होम > प्रजा अधीन > अध्याय 15 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपकी कार्रवाई पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है ?

अध्याय 15 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपकी कार्रवाई पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है ?

dummy
पी.डी.एफ. डाउनलोड करेंGet a PDF version of this webpageपी.डी.एफ. डाउनलोड करें
 

(15.12)  कार्यकर्ता नेता – आइए, कानूनों के ड्राफ्टों को ही बदल दें, लेकिन ड्राफ्टों को पढ़ने में समय बरबाद न करें।

बहुत कम कार्यकर्ता गरीबी, पुलिस में भ्रष्‍टाचार, न्‍यायालयों आदि में भ्रष्‍टाचार कम कर सकने योग्‍य वर्तमान और प्रस्‍तावित प्रारूपों को पढ़ने / समझने में समय लगाते हैं। इसका मुख्‍य कारण यह है कि कार्यकर्ता नेता कनिष्‍ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं से कहते हैं कि वे भारत/पश्‍चिमी देशों के वर्तमान कानूनों के क़ानून-ड्राफ्ट और इन प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट में प्रस्‍तावित बदलाव/परिवर्तन का अध्‍ययन करने में समय नहीं लगाएं और ऐसे कार्यकर्ता नेता यह सुनिश्‍चित  करते हैं कि कार्यकर्तागण छोटे-छोटे मुद्दों के पीछे भागने और उनपर चर्चा करने में ही व्‍यस्‍त रहें। मुझे इन कार्यकर्ता नेताओं (की नियत) पर पूरा संदेह/शक है । यदि कार्यकर्ता नेता खुलेआम/जोरदार ढ़ंग से कानूनों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट पर की जाने वाली चर्चाओं को हतोत्‍साहित करता है/रोकने की कोशिश करता है तो वह कार्यकर्ता नेता, बहुत संभव है कि भारत के कानूनों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट में सुधार करना नहीं चाहता। मेरे विचार से कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को अपने कार्यकर्ता नेताओं से कहना चाहिए कि वे भारत के वर्तमान कानूनों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट और पश्‍चिमी देशों के अच्‍छे कानूनों के भी प्रारूपों पर सूचना सत्र/समय आयोजित करें। और यदि कार्यकर्ता नेता कानूनों-प्रारूपों पर चर्चा-सत्र आयोजित करने से मना करता है तो कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को किसी दूसरे ऐसे कार्यकर्ता नेता के साथ प्रति सप्‍ताह एक घंटे का समय देना चाहिए जो भारत/पश्‍चिमी देशों के अच्‍छे/बुरे कानूनों पर जानकारी देने में बहुत ज्‍यादा रूचि लेता है ।

 

(15.13)  अब तक का सारांश  (छोटे में बात)

इस पाठ के अब तक के भागों का सारांश मैं इस प्रकार प्रस्‍तुत करूंगा:-

  1. 1.                  ऐसे कार्यकर्ता नेता, जो जोर देकर कहते हैं कि भ्रष्‍टाचार/भाई-भतीजावाद कम करने के प्रयास नहीं किए जाने चाहिएं, वे जानबूझकर या अनजाने में ही कनिष्‍ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं को गुमराह करते हैं।

  2. 2.                   ऐसे कार्यकर्ता नेता, जो जोर देकर कहते हैं कि भ्रष्‍टाचार/भाई-भतीजावाद कम करने के लिए वर्तमान कानूनों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट में कोई बदलाव करने की आवश्‍यकता नहीं है, वे भी जानबूझकर या अनजाने में ही कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को गुमराह करते हैं।

  3. 3.                   ऐसे कार्यकर्ता नेता, जो कानूनों के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट बदलने की मौखिक बात तो करते हैं लेकिन अपने कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को कानूनों के ड्राफ्टों पर चर्चा/वाद-विवाद आयोजित करने से मना करते हैं, वे भी जानबूझकर या अनजाने में ही कनिष्‍ठ कार्यकर्ताओं को गुमराह करते हैं।

 

मेरे विचार से इन कार्यकर्ता नेताओं की कार्रवाइयां अपर्याप्‍त हैं और कनिष्‍ठ/छोटे कर्यकर्ताओं को चाहिए कि वे ऐसे नेताओं से जल्दी से जल्दी अपना पीछा छुड़ा लें।

 

(15.14) “कानून के ड्राफ्टों के लिए सक्रियतावाद” पर कुछ और बातें

आइए, “मैं इस कानूनके ड्राफ्टों के लिए सक्रियतावाद” को विस्‍तार से बताता हूँ। कानून के ड्राफ्टों के लिए सक्रियतावाद का अर्थ ऐसी सक्रियता है जिसमें कार्यकर्ताओं का एक ही नेता हो भी सकता है और नहीं भी, वैसा नेता, जिसपर उनका भरोसा हो ; उनका एक ही संगठन हो भी सकता है या वे अलग-अलग संगठनों से भी जुड़े हो सकते हैं, लेकिन सभी कार्यकर्ताओं का भरोसा कुछ ही कानून-ड्राफ्टों पर होता है जिसे वे लागू करना/करवाना चाहते हैं। उनका नेता न तो कोई आदमी होता है और न ही कोई संगठन बल्‍कि उनका नेता कानून के ड्राफ्टों का एक समूह होता है।

