एक और तरीका है ,बेईमान डिस्प्ले/प्रदर्शन , जो ब्लू-टूथ द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है,जिसमें फैक्ट्री में 100 लोग चाहिए (बूथों पर रेडियो सिग्नल/इशारा देने के लिए ) और उनके उपयोग से औसत 10% चुनाव-क्षेत्रों का, तक चुराया जा सकता है | (अधिक जानकारी के लिए ये विडियो देखें-http://www.youtube.com/watch?v=AuJHih4fxYQ )
यही वह मुख्य कारण है कि क्यों जर्मनी ने इवीएम मशीनों पर प्रतिबंध/रोक लगा दी और जापान तथा आयरलैण्ड ने इवीएम योजनाओं को रद्द/समाप्त कर दिया। और अमेरिका के कई राज्यों ने भी इवीएम पर रोक/प्रतिबंध लगा दिया।
कागज/पेपर के मतदान-पत्रों के मामले में लोग मतदान-केन्दों पर तथाकथित कब्जा कर लेने की शिकायत करते हैं। देखिए, इ.वी.एम से भी मतदान-केन्द्र पर कब्जा नहीं रूकता। यह निश्चित रूप से पुलिस(कानून-व्यवस्था) का मामला है। इ.वी.एम मशीन से दो लगातार बार वोट देने के बीच में केवल 20 सेकेन्ड की देरी लगती है ,और कोई देरी नहीं होती। इस 20 सेकेन्ड की देरी को कागज के मतदान पत्रों में भी प्राप्त किया जा सकता है जिसके लिए एक मशीन का उपयोग किया जा सकता है जो मतदान पत्रों के पीछे की तरफ 15 अंकों की एक क्रमसंख्या डाल देगी और यह मशीन प्रत्येक 20 सेकेंड में केवल एक मोहर/स्टैंप लगाएगी। इससे दो लगातार मतदानों के बीच 20 सेकेन्ड की देरी सुनिश्चित/पक्का की जा सकती है। इससे मतदान पत्र इवीएम मशीन से ज्यादा सुरक्षित हो जाएगा जितना है और इसमें फैक्ट्री/औद्योगिक स्तर के गड़बड़ी की समस्या बिलकुल भी नहीं आएगी। इसके अलावा सभी संवेदनशील मतदान केन्दों पर चुनाव आयुक्त 1000 से 2000 रूपए तक के कैमरे लगवा सकते हैं जो प्रत्येक 30 सेकेन्ड में चित्र/तस्वीर लेंगे और इन तस्वीरों को मोबाइल फोन लिंक/सम्पर्क के जरिए नियंत्रण कक्ष में भेज सकते हैं। कुल मिलाकर मतदान केन्द्रों पर कब्जा की घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि जज/पुलिसवाले अपराधियों को बढ़ावा दे रहे होते हैं जो इतने ताकतवर और निडर हो जाते हैं कि वे मतदान केन्द्रों पर कब्जा कर लेते हैं। इसका समाधान है – ऐसी प्रक्रिया लागू करना जिसके द्वारा नागरिक जिला पुलिस प्रमुख और जजों को बदल/बर्खास्त कर सकें ताकि अपराधी इतने ताकतवर ना बन सकें। एक बार यदि अपराधी कमजोर हो जाए तो मतदान केन्द्र पर कब्जे की समस्या कम/समाप्त हो जाएगी।
साथ ही, यदि चुनाव की जमानत राशि बढ़ा दी जाए (देखिए, अगले भागों/शीर्षकों में से एक) तो नकली उम्मीदवारों की संख्या कम हो जाएगी। इसलिए उम्मीदवारों की संख्या 5-10 हो जाएगी और तब (मतदानपत्र) दो पोस्टकार्ड से ज्यादा बड़े आकार का नहीं रह जाएगा। तब ऐसे मामले में मतगणना का काम एक ही दिन में समाप्त हो जाएगा।
