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अमेरिकियों के पास केवल जिला/राज्य स्तर के अधिकारियों को ही वापस बुलाने/हटाने का अधिकार है राष्ट्रीय स्तर पर नहीं। लेकिन अमेरिका के आम नागरिकजन का सशस्त्र होने ने रिकाल (वापस बुलाने के अधिकार) का काम किया राष्ट्रिय स्तर पर | भारत में हम जनता के पास हथियार नहीं है । नक्सलियों की तरह के कुछ लोग हैं जो ये समझते हैं कि गरीबी से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय हथियार ही है। मैं हम आम जनता के पास शस्त्रों/हथियार होने का समर्थन करता हूँ, लेकिन गरीबी की समस्या के समाधान के लिए प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकॉल के प्रयोग पर ही जोर देता हूँ तथा समाधान के तौर पर प्राथमिकता से/सबसे पहले शास्त्रों/हथियारों के प्रयोग को सही नहीं मानता। आम जनता भूख से मर सकती है जैसे कि 1940 के दशक में बंगाल में मौतें हुई थीं या फिर वह हथियार उठा सकती है जैसा कि 1916 में रूस में हुआ था या फिर हथियार उठाने कि धमकी यहाँ भी कल्याणकारी राज्य/अच्छाई का माहौल बना सकती है जैसा कि 1932 में अमेरिका में बना था। पर ये वो रास्ते/तरीके हैं जिनका सुझाव मैं अभी की परिस्थिति में नहीं दूँगा। मैं नेताओं, बुद्धिजीवियों तथा विशिष्ट जनों के खिलाफ हथियारों के उपयोग की बजाए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) के प्रयोग की कोशिश करना चाहता हूँ।
इसलिए इस प्रश्न कि: “यह कैसे हुआ कि 1932-39 में पश्चिम देशों में राष्ट्रीय स्तर पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल की प्रक्रिया/विधि न होने के बावजूद जनता की दशा में सुधार हुआ?” का पुनः जवाब दे रहा हूँ। जवाब है: क्योंकि 70 प्रतिशत अमेरिकियों के पास बंदूकें थीं।
अभी, निचली 98 प्रतिशत भारतीय जनता के पास बंदूकें नहीं हैं। मैं स्वीटजरलैण्ड की ही तरह का एक ऐसा भारत चाहता हूँ, जहाँ 100 प्रतिशत नागरिकों के पास बंदूकें हैं, लेकिन यह पर सिर्फ बाहरी ताकतों जैसे पाकिस्तान, चीन, अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि के आक्रमण से भारत की रक्षा के लिए न कि गरीबी तथा भ्रष्टाचार की समस्याओं के समाधन के लिए। गरीबी तथा भ्रष्टाचार की समस्या के लिए मैं प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जजों/न्यायाधीशों आदि के खिलाफ प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून को प्रमुखता दूँगा।
सारांश :
पश्चिमी देशों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल की जरूरत महसूस नहीं हुई क्योंकि वहां हथियारबन्द नागरिक समाज था। हमारे यहां आज की स्थिति के अनुसार हथियारबन्द नागरिक समाज नहीं है और इसलिए हमें राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तरों पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल प्रक्रिया/विधि की लानी ही होगी।
(6.22) प्रजा अधीन राजा / राइट टू रिकॉल के विरूद्ध दिए जाने वाले तर्कों का जवाब |
