सूची
- (7.1) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) द्वारा जजों को बदलने का नागरिकों का अधिकार(राईट टू रिकाल जज / प्रजा अधीन-जज)
- (7.2) राईट टू रिकल-सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश (प्रजा अधीन सुप्रीम-कोर्ट प्रधान जज) ड्रॉफ्ट की संवैधानिक प्रामाणिकता
- (7.3) उस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का क़ानून-ड्राफ्ट जिसके माध्यम से प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज (उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश) कानून बनेगा
- (7.4) पश्चिमी देशों में ऐसा कोई कानून नहीं है, तो हमें इसकी जरूरत क्यों है ?
- (7.5) राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.)-एक बेकार / अनुपयोगी विचार है
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- (7.1) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) द्वारा जजों को बदलने का नागरिकों का अधिकार(राईट टू रिकाल जज / प्रजा अधीन-जज)
- (7.2) राईट टू रिकल-सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश (प्रजा अधीन सुप्रीम-कोर्ट प्रधान जज) ड्रॉफ्ट की संवैधानिक प्रामाणिकता
- (7.3) उस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का क़ानून-ड्राफ्ट जिसके माध्यम से प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज (उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश) कानून बनेगा
- (7.4) पश्चिमी देशों में ऐसा कोई कानून नहीं है, तो हमें इसकी जरूरत क्यों है ?
- (7.5) राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.)-एक बेकार / अनुपयोगी विचार है
चौथा आर.आर.जी (प्रजा अधीन समूह) का प्रस्ताव – प्रजा अधीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश(प्रधान जज) |
(7.1) `जनता की आवाज-पारदर्शी शिकायत / प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) द्वारा जजों को बदलने का नागरिकों का अधिकार(राईट टू रिकाल जज / प्रजा अधीन-जज) |
जिस दिन भारत की जनता दबाव डालकर प्रधान मंत्री से जनता की आवाज (सूचना का अधिकार –2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करवा लेती है, उसी दिन मैं प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट जज, प्रजा अधीन – हाई कोर्ट न्यायाधीश/जज आदि को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार –2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली के खंड-1 के तहत एफिडेविट के रूप में पेश कर दूँगा। मुझे पूरा विश्वास है कि इस देश के 70 करोड़ नागरिक मतदाता इसका विरोध बिल्कुल नहीं करेंगे ,बल्कि हो सकता है कि वे इस पर हाँ पंजीकृत/दर्ज कर दें। और तब मेरे विचार से, उस तीन पंक्ति के जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली कानून का उपयोग करके लोग “प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट जज/न्यायाधीश, प्रजा अधीन – हाई कोर्ट जज/न्यायाधीश” का मात्र 3-4 महीनों में ही प्रयोग करने लगेंगे । प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) को न्यायाधीशों पर लागू करने के कुछ हफ़्तों बाद ही, न्यायालयों में भ्रष्टाचार न के बराबर रह जाएगा।
यदि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समर्थकों को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्हें संसद में बहुमत ही नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है कि) उनके “अपने ही” सांसद बिक जाएंगे और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद में उन्होंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पर जन-आन्दोलन पैदा करने पर ध्यान लगाना चाहिए और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए ।
(7.2) राईट टू रिकल-सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश (प्रजा अधीन सुप्रीम-कोर्ट प्रधान जज) ड्रॉफ्ट की संवैधानिक प्रामाणिकता |
भारत का बुद्धिजीवी वर्ग मूर्ति- पूजक है, अर्थात न्याय-मूर्ति-पूजक……मतलब यह कि ये लोग सुप्रीम कोर्ट/उच्चतम न्यायालय एवं हाई कोर्ट/उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों/जजों की पूजा- अर्चना करते हैं। इसीलिए सभी बुद्धिजीवियों ने सुप्रीम कोर्ट के जजों के विरूद्ध प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) को सख्त नापसंद किया है क्योंकि यह नागरिकों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों से ज्यादा ताकतवर बना देता है। इसलिए बुद्धिजीवियों ने अपने रटे-रटाए बहस/जवाब का सहारा लिया है – जिस क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप का प्रस्ताव मैंने पेश किया है वह असंवैधानिक है । इन सभी बुद्धिजीवियों से मैंने एक ही प्रश्न पूछा: क्या आप मुझे बता सकते हैं कि इस क़ानून-ड्राफ्ट के दस खण्डों में से कौन सा खण्ड/क्लॉज आपके विचार से असंवैधानिक है? और आज तक किसी भी बुद्धिजीवी ने इसका उत्तर देने की हिम्मत नहीं की है।
यदि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) समर्थकों को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्हें संसद में बहुमत ही नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है कि) उनके “अपने ही” सांसद बिक जाएंगे और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद, बाद में उन्होंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पर जन-आन्दोलन पैदा करने पर ध्यान लगाना चाहिए और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए ।
