सूची
- (21.1) हमें कोर्ट में सुधार की जरूरत क्यों है?
- (21.2) ऐसे अन्यायपूर्ण फैसलों का समाज पर प्रभाव
- (21.3) न्यायालय / कोर्ट में और सुधार की राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह की मांग और वायदे
- (21.4) सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का अधिकार नागरिकों को देना
- (21.5) 1,00,000 (एक लाख) और न्यायालयों / कोर्ट की स्थापना करना
- (21.6) निचली अदालतों , हाई-कोर्ट और सुप्रीम-कोर्ट में निष्ठा / ईमानदारी की कमी की समस्या
- (21.7) जूरी प्रणाली (सिस्टम) के बारे में
- (21.8) जूरी प्रणाली (सिस्टम) और सूचना-संबंधी कारक
- (21.9) सभी राजनैतिक दलों, बुद्धिजीवियों की जूरी प्रणाली (सिस्टम) पर (राय / विचार)
- (21.10) नानावटी मामला
- (21.11) भारत की निचली अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) लाने के लिए सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट
- (21.12) नागरिकगण भारत में जूरी प्रणाली (सिस्टम) कैसे ला सकते हैं?
- (21.13) जजों की नियुक्ति / भर्ती में भाई-भतीजावाद कम करना
- (21.14) सारी जनता को कानून की पढ़ाई पढ़ाना और अन्य परिवर्तनों के बारे में बताना
- (21.15) कु-बुद्धिजीवी लोग जजों में भ्रष्टाचार को समर्थन देंगे
- (21.16) न्यायालयों / कोर्ट में सुधार करने पर सभी दलों और बुद्धिजीवियों का रूख
- (21.17) कुछ प्रश्न
- (21.18) अभ्यास
सूची
- (21.1) हमें कोर्ट में सुधार की जरूरत क्यों है?
- (21.2) ऐसे अन्यायपूर्ण फैसलों का समाज पर प्रभाव
- (21.3) न्यायालय / कोर्ट में और सुधार की राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह की मांग और वायदे
- (21.4) सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का अधिकार नागरिकों को देना
- (21.5) 1,00,000 (एक लाख) और न्यायालयों / कोर्ट की स्थापना करना
- (21.6) निचली अदालतों , हाई-कोर्ट और सुप्रीम-कोर्ट में निष्ठा / ईमानदारी की कमी की समस्या
- (21.7) जूरी प्रणाली (सिस्टम) के बारे में
- (21.8) जूरी प्रणाली (सिस्टम) और सूचना-संबंधी कारक
- (21.9) सभी राजनैतिक दलों, बुद्धिजीवियों की जूरी प्रणाली (सिस्टम) पर (राय / विचार)
- (21.10) नानावटी मामला
- (21.11) भारत की निचली अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) लाने के लिए सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट
- (21.12) नागरिकगण भारत में जूरी प्रणाली (सिस्टम) कैसे ला सकते हैं?
- (21.13) जजों की नियुक्ति / भर्ती में भाई-भतीजावाद कम करना
- (21.14) सारी जनता को कानून की पढ़ाई पढ़ाना और अन्य परिवर्तनों के बारे में बताना
- (21.15) कु-बुद्धिजीवी लोग जजों में भ्रष्टाचार को समर्थन देंगे
- (21.16) न्यायालयों / कोर्ट में सुधार करने पर सभी दलों और बुद्धिजीवियों का रूख
- (21.17) कुछ प्रश्न
- (21.18) अभ्यास
कोर्ट में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद कम करने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह के प्रस्ताव |
(21.1) हमें कोर्ट में सुधार की जरूरत क्यों है? |
जब नागरिकों ने 1951 में संविधान लिखा तो नागरिकों द्वारा सांसदों, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों/सुप्रीम-कोर्ट-जज , भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई ए एस) के अधिकारियों आदि को साफ-साफ बता दिया गया था कि :-
- देश भारत के संविधान के अनुसार चलाया जाएगा।
-
देश उस संविधान के अनुसार चलेगा जिसकी भारत के नागरिकों द्वारा अर्थ/व्याख्या की गई है।
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश/सुप्रीम-कोर्ट-जज द्वारा संविधान की, की गई अर्थ/व्याख्या मंत्रियों द्वारा संविधान की, की गई अर्थ/व्याख्या से उपर होगी। लेकिन नागरिकों द्वारा संविधान की, की गई अर्थ/व्याख्या अंतिम होगी और सबसे उपर होगी और यह उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अर्थ/व्याख्या से भी उपर होगी।
संविधान-आम लोगों द्वारा अर्थ लगाया या सुप्रीम कोर्ट जज द्वारा?
संविधान, आम लोगों/जनसाधारण द्वारा अर्थ लगाया जाना चाहिए के दो दर्जन सुप्रीम कोर्ट जजों द्वारा?
पहले हम `संविधान की भूमिका/उद्देशिका` देखें | सभी संविधानों के सभी खंड के सभी अर्थ/व्याख्या संविधान की भूमिका/उद्देशिका के अनुसार होने चाहिए अन्यथा वो अर्थ/व्याख्याएं बुरी हैं |
भूमिका / उद्देशिका हम, भारत के लोग,भारत को एक 1[संपूर्ण , प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी , पंथ-निरपेक्ष ,लोकतांत्रिक ,गणराज्य] बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक न्याय,विचार,अभिव्यक्ति विश्वास ,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और 2[राष्ट्र की एकता और अखंडता] सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए दृढसकल्प होकर
अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर,1949 ई.(मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी , संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं |
1.संविधान (बयालीसवां संशोधन )अधिनियम , 1976 की धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य “ के स्थान पर प्रतिस्थापित |
2. संविधान (बयालीसवां संशोधन )अधिनियम , 1976 की धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “राष्ट्र की एकता” के स्थान प्र प्रतिस्थापित |
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निम्निलिखित शब्द सबसे महत्वपूर्ण हैं –
1. हम, भारत के लोग (हम न्यायाधीश/जज नहीं)
2. लोकतंत्र
3. गणराज्य (न्यायतंत्र/जजों का ल्पतंत्र(कुछ ही लोगों का शाशन) नहीं)
4.अवसर की समता
दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र और गणराज्य वे प्रणाली/तंत्र हैं जिसमें आम लोग नियम को लागू करते हैं और आम लोग उनके अर्थ भी करते हैं संविधान सहित |
हमारा संविधान स्पष्ट कहता है भारत एक अल्पतन्त्र नहीं होगा दो दर्जन सुप्रीम कोर्ट या 800 सांसदों का | संविधान “लोकतंत्र” और “गणराज्य” कहता है अपने भूमिका में |
इसीलिए , भूमिका ये स्पष्ट/साफ़ बताती है कि संविधान का अर्थ हम आम लोगों द्वारा है , ना कि सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा अर्थ लगाया हुआ |
अफ़सोस, संविधान में वो प्रक्रिया/तरीका का अभाव/कमी है जिससे आम लोगों का अर्थ/मतलब प्राप्त किया जा सकता है | लेकिन प्रक्रिया के अभाव से अधिकारों का अभाव का मायना/अर्थ नहीं है| इसका यही मायना है कि हमें एक अधिनियम/सरकारी आदेश की जरुरत है एक प्रक्रिया बनाने के लिए जिसके द्वारा संविधान का अर्थ लगाना `हम आम` लोगों द्वारा किया जा सके | इसका ये मतलब नहीं कि `हम आम लोगों ` द्वारा अर्थ लगाना जजों द्वारा अर्थ लगाने से निम्न है |
और , ये शब्द “राजनैतिक न्याय “ और “समानता” से बताते (सूचित करते) हैं और सिद्ध करते हैं कि हर एक व्यक्ति का संविधान का अर्थ लगाना / व्याख्या का कुछ मूल्य होगा | इस कारण , यदि आम लोगों का बहुमत सुप्रीम कोर्ट के जजों के फैसले को असंवैधानिक बोलते हैं, तो वो फैसला भले ही 24 सुप्रीम कोर्ट के जजों द्वारा वैध घोषित किया गया था, फिर भी वो फैसला असंवैधानिक और व्यर्थ हो जाता है | दूसरे शब्दों में , सुप्रीम कोर्ट का फैसला मान्य तभ है जब तक हम आम लोग उसे असंवैधानिक घोषित नहीं कर देते |
इन निर्णयों के कारण ही नागरिकों ने (संविधान की) प्रस्तावना में ही `लोकतंत्र`, `राजनीतिक न्याय` और `समानता` जैसे शब्द रखे और यही कारण था कि सांसदों, जिनसे नागरिकों का प्रतिनिधित्व करने की आशा की जाती थी, उन्हें उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पर महाभियोग तक चलाने की शक्ति दे दी गई थी ताकि यदि कभी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संविधान की व्याख्या नागरिकों द्वारा की गई व्याख्या से अलग ढ़ंग से करें तो सांसद उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पर महाभियोग(आरोप और हटाने की प्रक्रिया) चला सकें। भारत के संविधान में बहुत से विचार अमेरिका के संविधान और अमेरिका के समाज से लिए गए हैं। 1950 में जब नागरिकों ने भारत का संविधान लिखा तो उन्होंने लोकतंत्र शब्द का वह अर्थ लिया था जो उस समय अमेरिका/पश्चिम में प्रचलन में था। अमेरिका में लोकतंत्र शब्द का क्या अर्थ था? इसे समझने के लिए किसी व्यक्ति को अमेरिकी राज्यों के संविधान पढ़ने चाहिएं। उदाहरण के लिए मेरी लैण्ड के संविधान में यह साफ-साफ लिखा है कि “जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य अर्थात आम नागरिक कानूनों के साथ-साथ तथ्यों की भी व्याख्या/अर्थ करेंगे” अमेरिका के 20 और राज्यों के संविधानों में भी यही उल्लेख है और अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय भी ऐसा ही करता है। दूसरे शब्दों में, 1950 में अमेरिका में लोकतंत्र शब्द का साफ-साफ अर्थ था एक ऐसा शासन जिसमें नागरिक कानून बनाते हैं और नागरिक ही किसी मुकद्दमें में कानूनों के साथ-साथ तथ्यों की भी व्याख्या/अर्थ करते हैं।
अब संविधान को उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में टुकड़े-टुकड़े कर दिया गया है(गलत अर्थ लगा कर बर्बाद कर दिया है)। मैं निम्नलिखित उदाहरण यहां पेश करूंगा। (अप्रैल 2, 2008 के रूप में लिंक करें) http://www.boloji.com/wfs2/wfs238.htm
“ यौन अपराधों के लिए फन प्लेस/मनोरंजक स्थल
मार्टी दम्पत्ति को दिसंबर, 2000 में तब रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया था, जब वे गेटवे ऑफ इंडिया से उठाकर लाई गई अवयस्क लड़कियों के गन्दे चित्र उतार रहे थे। स्विटजरलैण्ड के इस दम्पत्ति के द्वारा अवयस्क लड़कियों के बाल यौन (शोषण) अपराध की भयानक कहानी मुंबई के एक सेशन कोर्ट को कैमरे के जरिए/इन कैमरा बताई गई। और मार्च, 2003 में अतिरिक्त सेशन जज मृदुला भटनागर ने इस दम्पत्ति को सजा सुनाई। उन्हें सात साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। इस सजा के खिलाफ उनकी अपील का ही नतीजा था कि मुंबई उच्च न्यायालय ने उनकी दलील को स्वीकार किया कि यदि इस मामले की सुनवाई तेजी से नहीं होती तो उनकी अपील 7 वर्षों के बाद भी सुनी नहीं जाती जो मुख्य तौर पर उनके सजा की अवधि थी। जज ने उन्हें प्रत्येक पीड़ित को एक-एक लाख रूपए का बड़ा हरजाना भरने का भी निर्देश दिया। उनके अपराध की गहराई का उल्लेख पूरे निर्णय/फैसले में कहीं पर भी नहीं किया गया था।
