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रूपए छापने से उनलोगों को फायदा होता है जिनके नजदीकी संबंध/रिश्ते निदेशकों, अध्यक्षों आदि तथा बैंकों, भारतीय रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय से होते हैं। और इससे उन लोगों को भी फायदा होता है जिनके संबंध उच्चतम न्यायालय/सुप्रीम-कोर्ट के शक्तिशाली वकीलों के साथ होते हैं। और कर्ज़/ऋण आदि से जुड़े अनेक मामले जब कानूनी मुकद्दमों/वादों में पड़ जाते हैं तब इनमें नामी वकील लोग जिनका जजों के बीच अच्छा नाम है ,हमेशा ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुल मिलाकर रूपए बनाने से उन लोगों के धन की लूट/डकैती होती है जिनके तार राजनैतिक लोगों से कम ही जुड़े होते हैं और यह धन उन लोगों के पास जाता है जिनके राजनैतिक लोगों के साथ संबंध/तार अच्छे से जुड़े होते हैं। ऐसा गलत काम करने के लिए मतदाताओं/वोट मैगनेट्स की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि उन लोगों की जरूरत पड़ती है जो बैंकों, पुलिस, न्यायालयों और मीडिया पर अपने नियंत्रण के जरिए मतदाताओं/वोट मैगनेट्स पर नियंत्रण करते हैं।
हम इस लूट को कैसे रोक सकते हैं? राइट टू रिकॉल ग्रुप/ प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में मेरा एक लक्ष्य यह भी है कि मैं उन प्रक्रियाओं को लागू करवाऊं जिससे हम नागरिक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष को हटा/बदल सकें और इस प्रकार रूपए के बनाने (का निर्णय) नागरिकों के हाथों में आ जाए। इससे रूपए के निर्माण/बनाने के माध्यम से होने वाली लूट कम हो जाएगी।
(23.8) इसलिए , कीमतें / मूल्य बढ़ने का असली कारण? |
कीमतें सिर्फ इसलिए बढ़ती हैं, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक (और अन्य बैंक) वास्तविक अर्थव्यवस्था की वास्तविक वृद्धि दर से बहुत ही ज्यादा रूपए बनाते हैं। विकास दर बढ़ा चढ़ा कर बताई जाती है क्योंकि मुद्रास्फीति सूचकांक कम करके बताया जाता है (सही रिपोर्ट नहीं दी जाती है) और यह गलत रिपोर्ट भूमि की कीमत (जैसे कि आज कोई भूमि नहीं चाहता है) को सूचकांक में शामिल न करके की जाती है। नए बने रूपए वर्तमान रूपयों की कीमत कम कर देते हैं और सभी प्रकार से यह रूपया धारकों से रूपए ले लेने/हड़प लेने के समान है। यह मूल्य वृद्धि केवल अत्यधिक रूपयों के बनाने के कारण ही होती है।
इसलिए वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री आदि रूपए का बनाना/विनिर्माण कम क्यों नहीं कर देते? क्योंकि भारत में विशिष्ट/ऊंचे लोगों को रूपए चाहिए और राजस्व(आमदनी) के द्वारा रूपए प्राप्त करना उनके लिए बहुत ही कठिन होता है क्योंकि अधिकांश विशिष्ट/ऊंचे लोगों में राजस्व के द्वारा रूपए कमाने के लिए जरूरी तकनीकी कौशल/दक्षता नहीं होती। इसलिए वे आसान रास्ता चुनते हैं – बस उन्हें (रूपयों को) बनाओ/निर्माण करो और काफी कम ब्याज पर कर्ज़/ऋण के रूप में लेना होता है और इनमें से कई लोग तो कर्ज़ तक चुकाते नहीं हैं और इसलिए बैंकों को और अधिक रूपए बनाने की जरूरत पड़ती रहती है। इसलिए यदि प्रधान मंत्री/वित्त मंत्री भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष से रूपए बनाना बन्द करने के लिए कहा जाए तो ये विशिष्ट/ऊंचे लोग समाज में अपना स्थान सबसे ऊपर बनाए रखने के लिए रूपए नहीं पा सकेंगे।
