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अध्याय 21- कोर्ट में भ्रष्‍टाचार और भाई-भतीजावाद कम करने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह के प्रस्‍ताव

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26.   सामान्‍य पत्राचार और नोटिसों के साथ-साथ सभी पक्षों/पार्टियों को उनके मुकद्दमें की स्‍थिति के बारे में जानकारी/सूचना सभी भाषाओं में ई-मेल व एस. एम. एस. के जरिए देना

27.   हर सुनवाई के समय क्रमरहित/रैन्‍डम तरीके से चुने गए 20 नागरिकों को सुनवाई के दौरान उपस्‍थित रहना होगा ( नागरिक-समाज में न्‍यायालयों के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए)

दूसरे शब्‍दों में, हमलोगों ने अपने न्‍यायालयों में सुधार लाने के लिए और “नागरिकों द्वारा की गई व्‍याख्‍या/अर्थ के मुताबिक कानून और संविधान के लिए” प्रशासन में लगभग 30-35 परिवर्तन/बदलाव का प्रस्‍ताव किया है।

 

(21.4) सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का अधिकार नागरिकों को देना

इस प्रक्रिया की चर्चा मैं पहले कर चुका हूँ।

 

(21.5) 1,00,000 (एक लाख) और न्‍यायालयों / कोर्ट की स्‍थापना करना

मैं नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.) के सदस्‍य के रूप में यह  मांग और वायदा करता हूँ कि जिन व्‍यक्‍तियों के पास 25 वर्ग मीटर प्रति व्‍यक्‍ति से अधिक रिहायशी व व्‍यावसायिक जमीन हैं, उनपर जमीन के बाजार मूल्‍य/वैल्‍यू के लगभग 0.25 प्रतिशत का “कोर्ट के लिए सम्पत्ति कर” लगाया जाएगा और इसका उपयोग केवल और केवल न्‍यायालयों/कोर्ट के लिए ही किया जाएगा। इसके अलावा, जून,2007 से जून, 2008 के बीच धन/मुद्रा आपूर्ति में लगभग 700,000 करोड़ की वृद्धि हुई थी जो जून, 2007 में एम 3(कुलमुद्रा/धन संख्या = देश में प्रचालन में सभी नोट,जमा धन-राशि और सभी सिक्कों का कुल जोड़ ) का 22 प्रतिशत था। हमलोग इस वार्षिक बढ़ोत्‍तरी को 70,000 करोड़ (अर्थात वर्तमान राशि के 10 प्रतिशत) पर सीमित रखने की मांग और वायदा करते हैं। और इस नए सृजित धन का उपयोग केवल सेना, पुलिस और न्‍यायालयों के लिए किया जाएगा। इस “न्‍यायालय के लिए सम्‍पत्‍ति कर” और नए एम 3(कुल मुद्रा/धन संख्या) का उपयोग करके सरकार एक वर्ष के भीतर 1,00,000(एक लाख) और न्‍यायालयों की स्‍थापना कर सकेगी। इन नए स्‍थापित/बनाये हुए 1,00,000 न्‍यायालयों और उन सरकारी आदेशों जो सिविल और आपराधिक कानूनों में परिवर्तन लाएं, का उपयोग करके वर्तमान में लंबित 3 करोड़ मुकद्दमों को अगले 3 से 6 वर्षों के भीतर आसानी से सुलझाया जा सकता है।

 

(21.6) निचली अदालतों ,  हाई-कोर्ट और सुप्रीम-कोर्ट में निष्‍ठा / ईमानदारी की कमी की समस्‍या

अदालतों की संख्‍या बढ़ने से करवाई में तेजी आएगी, लेकिन निम्‍नलिखित समस्‍याओं को दूर करने के लिए हमें अदालतों में संरचनात्‍मक परिवर्तनों की जरूरत है :-

1        भाई-भतीजावाद – वकील और आसिल(वकील के ग्राहक/मुवक्किल) जो न्‍यायाधीशों के रिश्‍तेदार होते हैं, वे एक के बाद एक मुकद्दमें जीतते जाते हैं।

2        जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत/मेल-जोल/सम्बन्ध

3        जज-अपराधी साँठ-गाँठ/मिली-भगत

4        जजों/न्‍यायाधीशों में भ्रष्‍टाचार

5        जजों/न्‍यायाधीशों की नियुक्‍तियों में भाई-भतीजावाद

अभी देखते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जजों ने संविधान को हड़प लिया है कि नहीं

  1. सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कार्यपालिका और विधायिका/`क़ानून बनाने वाली सभा` की सत्ता “जन हित(याचिका)” की आड़ में हड़प/ छीन ली है |

  2. संविधान ये कहता है कि राष्ट्रपति( पड़ें- मंत्रिमंडल ) सुप्रीम कोर्ट/हाई-कोर्ट के जजों की नियुति करेगा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश/जज की परामर्श/सलाह से और ये परामर्श/सलाह बाध्य नहीं माना गया था | लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इसे बाध्य बना दिया 1992 के एक फैसले से (न्यायपालिका की स्वतंत्र के बहाने),इस प्रकार संविधान का अतिक्रमण/तोड़ा और जजों कि नियुक्ति की सत्ता हड़प ली|