उनके पासपोर्ट से यह खुलासा हुआ कि वह दम्पत्ति वर्ष 1989 से ही हर वर्ष भारत आया करता था। वे कई देशों में अपना धन्धा चलाते थे और उनके लैपटॉप बच्चों की तस्वीरों से भरे पड़े थे जिसमें श्रीलंका और फिलिपिन्स के भी बच्चे थे। स्वयं को अकेला बुजुर्ग दम्पत्ति बताकर वे गली के बच्चों और उनके माता-पिता से दोस्ती करते थे और उन्हें दान की आड़ में खुशहाल जिन्दगी का वायदा करते थे। श्री मार्टी (जिसने स्वयं को एक बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनी में महा-प्रबंधक/मेनेजर बताया था) और उसकी पत्नी, दोनों के पास से चिकनाई वाले पदार्थ/लुब्रिकेन्ट्स, कंडोम और लिंग के उपर छिड़काव करने वाले स्प्रे पाए गए थे। लिली मार्टिन एक प्रशिक्षित नर्स थी जो उत्पीड़न के शिकार बच्चों के घाव की दवा–पट्टी करती थी। लेकिन साक्ष्य के रूप में रिकार्ड की गई इन बातों में से किसी भी बात का उल्लेख मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले में नहीं किया गया। उच्चतम न्यायालय की बेंच जिसके अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश वी. एन. खरे थे, उन्होंने 5 अप्रैल, 2004 को दिए गए अपने फैसले में इन बाल अपराध के दोनों दोषियों को जमानत दे दी ….. “
भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री खरे से जमानत मिल जाने के बाद दोनों धनवान स्विट्जरलैण्ड-वासी बाल यौन-शोषण अपराधी भारत से बच निकले। इस प्रकार के जमानत के आदेश ने पुलिसवालों और निचली अदालत के जजों/न्यायाधीशों के मनोबल गिरा दिए। उन्होंने अवश्य ही यह सोचा होगा कि अपराधी को सजा दिलाने का उनका प्रयास बेकार गया। और उन्हें इस बात का मन में दुःख भी रहा होगा कि घूस दिए जाने के प्रस्ताव को उन्होंने क्यों ठुकरा दिया। मुंबई उच्च न्यायालय के जज/न्यायाधीश द्वारा छोड़ दिए जाने का आदेश संविधान के खिलाफ था। और मुख्य न्यायाधीश/जज प्रधान `खरे` द्वारा दोनों धनवान स्विट्जरलैण्ड-वासी बाल अपराध के दोषियों को दिया गया जमानत का आदेश भी संविधान का घोर उल्लंघन था। संविधान के ऐसे उल्लंघन इसलिए होते हैं कि हम नागरिकों के पास संविधान का उल्लंघन करने वाले न्यायाधीशों/जजों/न्यायाधीशों को बर्खास्त करने/हटाने की कोई प्रक्रिया नहीं है।
(21.2) ऐसे अन्यायपूर्ण फैसलों का समाज पर प्रभाव |
यदि हम न्यायालयों/कोर्ट में सुधार नहीं लाऐंगे तो अमीरों द्वारा सबसे गरीब 99 प्रतिशत नागरिकों पर अन्याय तो बढ़ता ही जाएगा। समाज में मिल-जुलकर रहने की स्थिति कम होती जाती है और देश के प्रति आम-नागरिकों की वफादारी कम हो जाती है जब विशिष्ट/उच्च वर्ग के लोग आम लोगों का ज्यादा से ज्यादा अत्याचार करने लगते हैं। और समाज में मिल-जुलकर रहने की स्थिति में कमी आने से प्रशासन और सेना की ताकत भी कम होती है । जब व्यक्तियों को कोर्ट से खुला अन्याय मिलता है तो उन्हें राष्ट्र और समाज की रक्षा करने में कोई लाभ नजर नहीं आता है। पुलिस व न्यायालय आदि में अन्यायपूर्ण व्यवहार किए जाने से दिनों-दिन राष्ट्रीयता की भावना में कमी आती जाती है और इससे पूरा समाज, राष्ट्र और यहां तक कि राष्ट्र का प्रत्येक अंग प्रशासन, पुलिस, सेना आदि भी कमजोर हो जाता है। नागरिकगण जजों/न्यायाधीशों के अन्यायपूर्ण व्यवहार को कैसे रोक सकते है? और कैसे हम नागरिक सुप्रीम-कोर्ट और हाई-कोर्ट में संविधान की अवहेलना और जजों का अन्यायपूर्ण व्यवहार रोक सकते हैं? और कैसे नागरिकगण न्यायालयों/कोर्ट में तेजी से मुकद्दमों का निपटारा करने के कार्य में सुधार कर सकते हैं?
(21.3) न्यायालय / कोर्ट में और सुधार की राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह की मांग और वायदे |
राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करके और नागरिकों से हां प्राप्त करके भारत की न्याय व्यवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन/बदलाव लाने की मांग और इसका वायदा करता हूँ:-
1. प्रजा अधीन–उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश/प्रजा अधीन-सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज(भ्रष्ट सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का आम लोगों का अधिकार )
2. प्रजा अधीन–उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश/ प्रजा अधीन-हाई कोर्ट प्रधान जज (भ्रष्ट हाई-कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का आम लोगों का अधिकार )
3. प्रजा अधीन–निचली अदालत के मुख्य न्यायाधीश/प्रजा अधीन-निचली कोर्ट प्रधान जज (भ्रष्ट निचली अदालत के प्रधान जज को बदलने का आम लोगों का अधिकार )
4. साक्षात्कार समाप्त करना – सभी निचली अदालतों के जजों/न्यायाधीशों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा
5. सभी छोटे/कनिष्ठ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों/हाई-कोर्ट के जजों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
6. सभी छोटे/कनिष्ठ सुप्रीम कोर्ट के जजों/न्यायाधीशों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
7. सजा के निर्णय/फैसले करने के लिए निचली अदालतों में जूरी व्यवस्था
8. अपीलों के लिए उच्च न्यायालय/हाई-कोर्ट में जूरी व्यवस्था
9. अपीलों के लिए उच्चतम न्यायालय में जूरी व्यवस्था
10. राष्ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली(व्यवस्था) (न्यायालयों में अभिलेखों/रिकार्ड में सुधार लाने के लिए)
11. केवल पुलिस व न्यायालय को धन उपलब्ध कराने के लिए 25 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति से अधिक की गैर-कृषि भूमि/जमीन पर बाजार मूल्य का 0.5 प्रतिशत सम्पत्ति-कर लागू करना
12. 100,000 और निचली अदालत की स्थापना/निर्माण
13. राज्य सरकार के किसी कर्मचारी को बर्खास्त करने या उसपर अर्थदण्ड/जुर्माना लगाने के लिए जूरी प्रणाली(सिस्टम) लागू करना
14. केन्द्र सरकार के किसी कर्मचारी को बर्खास्त करने या उसपर अर्थदण्ड/जुर्माना लगाने के लिए जूरी प्रणाली (सिस्टम) लागू करना
15. मुख्य राष्ट्रीय दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर को बदलने का नागरिकों को अधिकार प्रदान करना
16. मुख्य राज्य दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर को बदलने का नागरिकों को अधिकार प्रदान करना
17. मुख्य जिला दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर को बदलने का नागरिकों को अधिकार प्रदान करना
18. कनिष्ठ/जूनियर जिला दण्डाधिकारी की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
19. कनिष्ठ/जूनियर राज्य दण्डाधिकारी(प्रोजिक्यूटर) की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
20. राष्ट्रीय दण्डाधिकारी/नेशनल प्रोजिक्यूटर की भर्ती केवल वरियता आधार पर (कोई साक्षात्कार नहीं)
21. कक्षा VI से कानून की पढ़ाई
22. सभी वयस्कों को कानून की शिक्षा मुफ्त में देना
23. सभी सरकारी कर्मचारियों और उनके निकट संबंधियों, उनके ट्रस्टों/न्यासों, कम्पनियों की संपत्ति की घोषणा करना
24. सभी सरकारी कर्मचारियों और उनके निकट संबंधियों की निवासी होने की स्थिति और नागरिकता की स्थिति का खुलासा करना
25. अदालतों के सभी अभिलेख/रिकार्ड यथा-संभव, इंटरनेट पर रखे जाएंगे
26. सामान्य पत्राचार और नोटिसों के साथ-साथ सभी पक्षों/पार्टियों को उनके मुकद्दमें की स्थिति के बारे में जानकारी/सूचना सभी भाषाओं में ई-मेल व एस. एम. एस. के जरिए देना
27. हर सुनवाई के समय क्रमरहित/रैन्डम तरीके से चुने गए 20 नागरिकों को सुनवाई के दौरान उपस्थित रहना होगा ( नागरिक-समाज में न्यायालयों के बारे में जागरुकता बढ़ाने के लिए)
दूसरे शब्दों में, हमलोगों ने अपने न्यायालयों में सुधार लाने के लिए और “नागरिकों द्वारा की गई व्याख्या/अर्थ के मुताबिक कानून और संविधान के लिए” प्रशासन में लगभग 30-35 परिवर्तन/बदलाव का प्रस्ताव किया है।
(21.4) सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का अधिकार नागरिकों को देना |
इस प्रक्रिया की चर्चा मैं पहले कर चुका हूँ।
(21.5) 1,00,000 (एक लाख) और न्यायालयों / कोर्ट की स्थापना करना |
मैं नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.) के सदस्य के रूप में यह मांग और वायदा करता हूँ कि जिन व्यक्तियों के पास 25 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति से अधिक रिहायशी व व्यावसायिक जमीन हैं, उनपर जमीन के बाजार मूल्य/वैल्यू के लगभग 0.25 प्रतिशत का “कोर्ट के लिए सम्पत्ति कर” लगाया जाएगा और इसका उपयोग केवल और केवल न्यायालयों/कोर्ट के लिए ही किया जाएगा। इसके अलावा, जून,2007 से जून, 2008 के बीच धन/मुद्रा आपूर्ति में लगभग 700,000 करोड़ की वृद्धि हुई थी जो जून, 2007 में एम – 3(कुलमुद्रा/धन संख्या = देश में प्रचालन में सभी नोट,जमा धन-राशि और सभी सिक्कों का कुल जोड़ ) का 22 प्रतिशत था। हमलोग इस वार्षिक बढ़ोत्तरी को 70,000 करोड़ (अर्थात वर्तमान राशि के 10 प्रतिशत) पर सीमित रखने की मांग और वायदा करते हैं। और इस नए सृजित धन का उपयोग केवल सेना, पुलिस और न्यायालयों के लिए किया जाएगा। इस “न्यायालय के लिए सम्पत्ति कर” और नए एम – 3(कुल मुद्रा/धन संख्या) का उपयोग करके सरकार एक वर्ष के भीतर 1,00,000(एक लाख) और न्यायालयों की स्थापना कर सकेगी। इन नए स्थापित/बनाये हुए 1,00,000 न्यायालयों और उन सरकारी आदेशों जो सिविल और आपराधिक कानूनों में परिवर्तन लाएं, का उपयोग करके वर्तमान में लंबित 3 करोड़ मुकद्दमों को अगले 3 से 6 वर्षों के भीतर आसानी से सुलझाया जा सकता है।
(21.6) निचली अदालतों , हाई-कोर्ट और सुप्रीम-कोर्ट में निष्ठा / ईमानदारी की कमी की समस्या |
