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अध्याय 40 – चुनाव / निर्वाचन सुधारों पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्‍ताव

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अब मैं इस झूठी बात कि “ नागरिक वोट बेचते हैं” का खंडन कुछ उदहारण से करूँगा –

A. गुजरात विधानसभा चुनाव-2007 में , एक धनिक ,जिसका नाम `भुवन भरवाड` एक कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नादियाड से लड़ रहा था | वो हार गया | साथ ही , कांग्रेस प्रत्याशी, नरहरी अमीन मटर चुनाव-क्षेत्र से लड़ रहा था| अमीन पूर्व मंत्री था और धर्मार्थ न्यासों के माध्यम से विशाल भूखंडों का मालिक है  और उसने भारी मात्र में धन खर्च किया था , फिर भी चुनाव हार गया |

B. 1977 में कांग्रेस के पास जनता पार्टी से 10 गुना अधिक पैसे था ,फिर भी जनता पार्टी जीत गयी और कांग्रेस हार गयी| 1988 में कांग्रेस के पास भाजपा से 10 गुना अधिक पैसा था, फिर भी कांग्रेस हार गयी और भाजपा/एन.डी.ऐ जीत गयी|

C.  बहुत मामलों में, सभी प्रमुख प्रत्याशी पैसे देते हैं| क्या मतदाता हमेशा उसी व्यक्ति के लिए वोट करती है जो सबसे अधिक पैसा का भुगतान करता है? मुझे शक है | और अक्सर मामले होते हैं जहाँ मतदाता उस प्रत्याशी के लिए वोट करते हैं जिसने कुछ नहीं भुगतान किया |

अनगिनित अन्य उधाहरण हैं |

ये सही है की बहुत प्रत्याशी पैसे और उपहार देते हैं | और ये भी सही है कि मतदाता उसे लेते हैं |  बहुत कम गरीब व्यक्ति रु.100 को मना करेंगे और कोई ही अमीर आदमी एक लाख रुपये मना करेगा | एक संपन्न व्यक्ति की ऊँची कीमत होगी —- बहुत कम मुफ्त के पैसे को ना कहेंगे | लेकिन प्रश्न ये है — क्या मतदाता ने `क` के लिए वोट किया क्योंकि `क` ने पैसे दिए या क्योंकि उसे `ख` से घृणा/नफरत थी और कि उसे `क` पसंद था ? उत्तर है — 90% से अधिक ने `क` के लिए वोट किया क्योंकि वे `क` को पसंद करते थे या `ख` से नफरत करते थे , ना कि क्योंकि `क` ने उसे पैसे दिए |

जो व्यक्ति ये कहता है “ भारतीय वोट बेचते हैं”, उसको मैं ये दो प्रश्न पूछूँगा-

1.) मानो आप एक प्रत्याशी को नापसंद करते हो और वो आप को रु.100 देता है| क्या आप उसको मना करोगे? यदि वो आपको एक लाख रुपये दे , तो क्या आप फिर भी उसको मना करोगे? यदि कोई व्यक्ति कहता है कि वो एक लाख रुपये लेने से मना करेगा तो मैं उसे या तो अत्यधिक नैतिक या अत्यधिक पाखंडी का पद दूँगा |

2.) यदि व्यक्ति सहमत हो जाता /मान लेता है कि वो पैसे स्वीकार कर लेगा , तब अगला प्रश्न ये है : क्या फिर भी वो प्रत्याशी के लिए वोट करोगे जिसको तुम नापसंद करते हो ?

