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यह समझना कठिन नहीं है कि क्यों दलों के नेता और बुद्धिजीवी लोग जज प्रणाली(सिस्टम)/व्यवस्था का समर्थन और जूरी प्रणाली(सिस्टम) का विरोध करते हैं। कई बुद्धिजीवियों के रिश्तेदार जज होते हैं और इसलिए वे सभी बुद्धिजीवी जज प्रणाली(सिस्टम) का समर्थन करते हैं। इसके अलावा , विशिष्ट/ऊंचे लोग भी केन्द्रीयकृत जज प्रणाली(सिस्टम) चाहते हैं और विकेन्द्रीकृत जूरी प्रणाली(सिस्टम) नहीं चाहते। इस समय भारत में 13000 जज हैं और वे हर वर्ष लगभग 13,00,000 मुकद्दमें सुलझाते हैं। अब मान लीजिए, विशिष्ट/ऊंचे वर्ग का कोई व्यक्ति किसी जिले अथवा राज्य में काम/व्यवसाय करता है। मान लीजिए, उसके खिलाफ हर साल 20 मुकद्दमें दर्ज होते हैं अथवा 30 वर्षों की अवधि में 600 मुकद्दमें दर्ज होते हैं। अब कानून की परवाह न करने वाले इस विशिष्ट/ऊंचे वर्ग के व्यक्ति को इन 600 मुकद्दमों से निबटने के लिए केवल 10-20 जजों को पटाना/तोड़ना होता है। यदि जूरी प्रणाली(सिस्टम) लागू होती है तो उसे 7200 जूरी सदस्यों को पटाना/तोड़ना होगा जो लगभग असंभव काम है। दूसरे शब्दों में , जूरी प्रणाली(सिस्टम)/व्यवस्था में कानून की परवाह न करने वाले विशिष्ट व्यक्ति का जीवन ज्यादा कठिन/दुखदायी हो जाएगा। बुद्धिजीवी लोग इन विशिष्ट /उंचे लोगों के ऐजेंट होते हैं और इसीलिए वे जज प्रणाली(सिस्टम) का समर्थन करते हैं और जूरी प्रणाली(सिस्टम) का विरोध करते हैं।
(21.10) नानावटी मामला |
अंग्रेजों ने काफी पहले ही यह महसूस कर लिया था कि उनके अपने ही कलक्टर और जज हद से ज्यादा भ्रष्ट हैं और यदि उनके अधिकारों को कम नहीं किया गया तो जनता इस हद तक प्रताड़ित होगी/कुचली जाएगी कि वह विद्रोह कर देगी। यही कारण था कि 1870 के दशक में अंग्रेजों ने भारत में जूरी प्रणाली(सिस्टम)/व्यवस्था लागू की। लेकिन वर्ष 1956 में जवाहरलाल नेहरू और उच्चतम न्यायालय/सुप्रीम-कोर्ट के तत्कालीन जजों ने नानावटी मामले/मुकद्दमे को कारण बताकर जूरी प्रणाली(सिस्टम) को ही समाप्त कर दिया। यह बहुत ही बड़ी नादानी/गलती थी।
नानावटी ने आहूजा नाम के एक व्यक्ति को जान से मार दिया था। जूरी-मंडल/जूरर्स ने एक तथ्य के रूप में इसे स्वीकार किया था। नानावटी नौसेना का एक अधिकारी था। और नागरिकों में सैनिक अधिकारियों के लिए बहुत अधिक सम्मान था। यह सम्मान तब दोगुना हो गया जब नागरिकों ने देखा कि एक धनवान परिवार का यह धनी व्यक्ति उच्चवर्गीय जिन्दगी को त्यागकर सेना की कठिन जिन्दगी स्वीकार कर रहा है। और आहूजा एक माना हुआ व्याभिचारी/परस्त्रीगामी था। और उस समय जब पिता का निर्धारण करने के लिए पितृत्व जांच (पैटरनिटी टेस्ट) मौजूद नही हुआ करता था तो अवैध संबंध बनाने को हत्या जैसा ही घृणित अपराध माना जाता था। जूरी-मंडल के सदस्य दुविदा/सोच में पड़े हुए थे कि यदि वे नानावटी को दोषी बता देते हैं तो जज उन्हें मृत्युदंड देंगे (और दूसरी सुनवाई में बिलकुल ऐसा ही हुआ था)। यदि जूरी-मंडल/जूरर्स के पास सजा का निर्धारण करने का अधिकार होता तो जूरी-मंडल/जूरर्स अवश्य ही कुछेक साल की कैद जैसी कोई सजा दे देते। लेकिन जूरी-मंडल/जूरर्स के पास केवल एक ही अधिकार था – उसे दोषी करार देना जिसका अभिप्राय/परिणाम था, उसकी मौत अथवा उसे निर्दोष करार देना। नानावटी का अपराध पैसे के लिए किया गया अपराध नहीं था और न ही नानावटी कोई पेशेवर अपराधी था और जूरी-मंडल के सदस्यों का यकीन था कि क्रोध/गुस्से की उत्तेजना