भारतीय रिजर्व बैंक में सुधार करने और महंगाई / मुद्रास्फीति कम करने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह के प्रस्ताव |
वह व्यक्ति जो मुद्रा/पैसे से संबंधित [बैंक से संबंधित] प्रश्नों को हल कर लेगा, वह विश्व के लिए इतिहास के सभी व्यावसायिक हस्तियों से कहीं ज्यादा कुछ कर सकता है — श्री हेनरीभाई फोर्ड
(23.1) महंगाई का असली कारण क्या है ? |
सामान्य तौर पर महंगाई तभी बढती है जब रुपये (एम 3) बनाये जाते हैं लोन,आदि के रूप में और भ्रष्ट अमीरों को दिए जाते हैं, जिससे प्रति नागरिक रुपये की मात्रा बढ जाती है और रुपये की कीमत घाट जाती है और दूसरे चीजों की कीमत बढ जाती है जैसे खाद्य पदार्थ/खाना-पीना, तेल आदि | भारतीय रिसर्व बैंक के आंकडो के अनुसार, प्रति नागरिक रुपये की मात्रा (देश में चलन में कुल नोट,सिक्कों और सभी प्रकार के जमा राशि का कुल जोड़ को कुल नागरिकों की संख्या से भाग किया गया ) 1951 में 65 रुपये प्रति नागरिक थी और आज, 2011 में लगभग 50,000 रुपये है प्रति नागरिक |
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सब चीजों का मूल्य सापेक्ष/तुलनात्मक है और मांग और आपूर्ति/सप्लाई के अनुसार निर्धारित/पक्का होता है | मान लो , केवल एक बाजार है और कुछ नहीं ,आसानी से समझने के लिए | बाजार में , एक बेचनेवाला है जो 10 किलो आलू बेच रहा और एक खरीदार जिसके पास सौ रुपये हैं | मान लो अगली स्थिति में, बेचनेवाले के पास 10 किलो आलू के बजाय 20 किलो आलू हो जाते हैं, तो क्या अब आल का दाम घटेगा कि बढेगा ?
आसान सा अनुमान/अंदाजा – आलू का दाम घटेगा क्योंकि आलू की सप्लाई/आपूर्ति बढ गयी है |
एक और स्थिति में , मान लो बेचने वाले के पास 10 किलो आलू हैं लेकिन अब दो खरीदार हैं और दोनों के पास 100-100 रुपये हैं | अब, आलू का दाम घटेगा या बढेगा ?
आसान सा अंदाजा/अनुमान- आलू का दाम बढेगा क्योंकि रुपयों की सप्लाई बढ गयी है और इसीलिए रुपये की कीमत घटेगी और दूसरे सामान का दाम बढेगा जैसे खाना-पीना, पेट्रोल, गैस, आदि |
असलियत में भी ऐसे ही होता है |
प्रश्न- ये रुपये कौन बनाता है और ये रूपये कहाँ से आते हैं(रुपये=एम3 देश में सभी नोट,सिक्के और सभी प्रकार के जमा राशि का जोड़ है ) ?
रिसर्व बैंक के पास लाइसेंस है रुपयों को बनाने का और अनुसूचित बैंक(बैंक जिनको रिसर्व बैंक ने लाइसेंस दिया है रुपयों को बनाने का जमा राशि के रूप में ) के पास भी | कोई स्वर्णमान (गोल्ड स्टैण्डर्ड) अभी नहीं है (कि जितना सोना है , उतना ही पैसा बना सकते हैं) , क्योंकि वो कई दशक पहले पूरी दुनिया में रद्द हो गया है | रिसर्व बैंक गवर्नर/राज्यपाल रुपयों को सरकार के कहने पर बनाता है |
केवल रिसर्व-बैंक ही नोट छाप सकती और सिक्के बना सकती है लेकिन अनुसूचित बैंक जैसे स्टेट बैंक, आई.सी.आई.सी.आई., आदि, भी रुपये (एम 3) बना सकते हैं जमा राशि के रूप में | ये रुपयों की सप्लाई/आपूर्ति में बढने से रुपयों का मूल्य/दम कम हो जाता है और ये दूसरे सामान का दाम बड़ा देता है जैसे खाना-पीना , तेल के दाम,आदि और सामान्य महंगाई का मुख्य कारण है |
प्रश्न- रिसर्व-बैंक और अनुसूचित बैंक रुपये क्यों बनाते हैं ?