दूसरे शब्दों में, ये देखते हुए कि मतदान गोपनीय है,मतदाता को  कोई अनदेखे परिणाम का कोई खतरा नहीं है | क्योंकि मतदान गोपनीय है, ये आरोप लगाना कि उस व्यक्ति ने किसे वोट दिया , पता लगाना संभव नहीं और ये आरोप लगाना कि आम जन वोट के लिए विक गए सही नहीं है | और इस प्रकार के धंधों में कोई बाध्यता नहीं है | ये ही कारण है कि इतने सारे धनिक/अमीर प्रत्याशी  लोकप्रिय, कम धनी प्रत्याशियों के विरुद्ध/खिलाफ हार जाते हैं |

तो फिर यदि पैसे मायने नहीं रखते तो फिर प्रत्याशी भुगतान क्यों करते हैं /पैसे क्यों देते हैं ? क्योंकि यदि प्रत्याशी अमीर है और बेईमान भी और फिर भी वो कुछ भी नहीं देता , तो मतदाताओं के मुंह का स्वाद/जायका जरुर बिगड जायेगा | लेकिन यदि प्रत्याशी/पार्टी ईमानदार और नेक है , तो मतदाता कभी भी पैसे की आशा नहीं करेगा| यदि प्रत्याशी/पार्टी भ्रष्ट है , उनके लिए बेहतर है कुछ पैसे दें मतदाताओं को | लेकिन ये उन प्रत्याशियों पर लागू नहीं होता जो भ्रष्टाचार कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं|

अंत में , नए प्रत्याशी और नयी पार्टियां क्यों नहीं जीतते ? क्योंकि मतदाताओं ने दल और प्रत्याशी पिछले 60 सालों में पांच बार तक बदले हैं | राष्ट्रिय स्तर पर, ये दो बार हुआ 1977 और 1988 में | उत्तर प्रदेश में नागरिकों ने 3 नयी दल-भाजपा, सपा, बसपा को आजमाया है | गुजरात में , पहले  मतदाताओं ने जनता दल और फिर भाजपा को आजमाया है | हर बार , भ्रष्टाचार 1% भी कम नहीं हुआ | कारण है —- नागरिक के पास भ्रष्ट को बदलने/निकालने/अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है(प्रजा अधीन राजा) और इसीलिए नए प्रत्याशी छे महीनों में बिक जाते हैं | अब तो अतीत के तथ्य के आधार पर एक धारणा बन गयी है — नए प्रत्याशी बिक जाएँगे , इसीलिए समय,प्रयास क्यों व्यर्थ करें नए प्रत्याशी के पर्चे और उसका जीवनी विवरण/बायोडाटा पढने  में ? तो नए उम्मीदवारों और नई पार्टियों को  पिछले बुरे अनुभवों की वजह से अविश्वास का सामना करना पड़ता है , किसी भी अन्य कारण की वजह से नहीं|

यदि वोट इतनी आसानी से बिकते , तो मुकेश अम्बानी अपनी पार्टी बना लेते और अपने 500  कटपुतली  को जितवा देते और प्रधान मंत्री बन जाता बजाय कि सांसदों को खरीदने के | परन्तु ये तथ्य कि मुकेशभाई को सांसद खरीदने पड़ते हैं , ये दिखाता है कि वो वोटरों को खरीद नहीं सकता |

 

(40.16) भारत में लोग अपनी जाती के लिए वोट करते हैं का झूठ

हम आम नागरिक , जाती के आधार पर वोट नहीं करते, और ना ही हमने कभी किया है | ये एक झूठ/मिथ्या है | क्यों 90% निचले-वर्ग और बीच के वर्ग के पटेल अहमदाबाद में मोदी-समर्थक हैं ?

मोदी एक घांची (अन्य पिछड़ी जाती) का है और हर पटेल को पता है कि वो एक घांची है | ये ही नहीं , हर पटेल को ये भी पता है कि मोदी उच्च वर्गीय पटेलों का विरोधी है जैसे पटेलों के विधायक, तोगड़िया, केशुभाई पटेल आदि | पटेल नेताओं के लगातार कोसने के बावजूद , सभी निचले/बीच के वर्ग के पटेल मोदी के प्रेमी हैं ( कुछ पटेल हैं , जो हमेशा से भा.ज.पा से नफरत करते आये हैं और हमेशा कांग्रेस प्रेमी रहे हैं | इसीलिए उनके मोदी-विरोधी होना नहीं गिना जायेगा |)

श्रेणी: प्रजा अधीन