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इसीप्रकार, मैंने राज्य सरकार/प्रशासन स्तर के पदों तथा केन्द्र सरकार/प्रशासन के पदों जैसे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश/हाईकोर्ट जज, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश/सुप्रीम कोर्ट जज इत्यादि के लिए भी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) प्रस्तावित किया है। कुछ मामलों में वे पद पर बने रह सकते हैं जबकि कुछ मामलों में उन्हें हटा दिया जाएगा और उनके स्तर के या उनसे कम स्तर के बेहतर लोगों को उनके स्थान पर अवसर दिया जायेगा (जनता द्वारा) ।
(6.19) प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल तथा व्यावहारिक ज्ञान / कॉमन सेन्स |
बहुत से लोग मुझ पर अमेरिका का समर्थक होने का आरोप लगाते हैं तथा अमेरिकी प्रणाली का आंख मुंदकर नकल करने का भी आरोप लगाते हैं । देखिए, पहली बात, मैं अमेरिका का समर्थक बिल्कुल भी नहीं हूँ – मैं अमेरिका का बहुत बड़ा विरोधी हूँ । और मेरा विश्वास है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा दुश्मन है । अमेरिकी कुलीन वर्ग के लोग/धनवान लोग न केवल भारत के सभी खनिजों पर कब्ज़ा करना चाहते हैं बल्कि बल प्रयोग करके और यदि आवश्यकता पड़े तो 10 प्रतिशत जनसंहार/जातिसंहार करके भी यहां ईसाई धर्म थोपना चाहते हैं। इसलिए, मैं अमेरिकी समर्थक बिलकुल नहीं हूँ । पर, मेरे विचार से, हमें यह समझना होगा कि आखिर वह क्या कारक/कारण है जिससे अमेरिका को इतनी ताकत मिली। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) इसका प्रमुख कारण है । प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) ने ही अमेरिका को कम भ्रष्टाचार वाला प्रशासन दिया है जिसने अमेरिका को एक इतनी शक्तिशाली सेना वाला, एक इतना शक्तिशाली राष्ट्र बना दिया कि यह न केवल दूसरे देशों के तेल के कुओं पर कब्ज़ा कर सकता है बल्कि उन्हें ईसाई धर्म अपनाने के लिए बाध्य/मजबूर भी कर सकता है। उदाहरण: इराक। इसलिए मैं जब अमेरिका के प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) की बात करता हूँ तो मेरा इरादा केवल अमेरिका का उदाहरण देना भर होता है । मैं अमेरिका का समर्थक बिल्कुल नहीं हूँ ।
प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) अमेरिका की देन नहीं है। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) केवल एक सहज ज्ञान/कॉमन सेन्स है। मान लीजिए, आपके घर में कई नौकर हैं जैसे – रसोइया या बर्तन धोने वाला या झाड़ू पोछा करने वाला या बुजुर्गों की देखभाल करने वाला आदि। क्या आपके पास उन्हें हटाने का अधिकार है?(अवश्य है)। मान लीजिए, सरकार कोई ऐसा नियम/कानून बनाए कि आप नौकर कोई भी चुन सकते हैं परन्तु बिना कोर्ट के आदेश के उसे हटा नहीं सकते हैं। और अगले पांच वर्ष तक आपके अकाउंट/खाते से पैसे निकालकर उसके अकाउंट में डाले जाएँगे। और केवल वह ही आपके घर पर काम कर सकता है, उसके अलावा और कोई भो नौकर आपके घर में 5 साल/वर्ष तक काम करने नहीं आ सकता। तब उस नौकर के मामले में आपकी क्या स्थिति होगी? वह नौकर आपका मालिक बन जायेगा और आप उसके नौकर बन जाएंगे। नागरिकों की स्थिति भी ठीक ऐसी ही है। स्थानीय कार्यालयों/दफ्तरों में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से लेकर चपरासी तक हर सरकारी कर्मचारी “जनता का सेवक” है । पर चूँकि जनता के पास उन्हें हटाने की प्रक्रिया/अधिकार नहीं है इसलिए वे “जनता के मालिक” बन बैठे हैं । जिस तरह शेयरधारकों के पास सी.