सूची
- (6.1) तीन लाइन का यह कानून प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जजों और पुलिस प्रमुखों में व्याप्त भ्रष्टाचार को केवल चार महीनों में ही कैसे कम कर सकता है ?
- (6.2) प्रधानमंत्री को हटाने / बदलने के क़ानून-ड्राफ्ट का विवरण
- (6.3) प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों को बदलने के लिए प्रस्तावित प्रक्रिया/तरीका का उदाहरण
आर.आर.जी (प्रजा अधीन समूह) समूह की तीसरी मांग – प्रजा अधीन प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री का ड्रॉफ्ट |
(6.1) तीन लाइन का यह कानून प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, जजों और पुलिस प्रमुखों में व्याप्त भ्रष्टाचार को केवल चार महीनों में ही कैसे कम कर सकता है ? |
मान लीजिए की आपने दस लोगों को काम पर रखा है और सरकार ऐसा कायदा बनाती है कि कुछ भी हो आप उनको निकाल नहीं सकते पांच साल के लिए या पूरी जिंदगी के लिए और उनको हर महीने वेतन तो देना ही है | तो फिर आप बताएं कि कितने लोग अच्छे से काम करेंगे एक-दो महीने बाद ? मेरे अनुसार, शायद ही एक-आध व्यक्ति होगा जो अच्छे से काम करेगा जब कि उनको मालूम है कि कैसा भी बुरा काम करें, मालिक तो उसे निकाल ही नहीं सकता | इस तरह से आपके द्वारा रखे गए नौकर आपके मालिक हो जाएँगे |
ऐसे ही नेता और अन्य जनता के नौकर जैसे जज,मंत्री, अफसर आदि नेता के मालिक बन जाते हैं | लेकिन जब उन जनता द्वारा रखे गए नौकरों को , नागरकों कों कभी भी , किसी भी दिन ,नौकरी से निकालने का अधिकार मिल जाता है, ये ही राईट टू रिकाल या प्रजा अधीन-राजा है | जिन पदों के ऊपर प्रजा अधीन-रजा या राईट टू रिकाल रखा है , उनकी सूची भाग 6.13 में है |
जिस दिन नागरिकगण प्रधानमंत्री को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली पर हस्ताक्षर करने पर बाध्य कर देंगे उसी दिन मैं प्रजा अधीन प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन मुख्यमंत्री, प्रजा अधीन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, प्रजा अधीन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, प्रजा अधीन भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रजा अधीनजिला पुलिस प्रमुख आदि के लिए क़ानून-ड्राफ्ट को एफिडेविट के रूप में प्रस्तुत कर दूंगा। और यदि प्रधानमंत्री इस पर हस्ताक्षर नहीं भी करते हैं और मुख्यमंत्री इस पर हस्ताक्षर कर देते हैं तब भी मैं प्रजा अधीन प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, प्रजा अधीन भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रजा अधीनजिला पुलिस प्रमुख आदि के लिए एफिडेविट प्रस्तुत कर दूंगा। मेरा विश्वास है कि करोड़ों नागरिक इन ऐफिडेविटों पर हां दर्ज कर देंगे और इस प्रकार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री आदि इस पर हस्ताक्षर करने को बाध्य होंगे। इस प्रकार इन तीन लाइनों के कानून का प्रयोग करके हम लोग प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)कानून भारत में ला सकते है। और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)एक ऐसा भय पैदा करेगा जिससे ये अधिकारी घूस/रिश्वत लेने का काम महीने भर में कम करने को बाध्य हो जाएंगे। इसलिए अगर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)कार्यकर्ता प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) पर जोर दे तो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों आदि में भ्रष्टाचार को एक महीने के भीतर ही कम किया जा सकता है, और यहां तक कि एक भी व्यक्ति का सांसद के रूप में चयन हुए बिना भी ऐसा हो सकता है।
