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इसके बावजूद , हम आम नागरिकों को कोसा जाता है उस अपराध के लिए जो हमने कभी नहीं किया (जाती के अनुसार वोट करना) जाता है और ये एक पसंदीदा मनोरंजन है | लेकिन उन जजों को क्यों नहीं कोसा जाता जो भाई-भातिजेवाद (एक प्रकार का जातिवाद) करते हैं और जो ये अपराध खुले आम और आराम से करते हैं ? क्योंकि बुद्धिजीवी जज से दुश्मनी तो लेंगे नहीं | तो आम नागरिकों को कोसो, वे निर्दोष हैं तो भी और जजों की तारीफ़ करो , उनहोंने समाज को बर्बाद किया इसके बावजूद | ये ही बहुत से बुद्धिजीवियों का आदर्श है |
(40.17) राजनीति क्यों भ्रष्ट हो गयी है और सड़ गयी है और अच्छे लोग राजनीति में क्यों नहीं आते |
राजनीती इसीलिए भ्रष्ट और सड़ गयी है क्योंकि भ्रष्ट जज अपराधी/मुजरिमों को बढ़ावा देते हैं और मुजरिम ये पक्का करते हैं कि अच्छे लोग चुनाव में खड़े नहीं हो सकें | इसीलिए मतदाताओं को मुजरिमों में से चुनना पड़ता है | और ये समस्या भ्रष्ट को बदलने के तरीके/प्रक्रियाएँ के ना होने से बढ़ जाती है | इसीलिए , मैं इस पर जोर देता हूँ कि जजों के चुनाव के साथ उनके बदलने की प्रक्रियाएँ/तरीके हों |
मतदाता मूर्ख नहीं हैं |
केवल इसीलिए कि वे उस तरह से वोट नहीं करते जैसे आप चाहते हैं, इससे वे मूर्ख नहीं बन जाते |
क्योंकि जजों में भ्रष्टाचार और भाई-भातिजेवादे है , हिंसा करने वाले और हफ्ता लेने वाले गुंडे शाशन करते हैं | और इसीलिए इन हिंसा कने वाले और हफता लेने वाले गुंडों ने ये पक्का कर दिया है कि `अच्छे लोग` विधायक, सांसद बाने के लिए इतने ताकतवर ना बनें और अच्छी तरह से ना जाने जायें | इसीलिए केवल मुजरिम ,गुंडे या इन गुंडों के समर्थक ही अच्छी तरह से नाम हो पाता है | कुछ नेता हिंसा करने वाले गुंडों का समर्थन करते है और कुछ जैसे प्रमोद ,मनमोहन सिंह आदि हफता लेने वाले गुंडों का समर्थन करते हैं |
यदि हमें अच्छे लोगों को जिताना है , तो हमें ये पक्का करना चाहिए कि अच्छे लोग जियें और सांस लें | और उसके लिए हमें हिंसा करने वाले और हफता लेने वाले गुंडों को कैद करने की जरूरत है, हमें भ्रष्ट पोलिस, जज,मंत्री आदि को कैद करने की जरूरत है | केवल उसी के बाद, अच्छे लोग चुनाव में जीत पाएंगे |
(40.18) पढ़े लिखे और चिंतित नागरिक अच्छे लोगों को क्यों नहीं बड़े , सरकारी पदों पर नहीं ला पाते ? |
क्यों हम अटल बिहारी वाजपेयी, प्रमोद,येचुरी, अरुण, नरेन्द्रभाई, करात, मनमोहन सिंह ,सोनिया, चिदंबरम आदि के साथ क्यों अटके हुए हैं ?
