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अब विपणन/मार्केटिंग/दुकानदारी और अच्छी राजनीति ये दोनों कैसे अलग-अलग हैं? बहुत से अन्तर हैं जिनमें से मैं सबसे महत्वपूर्ण अन्तर पर प्रकाश डालूंगा। विपणन/मार्केटिंग में जब तक कम्पनी के मालिक के पास पैसा है तब तक वह कितने भी बुद्धिजीवी और सक्षम लोगों को किराए पर या पैसा देकर काम पर रख सकते हैं और कमिशन आधारित रूपरेखा बनाकर वह नियत लागतों को कम से कम कर सकता है। इस तरह विपणन/मार्केटिंग में पैसे का महत्व है, प्रतिबद्ध/समर्पित लोगों की बड़ी संख्या का नहीं। लेकिन अच्छी राजनीति इससे बिलकुल विपरित है । किसी भी देश में “अच्छी राजनीति” में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात पैसा नहीं होती है बल्कि समर्पित व्यक्तियों की होती है। अच्छी राजनीति में पैसे की जरूरत अवश्य होती है लेकिन यह मुद्दा दूसरे स्थान पर आता है। और सबसे बड़ा और पहला मुद्दा समर्पित व्यक्ति ही होते हैं। इसलिए कौन व्यक्ति समर्पित व्यक्ति है, मैं इसके लिए मोटे तौर पर दो मानदण्ड रखूंगा।
पहला मानदण्ड – एक समर्पित व्यक्ति वह है जो हर सप्ताह एक घंटे काम करने का इच्छुक हो और पैसे, प्रसिद्धि/नाम, सत्ता आदि की उम्मीद किए बिना गरीबी कम करने और पुलिसवालों, मंत्रियों, न्यायालयों में भ्रष्टाचार कम करने में अपनी वार्षिक आय का 5 प्रतिशत खर्च करने की इच्छा रखता हो। |
दूसरा मानदण्ड – एक समर्पित व्यक्ति वह है जो प्रति हर सप्ताह एक घंटे काम करने का इच्छुक हो और अपनी वार्षिक आय का 5 प्रतिशत खर्च करने की इच्छा रखता हो, अपनी सम्पत्ति का 5 प्रतिशत दांव पर लगाने का भी इच्छुक हो और पैसा प्रसिद्धि/नाम, सत्ता आदि की उम्मीद किए बिना गरीबी कम करने और पुलिसवालों, मंत्रियों, न्यायालयों में भ्रष्टाचार कम करने के लिए अपने जीवन के 6 महीने जेल में बिताने को तैयार हो। |
(15.5) “अच्छी राजनीति” में सबसे महत्वपूर्ण मूलभूत / प्रमुख सीमा |
कुछ समय के लिए हमलोग पहले मानदण्ड पर ही चर्चा करेंगे। इस प्रकार भारत देश में (अथवा किसी देश में) कितने लोग हर सप्ताह लगभग एक घंटा समय देना और अपनी वार्षिक आय का लगभग 5 प्रतिशत गरीबी कम करने और पुलिस/न्यायालयों में भ्रष्टाचार कम करने के लिए लगाना चाहेंगे? और वह भी बदले में नाम, पैसा, सत्ता आदि की चाह किए बिना? भारत के ऊपर के पांच करोड़ व्यक्तियों में से केवल 3 से 5 प्रतिशत लोग अपनी आय का एक प्रतिशत खर्च कर सकते हैं और केवल 3 से 5 प्रतिशत लोग गरीबी / भ्रष्टाचार कम करने के लिए एक मिनट का समय भी लगाना चाहेंगे। इसलिए भारत में गरीबी / भ्रष्टाचार कम करने के लिए अपनी आय का 5 प्रतिशत और हर सप्ताह एक घंटा समय देने की इच्छा रखने वाले लोगों की संख्या केवल लगभग 15 लाख से 20 लाख है। यह सीमा कि भारत में केवल 15 लाख से 20 लाख सच्चे कार्यकर्ता हैं, यह अच्छी राजनीति की मूलभूत सीमा है । मार्केटिंग/विपणन/दुकानदारी और व्यावसायिक राजनीति में ऐसी कोई सीमा नहीं होती । मेरे विचार से, सभी जूनियर/कनिष्ठ कार्यकर्ताओं को अपने मन में हमेशा यह सीमा याद रखनी चाहिए और प्रत्येक कार्यकर्ताओं को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि अपर्याप्त और क्लोन – निगेटिव कार्यकलाप पर खर्च किया गया कोई भी क्षण आनेवाले समय में फिर से गुलाम बनने से बचने में भारत की मदद नहीं करेगा।
(15.6) असली कार्यकर्ता नेता बनाम नकली कार्यकर्ता नेता |
मैं मोटे तौर पर कार्यकर्ताओं को दो समूह में बांटता हूँ। कनिष्ठ कार्यकर्ता और कार्यकर्ता नेता। कनिष्ठ कार्यकर्ता सक्रियवाद/एक्टिविज्म अथवा राजनीति में कोई कैरियर/जीविका नहीं बनाना चाहता है। ये लोग कार्यकर्ता बनकर पैसे कमाने में रूचि नहीं रखते और सबसे कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता केवल पार्ट-टाइम कार्य करना चाहते हैं जबकि सक्रियवादी/कार्यकर्ता नेता जैसे कि मैं लेखक, सक्रियवाद/एक्टिविज्म के काम में कई-कई घंटे लगा देते हैं और हमारी प्रत्यक्ष या परोक्ष राजनीतिक महत्वकांक्षाएं हो सकती हैं। लगभग सभी कनिष्ठ कार्यकर्ता, जिनसे मैं अबतक मिला हूँ, वे मुझे सच्चे लगे। लेकिन अधिकांश कार्यकर्ता नेता, जिनसे मैं मिला, वे मेरे विचार में, नकली/बनावटी लगे। मेरे विचार से, अधिकांश सक्रियवादी नेता कम ही समय में पैसा बनाना चाहते हैं अथवा उनके दीर्घकालिक उच्च “गलत राजनीतिक लक्ष्य” होते हैं । अब इसका कनिष्ठ कार्यकर्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है? यह बात कैसे मायने रखती है कि कार्यकर्ता नेता असली है या नकली ?
