सूची
- (5.1) मात्र 3 लाइन का यह जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली गरीबी को 4 महीने में ही कैसे कम कर सकता है?
- (5.2) नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट – संक्षेप में (छोटे में)
- (5.3) नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) के क़ानून-ड्राफ्ट की ज्यादा जानकारी
- (5.4) खनिज रॉयल्टी(आमदनी) भेजना
- (5.5) राज्य स्तर पर नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(आमदनी) (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट / प्रारूप
- (5.6) सार्वजनिक भूमि का किराया कितना है ?
- (5.7) खनिज रॉयल्टी(आमदनी) कितनी है ?
- (5.8) जमीन का किराया वसूलने / जमा करने के प्रभाव
- (5.9) जमीन का किराया जमा ना करने / न वसूलने का (कु)प्रभाव –
- (5.10) राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एम एल आर ओ) को हटाने / वापस बुलाने का तरीका
- (5.11) `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(रोयल्टी)` (एम आर सी एम) कानून का प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट
- (5.12) कृपया सेना और नागरिक के लिए खनिज रायलटी (एम.आर.सी.एम) कानून, जिसका प्रस्ताव मैंने किया है, उसके अंतिम दो धाराओं / खंड पर ध्यान दो
- (5.13) 110 करोड़ नागरिकों को भुगतान भेजने में आनेवाली लागत
- (5.14) क्या इससे सरकारी आय कम नहीं होगी ? नहीं।
- (5.15) पश्चिम में कोई ऐसा कानून नहीं है तो हमें इसकी जरूरत क्यों है?
- (5.16) `नागरिक और सेना के लिए रोयल्टी (आमदनी)`(एम.आर.सी.एम) क़ानून-ड्राफ्ट और मानवाधिकार
सूची
- (5.1) मात्र 3 लाइन का यह जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली गरीबी को 4 महीने में ही कैसे कम कर सकता है?
- (5.2) नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट – संक्षेप में (छोटे में)
- (5.3) नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) के क़ानून-ड्राफ्ट की ज्यादा जानकारी
- (5.4) खनिज रॉयल्टी(आमदनी) भेजना
- (5.5) राज्य स्तर पर नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(आमदनी) (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट / प्रारूप
- (5.6) सार्वजनिक भूमि का किराया कितना है ?
- (5.7) खनिज रॉयल्टी(आमदनी) कितनी है ?
- (5.8) जमीन का किराया वसूलने / जमा करने के प्रभाव
- (5.9) जमीन का किराया जमा ना करने / न वसूलने का (कु)प्रभाव –
- (5.10) राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एम एल आर ओ) को हटाने / वापस बुलाने का तरीका
- (5.11) `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(रोयल्टी)` (एम आर सी एम) कानून का प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट
- (5.12) कृपया सेना और नागरिक के लिए खनिज रायलटी (एम.आर.सी.एम) कानून, जिसका प्रस्ताव मैंने किया है, उसके अंतिम दो धाराओं / खंड पर ध्यान दो
- (5.13) 110 करोड़ नागरिकों को भुगतान भेजने में आनेवाली लागत
- (5.14) क्या इससे सरकारी आय कम नहीं होगी ? नहीं।
- (5.15) पश्चिम में कोई ऐसा कानून नहीं है तो हमें इसकी जरूरत क्यों है?
- (5.16) `नागरिक और सेना के लिए रोयल्टी (आमदनी)`(एम.आर.सी.एम) क़ानून-ड्राफ्ट और मानवाधिकार
प्रजा अधीन राजा समूह का दूसरा प्रस्ताव – नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(आमदनी) |
(5.1) मात्र 3 लाइन का यह जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली गरीबी को 4 महीने में ही कैसे कम कर सकता है? |
मान लीजिए आप के पास एक किराये का मकान है और आप ने उसको किराये पर दिया है, तो फिर किराया किसको जाना चाहिए, आपको या सरकार को ? आप कहेंगे कि आप को जाना चाहिए | ऐसे ही आप को यदि पूछें कि यदि एक मकान जिसके दस बराबर के मालिक हैं , किराये पर दिया है, तो किराया किसको जाना चाहिए ? आप कहेंगे कि दस मालिकों को बराबर-बराबर किराया जाना चाहिए | इसी तरह यदि कोई बहुत बड़ा प्लाट हो , जिसके 120 करोड़ मालिक हैं ,यानी पूरा देश मालिक है और वो किराये पर दिया है ,तो उसका किराया पुरे देश वासियों ,120 करोड़ लोगों में बराबर-बराबर बटना चाहिए |
ऐसे प्लाट हैं जिसके 120 करोड़ मालिक हैं? जी हाँ , आई आई एम ए प्लॉट, जे एन यू प्लॉट, सभी यू जी सी प्लॉट, अहमदाबाद एयरपोर्ट प्लॉट, सभी एयरपोर्टों के प्लॉट और हजारों ऐसे भारत सरकार के प्लॉटों से मिलने वाला जमीन का किराया और भारत के सभी खनिजों, कोयला और कच्चे तेल से मिलने वाली सारी रॉयल्टी हम भारत के नागरिकों और हमारी सेनाओं को जानी चाहिए किसी और को नहीं।
और यह रॉयल्टी व किराया सीधे ही मिलना चाहिए किसी योजना या स्कीम के जरिए नहीं। एक तिहाई हिस्सा सेना को जाना चाहिए देश की रक्षा के लिए और बाकी दो तिहाई नागरिकों को बराबर-बराबर बटना चाहिए | एक अनुमान से यदि ऐसा होता है तो हर एक नागरिक को लगबग 400-500 रुपये महीना मिलेगा जिससे देश की गरीबी कम हो जायेगी |
जिस दिन नागरिक प्रधानमंत्री को जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने को बाध्य करने में सफल हो जाते हैं, उसी दिन मैं जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट को शपथपत्र/एफिडेविट के तौर पर जमा करवा दूँगा । नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) प्रस्ताव क्या है? इस क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप में एक प्रशासनिक तरीके/प्रक्रिया को बताया गया है जिससे राष्ट्रीय स्तर के अधिकारी हर नारिक को लगभग 500 रूपए (कम या अधिक हो सकता है) प्रति महीने भेज सकेंगे |
अब बताएं कि कितने करोड़ नागरिक, आप समझते हैं, १०० % नैतिक लगभग 500 रूपए (कम या अधिक हो सक्ता है) प्रति महीने नहीं लेना चाहते हैं? मैं मानता हूँ कि 40 करोड़ से ज्यादा नागरिक 100 प्रतिशत नैतिक रूपए चाहते हैं। और इसलिए जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली यह सुनिश्चित करेगा कि प्रधानमंत्री नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट/प्रारूप पर हस्ताक्षर करने को बाध्य हैं। और जब एक बार नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट पर हस्ताक्षर हो जाता है तो हम आम नागरिकों में से हर एक नागरिक को हर महीने 500 रूपए (कम या ज्यादा हो सकता है) के लगभग मिलेगा। और इस प्रकार गरीबी कम होगी ।
क्या नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाने के लिए जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट का भी होना जरूरी है?
