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अध्याय 40 – चुनाव / निर्वाचन सुधारों पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्‍ताव

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 चुनाव / निर्वाचन सुधारों पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्‍ताव

   

(40.1) वे चुनाव सुधार, जिनके प्रस्‍ताव मैंने किए हैं 

1.         प्रजा अधीन  राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार)

2.    प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, सरपंच, मेयर का सीधा चुनाव

3.    इलेक्‍ट्रानिक चुनाव मशीन/यंत्र(वोटिंग मशीन) (इ.वी.एम) पर रोक/प्रतिबंध लगाना और पेपर/कागजी मतदान-पत्रों का फिर से प्रयोग शुरू करना

4.    एक ही दिन चुनाव आयोजित करना

5.        चुनाव फार्म/प्रपत्र भरने (की प्रक्रिया) आसान बनाना

6.         चुनाव की जमानत राशि बढ़ाना

7.    उन नागरिक-मतदाताओं की संख्‍या बढ़ाना जो किसी उम्‍मीदवार को स्वीकृति देने के लिए जरूरी है ताकि उम्मीदवार को मान्यता मिल सके और चुनाव लड़ने की इजाजत मिल सके |

8.        उम्‍मीदवारों की संख्‍या सीमित/नियंत्रित करना

9.         तुरंत/तत्काल निर्णायक मतदान (इंसटैन्‍ट रन-ऑफ वोटिंग)  (आई. आर. वी.’) यानि

अधिकपसंद/प्राथमिकता अनुसार मतदान

10.     राज्‍य सभा में चुनाव और समानुपाति(समान तुलना वाली) उम्मीदवारी/प्रतिनिधित्‍व

11.       पार्टी का अंदरूनी चुनाव/आंतरिक लोकतंत्र

   

(40.2) प्रजा अधीन राजा / राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)

हम चुनाव सुधारों की बात इसलिए करते हैं ताकि गलत/बुरे व्‍यक्‍ति के चुने जाने की ‘संभावनाएं’ कम हों और अच्‍छे/सही व्‍यक्‍ति के चुने जाने की संभावनाएं बढ़ें। लेकिन जब तक प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू नहीं होता तब तक चुने गए व्‍यक्‍ति के भ्रष्‍ट हो जाने की संभावनाएं बहुत ही ज्‍यादा होंगी। इसलिए सबसे जरूरी और महत्‍वपूर्ण कार्य प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (नागरिकों द्वारा भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू कराना है। लेकिन प्रश्न है कि : वर्तमान सांसद प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून कभी लागू नहीं करेंगे क्‍योंकि यह उनके आर्थिक/वित्तीय हितों के खिलाफ जाती है। तब क्‍या हम सांसदों को बदलेंगे?

देखिए, इसमें हमें अगले पांच साल तक नुकसान होता रहेगा और इससे केवल सांसदों को ही फायदा/लाभ होगा। वे अगले पांच वर्षों तक बिना कोई चिन्‍ता किए घूस लेते रहेंगे। और आगे चुनकर आने वाले सांसदों के भी बिक जाने की संभावना अधिक रहेगी। इसलिए, इसका समाधान एक व्‍यापक आन्‍दोलन खड़ा करना है जिसमें नागरिकों से यह कहा जाए कि वे प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों पर ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’पर हस्‍ताक्षर करने का दबाव डालें। एक बार यदि प्रधानमंत्री और सभी मुख्‍यमंत्रियों को ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’पर हस्‍ताक्षर करने के लिए बाध्‍य/मजबूर/लाचार कर दिया गया तो नागरिकगण कुछेक महीनों में ही प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्‍यमंत्री, प्रजा अधीन – उच्‍चतम न्‍यायालय के जज आदि कानून लागू कर/करवा सकते हैं। इन मुद्दों/बिन्‍दुओं की जानकारी पूर्व के पाठों में बताई जा चुकी है।

   

(40.3) प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री, मेयर, सरपंच का सीधा चुनाव

भारत में एक आम समस्‍या जो आप देखते/पाते हैं, वह है कि कोई मतदाता यह कहेगा “स्‍वतंत्र उम्‍मीदवार श्रीमान `क` अच्‍छे उम्‍मीदवार हैं लेकिन मैं श्री `ख` को मुख्‍यमंत्री बनवाना चाहता हूँ, इसलिए मैं श्री `ख` के पार्टी को के पक्ष में मतदान करूंगा।” उदाहरण – गुजरात में कई लोग स्‍थानीय बीजेपी विधायक से घृणा करते थे लेकिन उन्‍होंने बीजेपी को ही वोट दिया, क्‍योंकि वे मोदी को मुख्‍यमंत्री बनाना चाहते थे। और मध्‍यप्रदेश में कई मतदाता स्थानीय बीजेपी विधायक उम्‍मीदवार को नहीं चाहते थे। फिर भी उन्‍होंने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया क्‍योंकि वे चाहते थे कि शिवराज चौहान मुख्‍यमंत्री बनें। यह विधायक के लिए होनेवाले चुनाव में बेहतर/अच्छे उम्‍मीदवार को आगे लाने के कार्य में नागरिकों के सामने एक बाधा बन जाती है। क्‍योंकि वे इस बात से बंधे रहते हैं कि “मुख्‍यमंत्री किसे होना चाहिए?” इसलिए यदि मुख्‍यमंत्री और विधायक के चुनाव अलग-अलग कर दिए जांए अर्थात अलग चुनावों में यह तय हो कि मुख्‍यमंत्री कौन बनेगा और विधायक कौन बनेगा, तब मतदाताओं के पास ज्‍यादा विकल्‍प होगा और वे एक ऐसे उम्‍मीदवार को वोट दे पाएंगे जिसे वे विधायक के पद के लिए चाहते हैं, और वह भी इस बात से डरे बिना कि इससे मुख्‍यमंत्री के चुनाव पर गलत प्रभाव पड़ सकता है।

इसलिए मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री का चुनाव नागरिकों को सीधे ही करना चाहिए। क्‍या इससे मुख्‍यमंत्री या विधायक निरंकुश हो जाएंगे? नहीं ,प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री और प्रजा अधीन – मुख्‍यमंत्री का प्रयोग करके, हम नागरिक यह पक्का/सुनिश्‍चित कर सकते हैं कि वह उचित व्‍यवहार करेंगे। आज की स्‍थिति में, केवल विधायक और सांसद ही मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री को हटा/बर्खास्‍त कर सकते हैं और वे केवल इतना भर करते हैं कि मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री को धमकाकर रिश्वत/घूस वसूल करते हैं। इसलिए यह प्रक्रिया कि विधायक और सांसद ही मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री को हटा/बर्खास्‍त कर सकते हैं – नागरिकों की बिलकुल मदद नहीं नहीं करती – यह केवल विधायकों और सांसदों को ही धनवान बनाती है।

मेरा प्रस्‍ताव है कि – ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके, हम नागरिकों को एक सरकारी अधिसूचना(आदेश) लागू करानी चाहिए जिसके द्वारा नागरिक प्रधानमंत्री या मुख्‍यमंत्री को सीधे ही चुन सकें। और इस कार्य के लिए प्रस्‍तावित प्रक्रियाओं – प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्‍यमंत्री में वे साधन मौजूद हैं जिनके द्वारा नागरिक अपनी पसंद के मुख्‍यमंत्री और प्रधानमंत्री को पद पर बैठा सकते हैं।

   

(40.4) इलेक्‍ट्रानिक चुनाव मशीन (वोटिंग मशीन) (इ.वी.एम) पर रोक / प्रतिबंध लगाना और कागजी मतदान-पत्रों में कुछ परिवर्तन / बदलाव लाकर उनका प्रयोग करना

कृपया http://www.youtube.com/watch?v=AuJHih4fxYQ पर एक वीडियो प्रदर्शन देखें जो दिखलाता है कि इवीएम मशीनों में हेराफेरी/गड़बड़ी करना कागजी मतदान पत्रों से कहीं ज्‍यादा आसान है और इन गड़बड़ियों का पता भी नहीं लगाया जा सकता। इसके अलावा, मैंने एक तरीके के बारे में लिखा है कि कैसे फैक्‍ट्री के भीतर लाखों इवीएम मशीनों में गड़बड़ी/हेराफेरी की जा सकती है।

क्‍या इवीएम मशीनों में गड़बड़ी की जा सकती है? हां। और इससे भी खतरनाक बात यह है कि हजारों इवीएम मशीनों में गड़बड़ी/हेराफेरी फैक्‍ट्री के भीतर कुछ ही लोगों द्वारा की जा सकती है। पेपर/कागज के मतदान-पत्रों का प्रयोग करने पर ऐसी गड़बड़ी/हेराफेरी नहीं की जा सकती। और कुछ प्रकार की हेराफेरी इस प्रकार की हैं कि जिनमें यह पक्का/निश्‍चित होता है कि इन हेराफेरियों का पता सारी जनता को कभी नहीं चल पाएगा। पेपर/कागजी मतदानों के मामले में कोई व्‍यक्‍ति कुल मतदान के मुश्‍किल से 0.1 प्रतिशत की ही हेराफेरी कर सकता है और ऐसा करने के लिए भी उसे हजारों अपराधियों की जरूरत पड़ेगी| ई.वी.एम मशीनों द्वारा चुनाव में , कोई व्यक्ति 10-15 ऊपर/शीर्ष के लोगों की मदद से और कलेक्टर के दफ्तर में एक छोटी सी चाल चलकर, कुल डाले गए मत में से 10 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक भी चुरा सकता है। (इसके लिए ये लिंक देखें-www.righttorecall.info/evm.h.pdf )

एक और तरीका है ,बेईमान डिस्प्ले/प्रदर्शन , जो ब्लू-टूथ द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है,जिसमें फैक्ट्री में 100 लोग चाहिए (बूथों पर रेडियो सिग्नल/इशारा देने के लिए ) और उनके उपयोग से औसत 10% चुनाव-क्षेत्रों का, तक चुराया जा सकता है | (अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखें-http://www.youtube.com/watch?v=AuJHih4fxYQ )

यही वह मुख्‍य कारण है कि क्‍यों जर्मनी ने इवीएम मशीनों पर प्रतिबंध/रोक लगा दी और जापान तथा आयरलैण्‍ड ने इवीएम योजनाओं को रद्द/समाप्‍त कर दिया। और अमेरिका के कई राज्यों ने भी इवीएम पर रोक/प्रतिबंध लगा दिया।

