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अध्याय 23 – भारतीय रिजर्व बैंक में सुधार करने और महंगाई / मुद्रास्‍फीति कम करने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह के प्रस्‍ताव

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 भारतीय रिजर्व बैंक में सुधार करने और महंगाई / मुद्रास्‍फीति कम करने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह के प्रस्‍ताव

वह व्‍यक्‍ति जो मुद्रा/पैसे से संबंधित [बैंक से संबंधित] प्रश्‍नों को हल कर लेगा, वह विश्व के लिए इतिहास के सभी व्‍यावसायिक हस्‍तियों से कहीं ज्‍यादा कुछ कर सकता है — श्री हेनरीभाई फोर्ड

   

(23.1) महंगाई का असली कारण क्या है ?

सामान्य तौर पर महंगाई तभी बढती है जब रुपये (एम 3) बनाये जाते हैं लोन,आदि के रूप में और भ्रष्ट अमीरों को दिए जाते हैं, जिससे प्रति नागरिक रुपये की मात्रा बढ जाती है और रुपये की कीमत घाट जाती है और दूसरे चीजों की कीमत बढ जाती है जैसे खाद्य पदार्थ/खाना-पीना, तेल आदि | भारतीय रिसर्व बैंक के आंकडो के अनुसार, प्रति नागरिक रुपये की मात्रा (देश में चलन में कुल नोट,सिक्कों और सभी प्रकार के जमा राशि का कुल जोड़ को कुल नागरिकों की संख्या से भाग किया गया ) 1951 में 65 रुपये प्रति नागरिक थी और आज, 2011 में लगभग 50,000 रुपये है प्रति नागरिक | 

———-

सब चीजों का मूल्य सापेक्ष/तुलनात्मक है और मांग और आपूर्ति/सप्लाई के अनुसार निर्धारित/पक्का होता है | मान लो , केवल एक बाजार है और कुछ नहीं ,आसानी से समझने के लिए | बाजार में , एक बेचनेवाला है जो 10 किलो आलू बेच रहा और एक खरीदार जिसके पास सौ रुपये हैं | मान लो अगली स्थिति में, बेचनेवाले के पास 10 किलो आलू के बजाय 20 किलो आलू हो जाते हैं, तो क्या अब आल का दाम घटेगा कि बढेगा ?

आसान सा अनुमान/अंदाजा – आलू का दाम घटेगा क्योंकि आलू की सप्लाई/आपूर्ति बढ गयी है |

एक और स्थिति में , मान लो बेचने वाले के पास 10 किलो आलू हैं लेकिन अब दो खरीदार हैं और दोनों के पास 100-100 रुपये हैं | अब, आलू का दाम घटेगा या बढेगा ?

आसान सा अंदाजा/अनुमान- आलू का दाम बढेगा क्योंकि रुपयों की सप्लाई बढ गयी है और इसीलिए रुपये की कीमत घटेगी और दूसरे सामान का दाम बढेगा जैसे खाना-पीना, पेट्रोल, गैस, आदि |

असलियत में भी ऐसे ही होता है |

प्रश्न- ये रुपये कौन बनाता है और ये रूपये कहाँ से आते हैं(रुपये=एम3 देश में सभी नोट,सिक्के और सभी प्रकार के जमा राशि का जोड़ है ) ?

रिसर्व बैंक के पास लाइसेंस है रुपयों को बनाने का और अनुसूचित बैंक(बैंक जिनको रिसर्व बैंक ने लाइसेंस दिया है रुपयों को बनाने का जमा राशि के रूप में ) के पास भी | कोई स्वर्णमान (गोल्ड स्टैण्डर्ड) अभी नहीं है (कि जितना सोना है , उतना ही पैसा बना सकते हैं) , क्योंकि वो कई दशक पहले पूरी दुनिया में रद्द हो गया है | रिसर्व बैंक गवर्नर/राज्यपाल रुपयों को सरकार के कहने पर बनाता है |

केवल रिसर्व-बैंक ही नोट छाप सकती और सिक्के बना सकती है लेकिन अनुसूचित बैंक जैसे स्टेट बैंक, आई.सी.आई.सी.आई., आदि, भी रुपये (एम 3) बना सकते हैं जमा राशि के रूप में | ये रुपयों की सप्लाई/आपूर्ति में बढने से रुपयों का मूल्य/दम कम हो जाता है और ये दूसरे सामान का दाम बड़ा देता है जैसे  खाना-पीना , तेल के दाम,आदि  और सामान्य महंगाई का मुख्य कारण है |

प्रश्न- रिसर्व-बैंक और अनुसूचित बैंक रुपये क्यों बनाते हैं ?

वे ऐसा अमीर ,भ्रष्ट लोगों के लिए करते हैं | मुझे एक उदाहरण देने दीजिए | मान लीजिए एक अमीर कंपनी है, जिसके रिसर्व बैंक-गवर्नर(राज्यपाल), वित्त मंत्री के साथ सांठ-गाँठ है | वे एक सरकारी बैंक से 1000 करोड़ रुपयों का कर्ज लेते हैं और वापस 200 करोड़ रुपये चूका देते हैं | और क्योंकि उनके सांठ-गाँठ है, वे रिसर्व-गवर्नर, वित्त मंत्री आदि को बोलेंगे कि वे उनको हिस्सा/रिश्वत देंगे और बदले में उनको उनकी कंपनी को दिवालिया/`डूब गयी` घोषित करने दिया जाये |

फिर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है | अभी, यदि बैंक ये 800 करोड़ का घाटा लोगों को घोषित कर देता है , तब बैंक भी दिवालिया हो जायेगा(डूब जायेगी) और बैंक के ग्राहक को भी अपनी जमा राशि खोनी पड़ेगी और ग्राहक, जो आम नागरिक-मतदाता हैं, शोर करेंगे और सरकार को जनता का गुस्सा झेलना पड़ेगा | इस स्थिति से बचने के लिए, सरकार रिसर्व बैंक-गवर्नर/अनुसूचित बैंकों को 800 करोड़ रुपये बनाने के लिए कहती है | ये ज्यादा रुपयों की सप्लाई , जब बाजार में आ जाती है, तो रूपए की कीमत घट जाती है और सामान की कीमत बढ जाती है, यानी महंगाई हो जाती है |

प्रश्न-महंगाई व्यापारियों द्वारा सामान की जमाखोरी से या निर्यात/`देश से बाहर भेजना` से होती है क्योंकि इससे सामान की कमी होती है और सट्टा बाजार या कम पैदावार से भी महंगाई हो सकती है |

ये सभी स्थानीय कारण हैं और ये सामान्य, व्यापक स्तर से कीमतें नहीं बढाते हैं| सामान की जमाखोरी से सामान की कमी आती है लेकिन कोई भी हमेशा के लिए सामान को जमा नहीं कर सकता और बाजार में सामान को छोड़ने पर , कीमतें कम होंगी और सामान्य कीमतों के बढने में कीमतें केवल एक ही दिशा में, ऊपर की ओर जाती हैं और कीमतें एक बार जब बढ जाती हैं तो कभी भी गिरती नहीं हैं |

ऐसे ही कीमतों का उतार-चदाव का रुख/झुकाव देखा जा सकता है, खाने-पीनी की चीजों और दूसरे सामानों के सट्टे में |

और सभी चीजों देश से बाहर नहीं भेजी जाती, इसीलिए सामान का देश से बाहर भेजना कीमतों की ऊपर की ओर का सामान्य झुकाव के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता |

`सकल(कुल) घरेलु उत्पाद(जी.डी.पी)` 1951 से 2011 तक केवल तीन गुना बड़ा है , इसीलिए वो हज़ार गुना रुपयों की मात्र के बढौतरी के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता |
पेट्रोल के दाम और धुलाई का लागत  से भी आम महंगाई नहीं बढती क्योंकि धुलाई की लागत , किसी भी चीज की लागत की केवल 2-4% ही होता है |

प्रश्न- ये कीमतों का बढना=महंगाई सभी नागरिक, गरीब और अमीर,सांठ-गाँठ के साथ और बिना कोई सांठ-गाँठ के , दोनों को एक समान असर करती है ?

नहीं | जो लोग गरीब हैं, बिना किसी सांठ-गाँठ/संपर्क के , वे और गरीब हो जाते हैं जब सामान के दाम बढ जाते हैं | और अमीर, विशिष्ट वर्ग के लोग सरकार के साथ मिली-भगत बना लेते हैं और रुपयों को बनवा लेते हैं मुफ्त में !! इस तरह, अमीर, सांठ-गाँठ/संपर्क वाले लोग गरीब, बिना कोई राजनैतिक या उच्च संपर्क के, आम लोगों को लूट रहे हैं !!

   

(23.2) भारत में रूपया (एम – 3 = कुल मुद्रा (धन) संख्या = देश में चलन में कुल नोट और सिक्के ,सभी प्रकार के जमा राशि का जोड़) कौन निर्माण करता / बनाता  है?

आम तौर पर यही समझा जाता है कि ‘रूपया’ शब्‍द का अर्थ है – जेब में पड़ा नकदी नोट, तिजोरियों में जमा नकदी नोट, चेक-खातों में जमा रकम, बचत खातों में जमा रकम, सावधि जमा रकम और उसपर मिलने वाला ब्‍याज आदि। जिसे हमलोग आम तौर पर रूपया कहते हैं उसे भारतीय रिजर्व बैंक एम – 3 कहता है। अब कृपया निम्‍नलिखित प्रश्‍नों का उत्‍तर देने के बाद ही आगे पढ़ें।

वित्त मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक और अन्‍य बैंकों में भ्रष्‍टाचार पर प्रश्‍न  

 

मान लीजिए, हम सभी लोगों की जेबें, खातों आदि में पड़े सभी रूपयों को जोड़ें और ‘रूपऐ की इस कुल संख्‍या’ को भारत की जनसंख्‍या से भाग दे दें तो हमें प्रति व्‍यक्‍ति रूपया (एम 3) रकम का पता चल जाएगा। तब, अप्रैल 1951, अप्रैल 2004 और आज मान लीजिए, अप्रैल 2010 में प्रति व्‍यक्‍ति रूपया की राशि/रकम कितनी थी?