कानूनों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट के लिए सक्रियतावाद एक ऐसे अवलोकन/आवजर्वेशन पर आधारित होता है कि एक गरीब आम आदमी, जिसका कोई भी ताकतवर/शक्‍तिशाली रिश्‍तेदार अथवा शक्‍तिशाली मित्र नहीं होता उसका केवल दोस्‍तों का एक ही समूह हो – सरकार/सरकारी तंत्र में ईमानदार अधिकारी और कुछ ईमानदार वकील। यहां तक कि किसी सबसे ज्‍यादा बेकार / बेईमान प्रशासन में भी कुछ ऐसे ईमानदार अधिकारी और कुछ ईमानदार वकील मिल ही जाते हैं जो आम लोगों की भलाई का काम करने के लिए इच्‍छुक होते हैं। और ऐसे ईमानदार अधिकारियों के पास गरीबों की मदद करने के लिए साधनों का केवल एक ही समूह/सेट होता है- कानून के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट इस प्रकार यदि कार्यकर्तागण भारत के कानूनों के प्रारूपों में सुधार लाने में समय लगाते हैं वे वैसे सभी ईमानदार अधिकारियों और ईमानदार वकील, जो आम लोगों की मदद करना चाहते हैं, वे और भी प्रभावकारी ढ़ंग से आमलोगों की मदद कर पाएंगे।

इसलिए “कानून के ड्राफ्टों का सक्रियतावाद” हमें बताता है कि –

  1. यदि 20 लाख स्‍वार्थरहित कार्यकर्ता स्‍कूलों व अस्‍पतालों के माध्‍यम से गरीबों की मदद करते हैं तो वे अधिक से अधिक 50 लाख से 2 करोड़ गरीब लोगों के जीवन में कुछ (सुखद) परिवर्तन ला पाएंगे।

  2. लेकिन यदि ये 20 लाख स्‍वार्थरहित कार्यकर्ता उन कानूनों के ड्राफ्टों को लागू करवाने में अपने प्रयास लगाएं जो ईमानदार अधिकारियों और ईमानदार वकीलों को ज्‍यादा प्रभावकारी तरीके से कार्य करने में समर्थ बनाएगा तो ईमानदार अधिकारी और ईमानदार वकील बेहतर/ अधिक अच्‍छे कानूनों का प्रयोग करके सभी 116 करोड़ नागरिकों की मदद कर पाएंगे। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि सरकार के पास विशाल ढ़ांचा/सेटअप और कर-संग्रहण की सुविधा है और कम दोहराव है।

मैं कानून-ड्राफ्टों के सक्रियतावाद का एक बड़ा समर्थक हूँ । मैं उन सभी कार्यकर्ता  नेताओं का विरोध करता हूँ जो क़ानून-ड्राफ्ट में बदलाव का विरोध करते हैं और सीधे ही मदद करने या चुनाव प्रचार करने पर जोर देते हैं। मेरे विचार से इन सभी 20 लाख स्‍वार्थ–रहित कार्यकर्ताओं को अपने कुल समय का कम से कम 10 प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत तक समय नागरिकों को यह बताने में लगाना चाहिए कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) आदि जैसे कुछ अच्‍छे कानून-ड्राफ्टों को लागू करवाने के लिए महापौरों, प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री पर दबाव डालें । और तब क्या होगा जब मेरे पास केवल 20,000 ही कार्यकर्ता होंगे। तब मैं इन 20,000 कार्यकर्ताओं/लोगों का उपयोग अन्‍य कार्यकर्ताओं और नागरिकों से मिलने और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) आदि कानूनों के बारे में बताने के लिए लगाने में करूंगा ताकि यह जानकारी/सूचना अन्‍य 20 लाख मतदाताओं तक पहुंचे और फिर उनके माध्‍यम से सभी 72 करोड़ नागरिक मतदाताओं  तक पहुँच जाए।

इसके विपरीत, लगभग सभी कार्यकर्ता नेता, जिनसे मैं मिला हूँ, वे इस बात का विरोध करते हैं कि स्‍वार्थ-रहित कार्यकर्तागण अपना समय कानून-ड्राफ्टों को बदलने में लगाएं। ज्‍यादातर कार्यकर्ता नेताओं के अनुसार, कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ता को अपना सारा समय स्‍कूल व अस्‍पताल चलाने, जनहित याचिकाएं आदि दायर करने में लगाना चाहिए और भ्रष्‍टाचार को कम करने के लिए कानूनों के क़ानून-ड्राफ्ट बदलने/बदलवाने में अपना समय बिलकुल भी नहीं लगाना चाहिए। मेरे विचार से, ये कार्यकर्ता नेता ढ़ोंगी हैं। सारांशत: मैं कार्यकर्ता नेताओं को मोटे तौर पर दो समूहों में बांटता हूँ –

श्रेणी: प्रजा अधीन