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अध्याय 15 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपकी कार्रवाई पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है ?

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 प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपकी कार्रवाई पर्याप्‍त और क्‍लोन पॉजिटिव है?

 

(15.1) यह कैसा प्रश्‍न है ? और यह क्‍लोन पॉजीटिव होना क्‍या बला है?

भारत में स्‍वार्थ-रहित कार्यकर्ता बुरी तरह असफल हो रहे हैं। वर्षों के प्रयास के बावजूद खाद्य-गरीबी(स्वस्थ, सस्ता, भोजन प्राप्त करने में असमर्थता) में कोई कमी दिखाई नहीं पड़ रही है। पुलिस/न्‍यायालय में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पश्‍चिमी देशों में कार्यकर्ता अपने देशों में गरीबी और भ्रष्‍टाचार कम करने में सफल रहे हैं जबकि हम असफल होते रहे हैं। क्‍यों? स्‍वार्थ-रहित कार्यकर्ता इसलिए नहीं असफल हो रहे हैं कि उनकी संख्‍या कम है बल्‍कि भारत में सभी स्‍वार्थ-रहित कार्यकर्तागण अपर्याप्‍त और क्‍लोन निगेटिव  कार्यों में लगे हैं । इसलिए “अपर्याप्‍त” कार्य क्‍या है? और यह क्‍लोन पाजिटिव होना और क्‍लोन निगेटिव होना क्‍या होता है?

 

(15.2) इस पाठ का उद्देश्‍य / प्रयोजन

इस पाठ और इससे अगले पाठ में कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत की गई है। इस पाठ और इससे अगले पाठ में मैं यह दिखलाने का प्रयास करूंगा कि कैसे मेरा प्रस्‍ताव (यह कि कार्यकर्ताओं को नागरिकों से कहना चाहिए कि वे प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों, महापौरों पर `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) कानून पारित करने के लिए दबाव डालें), अधिकांश अन्‍य दूसरे तरीकों से, जिसका प्रस्‍ताव अन्‍य कार्यकर्ता नेता कर रहे हैं, कम महंगा और ज्यादा प्रभावशाली है। लेकिन मेरा उद्देश्‍य यह नहीं है कि मैं दूसरे संगठनों के कार्यकर्ताओं से कहूं कि वे अपना संगठन छोड़कर मेरे संगठन में आ जाए। मेरा प्रयोजन कार्यकर्ताओं को इस बात के लिए राजी करना है कि वे अपने नेताओं से कहें कि वे (नेता) अपने समूह के ऐजेंडे में `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) आदि को शामिल कर लें । मेरे विचार से, यह भारत में `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) लाने में ज्‍यादा तेज तरीका है और कार्यकर्ताओं से `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) को अपने संगठन के एजेंडे में शामिल करने के लिए कहना क्‍लोन पाजिटिव है।

 

(15.3) सबसे महत्‍वपूर्ण खतरा जिसका सामना भारतीय कर रहे हैं – और अधिकांश सक्रियवादी नेता इसकी अनदेखी कर रहे हैं

यदि मैं पांच सबसे बड़े और महत्‍वपूर्ण खतरे के बारे में पूछूं जिनका सामना आज भारत कर रहा है तो कोई व्‍यक्‍ति इस्लामी आतंकवाद अथवा नक्‍सलवाद अथवा गरीबी अथवा भ्रष्‍टाचार अथवा शिक्षा की गिरती हालत आदि को बताएगा। ये खतरे वास्‍तव में पहले पांच खतरों की सूची में रखे जाने लायक हैं, इनमें कुछ व्यक्तिगत धारणा हो सकती है। लेकिन ज्‍यादातर नागरिक उस सबसे बड़े खतरे की अनदेखी कर रहे हैं जिसका सामना आज भारत कर रहा है। यह है भारतीय सेना का कमजोर होते जाना। और तब इसका परिणाम होगा भारत का इराकीकरण और लिबरेशन ऑफ इंडिया अर्थात  पश्‍चिमी देशों द्वारा भारत को फिर से गुलाम बनाया जाना।

अधिकांश भारतीय समाचारपत्र मालिकों,टेलिविजन चैनल मालिकों और प्रमुख/प्रसिद्द  बुद्धिजीवियों के बहुराष्‍ट्रीय कम्‍पनियों से आर्थिक सम्बन्ध हैं । और वे इस बात पर सहमत हो गए हैं कि – भारतीय सेना दिनों-दिन कमजोर होती जा रही है – इस समस्‍या को उजागर नहीं करेंगे। लेकिन, भारतीय सेना आज इतनी कमजोर है कि पश्‍चिमी देश /चीन जिस दिन भारत पर आक्रमण करने का निर्णय कर लें उस दिन भारत को नाश/तहस-नहस कर सकते हैं और अब हमलोगों के पास केवल कुछ ही वर्ष बचे हैं जिसके बाद पश्‍चिमी देश/चीन भारत को गुलाम बनाने का निर्णय कर सकते हैं। पश्‍चिमी देश/चीन भारत पर सीधे आक्रमण न करके पाकिस्‍तानी सेना को धन, हथियार और सेटेलाइट/उपग्रह द्वारा प्राप्‍त सूचनाएं दे सकते हैं और भारत में एक जातिसंहार करवा सकते हैं अथवा पश्‍चिमी देश/चीन नक्‍सलियों को सबसे आधुनिक/अच्‍छे हथियार देकर भारतीय सेना को तहस-नहस करने के लिए कह सकते हैं (जैसा कि नेपाल में हुआ है)। और यदि हम अगले कुछ वर्षों में अपनी सेना में सुधार नहीं करते हैं तो भारत एक “इराक” बन सकता है। अब सेना में सुधार करके उसे अमेरिका के बराबर ताकतवर बनाना आसान है, यदि एक बार कुछ अच्‍छे कानून पारित हो जाएं। लेकिन इन कानूनों को लागू करवाने के लिए कार्यकर्ताओं का समय चाहिए और यदि कार्यकर्तागण इन कानूनों को लागू करवाने के लिए समय नहीं देने का निर्णय कर लेते हैं तो मुझे भारतीय सेना में सुधार लाने को कोई रास्ता नहीं दिखता ।

