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= 0.11 टन प्रति भारतीय नागरिक
मूल्य = 150 डॉलर प्रति टन = 7600 रुपया प्रति टन
खुदाई का खर्चा = 300 रुपया प्रति टन
मुनाफा/लाभ प्रति टन = 7200 रूपया
मुनाफा/लाभ प्रति आम आदमी = 0.11 * 7200 रूपया = 730 रूपया प्रति वर्ष
दूसरे शब्दों में, यदि कच्चा तेल, तेल शोधक कारखानों (रिफाइनरी) को अंतरराष्ट्रीय मूल्य पर दिया जाता है और इसका लाभ प्रत्येक भारतीय को भेजा जाए तो प्रत्येक भारतीय हर वर्ष 1125 रूपया पाएगा । जब तेल की कीमत कम होगी तो इसमें भी कमी आएगी और तेल की कीमत बढ़ने पर यह पैसा ज्यादा मिलेगा। यह तो केवल कच्चे तेल की बात थी। कोयला, प्राकृतिक गैस, ग्रेनाइट, संगमरमर, कोटा पत्थर, तांबा, एल्युमुनियम, लौह अयस्क और पानी से मिलने वाली रॉयल्टी मिलाकर एक बहुत बड़ी राशि होगी । जब नागरिकों को यह पता चलेगा कि उन्हें खदान की रायल्टी मिल रही है तो वे खदान माफियाओं पर अंकुश लगाएंगे और इससे ईमानदार लोगों को खदान के व्यावसाय में आने का मौका मिलेगा और इस प्रकार रॉयल्टी कई गुना बढ़ जाएगी ।
मेरे आकलनों और अनुमानों के अनुसार, खदान रॉयल्टी प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति 4000- 6000 रूपए से ज्यादा बढ़ जाएगी ।
इसलिए खदान रॉयल्टी और जमीन का किराया मिला कर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 18 हजार रूपए हो जाएगा । इसमें से 33 प्रतिशत सेना को जाएगा। इस तरह नागरिकों को प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 12000 रूपए मिलेगा । यह पैसा किसी कर/टैक्स का नहीं होगा । यह पैसा उन प्लॉटों और खनिजो से आ रहा होगा जो हम नागरिकों के हैं। यह पैसा किसी कर से नही आ रहा है इसलिए “अमीरों को कर लगाओ और गरीबों को खिलाओ” जैसा कोई प्रस्ताव नहीं है । यह सीधा-सीधा उन खनिजों और प्लॉटों से संबंधित है जिसके मालिक हम नागरिक हैं ।
नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट या प्रारूप सभी सुखद परिवर्तनों की जननी है । हम केवल इसी परिवर्तन को लाने के लिए ही अन्य परिवर्तनों का प्रस्ताव कर रहे हैं। और यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि यह परिवर्तन आने के बाद स्थाई हो जाए। आज के हिसाब से जमीन का किराया और नए एम 3(M3) के सृजन, ये दो प्रमुख कारण है कि क्यों हम आम लोग गरीब हैं। ये मांग हम आम लोगों की गरीबी कम करेगा।
(5.8) जमीन का किराया वसूलने / जमा करने के प्रभाव |
एक बार यदि भूमि किराया अधिनियम लागू हो जाता है तो इन दो बातों में से एक बात होगी –
1. या तो हम आम लोगों को लगभग 500 या 1000 रूपया प्रति व्यक्ति हर महीने जमीन का किराया मिलेगा। अथवा
2. जमीन की कीमत घटेगी क्योंकि सार्वजनिक भूमि का किराया देना होगा और इसीलिए भूमि-संग्रह करना बहुत महंगा पडेगा ।
दूसरी बात के होने की ज्यादा संभावना है। अब यदि जमीन की कीमत गिरती है तो घरों की कीमत भी कम होगी जिससे हम आम लोगों का जीवन सुधरेगा। हम आम लोगों मे से कई लोग, जो झुग्गियों में रहते हैं वे शायद एक शयनकक्ष-हॉल-रसोई (वन – बी-एच-के) फ्लैटों में जा सकेंगे। और यदि जमीन की कीमत घटती है तो व्यवसायों की संख्या बढ़ेगी (क्योंकि जब रियल एस्टेट की लागत गिरती है तो कारीगरों के लिए व्यावसाय बढ़ाना आसान हो जाता है) और हम आम लोगों को ज्यादा रोजगार और वेतन मिलेगा। अधिक औधोगिकीकरण से खनिजों के मूल्य बढ़ेंगे और इसलिए खनिजों की रॉयल्टी भी बढ़ेगी ।