यदि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) समर्थक को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्हें संसद में बहुमत नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है) उनके अपने ही सांसद बिक जाएंगे और नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे ।
उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद, बाद में उन्होंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप पर जन-आन्दोलन पैदा करने पर ध्यान लगाना चाहिए और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए ।
(5.2) नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट – संक्षेप में (छोटे में) |
आई आई एम ए प्लॉट, जे एन यू प्लॉट, सभी यू जी सी प्लॉट, अहमदाबाद एयरपोर्ट प्लॉट, सभी एयरपोर्टों के प्लॉट और हजारों ऐसे भारत सरकार के प्लॉटों से मिलने वाला जमीन का किराया और भारत के सभी खनिजों, कोयला और कच्चे तेल से मिलने वाली सारी रॉयल्टी हम भारत के नागरिकों और हमारी सेनाओं को जानी चाहिए किसी और को नहीं। और यह रॉयल्टी व किराया सीधे ही मिलना चाहिए किसी योजना या स्कीम के जरिए नहीं। उदाहरण के लिए, मान लीजिए भारत सरकार के प्लॉटों से मिलने वाला किराया और खनिज रॉयल्टी दिसम्बर, 2008 में 45 हजार करोड़ रूपया थी ।
तब हम लोगों द्वारा प्रस्तावित कानून के मुताबिक 15 हजार करोड़ रूपया सेना को जाएगा और लगभग 500 रूपया प्रत्येक भारतीय नागरिक के पोस्ट-आफिस या बैंक खाते में सीधे ही जाएगा। यदि हरेक नागरिक महीने में एक या दो बार खाते से पैसा निकालता है तो भी इसके लिए भारत भर में 1,50,000 से ज्यादा क्लर्कों की जरूरत नहीं पड़ेगी। वर्तमान राष्ट्रीयकृत बैकों के पास 6,00,000 से ज्यादा क्लर्क हैं । इसलिए पैसे का वितरण कर पाना संभव है । नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट से होने वाले सीधे धन वितरण से हर साल प्रति व्यक्ति को 6000 रूपए से ज्यादा की आय हो सकती है अथवा जमीन या घर की कीमत कम हो सकती है ।
वह भी प्रति व्यक्ति न की प्रति परिवार । और इस तरह नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट गरीबी कम कर देगा, आय बढ़ाएगा और सामानों की मांग बढेगी | इस प्रकार, सामानों की मांग बढ़ने से उधोग-धंधे बढ़ेंगे और फिर रोजगार बढ़ेगा। स्थानीय उधोग बढ़ने से इंजिनियरिंग कौशल में सुधार होगा और इससे हथियार बनाने के काम में भी सुधार होगा और जिससे गरीब हिन्दू क्रिश्चन-धर्म या नक्सलवाद या इन दोनों की ओर कम ही जाएगा। इस कानून के पारित होने के एक वर्ष के भीतर ही यदि तीसरा बच्चा पैदा होता है तो उसके माता-पिता को 33 प्रतिशत कम किराया मिलेगा। (जिनका पहले से ही तीसरा बच्चा है उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा) इस तरह यह कानून जनसंख्या पर भी नियंत्रण करेगा।
(5.3) नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) के क़ानून-ड्राफ्ट की ज्यादा जानकारी |
मुख्य अधिकारी पर नागरिकों का नियंत्रण/कंट्रोल:-
- बदलने की प्रक्रिया/तरीका यह होगा-
- कोई भी नागरिक संसद सदस्य के चुनाव के जमा रकम के बराबर पैसे का भुगतान करके अपने आप को राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) उम्मीदवार/प्रत्याशी के रूप में रजिस्टर/दर्ज करवा सकता है।
- भारत का कोई भी नागरिक तलाटी के कार्यालय/आफिस जाकर तीन रूपए का शुल्क/फीस जमा करा सकता है और अधिक से अधिक पांच लोगों को राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसे पावती जारी करेगा जिसमें उसके वोटर आई कार्ड / मतदाता पहचान–पत्र तथा उन व्यक्तियों, जिनको उसने अनुमोदित किया गया है, आदि का उल्लेख होगा ।
- तलाटी नागरिकों की पसन्द/प्राथमिकता को उसके वोटर आई कार्ड के साथ सरकारी वेबसाईट पर डाल देगा।
- कोई नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति किसी भी दिन, किसी भी समय रद्द/ कैंसिल कर सकता है।
- प्राधानमंत्री का सचिव हरेक उम्मीदवार के अनुमोदन/स्वीकृति की संख्या की गिनती को प्रकाशित करेगा।
- यदि किसी उम्मीदवार को सभी दर्ज/रजिस्टर्ड मतदाताओं के 50 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं (केवल वे मतदाता ही नहीं जिन्होंने अपना अनुमोदन/स्वीकृति फाइल किया है बल्कि सभी दर्ज मतदाता) का अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाता है तो प्रधानमंत्री मौजूदा/वर्तमान राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) को हटा देंगे और उस उम्मीदवार को राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के रूप में नियुक्त कर देंगे।
- यदि किसी उम्मीदवार को 50 प्रतिशत से ज्यादा का अनुमोदन/स्वीकृति मिला है और इसे वर्तमान राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) से 2 प्रतिशत ज्यादा अनुमोदन/स्वीकृति मिल गया है तो प्रधानमंत्री सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति वाले इस व्यक्ति को उस पद के लिए नियुक्त कर देंगे।
- इस तरह, राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल यह सुनिश्चित कर देगा कि राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) काफी कम भ्रष्ट होंगे और किराये का पैसा नागरिकों को दिया करेंगे।
- राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) उन प्लॉटों का आवंटन करेंगे जिन्हें भारत के नागरिकों की संपत्ति घोषित किया गया है । वे ऐसा एक कानून बनाकर या राष्ट्रीय जूरी के निर्णय के माध्यम से करेंगे जो राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) को जमीन का आवंटन करने/ देने के लिए विशेष तौर से प्राधिकृत करेगा/यह काम सौंपेगा।
किराया की उगाही/किराया जमा करना
4. नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) – सरकारी अधिसूचना(आदेश) की एक धारा में उल्लेख है/लिखा है कि ‘ भारत नागरिक यह निर्णय करते हैं और यह घोषणा करते हैं कि आई आई एम ए का प्लॉट, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद का प्लॉट, सभी आई आई एम के प्लॉट, और जे एन यू के प्लॉट भारत के सभी नागरिकों का संयुक्त/ज्वाइन्ट और बराबर मालिकाना हक की संपत्ति होगी ।
ये प्लॉट राज्य अथवा भारत राज्य अथवा भारत संघ अथवा किसी भी निजी/ सरकारी निकाय/व्यक्ति की नहीं होगी बल्कि ये प्लॉट भारत के नागरिकों की संपत्ति होगी । साथ ही, किसी भी निजी/प्राइवेट कम्पनी अथवा ट्रस्ट के मालिकाना हक के अधीन न आने वाला सभी यू जी सी द्वारा वित्तपोषित/फंडेड विश्वविद्यालयों और कॉलेजों/ महाविद्यालयों के सभी प्लॉट भारत के नागरिकों की संपत्ति घोषित की जाती है। और केन्द्रीय सरकार और सरकारी निकायों के सभी प्लॉट भी एतद्द्वारा भारत के नागरिकों की संपत्ति घोषित की जाती है ।
5. एक अन्य खंड/कलम में लिखा है : निम्नलिखित मंत्रालयों/विभागों के सभी प्लॉट भी राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के तहत आएंगे:-
- पर्यटन मंत्रालय
- एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के मालिकाना हक वाले हवाईअड्डे और सभी भवन
- सभी आई आई एम, यू जी सी के पैसे से चलने वाले सभी कॉलेज और विश्वविधालय (विज्ञान और इंजिनियरिंग को छोड़कर)
- उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय
- सूचना और प्रसारण मंत्रालय
- सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्रालय
- ग्रामीण विकास मंत्रालय
- लघु उधोग और कृषि व ग्रामीण उद्योग मंत्रालय
- सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय
- कपड़ा/वस्त्र मंत्रालय
- पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय
- शहरी विकास और गरीबी उन्मूलन मंत्रालय
- युवा मामले और खेल मंत्रालय
- योजना आयोग
6. आई आई टी, आई आई एससी आदि के बारे में : एक अलग सरकारी आदेश, जिसकी मांग हम करते हैं उसमें उल्लेख/लिखा होगा:- सभी आई आई टी, एन आई टी और आई आई एससी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी आर डी ओ) के अन्तर्गत आएंगे और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी आर डी ओ) के निदेशक/डायरेक्टर इन कॉलजों के मुख्य अधिकारी होंगे और वे इन कॉलेजों मे दैनिक कार्यकलाप सुचारू रूप से चलाने के लिए उप प्रमुखों की नियुक्ति करेंगे। विज्ञान और इंजिनियरिंग पढ़ाने वाले कॉलज विज्ञान मंत्रालय के अधीन होंगे और ये राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के अधीन नहीं होंगे । हालॉंकि इन कॉलेजों के पास जो अतिरिक्त जमीनें हैं वो राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के तहत आएँगी ।
7. उपयोग में न आ रही जमीन के बारे में : राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) जमीन को उपयुक्त प्लॉटों के आकार में इस तरह बांटेगा जिस तरह वह इसे किराया प्राप्ति के लिए सबसे ज्यादा लाभप्रद समझता है। राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) हरेक प्लॉट के लिए बोली लगवाएगा। नीलामी के लिए शर्तें इस प्रकार होंगी:-