में किए गए उसके अपराध के लिए वह मौत जितनी बड़ी सजा का हकदार नहीं था। इसलिए, जूरी-मंडल/जूरर्स ने उसकी जिन्दगी बचाने के लिए सही निर्णय लिया- “कोई सजा नहीं” का गलत फैसला, क्योंकि उन्हें उसे कुछेक साल की कैद की सजा देने का अधिकार ही नहीं था और यह उनकी बुद्धिमानी/समझ की गलती नहीं थी। यही कारण है कि उस व्यवस्था/प्रणाली(सिस्टम) जिसका मैं प्रस्ताव कर रहा हूँ, उसमें जूरी-मंडल/जूरर्स सजा का भी निर्णय करते हैं ताकि जूरी को अपनी अंतरात्मा द्वारा “दोषी नहीं” का फैसला देने पर मजबूर न होना पड़े – तब, जब कोई व्यक्ति दोषी तो हो पर इतना भी दोषी न हो कि उसे सबसे बड़ी/मृत्युदण्ड की सजा मिल जाए जो जज उसे दे सकते हैं। इसलिए नानावटी मामला हमें यह दिखाता है कि जूरी-मंडल/जूरर्स ने एक बहुत ही उचित फैसला लिया और इसमें जिस बात की जरूरत है वह है- जूरी-मंडल/जूरर्स के अधिकार बढ़ाना और जजों के बदले उन्हें ही सजा का भी निर्णय करने का अधिकार देना। इसके बावजूद, नेहरू ने (अपनी सामन्तवादी मानसिकता के कारण) और जजों ने “नानावटी सुनवाई” को एक कारण बताते हुए बिना किसी वाद-विवाद के भारत में जूरी प्रणाली(सिस्टम) को रद्द कर दिया।
नेहरू ने भारत में जूरी प्रणाली(सिस्टम) को रद्द/समाप्त करने के लिए नानावटी मुकद्दमें को बहाना बनाया और सभी कांग्रेसी सांसदों और कम्युनिस्ट पार्टियों आदि ने इसका समर्थन करते हुए उनका साथ दिया। नेहरू ने यह निर्णय उन भूस्वामियों की सहायता करने के लिए लिया था जो भूमिहीनों को पीटने के लिए अपराधियों का अपयोग किया करते थे। जूरी प्रणाली(सिस्टम) के कारण, अपराधियों को जेल की सजा मिलने लगी थी और और अब भूस्वामियों के लिए अपराधियों से भूमिहीनों को पीटने के लिए कह पाना कठिन हो रहा था। इसलिए नेहरू ने भारत से जूरी प्रणाली(सिस्टम) को ही रद्द कर दिया ताकि भूस्वामी लोग भूमिहीनों को पीट सकें और भूमि सुधारों को रोक सकें।
(21.11) भारत की निचली अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) लाने के लिए सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट |
नागरिकों को निम्नलिखित सरकारी अध्यादेश पर प्रधानमंत्री से हस्ताक्षर करवाना पड़ेगा। नागरिकों को चाहिए कि वे सबसे पहला काम यह करें कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.) की दूसरी मांग में वर्णित सरकारी आदेश पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रधानमंत्री को बाध्य कर दें और तब उस सरकारी आदेश का प्रयोग निम्नलिखित अध्यादेश जारी करने/कराने में करें –
सरकारी अध्यादेश : भारत की निचली अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम)
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निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया |
प्रक्रिया/अनुदेश |
सैक्शन – 1 : जूरी प्रशासक की नियुक्ति और उन्हें बदलना/हटाना | ||
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मुख्यमंत्री; जिला कलेक्टर |
इस कानून के पारित/पास किए जाने के 2 दिनों के भीतर, सभी मुख्यमंत्री अपने-अपने पूरे राज्य के लिए एक रजिस्ट्रार की नियुक्ति करेंगे और हर जिले के लिए एक जूरी प्रशासक की भी नियुक्ति करेंगे कोई भी भारत का नागरिक जो 30 साल या अधिक का हो, जिला कलेक्टर के दफ्तर में जा कर, सांसद के जितना शुल्क जमा कर के अपने को जूरी प्रशाशक के लिए प्रत्याशी दर्ज करा सकता है |
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