कागज/पेपर के मतदान-पत्रों के मामले में लोग मतदान-केन्‍दों पर तथाकथित कब्‍जा कर लेने की शिकायत करते हैं। देखिए, इ.वी.एम से भी मतदान-केन्‍द्र पर कब्‍जा नहीं रूकता। यह निश्‍चित रूप से पुलिस(कानून-व्यवस्था) का मामला है। इ.वी.एम मशीन से दो लगातार बार वोट देने के बीच में केवल 20 सेकेन्‍ड की देरी लगती है ,और कोई देरी नहीं होती। इस 20 सेकेन्‍ड की देरी को कागज के मतदान पत्रों में भी प्राप्‍त किया जा सकता है जिसके लिए एक मशीन का उपयोग किया जा सकता है जो मतदान पत्रों के पीछे की तरफ 15 अंकों की एक क्रमसंख्‍या डाल देगी और यह मशीन प्रत्‍येक 20 सेकेंड में केवल एक मोहर/स्‍टैंप लगाएगी। इससे दो लगातार मतदानों के बीच 20 सेकेन्‍ड की देरी सुनिश्‍चित/पक्‍का की जा सकती है। इससे मतदान पत्र इवीएम मशीन से ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा जितना है और इसमें फैक्ट्री/औद्योगिक स्‍तर के गड़बड़ी की समस्‍या बिलकुल भी नहीं आएगी। इसके अलावा सभी संवेदनशील मतदान केन्‍दों पर चुनाव आयुक्‍त 1000 से 2000 रूपए तक के कैमरे लगवा सकते हैं जो प्रत्‍येक 30 सेकेन्‍ड में चित्र/तस्‍वीर लेंगे और इन तस्‍वीरों को मोबाइल फोन लिंक/सम्‍पर्क के जरिए नियंत्रण कक्ष में भेज सकते हैं। कुल मिलाकर मतदान केन्‍द्रों पर कब्‍जा की घटनाएं इसलिए होती हैं क्‍योंकि जज/पुलिसवाले अपराधियों को बढ़ावा दे रहे होते हैं जो इतने ताकतवर और निडर हो जाते हैं कि वे मतदान केन्‍द्रों पर कब्‍जा कर लेते हैं। इसका समाधान है – ऐसी प्रक्रिया लागू करना जिसके द्वारा नागरिक जिला पुलिस प्रमुख और जजों को बदल/बर्खास्‍त कर सकें ताकि अपराधी इतने ताकतवर ना बन सकें। एक बार यदि अपराधी कमजोर हो जाए तो मतदान केन्‍द्र पर कब्‍जे की समस्‍या कम/समाप्‍त हो जाएगी।

साथ ही, यदि चुनाव की जमानत राशि बढ़ा दी जाए (देखिए, अगले भागों/शीर्षकों में से एक) तो नकली उम्‍मीदवारों की संख्‍या कम हो जाएगी। इसलिए उम्‍मीदवारों की संख्‍या 5-10 हो जाएगी और तब (मतदानपत्र) दो पोस्‍टकार्ड से ज्‍यादा बड़े आकार का नहीं रह जाएगा। तब ऐसे मामले में मतगणना का काम एक ही दिन में समाप्‍त हो जाएगा।

एक बार यदि नागरिकों द्वारा बदले/हटाए जा सकने वाले जिला पुलिस प्रमुखों और नागरिकों द्वारा बदले/हटाए जा सकने वाले जजों को नौकरी पर रख सकें, तो अपराधियों की समस्‍या कम हो जाएगी और तब प्रति मतदान केन्‍द्र पर कैमरे के साथ एक पुलिसवाले और 10 मतदान केन्‍द्रों के क्षेत्र में 10 पुलिसवालों की एक घूमती हुई(गतिशील) ,गश्त लगाने वाली/निगरानी (वाहन) की तैनाती करके ही चुनाव आयोजित करना संभव हो जाएगा। इसलिए 800000 मतदान केन्‍द्रों में मतदान आयोजित करने के लिए लगभग 16,00,000 पुलिसवाले पर्याप्‍त होंगे। भारत में 25,00,000 पुलिसकर्मी हैं। (केन्‍द्रीय रिजर्व पुलिस बल और अन्‍य पुलिस वालों को शामिल करके, सेना के जवानों और सीमासुरक्षा बल को छोड़कर)। और चाहे चुनाव के लिए जरूरत हो या न हो ,हमें भारत में 5000000 और पुलिसकर्मियों की जरूरत है। इसलिए पूरे देश में एक ही दिन में मतदान कराया जाना संभव है। और चुनाव होने के 3 दिनों के बाद मतगणना की जा सकती है।

इसलिए कुल मिलाकर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के सदस्‍य के रूप में इ.वी.एम और मतदान कराने के मामले पर मेरे प्रस्‍ताव ये हैं –

1     ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके इ.वी.एम मशीन पर प्रतिबंध/रोक लगा दी जाए, केवल कागजी मतदान पत्रों के उपयोग को कानूनी मान्‍यता दी जाए।

2.    ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके पुलिस प्रमुख, जजों के ऊपर प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू किया जाए।

3.    भारत भर में 30,00,000 और पुलिसकर्मियों की भर्ती की जाए।

4.    सभी पुलिसकर्मियों को कैमरा दिया जाए।(कैमरे उनके घुमती हुई गाड़ियों में लगे होंगे)

5.    सभी संवेदनशील मतदान केन्‍द्रों में कैमरा लगाया जाए।

6     ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके चुनाव जमानत की राशि बढ़ाई जाए।

7.    ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके उन नागरिकों की संख्‍या बढ़ाई जाए जिन्‍हें किसी उम्‍मीदवार को स्वीकृति देने की जरूरत है ताकि उम्मीदवार को मान्यता मिल जाये और चुनाव लड़ने की इजाजत मिल सके।

   

(40.5) चुनाव मशीन की लागत लगबग तीन गुना है प्रति चुनाव कागज-मतपत्र की तुलना में |

भारतीय चुनाव यंत्र (ई.वी.एम) की कुल लागत प्रति लोकसभा चुनाव-क्षेत्र

औसतन लोक सभा चुनाव-क्षेत्र में 1.5 लाख मतदाता होते हैं | और हर बूथ के औसतन 1000 मतदाता होते हैं | और मान लें कि औसतन हर लोक सभा चुनाव-क्षेत्र में औसतन 12 प्रत्याशी हैं और औसतन 60% मतदान है |

A- गणना- एक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र में सात गणना कमरे ,हरेक कमरे में 15 गणना के लिए मेज  =105 गणना मेज प्रत्येक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र में | दो  द्वितीय श्रेणिय के व्यक्ति (आमदनी =रु.1200 प्रति 8 घाटे प्रति दिन) हरिक मेज पर 6 घंटों में गिनती कर लेंगे. लागत=1200x2x105x6/8= रु.1.89 लाख |

B-प्रशिक्षण – दो द्वितीय श्रेणी के व्यक्ति प्रशिक्षित होंगे प्रति बूथ दो दिन के लिए | औसतन 1500 बूथ हैं हरेक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र | लागत =1200x2x1500= रु 7.2 लाख

C- मतदान लागत = चुनाव मशीन की लागत + मतदान से पहले मशीन की जांच की लागत

रियायती मूल्य चुनाव मशीन का रु 10,000 है जो अधिकतर 6 चुनावों के लिए काम में आती है | इसीलिए एक इलेक्ट्रोनिक चुनाव मशीन की लगत, एक बूथ के लिए रु.2000 है ब्याज को छोडकर , चुनाव के पहले जांच करने की लागत के सहित | और यदि रख-रखाव का खर्चा जोड़ा जाए तो कीमत रु. 2500 होगी |

लागत =1500×2500= रु.37.5 लाख

कुल लागत इलेक्ट्रोनिक चुनाव मचीन की प्रति लोकसभा चुनाव-क्षेत्र =A+B+C=रु.46.5 लाख

कागज मतदान की कुल लागत प्रति लोक सभा चुनाव-क्षेत्र

D- गणना

कुल 105 गणना के मेज एक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र में | हरेक मेज पर तीन श्रेणी-4 के व्यक्ति (आमदनी = रु.700 प्रति 8 घंटे का दिन ) को 2 दिन (=16घंटे ) लगेंगे गिनती के लिए | लागत=4 लाख

E- प्रशिक्षण = शुन्य लागत |

F- मतदान लागत = कागज मतपत्र की लागत +मतदान पति की लागत

एक मत पात्र की लागत = 50 पैसा | एक मतदान पति की लागत = रु.200|

औसतन लागत एक बूथ की जिसमें औसतन 1000 मतदाता हैं = रु.500+200=रु.700

एक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र की लागत = रु.10.5 लाख

कुल लागत कागज़ मतपत्र की प्रति लोकसभा चुनाव-क्षेत्र = D+E+F= रु.14.5 लाख

चुनाव मशीन की लागत लगबग तीन गुना है प्रति चुनाव कागज मतपत्र की तुलना में |

पर्यावरण के प्रेमियों को ये समझना चाहिए कि 75 करोड़ मतपत्र कम कागज़ लेते हैं जितना कि भारत के सारे समाचार पत्र एक दिन में लेते हैं | इसीलिए पर्यावरण-प्रेमियों का कोई इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए |

और कागज मतदान में, केवल 1% बूथों में धोखा-धड़ी करना ही संभव है | भारत में 50 लाख या ज्यादा बूथ हैं | एक बूथ में धोखा-धड़ी करने के लिय कम से कम 2-4 गुंडे चाहिए | कोई भी पार्टी के पास 50,000  गुंडे भी नहीं हैं | इसीलिए वे ज्यादा से ज्यादा 10,000  बूथ पूरे भारत में धोखा-धड़ी कर सकते हैं | और यदि बूथों पर कमरा लगा दिया जाये , तो बूथों की वो संख्या/नंबर जिसमें धोखा-धड़ी होती है  कुछ 100 हो जायेगी पूरे भारत में | ये कमरा लगाने पर भी कागज के द्वारा मतदान करना का खर्चा भारतीय चुनाव यंत्रों द्वारा मतदान से ज्यादा नहीं होगा |

   

(40.6) एक ही दिन चुनाव (आयोजित) कराना

वर्ष 1951 में, पूरा चुनाव एक ही दिन आयोजित कराया गया था। जहाँ तक मुझे याद है , लगभग वर्ष 1984 तक चुनाव केवल एक ही दिन में सम्‍पन्‍न होते रहे। 1984 के बाद से ही, भारतीय चुनाव आयोग को अलग-अलग दिनों में चुनाव कराना पड़ा। निम्‍नलिखित सुधारों को लागू करके चुनाव एक ही दिन में पूरे/सम्‍पन्‍न कराए जा सकते हैं :-

