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अध्याय 15 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपकी कार्रवाई पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है ?

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मेरे विचार में, “इन भ्रष्‍टाचार-समर्थक कार्यकर्ता नेताओं की कार्रवाईयां अपर्याप्‍त हैं। नक्सलवाद जैसे लक्षण तब तक समाप्‍त नहीं होंगे जब तक पुलिसवालों, जजों, मंत्रियों, और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई ए एस) के अधिकारियों में भ्रष्‍टाचार कम नहीं होते, चाहे कितने ही स्‍कूल और अस्‍पताल चला लें। और कृपया इस मूलभूत सीमा को याद रखिए, जिसका उल्‍लेख मैंने पहले किया है। भारत में केवल 20 लाख स्वार्थ-रहित कार्यकर्ता हैं और यदि इन सभी 20,00,000 कार्यकर्ताओं को अस्‍पताल, स्‍कूल आदि चलाने के काम पर लगा दिया गया तो जजों, मंत्रियों, भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई ए एस) के अधिकारियों, भारतीय पुलिस सेवा (आई पी एस) के अधिकारियों के भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़नेवाला कोई नहीं बचेगा और इस प्रकार जजों, मंत्रियों आदि का भ्रष्‍टाचार बरकरार ही नहीं रहेगा बल्‍कि बढ़ेगा भी। और इसलिए गरीबी, नक्‍सलवाद, अपराध आदि समस्‍याएं तेजी से बढ़ना जारी रहेंगी और भारत में भीतर ही भीतर विस्‍फोटक स्‍थिति आ जाएगी। इसलिए यदि किसी कार्यकर्ता नेता ने 20 लाख कार्यकर्ताओं को इस तरह की 100 कार्यवाईयों में लगा दिया कि जिससे कुल मानव-घंटे का 1 प्रतिशत भी भ्रष्‍टाचार विरोधी कार्रवाइयों में न लगा हो तो मानवघंटा आवंटन योजना अपर्याप्‍त होगा और इससे भारत में कभी सुधार नहीं आ पाएगा।

यही कारण है कि मैं सभी कनिष्‍ठ कार्यकर्ताओं से प्रार्थना/अनुरोध करता हूँ कि वे अपने-अपने नेताओं पर भ्रष्‍टाचार विरोधी कार्रवाइयों को उनकी अपनी सूची में जोड़ने के लिए दबाव बनाएं। और उनसे मैं यह भी अनुरोध करता हूँ कि वे हर सप्‍ताह कम से कम एक घंटे भ्रष्‍टाचार विरोधी कार्यकर्ता नेताओं के साथ काम करें। इसलिए मैं सभी कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ताओं से प्रार्थना  करूंगा कि वे अपने कार्यकर्त्ता नेताओं से पूछें :  आप पुलिसवालों, जजों आदि के भ्रष्‍टाचार कम करने के लिए किस कानून/ कार्यकलाप का प्रस्ताव करते हैं?

 

(15.10)  अनेक कार्यकर्ता नेता: कानूनों के ड्राफ्टों को बदलने में समय बरबाद न करें

अनेक कार्यकर्ता नेता इस बात पर जोर देते हैं कि कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को भारत के वर्तमान कानूनों के प्रारूपों को बदलने में समय बिलकुल बरबाद नहीं करना चाहिए । मेरे विचार से, यह कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों को बदलने में समय बरबाद न करें का तरीका अपर्याप्‍त तरीका है।  वे कार्यकर्ता नेता, जो जोर देते हैं कि “कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों को बदलनें में समय बरबाद न करें”, वे अक्‍सर कहते हैं कि वर्तमान/मौजूदा क़ानून-ड्राफ्ट ही सही हैं। हमें केवल लागू करवाने की जरूरत है। यह एक झूठा दावा है। तथाकथित “कार्यान्‍वयन/लागू करवाने ” की कमी मुख्‍यत: इसलिए है क्‍योंकि कानूनों के क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप या तो अलोकप्रिय या अनैतिक हैं अथवा जानबूझकर इनमें ऐसे शब्‍द रखे/डाले गए हैं कि उनसे ज्‍यादा से ज्‍यादा भ्रष्‍टाचार हो सके। और शायद वे लोग, जो ताल ठोककर/बिना डरे यह दावा करते हैं कि “प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट को बदलने की कोई जरूरत नहीं है”, उन्‍होंने वास्‍तव में भारत के (कानूनों के) ड्राफ्टों और पश्‍चिमी देशों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट को कभी नहीं पढ़ा ही है, नहीं तो प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) तथा जूरी प्रणाली जैसे अनेक प्रारूपों पर एक सरसरी नजर डालने से ही यह साफ हो जाएगा कि भारत पश्‍चिमी देशों की तुलना में ज्‍यादा कष्‍ट में क्यों है। इसके पीछे कानूनों के वे क़ानून-ड्राफ्ट हैं जिन्‍हें काफी कमजोर शब्‍दों में लिखा गया है।