- लीज/पट्टा राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) द्वारा किए गए निर्णय के अनुसार 5, 10, 15, 20 या 25 वर्षों के लिए होगा। यह लीज/पट्टा कभी भी 25 वर्ष से अधिक के लिए नहीं होगा।
- बोली लगाने वाले मासिक/ महीने का किराया के लिए बोली लगाएंगे और बोली लगाने की अवधि/ का काल अधिकतम लीज अवधि से कम होगा। इसलिए यह बोली ( मासिक किराया, लीज के महीने) के रूप में होगा। एक व्यक्ति कई बोली लगा सकेगा। लीज की न्यूनतम समय-सीमा/अवधि 12 महीने होगी।
- बोली का वजन/प्रभाव होगा मासिक किराया / लॉग/log( लीज महीनों में) अर्थात किराया जितना ज्यादा होगा वजन/प्रभाव उतना ज्यादा होगा और लीज जितना लम्बा होगा वजन/प्रभाव उतना कम होगा।
- बोली/निविदा खुली होगी।
- राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) बोली के वजन के अनुसार प्लॉट देगा।
- राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) तीन महीने का किराया जमा के रूप में लेगा।
8. लीज/पट्टे के समय/अवधि के दौरान, राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) किराये में प्रत्येक तीन महीने में संशोधन/बदलाव करेगा प्लॉट के चारो ओर के एक वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र के जमीन के मूल्य/दाम में आने वाले प्रतिशत बदलाव के आधार पर और प्लॉट देने/जारी करने के दिन से और किराया दर में संशोधन किए जाने वाले दिन को ब्याज दर में आने वाले प्रतिशत बदलाव के आधार पर ।
9. लीज का समय/अवधि के बीत जाने के बाद राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) एक नई बोली लगवाएगा जिसमें पहले से ही लीज ले चुके लोगों/ लीज-धारकों को लाभ/वरीयता मिलगी।
10. लेकिन यदि मौजूदा लीज धारक बोली हार जाता है तो वह उस जमीन/प्लॉट के सामान बेच या हटा सकता है। लकिन उसे जमीन खाली करना ही होगा।
- उसका वजन/प्रभाव 1.25से 1.5बढ़ जाएगा जो उन वर्षों पर निर्भर करेगा जिसके दौरान उसने भुगतान किया है।
- नीलामी खत्म हो जाने के एक महीने के भीतर वह अपनी बोली बढ़ा सकता है।
- मौजूदा लीज-धारकों को 2 से 6 महीने का नया किराया मिलेगा जब से उसने प्लॉट खाली किया है।
11. यदि प्लॉट किसी ने लिया हुआ है और उसका उपयोग कर रहा है (उदाहरण – आई आई एम ए प्लॉट) तो राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) उस प्लॉट के चारो ओर एक वर्ग किलोमीटर के प्लॉट का पिछले तीन वर्षों के मध्य विचलन/मीन मूल्य( बाजार मूल्य * मुख्य ब्याज दर / 3) का हिसाब लगाकर प्लॉट की कीमत तय करेगा और अगले 10 वर्षों के लिए वार्षिक किराया तय करेगा। किराए में हर तीन साल में संशोधन/बदलाव किया जाएगा। दस वर्षों के बाद खंड/कलम 6 में दिए अनुसार नीलामी की जाएगी।
नागरिकों को किराया भेजना
12. राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) प्राप्त किराए का 34 प्रतिशत हिस्सा रक्षा मंत्रालय को देगा जो सेना को मजबूत बनाने, हथियार उपलब्ध कराने और सभी नागरिकों को हथियार चलाने की शिक्षा देने के काम के लिए होगा।
13. राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) पिछले वर्ष राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति दिए गए किराए के दूगने की अधिकतम सीमा की शर्त के साथ पिछले 15 वर्षों से उस राज्य में रह रहे अथवा उस राज्य में जन्में नागरिकों को प्रत्येक महीने जमा किए गए /वसूले गए किराए का 33 प्रतिशत वितरित करेगा/ बांटेगा।
14. राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) भारत के नागरिकों को प्रति माह जमा हुए किराए का 33 प्रतिशत हिस्सा वितरित करेगा।
15. 7 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए हिस्सा शून्य , 14 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए चौथाई ,18 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए आधा होगा और इससे उपर उम्र वालों को पूरा हिस्सा मिलेगा।
16. इस कानून के पास/ पारित हो जाने के एक साल के बाद हर व्यक्ति को किराया इस प्रकार मिलेगा-
- यह किराया 33 प्रतिशत बढ़ जाएगा यदि उसका कोई बच्चा न हो ।
- यह किराया 33 प्रतिशत बढ़ जाएगा यदि उसकी एक लड़की हो ।
- यह बराबर रहेगा यदि उसका एक बेटा अथवा (एक बेटी, एक बेटा) अथवा दो बेटी हो ।
- यह किराया 33 प्रतिशत कम हो जाएगा यदि उसे (दो बेटी, एक बेटा) अथवा (एक बेटी, एक बेटा) अथवा (दो बेटा) अथवा (तीन बेटी) से अधिक हो और इसमें से सबसे छोटा बच्चा कानून पास होने/लागू होने के एक वर्ष के बाद पैदा हुआ हो।
- किराया 66 प्रतिशत घट जाएगा यदि उसे ( तीन बेटी एक बेटा) अथवा (दो बेटी, दो बेटा) अथवा(एक बेटी, दो बेटा) अथवा (तीन बेटा) अथवा (चार बेटी) से अधिक हो और इसमें से सबसे छोटा बच्चा कानून पास होने/लागू होने के एक वर्ष के बाद पैदा हुआ हो।
17 60 वर्ष से उपर के पुरूषों और 55 वर्ष से उपर की महिलाओं को 33 प्रतिशत ज्यादा किराया मिलेगा और यह 75 साल से उपर के पुरूष एवं 70 साल से उपर की महिलाओं के लिए 66 प्रतिशत ज्यादा मिलेगा।
(5.4) खनिज रॉयल्टी(आमदनी) भेजना |
अभी के अनुसार, खनिज प्लॉट उन्हें नीलाम की जाती है जो अधिकतम रॉयल्टी देता है। यही प्रक्रिया/तरीका लागू रहेगा लेकिन बाद में बोली में सुधार के लिए बढ़ी हुई बोली प्राप्त करने के लिए उसे संशोधित किया जा सकता है लेकिन एक परिवर्तन/बदलाव जिसकी मांग और वायदा नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) समूह करता है वह यह है कि खनिज रॉयल्टी और कच्चे तेल की रॉयल्टी आम लोगों और सेना का सीधे दी जाए ।
(5.5) राज्य स्तर पर नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(आमदनी) (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट / प्रारूप |
पुलिस, न्यायालय, सेना,, कैदी, सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल, राज्य ट्रान्सपोर्ट के बस-अड्डों द्वारा प्रयोग में न लाए जाने वाले राज्य सरकार के प्लॉट और वे प्लॉट जिन्हें खास तौर से कानून से छूट प्राप्त न हो, उनसे किराया वसूला जाएगा। राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) किराया वसूल/जमा करेगा और उसमें से 34 प्रतिशत सेना को 33 प्रतिशत नागरिकों को देगा। जमीन चाहे राज्य या केन्द्र के अधीन हो, किराया एक ही तरह से बांटा जाएगा ।
(5.6) सार्वजनिक भूमि का किराया कितना है ? |
भारत सरकार, केन्द्र और राज्यों के पास काफी उंचे बाजार-मूल्य वाली हजारों प्लॉटें हैं। यहॉं एक छोटा उदाहरण प्रस्तुत है:-
प्लॉट का नाम | क्षेत्रफल | कीमत, प्रति वर्ग मीटर | प्लॉट का बाजार- मूल्य |
आई आई एम, अहमदाबाद | 100 एकड़ | 40,000 रूपया | 1400 करोड़ रूपया |
आई आई एम, लखनऊ | 200 एकड़ | 20,000 रूपया | 1600 करोड़ रूपया |
आई आई एम, लखनऊ(नोएडा) | 10 एकड़ | 50,000 रूपया | 200 करोड़ रूपया |
आई आई एम, कोलकाता | 135 एकड़ | 20,000 रूपया | 1000 करोड़ रूपया |
आई आई एम, इंदौर | 190 एकड़ | 15,000 रूपया | 500 करोड़ रूपया |
जे एन यू | 1000 एकड़ | 40,000 रूपया | 16000 करोड़ रूपया |
गुजरात विद्यापीठ | 25 एकड़ | 40,000 रूपया | 400 करोड़ रूपया |
गुजरात विश्वविद्यालय | 250 एकड़ | 35,000 रूपया | 3500 करोड़ रूपया |
कुल | 27,000 करोड़ रूपया |
इसलिए किराया क्या होगा यदि ये प्लॉट बिल्डरों को दिए जाते हैं। प्लॉट के बाजार मूल्य के 3 प्रतिशत पर इन 9 प्लॉटों का किराया = 27 हजार करोड * 3/100 = 810 करोड़ रूपए प्रति वर्ष = सात रूपए प्रति नागरिक/वर्ष । अब यह प्लॉट मुंबई एयरपोर्ट/हवाई अड्डा, अहमदाबाद हवाई अड्डा, बंगलौर हवाई अड्डा आदि जैसे प्रमुख प्लॉटों के मूल्यों की तुलना में कहीं नहीं ठहरता। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं –
प्लॉट का नाम | क्षेत्रफल | कीमत, प्रति वर्ग मीटर | अनुमानित बाजार मूल्य |
अहमदाबाद एयरपोर्ट | 1850 एकड़ | 40,000 रूपया | 29,600 करोड़ रूपया |
मुंबई एयरपोर्ट | 1100 एकड़ | 100,000 रूपया | 44,600 करोड़ रूपया |
दिल्ली एयरपोर्ट | 5000 एकड़ | 100,000 रूपया | 200,000 करोड़ रूपया |
बंगलौर एयरपोर्ट (नया) | 4050 एकड़ | 10,000 रूपया | 32,400 करोड़ रूपया |
बंगलौर एयरपोर्ट (पुराना) | 1000 एकड़ | 100,000 रूपया | 40,000 करोड़ रूपया |
कोलकाता एयरपोर्ट | 1500 एकड़ | 30,000 रूपया | 18,000 करोड़ रूपया |
चेन्नई एयरपोर्ट | 4800 एकड़ | 40,000 रूपया | 76,800 करोड़ रूपया |
कुल | 440,800 करोड़ रूपया |
(कृपया ध्यान दें कि उपर्युक्त जमीन की कीमतें 2010 के वास्तविक बाजार-मूल्य की तुलना में बहुत ही कम हैं जब यह दूसरा संस्करण/एडिशन लिखा जा रहा था।)
इसलिए किराया क्या होगा यदि यह प्लॉट बिल्डरों को दिया जाता है ? इन एयरपोर्ट प्लाटों का किराया प्लॉट के बाजार-मूल्य का 3 प्रतिशत की दर से = 440,800 करोड़ * 3/100 = 13,224 करोड़ प्रति वर्ष = 120 रूपया प्रति नागरिक प्रति वर्ष !!