1.    चुनाव जमानत राशि को `प्रति व्‍यक्‍ति वार्षिक ,सकल(कुल) घरेलू उत्‍पादों`( देश के भीतर सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल उत्पादन/उपज का बाजार मूल्य) के दो गुना बनाया जाए : इससे यह निश्‍चित होगा कि उम्‍मीदवारों की संख्या 10-12 से कम ही रहेगी और चुनाव सही तरीके से पूरे कराए जा सकेंगे।

2.    कानून व्‍यवस्‍था में सुधार करना : अपराधी जितने कम होंगे, पुलिस स्‍टॉफ की जरूरत उतनी ही कम पड़ेगी।

3.    मतदान केन्‍द्रों में (ड्यूटी करने वाले) पुलिसकर्मियों को कैमरा दिया जाए।

4.    स्‍टैम्‍प लगाने वाली ऐसी मशीन का उपयोग किया जाए जो हर 20 सेकेन्‍ड के बाद स्‍टैम्‍प/मुहर लगाती हो ताकि मतदान केन्‍द्रों पर कब्‍जा करने वाले कुछ ही मिनटों में सैकड़ों वोट न डाल सकें।

एक बार यदि मतदान केन्‍द्रों पर कब्‍जा करने की समस्‍याएं समाप्‍त/कम हो जाती है तो एक ही दिन में चुनाव कराना संभव हो जाएगा।(क्योंकि दुबारा चुनाव करना नहीं पडेगा | आज मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने से मतदान एक दिन में पूरा नहीं हो पाता)

   

(40.7) चुनाव के फार्म भरने और चुनाव लड़ने (की प्रक्रिया) आसान बनाना

फार्म/प्रपत्र भरने में जितना ही कम समय लगेगा और कम परेशानी होगी, उतने ही अधिक ईमानदार व्‍यक्‍ति राजनीति में आएंगे। यदि फार्म भरने में घंटों-घंटों का समय लगेगा तब केवल इस बात की ही संभावना होगी कि ईमानदार व्‍यक्‍ति (राजनीति) छोड़ देंगे, क्‍योंकि इससे उसकी आय में कमी होगी।

आज की स्‍थिति में, फार्म/प्रपत्र भरना एक परेशानी का काम बन गया है और हर चुनाव में हम देखते हैं कि अच्छे उम्‍मीदवारों का फार्म मामूली/छोटी गलती के कारण रद्द/निरस्‍त हो जाता है। फार्म/प्रपत्र भरने में तकनीकी माथापच्‍ची कम करने के लिए मेरे प्रस्‍ताव निम्‍नलिखित हैं –

1.    कोई नागरिक किसी सीट/चुनाव-क्षेत्र के लिए स्‍वयं को उम्‍मीदवार घोषित कर सकता है। यह जरूरी नहीं रहे कि जब चुनावों की घोषणा हो जाए तभी वह ऐसा करे। वह स्‍वयं को अधिक से अधिक 2 लोकसभा चुनावक्षेत्र से उम्‍मीदवार घोषित कर सकता है।

2.    वह उसी दिन अपनी जमानत राशि जमा कर देगा जिस दिन वह स्‍वयं की उम्‍मीदवारी की घोषणा करता है।

3.    उसे भारत का नागरिक होना जरूरी है और उसे कलक्‍टर को कोई ऐसा सबूत/प्रमाण दिखलाना पड़ेगा कि वह भारत का नागरिक है। उसका नाम मतदाता सूची में हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।

4.    फार्म/प्रपत्र भरने के समय किसी को उसके नाम का समर्थन करने की जरूरत नहीं होगी।

5.         कोई भी नागरिक पटवारी (तलाटी) के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा करवाकर अपने चुनाव क्षेत्र के लिए किसी उम्‍मीदवार का समर्थन कर सकता है। कोई नागरिक बिना कोई शुल्‍क दिए अपना समर्थन किसी भी दिन रद्द कर सकता है। कोई नागरिक ज्‍यादा से ज्‍यादा 3 उम्‍मीदवारों का समर्थन कर सकता है। वह 3 रूपए की फीस देकर किसी उम्‍मीदवार का फिर से समर्थन कर सकता है।

6.         कलेक्‍टर उसके आवेदन पत्र को 7 दिनों में स्‍वीकार/अस्‍वीकार करेगा।

7.    कलेक्‍टर उसके आवेदन-पत्र की जांच तब करेगा जब 1000 नागरिक-मतदाताओं ने उसके नाम का समर्थन किया हो और यह गिनती लगातार 14 दिनों तक 1000 से उपर बनी रहे।

8.    यदि आवेदन-पत्र रद्द हो जाता है तो वह अपना आवेदन-पत्र फिर से भरकर जमा करा सकता है। जिन नागरिकों ने उसका (पहले) समर्थन किया है वह समर्थन बना/बरकरार रहेगा।

9.    आवेदन-पत्र भरने की अंतिम तिथि/तारीख चुनाव शुरू होने के 30 दिन पहले तक होगी।

10.   उसे अपनी आय/सम्‍पत्ति की पूरी जानकारी का लिखकर खुलासा करना होगा (उस दिन की स्‍थिति के अनुसार)।

11.   राजनैतिक दलों को कर/टैक्‍स का लाभ नहीं मिलेगा। राजनैतिक दलों को दान/चन्‍दा देने वालों को भी टैक्‍स का लाभ नहीं मिलेगा।

12.   कोई भी व्‍यक्‍ति राजनैतिक दलों को चन्‍दा/दान दे सकता है लेकिन राजनैतिक दलों को चन्‍दा/दान देने की इजाजत/अनुमति कम्‍पनियों को नहीं होगी।

13.   (चुनाव) प्रचार/अभियान के खर्चों को व्‍यावसायिक खर्च बताकर, कम करके नहीं बताया जा सकेगा।

14.   उम्‍मीदवारों को उनके द्वारा केवल चुनावों के कार्य के लिए किए गए खर्चों का हिसाब/सूची चुनावों के समाप्‍त हो जाने के 30 दिनों के भीतर ही देना जरूरी होगा। चुनावों के दौरान उन्‍हें खर्चे बताने/प्रस्‍तुत करने की जरूरत नहीं होगी।

किसी उम्‍मीदवार का समर्थन करने वाले नागरिकों की संख्‍या बढ़ाकर 1000 करने से नकली/फर्जी उम्‍मदवारों की संख्‍या कम होगी। इसलिए चुनाव प्रपत्र/फार्म भरने के संबंध में मेरा प्रस्‍ताव ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके एक ऐसा कानून लागू करवाने का है जिसमें उपर्युक्‍त 10-12 बातों/बिन्‍दुओं को शामिल किया जाए।

   

(40.8) चुनाव जमानत राशि बढ़ाना

मान लीजिए, भारत की प्रति व्यक्ति आय `क` रूपया है। तब लोकसभा के चुनाव में मेरे द्वारा प्रस्तावित जमानत जमाराशि इस प्रकार होगी :-

1.    न्‍यूनतम जमा राशि `क` रूपए होगी |

2.    यदि उम्‍मीदवार की वार्षिक आय `क` रूपए से ज्‍यादा है अथवा उसकी सम्‍पत्ति 10 × `क` रूपया से अधिक है तो जमानत जमाराशि `क` रूपया और [आय/5 और सम्‍पत्ति/50 में जो भी ज्‍यादा हो] के जोड़/योग के बराबर होगी।

3.    अधिकतम जमानत जमाराशि `प्रति व्‍यक्‍ति आय` का 5 गुना (के बराबर) होगी।

4.    यदि किसी व्‍यक्‍ति ने आय या सम्‍पत्‍ति की घोषणा/खुलासा करने में झूठ बोला है तो जूरी-मण्‍डल उसे अन्‍तर/बकाया का 50 गुना ज्‍यादा राशि का दण्‍ड/जुर्माना लगा सकती है।

5.    यदि कोई व्‍यक्‍ति ` प्रति व्यक्ति आय ` की दस गुना राशि के बराबर राशि का भुगतान करने पर राजी हो जाता है तो उसे कम जमानत राशि जमा करवाने का दोषी नहीं माना जाएगा।

6.    ` प्रति व्यक्ति आय ` वह होगी जो भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा चुनाव आयोग को बताया जाएगा। चुनाव आयोग इसे नजदीकी हजार में बदलकर सुविधा-जनक बना सकता है।

इस प्रकार अब, मई, 2009 के चुनाव पर विचार कीजिए। प्रति व्यक्ति आय लगभग 45,000 रूपए थी। तब यदि किसी व्‍यक्‍ति की वार्षिक आय 45,000 रूपए से कम है तो (उसके लिए) जमानत की जमाराशि 45,000 रूपए होगी। यदि उसकी आय मान लीजिए, 5,00,000 रूपए प्रतिवर्ष है और संपत्‍ति 40,00,000 रूपए की है तो उसके लिए जमानत की जमाराशि इस प्रकार होगी :- 45,000 + अधिकतम (500,000/5 रूपया, 40,00,000/50) = 45,000 रूपए + अधिकतम (10,000, 80,000) = 1,45,000 रूपए और सबसे अधिक देय जमानत राशि 22,50,000 रूपए होगी।

क्‍या 45,000 रूपए की जमानत राशि किसी गरीब आदमी के लिए बहुत अधिक है? देखिए, वर्ष 1951 में जमानत राशि 500 रूपए थी और `प्रति व्‍यक्‍ति आय प्रति वर्ष` ,300 रूपए प्रति व्‍यक्‍ति से कम थी। इसलिए, लोकसभा चुनाव में प्रति व्‍यक्‍ति आय का लगभग 1.5 गुना जमानत राशि होती है। मेरे द्वारा सुझाए गए इस फारमूले में, यह राशि अभी भी सबसे गरीब व्‍यक्‍ति के लिए कम ही है और केवल धनवान उम्‍मीदवारों के लिए यह ज्‍यादा/अधिक हो जाती है। यदि कोई व्यक्‍ति धनवान है तो चुनाव आयोग द्वारा उसपर दया दिखलाने का और कम शुल्‍क में ही उसे चुनाव लड़ने देने का कोई कारण नहीं बनता है। यदि व्‍यक्‍ति धनवान नहीं है तब जमानत की जमाराशि मात्र 45,000 रूपए है।

इसलिए मेरा प्रस्‍ताव ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके जमानत राशि से संबंधित कानून पारित/लागू करवाने का है।

   

(40.9) उन नागरिक-मतदाताओं की संख्‍या बढ़ाना जो किसी उम्‍मीदवार के लिए स्वीकृति देते हैं ताकि उम्मीदवार चुनाव लड़ सके