कृपया अनुमान लगाकर उत्‍तर दें और अनुमान से अपना जवाब दे देने के बाद ही आगे पढ़ें। कृपया ऊपर लिखित प्रश्‍न के उत्‍तर में अपना अनुमान लगाने से पहले इससे आगे न पढ़ें।

   

(23.3) जनवरी-1951 और दिसंबर-2008 के बीच निर्माण किये गए / बनाए गए  रूपए (एम – 3)

निम्‍नलिखित दस्‍तावेज पर विचार कीजिए

दस्‍तावेज का विवरण

दस्‍तावेज का यू आर एल

1

जनवरी 1951-2010 के बीच भारत की माहवार अनुमानित जनसंख्‍या का मेरा अपना अनुमान

http://righttorecall.info/doc/indian_population.pdf

http://righttorecall.info/doc/data.001.pdf

2

अप्रैल-1951, अप्रैल-2004 के लिए

http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/69110.pdf

3

अप्रैल-2010 के लिए

http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Wss/PDFs/WSS140510F.pdf

4

1951-2009 के बीच सकल घरेलू उत्‍पाद (जी डी पी)

http://righttorecall.info/doc/annual_gdp.pdf

5

रूपयों और इसकी मात्रा के प्रकार

http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/69111.pdf

उपर्युक्‍त दस्‍तावेज से हमें निम्‍नलिखित आंकड़े मिलते हैं –

विषय

अप्रैल -1951

अप्रैल -2010

स्रोत

1

भारत की जनसंख्‍या

36.16 करोड़

118.30 करोड़

दस्‍ता.-1, अप्रैल-51 पंक्‍ति

दस्‍ता.-1, अप्रैल-10 पंक्‍ति

2

भारत में रूपए की मात्रा

2330 करोड़ रूपए

55,79,567 करोड़    रूपए

दस्‍ता.-2, पंक्‍ति 1

दस्‍ता.-3, तालिका- 7

3

प्रति नागरिक रूपए

    64 रूपए

   47,164 रूपए

(2) को (1) से भाग दें

4

60 वर्षों में रूपए की मात्रा में हुआ परिवर्तन

730 गुना

 47164 रूपए / 65 रूपए

5

भारत की सकल घरेलू उत्‍पाद (जी डी पी)    (1999 मूल्‍य)

 236,067 करोड़ रूपए

39,70,367 करोड़ रूपए

देखें दस्‍ता.-4 (2009 में 9% जोड़ें)

6

प्रति व्‍यक्‍ति, प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्‍पाद (जी डी पी)

 6,528 रूपए

  33,400 रूपए

 (5) को (1) से भाग दें

7

60 वर्षों में प्रति व्‍यक्‍ति सकल घरेलू उत्‍पाद (जी डी पी) में हुआ परिवर्तन

5.2 गुना

इस प्रकार सारांशत:

  1. अप्रैल, 1951 में भारत के प्रति नागरिक पर कुल रूपया लगभग 65/- था

  2. अप्रैल, 1951 और अप्रैल, 2010 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा (हो सकता है कि दूसरों के द्वारा भी) इतने अधिक एम – 3, रूपए छापे गए कि अप्रैल, 2010 में प्रति नागरिक कुल रूपया लगभग 47164/- था अर्थात 730 गुना ज्‍यादा। कृपया ध्‍यान दें कि यह 730 प्रतिशत बढ़ोत्‍तरी नहीं है बल्‍कि 730 गुना अर्थात 73,000 प्रतिशत की बढ़ोत्‍तरी है। और ये संख्‍याऐं प्रति व्‍यक्‍ति के आधार पर हैं। और इस प्रकार जनसंख्‍या में हुई 4 गुना वृद्धि को पहले ही गिनती में लिया जा चुका है।

  3. वर्ष 1951 से वर्ष 2010 तक में प्रति व्‍यक्‍ति सकल घरेलू उत्‍पाद में बढ़ोत्‍तरी 5.3 गुना से भी कम रही है।

  4. इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक (और दूसरों ने) रूपए की मात्रा 730 गुना बढ़ा दी ,वस्‍तुओं में प्रति नागरिक केवल 5.3 गुना की वृद्धि होने के बाद भी ।

5.         यही एकमात्र मुख्‍य कारण है कि क्‍यों मूल्‍य/महंगाई बढ़ी है।

मैं पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे महसूस करें कि रूपए की मात्रा में 730 गुना की वृद्धि का अर्थ/मतलब क्‍या है। इसका अर्थ है – वर्ष 1951 का हर रूपया 500 रूपए के एक नोट, 100 रूपए के दो नोटों और 10 रूपए के तीन नोटों (कुल 730/- रूपए) से बदल दिया गया है। और यह केवल प्रति नागरिक आधार पर है। यह देखते हुए कि जनसंख्‍या में लगभग 3.7 गुना की वृद्धि हुई है, रूपया की मात्रा में कुल वृद्धि लगभग 2400 गुना है। दूसरे शब्‍दों में, भारतीय रिजर्व बैंक ने वर्ष 1951 के (एक रूपए के) हर नोट को 1000 रूपए के दो नोट और 100 रूपए के चार नोट से बदल दिया है।

आइए अब मैं ,आप पाठकों के सामने एक परिदृष्‍य/खाका खींचता हूँ। मान लीजिए, भारतीय रिजर्व बैंक वर्तमान मुद्रा को वापस ले लेती है और नई मुद्रा जारी करती है। मान लीजिए, भारतीय रिजर्व बैंक हर एक रूपए के नोट को वापस लेकर नया 10 रूपए का नोट देती है, हर 5 रूपए के नोट वापस लेकर उसके बदले 50 रूपए का नया नोट जारी करती है, इत्‍यादि। तब क्‍या वस्‍तुओं जैसे दूध और रोटी/ब्रेड के दाम स्‍थिर ही रहेंगे? सामान्‍य बुद्धि से कहा जा सकता है कि मूल्‍य भी रातों-रात 10 गुना बढ़ जाएंगे। इसी प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने रूपए की मात्रा प्रति व्‍यक्‍ति के आधार पर 730 गुना बढ़ा दी है और अप्रैल 1951 से लेकर अप्रैल 2010 तक के दौरान कुल मिलाकर लगभग 2400 गुना कर दी है।

सैंकड़ों अर्थशास्‍त्री रात दिन काम कर रहे हैं और सभी प्रकार के बकवास सिद्धांत दे रहे हैं कि क्‍यों कीमतें बढ़ी हैं। लेकिन एक प्रमुख कारण यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक और अन्‍य बैंकों द्वारा छापा गया प्रति व्‍यक्‍ति रूपया इतना अधिक है कि रूपए की मात्रा आज 2010 में, 1951 में रूपए की जो मात्रा थी, उसकी 720 गुनी हो गयी है जबकि प्रति व्‍यक्‍ति आधार पर वस्‍तुओं की आपूर्ति/सप्लाई में 5.5 गुना से भी कम की वृद्धि हुई है। और इस प्रकार पिछले 60 वर्षों में कीमतें 100 गुना से भी ज्‍यादा बढ़ गई हैं। आइए अप्रैल, 2004 और अप्रैल, 2010 की तुलना करें –

विषय

अप्रैल -2004

अप्रैल -2010

स्रोत

1

भारत की जनसंख्‍या

       108.07 करोड़

118.30 करोड़

दस्‍तावेज़.-1, अप्रैल-51 पंक्‍ति

दस्‍ता.-1, अप्रैल-10 पंक्‍ति

2

भारत में रूपए की मात्रा

20,60,153 करोड़ रूपए

55,79,567 करोड़    रूपए

दस्‍ता.-2, अप्रैल 4 पंक्‍ति

दस्‍ता.-3, तालिका- 7

3

प्रति नागरिक रूपए

  18,947 रूपए

   47,164 रूपए

(2) को (1) से भाग दें

4

6 वर्षों में रूपए की मात्रा में हुआ परिवर्तन

2.5 गुना

 47164 रूपए / 19847 रूपए

5

भारत की सकल घरेलू उत्‍पाद (जी डी पी)    (1999 मूल्‍य)

0.5 गुना

  1. अप्रैल, 2004 में रूपए की मात्रा लगभग 18.900 रूपए प्रति नागरिक थी । अप्रैल, 2004 और अप्रैल, 2010 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक और अन्‍य/दूसरे बैंकों द्वारा बहुत ही ज्यादा रूपए छापे गए और इसलिए रूपए की मात्रा अप्रैल, 2010 में बढ़कर लगभग 47,000 रूपए प्रति नागरिक हो गई यानि 2.5 गुना अथवा 250 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

  2. इन 6 वर्षों में वास्‍तविक सकल घरेलू उत्‍पाद (जी डी पी) की वृद्धि 50 प्रतिशत से कम थी।

  3. इसलिए अधिकांश वस्‍तुओं की कीमत दो गुनी या तीन गुनी हो गई और कुछ वस्‍तुओं जैसे जमीन आदि की कीमतें तो 2 से 10 गुना तक बढ़ गईं।

दूसरे शब्‍दों में, पिछले 6 वर्षों में अनाज, दालें, जमीन आदि की कीमतें बढ़ गईं। मूल्‍य वृद्धि का मुख्‍य कारण यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और अन्‍य बैंकों के अध्‍यक्षों ने काफी बड़ी मात्रा में रूपए छापे। अप्रैल, 2004 का प्रत्‍येक रूपया अब अप्रैल, 2010 में एक रूपए के दो नोट और पचास पैसे के एक सिक्‍के से बदल गए। बहुत से अर्थशास्‍त्री झूठ बोला करते हैं और वे सभी प्रकार के काल्‍पनिक कारण जैसे वैश्‍विक मंदी को कारण बताएंगे या तेल मूल्‍यों में वृद्धि को कारण बता देंगे आदि, आदि। ये सभी कारण नकली, झूठे और गलत हैं। एकमात्र मुख्‍य कारण है – भारतीय रूपयों की अंधाधुंध/अनियंत्रित निर्माण/उत्पादन। यदि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने रूपयों की अंधाधुंध बनाने/उत्पादन को काबू/नियंत्रण में रखा होता तो मूल्‍यों में इतनी ज्‍यादा बढौतरी/वृद्धि नहीं होती। हमलोग भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और वित्‍त-मंत्री की मंशाओं/मकसद की जांच बाद में करेंगे। यही कारण है कि हम नागरिकों के पास भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को हटाने/बर्खास्‍त करने की प्रक्रियाएं अवश्‍य होनी चाहिएं। क्‍योंकि यदि हम नागरिकों के पास भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को हटाने/बर्खास्‍त करने का कोई तरीका नहीं होगा तो वह मनमानी पर उतर आएंगे और इतने अधिक रूपए छापेंगे कि सभी वस्‍तुओं की कीमत/दाम कई गुना बढ़ती चली जाएगी।

   

(23.4) भारत में वे कौन लोग हैं जो रूपए (एम-3= कुल मुद्रा/धन संख्या) निर्माण करते / बनाते हैं?

भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्‍त आंकड़ों के आधार पर मैंने दिखलाया है कि भारत में कुछ ऐजेंसियों ने वर्ष 1951 से 2010 के बीच इतने अधिक रूपए बनाये/निर्माण किये  कि रूपए की मात्रा अप्रैल, 1951 में 65 रूपया प्रति नागरिक से बढ़कर अप्रैल, 2004 में 18,900 रूपया प्रति नागरिक और अप्रैल, 2010 में 47000 रूपया प्रति नागरिक हो गयी। इसलिए अब यह प्रश्‍न उठता है कि : भारत में ये सभी रूपए/नोट कौन बनाता है?क्‍या भारत में भारतीय रिजर्व बैंक एकमात्र/सर्वसर्वा ऐजेंसी है अथवा भारत में और भी कुछ ऐजेंसियां हैं जिन्‍हें भी रूपए बनाने का अधिकार मिला हुआ है? आइए, एक बार फिर उन पांच दस्‍तावेज की जांच करें जिसे मैंने इस पहली सूची में सूचीबद्ध किया है।

इस पाठ की पहली तालिका में दिए गए ऊपर लिखित पांच दस्‍तावेज से हम पाते हैं कि

विषय

मात्रा/आयतन

स्रोत

1

अप्रैल, 2010 में रूपया (एम – 3)

 55,79,567 करोड़ रूपया

दस्‍तावेज -3, तालिका -7, स्‍तंभ -1

2

अप्रैल, 2010 में  जनसंख्‍या

118.30 करोड़

दस्‍तावेज -1, अप्रैल -10 के लिए इन्‍ट्री/प्रविष्‍ठि देखें

3

अप्रैल -2010 में प्रति नागरिक रूपया

  47,164 रूपया

 (1) को (2) से भाग दें

4

वर्ष 1934 से अप्रैल- 2010 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोट के रूप में बनाये गए/निर्माण किये गए  रूपए

8,20,219 करोड़ रूपया

दस्‍तावेज -3,  तालिका -1, स्‍तंभ -1

5

अप्रैल- 2010 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोट के रूप में बनाये  गए प्रति व्‍यक्‍ति रूपए

6400रूपया

(4) को (2) से भाग दें

6

अप्रैल- 2010 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमा/डिपॉजिट के रूप में बनाये गए प्रति व्‍यक्‍ति रूपए

  356,084 करोड़

दस्‍तावेज 3, तालिका -8, स्‍तंभ -4,5

7

अप्रैल- 2010 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जमा/डिपॉजिट के रूप में बनाये गए प्रति व्‍यक्‍ति रूपए

3010रूपया

 (6) को  (2) से भाग दें

8

अप्रैल- 2010 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोट और जमा/डिपॉजिट के रूप में बनाये गए प्रति व्‍यक्‍ति रूपए

9410रूपया

 (5) और (7) को जोड़ें

9

वित्‍त मंत्रालय द्वारा जारी सिक्‍के

  10910 करोड़ रूपया

दस्‍तावेज -3, तालिका -8, स्‍तंभ -15

10

जारी किए गए प्रति व्‍यक्‍ति सिक्‍के

 92 रूपया

(9) को (2) से भाग दें

11

अप्रैल- 2010 तक भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोट और जमा/डिपॉजिट और सिक्‍कों के रूप में बनाये गए/निर्माण किये गए प्रति नागरिक रूपए

   9502रूपया

 (8) और (10) को जोड़ें

बहुत से नागरिक गलत सोचते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक में जमाराशि वास्‍तविक रूपया नहीं होती, जबकि केवल भारतीय रिजर्व बैंक का रूपया ही वास्‍तविक होता है। यह गलत धारणा है और यह कहने के बराबर है कि पेपर(कागज) शेयर सर्टिफिकेट ही वास्‍तविक होता है जबकि डिमैट(इलेक्ट्रोनिक) खाते वास्‍तविक नहीं होते !! हम जानते हैं कि पेपर(कागज) शेयर सर्टिफिकेट के भी डिमेंट(इलेक्ट्रोनिक) एकाउन्‍ट की ही तरह कुछ वोटिंग-अधिकार अथवा कीमत होते हैं। इसी प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक की जमाराशि उतना ही वास्‍तविक होती है जितना की भारतीय रिजर्व बैंक के नोट/रूपए होते हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक रूपए (एम 3) को दो रूप में या दो तरह से छापता है, पहला है – भारतीय रिजर्व बैंक के नोट , जिन्‍हें हम नागरिक अपने साथ रखते हैं और दूसरा है – भारतीय रिजर्व बैंक के खातों में जमा रकम। भारतीय रिजर्व बैंक अपने जमा के बराबर रूपए छाप सकता है और इसे जमाकर्ताओं को देता है, जब वे इसकी मांग करते हैं। लेकिन अधिकांश बार, भारतीय रिजर्व बैंक के नोट खुदरा लेनदेन की जरूरतों से अधिक होते हैं और इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी जमाराशि को नोटों में बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन यह ‘भारतीय रिजर्व बैंक में डिपॉजिट’ सभी व्‍यावहारिक उद्देश्‍यों के लिए करेंसी नोटों(मुद्रा) के बराबर होते हैं।

इसलिए कुल मिलाकर अप्रैल, 2010 में भारत में रूपए (एम 3) की कुल राशि प्रति नागरिक 47000 रूपए थी जबकि भारतीय रिजर्व बैंक ने केवल 9410 रूपए ही छापे और वित्त मंत्रालय ने 90 रूपए प्रति नागरिक के हिसाब से सिक्‍के ढ़लवाए। इसलिए, किस ऐजेंसी ने बाकी के रूपए अर्थात (47000 9410 90) = 37500 रूपए प्रति नागरिक बनाये?

आइए, मैं अप्रैल, 2004 के अनुसार और अप्रैल, 2010 के अनुसार रूपए की मात्रा की तुलना करके और विस्‍तार से बताता हूँ।

विषय

अप्रैल -2004

अप्रैल -2010

स्रोत

1

भारत की जनसंख्‍या

    108.07 करोड़

118.30 करोड़

दस्‍ता.-1, अप्रैल-51 पंक्‍ति

दस्‍ता.-1, अप्रैल-10 पंक्‍ति

2

भारत में रूपए की मात्रा

20,60,153 करोड़ रूपए

55,79,567 करोड़    रूपए

दस्‍ता.-2, अप्रैल 4 पंक्‍ति

दस्‍ता.-3, तालिका- 7

3

प्रति नागरिक रूपए

  18,947 रूपए

   47,164 रूपए

(2) को (1) से भाग दें

4

प्रति व्‍यक्‍ति रूपए की मात्रा में वृद्धि

 28,047 रूपए

5

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नोटों के रूप में बनाये गए रूपए + जमा/डिपॉजिट

  435,083 करोड़ रूपए

 8,20,219 करोड़ रूपए

दस्‍तावेज -2 देखें

दस्‍तावेज -3 देखें

6

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रति नागरिक नोटों के रूप में बनाये गए रूपए + जमा/डिपॉजिट

 4000 रूपए

 9400 रूपए

 (5) को (1) से भाग दें

7

भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रति नागरिक नोटों के रूप में बनाये गए रूपए + जमा/डिपॉजिट में वृद्धि

   5400रूपए

दूसरे शब्‍दों में, अप्रैल, 2004 और अप्रैल, 2010 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक ने केवल 5400 रूपए प्रति नागरिक (के हिसाब से) रूपए बनाये जिनमें से कुछ नोट के रूप में थे और कुछ ‘भारतीय रिजर्व बैंक की जमाराशि’ के रूप में था। लेकिन भारत भर में नागरिकों के खातों में कुल रूपए (एम 3) लगभग 28,000 (प्रति नागरिक) ज्‍यादा बढ़ गए थे। इसलिए, इनसे पाठकों को यह तो आश्‍वस्‍त किया ही जा सकता है कि भारतीय रिजर्व बैंक भारत में एकमात्र ऐजेंसी नहीं है जो भारतीय रूपए (एम 3) छापती है। दूसरी और भी ऐजेंसियां हैं जो भारतीय रूपया छापती हैं। हालांकि यह करेंसी(मुद्रा) नोटों के रूप में नहीं होते। वास्‍तव में, आज की तारीख में भारत में जितना भी रूपया है उसका केवल लगभग 20 प्रतिशत ही भारतीय रिजर्व बैंक बनाता है। शेष 80 प्रतिशत भारतीय रिजर्व बैंक के अलावा दूसरे बैंकों द्वारा बनाये गए हैं।

   

(23.5) भारतीय स्‍टेट बैंक , बैंक ऑफ बड़ौदा आदि जैसे बैंकों को रूपए (एम 3) निर्माण करने / बनाने का अधिकार प्राप्त है !!

