहीं होगी ? नहीं। |
यदि खनिज की सारी रॉयल्टी नागरिकों को जाती है तो सरकार को पैसे की कमी नहीं पड़ेगी। सबसे पहले मेरे प्रस्ताव के अनुसार खनिज रॉयल्टी का 33 प्रतिशत हिस्सा सरकार (सेना) को ही जाएगा जिसे प्रत्येक आम नागरिक पर, और खनिज रॉयल्टी और जमीन किराया से उसकी आय पर 33 प्रतिशत आयकर के रूप में देखा जा सकता है। अब यह 33 प्रतिशत हिस्सा तब बढ़ जाएगा जब नागरिकों को 67 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। कैसे?
आज की खनिज रॉयल्टी पर विचार कीजिए। आज एक ग्रेनाइट ब्लॉक जिसका मूल्य बाजार में 100 रूपए है और जिसपर खनन और परिवहन/ढ़ुलाई की लागत 10 रूपए से कम है] उसपर सरकार 5 रूपए या उससे भी कम रॉयल्टी प्राप्त करती है। ये बोलियां इतनी कम क्यों हैं? क्योंकि स्थानीय खनन ठेकेदार यह सुनिश्चित करने के लिए अपराधियों को भाड़े पर लेते हैं कि ज्यादा खदान मालिक बोली जमा कराने के लिए कलेक्टर के कार्यालय में ना आ पाए और बोली ना लगा पाए । लकिन ये अपराधी अपना काम करने में इसलिए सफल हो जाते हैं कि उन्हें विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकीलों का सहयोग प्राप्त होता है ।
दूसरे शब्दों में, आज अपराधियों के उपयोग से, विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकील ये सुनिश्चित करते हैं कि उस माने गए (deemed) रॉयल्टी में से अधिकतर हिस्सा उनके हाथों मे आता है उन खदान ठेकेदारों और अपराधियों के जरिए, जिनपर उनका वरदहस्त/हाथ होता है । आज अब हम कार्यकर्ताओं को आम लोगों को यह बताना ही पड़ेगा कि आम लोगों को इन मत्रियों भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकीलों के खिलाफ लडाई लड़नी होगी । तब दो प्रश्न उठते हैं –
i. एक आम आदमी कैसे लडाई लड़ सकता है?
ii. क्यों एक आम आदमी को अपना जीवन खतरे में डालना चाहिए या अपना समय बरबाद करना चाहिए ?
`नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम)-रिकॉल(भ्रष्ट को हटाने का अधिकार) का नाम इन दोनों मुख्य प्रश्नों का उत्तर देता है । `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी `(एम आर सी एम) दूसरे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देता है कि यदि खनिज की रॉयल्टी नागरिकों को मिल रही हो तो नागरिकों के पास यह सुनिश्चित करने का पर्याप्त कारण है कि वे अपराधी जो खदान के अच्छे ठेकेदार को रोकते हैं उन्हें जान से मार दिया जान चाहिए या बन्दी बना लेना चाहिए ।
और रिकॉल(भ्रष्ट तो हटाने का अधिकार) पहले प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देता है: पुलिस वालों, जजों, मुख्यमंत्रियों , आदि पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल का उपयोग करके नागरिक यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे पुलिस प्रमुखों, जजों, मंत्रियों, जो अपराधियों को बढ़ावा देते हैं, उन्हें, जैसा उचित हो, उन व्यक्तियों से बदला जाए जो आम लोगों का भला चाहते हैं । इसलिए एम आर सी एम खनिज की रॉयल्टी कई गुना बढ़ा देगा और इससे बह रॉयल्टी भी बढ़ेगी जो सेना को जाती है। इसलिए खनिजों से सरकार की आय का कुल योग इस दूसरे प्रस्तावित सरकारी आदेश से बढ़ेगा ही घटेगा नहीं।