वे ऐसा अमीर ,भ्रष्ट लोगों के लिए करते हैं | मुझे एक उदाहरण देने दीजिए | मान लीजिए एक अमीर कंपनी है, जिसके रिसर्व बैंक-गवर्नर(राज्यपाल), वित्त मंत्री के साथ सांठ-गाँठ है | वे एक सरकारी बैंक से 1000 करोड़ रुपयों का कर्ज लेते हैं और वापस 200 करोड़ रुपये चूका देते हैं | और क्योंकि उनके सांठ-गाँठ है, वे रिसर्व-गवर्नर, वित्त मंत्री आदि को बोलेंगे कि वे उनको हिस्सा/रिश्वत देंगे और बदले में उनको उनकी कंपनी को दिवालिया/`डूब गयी` घोषित करने दिया जाये |
फिर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है | अभी, यदि बैंक ये 800 करोड़ का घाटा लोगों को घोषित कर देता है , तब बैंक भी दिवालिया हो जायेगा(डूब जायेगी) और बैंक के ग्राहक को भी अपनी जमा राशि खोनी पड़ेगी और ग्राहक, जो आम नागरिक-मतदाता हैं, शोर करेंगे और सरकार को जनता का गुस्सा झेलना पड़ेगा | इस स्थिति से बचने के लिए, सरकार रिसर्व बैंक-गवर्नर/अनुसूचित बैंकों को 800 करोड़ रुपये बनाने के लिए कहती है | ये ज्यादा रुपयों की सप्लाई , जब बाजार में आ जाती है, तो रूपए की कीमत घट जाती है और सामान की कीमत बढ जाती है, यानी महंगाई हो जाती है |
प्रश्न-महंगाई व्यापारियों द्वारा सामान की जमाखोरी से या निर्यात/`देश से बाहर भेजना` से होती है क्योंकि इससे सामान की कमी होती है और सट्टा बाजार या कम पैदावार से भी महंगाई हो सकती है |
ये सभी स्थानीय कारण हैं और ये सामान्य, व्यापक स्तर से कीमतें नहीं बढाते हैं| सामान की जमाखोरी से सामान की कमी आती है लेकिन कोई भी हमेशा के लिए सामान को जमा नहीं कर सकता और बाजार में सामान को छोड़ने पर , कीमतें कम होंगी और सामान्य कीमतों के बढने में कीमतें केवल एक ही दिशा में, ऊपर की ओर जाती हैं और कीमतें एक बार जब बढ जाती हैं तो कभी भी गिरती नहीं हैं |
ऐसे ही कीमतों का उतार-चदाव का रुख/झुकाव देखा जा सकता है, खाने-पीनी की चीजों और दूसरे सामानों के सट्टे में |
और सभी चीजों देश से बाहर नहीं भेजी जाती, इसीलिए सामान का देश से बाहर भेजना कीमतों की ऊपर की ओर का सामान्य झुकाव के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता |
`सकल(कुल) घरेलु उत्पाद(जी.डी.पी)` 1951 से 2011 तक केवल तीन गुना बड़ा है , इसीलिए वो हज़ार गुना रुपयों की मात्र के बढौतरी के लिए जिम्मेदार नहीं हो सकता |
पेट्रोल के दाम और धुलाई का लागत से भी आम महंगाई नहीं बढती क्योंकि धुलाई की लागत , किसी भी चीज की लागत की केवल 2-4% ही होता है |
प्रश्न- ये कीमतों का बढना=महंगाई सभी नागरिक, गरीब और अमीर,सांठ-गाँठ के साथ और बिना कोई सांठ-गाँठ के , दोनों को एक समान असर करती है ?