  3. सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जज अदलात और वकील-समूह को अपने रिश्तेदार और रिश्तेदारों के मित्रों से भर रही है | ये भाई-भातिजेवाद व्यव्यहार जग-जाहिर है |

  4. जजों के रिश्तेदार वकीलों को अनुकूल निर्णय/फैसला मिलता है,इस आरोप से  भारत के अधिक्तार लोग सहमत हैं | ये उन विकीलों के लिए अवसर कम कर देता है जो जजों के रिश्तेदार नहीं हैं|

  5. न्यायपालिका / कोर्ट को , `ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल` के एक सर्वेक्षण में, भारत के लोगों ने दूसरा सबसे भ्रष्ट स्थान दिया है पुलिस के बाद | ये सर्वेक्षण भारत के 25,000 नागरिकों से अधिक में किया गया था |

  6. सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जजों ने जजों में भ्रष्टाचार के समाचार को दबा दिया है `न्यायालय की मानहानि `क़ानून का इस्तेमाल/प्रयोग कर के | `न्यायलय की मानहानी ` क़ानून का दुरुपयोग भाषण अधिकारों की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और ये भी संविधान को हड़पने का मामला है |

  7. एक उदहारण के लिए, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ,खरे ने एक सज़ा पाए हुए बच्चो के यौन शोषण (पीडोफाइल) को जमानत दे दी जो भारतीय दण्ड सहित (आई.पी.सी) और संविधान का उलंघन करती है | ये इसीलिए हुआ क्योंकि वो सजायाफ्ता मुजरिम पैसे वाला था |

और जजों के साथ ,प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री भी रिश्वत इकठ्ठा करने वाले हैं | क्या ये रिश्वत जमा करना संवैधानिक है ?

 

(21.7)  जूरी प्रणाली (सिस्टम) के बारे में

हम ऊपर लिखे गए पांच में से चार समस्‍याओं के लिए जूरी प्रणाली और पांचवीं समस्‍या के समाधान/हल के लिए लिखित परीक्षाओं द्वारा नियुक्‍तियों का प्रस्‍ताव करते हैं। दुख की बात है कि भारत में अधिकांश मतदाता और शिक्षित लोग भी जूरी प्रणाली/सिस्टम की संकल्‍पना/कॉन्‍सेप्‍ट के बारे में कुछ भी नहीं जानते। ऐसा इसलिए है कि भारत के बुद्धिजीवी लोग जूरी प्रणाली (सिस्टम) के इतने घोर विरोधी हैं कि इन्‍होंने कभी भी जूरी प्रणाली(सिस्टम) के बारे में छात्रों और आम कार्यकर्ताओं को जानकारी ही नहीं दी।

21.7.1   जज प्रणाली(सिस्टम) और जूरी प्रणाली(सिस्टम) क्‍या हैं?

भारत में 110 करोड़ नागरिक हैं। यहां की अदालतों में हर वर्ष कम से कम 20 लाख से 50 लाख के बीच विवाद या आपराधिक मुकद्दमें दायर किए जाते हैं। यदि ये सभी विवाद भारत के नागरिकों द्वारा कम ही समय में नहीं सुलझाए गए और यदि अपराधियों को दण्‍ड/सजा नहीं मिली तो अपराधी और भी ज्‍यादा अपराध करेंगे | और तो और नागरिकगण सिविल मुकद्दमों में व्‍यक्‍तिगत हिंसा का सहारा लेने लगेंगे और इस तरह अराजकता की स्‍थिति आ जाएगी। और निरंतर अन्‍याय (को बढ़ावा देने) से नागरिकों के राष्‍ट्र के प्रति तथा दूसरे नागरिकों के प्रति भावनात्‍मक लगाव में कमी आएगी। ऐसी अराजकता से राष्‍ट्र कमजोर होगा और इसका परिणाम फिर से गुलामी के रूप में होगा। इसलिए, स्‍थायित्‍व के हिसाब/दृष्‍टि से यह नागरिक-समाज के लिए जरूरी हो जाता है कि वे इन विवादों और आपराधिक मुकद्दमों में फैसले दें और उन फैसलों को लागू करवाने के लिए बल का प्रयोग करें। नागरिकों के लिए यह संभव नहीं है कि वे इन सभी 20 लाख मुकद्दमों में से हर मुकद्दमें में व्‍यक्‍तिगत रूप से रूचि ले सके। एक नागरिक ज्‍यादा से ज्‍यादा प्रतिवर्ष 2 से 5 विवादों में रूचि ले सकता है। इसलिए नागरिक-समाज के पास इसके अलावा ज्‍यादा विकल्‍प नहीं है कि वे हर विवाद के लिए कुछ अलग-अलग व्‍यक्‍तियों को नियुक्‍त करें और अधिकांश मुकद्दमों में उनके निर्णयों/फैसलों को अंतिम मानें और कुछ मुकद्दमों में (अपील द्वारा) संशोधन करें। इसलिए किसी राष्‍ट्र द्वारा चलाई जाने वाली प्रत्‍यक्ष या परोक्ष प्रक्रियाओं में से एक है – किसी विशेष विवाद पर फैसला देने के लिए व्‍यक्‍तियों का चयन। किस प्रकार व्‍यक्‍तियों का चयन किया जाता है, इसके आधार पर दो बड़ी प्रणालियां(सिस्टम) हैं –