आज की स्‍थिति में, लोकसभा चुनाव में, किसी उम्‍मीदवार के नाम का समर्थन करने के लिए 10 नागरिक-मतदाताओं की जरूरत होती है। इसलिए, इस संख्‍या को बढ़ाकर 1000 कर देना चाहिए लेकिन किसी उम्‍मीदवार का स्वीकृति/समर्थन करने की प्रक्रिया में बदलाव लाना चाहिए। किसी फार्म/प्रपत्र में उम्‍मीदवारों द्वारा घूम-घूम कर हस्‍ताक्षर करवाने के बदले, जो नागरिक समर्थन देना चाहते हैं, उन्‍हें पटवारी के कार्यालय जाने के लिए कहा जाना चाहिए और पटवारी को उसका नाम कम्‍प्‍यूटर में डालना चाहिए तथा पटवारी के कम्‍प्‍यूटर में लगे वेब-कैमरे से उस व्‍यक्‍ति की तस्वीर कम्‍प्‍यूटर में ले लेनी चाहिए। स्वीकृति/समर्थन किसी भी दिन दिया जा सकती है और किसी भी दिन रद्द कर सकते हैं। यदि किसी उम्‍मीदवार के समर्थन की गिनती 1000 से ज्‍यादा हो जाती है और लगातार 30 दिनों तक 1000 से ज्‍यादा/अधिक बनी रहती है तो वह अगले 6 वर्षों में लोकसभा के चुनाव के लिए पात्र/योग्‍य होगा। यदि वह इस शर्त/अपेक्षा को पूरा करने में असफल रहता है तो उसकी जमा की गई जमानत राशि उसे वापस दे दी जाएगी।

   

(40.10) उम्‍मीदवारों की संख्‍या सीमित / नियंत्रित करना

‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके मैं निम्‍नलिखित कानून लागू करने का प्रस्‍ताव करता हूँ –

यदि किसी चुनाव क्षेत्र के लिए 8 से ज्‍यादा उम्‍मीदवार हो जाते हैं तो पूर्व-चुनाव कराया जाएगा। मुख्‍य चुनाव से 30 दिन पहले जिन 4 पार्टियों/दलों (अथवा उम्‍मीदवार, यदि वह स्‍वतंत्र उम्‍मीदवार है) जिन्‍हें इसके पूर्व के चुनाव में सबसे ज्‍यादा वोट मिले थे, उन्‍हें पूर्व-चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं होगी और केवल शेष/बाकी उम्‍मीदवार ही पूर्व-चुनाव मतदान पत्र पर होंगे। इस पूर्व-चुनाव मतदान पत्र में केवल एक पर ही वोट दिया जा सकेगा। जिन चार उम्‍मीदवारों को पूर्व-चुनाव में सबसे ज्‍यादा वोट मिलेंगे, वे ही मुख्‍य चुनाव के लिए सफल माने जाएंगे। पूर्व-चुनाव के लिए जमानत राशि चुनाव के लिए ली जाने वाली जमानत राशि के बराबर होगी। और उन चार उम्‍मीदवारों, जिन्‍होंने पूर्व-चुनाव में जीत हासिल की है, उन्‍हें मुख्‍य चुनाव के लिए जमानत राशि देने की जरूरत नहीं होगी।

पूर्व-चुनाव फर्जी/नकली उम्‍मीदवारों की संख्‍या कैसे कम करेगा?

कई नकली/फर्जी उम्‍मीदवार एक या अधिक सही/सीरियस उम्‍मीदवारों के वोट काटने के लिए ही चुनाव लड़ते हैं। पूर्व-चुनाव ऐसे सही/गंभीर उम्‍मीदवारों के वोट काटने की उनकी क्षमता कम कर देता है।

   

(40.11) उम्‍मीदवारों द्वारा नाम वापस लेने के विकल्‍प को समाप्‍त करना

कोई उम्‍मीदवार, जो चुनाव लड़ने के लिए फार्म/प्रपत्र भरता है, वह अपने चुनाव फॉर्म को शून्‍य या अधिक उम्‍मीदवारों के साथ जोड़ सकता है। यदि उम्मीदवार को वह जोड़(टैग) प्राप्‍त है तो वह केवल तभी चुनाव लड़ सकता है जब लिस्ट/सूची, (उन उम्मीदवारों की,जिनका नाम इस उम्मीदवार के साथ जोड़ा गया है) के सभी उम्‍मीदवार नापास/असफल/अयोग्‍य हो जाएं। यदि कोई भी (उम्‍मीदवार) सफल रहता है तो उस जोड़(टैग)-प्राप्‍त उम्‍मीदवार के फार्म/प्रपत्र को वापस लिया गया माना जाएगा और जमानत राशि उसे वापस कर दी जाएगी। उसे यह निर्णय करने का अधिकार नहीं होगा कि वह नाम वापस लेना चाहता है कि नहीं।

   

(40.12) तुरंत / तत्‍काल निर्णायक मतदान या `अधिक पसंद अनुसार मतदान` (आई.आर.वी= इन्स्टैंट रन-ऑफ वोटिंग)

(विस्‍तृत जानकारी के लिए, कृपया विकिपीडिया पर आई. आर. वी.’ देखें)

40.12.1 – परिचय

जिस चुनाव प्रक्रिया का हम प्रयोग करते हैं, वह है – “एक व्‍यक्‍ति, एक वोट, प्रथम आने वाला विजयी” अर्थात एक मतदाता केवल एक ही वोट दे सकता है और सबसे अधिक मत प्राप्‍त करने वाला उम्‍मीदवार जीत जाता है। इस प्रक्रिया में एक कमी है जिसका पता वर्ष 1200 से ही है – मतदाता जिस उम्‍मीदवार को सबसे ज्‍यादा चाहते हैं, उसके पक्ष में वोट नहीं दे पाते हैं। वे लोग परिस्‍थितियों और प्रक्रियाओं द्वारा उस उम्‍मीदवार को वोट देने के लिए विवश/मजबूर होते हैं जो जीतने योग्‍य उम्‍मीदवारों में से सबसे बुरे/गलत उम्‍मीदवार को हरा सके। कहने का अर्थ यह नहीं है कि मतदाता चुनाव न जीतने वालों को छोड़कर चुनाव जीतने वालों को ही प्रमुखता/महत्‍व देते हैं अथवा किसी (मतदाता) को केवल जीतने की क्षमता/समर्थ वाले उम्‍मीदवार ही प्रभावित करते हैं।

इसे मैं एक उदाहरण द्वारा बताता हूँ। मान लीजिए, एक चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस पार्टी चार अन्‍य स्‍वतंत्र उम्‍मीदवारों `क`,`ख`,`ग`,`घ` के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। मान लीजिए, एक नागरिक `क` को चाहता है। लेकिन उसे डर है कि यदि कांग्रेस जीत जाती है तो वह बहुत बुरा करेगी उस क्षेत्र/जगह के लिए। ऐसे मामले में कांग्रेस की हार सुनिश्‍चित करना उसकी पहली प्राथमिकता है। और इसलिए, उसे मजबूर होकर बीजेपी को ही वोट देना पड़ेगा। हालांकि वह समझता है कि श्री `क` बीजेपी के उम्‍मीदवार से बेहतर उम्‍मीदवार है। पर उसके पास कांग्रेस को वोट देने के अलावा ज्‍यादा विकल्‍प नहीं बचता। इस प्रकार हम पाते हैं कि मतदाता जिस उम्‍मीदवार को सबसे ज्‍यादा चाहते हैं, उसे वोट नहीं दे सकते हैं। लेकिन उसे उस उम्मीदवार को वोट देना पड़ता है जो उस जीतने योग्‍य उम्‍मीदवार को हरा सके जिसे वह सबसे ज्‍यादा घृणा/नापसंद करता है, चाहे वह उस उम्‍मीदवार (जिसे उसने वोट दिया है) को नापसंद ही क्‍यों न करता हो।

इस समस्‍या के बारे में पिछले 800 वर्षों से सबको पता है। और इसका समाधान भी 800 साल पुराना है – इस समाधान को तुरंत/तत्‍काल निर्णायक मतदान (इन्स्टैंट रन-ऑफ वोटिंग=आई. आर. वी.) करने के नाम से जाना जाता है।

40.12.2  चुनावी तरीके की अधिक जानकारी

मैं ‘तुरन्त निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ के बारे में पूरा विवरण देकर इसे विस्‍तार से बताउंगा :-

1.    मान लीजिए, 8 उम्‍मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं जिनके नाम ‘क`,`ख`,`ग`,`घ`,`च`,`छ`,`ज`,`झ’ हैं।

2.    तब मतदान पत्र का डिजाइन निम्‍नलिखित प्रकार से हो सकता है :-

उम्‍मीदवार की संख्‍या

1

2

3

4

5

6

7

8

दल/पार्टी

कांग्रेस

बीजेपी

सीपीएम

बीएसपी

स्‍वतंत्र

स्‍वतंत्र

स्‍वतंत्र

स्‍वतंत्र

उम्‍मीदवार का नाम

व्‍यक्‍ति क

व्‍यक्‍ति ख

व्‍यक्‍ति ग

व्‍यक्‍ति घ

व्‍यक्‍ति च

व्‍यक्‍ति छ

व्‍यक्‍ति ज

व्‍यक्‍ति झ

चुनाव चिन्‍ह

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

सबसे

ज्‍यादा ईमानदार

सबसे

ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा

सबसे

ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा

सबसे

 ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तुरंत निर्णायक मतदान(इन्स्टैंट रन-ऑफ वोटिंग) यानि `अधिक पसंद/प्राथमिकता अनुसार मतदान` का प्रस्‍तावित मतदान पत्र (पट/ आड़ा डिजाईन)

3.    मतदान पत्र के डिजाइन की अधिक जानकारी इस प्रकार है :-

(क)   इस मतदान पत्र में 8 पंक्‍ति हैं।

(ख)   पहली लाइन/पंक्‍ति में उम्‍मीदवार की संख्‍या, दूसरी में पार्टी का नाम, तीसरी लाइन/पंक्‍ति में उम्‍मीदवार का नाम और चौथी लाइन/पंक्‍ति में चुनाव चिन्‍ह छपा है।

(ग)   पांचवी लाइन/पंक्‍ति उस उम्‍मीदवार के लिए है जिसे मतदाता सबसे ज्‍यादा ईमानदार समझते/मानते हैं।

(घ)   छठी से आठवीं लाइन/पंक्‍ति उन उम्‍मीदवारों के लिए है जिसे मतदाता दूसरा, तीसरा और चौथा सबसे ज्‍यादा/अधिक ईमानदार उम्‍मीदवार समझते हैं।

