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अध्याय 7 – चौथा आर.आर.जी (प्रजा अधीन समूह) का प्रस्ताव – प्रजा अधीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (प्रधान जज)

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 चौथा आर.आर.जी (प्रजा अधीन समूह) का प्रस्ताव – प्रजा अधीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश(प्रधान जज)

 

(7.1) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) द्वारा जजों को बदलने का नागरिकों का अधिकार(राईट टू रिकाल जज / प्रजा अधीन-जज)

जिस दिन भारत की जनता दबाव डालकर प्रधान मंत्री से जनता की आवाज (सूचना का अधिकार –2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करवा लेती है, उसी दिन मैं प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट जज, प्रजा अधीन – हाई कोर्ट न्यायाधीश/जज आदि को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार –2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली के खंड-1 के तहत एफिडेविट के रूप में पेश कर दूँगा।  मुझे पूरा विश्वास है कि इस देश के 70 करोड़ नागरिक मतदाता इसका विरोध बिल्कुल नहीं करेंगे ,बल्कि हो सकता है कि वे इस पर हाँ पंजीकृत/दर्ज कर दें। और तब मेरे विचार से, उस तीन पंक्ति के जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली कानून का उपयोग करके लोग “प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट जज/न्यायाधीश, प्रजा अधीन – हाई कोर्ट जज/न्यायाधीश” का मात्र 3-4 महीनों में ही प्रयोग करने लगेंगे । प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) को न्यायाधीशों पर लागू करने के कुछ हफ़्तों बाद ही, न्यायालयों में भ्रष्टाचार न के बराबर रह जाएगा।

यदि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समर्थकों को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्‍हें संसद में बहुमत ही नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्‍हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है कि) उनके “अपने ही” सांसद बिक जाएंगे और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद में उन्‍होंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पर जन-आन्‍दोलन पैदा करने पर ध्‍यान लगाना चाहिए और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए ।

 

(7.2) राईट टू रिकल-सुप्रीम कोर्ट मुख्‍य न्यायाधीश (प्रजा अधीन सुप्रीम-कोर्ट प्रधान जज) ड्रॉफ्ट की संवैधानिक प्रामाणिकता

भारत का बुद्धिजीवी वर्ग मूर्ति- पूजक है,  अर्थात न्याय-मूर्ति-पूजक……मतलब यह कि ये लोग सुप्रीम कोर्ट/उच्‍चतम न्‍यायालय एवं हाई कोर्ट/उच्‍च न्‍यायालय के न्यायाधीशों/जजों की पूजा- अर्चना करते हैं।  इसीलिए सभी बुद्धिजीवियों ने सुप्रीम कोर्ट  के जजों के विरूद्ध प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) को सख्त नापसंद किया है क्योंकि यह नागरिकों को उच्‍चतम न्‍यायालय के न्यायाधीशों से ज्यादा ताकतवर बना देता है। इसलिए बुद्धिजीवियों ने अपने रटे-रटाए बहस/जवाब का सहारा लिया है – जिस क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप का प्रस्‍ताव मैंने पेश किया है वह असंवैधानिक है । इन सभी बुद्धिजीवियों से मैंने एक ही प्रश्न पूछा: क्या आप मुझे बता सकते हैं कि इस क़ानून-ड्राफ्ट के दस खण्डों में से कौन सा खण्‍ड/क्‍लॉज आपके विचार से असंवैधानिक है? और आज तक किसी भी बुद्धिजीवी ने इसका उत्तर देने की हिम्मत नहीं की है।

यदि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) समर्थकों को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्‍हें संसद में बहुमत ही नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्‍हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है कि) उनके “अपने ही” सांसद बिक जाएंगे और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद, बाद में उन्‍होंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पर जन-आन्‍दोलन पैदा करने पर ध्‍यान लगाना चाहिए और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए ।

 

(7.3) उस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का क़ानून-ड्राफ्ट जिसके माध्‍यम से प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज (उच्‍चतम न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश) कानून बनेगा

 

निम्‍नलिखित के लिए प्रक्रिया

प्रक्रिया/अनुदेश

1

  1. (1)  “सकता है” शब्‍द का अर्थ कोई नैतिक-कानूनी बाध्‍यता नहीं है।

  2. (2) SC-Cj का अर्थ उच्‍चतम न्‍यायालय का मुख्‍य न्‍यायाधीश है।

  3. (3) SCj का अर्थ उच्‍चतम न्‍यायालय का न्‍यायाधीश है।

  4. (4) यह सरकारी अधिसूचना(आदेश) केवल तभी प्रभावी होगा जब सभी नागरिक-मतदाताओं में से 50 प्रतिशत से ज्‍यादा ने इसपर हां दर्ज करवा दिया हो और इसके बाद उच्चतम न्‍यायालय के प्रत्‍येक न्‍यायाधीश/जज ने इसका अनुमोदन/स्वीकृति कर दिया हो।

2

प्रधानमंत्री (अथवा उसका वह सचिव जिसे उसने नामित किया हो)

30 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी नागरिक जो राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) बनना चाहता हो वह प्रधानमंत्री अथवा प्रधानमंत्री द्वारा नामित सचिव के समक्ष/ कार्यालय स्‍वयं अथवा किसी वकील के जरिए एफिडेविट/शपथपत्र लेकर जा सकता है। प्रधानमंत्री का सचिव सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्‍क लेकर राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यताप्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) के पद के लिए उसकी उम्‍मीदवारी को स्‍वीकार कर लेगा।

श्रेणी: प्रजा अधीन