अदालतों की संख्या बढ़ने से करवाई में तेजी आएगी, लेकिन निम्नलिखित समस्याओं को दूर करने के लिए हमें अदालतों में संरचनात्मक परिवर्तनों की जरूरत है :-
1 भाई-भतीजावाद – वकील और आसिल(वकील के ग्राहक/मुवक्किल) जो न्यायाधीशों के रिश्तेदार होते हैं, वे एक के बाद एक मुकद्दमें जीतते जाते हैं।
2 जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत/मेल-जोल/सम्बन्ध
3 जज-अपराधी साँठ-गाँठ/मिली-भगत
4 जजों/न्यायाधीशों में भ्रष्टाचार
5 जजों/न्यायाधीशों की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद
अभी देखते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जजों ने संविधान को हड़प लिया है कि नहीं
- सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कार्यपालिका और विधायिका/`क़ानून बनाने वाली सभा` की सत्ता “जन हित(याचिका)” की आड़ में हड़प/ छीन ली है |
- संविधान ये कहता है कि राष्ट्रपति( पड़ें- मंत्रिमंडल ) सुप्रीम कोर्ट/हाई-कोर्ट के जजों की नियुति करेगा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश/जज की परामर्श/सलाह से और ये परामर्श/सलाह बाध्य नहीं माना गया था | लेकिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने इसे बाध्य बना दिया 1992 के एक फैसले से (न्यायपालिका की स्वतंत्र के बहाने),इस प्रकार संविधान का अतिक्रमण/तोड़ा और जजों कि नियुक्ति की सत्ता हड़प ली|
- सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जज अदलात और वकील-समूह को अपने रिश्तेदार और रिश्तेदारों के मित्रों से भर रही है | ये भाई-भातिजेवाद व्यव्यहार जग-जाहिर है |
- जजों के रिश्तेदार वकीलों को अनुकूल निर्णय/फैसला मिलता है,इस आरोप से भारत के अधिक्तार लोग सहमत हैं | ये उन विकीलों के लिए अवसर कम कर देता है जो जजों के रिश्तेदार नहीं हैं|
- न्यायपालिका / कोर्ट को , `ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल` के एक सर्वेक्षण में, भारत के लोगों ने दूसरा सबसे भ्रष्ट स्थान दिया है पुलिस के बाद | ये सर्वेक्षण भारत के 25,000 नागरिकों से अधिक में किया गया था |
- सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जजों ने जजों में भ्रष्टाचार के समाचार को दबा दिया है `न्यायालय की मानहानि `क़ानून का इस्तेमाल/प्रयोग कर के | `न्यायलय की मानहानी ` क़ानून का दुरुपयोग भाषण अधिकारों की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और ये भी संविधान को हड़पने का मामला है |
- एक उदहारण के लिए, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ,खरे ने एक सज़ा पाए हुए बच्चो के यौन शोषण (पीडोफाइल) को जमानत दे दी जो भारतीय दण्ड सहित (आई.पी.सी) और संविधान का उलंघन करती है | ये इसीलिए हुआ क्योंकि वो सजायाफ्ता मुजरिम पैसे वाला था |
और जजों के साथ ,प्रधानमन्त्री और मुख्यमंत्री भी रिश्वत इकठ्ठा करने वाले हैं | क्या ये रिश्वत जमा करना संवैधानिक है ?
(21.7) जूरी प्रणाली (सिस्टम) के बारे में |
हम ऊपर लिखे गए पांच में से चार समस्याओं के लिए जूरी प्रणाली और पांचवीं समस्या के समाधान/हल के लिए लिखित परीक्षाओं द्वारा नियुक्तियों का प्रस्ताव करते हैं। दुख की बात है कि भारत में अधिकांश मतदाता और शिक्षित लोग भी जूरी प्रणाली/सिस्टम की संकल्पना/कॉन्सेप्ट के बारे में कुछ भी नहीं जानते। ऐसा इसलिए है कि भारत के बुद्धिजीवी लोग जूरी प्रणाली (सिस्टम) के इतने घोर विरोधी हैं कि इन्होंने कभी भी जूरी प्रणाली(सिस्टम) के बारे में छात्रों और आम कार्यकर्ताओं को जानकारी ही नहीं दी।
21.7.1 जज प्रणाली(सिस्टम) और जूरी प्रणाली(सिस्टम) क्या हैं?
भारत में 110 करोड़ नागरिक हैं। यहां की अदालतों में हर वर्ष कम से कम 20 लाख से 50 लाख के बीच विवाद या आपराधिक मुकद्दमें दायर किए जाते हैं। यदि ये सभी विवाद भारत के नागरिकों द्वारा कम ही समय में नहीं सुलझाए गए और यदि अपराधियों को दण्ड/सजा नहीं मिली तो अपराधी और भी ज्यादा अपराध करेंगे | और तो और नागरिकगण सिविल मुकद्दमों में व्यक्तिगत हिंसा का सहारा लेने लगेंगे और इस तरह अराजकता की स्थिति आ जाएगी। और निरंतर अन्याय (को बढ़ावा देने) से नागरिकों के राष्ट्र के प्रति तथा दूसरे नागरिकों के प्रति भावनात्मक लगाव में कमी आएगी। ऐसी अराजकता से राष्ट्र कमजोर होगा और इसका परिणाम फिर से गुलामी के रूप में होगा। इसलिए, स्थायित्व के हिसाब/दृष्टि से यह नागरिक-समाज के लिए जरूरी हो जाता है कि वे इन विवादों और आपराधिक मुकद्दमों में फैसले दें और उन फैसलों को लागू करवाने के लिए बल का प्रयोग करें। नागरिकों के लिए यह संभव नहीं है कि वे इन सभी 20 लाख मुकद्दमों में से हर मुकद्दमें में व्यक्तिगत रूप से रूचि ले सके। एक नागरिक ज्यादा से ज्यादा प्रतिवर्ष 2 से 5 विवादों में रूचि ले सकता है। इसलिए नागरिक-समाज के पास इसके अलावा ज्यादा विकल्प नहीं है कि वे हर विवाद के लिए कुछ अलग-अलग व्यक्तियों को नियुक्त करें और अधिकांश मुकद्दमों में उनके निर्णयों/फैसलों को अंतिम मानें और कुछ मुकद्दमों में (अपील द्वारा) संशोधन करें। इसलिए किसी राष्ट्र द्वारा चलाई जाने वाली प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रक्रियाओं में से एक है – किसी विशेष विवाद पर फैसला देने के लिए व्यक्तियों का चयन। किस प्रकार व्यक्तियों का चयन किया जाता है, इसके आधार पर दो बड़ी प्रणालियां(सिस्टम) हैं –
1. जूरी प्रणाली(सिस्टम) – किसी विवाद को देखते हुए उसी जिले, राज्य अथवा राष्ट्र के सभी वयस्क नागरिकों की मतदाता सूची में से क्रमरहित/रैंडम तरीके से 10, 12 अथवा 15 नागरिकों का चयन किया जाता है जिन्हें जूरी/निर्णायक मण्डल का सदस्य कहा जाता है। ये जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य दलीलें सुनते हैं, साक्ष्यों का परीक्षण करते हैं और फैसले देते हैं । उदाहरण के लिए, भारत में वर्ष 1956 से पहले क्रमरहित/रैंडम तरीके से चुने गए 12 नागरिकों द्वारा कई मुकद्दमें सुलझाए गए थे।
2. जज प्रणाली(सिस्टम) – सरकार राष्ट्र की हर एक करोड़ जनता पर 200-2000 व्यक्तियों को जज बहाल/नियुक्त करती है जिनका कार्यकाल 20-35 वर्ष होता है। और ये निश्चित,कुछ सीमित संख्या में नियुक्त किए गए व्यक्ति(जज) ही विवादों को निपटाते हैं। उदाहरण – भारत में लगभग 13,000 जजों/न्यायाधीशों और लगभग 5000 ट्रायब्यूनल्स/न्यायाधिकरणों(किसी विशिष्ठ उद्वेश्य अथवा कार्य के लिए नियुक्त किया हुआ कोई न्यायालय/कोर्ट) द्वारा मुकद्दमें निपटाए जाते हैं।
अन्य प्रणालियों में इन दोनों का प्रयोग किया जाता है अर्थात क्रमरहित/रैंडमली चुने गए नागरिकों के साथ-साथ नियुक्त व्यक्ति, मुख्य रूप से जूरी प्रणाली(सिस्टम) और जज प्रणाली(सिस्टम) का मिला-जुला रूप है। जूरी का आकार, शैक्षणिक योग्यता,(जूरी के सदस्यों की ) छंटाई के नियम आदि अन्य कई बातें/कारक हैं जो एक जूरी प्रणाली(सिस्टम) को दूसरे जूरी प्रणाली(सिस्टम) से भिन्न/अलग बनाते हैं। लेकिन जूरी प्रणाली(सिस्टम) और जज प्रणाली(सिस्टम) के बीच मूलभूत/आधारभूत अन्तर इस प्रकार हैं –
जज प्रणाली(सिस्टम) | जूरी प्रणाली(सिस्टम) |
भारत में व्यक्तियों का एक छोटा समूह। मान लीजिए, 20,000 से 100,000 व्यक्ति भारत में सभी 20-25 लाख मुकद्दमों का फैसला/निर्णय करते हैं। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में, प्रत्येक मुकद्दमा 12-15 अलग-अलग उन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास जाता है जो जिले, राज्य और राष्ट्र से चुने गए होते हैं। 20-25 लाख मुकद्दमें 3 करोड़ नागरिकों द्वारा सुलझाए जाते हैं। |
अनेक मुकद्दमें एक ही व्यक्ति-समूह के पास चले जाते हैं। एक जज अपने पूरे सेवाकाल/कैरियर के दौरान लगभग 500 से 200,000 मामलों की सुनवाई करता है | | प्रत्येक मुकद्दमें के साथ जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य बदल जाते हैं। एक नागरिक कम से कम 5 वर्षों के लिए फिर से जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य नहीं बन सकता है। |
यदि किसी जिले में हर वर्ष 5000 मुकद्दमें/मामले आते हैं और मान लीजिए, 5 वर्षों में 25,000 मुकद्दमें आते हैं तो जज प्रणाली(सिस्टम) में लगभग 20-25 जजों/न्यायाधीशों द्वारा उन्हें निपटाया जाता है। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में, इन्हें 300,000 से 400,000 भिन्न-भिन्न नागरिकों द्वारा सुलझाया जाएगा। |
उपरी तौर पर, यह मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं भी लग सकता है – इससे क्या फर्क पड़ता है, चाहे मुकद्दमों का फैसला क्रमरहित ढ़ंग से चुने गए नागरिकों द्वारा किया जाए अथवा तयशुदा/निर्धारित जजों/न्यायाधीशों द्वारा?लेकिन यह बहुत ही छोटा दिखने वाला अन्तर राष्ट्र को सुदृढ़/मजबुत बनाने या कमजोर करने में एक बड़ी भूमिका अदा करता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य में वर्ष 2006-2007 में कुल आपराधिक जूरी सुनवाइयों की संख्या लगभग 6000 थी। इसलिए फैसले लगभग 6000 × 12 = 72,000 अलग-अलग नागरिकों द्वारा दिए गए थे। जज प्रणाली(सिस्टम) में केवल कुछ सौ जजों/न्यायाधीशों ने ये निर्णय दिए होते। यदि 25 वर्षों की अवधि का हिसाब लगाया जाए तो इसका अर्थ होगा – 6000 × 25= 150,000 जूरी सुनवाइयां जिनमें मुकद्दमों की सुनवाई 15,000 × 12 1800,000 नागरिकों द्वारा किया जाएगा जबकि जज प्रणाली(सिस्टम) में ये सुनवाइयां कुछ सौ या 1000-1500 जजों/न्यायाधीशों द्वारा की जाएंगी। संख्याओं में 1800-2000 गुणा की बड़ी बढ़ोत्तरी जूरी प्रणाली(सिस्टम) में साँठ-गाँठ/मिली-भगत , भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के अवसर बहुत ही कम कर देता है। जूरी-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत की संभावना जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत की तुलना में बहुत ही कम होती है क्योंकि जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होती है।
21.7.2 जज प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद अथवा परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद तेज़ी से कैसे बढ़ जाते हैं?