(च)   (उम्‍मीदवारों की संख्‍या + 2) स्‍तंभ/खम्भे होंगे – पहले और अंतिम स्‍तंभ/खम्भों में लाइन/पंक्‍ति के नाम/शीर्षक हैं और प्रत्‍येक उम्‍मीदवार के लिए एक स्‍तंभ/खम्भा है।

(छ)   मतदान पत्र की उंचाई 12 इंच होगी – 0.5 इंच का बार्डर सबसे उपर होगा और पहली लाइन/पंक्‍ति उम्‍मीदवार की संख्‍या होगी, दूसरी लाइन/पंक्‍ति 1 इंच की होगी जिसमें पार्टी का नाम लिखा होगा, तीसरी लाइन/पंक्‍ति 2 इंच की होगी जिसमें उम्‍मीदवार का नाम लिखा होगा। 1.5 इंच का स्‍थान चुनाव चिन्‍ह की पंक्‍ति का होगा और प्रत्‍येक पसंद/प्राथमिकता के लिए 1.5 इंच का स्‍थान होगा। सबसे नीचे 0.5 इंच का बार्डर होगा = (0.5 + 0.5 + 1 + 2 + 1.5 + 1.5 × 4 + 0.5) = 12 इंच

(ज)   मतदान पत्र की चौड़ाई होगी – 0.5 इंच दोनों ओर बार्डर के लिए होगा, 2 इंच पहले स्तंभ/खम्भे के लिए होगा और 1.5 इंच प्रत्‍येक उम्‍मीदवार के लिए होगा । इस प्रकार, यदि कुल 8 उम्‍मीदवार हैं तो मतदान पत्र (0.5 + 2 + 1.5 × 8 + 0.5) = 15 इंच चौड़ा होगा। यदि 5 उम्‍मीदवार हैं तो मतदान पत्र (0.5 + 2 + 1.5 × 5 + 0.5) = 10.5 इंच चौड़ा होगा।

(झ)   बार्डर/किनारा 0.2 इंच मोटा होगा ताकि मुहर दो खानों पर न चला जाए |

खड़ा / लम्बरूप / वर्टीकल डिजाईन इस प्रकार का होगा :-

#

दल/पार्टी

नाम

चुनाव चिन्‍ह

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

1

कांग्रेस

व्‍यक्‍ति क

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

2

बीजेए

व्‍यक्‍ति ख

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

3

सीपीएक्‍स

व्‍यक्‍ति ग

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

4

स्‍वतंत्र

व्‍यक्‍ति घ

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

5

स्‍वतंत्र

व्‍यक्‍ति च

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

6

स्‍वतंत्र

व्‍यक्‍ति छ

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

7

स्‍वतंत्र

व्‍यक्‍ति ज

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

8

स्‍वतंत्र

व्‍यक्‍ति झ

सबसे ज्‍यादा ईमानदार

दूसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

तीसरा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

चौथा सबसे ज्‍यादा ईमानदार

4.    मेरे द्वारा प्रस्‍तावित `तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ में, यदि आठ से अधिक/ज्‍यादा उम्‍मीदवार होंगे तो पूर्व-चुनाव कराया जाएगा। मुख्‍य चुनाव से 30 दिन पहले जिन 4 पार्टियों/दलों (अथवा उम्‍मीदवार, यदि वह स्‍वतंत्र उम्‍मीदवार है) जिन्‍हें इसके पूर्व के चुनाव में सबसे ज्‍यादा वोट मिले थे, उन्‍हें पूर्व-चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं होगी और केवल शेष/बाकी उम्‍मीदवार ही पूर्व-चुनाव मतदान पत्र पर होंगे। इस पूर्व-चुनाव मतदान पत्र में केवल उम्मीदवार को ही वोट दिया जा सकेगा। जिन चार उम्‍मीदवारों को पूर्व-चुनाव में सबसे ज्‍यादा वोट मिलेंगे, वे ही मुख्‍य चुनाव के लिए सफल माने जाएंगे।

5     मुख्‍य चुनाव में मतदाता 4 बार स्‍टैम्‍प/मुहर लगाएंगे। प्रत्‍येक लाइन/पंक्‍ति में एक जगह अपनी पसंद के किसी भी कॉलम/स्‍तंभ में मोहर लगाएंगे। इस प्रकार, वह 8 उम्‍मीदवारों में से 4 पसंद/प्राथमिकताएं बताएगा/देगा।

6     मतदान पेटी में चौड़ा सुराख होगा ताकि मतदान- पत्र को उपरी/उंचाई की तरफ से केवल एक बार मोड़ना पड़े।

40.12.3     क्‍या कोई देश `तुरंत निर्णायक मतदान (आई. आर. वी.)’ प्रयोग करता है?

हां, आयरलैण्‍ड पिछले 70 वर्षों से अपना राष्‍ट्रपति चुनने के लिए ‘तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ का उपयोग करता आ रहा है। मतों की संख्‍या 30 लाख है जो कि हमारे संसदीय क्षेत्र का दोगुना है यद्धपि आयरलैण्‍ड छोटा देश है लेकिन तब हमारे पास गिनती करने वाले स्‍टॉफ/कर्मचारी ज्‍यादा हैं । आयरलैण्‍ड के अलावा, ऑस्ट्रेलिया और अनेक अन्‍य देशों में दशकों से ‘तुरंत निर्णायक मतदान (आई. आर. वी.)’ का प्रयोग दशकों/सदियों से होता आ रहा है।

40.12.4       ‘तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ में मतगणना और परिणाम

उपर बताए गए ‘तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ में मतगणना के 7 दौर होते हैं –

  • पहले दौर में पहली पसंद/प्राथमिकता के आधार पर आठ ढ़ेर होंगे।

  • दूसरे दौर में, सबसे कम वोट प्राप्‍त करने वाला उम्‍मीदवार हारा हुआ माना जाएगा। और कोई भी उम्‍मीदवार, जिसे मतदान किए गए वोटों का 1 प्रतिशत से भी कम मत मिला है, उसे भी हारा हुआ माना जाएगा। इसलिए, ज्‍यादा से ज्‍यादा 7 उम्‍मीदवार होंगे और उनके मतों को उन मतपत्रों पर दिए गए द्वितीय/दूसरी पसंद/प्राथमिकता के आधार पर फिर से बांटा जाएगा।

  • तीसरे दौर में जिस उम्‍मीदवार को सबसे कम वोट मिलेंगे, वह हारा हुआ माना जाएगा। इसलिए अब ज्‍यादा से ज्‍यादा 6 उम्‍मीदवार बचेंगे। और उनके मतों को फिर से बांटा जाएगा। यह मतदान पत्र की द्वितीय/दूसरी पसंद/प्राथमिकता अथवा तीसरी पसंद/प्राथमिकता के आधार पर होगा।

  • और इस प्रकार की कार्रवाई/प्रक्रिया चलती रहेगी जब तक केवल दो ढ़ेर बचेंगे। और जिस उम्‍मीदवार को सबसे ज्‍यादा मत मिलेगा उसे विजेता घोषित कर दिया जाएगा।

  • किसी भी समय/बिन्‍दु पर यदि किसी व्‍यक्‍ति/उम्‍मीदवार को 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिल जाते हैं ,तो विजेता का निर्णय वहीं हो जाएगा। उसके बाद 7 दौर तक मतगणना चलती रहेगी लेकिन परिणाम प्रभावित नहीं होगा।

  • अंतिम दौर में, जिस व्‍यक्‍ति/उम्‍मीदवार को सर्वाधिक मत/वोट मिलेंगे उसे जीता हुआ/विजेता घोषित कर दिया जाएगा।

40.12.5          मतगणना के बारे में प्रशासनिक जानकारी

  • मान लीजिए ,औसत से (बीच का) , एक लोकसभा क्षेत्र में 15,00,000 मतदाता और 1500 मतदान केन्‍द्र हैं। इसलिए कुल 1500 मतदान पेटियां होंगी।

  • तब कलेक्‍टर के पास लगभग 7 कमरे होंगे। प्रत्‍येक कलेक्‍टर को लगभग 200-250 मतदान केन्‍द्रों की जिम्‍मेदारी मिलेगी। प्रत्‍येक कमरे में 10-15 टेबल होंगे।इस तरह कुल लगभग 75 टेबल और 1500 मतदान पेटियां हैं ,तो हर एक टेबल को 20 मतदान पेटियां मिलेंगी | इसलिए सात दौरों में से प्रत्‍येक दौर में 20 उप-दौर की मतगणना होगी।

  • प्रत्‍येक उप-दौर में प्रत्‍येक टेबल पर एक मतदान पेटी होगी। इससे 8 ढ़ेर बनेंगे । मतगणना के बाद मतपत्रों को ढ़ेर में मिला/जोड़ दिया जाएगा।

40.12.6         अधिकांश/अधिकतर मामलों में वास्‍तविक/असली गिनती

मान लीजिए, यदि मतदाताओं की संख्‍या 15,00,000 है तो औसतन अधिकांश मतदाता केवल 2-4 पसंद/प्राथमिकता देंगे, मान लीजिए औसतन 3 पसंद/प्राथमिकता होंगी। ऐसे मामले में एक मतदान में ढ़ेर ज्‍यादा से ज्‍यादा 2 बार पलटा जाएगा। इसलिए अधिकतर मामलों में वास्‍तविक मतदान की गिनती 7 गुना 15,00,000 बार नहीं होगी, लेकिन 15,00,000 से दोगुने से ज्‍यादा नहीं होगी।

40.12.7     ‘तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’/ अधिक पसंद अनुसार मतदान के लाभ

‘तुरंत निर्णायक मतदान (आई. आर. वी.)’ पर क्‍लोन प्रभाव का कोई असर/प्रभाव नहीं है और इसलिए ‘तुरंत निर्णायक मतदान (आई. आर. वी.)’ में फर्जी उम्‍मीदवार खड़े नहीं किए जा सकते हैं। इसलिए हमारे विरोधी ऐसे उम्‍मीदवार को प्रायोजित करने वाले हमारा समय बरबाद नहीं कर पाएंगे। साथ ही, ‘तुरंत निर्णायक मतदान (आई. आर. वी.)’ मतदाता को अच्छे उम्‍मीदवार को वोट देने में समर्थ/सक्षम बनाता है। इस प्रक्रिया/तरीके द्वारा चुनाव न जीतने की अधिक सम्भावना लगने वाले उम्मीदवार ,लेकिन सबसे अच्‍छे उम्‍मीदवार को पहली पसंद/प्राथमिकता दी जा सकती है। और तब जीतने की अधिक संभावना लगने वाले उम्‍मीदवार को चौथी या अन्य पसंद/प्राथमिकता/स्‍थान पर वोट दिया जा सकता है। इस प्रकार मतदाता सुरक्षित महसूस करते हैं। और चुनाव न जीतने की अधिक संभावना लगने वाले, सबसे अच्छा उम्‍मीदवार सबकी नजर में आकर महत्‍वपूर्ण हो जाता है। और` न जीतने की अधिक संभावना लगने वाले उम्‍मीदवार भी वास्‍तव में जीत सकता है !! ‘तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ का एक और महत्‍वपूर्ण, अच्छी बात यह है कि नए उम्‍मीदवार की मीडिया मालिकों पर आसरा/निर्भरता कम होती है। और चुनाव के परिणाम को असर/प्रभावित करने में मीडिया मालिकों की ताकत भी कम हो जाती है। इसलिए ‘तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ चुनाव की मीडिया मालिकों पर आसरा/निर्भरता कम कर देता है।

