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अध्याय 5 – प्रजा अधीन राजा समूह का दूसरा प्रस्ताव – नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (आमदनी)

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इसी प्रकार, सरकारी प्लॉटों के मामले पर विचार कीजिए । आज प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री अनेक सरकारी प्‍लॉटों को बाजार मूल्‍य के आंशिक कीमत पर दे देते हैं । प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल ( मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री को बदलने की प्रक्रिया) एक ऐसा साधन उपलब्‍ध कराता है जिससे नागरिक इसे रोक सकते हैं और एम आर सी एम अर्थात आम लोगों तथा सेना को जमीन का किराया देना नागरिकों को वह कारण उपलब्‍ध कराता है कि वे इसे रोकें ।

यदि एक मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री जमीन को किराए के लिए बाजार के मूल्‍य से कम पर दे देता है, तब नागरिक हानि/घाटे का अनुमान करेंगे और जब यह घाटा उनके संयम की सीमा पार कर जाएगा तो वे उसे (मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री) बदलने के लिए 3 रूपए खर्च करेंगे। और इससे भी बेहतर बात कि बदले जाने और उसके बाद के दण्‍ड का डर मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री पर(घूस के बदले जमीन कम किराए पर देने पर) अंकुश लगाएगा । इसलिए कुल किराया बढ़ेगा और इस तरह किराए का तिहाई हिस्सा जो सरकार(सेना) को जाएगा, वह भी बढ़ेगा।

इसलिए `नागरिक और सेना के लिए रोयल्टी (आमदनी)`(एम आर सी एम) प्रस्‍ताव खनिजों और भूमि किराया से सरकार की कुल आय बढ़ाएगा।

इससे आम लोगों की आय भी बढ़ेगी। तब किसको हानि होगी ? अपराधी और ठेकेदार को कम ही हानि होगी । असली घाटा,  भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, मत्रियों, मुख्‍यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, उच्चवर्गीय लोग जो बड़े खदानों के मालिक हैं,  जजों के सगे-संबंधी वकीलों आदि को होगी।

और वे लोग जो एम आर सी एम-रिकाल प्रस्‍तावों का विरोध करते हैं वे केवल अपराधियों, खनिज-अयस्‍क ठेकेदारों, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, जजों के सगे-संबंधी वकीलों, उच्चवर्गीय लोग जो बड़े खदानों के मालिक हैं, को ही लाभ पहुंचाएंगे किसी और को नहीं। कई बुद्धिजीवी इनसे वेतन लेते हैं और इसलिए उनके हितों का ध्‍यान रखते हुए एम.आर.सी.एम-रिकाल का जोरदार विरोध करते हैं ।

 

(5.15) पश्‍चिम में कोई ऐसा कानून नहीं है तो हमें इसकी जरूरत क्‍यों है?

मैं उन प्रक्रियाओं के लिए अभियान चलाता रहता हूँ जिससे हम आम लोग प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों और जजों को हटा सकते हैं । सभी प्रमुख बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और यह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि यह असंवैधानिक है । इसमें असफल होने के बाद वे कहते हैं – पश्‍चिम के देशों में आम लोगों को रॉयल्‍टी देने की यह प्रक्रिया नहीं है और इसलिए हम लोगों के यहां यह प्रक्रिया क्‍यों होनी चाहिए ?

देखिए, अमेरिका में 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक आयकर है। और इसका उल्‍लंघन बहुत कम होता है। और कुछेक लोगों को ही इससे छूट प्राप्‍त है । अमेरिका में जमीन पर भी लगभग एक 1 प्रतिशत संपत्‍ति-कर है । और अमेरिका में मृत्यु पर 45 प्रतिशत विरासत (इनहैरिटैंस) कर है । इन करों का उपयोग कल्‍याणकारी योजनाओं के लिए किया जाता है। और इसका लाभ आम लोगों तक पहूंच ही जाता है। जैसे जूरी प्रणाली से भ्रष्‍टाचार कम हुआ है। भारतीय बुद्धिजीवियों ने सम्‍पत्ति पर ,उच्च आयकर का विरोध किया है और वे उत्‍तराधिकार-कर के बिलकुल खिलाफ हैं और इस तरह कल्‍याणकार्य के लिए आबंटित धन/फंड न के बराबर है ।