इसके अलावा, किसी ऐसे गरीब आम आदमी पर विचार कीजिए जिसका सरकारी तंत्र/सरकार में कोई रिश्‍तेदार या मित्र नहीं है। ऐसे गरीब आम आदमी के पास एक और केवल एक ही “दोस्तों का समूह” होता है – सरकार में बैठे ईमानदार आदमी अथवा स्‍वार्थ-रहित कार्यकर्तागण अथवा ईमानदार वकील। और ऐसे ईमानदार अधिकारियों अथवा स्‍वार्थरहित कार्यकर्ता अथवा ईमानदार वकील के पास गरीब (आम) आदमी की सहायता करने के लिए केवल एक ही साधन होता है- कानूनों के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट । इस प्रकार यदि कनिष्‍ठ/छोटे कार्यकर्ता भारत के कानूनों के ड्राफ्टों में सुधार करने के लिए समय देता है तो ईमानदार सरकारी अधिकारीगण, स्‍वार्थरहित कार्यकर्तागण और ईमानदार वकील लोग अनेक प्रकार से आम लोगों की मदद कर पाएंगे। इसलिए यदि कोई कार्यकर्ता नेता कानूनों के प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट में सुधार करने से मना करता है तो कनिष्‍ठ कार्यकर्ताओं को दूसरे वैसे कार्यकर्ता नेताओं के साथ प्रति सप्‍ताह एक घंटे का समय देना चाहिए जो भारत में कानूनों के ड्रॉफ्टों में बदलाव/परिवर्तन लाने के लिए समय देते हैं और खतरा मोल लेते हैं।   

 

(15.11)  कार्यकर्ता नेता-` व्यवस्था परिवर्तन / सिस्टम को बदलेंगे` , लेकिन कानूनों के प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट नहीं देते

कार्यकर्ता नेताओं द्वारा अपनाए जाने वाले सबसे ज्‍यादा समय बरबाद करने वाले तरीकों में से एक तरीका यह है कि वे यह दावा तो करते हैं कि “वे व्यवस्था परिवर्तन/सिस्टम को बदलना चाहते हैं” लेकिन वे सिस्टम में बदलाव लाने के लिए अपने प्रस्‍तावित कानूनों का प्रस्‍ताव देने से खुले-आम मना कर देते हैं। और जब कोई व्‍यक्‍ति उनसे सिस्टम को बदलने के लिए उनके प्रस्‍तावित कानूनों के ड्राफ्टों के बारे में पूछता है तो वे कार्यकर्ता नेता दसों (कई) बहाने बनाते हैं :-

1.    बहाना 1-   मैं प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का खुलासा तब करूंगा जब मेरे संगठन में हजारों या लाखों या करोड़ों सदस्‍य हो जाएंगे।

2     बहाना 2-    मैं प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का खुलासा तब करूंगा जब मैं सांसद या विधायक बन जाउंगा।

3.    बहाना 3-    मैं प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का खुलासा तब करूंगा जब मेरे संगठन में 200-300 सांसद हो जाऐंगे।

4.    बहाना 4-    प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट की जरूरत तो है लेकिन इस समय उनकी जरूरत नहीं है।

5.    बहाना 5-    ड्राफ्टों की कोई जरूरत नहीं है। क़ानून-ड्राफ्ट बेकार/अनुपयोगी होते हैं । सिस्टम को बदलने के लिए केवल राजनैतिक इच्‍छाशक्‍ति की जरूरत है।

प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्‍ध न कराने के ये सभी बहाने ओछे/बेमानी हैं और कुछ तो अनैतिक भी हैं। सर्वप्रथम, सिस्टम में बदलाव लाने के लिए प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट जरूरी है और प्रस्‍तावित बदलाव के कुछ साइड-इफेक्‍ट भी हैं या नहीं, यह मुख्‍यत: प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट के खण्‍डों पर निर्भर करेगा। यदि प्रारूप में गलती से या जानबूझकर कमजोर शब्‍द डाले गए हैं तो प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट से लाभ होने की बजाए हानि ज्‍यादा होगी। और तथाकथित दलील कि मैं अपना प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट तब प्रकाशित करूंगा जब मेरे सदस्‍यों की संख्‍या लाखों या करोड़ों में हो जाएगी, यह भी उतनी ही ओछी दलील है। कोई हिंसात्‍मक लड़ाई लड़ने करने के लिए कुछ न कुछ सदस्‍यों की जरूरत तो पड़ती ही है। लेकिन एक अहिंसात्‍मक आन्‍दोलन प्रारंभ करने के लिए कुछ सदस्‍यों की भी जरूरत नहीं होती केवल एक ही व्‍यक्‍ति ही काफी होता है। कुल मिलाकर वे लोग जो सिस्टम/व्यवस्था में सुधार करना तो चाहते हैं लेकिन इसके लिए कोई प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्‍ध नहीं कराते, वे सीधे-सीधे कार्यकर्ताओं का समय बरबाद कर रहे हैं।

श्रेणी: प्रजा अधीन