जज प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद समाप्त करने के लिए, किसी जज के रिश्तेदार को उस जज के कोर्ट में प्रैक्टिस/वकालत सम्बन्धी अभ्यास करने पर प्रतिबंध है। अब प्रमुख बुद्धिजीवी लोग जोर देते हैं कि हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि इस प्रतिबंध से हमारे न्यायालयों/कोर्ट में भाई-भतीजावाद की संभावना ही समाप्त हो जाती है। देखिए, इस प्रतिबंध से कोई अंतर नहीं पड़ता। आज तक जितने भी प्रख्यात/प्रमुख बुद्धिजीवियों से मैं मिला हूँ, वे सभी न्यायालयों/कोर्ट में परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद की समस्या पर चर्चा/वाद-विवाद करने तक के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं। और आज तक जूरी प्रणाली(सिस्टम) ही न्यायालयों में परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद का एकमात्र ज्ञात हल/समाधान है। यह परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद इतना बढ़ चुका है कि अपराधी और उद्योगपति केवल एकाध रिश्तेदार वकील (अपने लिए) रखते हैं और सभी पक्षपातपूर्ण फैसले अपने हक/पक्ष में लेते रहते हैं और आम आदमी तो न्यायालयों/कोर्ट में पिसता/प्रताड़ित ही होता रहता है। परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद ही वह महत्वपूर्ण कारण है कि क्यों सेज/एस ई जेड जैसे अधिनियम उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालयों में रद्द नहीं किए जा सके।
जूरी प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद और परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद (संरचनात्मक रूप से) असंभव है। यह लिखित परीक्षा के आधार पर भर्ती किए जाने के समान है जिसमें भाई-भतीजावाद से ज्यादा अंतर/फर्क नहीं पड़ता।
जज प्रणाली(सिस्टम) | जूरी प्रणाली(सिस्टम) |
एक जज का कार्यकाल 3-4 वर्षों का होता है। यह जजों/न्यायाधीशों और संगठित/व्यवस्थित अपराधियों के लिए सौदा करने के उद्देश्य से जजों/न्यायाधीशों के संबंधियों से संपर्क कायम करने के लिए लम्बा समय है। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में 12 जूरी(निर्णायक मण्डल) के सदस्य को 5 लाख से लेकर 100 करोड़ तक की जनसंख्या में से चुना जाता है। इसलिए, इन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास केवल 1 ही मुकद्दमा होता है। इसलिए 99 प्रतिशत मुकद्दमें केवल 5 से 15 दिनों में ही समाप्त हो जाते हैं। इसलिए पहले तो ऐसा होने की संभावना न के बराबर है कि कोई वकील इस दुनिया में मौजूद हो जो इन 12 जूरी/निर्णायक मण्डल केसदस्यों का रिश्तेदार हो अथवा इनमें से 6 अथवा यहां तक कि इनमें से किन्हीं दो का भी रिश्तेदार निकले। और उन्हें 15 दिनों के भीतर ही खोज निकालना इस कार्य को और अधिक कठिन बना देता है। |
भारत में औसतन हर जिले में 5000 मुकद्दमें आते हैं और उन्हें उस जिले के 50-100 जजों/न्यायाधीशों के पास भेजा जाता है। इसलिए, वकील लोग व्यक्तिगत रिश्तों का उपयोग करके इतने कम जजों/न्यायाधीशों से साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाने में आसानी से सफल हो जाते हैं। | यदि इन 5000 मुकद्दमों को 5000 बैचों/समूह जिनमें से हर बैच/समूह में 12 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य हों, द्वारा सुलझाया जाए तो 10 से भी कम बैचों/समूहों में ही साझे रिश्तेदार वकीलों वाले 2 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य होंगे। |
कई न्यायालय परिसरों में 2 या 2 से अधिक जज गठबंधन/कारटेल बना लेते हैं। जज `क`, जज `ख` के रिश्तेदार वकीलों का पक्ष लेता है और जज `ख`, जज `क` के रिश्तेदार वकीलों का पक्ष लेता है। इसे ही हम परस्पर(आपसी) भाई – भतीजावाद कह सकते हैं। | एक मात्र तरीका जिससे परस्पर(आपसी) भाई–भतीजावाद, जूरी-सिस्टम काम कर सकता है, वह है- जूरी `क` के 12 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य और जूरी `ख` के 12 अन्य जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेते हैं। जूरी `क` जूरी `ख` के रिश्तेदार वकीलों का पक्ष लेता है और जूरी `ख` उन वकीलों का पक्ष लेगा जिनके रिश्तेदार जूरी `क` में हैं। वकीलों के ऐसे जोड़े और जूरी-सदस्यों के जोड़े ढ़ूंढ़ना और 5 से 15 दिनों के भीतर सौदा कर पाना गणित के हिसाब से असंभव है। |
दूसरे शब्दों में , जहां जज प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद और परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद से भरा पड़ा है, वहीं जूरी प्रणाली(सिस्टम) भाई-भतीजावाद और परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद से अछुता/मुक्त है।
21.7.3 कैसे परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद के कारण जज प्रणाली(सिस्टम) में पेशेवर / कैरियर-अपराध बढ़ते हैं?
एक विशिष्ठ प्रकार के अपराध पर विचार कीजिए। एक सड़क छाप अपराधी (आम तौर पर जिसे भाई या दादा कहा जाता है) या कोई भी पेशेवर-अपराधी जो खुलेआम और निडर होकर छोटे दुकानदारों से उन्हें सुरक्षित छोड़ देने के बदले हर महीने पैसा वसूली करता है। अमेरिका/यूरोप में भी अधिक अपराध वाले स्थान मौजूद हैं, लेकिन कहीं भी कोई व्यक्ति दूकानदारों से खुलेआम पैसा वसूलते नहीं दिखता। भारत में पेशेवर-अपराधी के बेतहाशा होने का और पश्चिमी देशों में ऐसा बहुत कम दिखने का कारण है कि भारत में जज प्रणाली(सिस्टम) अपनाई जाती है जबकि पश्चिमी देशों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) अपनाई जाती है। जज प्रणाली(सिस्टम) भारत के न्यायालयों/कोर्ट को साँठ-गाँठ/मिली-भगत वाला बना देता है जबकि पश्चिमी अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) ने साँठ-गाँठ/मिली-भगत की स्थिति को बहुत ही कम कर दिया है।
आइए देखें कि कैसे जूरी प्रणाली(सिस्टम) पश्चिमी देशों के न्यायालयों में साँठ-गाँठ/मिली-भगत-वाद को कम करता है। 50-100 अपराधियों वाले एक अपराधी गुट/गैंग के एक मध्यम-स्तरीय कैरियर-अपराधी पर विचार कीजिए। वह 5-10 क्षेत्रों में अपराध-कार्य चला रहा है। अब अपने अपराध को जारी रखने के लिए उसे और उसके गैंग के सदस्यों को, अनेक विधायकों, सांसदों, पुलिस अधिकारियों, अन्य अधिकारियों, सरकारी वकीलों और जजों/न्यायाधीशों आदि को मासिक घूस देने की जरूरत पड़ती है और उसे वकीलों, भाड़े के गुंडे आदि को समय-समय पर भाड़े पर लेने के लिए भी पैसे की जरूरत पड़ती है। इन सभी कार्यों के लिए उन्हें हर महीने लाखों रूपए की बंधी-बंधायी लागत आती है। अब ऐसे कैरियर-अपराधियों को हमेशा ऐसे 5-10 शिकार नहीं मिल सकते जिससे उसकी सभी लागतों की भरपाई हो सके और हर महीने उसे लाभ मिल सके। इसलिए लगभग हमेशा ही पेशेवर-अपराधियों के गैंग को हर महीने सैकड़ों शिकार पर सताना पड़ता है। संक्षेप में, एक कैरियर-अपराधी और उसके गैंग के सदस्यों को हर महीने सैकड़ों अपराध करने पड़ते है। इतने अधिक अपराधों में से लगभग 20-30 अपराध के शिकार लोग न्यायालयों में शिकायत दर्ज कराने तक ही सीमित रहते हैं। इससे लगभग 300-400 न्यायिक मुकद्दमें हर साल बन जाते हैं । अब यहीं पर कैरियर-अपराधियों से निबटने में जज प्रणाली(सिस्टम) और जूरी प्रणाली(सिस्टम) का अन्तर सामने आता है।
जज प्रणाली(सिस्टम) में कैरियर-अपराधी | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में कैरियर-अपराधी |
जज प्रणाली(सिस्टम) में, मान लीजिए, किसी गैंग मालिक के खिलाफ 4-5 वर्षों में लगभग 1000 मुकद्दमें दर्ज हुए। ये सभी मुकद्दमें केवल 5-10 जजों/न्यायाधीशों के ही पास जाऐंगे। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में हर मुकद्दमा 12-15 अलग-अलग जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास जाता है जो जिला, राज्य और राष्ट्र से क्रमरहित/रैंडम तरीके से चुने गए होते हैं। इस प्रकार, ये 1000 मुकद्दमें, 12000 से 15,000 जिले/राज्य अथवा राष्ट्र में जाऐंगे। |
इस प्रकार गवाहों को हतोत्साहित करने अथवा तत्काल छूटकारे के लिए मुकद्दमें में विलम्ब/देरी करने के उद्देश्य से गैंग नेता को केवल 5-10 जजों/न्यायाधीशों से साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाना पड़ता है। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में लम्बा विलम्ब शायद ही कभी होता है और हरेक जूरी को केवल एक ही मुकद्दमा दिया जाता है। 11 बजे सुबह से लेकर 4 बजे शाम तक उसके पास इस एकमात्र मुकद्दमें की सुनवाई होती है और अधिकांश अगली तारीख अगले दिन की ही होती है। और इसमें गैंग मालिक को 12,000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाना पड़ेगा। इसलिए, 5 वर्षों में 1000 मुकद्दमों में रिहाई प्राप्त करने के लिए गैंग नेता को 12,000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करने की जरूरत पड़ेगी। |
