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अध्याय 6 – आर.आर.जी (प्रजा अधीन समूह) समूह की तीसरी मांग – प्रजा अधीन प्रधान मंत्री, मुख्‍यमंत्री का ड्रॉफ्ट

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(6.24) कृपया प्रक्रियाओं और क़ानून-ड्राफ्ट / मसौदों पर ध्यान केंद्रित करें ना कि कानूनों के नाम या व्यक्तियों पर जिसने ये क़ानून-ड्राफ्ट बनाएँ हैं क्योंकि नाम धोखा दे सकते हैं

बिका हुआ मीडिया/पैड मीडिया ये कहता है कि “नीतिश कुमार अत्यंत प्रतिबद्ध है `राईट टू रिकाल /भ्रष्ट को निकालने का अधिकार` के प्रति | 1975 से वो राईट टू रिकाल/प्रजा अधीन राजा का समर्थन कर रहा है |  “ ऐसा है , कि वो कई बार सांसद रहा है 1975 से |और उसके पार्टी में भी कई सांसद हैं | नितीश कुमार या उसके कोई भी सांसद ने कभी भी प्रजा अधीन सांसद क़ानूनी मसौदा/क़ानून-ड्राफ्ट का प्रस्ताव नहीं किया संसद में | उसने कभी भी प्रजा अधीन प्रधान मंगरी,सुप्रीम कोर्ट जज को लागू करने के लिए कोई प्रक्रिया या क़ानून-ड्राफ्ट /मसौदा का प्रस्ताव नहीं किया | नितीश मुख्यमंत्री है छे सालों से | उसके राज्य के कोई भी जिलों में प्रजा अधीन पोलिस कमिश्नर नहीं है या प्रजा अधीन जिला शिक्षा अधिकारी | फिर भी वो ये दवा करता है कि वो `प्रजा अधीन राजा /भ्रष्ट को बदलने का अधिकार ` का समर्थक है |

और अंत में, नितीश कुमार ने राईट टू रिकाल कानून पार्षद के लिए स्वीकार किया |इसके कुछ विवरण देखते हैं-

“…-यदि दो तिहाई वोटर अपने चुनाव क्षेत्र से पार्षद के खिलाफ एक हस्ताक्षर वाली याचिका देते हैं शहरी विकास विभाग को , तो शहरी विकास विभाग उस याचिका की योग्यता पर गौर करेंगे और उस पार्षद के निष्काशन के लिए कदम उठाएंगे यदि वो आश्वस्त हो जाता है कि पार्षद ने दो तिहाई वोटरों को खो दिया है |”

अभी शहरी विकास विभाग का प्रभारी हस्ताक्षर की जांच कैसे करेगा? एक बैंक में, एक चेक एक दस्तावेज है जो बैंक द्वारा जारी किया जाता है  |और चेक स्वयं एक अर्ध-सबूत है| और बैंक के कर्क के पास हस्ताक्षर का नमूना है और ग्राहक के पास सूचना भी आ जाती है एस.एम.एस द्वारा या जब भी वो पासबुक अपडेट करवाता है | इसीलिए हस्ताक्षर आधारित दस्तावेज बैंक चेक काम करता है | लेकिन शहरी विकास अधिकारी के पास 1 % नागरिकों का भी हस्ताक्षर का नमूना नहीं है , तो वो हजारों हस्ताक्षरों की जांच कैसे करेगा उचित समय में ? और कैसे उसको पता लगेगा कि एक ही व्यक्ति ने सौ बार हस्ताक्षर नहीं किये हैं? और बिहार में, जहाँ साक्षरता दर 60 % से अधिक नहीं है, 67% का हस्ताक्षर भी कैसे लिया जा सकता है ?

 उपरोक्त क़ानून-ड्राफ्ट केवल ये ही दिखाता है कि नितीश बदमाश है और चोर आदमी है एक सुधारवादी के वेश में | कोई भी असली सुधारवादी ऐसा बेकार क़ानून-ड्राफ्ट नहीं देगा | लेकिन देखते जायें, बीका हुए मीडिया ये कहेगा है कि ये भारत में सबसे अच्छा सुधारों में से एक है |

 ( मैं मीडिया को “बिका हुआ /भुगतान किया हुआ (पैड मीडिया ) मीडिया “ इसलिए बोलता हूँ क्योंकि मुझे विश्वास है “ सभी समाचार या तो बीके हुए/भुगतान किये हुए हैं(पैड न्यूज़) या तो बलात् /जबरन हैं “ और “सभी चुप्पी या तो भुगतान किये हुए/बिके हुए हैं या तो बलात् /जबरन चुप्पी है”| “ और बल आसान नहीं है और वह दुर्लभ है | इसीलिए अधिकतरमामलोंमें, समाचार/खबरबिकेहुए /भुगतान किये हुए हैं(पैड न्यूज़)औरचुप्पीबिकेहुए/ भुगतानकियेहुएहैं | और समस्या का उपाय ये है कि प्रजा अधीन दूरदर्शन मुख्य कार्यकारी अधिकारी है जो “नागरिक द्वारा भुगतान की गया समाचार “ निर्मार्ण करेगा/बनाएगा और इसीलिए कम से कम मात्र में भुगतान चुप्पी होगी |)

 

(6.25) प्रजा अधीन राजा (राईट टू रिकाल) / भ्रष्ट को बदलने की प्रक्रिया अगले जन्म में !