यदि बैंक रूपए बनाना बन्द कर दें तो क्या उद्योग कार्य करना बन्द कर देंगे? नहीं। आज की स्थिति के अनुसार बैंक रूपए बनाती है और उन व्यक्तियों को देती है जिनके तार बैंकों के साथ जुडे होते हैं और ये लोग जमीन, वस्तुएं आदि खरीदते हैं और उद्योग-धंधे चलाते हैं। यदि बैंक रूपए बनाकर और बनाकर उद्योगपतियों को देना बन्द कर दें तो इन वस्तुओं की कीमत गिरेगी और इस प्रकार उद्योग कम ही रूपयों में चलेंगे लेकिन इससे सामग्री की मात्रा प्रभावित नहीं होगी। तो फिर क्या परिवर्तन आएगा? परिवर्तन यह आएगा कि उद्योगों पर नियंत्रण उन लोगों के हाथों में से निकल जाएगा जिनके बैंकों से संबंध हैं और उन लोगों के हाथों में चला जाएगा जिनके बैंकों से संबंध नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, उद्योग पर नियंत्रण उनके हाथों में चला जाएगा जिनके पास तकनीकी कौशल होगा न कि केवल राजनैतिक संबध/पहुंच रखने वालों के हाथ में रहेगा। नियंत्रण रखना ही एकमात्र कारण है कि क्यों विशिष्ट/ऊंचे लोगों चाहते हैं कि बैंक अधिक से अधिक रूपए छापें। यह नए बने पासबुक वाले रूपए (एम 3) नए कर्जों के रूप में दे दिए जाते हैं। कृपया ध्यान दें कि नए कर्जे, पुराने कर्जों के चुकाए/लौटाए गए रूपयों से जारी किए गए कर्जे नहीं । भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारी वे आंकड़े नहीं देते जिनमें यह बताया गया हो कि कौन से लोगों ने कितने नए बनाये गए रूपए पाए/लिए लेकिन नए बनाये रूपयों में से अधिकांश रूपया सबसे पहले भारत की जनसंसंख्या की शीर्ष/सबसे ऊपर के 0.1 प्रतिशत लोगों को दिए जाते हैं। और इन रूपयों का लगभग आधा हिस्सा भारत के शीर्ष 500,000 धनवान लोगों के पास कर्ज़ के रूप में जाता है। दूसरे शब्दों में, भारतीय जनसंख्या के शीर्ष 0.1 प्रतिशत लोगों को वर्ष 2008 में छपे 750,000 करोड़ रूपए का एक बहुत बड़ा हिस्सा मात्र ‘भुगतान करने के वायदे’ पर ही दे दिया गया।
(23.9) समाधान – 1 : प्रजा अधीन – भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर |
प्रस्तावित प्रक्रिया का क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप इस प्रकार है –
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निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया |
प्रक्रिया/अनुदेश |
1 | – | नागरिक शब्द का मतलब/अर्थ रजिस्टर्ड वोटर/मतदाता है। |
2 | जिला कलेक्टर | यदि भारत का कोई भी नागरिक भारतीय रिजर्व बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) का गवर्नर बनना चाहता हो तो वह जिला कलेक्टर के समक्ष/ कार्यालय स्वयं अथवा किसी वकील के जरिए एफिडेविट लेकर जा सकता है। जिला कलेक्टर सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्क लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पद के लिए उसकी दावेदारी स्वीकार कर लेगा। |
3 | तलाटी/पटवारी/लेखपाल (अथवा तलाटी का क्लर्क) |
यदि उस जिले का नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में स्वयं जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्यक्तियों को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के पद के लिए अनुमोदित करता है तो तलाटी उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्प्युटर में डाल देगा और उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्यक्तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा।
श्रेणी: प्रजा अधीन |