यह अधिकांश पाठकों के लिए आश्‍चर्य में डालने वाली बात हो सकती है। लेकिन भारत में सांसदों ने कानून बनाकर, वास्‍तव में भारतीय रिजर्व बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा आदि बैंकों को रूपए (एम 3) बनाने की अनुमति दे दी है जो पासबुक के रूप में होती है। भारतीय स्‍टेट बैंक नोटों के रूप में रूपए नहीं बना सकती और यह बनाएगी भी नहीं – यह एक ऐसा काम है जिसे करने का अधिकार केवल भारतीय रिजर्व बैंक को ही है। लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक पासबुक बैलेंस(बकाया) अथवा सावधि जमा/फिक्‍सड डिपोजिट के रूप में रूपए (एम 3) बना सकता है। और यह कानूनी है। ऐसे बैंक अनुसूचित/शेड्युल्‍ड बैंक कहलाते हैं अर्थात ऐसे बैंक जिनके पास पासबुक के रूप में भारतीय रूपए बनाने का लाइसेंस भारतीय रिजर्व बैंक से प्राप्‍त है। राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह एकमात्र ऐसी पार्टी/समूह है जो भारत के सभी नागरिकों के प्रति प्रतिबद्ध/समर्पित है कि भारतीय रिजर्व बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा आदि बैंक भारतीय रूपया (एम 3) छापते हैं।

यह भारतीय स्‍टेट बैंक आदि पासबुक मनी(मुद्रा) के रूप में भारतीय रूपए बनाते हैं। और इन नए बनाये रूपयों को प्रचलन/प्रवाह में लाने के लिए ,उन्‍हें इन नए बनाये गए नोटों को उन व्‍यक्‍तियों/कम्‍पनी के बचत खाते अथवा चालू खाते अथवा सावधि जमा खाते में जोड़ने की अनुमति है जो ऋण लेना चाहते हैं। भारतीय स्‍टेट बैंक इस तरीके से कितना रूपया छाप सकता है? यह रूपए के रूप में नोटों अथवा भारतीय स्‍टेट बैंक के यहां भारतीय रिजर्व बैंक की जमा रकम के लगभग 15 गुना के बराबर होता है। दूसरे शब्‍दों में ,यदि भारतीय स्‍टेट बैंक के पास, मान लीजिए, करेंसी(मुद्रा) नोटों के रूप में 1000 रूपया है तो भारतीय स्‍टेट बैंक लगभग 15000 रूपए बना सकती है और उन व्यक्तियों के खतों में डाल सकती है जिन्‍हें भारतीय स्‍टेट बैंक ऋण देना चाहती है।

अप्रैल, 2010 की स्‍थिति के अनुसार, सभी गैर-भारतीय रिजर्व बैंकों द्वारा कितने रूपए बनाये गए हैं? कृपया दस्‍तावेज 3 की तालिका 7 और तालिका 8 के पहले सभी स्‍तंभ की पहली लाईन/पंक्ति देखें। तालिका 7 में आज की तारीख तक भारत में सभी बैंकों द्वारा छापे गए कुल रूपए दर्शाए गए हैं। अप्रैल, 2010 में यह 5579567 करोड़ रूपए था जो प्रति नागरिक 47164 रूपए होता है। तालिका 8 ‘रिजर्व पैसा’ को दर्शाता है और इस बात/शब्‍द का अर्थ और कुछ नहीं बल्‍कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बनाये गए रूपए हैं जो 1185281 रूपए था अर्थात लगभग 9765 रूपए प्रति नागरिक । इसलिए लगभग (47164 9765 रूपया) = 37398 रूपया अप्रैल, 2009 और अप्रैल, 2010 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक के अलावा दूसरे बैंकों द्वारा छापे गए हैं।

इनमें से कितना रूपया भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा छापा गया है? कितना रूपया बैंक ऑफ बड़ौदा द्वारा छापा गया है? देखिए, यदि आप मुझे सभी बैंकों के बैलेंस शीट और क्‍लोजिंग शीट उपलब्ध कराते हैं तो मैं इनका उत्‍तर आपको दे सकता हूँ। यह तरीका/विधि इस प्रकार है :- भारतीय स्‍टेट बैंक द्वारा छापा गया लगभग पैसा = भारतीय स्‍टेट बैंक खातों में जमा रकम – भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारतीय स्‍टेट बैंक के कोष्ट(वाउल्‍ट) में दिया गया रूपया – भारतीय रिजर्व बैंक में भारतीय स्‍टेट बैंक की जमा रकम।

यह तो अनुमानित संख्‍या है। इसमें अन्‍य कारक भी होते हैं। जैसे , भारतीय स्‍टेट बैंक द्वारा लिया गया ऋण, भारतीय स्‍टेट बैंक की अपनी पूंजी आदि। भारतीय रिजर्व बैंक और अन्‍य बैंकों के बैलेंस शीट को समझने पर विस्‍तृत चर्चा/विवरण ‘भारत के रूपए की मात्रा’ नामक एक अलग लेख में की जाएगी। लेकिन अब तक के दिए गए आंकड़ों से पाठकों को आश्‍वस्‍त हो जाना चाहिए कि भारतीय स्‍टेट बैंक आदि बैंक पासबुक के रूप में निश्‍चित रूप से रूपया बनाते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक रूपया छपवाता तो है लेकिन यह कहना कि केवल भारतीय रिजर्व बैंक ही रूपया बनाता है, 20 प्रतिशत सच और 80 प्रतिशत झूठ है।

अब क्‍या भारतीय स्‍टेट बैंक द्वारा बनाये गए रूपए और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बनाये गए रूपए में कोई अन्‍तर होता है? मेरा उत्‍तर है- मैंने इस प्रश्‍न का जवाब अनेकों अर्थशास्‍त्रियों से पूछा है और उनमें से कोई भी भारतीय रिजर्व बैंक के रूपए और भारतीय स्‍टेट बैंक के रूपए के बीच कोई अन्‍तर बता नहीं पाया । और एक आम गलत तर्क यह दिया जाता है कि : यदि भारतीय स्‍टेट बैंक का प्रत्‍येक खाताधारक भारतीय स्‍टेट बैंक में जाकर अपनेअपने भारतीय स्‍टेट बैंक जमा के बदले भारतीय रिजर्व बैंक रूपए मांगे तो भारतीय स्‍टेट बैंक चूककर्ता/डिफाल्‍टरहो जाएगी।  और भारतीय स्‍टेट बैंक जमाकर्ताओं को भारतीय रिजर्व बैंक के नोट देने में समर्थ नहीं हो पाएगी। यह तर्क गलत है। यदि भारतीय स्‍टेट बैंक के सभी जमाकर्ता भारतीय स्‍टेट बैंक में जाएं और भारतीय रिजर्व बैंक के नोट मांगें तब वित्त मंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को यह निर्णय करना होगा कि वे भारतीय स्‍टेट बैंक को चूककर्ता/डिफाल्‍टर होने देना चाहते हैं या भारतीय स्‍टेट बैंक को बचाना चाहते हैं। यदि वे चाहते हैं कि भारतीय स्‍टेट बैंक चूककर्ता/डिफाल्‍टर हो जाए तो हां, भारतीय स्‍टेट बैंक निश्‍चित रूप से चूककर्ता/डिफाल्‍टर हो जाएगी। लेकिन यदि वे भारतीय स्‍टेट बैंक को बचाना चाहते हैं तो भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर आवश्‍यक संख्‍या में भारतीय रिजर्व बैंक के नोट छापकर इसे भारतीय स्‍टेट बैंक बौन्ड के बदले अथवा सिर्फ भारतीय स्‍टेट बैंक के ऋण के रूप में भारतीय स्‍टेट बैंक को भिजवा देंगे। इसलिए सारांशत: यह मानते हुए कि वित्त मंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर किसी भी परिस्‍थिति में भारतीय स्‍टेट बैंक को चूककर्ता/डिफाल्‍टर बनने नहीं देंगे, तो भारतीय स्‍टेट बैंक के खाते में पड़े रूपए भी भारतीय रिजर्व बैंक नोटों के समान/बराबर हैं ।

   

(23.6) नए बनाये गए रुपये कौन देता है और किसे दिए जाते हैं?

भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय रूपयों को करेंसी(मुद्रा), नोटों के रूप में बनाकर और भारतीय रिजर्व बैंक के बुक/किताब में जमा कर सकती है। भारतीय रिजर्व बैंक डॉलर जमा करवाने अथवा सरकारी बांडों के बदले रूपए बनाती है। उदाहरण – जब कोई व्‍यक्‍ति भारतीय रिजर्व बैंक में डॉलर जमा करता है तो भारतीय रिजर्व बैंक उतने रूपए मान लीजिए, 45 रूपए, बना सकती है और उस व्‍यक्‍ति को या उस बैंक को दे सकती है जिसमें उस व्‍यक्‍ति का खाता है। और भारतीय रिजर्व बैंक भारत सरकार के 100 रुपये बॉन्‍ड के बदले, 100 रूपए बना सकती है और भारत सरकार को दे सकती है। कुल मिलाकर, जो भी रूपया भारतीय रिजर्व बैंक बनाता है वह पैसा उस व्‍यक्‍ति के पास जाता है जिसने डॉलर जमा किए हों या भारत सरकार के पास जाता है। इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक में नए छपे रूपयों के देने में बेतहाशा/ अनियंत्रित भ्रष्‍टाचार की संभावना बहुत ही कम है।

लेकिन जब एक गैर भारतीय रिजर्व बैंक जैसे भारतीय स्‍टेट बैंक आदि रूपए छापते हैं तो यह भारत सरकार या निजी संस्‍थान को ऋण के रूप में दिया जाता है। अप्रैल, 2010 के अनुसार, गैर भारतीय रिजर्व बैंक बैंकों ने सरकार को ऋण के रूप में 1,44,8041 करोड़ रूपए दिए हैं और निजी व्‍यक्‍तियों तथा कम्‍पनियों को 34,81,925 करोड़ रूपए दिए हैं। दूसरी तरह से हम कह सकते हैं कि गैर भारतीय रिजर्व बैंकों ने सरकार को 12,240 रूपए प्रति नागरिक का ऋण दिया है और नागरिकों को 29,430 रूपए प्रति नागरिक ऋण दिया है। सरकार को दिए गए ऋण में कोई भ्रष्‍टाचार नहीं होता लेकिन निजी इकाईयों / धंधों को ऋण देने में भ्रष्‍टाचार हो सकता है और बड़े ऋणों में, जिनमें कोई जमानत/गारंटी नहीं लिया जाता, वहां भ्रष्‍टाचार की बहुत संभावना होती है। और अकसर भ्रष्‍टाचार ही वह कारण होता है कि जिसके कारण बैंकों के चेयरमैन, वित्त मंत्रालय के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, वित्त मंत्री आदि हमेशा अधिक से अधिक रूपए (एम 3) बनाने और उसे ऋण के रूप में देने को उत्‍सुक रहते हैं। निजी इकाईयों /धंधो को दिए गए ऋण में से कई ऋण वापस ही नहीं आते अथवा पौंजी योजना लागू की जाती है जिसमें पुराने कर्ज़/ऋण केवल तभी चुकाए जाते हैं जब नए ऋण जारी किये जाते हैं या दिए जाते हैं। यदि ऋण नहीं चुकाया जाता है तो इससे बैंकों को और अधिक रूपए बनाने की जरूरत पड़ती है ताकि जमाधारकों/डिपॉजिटर्स का पुन:भुगतान किया जा सके। और जब किसी उधार लेने वाले को नए ऋण दिए भी जाते हैं ताकि वह पुराने ऋण चुका सके, तो भी बैंकों को नए ऋण लगातार जारी करते रहने के लिए रूपए बनाने ही पड़ते हैं। किसी भी परिस्‍थिति में नए छापे गए नोट प्रचलन/सर्कुलेशन में चले ही जाते हैं।

   

(23.7) निर्माण किया / बनाया गया रूपया कैसे धन चुरा रहा है?