केवल प्रजा अधीन राजा/भ्रष्ट को बदलने का क़ानून-ड्राफ्ट या पारदर्शी शिकायत प्रणाली के क़ानून-ड्राफ्ट का नाम ही `कार्यकर्ता` नेताओं को बेचैन कर देता है | वे इन्हें ना तो विरोध कर सकते हैं क्योंकि इससे उनकी कार्यकर्ताओं के सामने पोल खुल जायेगी कि वे आमजन विरोधी हैं | और यदि इसे समर्थन करते हैं तो उनके प्रायोजक धन देना बंद कर देंगे | इसीलिए वे ऊटपटांग कहकर `भ्रष्ट को निकालने का अधिकार` को टालने का प्रयत्न करते हैं जैसे पहले हमें ये/वो करना चाहिए और इसको अगले जनम में लाना चाहिए | या इस अधिकार को देने के लिए संविधान में बद्लाव चाहिए जिसके लिए बहुत समय चाहिए और इसीलिए अगले जन्म में आएगा | कोई एक-आध नेता ही इसका समर्थन करेंगे लेकिन अधिकतर नेता तो इसे टालते ही रहेंगे अगले जन्म के लिए लेकिन अधिकतर कार्यकर्ता इसका समर्थन करेंगे | इसीलिए हमें सीधे कार्यकर्ताओं से संपर्क करना चाहिए |

 

समीक्षा प्रश्न :

1. मान लीजिए किसी राज्य में 7 करोड़ दर्ज/रजिस्‍टर्ड मतदाता हैं । मान लीजिए, मुख्‍यमंत्री को 200 विधायकों का समर्थन प्राप्त है। मान लीजिए, मुख्‍यमंत्री को लगभग 1.5 करोड़ नागरिकों का सीधा अनुमोदन/स्वीकृति समर्थन प्राप्त है । तब किसी व्यक्ति को हमलोगों द्वारा मुख्‍यमंत्री को हटाने हेतु प्रस्‍तावित सरकारी अधिसूचनाओं(आदेश) के अनुसार मुख्‍यमंत्री को हटाने/बदलने के लिए कितने अनुमोदनों की आवश्‍यकता होगी?

2. मान लीजिए, किसी राज्य में 7 करोड़ दर्ज/रजिस्‍टर्ड मतदाता हैं । मान लीजिए, मुख्‍यमंत्री को 200 विधायकों का समर्थन प्राप्त है जिन्‍हें कुल 2 करोड़ मत मिले हैं। मान लें, मुख्‍यमंत्री को 2.2 करोड़ जनता का अनुमोदन/स्वीकृति है। तब किसी व्‍यक्‍ति को, मुख्‍यमंत्री को हटाने के लिए कितने अनुमोदनों की आवश्यकता होगी ?

3. नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम आर सी एम) सरकारी अधिसूचना(आदेश) के अनुसार कितने लोगों को एक नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति दे सकता है? ।

4. मान लें, 3 करोड़ नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति जमा/फाइल करते हैं। इसके बाद मान लीजिए, उनमें से 50 लाख लोग अपना अपना अनुमोदन/स्वीकृति रद्द/कैंसिल करव देते हैं। कुल जमा हुई फीस कितनी होगी?

5. मुख्‍यमंत्री के पद के लिए नाम दर्ज की फीस/शुल्‍क कितना है ?

अभ्यास :

1. जय प्रकाश नारायण ने अपने सहयोगियों को राईट टू रिकॉल का जो क़ानून-ड्राफ्ट संसद में जमा करने के लिए दिया था, कृपया उसे प्राप्त करें ?

2. प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल के वे क़ानून-ड्राफ्ट जो शौरी अथवा अन्य बी.जे.पी के सांसदों ने संसद में जमा किए, कृपया उन्हें प्राप्त करें ।

3. प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल के वे क़ानून-ड्राफ्ट जो एम एम एस या अन्य कांग्रेस सांसदों ,येचुरी अथवा अन्य सी पी एम सांसदों ने संसद में जमा किए, कृपया उन्हें प्राप्त करें ।

श्रेणी: प्रजा अधीन