पश्चिमी देशों में सुधार आया क्योंकि वहाँ निष्कासन विधि/प्रक्रिया (ज्यूरी तथा रिकॉल विधि) तथा जनता को भरपूर हथियार देकर ताकतवर बनाया गया था। पश्चिमी नागरिकों के विकास के केवल ये ही दो प्रमुख कारण थे। तथा भारत के बुद्धिजीवियों ने इन दोनों ही बातों का विरोध किया है। अर्थात उन्होंने भारत में जनता के सशस्त्र होने का विरोध किया। साथ ही साथ रिकॉल ज्यूरी का भी विरोध किया। दूसरे शब्दों में, भारत के बुद्धिजीवियों ने यह सुनिश्चित किया है कि भारत की जनता कमजोर, विनम्र तथा गरीब बनी रहे तथा इसके बाद वे इनकी दुर्दशा का आरोप ‘राजनैतिक सभ्यता’ की झूठी कहानी पर मढ़ते रहें।
अब मैं पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे ध्यान दें कि किस प्रकार ये भारतीय “बुद्धिजीवी” छात्रों को झूठों का पुलिन्दा थमाते हैं या फिर आधा-अधूरा सच बताते हैं |
(1) भारत के बुद्धिजीवी छात्रों को इस बारे में कोई जानकारी नहीं देते कि यूरोप में कोरोनर की ज्यूरी सिस्टम आने के बाद से ही वहाँ की पुलिस में सुधार हु , जिसमें आम नागरिकों क्रूर अधिकारियों को उनके पदों से हटा सकते हैं। केवल इसी ज्यूरी सिस्टम के आने के बाद ही पुलिसकर्मियों की क्रूरता/उत्पीड़न तथा जनता को लूटने की घटनाओं में कमी आई तथा अमेरिका में समृद्धि आना शुरू हुआ।
(2) भारत के बुद्धिजीवियों ने छात्रों को इस तथ्य के बारे में कोई जानकारी नहीं दी कि ज्यूरी और रिकॉल के तरीके का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाना ही अमेरिकी जिला तथा राज्य प्रशासन में कम भ्रष्टाचार के पीछे सबसे प्रमुख कारण है ।
(3) भारत के बुद्धिजीवियों ने छात्रों/कार्यकर्ताओं को इस तथ्य/सच से वंचित रखा कि 1930 के दशक में अमेरिका की संघीय सरकार ने कल्याण राज्य का निर्माण केवल इस कारण से किया कि वहां की जनता पूर्ण रूप से अस्त्र शस्त्र सुसज्जित थी। इसके बजाय भारत के बुद्धिजीवियों ने ये अफवाह फैलाई कि 1930 के दशक में कल्याण राज्य का उदय इस कारण हुआ कि वहाँ के नागरिकगण अनुभवी/समझदार थे। इस प्रकार गरीबी का सारा आरोप वे भारत के नागरिकों पर ही डाल देते हैं ।
सार ये कि भारत के बुद्धिजीवी भारतीय लोकतंत्र को बौना ही बनाये रखने पर जोर देते हैं – जिसमें कोई रिकॉल प्रणाली न हो, ज्यूरी प्रणाली न हो, प्रशासनिक तथा न्यायतंत्र के लिए कोई चुनाव न हो तथा हम आम जनता के पास हथियार न हो। और जब लोकतंत्र न होने की कमी की वजह से गरीबी से मौतें होती हैं, भ्रष्टाचार बढ़ता है तथा सैन्य कमजोरी बढ़ती है तो वे तुरंत हम आम जनता, हमारी राजनैतिक संस्कृति तथा धर्म पर दोष मढ़ देते हैं।
(6.23) `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू रिकाल`(भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार) के विरोधी , नकली `प्रजा अधीन-राजा`-समर्थक के लक्षण / चिन्ह और चालें |
`प्रजा अधीन-राजा` कार्यकर्ता मित्रों ,
कृपया ध्यान दें कि अभी `राईट टू रिकाल`/`प्रजा अधीन-राजा` नाम लोगों में बढ़ता जा रहा है | और नेताओं पर, अपने कार्यकर्ताओं द्वारा दबाव पड़ रहा है , `राईट टू रिकाल , नागरिकों द्वारा ` के बारे में बात करने के लिए | इसीलिए , नेताओं को अब मजबूरी से `प्रजा अधीन-राजा`/`राईट टू –रिकाल, नागरिकों द्वारा` के बारे में बात करने पर मजबूर हो जाते हैं |
लेकिन `आम-नागरिक`-विरोधी लोग असल में `भ्रष्ट को नागरिक द्वारा बदलने/सज़ा देने के तरीके/प्रक्रियाएँ`(राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा) नहीं चाहते |
उनको परवाह नहीं है कि देश विदेशी कंपनियों और विदेशी लोगों के हाथ बिक जायेगा और 99% देशवासी लुट जाएँगे |