अधिकांश अर्थशास्‍त्री इस बात पर जोर देते हैं कि नागरिकों को भारतीय रिजर्व बैंक के मामलों में दखल नहीं देना चाहिए और भारतीय रिजर्व बैंक जितने भी रूपए बनाना चाहता है, उसे बनाने देना चाहिए। और वे स्‍पष्‍ट तौर पर इनकार/मना कर देते हैं कि जब बैंकों द्वारा बनाये गए नए रूपयों, वर्तमान/पुराने नोटों की भी कीमत घटाएंगे । यह केवल उनकी(अर्थशास्त्रियों की)व्‍यक्‍तिगत राय है। जहां तक मैं समझता हूँ, नए बनाये गए हर रूपए के साथ ही मौजूदा/पुराने रूपयों की कीमत भी तदनुसार घटती है। अर्थात यदि रूपए की आपूर्ति/सप्लाई किसी वर्ष 20000 रूपए प्रति नागरिक है और यदि भारतीय रिजर्व बैंक (और अन्‍य बैंक) उसी वर्ष के दौरान प्रति नागरिक 20000 रूपया के बराबर एम – 3 बनाती है तो पैसे की कीमत लगभग आधी हो जाएगी और यह उन लोगों की संपत्ति की भी आधी हो जाएगी और उनकी आधी संपत्ति उन व्यक्तियों के हाथों में चली जायेगी जिन्हें नए छपे नोट/रूपए मिले हैं। इसे ठीक से समझने के लिए निम्‍नलिखित वास्‍तविक संख्‍याओं पर गौर/विचार करें –

विषय / विचार

अप्रैल -2009

अप्रैल -2010

स्रोत

1

भारत की जनसंख्‍या

116.87 करोड़

118.30 करोड़

दस्‍ता.-1, अप्रैल-09 पंक्‍ति

दस्‍ता.-1, अप्रैल-10 पंक्‍ति

2

भारत में रूपए की मात्रा

48,58,917 करोड़ रूपए

55,79,567 करोड़    रूपए

दस्‍ता.-3, तालिका- 7

दस्‍ता.-3, तालिका- 7

3

प्रति नागरिक रूपए

41,587 रूपए

47,164 रूपए

(2) को (1) से भाग दें

4

प्रति व्‍यक्‍ति रूपए की मात्रा में वृद्धि

5,585 रूपए

47,164 रूपए –

41,587 रूपए

5

प्रति व्‍यक्‍ति रूपए की मात्रा में प्रतिशत वृद्धि

13.4%

इसलिए, अप्रैल, 2009 और अप्रैल, 2010 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भारतीय स्‍टेट बैंक के अध्‍यक्ष और अन्‍य बैंकों के वरिष्‍ठ स्‍टॉफ ने वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री की शह/आशीर्वाद से अप्रैल, 2009 में (मौजूद) रूपयों के लगभग 14 प्रतिशत के बराबर रूपए बना दिए। इन रूपयों के छपने के बाद, नए बनाये गए रूपयों में से लगभग 40 प्रतिशत सरकार को दिए और शेष निजी इकाईयों/इन्‍टिटिज/धंधों को दिए गए। ये नए बनाये 14 प्रतिशत रूपए और कुछ नहीं बल्‍कि अप्रैल, 2009 में लोगों के पास के रूपयों में से लगभग 14 प्रतिशत की चोरी थी। यदि हम नियमित रूप से पाए जाने वाले लगभग 6 प्रतिशत ब्‍याज को घटा भी दें तो भी यह 8 प्रतिशत की चोरी तो है ही। इसलिए, रूपए का बनाना और बैंकों के अध्‍यक्ष, वित्‍त मंत्री (मंत्रालय) के अधिकारियों, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री आदि के नजदीकी लोगों को देना रूपया धारकों के रूपए चुराने के बराबर/समान है।

रूपए छापने से उनलोगों को फायदा होता है जिनके नजदीकी संबंध/रिश्‍ते निदेशकों, अध्‍यक्षों आदि तथा बैंकों, भारतीय रिजर्व बैंक, वित्त मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय से होते हैं। और इससे उन लोगों को भी फायदा होता है जिनके संबंध उच्‍चतम न्‍यायालय/सुप्रीम-कोर्ट के शक्तिशाली वकीलों के साथ होते हैं। और कर्ज़/ऋण आदि से जुड़े अनेक मामले जब कानूनी मुकद्दमों/वादों में पड़ जाते हैं तब इनमें नामी वकील लोग जिनका जजों के बीच अच्छा नाम है ,हमेशा ही महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुल मिलाकर रूपए बनाने से उन लोगों के धन की लूट/डकैती होती है जिनके तार राजनैतिक लोगों से कम ही जुड़े होते हैं और यह धन उन लोगों के पास जाता है जिनके राजनैतिक लोगों के साथ संबंध/तार अच्‍छे से जुड़े होते हैं। ऐसा गलत काम करने के लिए मतदाताओं/वोट मैगनेट्स की जरूरत नहीं पड़ती बल्‍कि उन लोगों की जरूरत पड़ती है जो बैंकों, पुलिस, न्‍यायालयों और मीडिया पर अपने नियंत्रण के जरिए मतदाताओं/वोट मैगनेट्स पर नियंत्रण करते हैं।

हम इस लूट को कैसे रोक सकते हैं? राइट टू रिकॉल ग्रुप/ प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्‍य के रूप में मेरा एक लक्ष्‍य यह भी है कि मैं उन प्रक्रियाओं को लागू करवाऊं जिससे हम नागरिक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और भारतीय स्‍टेट बैंक के अध्‍यक्ष को हटा/बदल सकें और इस प्रकार रूपए के बनाने (का निर्णय) नागरिकों के हाथों में आ जाए। इससे रूपए के निर्माण/बनाने के माध्‍यम से होने वाली लूट कम हो जाएगी।

   

(23.8) इसलिए , कीमतें / मूल्‍य बढ़ने का असली कारण?

कीमतें सिर्फ इसलिए बढ़ती हैं, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक (और अन्‍य बैंक) वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था की वास्‍तविक वृद्धि दर से बहुत ही ज्‍यादा रूपए बनाते हैं। विकास दर बढ़ा चढ़ा कर बताई जाती है क्‍योंकि मुद्रास्‍फीति सूचकांक कम करके बताया जाता है (सही रिपोर्ट नहीं दी जाती है) और यह गलत रिपोर्ट भूमि की कीमत (जैसे कि आज कोई भूमि नहीं चाहता है) को सूचकांक में शामिल न करके की जाती है। नए बने रूपए वर्तमान रूपयों की कीमत कम कर देते हैं और सभी प्रकार से यह रूपया धारकों से रूपए ले लेने/हड़प लेने के समान है। यह मूल्‍य वृद्धि केवल अत्‍यधिक रूपयों के बनाने के कारण ही होती है।

इसलिए वित्त मंत्री, प्रधानमंत्री आदि रूपए का बनाना/विनिर्माण कम क्‍यों नहीं कर देते? क्‍योंकि भारत में विशिष्ट/ऊंचे लोगों को रूपए चाहिए और राजस्‍व(आमदनी) के द्वारा रूपए प्राप्‍त करना उनके लिए बहुत ही कठिन होता है क्‍योंकि अधिकांश विशिष्ट/ऊंचे लोगों में राजस्‍व के द्वारा रूपए कमाने के लिए जरूरी तकनीकी कौशल/दक्षता नहीं होती। इसलिए वे आसान रास्‍ता चुनते हैं – बस उन्‍हें (रूपयों को) बनाओ/निर्माण करो और काफी कम ब्‍याज पर कर्ज़/ऋण के रूप में लेना होता है और इनमें से कई लोग तो कर्ज़ तक चुकाते नहीं हैं और इसलिए बैंकों को और अधिक रूपए बनाने की जरूरत पड़ती रहती है। इसलिए यदि प्रधान मंत्री/वित्त मंत्री भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर और भारतीय स्‍टेट बैंक के अध्‍यक्ष से रूपए बनाना बन्‍द करने के लिए कहा जाए तो ये विशिष्ट/ऊंचे लोग समाज में अपना स्‍थान सबसे ऊपर बनाए रखने के लिए रूपए नहीं पा सकेंगे।

यदि बैंक रूपए बनाना बन्‍द कर दें तो क्‍या उद्योग कार्य करना बन्‍द कर देंगे? नहीं। आज की स्‍थिति के अनुसार बैंक रूपए बनाती है और उन व्‍यक्‍तियों को देती है जिनके तार बैंकों के साथ जुडे होते हैं और ये लोग जमीन, वस्‍तुएं आदि खरीदते हैं और उद्योग-धंधे चलाते हैं। यदि बैंक रूपए बनाकर और बनाकर उद्योगपतियों को देना बन्‍द कर दें तो इन वस्‍तुओं की कीमत गिरेगी और इस प्रकार उद्योग कम ही रूपयों में चलेंगे लेकिन इससे सामग्री की मात्रा प्रभावित नहीं होगी। तो फिर क्‍या परिवर्तन आएगा? परिवर्तन यह आएगा कि उद्योगों पर नियंत्रण उन लोगों के हाथों में से निकल जाएगा जिनके बैंकों से संबंध हैं और उन लोगों के हाथों में चला जाएगा जिनके बैंकों से संबंध नहीं हैं। दूसरे शब्दों में, उद्योग पर नियंत्रण उनके हाथों में चला जाएगा जिनके पास तकनीकी कौशल होगा न कि केवल राजनैतिक संबध/पहुंच रखने वालों के हाथ में रहेगा। नियंत्रण रखना ही एकमात्र कारण है कि क्‍यों विशिष्ट/ऊंचे लोगों चाहते हैं कि बैंक अधिक से अधिक रूपए छापें। यह नए बने पासबुक वाले रूपए (एम 3) नए कर्जों के रूप में दे दिए जाते हैं। कृपया ध्‍यान दें कि नए कर्जे, पुराने कर्जों के चुकाए/लौटाए गए रूपयों से जारी किए गए कर्जे नहीं । भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारी वे आंकड़े नहीं देते जिनमें यह बताया गया हो कि कौन से लोगों ने कितने नए बनाये गए रूपए पाए/लिए लेकिन नए बनाये रूपयों में से अधिकांश रूपया सबसे पहले भारत की जनसंसंख्‍या की शीर्ष/सबसे ऊपर के 0.1 प्रतिशत लोगों को दिए जाते हैं। और इन रूपयों का लगभग आधा हिस्‍सा भारत के शीर्ष 500,000 धनवान लोगों के पास कर्ज़ के रूप में जाता है। दूसरे शब्‍दों में, भारतीय जनसंख्‍या के शीर्ष 0.1 प्रतिशत लोगों को वर्ष 2008 में छपे 750,000 करोड़ रूपए का एक बहुत बड़ा हिस्‍सा मात्र ‘भुगतान करने के वायदे’ पर ही दे दिया गया।