और भारतीय बुद्धिजीवियों ने जूरी प्रणाली को भी वर्ष 1956 में मार डाला/ खत्‍म कर दिया इसलिए भ्रष्‍टाचार बेलगाम हो गया और फंड हड़पे जाने लगे। मैने 30 प्रतिशत आयकर, 2 प्रतिशत सम्‍पत्‍ति-कर और 35 प्रतिशत विरासत-कर का प्रस्‍ताव किया है ताकि सेना से जुड़ी औद्योगिक इकाइयों/कॉम्‍प्लेक्‍सों में इंजिनियरिंग शिक्षा और हथियार के निर्माण के लिए आवश्‍यक सामान्‍य शिक्षा में सुधार आ सके। और मैने भ्रष्‍टाचार कम करने के लिए जूरी प्रणाली का भी प्रस्‍ताव किया है ताकि मिलने वाली सेवाओं में सुधार आए और गरीबी कम हो। लेकिन गरीबी कम करने और गरीबी/भूखमरी से होनेवाली मौतों को कम करने के इस तरीके में वर्षों लगेंगे जबकि हम आम लोगों को खनिज रॉयल्‍टियां सीधे देने से गरीबी कम करने और गरीबी/ भूखमरी से मौत मात्र चार महीने के भीतर कम किया जाना संभव है।

 

(5.16) `नागरिक और सेना के लिए रोयल्टी (आमदनी)`(एम.आर.सी.एम) क़ानून-ड्राफ्ट और मानवाधिकार

भारत में प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों की मौत हो जाती है । देखिए, मरना तो एक स्‍वभाविक प्रक्रिया है। लेकिन उन मरने वालों के पास प्रति महीने 100 रूपए का अधिक भोजन और दवाएं होती तो पिछले साल मरने वाले एक करोड़ लोगों में से कम से कम 5-20 लाख लोग 2-10 वर्ष ज्‍यादा जी सकते थे। भारत में पिछले वर्ष जन्में एक हजार बच्‍चों में से लगभग 55 की मौत हो गई जबकि यह संख्‍या चीन में 23 और क्‍यूबा में 5 थी । प्रति हजार में से 55 के हिसाब से वर्ष 2007 में यह संख्‍या 11 लाख हो गई। इसलिए भारत में वर्ष 2007 में इन 11 लाख शिशुओं, जिनकी मौत हुई, उनमें से कम से कम 5 लाख बच्‍चों को तो बचाया जा सकता था यदि उनके परिवारों के पास भोजन और दवा पर खर्च करने के लिए कुछ 100 रूपए प्रतिवर्ष अधिक होता ।

दूसरे शब्‍दों में, भारत में आज की स्थिति के अनुसार, गरीबी के कारण सबसे ज्‍यादा मौत होती है और मानवाधिकार का सबसे गंभीर/ज्‍यादा उल्‍लंघन होता है। एक बार एक अर्थशास्‍त्री ने कहा था कि बम धमाकों मे होनेवाली एक मौत ज्‍यादा ध्‍यान खींचती है, भूखमरी से होनेवाली 10 हजार मौतें भी इतना ध्‍यान नहीं खींचती। ऐसा मुख्‍यत: इसलिए है क्योंकि समाचारपत्र 0.01 प्रतिशत भारतीयों द्वारा लिखा जाता है और केवल सबसे उपर की 15 प्रतिशत जनता उन्‍हें पढ़ती है। एक बम धमाका उन्‍हें दूख पहूँचा देता है लेकिन भूखमरी उनसे कोसों दूर है । यही कारण है कि बुद्धिजीवियों, गैर सरकारी संगठनों और मीडिया-मालिक और मीडिया-पाठक व्‍यक्‍तिगत मुद्दों पर ध्‍यान देने पर जोर देते हैं। और गरीबी] भूखमरी से होने वाली मौतों पर ध्‍यान न देने पर जोर देते हैं।

`नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट मानवाधिकारों की मांग में सबसे बड़ी (लैण्‍डमार्क) मांग है क्‍योंकि यह भोजन और दवाएं खरीदने के लिए पैसे की कमी के कारण होने वाली मौतों की संख्‍या कम करेगी। दुख की बात है कि सभी बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और मेरे विचार से, कार्यकर्ताओं को इन बुद्धिजीवियों से तो सदैव के लिए किनारे कर ही लेना चाहिए।

श्रेणी: प्रजा अधीन