इसलिए अब, एक ऐसे कार्यकर्ता नेता पर विचार कीजिए जो अपने समूह के 100 ईमानदार कार्यकर्ताओं को बताता है कि “हमलोग कानून-ड्राफ्टों में सुधार कैसे लाऐंगे? हम सभी स्थानीय स्तर पर काम करेंगे और उसके बाद हम या तो चुनाव लड़ेंगे अथवा चुनावों में किसी की मदद करेंगे, इसके बाद हमलोग चुनाव जीतेंगे अथवा चुनाव जीतने वालों को प्रभावित करेंगे। और तब हम कानून-ड्राफ्टों में बदलाव लाऐंगे।” तब मेरे विचार में, यह कार्यकर्ता नेता चुनाव प्रणाली में और उसके अपने तरीके में भीतर निर्मित क्लोन निगेटिव की स्थिति से निराशाजनक रूप से अनजान है । मेरे विचार में, कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को यह महसूस करना चाहिए कि उससे 2 मील की दूरी पर इसी प्रकार का एक और समूह होगा जो ऐसे ही तरीके अपना रहा होगा और अंत में वे केवल एक-दूसरे के वोट काटकर हार जाऐंगे और बेईमान भ्रष्ट वर्तमान विधायकों, सांसदों का बदलने/हटाने में कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे और भारत में ऐसे हजारों समूह हैं जो “हम स्थानीय स्तर पर काम करेंगे और उसके बाद हम चुनाव लड़ेंगे, इसके बाद हमलोग चुनाव जीतेंगे और तब हम कानूनों में बदलाव लाऐंगे।” का तरीका अपना रहे हैं। इसलिए वे केवल एक दूसरे का वोट काट देंगे और सभी अंत में अपना-अपना समय ही बरबाद करेंगे।
इसलिए मैंने कहा कि क्लोन निगेटिव की स्थिति एक महत्वपूर्ण संकल्पना/सिद्धांत है और फिर भी यह सबसे कम परखा/जांचा जाने वाला और सबसे कम समझा जाने वाला मुद्दा है। पिछले 60 वर्षों से स्वार्थ-रहित कार्यकर्तागण क्लोन निगेटिव तरीकों को ही अपनाते आ रहे हैं और उन्होंने अपने 60 वर्ष बरबाद कर दिए हैं।
(15.16) “ एक नेता के नेतृत्व / नीचे में एकता ” द्वारा क्लोन निगेटिव की स्थिति से उबरने का प्रयास बेकार / व्यर्थ है |
ज्यादातर कार्यकर्ताओं ने क्लोन निगेटिव की स्थिति को महसूस किया है। उन्होंने यह देखा है और महसूस किया है कि जब अनेक ईमानदार कार्यकर्ताओं ने चुनाव लड़ा तो अन्त में इनमें से सभी ने एक दूसरे का वोट काटा और स्थापित बेईमान पार्टियों के आसान जीत का रास्ता साफ किया। इसलिए अनेक कार्यकर्ताओं ने “एक नेता के नेतृत्व में एकता” बनाने की कोशिश अवश्य की। “एक नेता के नेतृत्व में एकता” का प्रयास भी व्यर्थ ही है। क्यों?