यदि गैंग मालिक 5-10 जजों/न्यायाधीशों के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करने में किसी तरह कामयाब हो जाता है तो वह 99 प्रतिशत मुकद्दमों में रिहाई/विलम्ब कराने में सफल हो सकता है। | इसलिए, पांच वर्षों में 1000 मुकद्दमों में रिहाई के लिए गैंग मालिक को 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करने की जरूरत पड़ेगी। |
इस प्रकार, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत मुकद्दमों में भी रिहाई करवा पाना असंभव ही है। दूसरे शब्दों में, भारत के न्यायालयों/कोर्ट में बड़ी संख्या में मुकद्दमें कुछ ही लोगों (अर्थात जजों/न्यायाधीशों) द्वारा सुलझाए जाते हैं, इसलिए पेशेवर-अपराधियों के साँठ-गाँठ/मिली-भगत बन जाया करते हैं और वे आजादी से आपराधिक काम करते रहते हैं। जबकि पश्चिमी देश बहुत अधिक लोगों का उपयोग मुकद्दमों को सुलझाने में करते हैं जिससे काफी अधिक संख्या में मुकद्दमों में साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करना असंभव होने की हद तक कठिन हो जाता है। इसलिए, पश्चिमी देशों में पेशेवर-अपराध जैसे जबरन वसूली समाप्त हो गए हैं।
21.7.4 जज प्रणाली(सिस्टम) में जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत
इससे पहले का वर्णन जज-अपराधी साँठ-गाँठ/मिली-भगत के बारे में था। भारत में न्यायालय जज-वकील गठबंधनों से भरे पड़े हैं। जजों/न्यायाधीशों और संबंधी वकीलों के बीच का साँठ-गाँठ/मिली-भगत अब अपवाद के स्थान पर कानून ही बन गया है। लेकिन इससे हटकर भी कई जजों/न्यायाधीशों के साँठ-गाँठ/मिली-भगत वैसे वकीलों से भी रहते हैं जो उनके रिश्तेदार नहीं होते। यह जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत कैसे पनपता है? पश्चिमी देशों के न्यायालयों में किसी ने भी कभी जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत नहीं देखा है। इसके कारण संरचनात्मक ढ़ांचा है न कि संस्कृति।
जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत | कोई जूरी-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत नहीं |
मान लीजिए, 5 वरिष्ठ वकीलों के साथ 20 कनिष्ठ/जूनियर/छोटे वकील हैं जो उनके लिए काम करते हैं। मान लीजिए, ये लोग साथ मिलकर किसी जिले में लगभग 1000 मुकद्दमें 4 वर्षों की अवधि में लेते हैं। | मान लीजिए, 5 वरिष्ठ वकीलों के साथ 20 कनिष्ठ/जूनियर/छोटे वकील हैं जो उनके लिए काम करते हैं। मान लीजिए, ये लोग साथ मिलकर किसी जिले में लगभग 1000 मुकद्दमें 4 वर्षों की अवधि में लेते हैं। |
इनमें से अधिकांश मुकद्दमों के लिए उस जिले में लगभग 20 न्यायाधीश तैनात किए जाते हैं। | ये मुकद्दमें एक वर्ष में 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास जाते हैं। |
3-6 महीनों के भीतर, ये 5 वकील इन 10-20 न्यायाधिशों से साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेते हैं। | इनमें से 2 प्रतिशत के साथ भी ऐसे साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाने का समय नहीं होगा। |
जब किसी मुकद्दमें की सुनवाई के दौरान, कोई वकील किसी न्यायाधीश/जज के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेता है तो उस न्यायाधीश/जज का साथ उस वकील के लिए उन सभी मुकद्दमों के मामले में निश्चित ही उपयोगी साबित होगा जो मुकद्दमें उस न्यायाधीश/जज के सामने आएंगे। जबकि यदि कोई वकील किसी मुकद्दमें की सुनवाईयों के दौरान 12 जूरियों में से 7-8 के साथ भी किसी प्रकार साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम कर लेता है तो इन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ उसके ये साँठ-गाँठ/मिली-भगत उस वकील के अन्य सभी मुकद्दमों में बिलकुल भी काम नहीं आएंगे क्योंकि हरेक सुनवाई के बाद जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य बदल जाया करेंगे।
21.7.5 जजों की नियुक्ति-वर्त्तमान और 1992 से पूर्व
1992 से पहले प्रधानमंत्री(राष्ट्रपति द्वारा) के पास जजों की नियुक्ति में पर्याप्त अधिकार थे| और प्रधानमन्त्री सांसदों द्वारा ब्लैकमेल द्वारा उनके भी अधिकार/राय थी | लेकिन 1990 में पहली बार दलित/अन्य पिछड़ी जातियों के सांसदों की संख्या उच्च जाती के मंत्रियों से अधिक हो गयी | लेकिन विशिश्त्वर्ग/उच्चवर्ग और जज अधिकतर उच्च जाती के थे | दलित और अन्य पिछड़ी जातियों के सांसद ने प्रधानमन्त्री को मजबूर करना शुरू कर दिया कि वो दलित और अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों को जज नियुक्त कर दे | जज और उच्च जाती के उच्च/विशिष्ट वर्गीय लोगों को ये अच्छा नहीं लगा और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के जजों ने ये फैसला सुना दिया 1992 में, न्यायालयों/कोर्ट के स्वतंत्रता का बहाना लेकर और संविधान में शब्दों का गलत अर्थ जजों द्वारा निकाला गया (राष्ट्रपति को सुप्रीम-कोर्ट के जजों कि नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज के साथ `परामर्श करना है संविधान के अनुसार| ये `परामर्श` राष्ट्रपति पर बाध्य नहीं है लेकिन ये परामर्श को बाध्य लिया गया |),जिसने ये स्पष्ट कर दिया कि जज ही जजों को नियुक्त करेंगे |
जजों की नियुक्ति के लिए आज सुप्रीम कोर्ट के जज ही निर्णय लेते हैं |
प्रधानमन्त्री सुप्रीम कोर्ट के जजों को न माने की धमकी दे सकते हैं लेकिन क्योंकि प्रधानमन्त्री और वरिष्ट मंत्री भी उच्च जाती ,अमिर लोगों के एजेंट/प्रतिनिधि हैं, वो शायद ही उनमें सुप्रीम कोर्ट के जजों से मतभेद होता है |इसीलिए जजों अपने रिश्तेदार, अपनी जाती के लोग और जानपहचान के लोगों को ही नियुक्त करते हैं और जजों की नियुक्ति परस्पर(आपसी) भाई-भातिजेवाद और पक्षपात से पूर्ण है |
इस समस्या का ये ही समाधान है कि जूरी प्रणाली(सिस्टम) (भ्रष्ट को जनसाधारण द्वारा सज़ा दिए जाने का अधिकार) निचले अदालत, हाई-कोर्ट,और सुप्रीम कोर्ट में लागू किया जाये और चुने हुए और जनसाधारण द्वारा हटाये/बदले जाने वाले जजों का चुनाव हो |
21.7.6 कैसे जूरी प्रणाली(सिस्टम) में भ्रष्टाचार कम हो जाते हैं
जज प्रणाली(सिस्टम) में अधिकांश भ्रष्टाचार संगठित/संगठन वाले अपराधियों अथवा बड़े कॉरपोरेट लोगों के जरिए होता है जिनके किसी राज्य में सैंकडों मुकद्दमें होते हैं। ये मुकद्दमें निचली अदालतों में 100-300 न्यायाधीशों के पास जाते हैं। इसलिए, बड़े-बड़े अपराधी और कॉरपोरेट लोग 15-50 ऐसे वकीलों के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेते हैं जो या तो इन न्यायाधीशों के नजदीकी रिश्तेदार होते हैं या किसी अन्य प्रकार से इन न्यायाधीशों के नजदीकी होते हैं। अब, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में ये सैंकडों मुकद्दमें हजारों जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों के पास जाएंगे। उदाहरण – यदि किसी गैंग मालिक और उसके गैंग के सदस्यों के खिलाफ किसी राज्य में 100 मुकद्दमें हैं। ये मुकद्दमें 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों के पास जाएंगे। एक राष्ट्र-स्तरीय कॉरपोरेट के खिलाफ भारत भर में एक वर्ष में 1000 मुकद्दमें होंगे और उन्हें भारत भर में एक वर्ष में 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों से लड़ाई लड़नी होगी। कोई भी गैंग मालिक अथवा कम्पनी इतने अधिक नागरिकों को घूस देने में सफल नहीं हो सकती। इसलिए वे ऐसा करने का प्रयास छोड़ देंगे ।
भारतीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज 10-100 गुना अधिक भ्रष्ट हैं पुलिस सेवकों के बनिस्पत| केवल यातायात पुलिस वाले का भ्रष्टाचार जनसाधारण को दृश्य है, जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों का भ्रष्टाचार दृश्य नहीं है | और ऊपर से `न्यायालय की मानहानी` द्वारा जज किसी को भी बंदी बना लेते हैं जो उनपर आरोप लगाते हैं, आरोप सही भी हों तो भी |
इसके अलावा, जज प्रणाली(सिस्टम) में एक जज को घूस देने के बाद उस जज को अपना वायदा पूरा करना पड़ता है नहीं तो उसे फिर से घूस नहीं मिलेगा। जूरी प्रणाली(सिस्टम) में जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य प्रत्येक मुकद्दमें के साथ ही बदल जाते हैं और फिर उस जूरी-मंडल का कोई सदस्य अगले कई वर्षों तक जूरी में वापस नहीं आ सकता। इसलिए घूस देने वाले के लिए यह निश्चित नहीं होता कि जूरी-मंडल का वह सदस्य अपना वायदा पूरा करेगा और अधिकांश बार, अपराधियों के खिलाफ घृणा होने के कारण, जूरी-मंडल का सदस्य घूस ले लेने के बावजूद भी किसी व्यक्ति/अपराधी को सजा दे ही देगा। घूस लेने के बाद भी उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं होता।
21.7.7 कैसे जूरी प्रणाली(सिस्टम) में पुलिस और प्रशासन में भ्रष्टाचार कम हो जाता है?