(7.3) उस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का क़ानून-ड्राफ्ट जिसके माध्यम से प्रजा अधीन – सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज (उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश) कानून बनेगा |
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निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया |
प्रक्रिया/अनुदेश |
1 |
– |
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2 | प्रधानमंत्री (अथवा उसका वह सचिव जिसे उसने नामित किया हो) | 30 वर्ष से अधिक उम्र का कोई भी नागरिक जो राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) बनना चाहता हो वह प्रधानमंत्री अथवा प्रधानमंत्री द्वारा नामित सचिव के समक्ष/ कार्यालय स्वयं अथवा किसी वकील के जरिए एफिडेविट/शपथपत्र लेकर जा सकता है। प्रधानमंत्री का सचिव सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्क लेकर राष्ट्र-स्तरीय मान्यता–प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) के पद के लिए उसकी उम्मीदवारी को स्वीकार कर लेगा। |
3 |
तलाटी ,
(अथवा तलाटी का क्लर्क) |
जिले का कोई भी नागरिक तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्यक्तियों को राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्प्युटर में डाल देगा उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्यक्तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा। |
4 | तलाटी | 1 तलाटी नागरिकों की प्राथमिकता को प्रधान मंत्री की वेबसाइट पर उनके/नागरिकों के वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र संख्या और उसकी प्राथमिकता/पसंद के साथ डाल देगा। |
5 | तलाटी | यदि कोई नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति रद्द करवाने के लिए आता है तो तलाटी उसका एक या अधिक अनुमोदन/स्वीकृति बिना कोई शुल्क/फीस लिए रद्द कर देगा। |
6 | प्रधानमंत्री का सचिव | प्रत्येक महीने की पांचवी/5 तारीख को प्रधानमंत्री का सचिव प्रत्येक उम्मीदवार का अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती पिछले महीने की अंतिम तिथि की स्थिति के अनुसार प्रकाशित करेगा। |
7 | प्रधानमंत्री | यदि किसी उम्मीदवार को भारत के 24 करोड़ से अधिक रजिस्टर्ड नागरिक-मतदाताओं का अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाता है तो प्रधानमंत्री उसे `एन आर जे` के रूप में नियुक्त कर सकते हैं। |
8 | प्रधानमंत्री | यदि किसी राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) को 37 करोड़ से ज्यादा नागरिक मतदाताओं का अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाता है और अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती सभी राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) ओं (एन आर जे) से 2 करोड़ ज्यादा है तो प्रधान मंत्री इस सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्त राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) का नाम भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास यह पूछने के लिए भेज सकते हैं कि क्या यह व्यक्ति उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद के योग्य है। |
9 | प्रधानमंत्री, लोकसभा के सभी सांसद |
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10 | जिला कलेक्टर | यदि कोई नागरिक इस कानून में कोई बदलाव चाहता है तो वह जिलाधिकारी/डी सी के कार्यालय में जाकर एक एफिडेविट जमा करा सकता है और डी सी या उसका क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्ठ/पेज का शुल्क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा। |
11 | तलाटी (अथवा पटवारी) | यदि कोई नागरिक इस कानून या इसकी किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के कलम /खण्ड में प्रस्तुत किसी एफिडेविट पर हां–नहीं दर्ज कराना चाहे तो वह अपने वोटर आई कार्ड के साथ तलाटी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देगा। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उसे एक रसीद/पावती देगा। यह हां–नहीं प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाला जाएगा। |
(7.4) पश्चिमी देशों में ऐसा कोई कानून नहीं है, तो हमें इसकी जरूरत क्यों है ? |
