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अध्याय 15 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपकी कार्रवाई पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है ?

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  • वैसे नेता, जो इस बात पर जोर देते हैं कि कानून-ड्राफ्टों को बदलने में समय बिलकुल बरबाद नहीं करना चाहिए।

  • वैसे नेता (मेरे जैसे), जो कानून-ड्राफ्टों को बदलने में ही समय लगाते हैं।

वे नेता जो कानूनों के ड्राफ्टों को बदलना/बदलवाना नहीं चाहते, वे सभी अपर्याप्‍त तरीकों पर काम कर रहे हैं और इनके तरीकों से गरीबी, भ्रष्‍टाचार कभी कम नहीं हो सकता । हमलोगों के पास केवल 20,00,000 स्‍वार्थ-रहित कार्यकर्ता हैं और इसलिए `केवल धर्मार्थ का तरीका` करोड़ों गरीब और भ्रष्‍टाचार/भाई भतीजावाद के शिकार लोगों की भलाई करने में असफल हो जाएगा। स्‍वार्थ-रहित कार्यकर्ताओं को अपर्याप्‍त संसाधन के साथ काम पर लगाने और “केवल धर्मार्थ, कानून के ड्राफ्टों में कोई बदलाव नहीं” का कार्य करके ये कार्यकर्ता नेता भारत की भलाई करने से ज्‍यादा नुकसान कर रहे हैं।

 

(15.15) “कानूनों के प्रारूपों / क़ानून-ड्राफ्ट को बदलने ” के लिए चुनाव आधारित कार्रवाई का प्रस्‍ताव करने वाले नेता

आइए देखें, “कानून के प्रारूप को बदलें” के विचार वाले कुछ कार्यकर्ता नेता किन कार्यकलापों का प्रस्‍ताव करते हैं। इन कार्यकर्ता नेताओं में से ज्‍यादातर नेता निम्‍नलिखित चुनाव आधारित कार्यकलाप का प्रस्‍ताव करेंगे –

  1. वे नागरिकों का मन जीतने के लिए धर्मार्थ आदि के काम करेंगे, स्‍थानीय शासन में सुधार लाएंगे।

  2. लोगों का मन जीतने के बाद अपने खड़े किए गए उम्‍मीदवार अथवा उन उम्‍मीदवारों जिनका वे समर्थन कर रहे होंगे, उनके लिए वोट हासिल करेंगे।

  3. उनके अपने सांसदगण अथवा जिन सांसदों के लिए उन्‍होंने काम किया है, उनको प्रभावित करके वे कानून-ड्राफ्टों में बदलाव लाने का प्रयास करेंगे।

ऊपर बताया गया तरीका पर्याप्‍त है । इससे कानूनों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट में बदलाव लाया जा सकेगा और इस प्रकार ईमानदार अधिकारियों और ईमानदार वकीलों को नागरिकों की भलाई के काम करने योग्य बनाया जा सकेगा। लेकिन यह तरीका/प्रयास क्‍लोन निगेटिव है और इसलिए यह समय की बरबादी मात्र है।

 

यह क्‍लोन निगेटिव तरीका क्‍या है? कोई तरीका तब क्लोन निगेटिव कहा जाता है जब ज्‍यादा एक दूसरे से अनजान, लोग/समूह एक ही प्रकार का काम करने की कोशिश करते हैं, तो इससे लक्ष्‍य प्राप्त करने के लिए आवश्‍यक समय में तो कमी नहीं आती बल्‍कि यह बढ़ जाता है। आइए, मैं आपको बताता हूँ कि क्‍यों/कैसे कानून को बदलने का यह तरीका जिसमें चुनाव जीतना एक पूर्वशर्त है, क्‍लोन निगेटिव है। यह क्‍लोन निगेटिव है क्योंकि सभी स्‍तरों पर यह मजबूती को और बढ़ाने की बजाए इसे कम करता है। इस बात को समझाने के लिए मुझे कुछ वास्‍तविक संख्‍याओं का उपयोग करने की जरूरत पड़ेगी ।

मान लीजिए , 14,00,000 मतदाताओं वाले किसी संसदीय क्षेत्र में 2,00,000 मतदाताओं वाले 7 विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें से हरेक में 40,000 मतदाताओं वाले 5 नगरपालिका वार्ड हैं । अब, मान लीजिए, 40,000 मतदाताओं वाले नगरनिगम वार्ड में एक कार्यकर्ता समूह जाता है और वहां वह समूह स्‍वास्‍थ्‍य/शिक्षा के कार्य करता है अथवा सूचना का उपयोग अधिनियम का प्रयोग करके स्‍थानीय शासन में सुधार लाने के कार्य करता है। अब अच्‍छे व्‍यवहार/ भलाई करने के कारण उसे यह लाभ तो होगा कि उसे कुछ वोट मिल जाऐंगे और वह चुनाव जीत भी सकता है और कानून-ड्राफ्टों में कुछ और अधिक बदलाव ला सकेगा। लेकिन यदि एक और कार्यकर्ता आता है और उसी वार्ड में कुछ वैसा ही काम करता है तो वोटों का बंटवारा हो जाएगा और इस प्रकार उन दोनों में से कोई भी चुनाव नहीं जीतेगा और इस प्रकार, कानून-ड्राफ्टों का बदलने के लक्ष्‍य की प्राप्‍ति में देरी होगी।