सरकार के पास एक अनुमान के अनुसार 50,000 प्लॉट हैं। यदि किराया प्रत्येक प्लॉट से औसतन प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 20 पैसे जितना कम भी हो तो किराया 12000 रूपए प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष से ज्यादा हो जाता है। या तो हम आम लोगों को यह किराया मिलेगा अथवा जमीन की कीमतों में बहुत कमी आएगी । (वास्तव में जमीन की कीमत ही घटेगी) जिससे हम आम लोगों को अपनी कम आय पर घर खरीदना संभव होगा और अपना व्यवसाय शुरू करना संभव होगा।
(5.7) खनिज रॉयल्टी(आमदनी) कितनी है ? |
खनिज रॉयल्टी का अंदाज लगाना संभव है । लेकिन यह विक्रय मूल्य के उतार चढ़ाव के साथ-साथ बढ़ता-घटता रहता है। जून, 2008 के मूल्यों पर आधारित अनुमान प्रस्तुत है। अनुमान लगाने के लिए निम्नलिखित तरीका प्रयोग में लाया जाएगा जो उस कानून से निकला है जिसका मै प्रस्ताव कर रहा हूँ। मेरे द्वारा प्रस्तावित किए जा रहे इस कानून के अनुसार खनिज और तेल कुएं प्रतियोगी बोली के तरीके का उपयोग करके लीज पर दिए जाएंगे। इसलिए खदान- मालिक जो कीमत लगाएंगे वह न्यूनतम स्तर के होंगे और यह भारत में चल रहे श्रमिक मजदूरी तथा उपकरण की लागत पर निर्भर करेगा । अब इन कानूनों में मैं प्रस्ताव कर रहा हूँ कि सरकार खरीददारों से अन्तरराष्ट्रीय बाजार मूल्य के बराबर कीमत लेगी । दोनो का अंतर ही रॉयल्टी होगा जिसका 67 प्रतिशत नागरिकों को सीधे ही जाएगा और 33 प्रतिशत सेना को जाएगा। जून, 2008 के मूल्य के आधार पर कच्चे तेल की कीमत की रॉयल्टी के संबंध में मेरा अनुमान निम्नलिखित है-
कच्चा तेल
तेल का अंतरराष्ट्रीय मूल्य = 140 यू एस डॉलर प्रति बैरल
भारत में निष्कर्षण (Extraction) मूल्य = सभी प्रकार की लागतों सहित = 25 डॉलर प्रति बैरल
(जून, 2008 को तेल कम्पनियों के द्वारा ली जा रही कीमत 55 डॉलर प्रति बैरल थी और वे काफी लाभ कमा रही थीं जो अन्तरराष्ट्रीय बाजार से 150 डॉलर प्रति बैरल की दर से खरीदे जाने के कारण घाटे का सौदा बन गयी । भारतीय तेल कम्पनियां भारतीय तेल शोधक कारखानों (रिफायनरियों) से वर्ष 2000 के शुरूआती दिनों में 25 डॉलर प्रति बैरल कीमत ले रही थीं। इस तथ्य में यह भी बात जुड़ जाती है कि भारतीय तेल कम्पनियों में स्टॉफ की संख्या बहुत अधिक है और ये अपने कर्मचारियों को काफी ज्यादा वेतन देती हैं। उदाहरण के लिए, तेल और प्राकृतिक गैस (ओ एन जी सी) कम्पनी का क्लर्क वेतन लगभग 20,000 रूपए प्रति माह पाता है जिसमें सभी भत्ते और व्यय शामिल है जबकि निजी कंपनी का क्लर्क लगभग 8000 रूपए प्रतिमाह पाता है। इन खर्चों को कम किया जा सकता है।)
भारत में उत्पादन = 6,60,000 बैरल प्रति दिन
= 6,60,000 * 365 बैरल प्रति वर्ष
= 24,09,00,000 बैरल प्रति वर्ष
= 24 करोड़ बैरल प्रति वर्ष
जनसंख्या = 110 करोड़
भारत में प्रति व्यक्ति उत्पादन = 0.22 बैरल प्रति भारतीय प्रति वर्ष
प्रति बैरल लाभ = 115 यू एस डॉलर
कुल मुनाफा डॉलर में = 0.22 * 115 डॉलर प्रति भारतीय = 25 डॉलर प्रति भारतीय
डॉलर का मूल्य = 45 रुपया प्रति डॉलर
कुल मुनाफा रुपये में = 25*45=1125 रुपये प्रति वर्ष प्रति नागरिक
यदि कच्चे तेल की कीमत गिरकर 70 अमेरिकी डॉलर हो जाती है तो लाभ कम होकर 495 रुपया प्रति वर्ष प्रति नागरिक हो जाएगी।
कच्चा लोहा
उत्पादन = 123 मिलियन टन
= 12.3 करोड टन
= 0.11 टन प्रति भारतीय नागरिक
मूल्य = 150 डॉलर प्रति टन = 7600 रुपया प्रति टन
खुदाई का खर्चा = 300 रुपया प्रति टन
मुनाफा/लाभ प्रति टन = 7200 रूपया
मुनाफा/लाभ प्रति आम आदमी = 0.11 * 7200 रूपया = 730 रूपया प्रति वर्ष
दूसरे शब्दों में, यदि कच्चा तेल, तेल शोधक कारखानों (रिफाइनरी) को अंतरराष्ट्रीय मूल्य पर दिया जाता है और इसका लाभ प्रत्येक भारतीय को भेजा जाए तो प्रत्येक भारतीय हर वर्ष 1125 रूपया पाएगा । जब तेल की कीमत कम होगी तो इसमें भी कमी आएगी और तेल की कीमत बढ़ने पर यह पैसा ज्यादा मिलेगा। यह तो केवल कच्चे तेल की बात थी। कोयला, प्राकृतिक गैस, ग्रेनाइट, संगमरमर, कोटा पत्थर, तांबा, एल्युमुनियम, लौह अयस्क और पानी से मिलने वाली रॉयल्टी मिलाकर एक बहुत बड़ी राशि होगी । जब नागरिकों को यह पता चलेगा कि उन्हें खदान की रायल्टी मिल रही है तो वे खदान माफियाओं पर अंकुश लगाएंगे और इससे ईमानदार लोगों को खदान के व्यावसाय में आने का मौका मिलेगा और इस प्रकार रॉयल्टी कई गुना बढ़ जाएगी ।
मेरे आकलनों और अनुमानों के अनुसार, खदान रॉयल्टी प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति 4000- 6000 रूपए से ज्यादा बढ़ जाएगी ।
इसलिए खदान रॉयल्टी और जमीन का किराया मिला कर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 18 हजार रूपए हो जाएगा । इसमें से 33 प्रतिशत सेना को जाएगा। इस तरह नागरिकों को प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 12000 रूपए मिलेगा । यह पैसा किसी कर/टैक्स का नहीं होगा । यह पैसा उन प्लॉटों और खनिजो से आ रहा होगा जो हम नागरिकों के हैं। यह पैसा किसी कर से नही आ रहा है इसलिए “अमीरों को कर लगाओ और गरीबों को खिलाओ” जैसा कोई प्रस्ताव नहीं है । यह सीधा-सीधा उन खनिजों और प्लॉटों से संबंधित है जिसके मालिक हम नागरिक हैं ।
नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट या प्रारूप सभी सुखद परिवर्तनों की जननी है । हम केवल इसी परिवर्तन को लाने के लिए ही अन्य परिवर्तनों का प्रस्ताव कर रहे हैं। और यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि यह परिवर्तन आने के बाद स्थाई हो जाए। आज के हिसाब से जमीन का किराया और नए एम 3(M3) के सृजन, ये दो प्रमुख कारण है कि क्यों हम आम लोग गरीब हैं। ये मांग हम आम लोगों की गरीबी कम करेगा।
(5.8) जमीन का किराया वसूलने / जमा करने के प्रभाव |
एक बार यदि भूमि किराया अधिनियम लागू हो जाता है तो इन दो बातों में से एक बात होगी –
1. या तो हम आम लोगों को लगभग 500 या 1000 रूपया प्रति व्यक्ति हर महीने जमीन का किराया मिलेगा। अथवा
2. जमीन की कीमत घटेगी क्योंकि सार्वजनिक भूमि का किराया देना होगा और इसीलिए भूमि-संग्रह करना बहुत महंगा पडेगा ।
दूसरी बात के होने की ज्यादा संभावना है। अब यदि जमीन की कीमत गिरती है तो घरों की कीमत भी कम होगी जिससे हम आम लोगों का जीवन सुधरेगा। हम आम लोगों मे से कई लोग, जो झुग्गियों में रहते हैं वे शायद एक शयनकक्ष-हॉल-रसोई (वन – बी-एच-के) फ्लैटों में जा सकेंगे। और यदि जमीन की कीमत घटती है तो व्यवसायों की संख्या बढ़ेगी (क्योंकि जब रियल एस्टेट की लागत गिरती है तो कारीगरों के लिए व्यावसाय बढ़ाना आसान हो जाता है) और हम आम लोगों को ज्यादा रोजगार और वेतन मिलेगा। अधिक औधोगिकीकरण से खनिजों के मूल्य बढ़ेंगे और इसलिए खनिजों की रॉयल्टी भी बढ़ेगी ।
इसलिए किसी भी स्थिति में आई आई एम ए प्लॉट और आई आई एम /जे एन यू प्लॉटों व हजारों अन्य प्लॉटों और खदानों, जो हम आम लोगों का है , से किराए के प्रस्ताव से हम आम लोगों को बहुत भारी लाभ होगा। इसलिए जमीन किराया ओर खदान की रॉयल्टी के प्रस्तावों से आय बढ़ेगी और गरीबी कम होगी। गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों को जमीन और घर ज्यादा उपलब्ध होंगे। इस प्रकार इससे गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों की क्रयशक्ति/खरीदने की क्षमता बढेगी। क्रयशक्ति के बढ़ने से मांग बढ़ेगी और इस प्रकार उधोग धंधे बढ़ेंगे और इससे हमारी सेना भी मजबूत होगी।
(5.9) जमीन का किराया जमा ना करने / न वसूलने का (कु)प्रभाव – |
सार्वजनिक भूमि पर किराया जमा न करने का प्रभाव खुले अन्याय की तरह है । अमीरों द्वारा गरीबों का शोषण और आर्थिक असमानता अन्यायपूर्ण ढ़ंग से बढ़ेगा। उदाहरण के लिए, एयरपोर्टों पर विचार कीजिए। दिल्ली एयरपोर्ट पर विचार कीजिए । यह हर साल दो करोड़ यात्रियों को सेवा देता है। इसके पास किराया मूल्य 6000 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष है। अर्थात 6000 रूपया/2 =3000 रूपया प्रति यात्री।
