सूची
- (40.1) वे चुनाव सुधार, जिनके प्रस्ताव मैंने किए हैं
- (40.2) प्रजा अधीन राजा / राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार)
- (40.3) प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मेयर, सरपंच का सीधा चुनाव
- (40.4) इलेक्ट्रानिक चुनाव मशीन (वोटिंग मशीन) (इ.वी.एम) पर रोक / प्रतिबंध लगाना और कागजी मतदान-पत्रों में कुछ परिवर्तन / बदलाव लाकर उनका प्रयोग करना
चुनाव / निर्वाचन सुधारों पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह’ के प्रस्ताव |
(40.1) वे चुनाव सुधार, जिनके प्रस्ताव मैंने किए हैं |
1. प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को नागरिकों द्वारा बदलने का अधिकार)
2. प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, सरपंच, मेयर का सीधा चुनाव
3. इलेक्ट्रानिक चुनाव मशीन/यंत्र(वोटिंग मशीन) (इ.वी.एम) पर रोक/प्रतिबंध लगाना और पेपर/कागजी मतदान-पत्रों का फिर से प्रयोग शुरू करना
4. एक ही दिन चुनाव आयोजित करना
5. चुनाव फार्म/प्रपत्र भरने (की प्रक्रिया) आसान बनाना
6. चुनाव की जमानत राशि बढ़ाना
7. उन नागरिक-मतदाताओं की संख्या बढ़ाना जो किसी उम्मीदवार को स्वीकृति देने के लिए जरूरी है ताकि उम्मीदवार को मान्यता मिल सके और चुनाव लड़ने की इजाजत मिल सके |
8. उम्मीदवारों की संख्या सीमित/नियंत्रित करना
9. तुरंत/तत्काल निर्णायक मतदान (इंसटैन्ट रन-ऑफ वोटिंग) (आई. आर. वी.’) यानि
अधिकपसंद/प्राथमिकता अनुसार मतदान
10. राज्य सभा में चुनाव और समानुपाति(समान तुलना वाली) उम्मीदवारी/प्रतिनिधित्व
11. पार्टी का अंदरूनी चुनाव/आंतरिक लोकतंत्र
(40.2) प्रजा अधीन राजा / राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) |
हम चुनाव सुधारों की बात इसलिए करते हैं ताकि गलत/बुरे व्यक्ति के चुने जाने की ‘संभावनाएं’ कम हों और अच्छे/सही व्यक्ति के चुने जाने की संभावनाएं बढ़ें। लेकिन जब तक प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू नहीं होता तब तक चुने गए व्यक्ति के भ्रष्ट हो जाने की संभावनाएं बहुत ही ज्यादा होंगी। इसलिए सबसे जरूरी और महत्वपूर्ण कार्य प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (नागरिकों द्वारा भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू कराना है। लेकिन प्रश्न है कि : वर्तमान सांसद प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून कभी लागू नहीं करेंगे क्योंकि यह उनके आर्थिक/वित्तीय हितों के खिलाफ जाती है। तब क्या हम सांसदों को बदलेंगे?
देखिए, इसमें हमें अगले पांच साल तक नुकसान होता रहेगा और इससे केवल सांसदों को ही फायदा/लाभ होगा। वे अगले पांच वर्षों तक बिना कोई चिन्ता किए घूस लेते रहेंगे। और आगे चुनकर आने वाले सांसदों के भी बिक जाने की संभावना अधिक रहेगी। इसलिए, इसका समाधान एक व्यापक आन्दोलन खड़ा करना है जिसमें नागरिकों से यह कहा जाए कि वे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों पर ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’पर हस्ताक्षर करने का दबाव डालें। एक बार यदि प्रधानमंत्री और सभी मुख्यमंत्रियों को ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य/मजबूर/लाचार कर दिया गया तो नागरिकगण कुछेक महीनों में ही प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्यमंत्री, प्रजा अधीन – उच्चतम न्यायालय के जज आदि कानून लागू कर/करवा सकते हैं। इन मुद्दों/बिन्दुओं की जानकारी पूर्व के पाठों में बताई जा चुकी है।
(40.3) प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मेयर, सरपंच का सीधा चुनाव |
