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नहीं | जो लोग गरीब हैं, बिना किसी सांठ-गाँठ/संपर्क के , वे और गरीब हो जाते हैं जब सामान के दाम बढ जाते हैं | और अमीर, विशिष्ट वर्ग के लोग सरकार के साथ मिली-भगत बना लेते हैं और रुपयों को बनवा लेते हैं मुफ्त में !! इस तरह, अमीर, सांठ-गाँठ/संपर्क वाले लोग गरीब, बिना कोई राजनैतिक या उच्च संपर्क के, आम लोगों को लूट रहे हैं !!
(23.2) भारत में रूपया (एम – 3 = कुल मुद्रा (धन) संख्या = देश में चलन में कुल नोट और सिक्के ,सभी प्रकार के जमा राशि का जोड़) कौन निर्माण करता / बनाता है? |
आम तौर पर यही समझा जाता है कि ‘रूपया’ शब्द का अर्थ है – जेब में पड़ा नकदी नोट, तिजोरियों में जमा नकदी नोट, चेक-खातों में जमा रकम, बचत खातों में जमा रकम, सावधि जमा रकम और उसपर मिलने वाला ब्याज आदि। जिसे हमलोग आम तौर पर रूपया कहते हैं उसे भारतीय रिजर्व बैंक एम – 3 कहता है। अब कृपया निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देने के बाद ही आगे पढ़ें।
वित्त मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों में भ्रष्टाचार पर प्रश्न
मान लीजिए, हम सभी लोगों की जेबें, खातों आदि में पड़े सभी रूपयों को जोड़ें और ‘रूपऐ की इस कुल संख्या’ को भारत की जनसंख्या से भाग दे दें तो हमें प्रति व्यक्ति रूपया (एम – 3) रकम का पता चल जाएगा। तब, अप्रैल 1951, अप्रैल 2004 और आज मान लीजिए, अप्रैल 2010 में प्रति व्यक्ति रूपया की राशि/रकम कितनी थी?
कृपया अनुमान लगाकर उत्तर दें और अनुमान से अपना जवाब दे देने के बाद ही आगे पढ़ें। कृपया ऊपर लिखित प्रश्न के उत्तर में अपना अनुमान लगाने से पहले इससे आगे न पढ़ें।
(23.3) जनवरी-1951 और दिसंबर-2008 के बीच निर्माण किये गए / बनाए गए रूपए (एम – 3) |
निम्नलिखित दस्तावेज पर विचार कीजिए
दस्तावेज का विवरण |
दस्तावेज का यू आर एल |
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1 | जनवरी 1951-2010 के बीच भारत की माहवार अनुमानित जनसंख्या का मेरा अपना अनुमान | http://righttorecall.info/doc/indian_population.pdf |
2 | अप्रैल-1951, अप्रैल-2004 के लिए | http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/69110.pdf |
3 | अप्रैल-2010 के लिए | http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Wss/PDFs/WSS140510F.pdf |
4 | 1951-2009 के बीच सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) | http://righttorecall.info/doc/annual_gdp.pdf |
5 | रूपयों और इसकी मात्रा के प्रकार | http://rbidocs.rbi.org.in/rdocs/Publications/PDFs/69111.pdf |
उपर्युक्त दस्तावेज से हमें निम्नलिखित आंकड़े मिलते हैं –
विषय |
अप्रैल -1951 |
अप्रैल -2010 |
स्रोत |
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1 |
भारत की जनसंख्या |
36.16 करोड़ |
118.30 करोड़ |
दस्ता.-1, अप्रैल-51 पंक्ति दस्ता.-1, अप्रैल-10 पंक्ति |
2 |
भारत में रूपए की मात्रा |
2330 करोड़ रूपए |
55,79,567 करोड़ रूपए |
दस्ता.-2, पंक्ति 1 दस्ता.-3, तालिका- 7 |
3 |
प्रति नागरिक रूपए |
64 रूपए | 47,164 रूपए |
(2) को (1) से भाग दें |
4 |
60 वर्षों में रूपए की मात्रा में हुआ परिवर्तन |
730 गुना |
47164 रूपए / 65 रूपए |
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5 |
भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) (1999 मूल्य) |
236,067 करोड़ रूपए |
39,70,367 करोड़ रूपए |