   

(40.13) राज्‍य सभा में चुनाव और समानुपातिक (सामान तुलना में) उम्मीदवारी / प्रतिनिधित्‍व

राज्‍य सभा के सांसदों का चुनाव भी नागरिकों द्वारा किया जाना चाहिए न कि विधायकों के द्वारा। विधायकों के द्वारा चुनाव से वास्‍तव में सीटों की बोली लगाई जाती है। यह कोई नई बात नहीं है – अमेरिका में भी जब सीनेटरों का चुनाव विधायकों द्वारा किया जाता था, तब सीटों की बिक्री आम बात थी। और यही कारण है कि नागरिकों ने सीनेटरों को एक ऐसा कानून लागू करने पर मजबूर/बाध्‍य कर दिया जिससे नागरिक को सीधे सीनेटर चुनने का अधिकार मिलता है न कि विधायक चुनने का।

और हमें राज्‍यों में समानुपातिक(समान तुलना में) मतदान का प्रयोग करके राज्‍य सभा के सांसदों का चुनाव करना चाहिए। प्रत्‍येक पार्टी /दल और स्‍वतंत्र उम्‍मीदवार समूह अपना-अपना (क्रमबद्ध) सूची दे सकता है। एक नागरिक एक वोट देगा और उम्‍मीदवारों की कोई भी 5 सूचियों पर ‘तुरंत निर्णायक मतदान(आई. आर. वी.)’ के तरीके से पसंद/प्राथमिकताएं दर्ज करेगा। और उम्मीदवारों की संख्या जो चुने जाएँगे, किसी सूची को मिलने वाले वोटों की संख्‍या पर निर्भर करेगी। जितने वोट किसी सूची को मिले होंगे, उसी तुलना/अनुपात में उस सूची में से राज्यसभा के लिए उम्मीदवार चुने जाएँगे |  इससे राज्‍य सभा में समानुपातिक प्रतिनिधित्‍व(समान तुलना में उम्मीदवारी) हो जाएगा।

   

(40.14) पार्टी में अंदरूनी चुनाव / आंतरिक लोकतंत्र

पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र के लिए मैं निम्‍नलिखित कानून का प्रस्‍ताव करता हूँ –

1.    कोई व्‍यक्‍ति, जो किसी राजनैतिक दल का सदस्‍य बनना चाहता है, उसे पटवारी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क देकर जिस पार्टी का वह सदस्‍य बनना चाहता है, उसकी क्रम संख्‍या बताने/प्रस्‍तुत करने की जरूरत पड़ेगी और वह ऐसा कर सकता है। चुनाव आयोग किसी व्‍यक्‍ति को कितनी भी पार्टियों का सदस्‍य बनने की अनुमति देगा।

2.    पटवारी/तलाटी नामों को चुनाव आयोग की वेबसाईट पर डालेगा।

3.    पार्टी अध्‍यक्ष चुनाव आयोग को एक सूची सौंपेगा जिसमें उसके द्वारा अनुमानित सदस्‍यों की सूची होगी। चुनाव आयोग इस सूची को भी चुनाव आयोग की वेबसाईट पर डालेगा।

4     पार्टी अध्‍यक्ष किसी सदस्‍यता को बिना कोई कारण बताए अगले एक माह में रद्द/समाप्‍त कर सकता है।

5.    पार्टी का संविधान सदस्‍यों को 5 या उससे कम की श्रेणियों – क ,ख, ग, घ, च – में बांट सकता है।

  1. यदि पार्टी के संविधान में यह लिखा है कि विधायक के पद के लिए उम्‍मीदवार का चुनाव किसी श्रेणी विशेष के सदस्‍य द्वारा किया जाना जरूरी है तो जिला कलेक्‍टर किसी तहसीलदार को रखेगा/नियुक्‍ति करेगा जो किसी विशिष्ट(स्पष्ट बताये गए) श्रेणी में पार्टी सदस्‍यों के बीच चुनाव आयोजित करवाएगा और चुनाव आयोग केवल उसी (जीते हुए) उम्मीदवार को टिकट देगा ।

अभी ऊपर प्रस्‍तावित कानून का ड्राफ्ट तैयार नहीं हुआ है और चुनाव आयोग कलेक्‍टर, तहसीलदार और जजों में भ्रष्‍टाचार के स्‍तर को देखते हुए कोई भी पार्टी ऐसे क्‍लॉज/खण्‍ड को स्‍वीकार नहीं करेगी और बहुत कम नागरिक इस कानून को स्‍वीकार करने के लिए राजनैतिक दलों पर दबाव डालने के लिए राजी होंगे। यदि एक बार प्रजा अधीन  राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून से चुनाव आयोग, कलेक्‍टर ,तहसीलदार और जजों में भ्रष्‍टाचार कम हो जाए तो नागरिक, राजनैतिक दलों पर पार्टी में अंदरूनी चुनाव के लिए दबाव बनाने के लिए राजी हो जाएंगे।

राईट टू-रिकाल/प्रजा अधीन राजा और राजनैतिक पार्टी का खर्चा

दोस्तों, यदि प्रजा अधीन-राजा(भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार) के प्रक्रियाएँ/तरीके लागू हैं, तो राजनैतिक पार्टियों के सभी खर्चे अस्त-व्यस्त हो जाएँगे!!
कैसे ? मान लीजिए कि एक पार्टी एक करोड़ का खर्चा करती है अपने लोकसभा क्षेत्र में और उनका उम्मीदवार जीत जाता है |

यदि उम्मीदवार भ्रष्ट और निकम्मा है और अपने चुनाव के वायदे नहीं निभाता , तो नागरिक उसे 2-3 महीनों में निकाल सकते हैं , जिससे पार्टी ने जो रिश्वतें दी हैं, उसका फायदा नहीं होगा, बल्कि नुक्सान होगा !!

इसीलिए सभी राजनैतिक पार्टियां सीट जीतने पर पैसा खर्च करना बंद कर देंगी और विकास पर ध्यान करना शुरू कर देंगी |

क्यों? क्योंकि कोई गारंटी नहीं है कि रिश्वत खिलाने और सीट जीतने पर एक करोड़ भी खर्चा करने के बाद भी , नया सदस्य अपने पद पर पूरे अवधि रह पाता है, यदि भ्रष्ट हो जाता है तो |

ये ही प्रजा अधीन-राजा या राईट टू रिकाल की प्रक्रियों की शक्ति है |

इसी कारण से भारत में सभी राजनैतिक पार्टियां प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल का विरोध करती हैं क्योंकि उनके गलत काम बंद हो जाएँगे |

   

(40.15) भारतीय अपने वोट बेचते हैं का मिथक / झूठी बात

कनिष्ट/जूनियर कार्यकर्ताओं को लोकतंत्र के खिलाफ बनाने के लिए, मीडिया मालिक और कार्यकर्त्ता-नेता जो विशिष्टवर्ग और बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ख़रीदे हुए हैं , ने झूठी बात बना दी  कि नागरिक अपने वोट बेचते हैं | ये लेख ये दर्शाता/बताता है कि कार्यकर्ता जो ये दावा करते हैं कि “भारतीय मतदाता अपने वोट वेचते हैं” या तो गलत सूचित /ग़लतफ़हमी के शिकार हैं या तो सरासर  झूठे हैं |

साथ ही , जो प्रजा अधीन राजा /भ्रष्ट को बदलने की प्रक्रिया हमने ने प्रस्ताव की है, वो वैसे भी “भारतीय अपने वोट बेचते हैं” तर्क से प्रभावशून्य(प्रभावित नहीं) है |क्यों? क्योंकि `प्रजा अधीन राजा भ्रष्ट को बदलने` की प्रक्रियाओं में (जैसे प्रजा अधीन-प्रजान मंत्री, प्रजा अधीन-जिला शिक्षा अधिकारी,प्रजा अधीन-मुख्यमंत्री आदि)जो हमने प्रस्तावित की हैं, नागरिक अपने अनुमोदन/मत किसी भी दिन बदला सकता है|

तो यदि प्रत्याशी रु.100 देता है हर नागरिक को , तो नागरिक अगले सप्ताह/हफ्ते फिर से रु.100 मांग सकते हैं या फिर अपना अनुमोदन रद्द करने की धमकी दे सकते हैं | तो प्रत्याशी को  रु.100 देना होगा  हर मतदाता को हर हफ्ते/सप्ताह , जो व्यावहारिक और लाभकारी नहीं है| इसीलिए प्रस्तावित प्रजा अधीन राजा भ्रष्ट को बदलने की प्रक्रियाएँ “`प्रजा अधीन राजा भ्रष्ट को बदलने की प्रक्रिया` बुरी है क्योंकि भारतीय अपने वोट बेचते हैं “ तर्क से प्रभावशून्य(प्रभावित नहीं) है| फिर भी, मैं इस झूठी बात का खंडन करूँगा साथी भारतीय नागरिकों का सम्मान बचाने के लिए |

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शुरुवात के लिए ,यहाँ 4 बुनयादी जवाबी-तर्क प्रस्तुत हैं-

1.) पहला, मीडिया मालिकों ,कार्यकर्त्ता-नेताओं से पूछें “ लगबग कितने प्रतिशत नागरिक अपने वोट बेचते हैं “ और वो उसका सही उत्तर नहीं दे पाएंगे| एक बयान जैसे “भारतीय अपने वोट बेचते हैं “ यदि सही है, नापा जाने योग्य होना चाहिए | क्या वो 90% है या केवल 5% है?