   

(23.9) समाधान – 1 : प्रजा अधीन – भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर

प्रस्तावित प्रक्रिया का क़ानून-ड्राफ्ट /प्रारूप इस प्रकार है –

#

निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया

प्रक्रिया/अनुदेश

1

नागरिक शब्‍द का मतलब/अर्थ रजिस्टर्ड वोटर/मतदाता है।

2

जिला कलेक्टर

यदि भारत का कोई भी नागरिक भारतीय रिजर्व बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) का गवर्नर बनना चाहता हो तो वह जिला कलेक्टर के समक्ष/ कार्यालय स्‍वयं अथवा किसी वकील के जरिए एफिडेविट लेकर जा सकता है। जिला कलेक्टर सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्‍क लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर पद के लिए उसकी दावेदारी स्‍वीकार कर लेगा।

3

तलाटी/पटवारी/लेखपाल (अथवा तलाटी का क्‍लर्क)

यदि उस जिले का नागरिक तलाटी/ पटवारी के कार्यालय में स्‍वयं जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को भारतीय रिजर्व बैंक  के गवर्नर के पद के लिए अनुमोदित करता है तो तलाटी उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्‍प्‍युटर में डाल देगा और उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा।

4

तलाटी

वह तलाटी नागरिकों की पसंद/अनुमोदन/स्वीकृति को जिले के वेबसाइट पर उनके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र और उसकी पसंद के साथ डाल देगा।

5

तलाटी

यदि कोई नागरिक अपने अनुमोदन/स्वीकृति रद्द करने के लिए आता है तो तलाटी उसके  एक या अधिक अनुमोदनों को बिना कोई शुल्‍क लिए बदल देगा।.

6

मंत्रिमंडल सचिव

प्रत्‍येक महीने की पांचवी तारीख को मंत्रिमंडल सचिव प्रत्‍येक उम्‍मीदवार की अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती पिछले महीने की अंतिम तिथि की स्‍थिति के अनुसार प्रकाशित करेगा।

7

प्रधानमंत्री

यदि किसी उम्‍मीदवार को किसी जिले में सभी दर्ज/रजिस्‍टर्ड मतदाताओं के 51 प्रतिशत से ज्‍यादा नागरिक-मतदाताओं (केवल वे मतदाता ही नहीं जिन्‍होंने अपना अनुमोदन/स्वीकृति फाइल किया है बल्‍कि सभी दर्ज मतदाता) का अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाता है तो प्रधानमंत्री मौजूदा/वर्तमान भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को हटा सकते हैं या उन्‍हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है और उस सर्वाधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त उस उम्‍मीदवार को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के रूप में नियुक्‍त कर  सकते हैं या उन्‍हें ऐसा करने की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री का निर्णय अंतिम होगा।

8

जिला कलेक्‍टर

यदि कोई नागरिक इस कानून में कोई बदलाव चाहता है तो वह जिलाधिकारी/डी सी के कार्यालय में जाकर एक एफिडेविट जमा करा सकता है और डी सी या उसका क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पेज का शुल्‍क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

9

तलाटी (या

पटवारी)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसकी किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के खंड में प्रस्‍तुत किसी एफिडेविट पर हां – नहीं दर्ज कराना चाहे तो वह अपने वोटर आई कार्ड के साथ तलाटी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्‍क देगा। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उसे एक रसीद/पावती देगा। यह हां – नहीं प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाला जाएगा।

10

सी.वी -1 (जनता की आवाज़-1)             जिला कलेक्‍टर

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पन्ने का शुल्‍क/फीस लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

11

सी.वी -2 (जनता की आवाज़-2)       तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

     
प्रस्‍तावित कानून का सार इस प्रकार है –

1.      भारत का कोई भी नागरिक सांसद के चुनाव के लिए जमा की जाने वाली वाली धनराशि के बराबर शुल्‍क जिला कलेक्टर के पास जमा कराकर खुद/स्‍वयं को भारतीय रिजर्व बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) के गवर्नर के उम्‍मीदवार के रूप में पंजीकृत/रजिस्‍टर करवा सकता है।

2.      भारत का कोई भी नागरिक तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को भारतीय रिजर्व बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) के गवर्नर के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा।

3.      कोई नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति किसी भी दिन रद्द/कैंसिल भी करवा सकता है।

4.      तलाटी नागरिकों की प्राथमिकता को जिले की वेबसाइट पर उनके/नागरिकों के वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र संख्‍या और उसकी प्राथमिकता/पसंद के साथ डाल देगा।

5.      यदि किसी उम्‍मीदवार को सभी दर्ज/रजिस्‍टर्ड मतदाताओं के 50 प्रतिशत से ज्‍यादा मतदाताओं (केवल वे मतदाता ही नहीं जिन्‍होंने अपना अनुमोदन/स्वीकृति फाइल किया है बल्‍कि सभी दर्ज मतदाता) का अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाता है तो प्रधानमंत्री मौजूदा/वर्तमान भारतीय रिजर्व बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) के गवर्नर को हटा देंगे और उस सर्वाधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त उस उम्‍मीदवार को भारतीय रिजर्व बैंक (भारतीय रिजर्व बैंक) के गवर्नर के रूप में नियुक्‍त कर देंगे / रखेंगे ।

इसके अलावा, नागरिकों को प्रजा अधीन–भारतीय स्‍टेट बैंक के अध्‍यक्ष (कानून) भी लागू करवाना चाहिए ताकि भारतीय स्‍टेट बैंक भी बहुतायत/बेहिसाब रूपए न बनाये। प्रजा अधीन – भारतीय स्‍टेट बैंक के अध्‍यक्ष कानून का प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट भी प्रजा अधीन–भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर के समान ही है।

   

(23.10) (रूपए) जमा करने और कर्ज़ / ऋण देने की प्रणालियों / सिस्टम में बदलाव लाना

मैं राइट टू रिकॉल ग्रुप/ प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्‍य के रूप में नोट/करेंसी प्रणाली/सिस्टम में निम्‍नलिखित बदलाव/परिवर्तन का प्रस्‍ताव करता हूँ –

  1. उन प्रक्रियाओं को लागू करें जिसके सहारे नागरिकगण भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, भारतीय स्‍टेट बैंक के अध्‍यक्ष को बदल/हटा सकें।

  2. सभी बैंको का विलय भारतीय स्‍टेट बैंक में किया जाए

  3. सभी सरकारी बैंकों को निधि के हस्‍तांतरण/फंड ट्रान्‍सफर और भंडारण के काम करने तक ही सीमित रखें

  4. ऋण/कर्ज़ देने में सरकारी बैंकों की भूमिका में कटौती करें। सरकारी बैंक गारंटी-रहित कर्ज़ केवल नागरिकों को ही देंगे, कम्‍पनियों को नहीं। और प्रति व्‍यक्‍ति 2,00,000 रूपए से कम का कर्ज़ देंगे और 8 प्रतिशत के ब्‍याज पर उन व्‍यक्‍तियों को ही देंगे जो इसके पात्र/योग्‍य होंगे।

  5. सरकारी बैंक केवल कम्‍पनियों को ऋण/कर्ज़, किन्हीं व्‍यक्‍तियों को गारंटर बनाकर ही देंगे। उदाहरण के लिए, यदि कोई कम्‍पनी मान लीजिए, 200 करोड़ रूपए का कर्ज़/ऋण चाहती है तो उसे 10,000 बालिग/वयस्‍क व्‍यक्‍तियों को सामने लाना होगा जिनमें से हरेक व्‍यक्‍ति 2,00,000 रूपए की गारंटी देने की इच्‍छा रखता हो।

  6. (किसी बड़े संस्था की)बड़ी आर्थिक सहायता/ बेल आउट के लिए सभी नागरिक-मतदाताओं के 51 प्रतिशत से ज्‍यादा लोगों के अनुमोदन/स्वीकृति की जरूरत होगी।

  7. सरकारी बैंक केवल बचत खातों को ही सहयोग देंगे जिसमें व्‍यक्‍तियों को वर्ष में न्‍यूनतम आवश्‍यक रकम/बैलेंस रखने पर 6 प्रतिशत का ब्‍याज मिलेगा। वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए 15,00,000 रूपए से कम की राशि वर्ष में शेष रकम/बैलेंस के रूप में रखने पर 8 प्रतिशत का ब्‍याज मिलेगा। और 15,00,000 रूपए से अधिक पर 4 प्रतिशत ब्‍याज मिलेगा। इसके अलावा, महीने भर में न्‍यूनतम शेष राशि पर 3 प्रतिशत का ब्‍याज मिलेगा।

  8. ट्रस्‍ट और निजी कम्‍पनियों की जमा राशि पर कोई ब्‍याज नहीं मिलेगा। जो कम्‍पनियां/ट्रस्‍ट ब्‍याज चाहती हैं वे निजी बैंकों के पास जा सकती हैं।

  9. सरकार केवल सरकारी बैंकों में जमा धनराशि का ही बीमा रखेगी/जिम्‍मेदारी लेगी निजी बैंकों में जमा धनराशियों का नहीं।

  10. निजी बैकों को नियंत्रित/विनियमित करने(ठीक-ठाक रखने) के लिए सरकार प्रत्येक निजी बैंक के लिए डिपॉजिटर ग्रुपों का गठन करेगी और ये डिपॉजिटर ग्रुप बैंकों के कामकाज पर नजर रखेंगे। लेकिन सरकार निजी बैंकों को नियंत्रित/विनियमित नहीं करेगी।

  11. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर केवल ब्‍याजों के भुगतान के लिए और सेना, पुलिस, न्‍यायालयों/कोर्ट, कक्षा I से XII की शिक्षा/पढ़ाई, स्वास्‍थ्‍य, वरिष्‍ठ नागरिकों को सहायता, विकलांगों/अशक्‍तों को सहायता के लिए ही रूपए जारी करेंगे,51 % नागरिकों की अनुमोदन/स्वीकृति(समर्थन) से ,और किसी अन्य कारण से नहीं।