इसलिए किसी भी स्थिति में आई आई एम ए प्लॉट और आई आई एम /जे एन यू प्लॉटों व हजारों अन्य प्लॉटों और खदानों, जो हम आम लोगों का है , से किराए के प्रस्ताव से हम आम लोगों को बहुत भारी लाभ होगा। इसलिए जमीन किराया ओर खदान की रॉयल्टी के प्रस्तावों से आय बढ़ेगी और गरीबी कम होगी। गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों को जमीन और घर ज्यादा उपलब्ध होंगे। इस प्रकार इससे गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों की क्रयशक्ति/खरीदने की क्षमता बढेगी। क्रयशक्ति के बढ़ने से मांग बढ़ेगी और इस प्रकार उधोग धंधे बढ़ेंगे और इससे हमारी सेना भी मजबूत होगी।
(5.9) जमीन का किराया जमा ना करने / न वसूलने का (कु)प्रभाव – |
सार्वजनिक भूमि पर किराया जमा न करने का प्रभाव खुले अन्याय की तरह है । अमीरों द्वारा गरीबों का शोषण और आर्थिक असमानता अन्यायपूर्ण ढ़ंग से बढ़ेगा। उदाहरण के लिए, एयरपोर्टों पर विचार कीजिए। दिल्ली एयरपोर्ट पर विचार कीजिए । यह हर साल दो करोड़ यात्रियों को सेवा देता है। इसके पास किराया मूल्य 6000 करोड़ रूपए प्रतिवर्ष है। अर्थात 6000 रूपया/2 =3000 रूपया प्रति यात्री।
एक उच्च वर्ग के आदमी के बारे में विचार कीजिए जो एक वर्ष में 20 बार दिल्ली एयरपोर्ट का उपयोग करता है। लेकिन 3000 रूपया प्रति उड़ान की दर से जमीन का किराया उससे न वसूलने के कारण उसकी अमीरी 6,00,000 रूपए बढ़ जाती है । और भारत का प्रत्येक आम आदमी को हर साल साठ रूपए की हानि होती है क्योंकि आम आदमी को दिल्ली एयरपोर्ट के प्लॉट ,जो कि उसका अपना है, का कोई किराया नहीं मिला । ऐसा करने से/केवल किराया न वसूलने के अंन्यायपूर्ण साधन से दौलत/आय का अंतर बढ़ जाता है।
(5.10) राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एम एल आर ओ) को हटाने / वापस बुलाने का तरीका |
राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) नाम के अधिकारी के द्वारा किराया वसूलना और लोगों को भेजने का काम होना है। किराए का निर्धारण बाजार मूल्य और ब्याज की दरों के आधार पर मानक गणना द्वारा किया जाएगा। इसलिए इसमें राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) के पास कोई विवेकाधीन शक्ति (एक अधिकार) नहीं है । लेकिन उसके पास उप-प्लॉट/प्लाट के छोटे टूकडे़ बनाने के तरीके निर्धारित करने का विवेकाधिकार है ।
इसलिए राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) को सारा किराया अपनी जेब में गटक जाने से कैसे रोका जाएगा। देखिए दूसरी `नागरिक और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) मांग और वायदा में एक खंड/कलम है जो हम आम आदमी को मौका देगा कि हम एन एल आर ओ को हटा/ बदल सकें। यह बदलने का तरीका वह मुख्य बात है जो हम आम लोगों को एक ऐसा राष्ट्रीय भूमि किराया अधिकारी (एन एल आर ओ) ढ़ूंढने में सक्षम बनाएगा जो किराया आम लोगों तक भेजने में विश्वास रखता हो।