“चुनाव जीतने का तरीका ” में एक और बहुत गंभीर और न सुलझ पाने वाली 800 वर्षों पुरानी जानी पहचानी/सुज्ञात समस्‍या है। भारत में चुनाव में हर मतदाता का एक ही वोट होता है और चुनावों में सबसे अधिक मत हासिल करने वाला उम्‍मीदवार चुनाव जीत जाता है(उसे सभी मतों के पूर्ण बहुमत कि आवश्यकता नहीं होती जीतने के लिए )। इस प्रणाली/सिस्टम में ज्‍यादातर समझदार नागरिक चुनाव जीतने योग्य किसी ऐसे उम्‍मीदवार को वोट देते हैं ( जो ठीक ही है) जिससे दूसरे ऐसे जीतने योग्य उम्‍मीदवार का रास्‍ता बंद हो जाता है जिससे वे (नागरिक) सबसे ज्‍यादा डरते हैं और वे (नागरिक) वैसे उम्‍मीदवार को वोट नहीं देते जिसे वे सबसे ज्‍यादा बुद्धिमान, ईमानदार और योग्‍य समझते हैं। इसलिए चुनाव जीतने के लिए, जीतने की योग्‍यता का प्रत्‍यक्ष ज्ञान/महसूस/बोध अधिकांश मामलों में अनिवार्य होता है। अब कल्‍पना करें कि एक और कार्यकर्ता समूह उसी नगर-निगम वार्ड में आता है और शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य या स्‍थानीय शासन में सुधार के काम करता है। चूंकि दोनों ही समूह को कुछ न कुछ वोट मिलेगा इसलिए वोटों का यह बंटवारा एक सही प्रत्‍यक्ष ज्ञान/महसूस/बोध स्‍थापित करेगा कि दोनों में से कोई नहीं जीतेगा। इसलिए, चूंकि दोनों के पास चुनाव जीतने की योग्‍यता का प्रत्‍यक्ष ज्ञान/महसूस/बोध नहीं होगा । इसलिए बहुत से समझदार मतदातागण, जो ठीक ही चाहते हैं कि सबसे ज्‍यादा खतरनाक उम्‍मीदवार का रास्‍ता बन्‍द हो, वे किसी अन्‍य जीतने योग्‍य उम्‍मीदवार को वोट दे देते हैं। उदाहरण के लिए अहमदाबाद जैसे चुनाव क्षेत्र पर विचार कीजिए जहां मान सकते हैं कि नागरिकों में से लगभग आधे नागरिक कांग्रेस से डरते हैं। यदि उनमें से एक बड़ी संख्‍या में मतदाता कांग्रेस या बीजेपी से अधिक किसी तीसरे उम्‍मीदवार को चाहते हैं तो वे सभी मतदाता जो कांग्रेस के आने से डरते हैं, वे केवल बीजेपी को ही वोट दे देंगे। और यदि और भी कार्यकर्तागण उस क्षेत्र में आते हैं तो चुनाव जीतकर कानून-ड्राफ्टों में बदलाव/परिवर्तन लाने के उनके सपने को पूरा होने में देरी पर देरी होती जाएगी।

अब बहुत प्रयास करके स्‍थानीय स्‍तर पर एक हमराह/क्‍लोन दूसरे हमराह/क्‍लोन को पीछे छोड़ने में सफल हो जाए और नगर पालिका चुनाव जीत भी जा सकता है। ऐसा संभव हो भी जाता है क्‍योंकि नगरपालिका वार्ड छोटे होते हैं और व्‍यक्‍तिगत संपर्क करना संभव हो जाता है। इस प्रकार, मान लीजिए दो चार ऐसे ईमानदार उम्‍मीदवार जो कानून – ड्राफ्टों में बदलाव चाहते हैं, वे नगर पालिका का चुनाव जीत गए हैं। लेकिन मान लीजिए , वे विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं। विधानसभा के स्‍तर पर 2 किलोमीटर से लेकर 10 किलोमीटर तक के दायरे/रेंज में फैले हुए 2,00,000 मतदाता होते हैं । इसलिए व्‍यक्‍तिगत सम्‍पर्क कायम करना मतदाताओं से समय की दृष्‍टि से व्‍यवहार्य/काम कर सके ,ऐसा नहीं है। किसी व्यक्‍ति के पास एक दिन में केवल 24 घंटे होते हैं । इसलिए कोई भी हमराह/क्‍लोन सभी 2,00,000 नागरिकों तक पहूंच नहीं पाएगा। इस प्रकार हर हमराह/क्‍लोन अपने ही वार्ड में अच्छा कर पाएगा लेकिन वह दूसरे वार्डों में अच्‍छा नहीं कर पाएगा। इसलिए इनमें से कोई भी स्‍थापित दलों के विरूद्ध चुनौती खड़ी नहीं कर पाएगा। यदि ये जीतने योग्य होने का प्रत्‍यक्ष ज्ञान/बोध/महसूस कायम नहीं कर पाते, तब ज्यादातर मतदाता, जो किसी ऐसे उम्‍मीदवार को समझदारी से रोकना चाहते हैं जिनसे वे सबसे ज्‍यादा डरते हैं तो वे मतदाता किसी कम बुरे लेकिन जीतने योग्य उम्‍मीदवार का साथ दे देते हैं। इस प्रकार, जहां नगर निगम स्‍तर पर चुनाव जीतना बहुत ही कठिन है, वहीं विधानसभा स्‍तर पर तो यह कहीं ज्‍यादा कठिन है। और परिस्‍थितियां संसदीय स्‍तर पर तब और अधिक कठिन हो जाती हैं जब मतदाताओं की संख्‍या 14,00,000 हो और चुनाव क्षेत्र का दायरा 10 किलोमीटर से लेकर 50 किलोमीटर तक होता है ।

श्रेणी: प्रजा अधीन