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अध्याय 15 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपकी कार्रवाई पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है ?

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मैं एक कार्यकर्ता नेता हूँ । और मैंने यह निर्णय किया है कि मैं समाचारपत्र मालिकों, टेलिविजन चैनल मालिकों और विशिष्ट /उंचे लोगों की मदद नहीं लूंगा। मैं अपने पार्ट-टाइम/अंश-कालिक नौकरी से होनेवाली अपनी सीमित आय से ही काम चलाता हूं। और मैं सभी कनिष्‍ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं और कार्यकर्ता नेताओं से ऐसा ही करने को कहता हूँ – सभी की अपनी पार्ट-टाइम/अंश-कालिक या फूल-टाइम/पूर्ण-कालिक नौकरी होनी चाहिए और उसी नौकरी से प्राप्‍त आय से ही उन्‍हें काम करना चाहिए ।

 

(15.19)  तो क्‍या कोई पर्याप्‍त और क्‍लोन-पॉजिटिव तरीका है?

अभी तक मैंने विस्‍तार से यह बताया कि क्‍यों –

  1. कोई कार्यकर्ता नेता यदि मंत्रियों, जजों आदि के भ्रष्‍टाचार का विरोध करने से मना करता है और केवल स्‍कूलों, अस्‍पतालों और स्‍थानीय कार्यों तक ही सीमित रहने पर जोर देता है, तो वह अपर्याप्‍त तरीका अपना रहा है। वह एक ऐसे डॉक्‍टर की तरह है जो मरीजों को जरूरी दवाएं नहीं दे रहा है।

  2. यदि एक कार्यकर्ता नेता भ्रष्‍टाचार का विरोध तो करता है लेकिन कानून ड्राफ्टों को बदलने के लिए काम करने से इनकार करता है, तो वह भी अपर्याप्‍त तरीका अपना रहा है। वह भी उसी प्रकार एक ऐसे डॉक्‍टर की तरह है जो मरीजों को जरूरी दवाएं नहीं दे रहा है।

  3. यदि एक कार्यकर्ता नेता यह प्रस्‍ताव करता है कि वे लोग धर्मार्थ का काम करेंगे, स्‍थानीय स्‍तर पर काम आदि करेंगे, वोट लेंगे, चुनाव जीतेंगे और तब कानून –क़ानून-ड्राफ्ट को बदलेंगे, तो वह क्‍लोन निगेटिव तरीका अपना रहा है। वह एक ऐसे डॉक्‍टर की तरह है जो अभी भी इस बात से अनजान है कि (कोई) दवाई बड़े पैमाने पर काम नहीं कर सकती है।

  4. यदि एक कार्यकर्ता नेता कार्यकर्ताओं को “एक नेता के नेतृत्‍व में एकजूट” करने का प्रयास कर रहा है, तो वह भी इस बात से अनजान है कि उसका तरीका क्‍लोन निगेटिव है और यह कि इसमें लगने वाला सम्पर्क-समय एक जीवन-काल से कहीं अधिक है।

  5. यदि कोई कार्यकर्ता नेता लोगों को “एक संगठन के तहत एकजूट” करने की कोशिश कर रहा है तो वह भी इस बात से अनजान है कि उसका तरीका क्‍लोन निगेटिव है और उसके तरीके को अपनाने पर बहुत अधिक सम्‍पर्क समय लगेगा।

  6. एक कार्यकर्ता  नेता समाचारपत्र मालिकों और टेलिविजन चैनलों के मालिकों का समर्थन लेने की कोशिश करता है क्‍योंकि उसे समर्थन मिल भी जाता है और उसका “कार्यकर्ताओं को एक संगठन के तहत एकजूट करने” का प्रयास सफल हो भी सकता है लेकिन केवल तभी जब उसकी सहायता करनेवाले विशिष्ट/ऊंचे लोग `आम आदमी समर्थक` हों । यदि उसकी सहायता करनेवाले विशिष्ट/ऊंचे लोग `आम आदमी विरोधी` हुए तो उनसे सहायता लेने का कार्यकर्ता नेता का कदम उलटा नुकसानदायक होगा।

इसलिए एक एक करके मैं उन सभी तरीकों को – यह बताकर कि उनके तरीके अपर्याप्त हैं अथवा क्‍लोन निगेटिव हैं अथवा दोनों ही हैं – असफल साबित करता जा रहा हूँ जिन तरीकों को भारत में विभिन्‍न कार्यकर्ता नेता अपना रहे हैं। इसलिए क्‍या कोई ऐसा तरीका है जो क्‍लोन पॉजिटिव भी हो और पर्याप्‍त भी? यदि हां तो वह तरीका क्‍या है? हां, एक पर्याप्‍त तथा क्‍लोन पॉजिटिव तरीका अवश्‍य मौजूद है। इन तरीकों के अन्तर्गत तथाकथित “कानून के क़ानून-ड्राफ्ट के लिए नेता रहित, संगठन रहित व्‍यापक आन्दोलन” प्रारंभ करना होगा। यह “कानून–क़ानून-ड्राफ्ट के लिए नेता रहित व्‍यापक आन्दोलन” पर्याप्‍त होने के साथ साथ क्‍लोन पॉजिटिव भी है । मैंने इसे  इसके बाद के खण्‍ड/भाग में विस्‍तार से बताया है।