  12. नागरिकों के अनुमोदन/स्वीकृति के बिना रूपए की कोई छपाई नहीं होगी :  एक ऐसा कानून लागू करना कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर सेना और युद्ध की जरूरतों को छोड़कर, तब तक   एम 3(कुल मुद्रा/धन संख्या) में बढ़ोत्‍तरी/वृद्धि नहीं करेंगे जब तक कि 51 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने इसपर अपना हां दर्ज न करवा दिया हो।

  13. आगे से किसी भी सरकारी निकाय/संस्था को कोई ऋण/कर्ज़ लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

  14. वैश्‍विक बैंकिंग प्रणाली/व्‍यवस्‍था : हर नागरिक का उसके घर के निकट की बैंक-शाखा में कम से कम एक खाता अवश्‍य होगा। सरकार आदि से उसके सभी लेन-देन उसी बैंक और उसी खाते के जरिए होंगे। हर नागरिक का खाता संख्‍या और उसका टैक्‍स आई डी/ कर पहचान पत्र (सह राष्‍ट्रीय पहचान पत्र जब राष्‍ट्रीय पहचान पत्र व्‍यवस्‍था लागू होगी) समान/एक ही होगा और भारत सरकार के क्षेत्र/कार्य के लिए उसका वैश्‍विक मोबाइल नम्‍बर और वैश्‍विक ई-मेल एकाउन्‍ट भी वही होगा। इस खाते से होने वाले हर लेनदेन (की सूचना) एस एम एस के जरिए उसके मोबाईल पर भेजी जाएगी।

  15. सरकारी बैंकों से होनेवाले विवाद केवल जूरी-मंडल/जूरर्स द्वारा निपटाए/सुलझाए जाएंगे ,जजों द्वारा नहीं।

  16. छिपे तौर पर/अंडरग्राउन्‍ड बैंकिग को रोकने के उपाय : भारत सरकार स्‍विस बैंक सहित विश्‍व के सभी बैंकों को बाध्‍य करेगी कि वे अपने बैंक में भारत के हर नागरिक/व्‍यक्‍ति की (जमा) सम्‍पत्‍ति/धन का खुलासा करे।

  17. खातों/एकाउन्‍ट्स पर नजर रखने के लिए राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली(सिस्टम)।

वर्तमान रुपया प्रणाली को `नागरिक रूपया प्रणाली(सिस्टम) में बदलना

  1. हर व्‍यक्‍ति के सभी सावधि जमा (रूपए), उसपर मिले ब्‍याजों सहित संबंधित व्यक्‍ति के बचत खाते में डाले/जोड़े जाएंगे और कम्‍पनियों की सावधि जमा रकम उनके चालू खातों में जोड़ी जाएगी।

  2. सरकार सभी सरकारी, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों (पब्लिक धंधों) के बॉन्‍ड के पुन:भुगतान के लिए रूपए बनाएगी।

  3. सरकारी बैंको से लिए गए सभी बकाया कर्जों/ऋणों पर ब्‍याज 4 प्रतिशत कर दिया जाएगा और घर के लिए, लिए गए सभी कर्जों/ऋणों को 180 मासिक किश्‍तों में चुकाना होगा, वाहन के लिए, प्राप्‍त किए गए कर्जों को 48 किश्‍तों में और अन्‍य सभी प्रकार के कर्जों को 180 मासिक किश्‍तों में चुकाना होगा।

  4. देर से (कर्ज़) चुकाने का जुर्माना/अर्थदण्‍ड 8 प्रतिशत होगा। संपत्‍ति की नीलामी 30 से 120 दिनों के भीतर कर दी जाएगी यदि भुगतान न की गई किश्‍त मूलधन के एक चौथाई से ज्‍यादा हो जाएगी। नीलामी (से प्राप्‍त पैसे) का उपयोग ऋण/कर्ज़ चुकाने के लिए किया जाएगा और यदि यह पैसा कर्ज़ चुकाने से अधिक होगा तो शेष रकम उधार-धारक को वापस कर दी जाएगी। यदि नीलामी का पैसा कुल कर्ज़ से कम होगा तो इसे आवश्‍यकता पड़ने पर नए नोट बनाकर बट्टेखाते डाला जाएगा/समाप्त कर दिया जाएगा।

  5. उपर्युक्‍त ऋण/कर्ज़ को चुकाने से प्राप्‍त धन के बदले कोई नया ऋण/कर्ज़ जारी नहीं किया जाएगा।

कुल मुद्रा / धन संख्या (एम 3) एक कानूनी-राजनीती तत्व है , बाजार आधारित तत्व नहीं

 

एम 3 (कुल मुद्रा संख्या ) में केवल वो ही कर्जा शामिल है जो उन इकाइओं से लिया गया है जिनके पास रिसर्व बैंक द्वारा दिए लिसेंस है , उदाहरण ,यदि आप रु.1000 भारतीय स्टेट बैंक को देते हैं और भारतीय स्टेट बैंक एक रु.900 का कर्ज जारी करता है, तो एम3 की संख्या ऊपर चली जाती है | लेकिन यदि आप मुझे रु.1000 देते हैं और मैं रु.900 का कर्ज किसी को देता हूँ, तो एम 3 की संख्य बढती नहीं है | क्यों? क्योंकि मेरे पास रिसर्व बैंक के पास से लिसेंस नहीं है| दूसरे शब्दों में एम ३ एक कानूनी-राजनीती तत्व/इकाई है, बाजार आधारित तत्व/इकाई नहीं क्योंकि सरकार ये निर्णय करती है कि क्या कुल मुद्रा संख्या (एम 3) में आता है और क्या नहीं |

रिसर्व बैंक द्वारा डॉलर आदि विदेशी मुद्रा जमा करने पर रुपया निर्माण- समस्या और समाधान

आज के समय जब भारत में कोई डॉलर आदि विदेशी मुद्रा कोई भी बैंक को देता है, तो बैंक उसे रिसर्व बैंक को देता है और रिसर्व बैंक उसके बदले विनिमय दर के अनुसार उतने रुपयों का निर्माण कर देता है | इससे प्रचलित रुपये बढ जाते हैं और जैसे पहले संजय गया है, महंगे बद जाती है|

हमें इस सिस्टम/प्रणाली को बदलना होगा: जब कोई व्यक्ति 1000 डॉलर जमा करवाए, तो उसकी प्रविष्टि/एंट्री (उसके खाते में) 1000 डॉलर ही रहनी चाहिए तब तक वह उसे रुपयों में परिवर्तन  न करे | जब वह उसका परिवर्तन करेगा, तो वह एक चेक भेजेगा एक प्राइवेट/निजी कंपनी को डॉलरों में और उसके बदले उसको रुपये मिलेंगे , यानी कि कोई भी रुपयों का निर्माण नहीं होगा जब डॉलर आयेंगे तब | भारतीय सरकार डॉलर सेना और अन्य भारतीय सरकारी जरूरतों के लिए ही खरीदेगी  | पेट्रोल आयात और अन्य आयातों के लिए निजी स्रोतों से ही डॉलर लेना होगा|

और डॉलरों में आय कर-मुक्त नहीं होगा और डॉलरों का खर्चा यानी कि आयात भी आय से घटाया नहीं जा सकेगा| और इसके अलावा , हमें 100 % (प्रतिशत ) से 300 % (प्रतिशत) सीमा-शुल्क लगानी चाहिए , जो केवल डॉलरों में ही दी जा सकेगी | और हमें ये क़ानून आम आदमी कि हाँ से ही लागू करवाने हैं| हमें ये क़ानून सांसदों को रिश्वत देकर सांसद में लागू नहीं करवाने हैं|

   

(23.11) नागरिक रूपया प्रणाली (सिस्टम) और घाटे की वित्त व्यवस्था / घाटे का बजट (डेफिसिट फाईनैन्सिंग)

उपरोक्त नागरिक रुपया प्रणाली सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था/घाटे का बजट करने से नहीं रोकती | केवल इस बात पर जोर देती है कि इस कार्य को करने के लिए नयी `वैध मुद्रा `(वो मुद्रा जो सरकार लेने को तैयार हो)जारी करनी की जरुरत रहेगा और नागरिकों के अनुमोदन/स्वीकृति की आवश्यकता/जरुरत होगी |(क्योंकि घाटे का बजट रुपये कि सप्लाई बड़ा देता है)

   

(23.12) वर्तमान रुपया प्रणाली (सिस्टम) और `नागरिक रूपया प्रणाली (सिस्टम)` के बीच मुख्‍य अंतर

वर्तमान अभिजातों की रूपया प्रणाली

प्रस्‍तावित नागरिकों की रूपया प्रणाली

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर/निदेशकों को प्रधानमंत्री नियुक्‍त करते हैं। चुंकि महा-धनवान लोगों के प्रधानमंत्री के साथ गठजोड़ होते हैं और वे समाचार-पत्र/टेलिविजन आदि का उपयोग करके  प्रधानमंत्री को ब्‍लैकमेल करते हैं, अत: वास्‍तव में ये महा-धनवान लोग ही इन पदों पर आनेवालों के संबंध में निर्णय करते हैं। इसलिए, नागरिकों का भारतीय रिजर्व बैंक के निदेशकों आदि पर कोई नियंत्रण नहीं होता है।

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर/निदेशकों को प्रधानमंत्री नियुक्‍त करते हैं। लेकिन, अनुमोदन/स्वीकृति दर्ज करने और जूरी द्वारा सुनवाई के जरिए, नागरिकगण उन्‍हें हटा/बर्खास्‍त कर सकेंगे। इसलिए, नागरिकों का उनपर नियंत्रण होगा।

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ,प्रधानमंत्री/वित्‍त मंत्री और महा-धनवान लोगों से परामर्श करके रूपए जारी करते हैं। निजी बैंकर भी `शून्य(हवा) से पैसे बनाते हैं`।

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर नागरिकों के बहुमत से अनुमोदन/स्वीकृति मिलने पर ही रूपए जारी कर सकेंगे।

विवाद जजों द्वारा सुलझाए जाते हैं। कुछ वकीलों और रिश्‍तेदार वकीलों के साथ लगातार/हमेशा की नजदीकी के कारण जजों के भी वकीलों से सांठ-गाँठ/मिली-भगत विकसित हो जाते हैं और इसलिए विवाद का निपटान में उन लोगों के पक्ष में ,पूर्वाग्रह से ,फैसला दिया  जाता है जो इन वकीलों को काम पर रखने में (पैसें से) समर्थ होते हैं। साथ ही, भारत के नागरिकों का विश्‍वास जजों पर से उठ गया है और भारतीय जज बहुत ही व्‍यस्‍त होते हैं और शायद ही कभी किसी मुकद्दमें को समय पर निपटाते हैं।