एक बार यदि नागरिकों द्वारा बदले/हटाए जा सकने वाले जिला पुलिस प्रमुखों और नागरिकों द्वारा बदले/हटाए जा सकने वाले जजों को नौकरी पर रख सकें, तो अपराधियों की समस्या कम हो जाएगी और तब प्रति मतदान केन्द्र पर कैमरे के साथ एक पुलिसवाले और 10 मतदान केन्द्रों के क्षेत्र में 10 पुलिसवालों की एक घूमती हुई(गतिशील) ,गश्त लगाने वाली/निगरानी (वाहन) की तैनाती करके ही चुनाव आयोजित करना संभव हो जाएगा। इसलिए 800000 मतदान केन्द्रों में मतदान आयोजित करने के लिए लगभग 16,00,000 पुलिसवाले पर्याप्त होंगे। भारत में 25,00,000 पुलिसकर्मी हैं। (केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल और अन्य पुलिस वालों को शामिल करके, सेना के जवानों और सीमासुरक्षा बल को छोड़कर)। और चाहे चुनाव के लिए जरूरत हो या न हो ,हमें भारत में 5000000 और पुलिसकर्मियों की जरूरत है। इसलिए पूरे देश में एक ही दिन में मतदान कराया जाना संभव है। और चुनाव होने के 3 दिनों के बाद मतगणना की जा सकती है।
इसलिए कुल मिलाकर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के सदस्य के रूप में इ.वी.एम और मतदान कराने के मामले पर मेरे प्रस्ताव ये हैं –
1 ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके इ.वी.एम मशीन पर प्रतिबंध/रोक लगा दी जाए, केवल कागजी मतदान पत्रों के उपयोग को कानूनी मान्यता दी जाए।
2. ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके पुलिस प्रमुख, जजों के ऊपर प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू किया जाए।
3. भारत भर में 30,00,000 और पुलिसकर्मियों की भर्ती की जाए।
4. सभी पुलिसकर्मियों को कैमरा दिया जाए।(कैमरे उनके घुमती हुई गाड़ियों में लगे होंगे)
5. सभी संवेदनशील मतदान केन्द्रों में कैमरा लगाया जाए।
6 ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके चुनाव जमानत की राशि बढ़ाई जाए।
7. ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके उन नागरिकों की संख्या बढ़ाई जाए जिन्हें किसी उम्मीदवार को स्वीकृति देने की जरूरत है ताकि उम्मीदवार को मान्यता मिल जाये और चुनाव लड़ने की इजाजत मिल सके।
(40.5) चुनाव मशीन की लागत लगबग तीन गुना है प्रति चुनाव कागज-मतपत्र की तुलना में | |
भारतीय चुनाव यंत्र (ई.वी.एम) की कुल लागत प्रति लोकसभा चुनाव-क्षेत्र
औसतन लोक सभा चुनाव-क्षेत्र में 1.5 लाख मतदाता होते हैं | और हर बूथ के औसतन 1000 मतदाता होते हैं | और मान लें कि औसतन हर लोक सभा चुनाव-क्षेत्र में औसतन 12 प्रत्याशी हैं और औसतन 60% मतदान है |
A- गणना- एक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र में सात गणना कमरे ,हरेक कमरे में 15 गणना के लिए मेज =105 गणना मेज प्रत्येक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र में | दो द्वितीय श्रेणिय के व्यक्ति (आमदनी =रु.1200 प्रति 8 घाटे प्रति दिन) हरिक मेज पर 6 घंटों में गिनती कर लेंगे. लागत=1200x2x105x6/8= रु.1.89 लाख |
B-प्रशिक्षण – दो द्वितीय श्रेणी के व्यक्ति प्रशिक्षित होंगे प्रति बूथ दो दिन के लिए | औसतन 1500 बूथ हैं हरेक लोकसभा चुनाव-क्षेत्र | लागत =1200x2x1500= रु 7.2 लाख
C- मतदान लागत = चुनाव मशीन की लागत + मतदान से पहले मशीन की जांच की लागत
रियायती मूल्य चुनाव मशीन का रु 10,000 है जो अधिकतर 6 चुनावों के लिए काम में आती है | इसीलिए एक इलेक्ट्रोनिक चुनाव मशीन की लगत, एक बूथ के लिए रु.2000 है ब्याज को छोडकर , चुनाव के पहले जांच करने की लागत के सहित | और यदि रख-रखाव का खर्चा जोड़ा जाए तो कीमत रु. 2500 होगी |
लागत =1500×2500= रु.37.5 लाख
कुल लागत इलेक्ट्रोनिक चुनाव मचीन की प्रति लोकसभा चुनाव-क्षेत्र =A+B+C=रु.46.5 लाख