अधिकांश पुलिसवाले और अधिकारी वर्षों से सेवा में होने के कारण जजों/न्यायाधीशों के संपर्क में आ जाते हैं। लगभग हर पुलिसवाला और अधिकारी यह जानता है कि किसी विशेष जज की अदालत में उसके खिलाफ कोई मुकद्दमा होने पर उस जज के किस रिश्तेदार वकील से संपर्क करना होगा। और उनके वर्षों के साँठ-गाँठ/मिली-भगत और संबंध होते हैं। वह रिश्तेदार वकील पुलिसवालों और जजों/न्यायाधीशों से मिलने वाली उपकार/फायदों के बदले उपकार/फायदा देने का व्यापार करता है। और इसलिए पुलिसवाले और अधिकारी अपने उपर किए गए मुकद्दमें से आसानी से बच निकलते हैं। फिर भी, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में उन्हें उन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के खिलाफ लड़ना होता है जो भ्रष्ट पुलिसवालों और अधिकारियों से नाराज रहते/होते हैं। और उनका इन हजारों जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ कोई साँठ-गाँठ/मिली-भगत भी नहीं होता। इसलिए, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में इस बात की संभावना/अवसर अधिक होते हैं कि भ्रष्ट पुलिसवालों और अधिकारियों को सजा मिलेगी। यही कारण है कि जूरी प्रणाली(सिस्टम) में पुलिस, राजस्व, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसे अन्य विभागों में भ्रष्टाचार कम होते हैं।
21.7.8 विश्व भर के जूरी प्रणाली(सिस्टम) पर एक नजर
ऐसे लगभग 17 देश हैं जहां जूरी प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग किया जाता है – कनाडा, अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, डेनमार्क, नार्वे, स्वीडन, फिनलैण्ड, जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, हांगकांग, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड। दो अन्य देश भी इस सूची में जोड़े गए हैं – रूस के लगभग 25 प्रतिशत जिलों में अब जूरी प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग किया जाने लगा है और जापान वर्ष 2009 से जूरी प्रणाली(सिस्टम) प्रारंभ कर चुका है। और लगभग 90 देशों में जज प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग किया जाता है। जज प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करने वाले हर एक देश के न्यायालय भ्रष्ट हैं, पुलिसवाले भ्रष्ट हैं और राजव्यवस्था भी भ्रष्ट है [ सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, ताईवान और इजराइल ऐसे 4 अपवाद वाले देश हैं जहां भ्रष्टाचार कुछ कम है(अन्य स्थानीय कारणों के वजह से ) लेकिन जूरी प्रणाली(सिस्टम) वाले 15 देशों से बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार है] । रूस ,चीन और जापान को भी अपने यहां की अदालतों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की समस्या के कारण जूरी प्रणाली(सिस्टम) लागू करना पड़ा था। और दक्षिण कोरिया ने भी अपैल, 2008 में ऐसा ही किया। दूसरे शब्दों में, यदि कोई भी ऐसी चीज है जो शत-प्रतिशत आपसी-संबंध दर्शाती है तो वह यह है कि जूरी प्रणाली(सिस्टम) में हमेशा भ्रष्टाचार में कमी आती जाती है और जज प्रणाली(सिस्टम) में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद हमेशा ही बढ़ता रहता है।
21.7.9 जूरी प्रणाली(सिस्टम) पर ऐतिहासिक दृष्टिकोण से एक नजर
रोम में मजिस्ट्रेटों का चयन हुआ था और वहां अत्यधिक अपराध के कारण जूरी प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग शुरू हुआ जिससे पड़ोस के देशों की तुलना में वहां बहुत ही कम भाई–भतीजावाद और कम भष्टाचार वाला शासन कायम हुआ। यही कारण था कि रोम अन्य देशों की तुलना में ज्यादा मजबुत/सुदृढ़ हो गया। लेकिन रोम का पतन हो गया जिसका सबसे प्रमुख कारण यह था कि जनसंख्या के एक बहुत बड़े हिस्से (गुलामों) को वोट/मत देने का अधिकार नहीं था। इसके बाद हरेक शासन में राजा या राजा द्वारा नियुक्त किए गए लॉर्ड के द्वारा सजा सुनाई जाती थी। वर्ष 1200 में, इंग्लैण्ड पहला राष्ट्र बना जिसने इस व्यवस्था को उलट दिया – और मैग्ना कार्टा में यह घोषणा की कि राजा के ऐजेन्ट अब आरोप ही लगाएंगे और नागरिक (जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य) ही दोषी होने का निर्णय/फैसला करेंगे और सजा सुनाएंगे। यह एक ऐतिहासिक बदलाव था, एक ऐसा बदलाव जिससे शासकों/राजाओं और प्रजा के बीच के संबंधों में पूरी तरह से बदलाव आ गया। अब राजा/शासक के पास बन्दी बनाने अथवा यहां तक कि अर्थदण्ड/जुर्माना लगाने का भी अधिकार नहीं रह गया। इसी जूरी प्रणाली(सिस्टम) का ही यह परिणाम हुआ कि अब कारीगर/शिल्पकार और व्यापारी अपने आप को लॉर्डां के मनमाने शासन से अपना बचाव कर पाए और प्रगति होनी शुरू हो गई। केवल इसी कारण/बदलाव से इंग्लैण्ड में कारीगर/शिल्पकार सम्पन्न हो गए और उनमें से कुछ बाद में चलकर उद्योगपति बन बैठे। इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति इसी जूरी प्रणाली(सिस्टम) के कारण ही आई – जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य ने कारीगर/शिल्पकार, व्यापारियों और उद्योगपतियों को लॉर्डों और राजाओं के मनमाने जुर्माने से बचाया और इस प्रकार जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य ने इन्हें धनवान बनने के लिए योग्य बनाया । तथाकथित पुनर्जागरण की कहीं कोई भूमिका नहीं थी। इंग्लैण्ड ने जो प्रगति/तरक्की की, यदि उसके लिए पुनर्जागरण जिम्मेवार था तो बताएं कि ऐसी प्रगति इटली ने क्यों नहीं की जहां कि पुनर्जागरण सबसे पहले आया? बुद्धिजीवियों ने यह बताने के दौरान कि यूरोप ने सारी दुनियां पर कैसे कब्जा कर लिया, जानबुझकर जूरी प्रणाली(सिस्टम) की भूमिका को दबा दिया है क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि छात्र समुदाय जूरी प्रणाली(सिस्टम) के बारे में जानें ताकि ऐसा न हो कि वे इस प्रणाली(सिस्टम) की मांग ही न करने लगें।
21.7.10 जूरी प्रणाली(सिस्टम) की लागत
जूरी प्रणाली(सिस्टम) थोड़ी महँगी जरुर है जुज प्रणाली(सिस्टम) के बनिस्पत लेकिन भाई-बतिजेवाद और भ्रष्टाचार में कमी के वजह से राष्ट्र को “लगत” काफी कम है जज प्रणाली(सिस्टम) के मुकाबले | इसीलिए जूरी प्रणाली(सिस्टम) महँगी दवाई है लेकिन जज प्रणाली(सिस्टम) सस्ता जहर है |
21.7.11 सारांश (छोटे में बात )
संक्षेप में, जूरी प्रणाली(सिस्टम) उन सभी 4 समस्याओं का समाधान कर देता है जिन समस्याओं से भारत की वर्तमान न्यायालय व्यवस्था जुझ रही है –
1 यह भाई-भतीजावाद की समस्या का पूरी तरह समाधान कर देता है
2 यह जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत की समस्या का पूरी तरह समाधान कर देता है
3 यह जज- अपराधी साँठ-गाँठ/मिली-भगत की समस्या का पूरी तरह समाधान कर देता है
4 यह भ्रष्टाचार की समस्या पर सख्त पाबंदी लगा देता है
(21.8) जूरी प्रणाली (सिस्टम) और सूचना-संबंधी कारक |
जूरी-विरोधी-जज-समर्थक लोगों द्वारा एक आपत्ति यह जताई जाती है कि जूरी-मंडल को कानून की जानकारी कम होती है। यह सूचना सही नहीं है – जूरी-मंडल/जूरर्स और जज दोनों को ही न्याय, सही/गलत आदि की मूलभूत सिद्धांतों/धारणा की पूरी जानकारी होती है। एक और केवल एक अंतर यह है कि जजों को (कानून की) धाराओं की संख्या और सजा-अवधि की सही-सही जानकारी ज्यादा होती है। उदाहरण – जज और जूरी-मंडल/जूरर्स दोनों ही यह जानते हैं कि हिंसा अपराध है, पैसे के लिए की गई हत्या, उत्तेजना और गुस्से के कारण हुई अनायास/आचानक हिंसा से ज्यादा घृणित/नृशंस होती है। लेकिन जूरी-मंडल/जूरर्स को शायद विशिष्ठ ब्यौरे – जैसे कि यह अपराध धारा 302 के तहत आएगा और ऐसे किसी अपराध में अधिकतम 5 साल, या 14 साल अथवा 6 महीने या ऐसी ही किसी अवधि की सजा होती है – के बारे में पता नहीं भी हो सकता है। लेकिन ऐसे विशिष्ठ ब्यौरों को सीखकर/जानकर उपयोग में लाना आसान होता है।
जज-समर्थक-जूरी-विरोधी लोग अन्य बिन्दुओं – जैसे जज धीरे-धीरे वकीलों से बहुत मजबूत साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेते हैं और धनवान बन जाते हैं और रिश्तेदार वकीलों के जरिए घूस भी लेते हैं – का जिक्र/उल्लेख तक नहीं करते।
(21.9) सभी राजनैतिक दलों, बुद्धिजीवियों की जूरी प्रणाली (सिस्टम) पर (राय / विचार) |