देखें दस्ता.-4 (2009 में 9% जोड़ें) |
6 |
प्रति व्यक्ति, प्रति वर्ष सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) |
6,528 रूपए |
33,400 रूपए |
(5) को (1) से भाग दें |
7 |
60 वर्षों में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जी डी पी) में हुआ परिवर्तन |
5.2 गुना |
इस प्रकार सारांशत:
- अप्रैल, 1951 में भारत के प्रति नागरिक पर कुल रूपया लगभग 65/- था।
- अप्रैल, 1951 और अप्रैल, 2010 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा (हो सकता है कि दूसरों के द्वारा भी) इतने अधिक एम – 3, रूपए छापे गए कि अप्रैल, 2010 में प्रति नागरिक कुल रूपया लगभग 47164/- था अर्थात 730 गुना ज्यादा। कृपया ध्यान दें कि यह 730 प्रतिशत बढ़ोत्तरी नहीं है बल्कि 730 गुना अर्थात 73,000 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी है। और ये संख्याऐं प्रति व्यक्ति के आधार पर हैं। और इस प्रकार जनसंख्या में हुई 4 गुना वृद्धि को पहले ही गिनती में लिया जा चुका है।
- वर्ष 1951 से वर्ष 2010 तक में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में बढ़ोत्तरी 5.3 गुना से भी कम रही है।
- इसलिए भारतीय रिजर्व बैंक (और दूसरों ने) रूपए की मात्रा 730 गुना बढ़ा दी ,वस्तुओं में प्रति नागरिक केवल 5.3 गुना की वृद्धि होने के बाद भी ।
5. यही एकमात्र मुख्य कारण है कि क्यों मूल्य/महंगाई बढ़ी है।
मैं पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि वे महसूस करें कि रूपए की मात्रा में 730 गुना की वृद्धि का अर्थ/मतलब क्या है। इसका अर्थ है – वर्ष 1951 का हर रूपया 500 रूपए के एक नोट, 100 रूपए के दो नोटों और 10 रूपए के तीन नोटों (कुल 730/- रूपए) से बदल दिया गया है। और यह केवल प्रति नागरिक आधार पर है। यह देखते हुए कि जनसंख्या में लगभग 3.7 गुना की वृद्धि हुई है, रूपया की मात्रा में कुल वृद्धि लगभग 2400 गुना है। दूसरे शब्दों में, भारतीय रिजर्व बैंक ने वर्ष 1951 के (एक रूपए के) हर नोट को 1000 रूपए के दो नोट और 100 रूपए के चार नोट से बदल दिया है।
आइए अब मैं ,आप पाठकों के सामने एक परिदृष्य/खाका खींचता हूँ। मान लीजिए, भारतीय रिजर्व बैंक वर्तमान मुद्रा को वापस ले लेती है और नई मुद्रा जारी करती है। मान लीजिए, भारतीय रिजर्व बैंक हर एक रूपए के नोट को वापस लेकर नया 10 रूपए का नोट देती है, हर 5 रूपए के नोट वापस लेकर उसके बदले 50 रूपए का नया नोट जारी करती है, इत्यादि। तब क्या वस्तुओं जैसे दूध और रोटी/ब्रेड के दाम स्थिर ही रहेंगे? सामान्य बुद्धि से कहा जा सकता है कि मूल्य भी रातों-रात 10 गुना बढ़ जाएंगे। इसी प्रकार भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर ने रूपए की मात्रा प्रति व्यक्ति के आधार पर 730 गुना बढ़ा दी है और अप्रैल 1951 से लेकर अप्रैल 2010 तक के दौरान कुल मिलाकर लगभग 2400 गुना कर दी है।
सैंकड़ों अर्थशास्त्री रात दिन काम कर रहे हैं और सभी प्रकार के बकवास सिद्धांत दे रहे हैं कि क्यों कीमतें बढ़ी हैं। लेकिन एक प्रमुख कारण यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों द्वारा छापा गया प्रति व्यक्ति रूपया इतना अधिक है कि रूपए की मात्रा आज 2010 में, 1951 में रूपए की जो मात्रा थी, उसकी 720 गुनी हो गयी है जबकि प्रति व्यक्ति आधार पर वस्तुओं की आपूर्ति/सप्लाई में 5.5 गुना से भी कम की वृद्धि हुई है। और इस प्रकार पिछले 60 वर्षों में कीमतें 100 गुना से भी ज्यादा बढ़ गई हैं। आइए अप्रैल, 2004 और अप्रैल, 2010 की तुलना करें –