एक उच्च वर्ग के आदमी के बारे में विचार कीजिए जो एक वर्ष में 20 बार दिल्ली एयरपोर्ट का उपयोग करता है। लेकिन 3000 रूपया प्रति उड़ान की दर से जमीन का किराया उससे न वसूलने के कारण उसकी अमीरी 6,00,000 रूपए बढ़ जाती है । और भारत का प्रत्येक आम आदमी को हर साल साठ रूपए की हानि होती है क्योंकि आम आदमी को दिल्ली एयरपोर्ट के प्लॉट ,जो कि उसका अपना है, का कोई किराया नहीं मिला । ऐसा करने से/केवल किराया न वसूलने के अंन्यायपूर्ण साधन से दौलत/आय का अंतर बढ़ जाता है।
(5.10) राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एम एल आर ओ) को हटाने / वापस बुलाने का तरीका |
राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) नाम के अधिकारी के द्वारा किराया वसूलना और लोगों को भेजने का काम होना है। किराए का निर्धारण बाजार मूल्य और ब्याज की दरों के आधार पर मानक गणना द्वारा किया जाएगा। इसलिए इसमें राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के पास कोई विवेकाधीन शक्ति (एक अधिकार) नहीं है । लेकिन उसके पास उप-प्लॉट/प्लाट के छोटे टूकडे़ बनाने के तरीके निर्धारित करने का विवेकाधिकार है ।
इसलिए राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) को सारा किराया अपनी जेब में गटक जाने से कैसे रोका जाएगा। देखिए दूसरी `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) मांग और वायदा में एक खंड/कलम है जो हम आम आदमी को मौका देगा कि हम एन एल आर ओ को हटा/ बदल सकें। यह बदलने का तरीका वह मुख्य बात है जो हम आम लोगों को एक ऐसा राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) ढ़ूंढने में सक्षम बनाएगा जो किराया आम लोगों तक भेजने में विश्वास रखता हो।
(5.11) `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी(रोयल्टी)` (एम आर सी एम) कानून का प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट |
# | निम्नलिखित के लिए प्रणाली/पद्धति | पद्धति/निर्देश |
सैक्शन 1 : राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) उम्मीदवार के लिए नागरिकों के अनुमोदन/स्वीकृति दर्ज करना | ||
1.1 | – |
नागरिक शब्द का मतलब/अर्थ रजिस्टर्ड वोटर/मतदाता है।
सरकारी अधिसूचना(आदेश) तब प्रभावी माना जाएगा जब 37 करोड़ नागरिकों ने इसमें अपना `हाँ` दर्ज करवा दिया हो। |
1.2 | प्रधानमंत्री | प्रधानमंत्री राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के किसी अधिकारी को नियुक्त करेंगे। |
1.3 |
जिला
कलक्टर |
यदि कोई नागरिक राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) बनाना चाहे, तो जिला कलक्टर के सामने वह खुद जा सकता है या एफिडेविट प्रस्तुत कर सकता है | जिला कलक्टर को आदेश दिया जाता है कि वह राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के पद के लिए उसकी उम्मीदवारी स्वीकार करे लेकिन इसके लिए वह सांसदों के चुनाव के लिए जमा होने वाली धनराशि के बराबर धनराशि शुल्क/फीस के रूप में ले। जिला कलक्टर उसे एक सीरियल नम्बर जारी करेगा/देगा। |
1.4 | जिला कलक्टर | जिला कलक्टर इस काम को किसी क्लासवन अधिकारी को दे सकता है। |
1.5 | तलाटी | कोई नागरिक तलाटी के दफ्तर स्वयं आकर और 3 रूपए की फीस देकर ज्यादा से ज्यादा पांच उम्मीदवार का अनुमोदन/स्वीकृति राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के पद के लिए कर सकता है। तलाटी उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्प्युटर में दर्ज करेगा और उसे एक रसीद जारी करेगा/देगा जिसमें वोटर आई डी/मतदाता पहचान-पत्र संख्या, दिनांक/समय तथा जिसका स्वीकृति नागरिक ने किया है, उसके नाम का उल्लेख होगा। |
1.6 | तलाटी | तलाटी उस नागरिक की पसंदों को नागरिक के वोटर आई डी/मतदाता पहचान-पत्र संख्या और उसकी पसंद सहित मंत्रिमंडल सचिव द्वारा किए निर्णय के अनुसार, सरकारी वेबसाईट पर डाल देगा। |
1.7 | तलाटी | यदि कोई नागरिक अपनी पसंद रद्द करने के लिए आए तो तलाटी बिना कोई फीस लिए उसके एक या अधिक अनुमोदन/स्वीकृति को बदल सकता है। |
1.8 | मंत्रिमंडल सचिव | प्रत्येक सोमवार को मंत्रिमंडल सचिव नागरिकों के अनुमोदन/स्वीकृति को प्रकाशित करे। |
. | सैक्शन 2: राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) को बदला जाना | |
2.1 | प्रधानमंत्री | नागरिक शब्द का अर्थ भारत का रजिस्टर्ड वोटर/दर्ज मतदाता है। |
2.2 | यदि उम्मीदवार को किसी जिले में सभी दर्ज मतदाताओं( सभी न कि केवल उनका जिन्होंने अपना अनुमोदन/स्वीकृति फाइल किया है/जमा करवाया है) के 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का स्वीकृति मिल जाता है, तब प्रधानमंत्री वर्तमान राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) को निकाले और नागरिको के द्वारा पसंद की गयी नए राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) को नियुक्त कर सकता है । | |
2.3 | यदि पद पर बैठा व्यक्ति नागरिकों के अनुमोदन/स्वीकृति से आया है, और सबसे ज्यादा स्वीकृति प्राप्त व्यक्ति को मौजूदा पदधारी से 2 प्रतिशत अधिक स्वीकृति मिला हो, केवल तभी प्रधानमंत्री उसे सर्वाधिक स्वीकृति वाले व्यक्ति को उस पद पर नियुक्त कर सकता है। | |
2.4 | यदि व्यक्ति को मिला अनुमोदन/स्वीकृति 33 प्रतिशत से कम है तो प्रधान मंत्री उसे अपने द्वारा नियुक्त किए जा रहे व्यक्ति को बदल सकते हैं या प्रधानमंत्री नहीं भी बदल सकते (ऐसा करने की जरूरत नहीं)। लेकिन जब तक अनुमोदन/स्वीकृति 33 प्रतिशत से अधिक है तब तक प्रधान मंत्री को उसे अपने द्वारा नियुक्त किए जा रहे व्यक्ति से बदलने की जरूरत नहीं । प्रधानमंत्री के विवेक से किया गया निर्णय अंतिम होगा । | |
. | सैक्शन 3: भारत सरकार के अधीन प्लॉटों का स्वामित्व/मालिकाना हक | |
उच्चतम न्यालय के न्यायधीश(सुप्रीम-कोर्ट के जज), हाई-कोर्ट के जज
, प्रधानमंत्री और नागरिक |
भारत के नागरिकगण एतद्द्वारा यह निर्णय और घोषणा करते हैं कि आई आई एम ए का प्लॉट, सभी आई आई एम के प्लॉट, और जे एन यू के प्लॉट भारत के सभी नागरिकों का संयुक्त/ज्वाइन्ट और बराबर मालिकाना हक की संपत्ति होगी। ये प्लॉट राज्य अथवा भारत राज्य अथवा भारत संघ अथवा किसी भी निजी/ सरकारी निकाय/व्यक्ति की नहीं होगी बल्कि ये प्लॉट भारत के नागरिकों की संपत्ति होगी । साथ ही, किसी भी निजी/प्राइवेट कम्पनी अथवा ट्रस्ट के मालिकाना हक के अधीन न आने वाला सभी यू जी सी वित्तपोषित/फंडेड विश्वविद्यालयों और कॉलेजों/ महाविद्यालयों के सभी प्लॉट भारत के नागरिकों की संपत्ति घोषित की जाती है। और केन्द्रीय सरकार और सरकारी निकायों के सभी प्लॉट भी एतद्द्वारा भारत के नागरिकोंकी संपत्ति घोषित की जाती है।
प्रधानमंत्री और सभी उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालयों के न्यायधीशों सहित भारत के सभी न्यायाधीश और अधिकरियों से एतद्द्वारा यह अनुरोध किया जाता है कि वे ऐसी किसी दलील को न सुनें/ न स्वीकार करें जो भारत के नागरिकों के इस निर्णय और अधिमत/फैसला (वर्डिक्ट) का विरोध करती हो। |
|
सुप्रीम-कोर्ट के सभी जज, हाई-कोर्ट
के सभी जज, प्रधानमंत्री और सभी नागरिक |
राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) का उन भूमि-प्लॉटों पर कोई न्यायिक-अधिकार नहीं होगा जिसका मालिकाना हक निजी व्यक्तियों अथवा कम्पनियों अथवा ट्रस्टों के हाथ हो अथवा जिन भूमि-प्लॉटों का मालिकाना हक/स्वामित्व राज्य सरकार अथवा नगरों अथवा जिलों के पास हो । इसका उन प्लॉटों पर कोई मालिकाना हक नहीं होगा जिनका उपयोग/प्रयोग सेना, न्यायालय, कैदी, रेलवे, बस अड्डों, XII कक्षा तक के सरकारी स्कूलों और कर-वसूली अधिकारियों द्वारा किया जा रहा हो। |