हम यह चाहते हैं कि भारत के सभी नागरिक इस बात पर ध्यान दें कि सभी राजनैतिक दलों के वर्तमान सांसदों ने और भारत के सभी बुद्धिजीवियों ने जूरी प्रणाली(सिस्टम) का विरोध किया है और जोर दिया है कि केवल जज ही निर्णय/फैसले सुनाने का काम करेंगे और इस तरह यह सुनिश्चित किया है कि न्यायालयों में भाई-भतीजावाद जारी रहेगा। हम चाहते हैं कि भारत के सभी नागरिक और 80 जी विरोधी कार्यकर्ता ध्यान दें कि हमलोग एकमात्र पार्टी/दल हैं जो जजों/न्यायाधीशों के भाई-भतीजावाद पर रोक लगाने में रूचि रखते हैं। अन्य दलों के नेतगण न्यायालयों में भाई-भतीजावाद की इस समस्या का अपने चुनाव घोषणापत्रों में चर्चा/जिक्र तक करने का कष्ट उठाना नहीं चाहते।
यह समझना कठिन नहीं है कि क्यों दलों के नेता और बुद्धिजीवी लोग जज प्रणाली(सिस्टम)/व्यवस्था का समर्थन और जूरी प्रणाली(सिस्टम) का विरोध करते हैं। कई बुद्धिजीवियों के रिश्तेदार जज होते हैं और इसलिए वे सभी बुद्धिजीवी जज प्रणाली(सिस्टम) का समर्थन करते हैं। इसके अलावा , विशिष्ट/ऊंचे लोग भी केन्द्रीयकृत जज प्रणाली(सिस्टम) चाहते हैं और विकेन्द्रीकृत जूरी प्रणाली(सिस्टम) नहीं चाहते। इस समय भारत में 13000 जज हैं और वे हर वर्ष लगभग 13,00,000 मुकद्दमें सुलझाते हैं। अब मान लीजिए, विशिष्ट/ऊंचे वर्ग का कोई व्यक्ति किसी जिले अथवा राज्य में काम/व्यवसाय करता है। मान लीजिए, उसके खिलाफ हर साल 20 मुकद्दमें दर्ज होते हैं अथवा 30 वर्षों की अवधि में 600 मुकद्दमें दर्ज होते हैं। अब कानून की परवाह न करने वाले इस विशिष्ट/ऊंचे वर्ग के व्यक्ति को इन 600 मुकद्दमों से निबटने के लिए केवल 10-20 जजों को पटाना/तोड़ना होता है। यदि जूरी प्रणाली(सिस्टम) लागू होती है तो उसे 7200 जूरी सदस्यों को पटाना/तोड़ना होगा जो लगभग असंभव काम है। दूसरे शब्दों में , जूरी प्रणाली(सिस्टम)/व्यवस्था में कानून की परवाह न करने वाले विशिष्ट व्यक्ति का जीवन ज्यादा कठिन/दुखदायी हो जाएगा। बुद्धिजीवी लोग इन विशिष्ट /उंचे लोगों के ऐजेंट होते हैं और इसीलिए वे जज प्रणाली(सिस्टम) का समर्थन करते हैं और जूरी प्रणाली(सिस्टम) का विरोध करते हैं।
(21.10) नानावटी मामला |
अंग्रेजों ने काफी पहले ही यह महसूस कर लिया था कि उनके अपने ही कलक्टर और जज हद से ज्यादा भ्रष्ट हैं और यदि उनके अधिकारों को कम नहीं किया गया तो जनता इस हद तक प्रताड़ित होगी/कुचली जाएगी कि वह विद्रोह कर देगी। यही कारण था कि 1870 के दशक में अंग्रेजों ने भारत में जूरी प्रणाली(सिस्टम)/व्यवस्था लागू की। लेकिन वर्ष 1956 में जवाहरलाल नेहरू और उच्चतम न्यायालय/सुप्रीम-कोर्ट के तत्कालीन जजों ने नानावटी मामले/मुकद्दमे को कारण बताकर जूरी प्रणाली(सिस्टम) को ही समाप्त कर दिया। यह बहुत ही बड़ी नादानी/गलती थी।
नानावटी ने आहूजा नाम के एक व्यक्ति को जान से मार दिया था। जूरी-मंडल/जूरर्स ने एक तथ्य के रूप में इसे स्वीकार किया था। नानावटी नौसेना का एक अधिकारी था। और नागरिकों में सैनिक अधिकारियों के लिए बहुत अधिक सम्मान था। यह सम्मान तब दोगुना हो गया जब नागरिकों ने देखा कि एक धनवान परिवार का यह धनी व्यक्ति उच्चवर्गीय जिन्दगी को त्यागकर सेना की कठिन जिन्दगी स्वीकार कर रहा है। और आहूजा एक माना हुआ व्याभिचारी/परस्त्रीगामी था। और उस समय जब पिता का निर्धारण करने के लिए पितृत्व जांच (पैटरनिटी टेस्ट) मौजूद नही हुआ करता था तो अवैध संबंध बनाने को हत्या जैसा ही घृणित अपराध माना जाता था। जूरी-मंडल के सदस्य दुविदा/सोच में पड़े हुए थे कि यदि वे नानावटी को दोषी बता देते हैं तो जज उन्हें मृत्युदंड देंगे (और दूसरी सुनवाई में बिलकुल ऐसा ही हुआ था)। यदि जूरी-मंडल/जूरर्स के पास सजा का निर्धारण करने का अधिकार होता तो जूरी-मंडल/जूरर्स अवश्य ही कुछेक साल की कैद जैसी कोई सजा दे देते। लेकिन जूरी-मंडल/जूरर्स के पास केवल एक ही अधिकार था – उसे दोषी करार देना जिसका अभिप्राय/परिणाम था, उसकी मौत अथवा उसे निर्दोष करार देना। नानावटी का अपराध पैसे के लिए किया गया अपराध नहीं था और न ही नानावटी कोई पेशेवर अपराधी था और जूरी-मंडल के सदस्यों का यकीन था कि क्रोध/गुस्से की उत्तेजना में किए गए उसके अपराध के लिए वह मौत जितनी बड़ी सजा का हकदार नहीं था। इसलिए, जूरी-मंडल/जूरर्स ने उसकी जिन्दगी बचाने के लिए सही निर्णय लिया- “कोई सजा नहीं” का गलत फैसला, क्योंकि उन्हें उसे कुछेक साल की कैद की सजा देने का अधिकार ही नहीं था और यह उनकी बुद्धिमानी/समझ की गलती नहीं थी। यही कारण है कि उस व्यवस्था/प्रणाली(सिस्टम) जिसका मैं प्रस्ताव कर रहा हूँ, उसमें जूरी-मंडल/जूरर्स सजा का भी निर्णय करते हैं ताकि जूरी को अपनी अंतरात्मा द्वारा “दोषी नहीं” का फैसला देने पर मजबूर न होना पड़े – तब, जब कोई व्यक्ति दोषी तो हो पर इतना भी दोषी न हो कि उसे सबसे बड़ी/मृत्युदण्ड की सजा मिल जाए जो जज उसे दे सकते हैं। इसलिए नानावटी मामला हमें यह दिखाता है कि जूरी-मंडल/जूरर्स ने एक बहुत ही उचित फैसला लिया और इसमें जिस बात की जरूरत है वह है- जूरी-मंडल/जूरर्स के अधिकार बढ़ाना और जजों के बदले उन्हें ही सजा का भी निर्णय करने का अधिकार देना। इसके बावजूद, नेहरू ने (अपनी सामन्तवादी मानसिकता के कारण) और जजों ने “नानावटी सुनवाई” को एक कारण बताते हुए बिना किसी वाद-विवाद के भारत में जूरी प्रणाली(सिस्टम) को रद्द कर दिया।
नेहरू ने भारत में जूरी प्रणाली(सिस्टम) को रद्द/समाप्त करने के लिए नानावटी मुकद्दमें को बहाना बनाया और सभी कांग्रेसी सांसदों और कम्युनिस्ट पार्टियों आदि ने इसका समर्थन करते हुए उनका साथ दिया। नेहरू ने यह निर्णय उन भूस्वामियों की सहायता करने के लिए लिया था जो भूमिहीनों को पीटने के लिए अपराधियों का अपयोग किया करते थे। जूरी प्रणाली(सिस्टम) के कारण, अपराधियों को जेल की सजा मिलने लगी थी और और अब भूस्वामियों के लिए अपराधियों से भूमिहीनों को पीटने के लिए कह पाना कठिन हो रहा था। इसलिए नेहरू ने भारत से जूरी प्रणाली(सिस्टम) को ही रद्द कर दिया ताकि भूस्वामी लोग भूमिहीनों को पीट सकें और भूमि सुधारों को रोक सकें।
(21.11) भारत की निचली अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) लाने के लिए सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट |
नागरिकों को निम्नलिखित सरकारी अध्यादेश पर प्रधानमंत्री से हस्ताक्षर करवाना पड़ेगा। नागरिकों को चाहिए कि वे सबसे पहला काम यह करें कि नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम.आर.सी.एम.) की दूसरी मांग में वर्णित सरकारी आदेश पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रधानमंत्री को बाध्य कर दें और तब उस सरकारी आदेश का प्रयोग निम्नलिखित अध्यादेश जारी करने/कराने में करें –
सरकारी अध्यादेश : भारत की निचली अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम)
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निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया |
प्रक्रिया/अनुदेश |
सैक्शन – 1 : जूरी प्रशासक की नियुक्ति और उन्हें बदलना/हटाना | ||
1 |
मुख्यमंत्री; जिला कलेक्टर |
इस कानून के पारित/पास किए जाने के 2 दिनों के भीतर, सभी मुख्यमंत्री अपने-अपने पूरे राज्य के लिए एक रजिस्ट्रार की नियुक्ति करेंगे और हर जिले के लिए एक जूरी प्रशासक की भी नियुक्ति करेंगे कोई भी भारत का नागरिक जो 30 साल या अधिक का हो, जिला कलेक्टर के दफ्तर में जा कर, सांसद के जितना शुल्क जमा कर के अपने को जूरी प्रशाशक के लिए प्रत्याशी दर्ज करा सकता है | |
2 |
तलाटी, तलाटी का क्लर्क |
किसी जिले में रहने वाला कोई नागरिक अपना पहचान-पत्र प्रस्तुत करके अपने जिले में जूरी प्रशासक के पद के लिए (ज्यादा से ज्यादा) पांच उम्मीदवारों के क्रमांक नंबर बताएगा जिन्हें वो अनुमोदन/स्वीकृति करता है । क्लर्क उनके अनुमोदनों को सिस्टम/कंप्यूटर में डाल देगा और उस नागरिक को पावती/रसीद दे देगा। नागरिक अपनी पसंदों को किसी भी दिन बदल सकता है। क्लर्क तीन रूपए का शुल्क लेगा। |
3 |
मुख्यमंत्री |
यदि किसी उम्मीदवार को सबसे अधिक नागरिक-मतदाताओं द्वारा और सभी नागरिक-मतदाताओं के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है तो मुख्यमंत्री उसे दो ही दिनों के भीतर उस जिले के नए जूरी प्रशासक के रूप में नियुक्त कर देंगे। यदि किसी उम्मीदवार को सभी नागरिक-मतदाताओं के 25 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है और उसके अनुमोदनों की गिनती वर्तमान जूरी प्रशासक की गिनती से 2 प्रतिशत अधिक हो तो मुख्यमंत्री उसे दो ही दिनों के भीतर नए जूरी प्रशासक के रूप में नियुक्त कर देंगे। |
4 |
मुख्यमंत्री |
उस राज्य में सभी नागरिक-मतदाताओं के 51 प्रतिशत से ज्यादा मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से, मुख्यमंत्री क्लॉज/खण्ड 2 और क्लॉज/खण्ड 3 को रद्द कर सकते हैं और पांच वर्षों के लिए अपनी ओर से जूरी प्रशासक नियुक्त कर सकते हैं। |