 

(15.20)  क़ानून-ड्राफ्ट के लिए `नेता-रहित (व्‍यापक) जन-आन्‍दोलन` पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है

(व्यापक) जन-आन्‍दोलन तभी एक घटना कही जाएगी जब हजारों या लाखों या करोड़ों भारतीय नागरिक सरकार में परिवर्तन लाने के लिए महापौर, मुख्‍यमंत्री, प्रधानमंत्री पर दबाव डालें । यह परिवर्तन की मांग किसी अधिकारी अथवा किसी मंत्री या किसी न्‍यायाधीश को बर्खास्‍त करने या वापस बुलाने की हो सकती है। अथवा यह परिवर्तन की मांग किसी कानून –क़ानून-ड्राफ्ट को लागू करने की हो सकती है। उनमें से पहला, अर्थात व्‍यक्‍ति को बदलने की मांग अपर्याप्‍त है और मैं इसमें रूचि नहीं लेता लेकिन किसी कानून–क़ानून-ड्राफ्ट को लागू करने की मांग, जो कानून–क़ानून-ड्राफ्ट पर निर्भर करता है, पर्याप्‍त हो भी सकता है, यदि कानून –क़ानून-ड्राफ्ट अच्‍छी तरह लिखा गया हो तो उस क़ानून-ड्राफ्ट को लागू करने से नागरिकों के जीवन में अनेक दीर्घकालिक सकारात्‍मक परिवर्तन आ सकता है। ऐसा एक उदाहरण राशन कार्ड प्रणाली(सिस्टम) “अर्थात जन-वितरण प्रणाली” है । सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) के प्रारूप / क़ानून-ड्रॉफ्ट जिसके द्वारा 1940 के दशक में जनवितरण प्रणाली लागू किया गया था। वे अच्‍छे इसलिए थे कि व्यापक भुखमरी से होनेवाली मौतों की समस्‍या 1945 से आज तक भारत में लगभग समाप्‍त ही हो गए। एक और उदाहरण, भूमि सुधार के लिए चलाया गया जन आन्‍दोलन है। यह आन्‍दोलन आंशिक रूप से सफल हुआ और आंशिक रूप से असफल इसलिए हुआ कि नागरिकों ने स्‍वयं क़ानून-ड्राफ्ट नहीं बनाया और विधायकों व सांसदों को ड्राफ्टों को बनाने के लिए दे दिया। विधायकों व सांसदों ने भूस्‍वामियों/जमींदारों से घूस लेकर कमजोर क़ानून-ड्राफ्ट बनाया और इसलिए भूमि सुधार सर्वाधिक संभव हद तक सफल न हो पाया।

“कानून –ड्राफ्टों के बिना व्‍यवस्‍था परिवर्तन के लिए व्‍यापक जन आन्‍दोलन” पूर्णतया असफल रहे हैं। सबसे बुरा उदाहरण 1977 में देखने में आया जब जनता पार्टी श्री जयप्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में एक व्‍यापक जन आन्‍दोलन था और इसके प्रमुख उद्देश्‍यों में से एक था – प्रजा अधीन राजा/ राइट टू रिकॉल (कानून) लाना । इस व्‍यापक जन आन्दोलन को लोक सभा में दो तिहाई बहुमत प्राप्‍त करने में सफलता मिली पर चूंकि प्रस्‍तावित रिकॉल कानून का कोई प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट नहीं था इसलिए मंत्रियों ने दावा कर दिया कि उन्‍हें इस कानून को लिखने के लिए समय चाहिए और इस तरह दो वर्ष का समय बिता दिया। और फिर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल कानूनों को लागू करने की योजना को पूरी तरह से रद्द कर दिया। इस तरह यह आन्‍दोलन पूरी तरह असफल हो गया ।

“क़ानून-ड्राफ्ट के लिए नेता रहित व्‍यापक जन आन्‍दोलन” जिसका प्रस्‍ताव मैं कर रहा हूँ वह इस प्रकार है –

1.    कार्यकर्ताओं के पास उन कानूनों के स्‍पष्‍ट क़ानून-ड्राफ्ट होने चाहिए जिन्‍हें वे चाहते हैं। कानून `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), प्रजा अधीन- मुख्‍यमंत्री आदि ही हो, यह जरूरी नहीं। ये कोई भी कानून–क़ानून-ड्राफ्ट हो सकते हैं जिनमें कार्यकर्ताओं का विश्‍वास हो। लेकिन पूरी तरह लिखित प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट प्रस्‍तुत करना होगा।

श्रेणी: प्रजा अधीन