|
3.3 | प्रधानमंत्री और सारे अधिकारी | सभी आई आई टी, एन आई टी और आई.आई.एस.सी रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी आर डी ओ) के अन्तर्गत आएंगे और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डी आर डी ओ) के निदेशक/डायरेक्टर इन कॉलजों के मुख्य अधिकारी होंगे और वे इन कॉलेजों मे दैनिक कार्यकलाप सुचारू रूप से चलाने के लिए उप प्रमुखों की नियुक्ति करेंगे। विज्ञान और इंजिनियरिंग पढ़ाने वाले कॉलज विज्ञान मंत्रालय के अधीन होंगे और ये राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के अधीन नहीं होंगे । |
. | सैक्शन 4: भारत सरकार के स्वामित्व / मालिकी वाले प्लॉटों के किरायों की वसूली | |
4.1 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) |
उपयोग में न आ रही जमीन के लिए, राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) जमीन को उपयुक्त प्लॉटों के आकार में इस तरह बांटेगा जिस तरह वह इसे किराया प्राप्ति के लिए सबसे ज्यादा लाभप्रद समझता है। राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) हरेक प्लॉट के लिए बोली लगवाएगा। नीलामी के लिए शर्तें इस प्रकार होंगी:-
|
4.2 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | लीज/पट्टे के समय/अवधि के दौरान, राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) प्रत्येक तीन वर्ष किराये में बदलाव करेगा प्लॉट के चारो ओर के एक वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र के जमीन के मूल्य/दाम में आने वाले प्रतिशत बदलाव के आधार पर और प्लॉट देने के दिन से और किराया दर में संशोधन किए जाने वाले दिन को ब्याज दर में आने वाले प्रतिशत बदलाव के आधार पर । |
4.3 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) |
लीज का समय के बीत जाने के बाद राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) एक नई बोली लगवाएगा जिसमें पहले से ही लीज ले चुके लोगों को लाभ/वरियता मिलगी।
|
4.4 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | लेकिन यदि मौजूदा लीज –धारक बोली हार जाता है तो वह उस जमीन/प्लॉट के सामान बेच या हटा सकता है। लकिन उसे जमीन खाली करना ही होगा। |
4.5 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) |
यदि प्लॉट किसी ने लिया हुआ है और उसका उपयोग कर रहा है तो उसे (entity को), 25 प्रतिशत ज्यादा मिलेगा(25 प्रतिशत * लीज, महीनों में /300), अधिकतम 50 प्रतिशत, बोली लगाने में बोनस अर्थात
उसकी बोली 1.25 से 1.5 गुना बढ़ जाएगा, लेकिन इससे ज्यादा नहीं। |
4.6 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | यदि वर्तमान में प्लॉट किसी ने लिया हुआ है और उसका उपयोग कर रहा है तो राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) उस प्लॉट के चारों ओर एक वर्ग किलोमीटर के प्लॉट का पिछले 3 वर्षों की बिक्री का मध्य विचलन/मीन मूल्य (बाजार मूल्य * मुख्य ब्याज दर/3) का हिसाब लगाकर प्लॉट की कीमत तय करेगे उसके अनुसार अगले 10 वर्षों के लिए वार्षिक किराया तय करेगा। किराए में हर तीन साल में बदलाव किया जाएगा। 10 वर्षों के बाद, इस धारा के खंड 1 से लेकर आगे उल्लिखित नियम लागू होंगे। |
4.7 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) प्राप्त किराए का 34 प्रतिशत हिस्सा रक्षा मंत्रालय को देगा जो सेना को मजबूत बनाने, हथियार उपलब्ध कराने और सभी नागरिकों को हथियार चलाने की शिक्षा देन के काम के लिए होगा। |
4.8 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) पिछले वर्ष राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति दिए गए किराए के दूगने की अधिकतम सीमा की शर्त के साथ पिछले 10 वर्षों से उस राज्य में रह रहे नागरिकों को प्रत्येक महीने वसूले गए किराए का 33 प्रतिशत वितरित करेगा/ बांटेगा। राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) प्रति माह वसूला गया शेष किराया भारत के नागरिकों को भेजेगा। |
4.9 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) |
इस कानून के पास हो जाने के एक साल के बाद किसी व्यक्ति को किराया इस प्रकार मिलेगा-
|
4.10 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | 60 वर्ष से उपर के पुरूषों और 55 वर्ष से उपर की महिलाओं को 33 प्रतिशत ज्यादा किराया मिलेगा और यह 75 साल से उपर के पुरूष एवं 70 साल से उपर की महिलाओं के लिए 66 प्रतिशत ज्यादा मिलेगा। |
4.11 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | 7 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए कोई किराया नहीं दिया जाएगा, 7 से 14 वर्ष के बीच की उम्र वालों के लिए सामान्य का चौथाई और 14 से 18 वर्ष के बीच के उम्रवालों के लिए सामान्य रूप से भुगतान किए गए किराए का दो तिहाई होगा। |
. | सैक्शन 5: खनिज रॉयल्टी(आमदनी) का कलेक्शन/ जमा करना | |
5.1 | सभी विभागों के सचिव | विभागों के वे सभी सचिव जिनके पास खादानों अथवा कच्चे तेल के कुओं का प्रभार है या जो खादानों अथवा कच्चे तेल के कुओं से रॉयल्टी जमा कर रहे हैं, उन्हें एकत्र किए गए/ वसूल किया गया रॉयल्टी राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के पास भेजने का आदेश दिया जाता है। |
5.2 | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) | राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) रॉयल्टी को सेना, राज्य में रहने वाले नागरिकों, भारत के नागरिकों के बीच उसी अनुपात में वितरित करेगा जिस अनुपात में जमीन के किराए के वितरण से संबंधित अध्यादेश/सरकारी आदेश में जमीन किराया बांटने के संबंध में उल्लेख है। |
. | सैक्शन 6: जनता की आवाज़ | |
6.1 | जिला कलेक्टर | यदि कोई नागरिक इस कानून में कोई बदलाव चाहता है तो वह जिलाधिकारी/डी सी के कार्यालय में जाकर एक एफिडेविट जमा करा सकता है और डी सी या उसका क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रूपए प्रति पेज का शुल्क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा। |
6.2 |
तलाटी (या
पटवारी) |
यदित कोई नागरिक इस कानून या इसकी किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के खंड/कलम में प्रस्तुत किसी एफिडेविट पर हां – नहीं दर्ज कराना चाहे तो वह अपने वोटर आई कार्ड के साथ तलाटी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देगा। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उसे एक रसीद/पावती देगा। यह हां – नहीं प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाला जाएगा। |
(5.12) कृपया सेना और नागरिक के लिए खनिज रायलटी (एम.आर.सी.एम) कानून, जिसका प्रस्ताव मैंने किया है, उसके अंतिम दो धाराओं / खंड पर ध्यान दो |
कृपया उपर लिखित प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट के अंतिम दो खंड/कलम पर ध्यान दीजिए । ये दो खंड/कलम जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) के अलावा कुछ नहीं है । मेरे प्रत्येक क़ानून-ड्राफ्ट में दो पंक्तियों को दोहराया गया है। यह दोहराव क्यों है? सांकेतिक मूल्यों को एक ओर छोड़िए, इस दोहराव का राजनैतिक महत्व भी है। यह हो सकता है कि एक `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी `(एम आर सी एम) कार्यकर्ता को सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) विरोधी बुद्धिजीवियों से लड़ाई लड़नी पड़े ।