भारत में एक आम समस्या जो आप देखते/पाते हैं, वह है कि कोई मतदाता यह कहेगा “स्वतंत्र उम्मीदवार श्रीमान `क` अच्छे उम्मीदवार हैं लेकिन मैं श्री `ख` को मुख्यमंत्री बनवाना चाहता हूँ, इसलिए मैं श्री `ख` के पार्टी को के पक्ष में मतदान करूंगा।” उदाहरण – गुजरात में कई लोग स्थानीय बीजेपी विधायक से घृणा करते थे लेकिन उन्होंने बीजेपी को ही वोट दिया, क्योंकि वे मोदी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। और मध्यप्रदेश में कई मतदाता स्थानीय बीजेपी विधायक उम्मीदवार को नहीं चाहते थे। फिर भी उन्होंने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया क्योंकि वे चाहते थे कि शिवराज चौहान मुख्यमंत्री बनें। यह विधायक के लिए होनेवाले चुनाव में बेहतर/अच्छे उम्मीदवार को आगे लाने के कार्य में नागरिकों के सामने एक बाधा बन जाती है। क्योंकि वे इस बात से बंधे रहते हैं कि “मुख्यमंत्री किसे होना चाहिए?” इसलिए यदि मुख्यमंत्री और विधायक के चुनाव अलग-अलग कर दिए जांए अर्थात अलग चुनावों में यह तय हो कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा और विधायक कौन बनेगा, तब मतदाताओं के पास ज्यादा विकल्प होगा और वे एक ऐसे उम्मीदवार को वोट दे पाएंगे जिसे वे विधायक के पद के लिए चाहते हैं, और वह भी इस बात से डरे बिना कि इससे मुख्यमंत्री के चुनाव पर गलत प्रभाव पड़ सकता है।
इसलिए मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का चुनाव नागरिकों को सीधे ही करना चाहिए। क्या इससे मुख्यमंत्री या विधायक निरंकुश हो जाएंगे? नहीं ,प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री और प्रजा अधीन – मुख्यमंत्री का प्रयोग करके, हम नागरिक यह पक्का/सुनिश्चित कर सकते हैं कि वह उचित व्यवहार करेंगे। आज की स्थिति में, केवल विधायक और सांसद ही मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को हटा/बर्खास्त कर सकते हैं और वे केवल इतना भर करते हैं कि मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को धमकाकर रिश्वत/घूस वसूल करते हैं। इसलिए यह प्रक्रिया कि विधायक और सांसद ही मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को हटा/बर्खास्त कर सकते हैं – नागरिकों की बिलकुल मदद नहीं नहीं करती – यह केवल विधायकों और सांसदों को ही धनवान बनाती है।
मेरा प्रस्ताव है कि – ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके, हम नागरिकों को एक सरकारी अधिसूचना(आदेश) लागू करानी चाहिए जिसके द्वारा नागरिक प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को सीधे ही चुन सकें। और इस कार्य के लिए प्रस्तावित प्रक्रियाओं – प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – मुख्यमंत्री में वे साधन मौजूद हैं जिनके द्वारा नागरिक अपनी पसंद के मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को पद पर बैठा सकते हैं।
(40.4) इलेक्ट्रानिक चुनाव मशीन (वोटिंग मशीन) (इ.वी.एम) पर रोक / प्रतिबंध लगाना और कागजी मतदान-पत्रों में कुछ परिवर्तन / बदलाव लाकर उनका प्रयोग करना |
कृपया http://www.youtube.com/watch?v=AuJHih4fxYQ पर एक वीडियो प्रदर्शन देखें जो दिखलाता है कि इवीएम मशीनों में हेराफेरी/गड़बड़ी करना कागजी मतदान पत्रों से कहीं ज्यादा आसान है और इन गड़बड़ियों का पता भी नहीं लगाया जा सकता। इसके अलावा, मैंने एक तरीके के बारे में लिखा है कि कैसे फैक्ट्री के भीतर लाखों इवीएम मशीनों में गड़बड़ी/हेराफेरी की जा सकती है।
क्या इवीएम मशीनों में गड़बड़ी की जा सकती है? हां। और इससे भी खतरनाक बात यह है कि हजारों इवीएम मशीनों में गड़बड़ी/हेराफेरी फैक्ट्री के भीतर कुछ ही लोगों द्वारा की जा सकती है। पेपर/कागज के मतदान-पत्रों का प्रयोग करने पर ऐसी गड़बड़ी/हेराफेरी नहीं की जा सकती। और कुछ प्रकार की हेराफेरी इस प्रकार की हैं कि जिनमें यह पक्का/निश्चित होता है कि इन हेराफेरियों का पता सारी जनता को कभी नहीं चल पाएगा। पेपर/कागजी मतदानों के मामले में कोई व्यक्ति कुल मतदान के मुश्किल से 0.1 प्रतिशत की ही हेराफेरी कर सकता है और ऐसा करने के लिए भी उसे हजारों अपराधियों की जरूरत पड़ेगी| ई.वी.एम मशीनों द्वारा चुनाव में , कोई व्यक्ति 10-15 ऊपर/शीर्ष के लोगों की मदद से और कलेक्टर के दफ्तर में एक छोटी सी चाल चलकर, कुल डाले गए मत में से 10 प्रतिशत से लेकर 20 प्रतिशत तक भी चुरा सकता है। (इसके लिए ये लिंक देखें-www.righttorecall.info/evm.h.pdf )