विवाद 12 सदस्‍यों वाले जूरी-मंडल (जिन्‍हें आम नागरिकों द्वारा क्रमरहित तरीके से चुना जाता है) द्वारा सुलझाए जाते हैं। इन जूरी-सदस्‍यों को अपराधियों के प्रति कुछ ज्‍यादा ही घृणा का भाव होता है। साथ ही, वकीलगण जूरीमंडल/जूरर्स से सांठ-गाँठ/मिली-भगत नहीं कर पाते क्‍योंकि हर सुनवाई के बाद जूरर्स बदल जाते हैं। इसके अलावा, जूरर्स कई दिनों तक बिना किसी रूकावट के लगातार सुनवाई कर सकते हैं और इस तरह वे मुकद्दमों का फैसला अधिक तेजी से करते हैं।

   

(23.13) शासकीय / सरकारी कर्ज़

क्या किसी पिता को अपने पुत्र/बेटे की ओर से वायदे करने का अधिकार है? या क्या किसी पिता को अपने पुत्र/बेटे को कर्ज़दार बनाने का अधिकार होना चाहिए? या फिर, क्या किसी बाप को अपने बेटे को गुलामी में धकेलने का अधिकार है? यदि नहीं, तो फिर सरकार को भी कर्ज़ लेने का कोई अधिकार नहीं है। किसी भी व्यक्ति का कर्ज़ उसके साथ ही मर जाता है। एक निजी कंपनी का कर्ज़ कंपनी के खत्म हो जाने या फिर उसके मालिक के मर जाने के साथ ही खत्म हो जाता है। तथा एक सार्वजानिक कंपनी का कर्ज़ कम्‍पनी के शेयरधारकों की देनदारी/जिम्मेदारी नहीं होती तथा यह देनदारी दूसरी पीढ़ी तक नहीं जाती। लेकिन सरकारी कर्ज़ जो आज के/इस पीढ़ी के व्यक्तियों द्वारा नियुक्त अधिकारियों द्वारा दिया जाता है वो दूसरी पीढ़ी तक एक बड़े ब्याज के साथ जाता है। सरकारी कर्ज़ निश्‍चित रूप से एक ऐसी प्रक्रिया/तंत्र है जिसके द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक – प्रमुख/संचालक तथा अनुसूचित बैंकों के मालिक/नियंत्रक भारतीयों को अपना गुलाम बना रहे हैं। आतंरिक कर्ज़ तो फिर भी करेंसी(मुद्रा) की मुद्रास्फीति बढाकर खत्म किया जा सकता है। लेकिन बाहरी कर्ज़ का क्या होगा? कोई भी वित्त मंत्री, जिसके अंदर 1 प्रतिशत भी नैतिकता बाकी है, वह विदेशी करेंसी/मुद्रा के रूप में कर्ज़ लेने में अवश्‍य संकोच करता। संक्षेप में, मनमोहन सिंह (तथा अन्य वित्त मंत्रियों) ने क्या किया है, उन्होंने अमेरिकी बैंकों से कहा “हमें X बिलियन डॉलर दीजिए तथा हमारे बच्चे ये कर्ज़ चुकायेंगे, और अगर वे ऐसा न कर पाए तो वे आपके गुलाम रहेंगे”। अगर किसी (नागरिक) में थोड़ी भी नैतिकता बाकी है तो वह लोगों को कर्जदार बनाने की सरकार की इस संकल्पना/सिद्धांत/विचार को नामंजूर कर देगा | हम राइट टू रिकॉल ग्रुप/ प्रजा अधीन राजा समूह के लोगों ने एक ऐसा कानून बनाया है जिसके द्वारा नागरिक (बहुमत अनुमोदन द्वारा ) किसी ऐसे अधिकारी को जेल में डाल सकेंगे जो बाहरी या फिर आतंरिक कर्ज़ लेता है इस प्रकार सरकारी कर्ज़ की प्रक्रिया का खात्‍मा हो जायेगा। (अध्याय-27 देखें)

   

(23.14) महंगाई को कैसे रोक / नियंत्रण सकते हैं

मुद्रास्फीति/महंगाई का एकमात्र कारण करेंसी/मुद्रा की आपूर्ति/सप्लाई में होनेवाली वृद्धि है। प्रस्‍तावित कानून में यह बंदिश होगी कि भारतीय रिजर्व बैंक 50 प्रतिशत से अधिक नागरिकों की अनुमति के बिना एम 3(कुल मुद्रा संख्या) नहीं बढ़ा सकेगा। अनुमति लेने का खर्च लगभग 150 करोड़ से 300 करोड़ होगा। इसलिए यदि नागरिकों से एक वर्ष में 4 बार भी (ऐसा करने के लिए) कहा जाएगा तो भी लागत 1200 करोड़ रूपए आएगी। क्‍या यह लागत बहुत अधिक है? देखिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने रूपए की आपूर्ति में वर्ष 2007-2008 के 12 महीनों में 750,000 रूपए की वृद्धि की है। इसलिए अनुमति लेने की लागत 0.5 प्रतिशत से भी कम है और इसलिए यह बहुत ही वहनीय/उठाने जाने लायक लागत है।

   

(23.15) महंगाई और अंतर्रष्ट्रीय और राष्ट्रिय कच्चे तेलों के दाम में बढ़ोत्तरी

1991 के बाद से, हर सरकार ने इस तरह नोटों की छपाई की है जैसे कोई कल नहीं है |
अमेरिका में कुल मुद्रा संख्या (M3) तीन से पांच गुना बड़ी है | भारत में कुल मुद्रा संख्या  15-16 गुना बड़ी है , 1991 में रु.2,65,000 करोड़ थी और अब रु . 38,00,000 करोड़ है | भारत सरकार ने 4 वर्षों (2004-2008) में आज़ादी के पश्चात 53 वर्षों से अधिक नोट छापे हैं !!
कच्चे तेल की पूर्ति 2% के दर से या अधिक हर साल बाद रही है पिछले 18 सालों/वर्षों से| ये जनसंख्या वृद्धि के दर से अधिक है | लेकिन जैसे डॉलर/रुपये की आपूर्ति बदती है, ज्यादा से ज्यादा लोगों के पास डॉलर होंगे और गाड़ी,वाहन, हवाई-टिकेट खरीदेंगे | इसीलिए कच्चे तेल के दाम बढेंगे| दूसरे शब्दों में, नोटों की छपाई से नोटों की गिनती पहले बड़ी, और फिर कच्चे तेल की कीमत बड़ी |

यदि भारत सरकार ने M3(कुल मुद्रा संख्या ) का स्तर 1991 जितना रखा होता, तो कच्चे तेल की कीमत 110 अमेरिकी दोल्लर प्रति बैरेल चले गयी होती, लेकिन एक रूपया तीन रुपये बराबर होती | इसीए कच्चे तेल की कीमत रुपयों में अपरिवर्तित होती 1991 से यदि भारत सरकार ने पिछले 17 वर्षों में इतने रुपये न छापे होते|

यदि भा.ज.पा सरकार को महंगे की कोई परवाह होती,फिर उसने M3(कुल मुद्रा संख्या) को 22% क्यों बढने दिया ? और यदि कांग्रेस संसादों को महंगे की कोई परवाह ओटी , तो उन्होंने M3 (कुल मुद्रा संख्या ) को 17% क्यों बढने दिया ?

   

(23.16) भारतीय रिजर्व बैंक में बदलाव लाने पर सभी दलों और बुद्धिजीवियों का रूख / राय

सभी वर्तमान दलों के नेता और सभी बुद्धिजीवी भारतीय रिजर्व बैंक प्रमुख और रूपया आपूर्ति प्रणाली(सप्लाई सिस्टम) पर नागरिकों के नियंत्रण बढ़ाए जाने का विरोध करने लगते हैं। हम लोग सभी नागरिकों से अनुरोध करते हैं कि वे अपनी-अपनी पार्टी के प्रिय नेताओं से पूछें कि वे भारतीय रिजर्व बैंक प्रमुख और रूपया आपूर्ति प्रणाली(सप्लाई सिस्टम) पर नागरिकों के नियंत्रण बढ़ाए जाने का इरादा रखते हैं और तब यह निर्णय करें कि क्‍या वे वोट दिए जाने के लायक हैं ? और हम कार्यकर्ताओं से यह भी अनुरोध करते हैं कि वे बुद्धिजीवियों से इन मुद्दों पर प्रश्‍न पूछें और तब निर्णय करें कि क्‍या वे मार्गदर्शक बनने के योग्‍य हैं?

अभ्‍यास

  1. वर्ष 1951, 1961, 1971, 1981, 1991, 2001, 2004, 2008 की पहली जनवरी अथवा इसके नजदीक की किसी तारीख को रूपए की आपूर्ति ( एम 3) कितनी थी? वर्ष 1951- 2008 , 1991-2008, 2004-2008, 2008-2010 में रूपए की आपूर्ति में कितने अंश/फ्रैक्‍शन की वृद्धि हुई है?

  2. वर्ष 1951, 1961, 1991, 1992, 2001, 2004, 2008 की पहली जनवरी अथवा इसके नजदीक की किसी तारीख को अमेरिका में रूपए की आपूर्ति ( एम 3) कितनी थी? वर्ष 1951- 2008 , 1991-2008, 2004-2008, 2008-2010 में रूपए की आपूर्ति में कितने अंश/फ्रैक्‍शन की वृद्धि हुई है?

  3. वर्ष 1951, 1961, 1991, 2001, 2008 की पहली जनवरी अथवा इसके नजदीक की किसी तारीख को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा छापे गए/विनिर्मित करेंसी नोटों की मात्रा कितनी थी? वर्ष 1951- 2008 , 1991-2008, 2004-2008 में करेंसी नोटों की मात्रा में कितनी अंश/फ्रैक्‍शन की वृद्धि हुई है?

4.    1 जनवरी, 2007 से 31 दिसम्बर, 2007 के बीच बनाये गए M 3(कुल मुद्रा संख्या) में से किसे कितना प्राप्त हुआ?

5.    यदि रुपए की आपूर्ति दुगुनी कर दी जाय तो पेट्रोल तथा अन्य वस्तुओं की कीमतों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

6.    किसकी इजाजत से आर.बी.आई ने नए पैसे बनाए?

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