शिक्षित/पढ़े लिखे लोग इनसे अच्छे विकल्प/लोग पदों पर लाने के लिए केरल ,उत्तर प्रदेश और बाकी भारत में भी असफल/फेल हो गए हैं क्योंकि –
(1) बहुत से चिंतित नागरिक नैतिकता(अच्छा बर्ताव) और राष्ट्रिय चरित्र/चाल-चलन के बकवास में विश्वास करते हैं | वो ये बकवास में विश्वास करते हैं “ कि बर्ताव/व्यवहार को सुधारों और देश सुधर जायेगा”| इसीलिए वे बर्ताव/व्यवहार और चरित्र-निर्माण (अच्छा चाल-चलन बनाना) की बेकार पढ़ाई पर ध्यान देते हैं | इसीलिए वे प्रशासन, कोर्ट आदि में कोई रूचि नहीं लेते जहाँ समस्या है | और उनकी राजनीती में कोई भागीदारी / हिस्सेदारी नहीं है या केवल एक नेता को दूसरे से बदलने तक सीमित है | वे व्यक्ति पूजन से आगे नहीं सोच सकते , चाहे वो मोदी हो, बसु हो , अटल बिहारी हो, या लाल कृष्ण अडवानी हो आदि | इसीलिए वे ये नहीं सोचते कि उनको कोर्ट, प्रशाशन के कानूनों में बदलाव लाने के लिए क्या करना चाहिए | तो नेता बदलते हैं, कोर्ट और प्रशासन की व्यवस्था नहीं बदलती है और गड़बड़ चलती रहती है |
(2) हमारे पाठ्य-पुस्तक लिखने वाले कालेज के प्रोफेस्सर (बढ़ा मास्टर) , उनके प्रायोजक- विशिष्ट वर्ग/ऊंचे लोग को खुश करने के लिए , पाठ्य-पुस्तकों में आम नागरिक-विरोधी कचरा भर दिया है | केवल यही पढ़ने के लिय मिलता हिया “ आम भारतीय जातिवाद है, भावुक हैं ,सांप्रदायिक है ,बदमाश हैं आदि, आदि |” और वे ये छुपाते हैं कि ये बुराईयां भारतीय नेता-बाबु-जज-पोलिस-प्रभंधक-बुद्धिजीवी-ऊंचे/विशिष्ट लोग में भी है और भारतीय भ्रष्ट गठबंधन (नेता-बाबु-जज-पोलिस-प्रभंधक-बुद्धिजीवी-ऊंचे/विशिष्ट लोग ) में दो और बुराइयां हैं जो आम नागरिकों में नहीं है – भाई-भतिजेवाद और गुंडों और दूसरे भ्रष्ट गठबंधन से मिली-भगत |
इसीलिए भारत में छात्र/विद्यार्थी , चिंतित नागरिकों समेत, लोकतंत्र (सारे देश के लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) के विरोधी हो गए हैं | इसीलिए वे अल्प लोक-तंत्र (कुछ ही लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) समाधानों के समर्थक हो गए हैं और लोकतान्त्रिक समाधानों जैसे `भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने/सज़ा देने`, पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम),`एक से अधिक लोगों को वोट पसंद अनुसार`, चुनाव फॉर्म को सरल बनाना, चुनाव जमा राशि बढ़ाना ,आदि का विरोध करते हैं , जो अधिक अच्छे उम्मीदवारों को बढ़ावा देंगे |
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नेता(उम्मीदवार) वायदा करता है व्यापारियों आदि को कि यदि वो चुनाव जीतता है और सांसद/मंत्री आदि बनता है , तो वो भारत सरकार के तोहफे/उपहारों की बौछार कर देगा , यदि ये आम नागरिकों का जीवन बरबाद कर देता हो तो भी | यहाँ शून्य विचारधारा या व्यक्तिवाद है – ये 100 % सौदेबाजी है या रिश्वतखोरी |
सभी विचार-धाराएं जैसे हिंदुत्व, धर्म-निरपेक्षता (सभी धर्म सामान हैं) ,और सबसे नए- शिक्षा- वाद, 85% बढौतरी-दर का वाद , कुछ नहीं ,केवल इस सौदेबाजी को छुपाने के लिए मुखौटे हैं | और ज्यादातर नेता आजकल केवल दलाल हैं , पूरे दलाल ,लेकिन दलाल भी ज्यादातर ईमानदार होते हैं |
सभी नेता, भारत में या पश्चिम में , का झुकाव रहता है कि उन लोगों को बढ़ावा देने के लिए, जो उसके लिए खतरा नहीं है | इसीलिए, सभी नेता का झुकाव दूसरे नेताओं को काटने का रहता है ताकि दूसरे नेताओं का नाम न हो जाये और उनके लिए खतरा ना बनें | और ये पक्का करते हैं कि केवल उनका “कमजोर” जूनियर/निचला व्यक्ति को ही बढ़ावा मिले | पश्चिम देशों ने ये समस्या को कम कर दिया है एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था बनाई है , जहाँ पहले तो , नेता इतना शक्तिशाली ही नहीं होता | उदाहरण- अमेरिका का राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री जितना देश के आंतरिक/भीतर के मामलों में 5% भी शक्ति-शाली नहीं है | और एक अमेरिका का गवर्नर के पास 1% भी भारतीय मुख्यमंत्री जितने अधिकार नहीं हैं | उदाहरण एक अमेरिका का गवर्नर जिला पोलिस मुखिया का तबादला नहीं कर सकता , जबकि भारतीय मुख्यमंत्री पलक जपकते ये काम कर सकता है | इसीलिए अमेरिका के नेता इस स्थिति में नहीं है कि गुणवान/कुशल जूनियर/निचले लोगों को ऊपर बढ़ने से रोक सकें | लेकिन भारत में , प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के पास प्रशासन में इतने अधिकार है, कि वे पार्टियों में अपने विरोधियों को कुचल सकते हैं और ये पक्का कर सकते है कि केवल कमजोर निचले लोग ही ऊपर आयें और ताकतवर निचले लोगों को कोई ध्यान न मिले |