2.) दूसरा, ये सत्य है कि प्रत्याशी पैसा और उपहार देते हैं और मतदाता उन्हें स्वीकार करते/लेते हैं |लेकिन हर मतदाता ये जानता है कि मतदान गोपनीय है | इसिलिय कुछ भी उसे नहीं रोकेगा अपना वोट देने से उस व्यक्ति को जिसे वो अपना वोट देना चाहे |

3.) और तीसरा, जो ये दावा करते हैं “ भारतीय अपने वोट बेचते हैं ”, अक्सर ऐसा भी दावा करते हैं कि “ भारतीयों के कमजोर नैतिक मूल्य हैं “. यदि मतदाता के कमजोर नैतिक मूल्य हैं, तो कुछ भी उसको रोक नहीं सकता पैसे लेने से `क` से और `ख` को वोट देने के लिए | लेकिन तब एक बयान आता है “ मतदाता अपना वचन/वादा रखते हैं ”| अभी दोनों बयान सही नहीं हो सकते |

4.) और अंत में, मैं विनती करता हूँ सभी से एक प्रश्न पूछने के लिए जो ये दावा करते हैं “ `य` प्रतिशत भारतीय मतदाता अपने वोट बेचते हैं “| उनसे पूछें,”कितने प्रतिशत आपके अनुसार फैसले बेचते हैं”, “कितने प्रतिशत मीडिया मालिक समाचार बेचते हैं” और “कितने प्रतिशत बुद्धिजीवी महत्वपूर्ण सत्य को छिपाते हैं ?” क्या ये `य` से अधिक है या `य` से कम है? आप देखेंगे कि जो हम आमजन पर दोष लगाते हैं वोट बेचने के लिए , मना कर देते हैं आमजन और विशिष्ट वर्ग के इमानदारी के स्तर के बीच तुलना करने के लिए |

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अब मैं इस झूठी बात कि “ नागरिक वोट बेचते हैं” का खंडन कुछ उदहारण से करूँगा –

A. गुजरात विधानसभा चुनाव-2007 में , एक धनिक ,जिसका नाम `भुवन भरवाड` एक कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नादियाड से लड़ रहा था | वो हार गया | साथ ही , कांग्रेस प्रत्याशी, नरहरी अमीन मटर चुनाव-क्षेत्र से लड़ रहा था| अमीन पूर्व मंत्री था और धर्मार्थ न्यासों के माध्यम से विशाल भूखंडों का मालिक है  और उसने भारी मात्र में धन खर्च किया था , फिर भी चुनाव हार गया |

B. 1977 में कांग्रेस के पास जनता पार्टी से 10 गुना अधिक पैसे था ,फिर भी जनता पार्टी जीत गयी और कांग्रेस हार गयी| 1988 में कांग्रेस के पास भाजपा से 10 गुना अधिक पैसा था, फिर भी कांग्रेस हार गयी और भाजपा/एन.डी.ऐ जीत गयी|

C.  बहुत मामलों में, सभी प्रमुख प्रत्याशी पैसे देते हैं| क्या मतदाता हमेशा उसी व्यक्ति के लिए वोट करती है जो सबसे अधिक पैसा का भुगतान करता है? मुझे शक है | और अक्सर मामले होते हैं जहाँ मतदाता उस प्रत्याशी के लिए वोट करते हैं जिसने कुछ नहीं भुगतान किया |

अनगिनित अन्य उधाहरण हैं |

ये सही है की बहुत प्रत्याशी पैसे और उपहार देते हैं | और ये भी सही है कि मतदाता उसे लेते हैं |  बहुत कम गरीब व्यक्ति रु.100 को मना करेंगे और कोई ही अमीर आदमी एक लाख रुपये मना करेगा | एक संपन्न व्यक्ति की ऊँची कीमत होगी —- बहुत कम मुफ्त के पैसे को ना कहेंगे | लेकिन प्रश्न ये है — क्या मतदाता ने `क` के लिए वोट किया क्योंकि `क` ने पैसे दिए या क्योंकि उसे `ख` से घृणा/नफरत थी और कि उसे `क` पसंद था ? उत्तर है — 90% से अधिक ने `क` के लिए वोट किया क्योंकि वे `क` को पसंद करते थे या `ख` से नफरत करते थे , ना कि क्योंकि `क` ने उसे पैसे दिए |

जो व्यक्ति ये कहता है “ भारतीय वोट बेचते हैं”, उसको मैं ये दो प्रश्न पूछूँगा-

1.) मानो आप एक प्रत्याशी को नापसंद करते हो और वो आप को रु.100 देता है| क्या आप उसको मना करोगे? यदि वो आपको एक लाख रुपये दे , तो क्या आप फिर भी उसको मना करोगे? यदि कोई व्यक्ति कहता है कि वो एक लाख रुपये लेने से मना करेगा तो मैं उसे या तो अत्यधिक नैतिक या अत्यधिक पाखंडी का पद दूँगा |

2.) यदि व्यक्ति सहमत हो जाता /मान लेता है कि वो पैसे स्वीकार कर लेगा , तब अगला प्रश्न ये है : क्या फिर भी वो प्रत्याशी के लिए वोट करोगे जिसको तुम नापसंद करते हो ?

दूसरे शब्दों में, ये देखते हुए कि मतदान गोपनीय है,मतदाता को  कोई अनदेखे परिणाम का कोई खतरा नहीं है | क्योंकि मतदान गोपनीय है, ये आरोप लगाना कि उस व्यक्ति ने किसे वोट दिया , पता लगाना संभव नहीं और ये आरोप लगाना कि आम जन वोट के लिए विक गए सही नहीं है | और इस प्रकार के धंधों में कोई बाध्यता नहीं है | ये ही कारण है कि इतने सारे धनिक/अमीर प्रत्याशी  लोकप्रिय, कम धनी प्रत्याशियों के विरुद्ध/खिलाफ हार जाते हैं |

तो फिर यदि पैसे मायने नहीं रखते तो फिर प्रत्याशी भुगतान क्यों करते हैं /पैसे क्यों देते हैं ? क्योंकि यदि प्रत्याशी अमीर है और बेईमान भी और फिर भी वो कुछ भी नहीं देता , तो मतदाताओं के मुंह का स्वाद/जायका जरुर बिगड जायेगा | लेकिन यदि प्रत्याशी/पार्टी ईमानदार और नेक है , तो मतदाता कभी भी पैसे की आशा नहीं करेगा| यदि प्रत्याशी/पार्टी भ्रष्ट है , उनके लिए बेहतर है कुछ पैसे दें मतदाताओं को | लेकिन ये उन प्रत्याशियों पर लागू नहीं होता जो भ्रष्टाचार कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं|

अंत में , नए प्रत्याशी और नयी पार्टियां क्यों नहीं जीतते ? क्योंकि मतदाताओं ने दल और प्रत्याशी पिछले 60 सालों में पांच बार तक बदले हैं | राष्ट्रिय स्तर पर, ये दो बार हुआ 1977 और 1988 में | उत्तर प्रदेश में नागरिकों ने 3 नयी दल-भाजपा, सपा, बसपा को आजमाया है | गुजरात में , पहले  मतदाताओं ने जनता दल और फिर भाजपा को आजमाया है | हर बार , भ्रष्टाचार 1% भी कम नहीं हुआ | कारण है —- नागरिक के पास भ्रष्ट को बदलने/निकालने/अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है(प्रजा अधीन राजा) और इसीलिए नए प्रत्याशी छे महीनों में बिक जाते हैं | अब तो अतीत के तथ्य के आधार पर एक धारणा बन गयी है — नए प्रत्याशी बिक जाएँगे , इसीलिए समय,प्रयास क्यों व्यर्थ करें नए प्रत्याशी के पर्चे और उसका जीवनी विवरण/बायोडाटा पढने  में ? तो नए उम्मीदवारों और नई पार्टियों को  पिछले बुरे अनुभवों की वजह से अविश्वास का सामना करना पड़ता है , किसी भी अन्य कारण की वजह से नहीं|

यदि वोट इतनी आसानी से बिकते , तो मुकेश अम्बानी अपनी पार्टी बना लेते और अपने 500  कटपुतली  को जितवा देते और प्रधान मंत्री बन जाता बजाय कि सांसदों को खरीदने के | परन्तु ये तथ्य कि मुकेशभाई को सांसद खरीदने पड़ते हैं , ये दिखाता है कि वो वोटरों को खरीद नहीं सकता |

   

(40.16) भारत में लोग अपनी जाती के लिए वोट करते हैं का झूठ

हम आम नागरिक , जाती के आधार पर वोट नहीं करते, और ना ही हमने कभी किया है | ये एक झूठ/मिथ्या है | क्यों 90% निचले-वर्ग और बीच के वर्ग के पटेल अहमदाबाद में मोदी-समर्थक हैं ?

मोदी एक घांची (अन्य पिछड़ी जाती) का है और हर पटेल को पता है कि वो एक घांची है | ये ही नहीं , हर पटेल को ये भी पता है कि मोदी उच्च वर्गीय पटेलों का विरोधी है जैसे पटेलों के विधायक, तोगड़िया, केशुभाई पटेल आदि | पटेल नेताओं के लगातार कोसने के बावजूद , सभी निचले/बीच के वर्ग के पटेल मोदी के प्रेमी हैं ( कुछ पटेल हैं , जो हमेशा से भा.ज.पा से नफरत करते आये हैं और हमेशा कांग्रेस प्रेमी रहे हैं | इसीलिए उनके मोदी-विरोधी होना नहीं गिना जायेगा |)

इसके बावजूद , हम आम नागरिकों को कोसा जाता है उस अपराध के लिए जो हमने कभी नहीं किया (जाती के अनुसार वोट करना) जाता है और ये एक पसंदीदा मनोरंजन है | लेकिन उन जजों को क्यों नहीं कोसा जाता जो भाई-भातिजेवाद (एक प्रकार का जातिवाद) करते हैं और जो ये अपराध खुले आम और आराम से करते हैं ? क्योंकि बुद्धिजीवी जज से दुश्मनी तो लेंगे नहीं | तो आम नागरिकों को कोसो, वे निर्दोष हैं तो भी और जजों की तारीफ़ करो , उनहोंने समाज को बर्बाद किया इसके बावजूद | ये ही बहुत से बुद्धिजीवियों का आदर्श है |

   

(40.17) राजनीति क्यों भ्रष्ट हो गयी है और सड़ गयी है और अच्छे लोग राजनीति में क्यों नहीं आते

राजनीती इसीलिए भ्रष्ट और सड़ गयी है क्योंकि भ्रष्ट जज अपराधी/मुजरिमों को बढ़ावा देते हैं और मुजरिम ये पक्का करते हैं कि अच्छे लोग चुनाव में खड़े नहीं हो सकें | इसीलिए मतदाताओं को  मुजरिमों में से चुनना पड़ता है | और ये समस्या भ्रष्ट को बदलने के तरीके/प्रक्रियाएँ के ना होने से बढ़ जाती है | इसीलिए , मैं इस पर जोर देता हूँ कि जजों के चुनाव के साथ उनके बदलने की प्रक्रियाएँ/तरीके हों |