मैं उन प्रक्रियाओं/विधियों के प्रचार-प्रसार के लिए अभियान चलाता रहता हूँ जिससे हम आम लोग प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और जजों को हटा सकते हैं । सभी प्रमुख बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और यह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि यह असंवैधानिक है । इसमें असफल होने के बाद वे कहते हैं – पश्चिम के देशों में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है और इसलिए हम लोगों के यहां यह प्रक्रिया क्यों होनी चाहिए ? ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में लगभग 50 प्रतिशत वयस्कों के पास बन्दूक है जो यह सुनिश्चित कर देता है कि वे उच्चवर्ग/अभिजातवर्ग के लोग सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को एक सीमा के बाद न तो नीचे झुकने के लिए कहेंगे और न ही उन्हें झुकने की अनुमति देंगे। इतना ही नहीं, अमेरिका में तो निचली अदालत के सभी न्यायाधीशों पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू है और कुछ राज्यों में हाई कोर्ट के जजों/न्यायाधीशों पर भी लागू है। उदाहरण के लिए, कैलिफोर्निया के नागरिकों के पास प्रजा अधीन – कैलिफोर्निया के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कानून है जिसका पद हमारे देश के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बराबर है। ये कार्य-प्रणाली संघीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर हमेशा एक भय का स्तर बनाए रखती है । और अमेरिका में मुकदमों का फैसला पहले ज्यूरी द्वारा किया जाता है जिनके ऊपर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का कोई नियंत्रण नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने के लिए ज्यूरी बाध्य नहीं है। इसी कारण, अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के जज निचली अदालतों पर नियंत्रण नहीं करते। हमने भारत में ज्यूरी सिस्टम (ज्यूरी पद्धति) को लागू करने के लिए एक कानून की मांग की है। पर जब तक यह कानून लागू नहीं हो जाता , तब तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के पास ही अधिकार रहेंगे । इसलिए भारत की हम आम जनता के पास एक ऐसी पद्धति होनी ही चाहिए जिससे हम उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों पर नियंत्रण रख सकें।
इसके अलावा, अमेरिका की जो भी समस्याएं हैं वो उनके साथ हैं। जहाँ तक भारत की बात है तो सत्यार्थ प्रकाश में यह स्पष्ट उल्लेख है कि, “राजा को प्रजा के अधीन होना चाहिए नहीं तो वह प्रजा को लूटेगा ।“ उसी प्रकार, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को भी प्रजा-अधीन होना चाहिए नहीं तो वह जनता को लूट लेंगे। इसमें जरा भी आश्चर्य नहीं कि क्यों प्रायः जिन बच्चों का यौन शोषण करने वाले लोगों को हाई कोर्ट द्वारा सजा सुनाई जाती है, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से जमानत मिल जाती है ।
(7.5) राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.)-एक बेकार / अनुपयोगी विचार है |
देश के प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों ने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग की मांग की है , जिसमें लगभग 5-15 लोगों के पास ही सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के जजों/न्यायाधीशों को नियुक्त करने या हटाने का अधिकार होगा। ये 5-15 लोग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और उच्च्वर्गों/अभिजात वर्गों के पास बिक जाएंगे और राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के आने के बाद सभी न्यायालय/कोर्ट बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और उच्च्वर्गों/अभिजात वर्गों की जागीर बन जाएंगे। हम प्रजा अधीन – उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीशगण का समर्थन करते हैं और राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) प्रस्ताव का विरोध करते हैं। इतना ही नहीं, प्रमुख बुद्धिजीवियों द्वारा मांग किए गए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) प्रस्ताव में ऐसी कोई प्रणाली नहीं है, जिसके तहत देश की हम आम जनता राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) के सदस्यों को उनके पद से हटा सके या उन्हें बदल सकें । और इन बुद्धिजीवियों ने अपने राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) प्रस्ताव में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.). के सदस्यों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया का विरोध किया है। इस तरह, राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) के सदस्य ही उच्च वर्गीय/अभिजात वर्गीय लोगों के हाथ की भ्रष्ट कठपुतली बन जायेंगे ।
राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) प्रस्ताव सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि पुराने उच्च वर्गीय लोग उन न्यायाधीशों का रास्ता रोकना चाहते हैं जिनके पास ज्यादा ताकत है और आज के नए उच्च वर्गीय लोगों से जिनकी यारी-दोस्ती और लेन-देन है। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) का प्रस्ताव पुराने काल के उच्च वर्गीय लोग विरुद्ध आज के उच्च वर्गीय लोग का खेल ही है और इसमें हम जनता के लिए कुछ नहीं है।
राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) केवल उच्च वर्गीय लोगों का सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों पर नियंत्रण को मजबूत करेगा | अभी उच्चवर्गी लोगों को 25 सुप्तेमे कोर्ट के जज और 600 हाई कोर्ट के जजों को नियंत्रित करना होगा है जो उनका अधिक समय और पैसा लेता है | राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) ये सुनिचित करेगा कि उच्च वर्गीय लोगों को केवल 5-10 राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एन.जे.सी.) सदस्यों को ही रिश्वत देनी होगा और उनके द्वारा , वे सभी 25 सुप्रीम कोर्ट जज और 600 हाई कोर्ट जजों को नियंत्रित कर सकते हैं (निष्काशन की धमकी द्वारा) |