यदि `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम)` समर्थक संसद में बहुमत मिलने तक इंतजार करने और तब नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) लागू करने पर अड़ जाता है तो ऐसी संभावना है कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) समर्थक को हमेशा के लिए इंतजार ही करते रहना पड़ेगा क्योंकि पहले तो उन्हें संसद में बहुमत ही नहीं मिलेगा। और इससे भी बुरा होगा कि यदि उन्हें बहुमत मिल जाता है तो (इस बात की संभावना है कि) उनके अपने ही सांसद बिक जाएंगे और नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम आर सी एम) क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना कर देंगे। उदाहरण के लिए वर्ष 1977 में जनता पार्टी के सांसदों ने चुनाव से पहले वायदा किया था कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू करेंगे और चुन लिए जाने के बाद, बाद में उन्होंने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून पास करने से मना कर दिया। इसलिए मेरे विचार से, `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी` (एम आर सी एम) कार्यकर्ताओं को जनता की आवाज (सूचना का अधिकार- 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पर जन-आन्दोलन पैदा करने पर ध्यान लगाना चाहिए और जनता की आवाज (सूचना का अधिकार – 2) पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली क़ानून-ड्राफ्ट पारित करवाना चाहिए न कि चुनाव में जीतने तक इंतजार करना चाहिए ।
(6.2) प्रधानमंत्री को हटाने / बदलने के क़ानून-ड्राफ्ट का विवरण |
जिस तीसरी सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग हम कर रहे हैं, वह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका प्रयोग करके हम आम आदमी 5 वर्षों तक इंतजार किए बिना प्रधानमंत्री को हटा सकते है।
- कोई भी नागरिक जो प्रधानमंत्री बनना चाहता हो वह अपना नाम कलक्टर के सामने प्रस्तुत करेगा।
- भारत का कोई भी नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्यक्तियों को प्रधानमंत्री के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्यक्तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा।
- तलाटी लोगों की प्राथमिकता को सरकारी वेबसाइट पर उनके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र के साथ डाल देगा।
- कोई नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति 3 रूपया शुल्क देकर किसी भी दिन बदल सकता है।
- प्रत्येक महीने की पहली तारीख को सचिव उम्मीदवारों के अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती को प्रकाशित करेगा।
- प्रधानमंत्री की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती निम्नलिखित दो से उच्चतर मानी जाएगी –
- नागरिकों की संख्या, जिन्होंने उसका अनुमोदन/स्वीकृति किया है
- प्रधानमंत्री का समर्थन करने वाले सांसदों द्वारा प्राप्त किए गए कुल मतों का योग
- यदि किसी व्यक्ति को 15 करोड़ से ज्यादा अनुमोदन/स्वीकृति मिले हैं और मौजूदा प्रधानमंत्री के मुकाबले 1.5 प्रतिशत ज्यादा अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्त है तो वर्तमान प्रधानमंत्री इस्तीफा दे सकता है और सांसदगण सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्त उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री नियुक्त कर देंगे।
(6.3) प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों को बदलने के लिए प्रस्तावित प्रक्रिया/तरीका का उदाहरण |
मान लीजिए, भारत में 75 करोड़ मतदाता हैं। तब उपर्युक्त प्रक्रिया के अनुसार बदलने/हटाने का काम हो सकता है यदि मौजूदा प्रधानमंत्री की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती से 1.5 करोड़ अधिक मतदाताओं ने एक नए व्यक्ति का अनुमोदन/स्वीकृति कर दिया हो। उदाहरण के लिए, वर्ष 2004 के प्रधानमंत्री के पास लगभग 300 सांसदों का समर्थन था जिनके वोट लगभग 18 करोड़ होते हैं। इसलिए प्रस्तावित प्रक्रिया के अनुसार यदि जब 19.5 करोड़ नागरिकों ने किसी अन्य व्यक्ति को अनुमोदित कर दिया होता तो वह व्यक्ति प्रधान मंत्री बन जाता।.