यह बात क्यों मायने रखता है कि कार्यकर्ता नेता वास्तविक है या नकली ?
एक कनिष्ठ/छोटा कार्यकर्ता, जो भारत में गरीबी और भ्रष्टाचार कम करना चाहता है, वह स्वतंत्र रूप से काम करेगा या फिर किसी कार्यकर्ता नेता के साथ काम करेगा। मैं सुझाव दूंगा कि कनिष्ठ कार्यकर्ता को स्वतंत्र रूप से काम करना चाहिए, लेकिन कई कनिष्ठ कार्यकर्ता यह मानते हैं कि उन्हें काम करने के लिए एक समूह की जरूरत होगी और इसलिए अकसर वे किसी समूह वाले कार्यकर्ता नेता की तलाश में रहते हैं । अब यदि सक्रियवादी नेता नकली हुआ तो कनिष्ठ कार्यकर्ता अपना सारा समय ऐसे कार्यों को करने में व्यर्थ करते हुए बिता देगा जिससे गरीबी और भ्रष्टाचार बिलकुल कम नहीं होगा। इसलिए यदि कनिष्ठ/छोटा कार्यकर्ता गरीबी भ्रष्टाचार कम करने और सेना में सुधार करने का लक्ष्य रखता है तो उसे इस बात का पता लगाना होगा कि कौन सा कार्यकर्ता नेता सही/असली है और कौन कार्यकर्ता नकली । कैसे कोई कनिष्ठ कार्यकर्ता किसी वास्तविक और किसी नकली कार्यकर्ता नेता के बीच अन्तर करेगा? एक तरीका जिसका सुझाव मैं देता हूँ – कनिष्ठ कार्यकर्ता को उन सभी कार्यवाइयों की जांच करनी चाहिए, जिसका कार्यकर्ता नेता प्रस्ताव कर रहा है और जिसका वह विरोध कर रहा है। कृपया ध्यान दें : कनिष्ठ कार्यकर्ता को उन कार्यवाइयों को देखना चाहिए जिसका सक्रियवादी नेता विरोध कर रहा है। यदि कार्यकर्ता नेता जानबूझकर अपर्याप्त और क्लोन निगेटिव कार्यवाइयों तक सीमित रहता है और वह कार्यकर्ता नेता क्लोन पॉजिटिव कार्यवाइयों और कार्यविधियों पर काम करने से मना करता है तो मेरे विचार से वह कार्यकर्ता नेता नकली आदमी है । मैं पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे “अच्छी राजनीति की सबसे मूलभूत सीमा” को याद करें – भारत में केवल लगभग 20,00,000 सच्चे कार्यकर्ता हैं इसलिए यदि भारत में सभी 20,00,000 सच्चे कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता अपर्याप्त कार्रवाइयों अथवा क्लोन-निगेटिव कार्यकलापों पर समय बरबाद करनेमें लगे रहेंगे तो गरीबी/भ्रष्टाचार में कोई कमी नहीं आएगी और भारतीय सेना में कोई सुधार नहीं होगा और भारत तुलनात्मक रूप से कमजोर से कमजोरतर होता जाएगा और एक ऐसी सीमा आएगी जब अमेरिका, इंग्लैण्ड, चीन, सउदी-अरब जैसा कोई दुश्मन भारत को बरबाद कर देगा। इसलिए यदि कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता वास्तव में भारत को आक्रमण अथवा टूटने अथवा गृहयुद्ध से बचाना चाहते हैं तो उन्हें पर्याप्त और क्लोन पाजिटिव संकल्पना/विचार के बारे में जागरूक बनाना चाहिए और अपने नेता के कार्य का विश्लेषण करना चाहिए ।