इसलिए जो कार्यकर्ता, जिसके मुद्दों में “सेना में सुधार” के लिए आवश्‍यक कानूनों/नीतियों के क़ानून-ड्राफ्ट शामिल नहीं हैं तो वह भारतीयों को उस सबसे खतरनाक खतरे से बचाने में मदद नहीं कर रहा है, जिस खतरे का सामना भारत को आनेवाले भविष्‍य में करना पड़ेगा। एक तुलना के रूप में ,एक शहर पर विचार कीजिए जो अगले 24 घंटे में एक भीषण बाढ़ का सामना करने वाला है। अब, आज के भारत के सभी कार्यकर्ता जिनके ऐजेंडे में “सेना में सुधार” की नीतियां/कानूनों के क़ानून-ड्राफ्ट नहीं हैं, वे उस शहर में वैसे “भलाई करने वाले” की तरह हैं जो सभी अच्‍छे कार्य तो कर रहे हैं, लेकिन वे नागरिकों को आने वाले बाढ़ की सूचना/जानकारी नहीं दे रहे हैं, और न ही उन्‍हें बाढ़ से बचने अथवा बाढ़ न आने देने के तरीके/रास्‍ते ही बता रहे हैं। मैं सभी सच्‍चे कार्यकर्ताओं से अनुरोध करूंगा कि वे वैसे ऐजेंडों/कार्यसूची से बचें और उन ऐजेंडों को अपनाएं जिनमें “सेना में सुधार” एक महत्‍वपूर्ण मुद्दा/बिन्‍दु है।

 

(15.4)  अच्छी राजनीती बनाम  दुकानदारी राजनीति

आम व्‍यावसायिक राजनीती वह है जहां लोग राजनीतिक दलों में शामिल होते हैं अथवा मतदाताओं को लुभाने/प्रभावित करने के लिए दान-भलाई का काम करते हैं, जिससे चुनाव जितने में मदद मिलती है और फिर चुनाव जीतने के बाद घूस वसूलना शुरू हो जाता है अथवा चुनाव जीतनेवालों से आर्थिक मदद मिलती है। यह व्‍यावसायिक राजनीति कई प्रकार से विपणन/मार्केटिंग/दुकानदारी से मिलता-जुलता काम है। साम-दाम-दण्‍ड-भेद लगाकर/हर तरीके अपनाकर भी व्‍यावसायिक राजनीतिज्ञों अथवा व्‍यावसायिक गैर सरकारी संगठनों का काम मतदाताओं को लुभाना/ललचना होता है। पर इसके विपरित “अच्‍छी राजनीति” भी होती है जिसमें कार्यकर्ता गरीबी और भ्रष्‍टाचार कम करने के लिए काम कर रहे होते हैं।यह “अच्‍छी राजनीति” विपणन/मार्केटिंग/दुकानदारी से पूरी तरह भिन्‍न/अलग और अकसर उसके विपरित होती है। विपणन/मार्केटिंग में ‘क’‘ख’ को इस बात पर राजी करने की कोशिश कर रहा होता है कि ‘ख’ को कुछ चीज खरीद लेना चाहिए । और इससे ‘क’ अथवा दोनो (‘क’ और ‘ख’) को फायदा होगा । जबकि “अच्‍छी राजनीति” में दो समर्पित और धनवान/संपन्न व्‍यक्‍ति ‘क’ और ‘ख’ यह हिसाब बैठाने की कोशिश कर रहे होते हैं कि कैसे गरीबों और भ्रष्टाचार के शिकार लोगों को मदद की जा सकती है। न तो ‘क’ और न ही ‘ख’ को कोई अपना फायदा चाहिए। वास्‍तव में दोनो जानते हैं कि इससे आखिर में उसका बहुत नुकसान “कोई फायदा नहीं” होना निश्‍चित है। इस तरह गहराई से देखें तो “अच्‍छी राजनीति” अकसर विपणन/मार्केटिंग से उल्टा है और इसलिए, विपणन/मार्केटिंग में प्रयोग में लाए जाने वाले बहुत से प्रेरक/प्रोत्‍साहन आधारित तरीके “अच्‍छी राजनीति” में बिलकुल ही काम नहीं करते। कुछ हद तक नि:स्‍वार्थी होना अच्‍छी राजनीति के लिए जरूरी है पर यह नि:स्‍वार्थ भाव विपणन/मार्केटिंग/दुकानदारी के ज्‍यादातर मामलों में बिलकुल जरूरी नहीं होता। “ अच्छी राजनीती” में व्यक्ति अंशकालीन कार्य करता है और अपने कमाया हुआ धन और समय लगाता है उन क़ानून-ड्राफ्ट के प्रसार के लिए जो देश की व्यवस्था बदल सकते हैं | “दुकानदारी राजनीती” में व्यक्ति पुरे समय उसी में लगता है और अपने पालन-पोषण और प्रचार के लिए दान पर निर्भर रहता है जिससे उसके निर्णय दान करता के स्वार्थ से प्रभावित होती है |   

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