मान लीजिए, भारत में 20 लाख ईमानदार कार्यकर्ता हैं जो 543 संसदीय चुनाव क्षेत्रों में फैले हुए हैं। प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में लगभग 3700 ईमानदार कार्यकर्ता हैं। प्रत्येक संसदीय क्षेत्र में लगभग 7 विधानसभा चुनाव क्षेत्र हैं। इस प्रकार, प्रत्येक विधानसभा चुनाव क्षेत्र में लगभग 500-600 ईमानदार कार्यकर्ता हैं। अब मान लीजिए, भारत में 20,000 समूह हैं जिनमें से प्रत्येक में 1-2 कार्यकर्ता नेता हैं और 10 से 500 से 5000 ईमानदार कार्यकर्ता हैं जो 543 संसदीय चुनाव क्षेत्रों और 5000 विधान सभा चुनाव क्षेत्रों में फैले हुए हैं।
अब प्रत्येक समूह यह देखेगा कि नेताओं और समूहों के बीच एकता न होने के कारण इनमें से कोई भी विधायक या सांसद के चुनाव जीतने में समर्थ नहीं है । इसलिए अनेक कनिष्ठ कार्यकर्ता और नेता “एक नेता के नेतृत्व में एकता” स्थापित करने की कोशिश करेंगे। और चूंकि इनमें से अनेक लोग ऐसी कोशिश करेंगे, इसलिए वे एक दूसरे का अवसर/प्रभाव कम कर देंगे। इस प्रकार एक नेता के नेतृत्व में एकता स्थापित करना भी नकारात्मक है। यह राजनीति की सबसे खराब व्यंग्योक्ति/विडंबना है। “आईए श्री क.ख.ग. जी के नेतृत्व में एकता बनाएं/एक हो जाएं” यह सबसे ज्यादा बांटने वाला कथन/व्यक्तव्य है, जो अकसर दिया जाता है। क्योंकि वह “आईए श्री च.छ.ज. जी के नेतृत्व में एक हो जाएं” का नारा देने वाले व्यक्ति का विरोध ही कर रहा है क्योंकि दोनों अपने-अपने नेताओं के प्रति वफादार हैं और यदि उन्हें कोई कहे कि `मेरे नेता के नेतृत्व में एक हो जाओ` तो उन्हें ये अपने नेता के प्रति बेईमानी जैसे लगता है |
“एक नेता के नेतृत्व में एकता” स्थापित करने में एक और समस्या आती है। यह निर्णय करने में समय लगता है कि कौन सा नेता सबसे बड़ा है। एक नेता के नेतृत्व में एकता कायम करने के कार्य में उस एक नेता में विश्वास करने की जरूरत पड़ती है। एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के सामने यह साबित करना पड़ता है कि वह जीतने के बाद भी भ्रष्ट नहीं हो जाएगा। और भगवान ने किसी व्यक्ति के माथे पर यह प्रमाणित करने का कोई ठप्पा नहीं लगाया है कि वह सत्ता में आने के बाद भी इतना ही ईमानदार ही रहेगा। विश्वास कायम करने से पहले जोरदार/गहन पश्नोत्तरी के सत्र और लंबे व्यक्तिगत देख-परख आवश्यक हो जाते हैं। ऐसा करना तभी संभव होता है जब समूह आकार और क्षेत्र में छोटा होता है। लेकिन जब कोई दो समूह जिनमें से प्रत्येक के पास 20-100 कार्यकर्ता हों और वे एक बड़े क्षेत्र में फैले हों, यदि “एक नेता के नेतृत्व में एकता” कायम करने की कोशिश करें तो विश्वास कायम करने के लिए संचार/बातचीत में लगने वाले समय, असंभव/अव्यवहार्य तरीके से बहुत ज्यादा होगा। अनेक लोग कहते हैं कि एकता स्थापित करने में असफलता नेताओं में अहम/अहंकार की समस्या के कारण होती है। यह केवल आंशिक रूप से सत्य है । कई ऐसे लोग हैं जो राष्ट्र की सेवा के लिए अहम को दरकिनार कर देते हैं । लेकिन विश्वास की कमी ही वास्तविक कारण है `एक नेता के नेतृत्व में एकता` न स्थापित होने में और विश्वास की कमी विश्वसनीय होने की कमी के कारण नहीं होती बल्कि विश्वसनीयता साबित करने अथवा न करने के लिए आवश्यक समय की कमी के कारण होती है।
यदि कोई कार्यकलाप संभव तो है लेकिन इसमें लगने वाला जरूरी समय जीवन-काल से दूगना है तो ऐसा कार्यकलाप असंभव ही है। इसलिए “आइए एक विश्वसनीय नेता तलाशें और उसके नेतृत्व में एकता कायम करें” का कार्यकलाप संभव है, क्योंकि भारत में अवश्य ही 10 हजार से ज्यादा भरोसेमन्द आदमी हैं। लेकिन यदि 20 लाख ईमानदार कनिष्ठ कार्यकर्ता यह पता लगाने और इस बात पर सहमति कायम करने का निर्णय करते हैं कि 10 हजार कार्यकर्ता नेताओं में से कौन सा नेता ज्यादा विश्वसनीय है। तब इस बात पर चर्चा-विचार करने के लिए उन्हें कई जीवन काल का समय लगेगा। और इस प्रकार “एक नेता के नेतृत्व में एकता” क्लोन निगेटिव है। और इसमें बहुत ज्यादा समय की जरूरत है। इसलिए यह बेकार/ व्यर्थ है।