तब `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) कार्यकर्ता उसे इस कानून का वैसा क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्ध कराने की चुनौती दे सकता है जो वह चाहता है और तब उनसे 6.1 और 6.2 की लाइने जोड़ने को कह सकता है। यदि विरोधी पक्ष अंतिम दो लाइनों को जोड़े जाने का विरोध करता है तो उसपर आम आदमी का विरोधी होने का आरोप लगाया जा सकता है। और यदि वह इन दो पंक्तियों के जोड़े जाने को स्वीकार करता है तब परिणामस्वरूप उसका प्रस्तावित कानून इस जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली को लागू करेगा जिसका उपयोग करके ` नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी `(एम आर सी एम) कानून जनता की हां का उपयोग करके लाया जा सकता है।
दो लाइनों का यह जोड़ दर्शाता है कि जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली के लिए मांग केवल कोई दोहराई गयी सकारात्मक संकल्पना ही नहीं है बल्कि जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) एक ऐसा कानून है जिसे किसी भी अन्य कानून में जोड़ा जा सकता है और यदि एक बार यह कानून जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) कानून के साथ जोड़कर पारित हो जाए तो इन दोनो कलमों को उन सभी 200 कानूनों को लाने/लागू करने में उपयोग में लाया जा सकता है जिसका प्रस्ताव मैने किया है।
जनता की आवाज स्वयं पैदा करने वाला (सेल्फ जरमिनेटिंग) प्रस्ताव है अर्थात यदि सभी कानून गलत ही हैं, लेकिन एक कानून के साथ जनता की आवाज (पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली का दो खंड/कलम भी है तो सभी अच्छे कानूनों को लागू किया जा सकता है।और यह दो पंक्तियो का जोड़ा जाना किसी भी अलोकतांत्रिक कानून को बाहर का रास्ता दिखलाने के लिए पर्याप्त है । क्योंकि यदि किसी अलोकतांत्रिक कानून में ये दो पंक्तियां शामिल हैं तो इसे कुछ ही दिनों या कुछ ही सप्ताह के में नागरिकों द्वारा नकार दिया जाएगा।
(5.13) 110 करोड़ नागरिकों को भुगतान भेजने में आनेवाली लागत |
जमीन का किराया और खदान की रॉयल्टी 110 करोड़ आम लोगों तक भेजना कितना आसान/कठिन है? इस काम को यूनिवर्सल बैंकिंग प्रणाली (जिसे विस्तार से बाद में बताया जाएगा) का उपयोग करके किया जा सकता है जिसमें प्रत्येक नागरिक के पास केवल और केवल एक ही नागरिक एकाउन्ट, भारतीय स्टेट बैंक ( अथवा किसी सरकारी बैंक या पोस्ट-आफिस) की उसकी अपनी पसंद की शाखा में होगा। राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) द्वारा भेजी गई राशि नागरिक के खाते में जमा की जा सकती है और इससे रकम सप्ताह में ज्यादा से ज्यादा एक बार सौ रूपए के गुणक के रूप में अधिकतम 1000 रूपया प्रति माह निशुल्क निकाला जा सकता है ।
खाता धारक को फोटो वाली पासबुक और हस्ताक्षरित और अंगुठा लगा चेक लाना होगा जिसे बैंक में कैशियर और कैमरे के सामने प्रस्तुत करना होगा। इस अत्यन्त प्रतिबंधित प्रक्रिया से कोई कैशियर प्रति घंटे 30 भुगतान अथवा अपने आठ घंटे की ड्यूटी के दौरान 200 लोगों को और एक महीने में 5000 लोगों को भुगतान कर सकता है। इस तरह, 110 करोड़ नागरिकों को प्रति माह एक बार भुगतान करने के लिए भारतीय स्टेट बैंक को 110 करोड़/ 5000 = लगभग 220,000 कैशियर की जरूरत पड़ेगी ।
साथ ही, जब तक कि कोई बच्चा 14 वर्ष का नहीं हो जाता तब तक उसका भुगतान उसके माता-पिता के खाते में जाएगा और इसलिए क्लर्कों की जरूरी/अपेक्षित संख्या लगभग 30 प्रतिशत घटकर अब केवल 160,000 क्लर्क ही रह जाएगी। दूसरे शब्दों में, भारत भर में लगभग 160,000 कैशियरों, लगभग 10000 निरीक्षकों और 10000 अन्य स्टॉफ को काम पर लगाकर प्रतिमाह 110 करोड़ भुगतान भेजना संभव है। और क्योंकि ए टी एम का प्रसार काफी हो रहा है (ए टी एम की संख्या लगातार बढ़ रही है) इसलिए इस संख्या में भी कमी लाई जा सकती है। और प्रतिमाह नकद भुगतान की संख्या बढ़ाई जा सकती है।
( ढोंगी रूप बनाकर) धोखाधड़ी करने वालों की संख्या में कमी लाने के लिए लोग किसी मुहल्ले में कम से कम 10 व्यक्ति और ज्यादा से ज्यादा 20 व्यक्तियों का एक दल बना सकते हैं। जिसे “आपसी गवाह समूह” का नाम दिया जा सकता है। यदि कोई व्यक्ति 10 के समूह का सदस्य है तो उसपर इस बात का प्रतिबंध होगा कि जब वह पैसा निकालने जाए तो उस समूह में से कम से कम 5 लोग उसके साथ अवश्य जाएं । आम तौर पर सभी 10 लोग एक ही दिन और एक ही समय पैसा निकालने जाएंगे। यदि कोई व्यक्ति ऐसे समूह का सदस्य है तो उस समूह में से सभी को एक ही साथ पैसा मिल जाएगा। और किन्हीं 5 लोगों के अंगुठे का निशान भुगतान रसीद पर ले लिया जाएगा।
एक तर्क/दलील जो `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) के विरूद्ध मुझे दी जाती है वह है 200,000 क्लर्कों के नेटवर्क का संचालन करना असंभव होगा और इसलिए क्यों न इस पैसे को शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर खर्च किया जाए। देखिए 5 से 17 आयुवर्ग के 25 करोड़ बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रति 100 छात्र कम से कम एक शिक्षक होगा । स्कूल में प्रति छात्र कम से कम एक वर्ग-मीटर क्षेत्र की जरूरत होगी । अर्थात 25 करोड़ वर्ग-मीटर क्षेत्र। अस्पतालों में 100 करोड़ नागरिको को सेवा प्रदान करने के लिए हम प्रति 2000 नागरिकों पर कम से कम एक डॉक्टर की जरूरत होगी अर्थात 500,000 डॉक्टर ओर लगभग 10,00,000 नर्स ।
इसके अलावा हमें अस्पताल के लिए हजारों भवनों की जरूरत पड़ेगी । दूसरे शब्दों में 25 करोड़ छात्रों को शिक्षा देने और 100 करोड़ नागरिकों को स्वास्थ्य सेवा देने के लिए 100 करोड़ किराया भुगतान भेजने के लिए काम करने वाले स्टाफ से 20 से 100 गुना ज्यादा स्टाफ की जरूरत होगी । इसलिए शिक्षा स्वास्थ्य आदि की बात मानने के बाद भी मै क्लर्कों की संख्या के आधार पर किराया भेजने की योजना को रद्द करने की जरूरत नहीं समझता। प्रत्येक महीने 100 करोड़ भुगतान भेजने के लिए आवश्यक क्लर्कों की संख्या 200,000 से अधिक नहीं है और यह दूसरी वैकल्पिक योजनाओं में लगने वाले स्टाफ से बहुत ही कम है।
(5.14) क्या इससे सरकारी आय कम नहीं होगी ? नहीं। |
यदि खनिज की सारी रॉयल्टी नागरिकों को जाती है तो सरकार को पैसे की कमी नहीं पड़ेगी। सबसे पहले मेरे प्रस्ताव के अनुसार खनिज रॉयल्टी का 33 प्रतिशत हिस्सा सरकार (सेना) को ही जाएगा जिसे प्रत्येक आम नागरिक पर, और खनिज रॉयल्टी और जमीन किराया से उसकी आय पर 33 प्रतिशत आयकर के रूप में देखा जा सकता है। अब यह 33 प्रतिशत हिस्सा तब बढ़ जाएगा जब नागरिकों को 67 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। कैसे?
आज की खनिज रॉयल्टी पर विचार कीजिए। आज एक ग्रेनाइट ब्लॉक जिसका मूल्य बाजार में 100 रूपए है और जिसपर खनन और परिवहन/ढ़ुलाई की लागत 10 रूपए से कम है] उसपर सरकार 5 रूपए या उससे भी कम रॉयल्टी प्राप्त करती है। ये बोलियां इतनी कम क्यों हैं? क्योंकि स्थानीय खनन ठेकेदार यह सुनिश्चित करने के लिए अपराधियों को भाड़े पर लेते हैं कि ज्यादा खदान मालिक बोली जमा कराने के लिए कलेक्टर के कार्यालय में ना आ पाए और बोली ना लगा पाए । लकिन ये अपराधी अपना काम करने में इसलिए सफल हो जाते हैं कि उन्हें विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकीलों का सहयोग प्राप्त होता है ।
दूसरे शब्दों में, आज अपराधियों के उपयोग से, विधायकों, सांसदों, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकील ये सुनिश्चित करते हैं कि उस माने गए (deemed) रॉयल्टी में से अधिकतर हिस्सा उनके हाथों मे आता है उन खदान ठेकेदारों और अपराधियों के जरिए, जिनपर उनका वरदहस्त/हाथ होता है । आज अब हम कार्यकर्ताओं को आम लोगों को यह बताना ही पड़ेगा कि आम लोगों को इन मत्रियों भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों और जजों के सगे-संबंधी वकीलों के खिलाफ लडाई लड़नी होगी । तब दो प्रश्न उठते हैं –
i. एक आम आदमी कैसे लडाई लड़ सकता है?
ii. क्यों एक आम आदमी को अपना जीवन खतरे में डालना चाहिए या अपना समय बरबाद करना चाहिए ?
`नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम)-रिकॉल(भ्रष्ट को हटाने का अधिकार) का नाम इन दोनों मुख्य प्रश्नों का उत्तर देता है । `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी `(एम आर सी एम) दूसरे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देता है कि यदि खनिज की रॉयल्टी नागरिकों को मिल रही हो तो नागरिकों के पास यह सुनिश्चित करने का पर्याप्त कारण है कि वे अपराधी जो खदान के अच्छे ठेकेदार को रोकते हैं उन्हें जान से मार दिया जान चाहिए या बन्दी बना लेना चाहिए ।
और रिकॉल(भ्रष्ट तो हटाने का अधिकार) पहले प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देता है: पुलिस वालों, जजों, मुख्यमंत्रियों , आदि पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल का उपयोग करके नागरिक यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे पुलिस प्रमुखों, जजों, मंत्रियों, जो अपराधियों को बढ़ावा देते हैं, उन्हें, जैसा उचित हो, उन व्यक्तियों से बदला जाए जो आम लोगों का भला चाहते हैं । इसलिए एम आर सी एम खनिज की रॉयल्टी कई गुना बढ़ा देगा और इससे बह रॉयल्टी भी बढ़ेगी जो सेना को जाती है। इसलिए खनिजों से सरकार की आय का कुल योग इस दूसरे प्रस्तावित सरकारी आदेश से बढ़ेगा ही घटेगा नहीं।
इसी प्रकार, सरकारी प्लॉटों के मामले पर विचार कीजिए । आज प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अनेक सरकारी प्लॉटों को बाजार मूल्य के आंशिक कीमत पर दे देते हैं । प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल ( मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री को बदलने की प्रक्रिया) एक ऐसा साधन उपलब्ध कराता है जिससे नागरिक इसे रोक सकते हैं और एम आर सी एम अर्थात आम लोगों तथा सेना को जमीन का किराया देना नागरिकों को वह कारण उपलब्ध कराता है कि वे इसे रोकें ।
यदि एक मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री जमीन को किराए के लिए बाजार के मूल्य से कम पर दे देता है, तब नागरिक हानि/घाटे का अनुमान करेंगे और जब यह घाटा उनके संयम की सीमा पार कर जाएगा तो वे उसे (मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री) बदलने के लिए 3 रूपए खर्च करेंगे। और इससे भी बेहतर बात कि बदले जाने और उसके बाद के दण्ड का डर मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री पर(घूस के बदले जमीन कम किराए पर देने पर) अंकुश लगाएगा । इसलिए कुल किराया बढ़ेगा और इस तरह किराए का तिहाई हिस्सा जो सरकार(सेना) को जाएगा, वह भी बढ़ेगा।
इसलिए `नागरिक और सेना के लिए रोयल्टी (आमदनी)`(एम आर सी एम) प्रस्ताव खनिजों और भूमि किराया से सरकार की कुल आय बढ़ाएगा।
इससे आम लोगों की आय भी बढ़ेगी। तब किसको हानि होगी ? अपराधी और ठेकेदार को कम ही हानि होगी । असली घाटा, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, मत्रियों, मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री, उच्चवर्गीय लोग जो बड़े खदानों के मालिक हैं, जजों के सगे-संबंधी वकीलों आदि को होगी।
और वे लोग जो एम आर सी एम-रिकाल प्रस्तावों का विरोध करते हैं वे केवल अपराधियों, खनिज-अयस्क ठेकेदारों, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों, जजों के सगे-संबंधी वकीलों, उच्चवर्गीय लोग जो बड़े खदानों के मालिक हैं, को ही लाभ पहुंचाएंगे किसी और को नहीं। कई बुद्धिजीवी इनसे वेतन लेते हैं और इसलिए उनके हितों का ध्यान रखते हुए एम.आर.सी.एम-रिकाल का जोरदार विरोध करते हैं ।
(5.15) पश्चिम में कोई ऐसा कानून नहीं है तो हमें इसकी जरूरत क्यों है? |
मैं उन प्रक्रियाओं के लिए अभियान चलाता रहता हूँ जिससे हम आम लोग प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और जजों को हटा सकते हैं । सभी प्रमुख बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और यह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि यह असंवैधानिक है । इसमें असफल होने के बाद वे कहते हैं – पश्चिम के देशों में आम लोगों को रॉयल्टी देने की यह प्रक्रिया नहीं है और इसलिए हम लोगों के यहां यह प्रक्रिया क्यों होनी चाहिए ?
देखिए, अमेरिका में 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक आयकर है। और इसका उल्लंघन बहुत कम होता है। और कुछेक लोगों को ही इससे छूट प्राप्त है । अमेरिका में जमीन पर भी लगभग एक 1 प्रतिशत संपत्ति-कर है । और अमेरिका में मृत्यु पर 45 प्रतिशत विरासत (इनहैरिटैंस) कर है । इन करों का उपयोग कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया जाता है। और इसका लाभ आम लोगों तक पहूंच ही जाता है। जैसे जूरी प्रणाली से भ्रष्टाचार कम हुआ है। भारतीय बुद्धिजीवियों ने सम्पत्ति पर ,उच्च आयकर का विरोध किया है और वे उत्तराधिकार-कर के बिलकुल खिलाफ हैं और इस तरह कल्याणकार्य के लिए आबंटित धन/फंड न के बराबर है ।
और भारतीय बुद्धिजीवियों ने जूरी प्रणाली को भी वर्ष 1956 में मार डाला/ खत्म कर दिया इसलिए भ्रष्टाचार बेलगाम हो गया और फंड हड़पे जाने लगे। मैने 30 प्रतिशत आयकर, 2 प्रतिशत सम्पत्ति-कर और 35 प्रतिशत विरासत-कर का प्रस्ताव किया है ताकि सेना से जुड़ी औद्योगिक इकाइयों/कॉम्प्लेक्सों में इंजिनियरिंग शिक्षा और हथियार के निर्माण के लिए आवश्यक सामान्य शिक्षा में सुधार आ सके। और मैने भ्रष्टाचार कम करने के लिए जूरी प्रणाली का भी प्रस्ताव किया है ताकि मिलने वाली सेवाओं में सुधार आए और गरीबी कम हो। लेकिन गरीबी कम करने और गरीबी/भूखमरी से होनेवाली मौतों को कम करने के इस तरीके में वर्षों लगेंगे जबकि हम आम लोगों को खनिज रॉयल्टियां सीधे देने से गरीबी कम करने और गरीबी/ भूखमरी से मौत मात्र चार महीने के भीतर कम किया जाना संभव है।
(5.16) `नागरिक और सेना के लिए रोयल्टी (आमदनी)`(एम.आर.सी.एम) क़ानून-ड्राफ्ट और मानवाधिकार |
भारत में प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ लोगों की मौत हो जाती है । देखिए, मरना तो एक स्वभाविक प्रक्रिया है। लेकिन उन मरने वालों के पास प्रति महीने 100 रूपए का अधिक भोजन और दवाएं होती तो पिछले साल मरने वाले एक करोड़ लोगों में से कम से कम 5-20 लाख लोग 2-10 वर्ष ज्यादा जी सकते थे। भारत में पिछले वर्ष जन्में एक हजार बच्चों में से लगभग 55 की मौत हो गई जबकि यह संख्या चीन में 23 और क्यूबा में 5 थी । प्रति हजार में से 55 के हिसाब से वर्ष 2007 में यह संख्या 11 लाख हो गई। इसलिए भारत में वर्ष 2007 में इन 11 लाख शिशुओं, जिनकी मौत हुई, उनमें से कम से कम 5 लाख बच्चों को तो बचाया जा सकता था यदि उनके परिवारों के पास भोजन और दवा पर खर्च करने के लिए कुछ 100 रूपए प्रतिवर्ष अधिक होता ।
दूसरे शब्दों में, भारत में आज की स्थिति के अनुसार, गरीबी के कारण सबसे ज्यादा मौत होती है और मानवाधिकार का सबसे गंभीर/ज्यादा उल्लंघन होता है। एक बार एक अर्थशास्त्री ने कहा था कि बम धमाकों मे होनेवाली एक मौत ज्यादा ध्यान खींचती है, भूखमरी से होनेवाली 10 हजार मौतें भी इतना ध्यान नहीं खींचती। ऐसा मुख्यत: इसलिए है क्योंकि समाचारपत्र 0.01 प्रतिशत भारतीयों द्वारा लिखा जाता है और केवल सबसे उपर की 15 प्रतिशत जनता उन्हें पढ़ती है। एक बम धमाका उन्हें दूख पहूँचा देता है लेकिन भूखमरी उनसे कोसों दूर है । यही कारण है कि बुद्धिजीवियों, गैर सरकारी संगठनों और मीडिया-मालिक और मीडिया-पाठक व्यक्तिगत मुद्दों पर ध्यान देने पर जोर देते हैं। और गरीबी] भूखमरी से होने वाली मौतों पर ध्यान न देने पर जोर देते हैं।
`नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट मानवाधिकारों की मांग में सबसे बड़ी (लैण्डमार्क) मांग है क्योंकि यह भोजन और दवाएं खरीदने के लिए पैसे की कमी के कारण होने वाली मौतों की संख्या कम करेगी। दुख की बात है कि सभी बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और मेरे विचार से, कार्यकर्ताओं को इन बुद्धिजीवियों से तो सदैव के लिए किनारे कर ही लेना चाहिए।
(5.17) अभ्यास |
- भारत में कच्चे तेल का उत्पादन वर्ष 2008 में कितना था? यह मानते हुए कि वर्ष 2006 में हुए उत्पादन की लागत से वर्ष 2008 में हुए उत्पादन की लागत में कोई बदलाव नहीं आया, और यदि यदि खरीददारों से 135 डॉलर प्रति बैरल वसूला गया तो आपके आकलन के अनुसार भारतीय नागरिकों को कितना पैसा मिलेगा? और यदि प्रति बैरल केवल 50 डॉलर ही खरीददारों से वसूला गया तो आपके आकलन के अनुसार भारतीय नागरिकों को कितना पैसा मिलेगा?
- मुंबई एयरपोर्ट का भू-क्षेत्रफल कितना है ? प्रति वर्ग-मीटर अनुमानित कीमत कितनी है? भारत के नागरिकों को कितना धन प्राप्त होगा यदि किराया बाज़ार मूल्य का तीन प्रतिशत प्रति वर्ष हो?
- आपके जिले में सबसे बड़े विश्वविद्यालय का भू-क्षेत्रफल कितना है? उस भूमि का अनुमानित दाम क्या होगा और उससे भारतीय नागरिकों को प्राप्त प्रति व्यक्ति किराया कितना होगा यदि किराया बाज़ार मूल्य का तीन प्रतिशत प्रति वर्ष हो?
- क्या भारतीय बजट में जमीन के किराए को सब्सीडी के रूप में/ इसके समतुल्य देखा जाता है?
- क्यों भारत के बुद्धिजीवी इस बात पर अड़े हैं/जोर देते हैं कि हम आम लोगों को खदान की रॉयल्टी सीधे नहीं मिलना चाहिए बल्कि किसी योजना/स्कीम के माध्यम से ही मिलनी चाहिए ?
क्यों भारत के बुद्धिजीवी लोग इस बात पर अड़े हैं/जोर देते हैं कि आम लोगों को जमीन का किराया का लाभ सीधे नहीं मिलना चाहिए बल्कि किसी योजना / स्कीम के माध्यम से मिलना चाहिए?