ई.ओ, निदेशक, वरिष्ठ प्रबंधक आदि को हटाने का अधिकार है — उसी प्रकार प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री ,उच्चतम न्यायालय के जजों , उच्च न्यायालय के जजों आदि के विरूद्ध प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल लाने में भी सहज बुद्धि/कॉमन सेन्स का उपयोग किया गया है। कभी-कभी मैं खुद को मूर्ख समझता हूँ कि मैं प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) के बारे में तब समझ सका जब मैंने अमेरिका तथा भारत के शासन के बारे में गहराई से अध्ययन किया तथा प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल जैसे कुछ ऐसे आसान तथ्य प्राप्त किए जिनके बारे में तो मैं पहले दिन ही सोच सकता था। और जब भी मैं पीछे पलट कर देखता हूँ तो यही पाता हूँ कि “ सचमुच मैं कितना मूर्ख था जो इसके बारे में पहले नहीं सोचा” ।
(6.20) प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल और अथर्ववेद , सत्यार्थ प्रकाश |
प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)के बारे में अथर्ववेद में उल्लेख मिलता है । अथर्ववेद में कहा गया है कि सभा अर्थात सभी नागरिकों की सभा राजा को हटा सकती है । महर्षि दयानंद सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश के छठे अध्याय में राजधर्म के बारे में बताया है तथा प्रथम 5 श्लोकों में महर्षि कहते हैं कि राजा “प्रजा-अधीन” होना ही चाहिए अर्थात आम जनता पर निर्भर। और अगले ही श्लोक में महर्षि कहते हैं कि यदि राजा प्रजा अधीन नहीं होता है तो ऐसा राजा राष्ट्र में घुस कर जनता को लूटता है तथा जिस प्रकार मांसाहारी पशु दूसरे पशुओं को खा जाता है उसी प्रकार वह राजा जो प्रजा अधीन नहीं होता, वह राष्ट्र को खाकर नष्ट कर देगा। महर्षि ने ये दोनों ही श्लोक अथर्ववेद से लिए हैं। तथा ध्यान दें- यहाँ राजा शब्द में सभी राज-कर्मचारियों शामिल हैं अर्थात उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से लेकर पटवारी तक सरकार के सभी कर्मचारी। सरकार के सभी कर्मचारियों को प्रजा आधीन होना चाहिए वरना वे जनता/नागरिकों को लूट लेंगे – ऐसा उन संतों ने लिखा है जिन्होंने वेद लिखा है, और दयानंद सरस्वती ने भी उन संतों का समर्थन किया है तथा मैं भी उन संतों से सहमत हूँ। कैसे हम आम जनता, राजा तथा राजकर्मचारियों को “प्रजा-अधीन” बना सकते हैं? देखिए, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल – उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल – मुख्यमंत्री आदि कुछ रास्ते मैंने बताए हैं। और ध्यान दीजिए – दयानन्द सरस्वती जी संविधान के अधीन राजा के बारे में नहीं कहते, वे प्रजाधीन राजा के बारे में कहते हैं। इसलिए अथर्ववेद तथा दयानंद सरस्वती जी के शब्दों में, इस बात का कि ”अमेरिका की पुलिस भारत की पुलिस से कम भ्रष्ट क्यों है?” जवाब यह है कि अमेरिका में पुलिस प्रमुख प्रजा अधीन होता है जबकि भारत में कोई भी अधिकारी प्रजा अधीन बिलकुल नहीं है। अथर्ववेद तथा महर्षि दयानंद यह भी कहते हैं कि जो राजा (या राज कर्मचारी जैसे पुलिस प्रमुख) प्रजा अधीन नहीं है वो जनता को लूट लेगा। और हमने ये हर बार देखा है । अमेरिका में न केवल पुलिस आयुक्त बल्कि गवर्नर , सांसद , जिला जज, जिला शिक्षा अधिकारी , जिला अभियोजक तथा कुछ राज्यों में तो हाईकोर्ट जज भी प्रजा आधीन होते हैं । और इसलिए राजकर्मचारियों द्वारा लूट नाममात्र की है ।