मतदाता मूर्ख नहीं हैं |

केवल इसीलिए कि वे उस तरह से वोट नहीं करते जैसे आप चाहते हैं, इससे वे मूर्ख नहीं बन जाते |

क्योंकि जजों में भ्रष्टाचार और भाई-भातिजेवादे है , हिंसा करने वाले और हफ्ता लेने वाले गुंडे शाशन करते हैं | और इसीलिए इन हिंसा कने वाले और हफता लेने वाले गुंडों ने ये पक्का कर दिया है कि `अच्छे लोग` विधायक, सांसद बाने के लिए इतने ताकतवर ना बनें और अच्छी तरह से ना जाने जायें | इसीलिए केवल मुजरिम ,गुंडे या इन गुंडों के समर्थक ही अच्छी तरह से नाम हो पाता है | कुछ नेता हिंसा करने वाले गुंडों का समर्थन करते है और कुछ जैसे प्रमोद ,मनमोहन सिंह आदि हफता लेने वाले गुंडों का समर्थन करते हैं |

यदि हमें अच्छे लोगों को जिताना है , तो हमें ये पक्का करना चाहिए कि अच्छे लोग जियें और सांस लें | और उसके लिए हमें हिंसा करने वाले और हफता लेने वाले गुंडों को कैद करने की जरूरत है, हमें भ्रष्ट पोलिस, जज,मंत्री आदि को कैद करने की जरूरत है | केवल उसी के बाद, अच्छे लोग चुनाव में जीत पाएंगे |

   

(40.18) पढ़े लिखे और चिंतित नागरिक अच्छे लोगों को क्यों नहीं बड़े , सरकारी पदों पर नहीं ला पाते ?

क्यों हम अटल बिहारी वाजपेयी, प्रमोद,येचुरी, अरुण, नरेन्द्रभाई, करात, मनमोहन सिंह ,सोनिया, चिदंबरम आदि के साथ क्यों अटके हुए हैं ?

शिक्षित/पढ़े लिखे लोग इनसे अच्छे विकल्प/लोग पदों पर लाने के लिए केरल ,उत्तर प्रदेश और बाकी भारत में भी असफल/फेल हो गए हैं क्योंकि –

(1) बहुत से चिंतित नागरिक नैतिकता(अच्छा बर्ताव) और राष्ट्रिय चरित्र/चाल-चलन के बकवास में विश्वास करते हैं | वो ये बकवास में विश्वास करते हैं “ कि बर्ताव/व्यवहार को सुधारों और देश सुधर जायेगा”| इसीलिए वे बर्ताव/व्यवहार और चरित्र-निर्माण (अच्छा चाल-चलन बनाना) की बेकार पढ़ाई पर ध्यान देते हैं | इसीलिए वे प्रशासन, कोर्ट आदि में कोई रूचि नहीं लेते जहाँ समस्या है | और उनकी राजनीती में कोई भागीदारी / हिस्सेदारी नहीं है या केवल एक नेता को दूसरे से बदलने तक सीमित है | वे व्यक्ति पूजन से आगे नहीं सोच सकते , चाहे वो मोदी हो, बसु हो , अटल बिहारी हो, या लाल कृष्ण अडवानी हो आदि | इसीलिए वे ये नहीं सोचते कि उनको कोर्ट, प्रशाशन के कानूनों में बदलाव लाने के लिए क्या करना चाहिए | तो नेता बदलते हैं, कोर्ट और प्रशासन की व्यवस्था नहीं बदलती है और गड़बड़ चलती रहती है |

(2) हमारे पाठ्य-पुस्तक लिखने वाले कालेज के प्रोफेस्सर (बढ़ा मास्टर) , उनके प्रायोजक- विशिष्ट वर्ग/ऊंचे लोग को खुश करने के लिए , पाठ्य-पुस्तकों में आम नागरिक-विरोधी कचरा भर दिया है | केवल यही पढ़ने के लिय मिलता हिया “ आम भारतीय जातिवाद है, भावुक हैं ,सांप्रदायिक है ,बदमाश हैं आदि, आदि |” और वे ये छुपाते हैं कि ये बुराईयां भारतीय नेता-बाबु-जज-पोलिस-प्रभंधक-बुद्धिजीवी-ऊंचे/विशिष्ट लोग में भी है और भारतीय भ्रष्ट गठबंधन (नेता-बाबु-जज-पोलिस-प्रभंधक-बुद्धिजीवी-ऊंचे/विशिष्ट लोग ) में दो और बुराइयां हैं जो आम नागरिकों में नहीं है – भाई-भतिजेवाद और गुंडों और दूसरे भ्रष्ट गठबंधन से मिली-भगत |
इसीलिए भारत में छात्र/विद्यार्थी , चिंतित नागरिकों समेत, लोकतंत्र (सारे देश के लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) के विरोधी हो गए हैं | इसीलिए वे अल्प लोक-तंत्र (कुछ ही लोगों द्वारा देश के मामलों का फैसला ) समाधानों के समर्थक हो गए हैं और लोकतान्त्रिक समाधानों जैसे `भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने/सज़ा देने`, पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम),`एक से अधिक लोगों को वोट पसंद अनुसार`,  चुनाव फॉर्म को सरल बनाना, चुनाव जमा राशि बढ़ाना ,आदि का विरोध करते हैं , जो अधिक अच्छे उम्मीदवारों को बढ़ावा देंगे |

नेता(उम्मीदवार) वायदा करता है व्यापारियों आदि को कि यदि वो चुनाव जीतता है और सांसद/मंत्री आदि बनता है , तो वो भारत सरकार के तोहफे/उपहारों की बौछार कर देगा , यदि ये आम नागरिकों का जीवन बरबाद कर देता हो तो भी | यहाँ शून्य विचारधारा या व्यक्तिवाद है – ये 100 % सौदेबाजी है या रिश्वतखोरी |

सभी विचार-धाराएं जैसे हिंदुत्व, धर्म-निरपेक्षता (सभी धर्म सामान हैं) ,और सबसे नए- शिक्षा- वाद, 85% बढौतरी-दर का वाद , कुछ नहीं ,केवल इस सौदेबाजी को छुपाने के लिए मुखौटे हैं | और ज्यादातर नेता आजकल केवल दलाल हैं , पूरे दलाल ,लेकिन दलाल भी ज्यादातर ईमानदार होते हैं |

सभी नेता, भारत में या पश्चिम में , का झुकाव रहता है कि उन लोगों को बढ़ावा देने के लिए, जो उसके लिए खतरा नहीं है | इसीलिए, सभी नेता का झुकाव दूसरे नेताओं को काटने का रहता है ताकि दूसरे नेताओं का नाम न हो जाये और उनके लिए खतरा ना बनें | और ये पक्का करते हैं कि केवल उनका “कमजोर” जूनियर/निचला व्यक्ति को ही बढ़ावा मिले | पश्चिम देशों ने ये समस्या को कम कर दिया है एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था बनाई है , जहाँ पहले तो , नेता इतना शक्तिशाली ही नहीं होता | उदाहरण- अमेरिका का राष्ट्रपति भारतीय प्रधानमंत्री जितना देश के आंतरिक/भीतर के मामलों में 5% भी शक्ति-शाली नहीं है | और एक अमेरिका का गवर्नर के पास 1% भी  भारतीय मुख्यमंत्री जितने अधिकार नहीं हैं | उदाहरण एक अमेरिका का गवर्नर जिला पोलिस मुखिया का तबादला नहीं कर सकता , जबकि भारतीय मुख्यमंत्री पलक जपकते ये काम कर सकता है | इसीलिए अमेरिका के नेता इस स्थिति में नहीं है कि गुणवान/कुशल जूनियर/निचले लोगों को ऊपर बढ़ने से रोक सकें | लेकिन भारत में , प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के पास प्रशासन में इतने अधिकार है, कि वे पार्टियों में अपने विरोधियों को कुचल सकते हैं और ये पक्का कर सकते है कि केवल कमजोर निचले लोग ही ऊपर आयें और ताकतवर निचले लोगों को कोई ध्यान न मिले |

ऊंचे/विशिष्ट लोगों के आई.ऐ.एस.(बाबू) , पोलिस , कोर्ट और पार्टियों में दखल-अंदाज और पहुँच के कारण , एक अच्छे व्यवहार/बर्ताव वाला व्यक्ति कभी भी आई.ऐ.एस(बाबू), पोलिस, कोर्ट, राजनीति में ऊपर नहीं उठ सकता | `स्वतंत्र-सेनानियों` को छोड़ कर जो 1951 तक पहले ही ऊपर ऊठ चुके थे , कोई भी अच्छे व्यवहार/बर्ताव वाले लोगों को ऊंचे लोगों/विशिष्ट वर्ग से प्रयोजन नहीं मिला 1951 के बाद | और विदेशी कंपनियों/ ईसाई धर्म के कट्टरपंथी लोगों की पहुँच और दखल-अंदाज़ कांग्रेस, भा.जा.पा और दूसरी पार्टियों में, ने इस समस्या को और ज्यादा खराब कर दिया | अभी ,एक सच्चा राष्ट्रवादी/देशभक्त गुणवान व्यक्ति की कोई सम्भावना नहीं है कि वो आई.ऐ.एस (बाबू), पोलिस,कोर्ट और राजनैतिक पार्टियों में तरक्की कर सके |
केवल वे ही राष्ट्रवादी को विदेशी कम्पनियाँ/ईसाई धर्म के कट्टरवादी/रूढ़िवादी बढ़ावा देंगे ,जो बजरंगी किस्म के लोग है, जो गरम मिसाजी हैं ,जिससे देश को नुकसान पहुंचे | यदि कोई राष्ट्रवादी/देशभक्त किसी पार्टी ,आई.ऐ.एस(बाबू) , पोलिस में ठन्डे दिमाग का, दूर की सोच वाला, चुस्त/चतुर है , तो विदेशी कम्पनियाँ/ईसाई धर्म के कट्टरपंथी , ये सुनिश्चित करेंगे कि वो कभी भी ऊपर ना उठे , यानी तरक्की ना करे | तो उसका रास्ता रोक दिया जायेगा | इसीलिए वो पसंद करेगा कि वो इस सरकारी सिस्टम के बाहर काम करे , यानी प्राइवेट में काम करे |

श्रेणी: प्रजा अधीन