5 |
प्रधानमंत्री |
भारत के सभी नागरिक-मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से, प्रधानमंत्री क्लॉज/खण्ड 2, क्लॉज/खण्ड 3 और ऊपर लिखित क्लॉज/खण्ड 4 को पूरे राज्य के लिए या कुछ जिलों के लिए रद्द कर सकते हैं और पांच वर्षों के लिए अपनी ओर से जूरी प्रशासक नियुक्त कर सकते हैं। |
सैक्शन – 2 : महा-जूरीमंडल का निर्माण/गठन | ||
6 |
जूरी प्रशासक |
मतदाता-सूची का उपयोग करके, जूरी प्रशासक किसी आम बैठक में, क्रमरहित तरीके से / रैंडमली उस जिले की मतदाता-सूची में से 40 नागरिकों का चयन महा-जूरीमंडल के सदस्य के रूप में करेगा, जिसमें से वह साक्षात्कार के बाद किन्हीं 10 नागरिकों को उस सूची से हटा देगा और शेष 30 लोग/नागरिक महा-जूरीमंडल के सदस्य होंगे। यदि जूरीमंडल की नियुक्ति मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री द्वारा क्लॉज/खण्ड 4 अथवा क्लॉज/खण्ड 5 के तहत की गई है तो वे 60 नागरिकों तक को चुन सकते हैं और उनमें से तीस तक को हटाकर महा-जूरीमंडल बना सकते हैं । (स्पष्टीकरण-ये पूर्व चयनित महा-जूरी के लिए नागरिकों की संख्या बढाने का आशय मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री, जो राज्य और राष्ट्र के प्रतिनिधि हैं, के अधिकार बढ़ाना है स्थानीय लोगों के बनिस्पत) |
7 |
जूरी प्रशासक |
महा-जूरीमंडल के पहले समूह(सेट) में से, जूरी प्रशासक हर 10 दिनों में महा-जूरीमंडल के किन्हीं 10 सदस्यों को सेवानिवृत्ति दे देगा/रिटायर कर देगा और क्रमरहित तरीके से/रैंडमली उस जिले की मतदाता-सूची में से 10 नागरिकों का चयन कर लेगा। |
8 |
जूरी प्रशासक |
जूरी प्रशासक किसी यांत्रिक उपकरण का प्रयोग नहीं करेगा किसी संख्या को क्रमरहित तरीके से/रैण्डमली चुनने के लिए। वह मुख्यमंत्री द्वारा विस्तार से बताए गए तरीके से प्रक्रिया का प्रयोग करेगा। यदि मुख्यमंत्री ने किसी विशिष्ठ/खास प्रक्रिया के बारे में नहीं बताया तो वह निम्नलिखित तरीके से चयन करेगा। मान लीजिए, जूरी प्रशासक को 1 और चार अंकों वाली किसी संख्या `क ख ग घ“ के बीच की कोई संख्या चुननी है। तब जूरी प्रशासक को हर अंक के लिए चार दौर/राउन्ड में डायस/गोटी/पांसा फेंकनी होगी। किसी राउन्ड में यदि अंक, 0-5 के बीच की संख्या से चुना जाना है तो वह केवल एक ही डायस का प्रयोग करेगा और यदि अंक, 0-9 के बीच की संख्या से चुना जाना है तो वह दो डायसों का प्रयोग करेगा। चुनी गई संख्या उस संख्या से 1 कम होगी जो एक अकेले डायस के फेंके जाने पर आएगी और दो डायसों के फेंके जाने की स्थिति में यह 2 कम होगी। यदि डायसों/गोटियों के फेंके जाने से आयी संख्या उसके जरूरत की सबसे बड़ी संख्या से बड़ी है तो वह डायस को दोबारा/फिर से फेंकेगा— उदाहरण – मान लीजिए, जूरी प्रशासक को किसी किताब में से एक पृष्ठ/पेज का चुनाव करना है जिस किताब में 3693 पृष्ठ हैं। वह जूरी प्रशासक चार राउन्ड चलेगा। पहले दौर/राउन्ड में वह एक ही पांसा का प्रयोग करेगा क्योंकि उसे 0-3 के बीच की एक संख्या का चयन करना है। यदि पांसा 5 या 6 दर्शाता है तो वह पांसा फिर से/ दोबारा फेंकेगा। यदि पांसा 3 दर्शाता है तो चुनी गई संख्या 3-1 = 2 होगी और वह जूरी प्रशासक दूसरे दौर में चला जाएगा। दूसरे दौर में उसे 0-6 के बीच की एक संख्या चुनने की जरूरत होगी। इसलिए वह दो पांसे फेंकेगा। यदि उनका योग 8 से अधिक हो जाता है तो वह दोबारा डायसों/पांसों को फेंकेगा। यदि योग/ जोड़ मान लीजिए, 6 आता है तो चुनी गई दूसरी संख्या 6-2 = 4 होगी। इसी प्रकार मान लीजिए, चार दौरों/राउन्ड्स में पांसा 3, 5, 10 और 2 दर्शाता है तो जूरी प्रशासक (3-1), (5-2), (10-2) और (2-1) अर्थात पृष्ठ संख्या 2381 चुनेगा। जूरी प्रशासक को चाहिए कि वह अलग-अलग नागरिकों को पांसा फेंकने के लिए दे। मान लीजिए, मतदाता-सूची में ख किताबें हैं, और सबसे बड़ी किताब में पृष्ठों/पेजों की संख्या `प` है और सभी पृष्ठों में प्रविष्ठियों की संख्या `त` है तो उपर उल्लिखित तरीके या मुख्यमंत्री द्वारा बताए गए तरीके का प्रयोग करके जूरी प्रशासक 1-ख, 1-प और 1-त के बीच की तीन संख्याओं को क्रमरहित/रैंडम तरीके से चुनेगा। अब मान लीजिए, चुनी गई किताब में उतने अधिक पृष्ठ नहीं हैं अथवा चुने गए पृष्ठ में बहुत ही कम प्रविष्टियां हैं। तो वह 1-ख, 1-प और 1-त के बीच एक संख्या फिर से चुनेगा। |
9 |
जूरी प्रशासक |
महा–जूरीमंडल प्रत्येक शनिवार या रविवार को मिला करेंगे/बैठक करेंगे। यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य अनुमोदन/स्वीकृति करें तो वे अन्य दिनों में भी मिल सकते हैं। यह संख्या “15 से ज्यादा” उस स्थिति में भी होनी चाहिए जब महा-जूरीमंडल के 30 से भी कम सदस्य मौजूद हों। यदि बैठक होती है तो यह 11 बजे सुबह अवश्य शुरू हो जानी चाहिए और कम से कम 5 बजे शाम तक चलनी चाहिए। महा-जूरीमंडल के सदस्य जिस दिन बैठक में उपस्थति रहेंगे, उस दिन उन्हें 200 रूपए प्रति दिन की दर से वेतन मिलेगा। महा-जूरीमंडल का एक सदस्य एक महीने के अपने कार्यकाल में अधिकतम 2000 रूपए वेतन पा सकता है। जूरी प्रशासक महा-जूरीमंडल के किसी सदस्य के कार्यकाल/अवधि पूरी कर लेने के 2 महीने के बाद उसे चेक जारी करेगा(स्पष्टीकरण-आंकने के लिए समय देने के लिए इतना समय की जरुरत है) । यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य जिले से बाहर जाता है तो उसे वहां रहने का हर दिन 400 रूपए की दर से पैसा मिलेगा और यदि वह राज्य से बाहर जाता है तो उसे वहां ठहरने के 800 रूपए प्रतिदिन के हिसाब से मिलेगा। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपने घर और कोर्ट/न्यायालय के बीच की दूरी का 5 रूपए प्रति किलोमीटर की दर से पैसा मिलेगा। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मुद्रास्फीति/महंगाई की दर के अनुसार क्षतिपूर्ति की रकम में परिवर्तन कर सकते हैं। सभी रकम इस कानून में जनवरी, 2008 में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दिए गए `थोक मूल्य सूचकांक` के अनुसार हैं। और जूरी प्रशासक नवीनतम थोक मूल्य सूचकांक का प्रयोग करके प्रत्येक छह महीनों में धनराशि को बदल सकता है। |
10 |
जूरी प्रशासक |
यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य किसी बैठक से अनुपस्थित रहता है तो उसे उस दिन का 100 रूपया नहीं मिलेगा और उसे अपनी भुगतान की जाने वाली राशि से तिगुनी राशि की हानि भी हो सकती है। जो व्यक्ति 30 दिनों के बाद महा-जूरीमंडल के सदस्य होंगे, वे ही अर्थदण्ड/जुर्माने के संबंध में निर्णय लेंगे। |
11 |
जूरी प्रशासक |
जूरी प्रशासक बैठक 11 बजे सुबह शुरू कर देगा। जूरी प्रशासक (बैठक के) कमरे में सुबह 10.30 बजे से पहले आ जाएगा। यदि महा-जूरीमंडल का कोई सदस्य सुबह 10.30 बजे से पहले आने में असफल रहता है तो जूरी प्रशासक उसे बैठक में भाग लेने की अनुमति नहीं देगा और उसकी अनुपस्थिति दर्ज कर देगा। |
सैक्शन – 3 : किसी नागरिक पर आरोप तय करना | ||
13 |
जूरी प्रशासक |
कोई व्यक्ति, चाहे वह निजी/आम आदमी हो चाहे जिला दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर, यदि वह किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कोई शिकायत करना चाहता है तो वह महा-जूरीमंडल के सभी सदस्यों या कुछ सदस्यों को शिकायती पत्र लिखेगा। शिकायतकर्ता से उसे यह भी अवश्य बताना होगा कि वह क्या समाधान चाहता है। ये समाधान इस प्रकार के हो सकते हैं –
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14 |
जूरी प्रशासक |
यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य किसी बैठक में आने के लिए बुलावा भेजते हैं तो वह नागरिक उपस्थित होगा। महा-जूरीमंडल आरोपी और शिकायतकर्ता को बुला भी सकते हैं या नहीं भी बुला सकते हैं। |
15 |
जूरी प्रशासक |
यदि महा-जूरीमंडल के 15 से ज्यादा सदस्य यह स्पष्ट कर देते हैं कि शिकायत में कुछ दम/मेरिट है तो जूरी प्रशासक शिकायत की जांच कराने के लिए एक जूरी बुलाएगा जिसमें उस जिले के 12 नागरिक होंगे। जूरी प्रशासक 12 से अधिक नागरिकों का क्रमरहित/रैंडम तरीके से चयन करेगा(खंड-8 में महा-जूरीमंडल के चुनाव के सामान ही जूरीमंडल का चयन होगा) और उन्हें बुलावा भेजेगा। आनेवालों में से जूरी प्रशासक क्रमरहित तरीके से 12 लोगों का चयन कर लेगा। [मान लीजिए एक जिले में सौ मामले दर्ज हुए हैं | तो कोई 3000 या अधिक लोगों को बुलावा भेजा जायेगा जब तक उनमें से 2600 लोग न आ जायें ,क्योंकि उनमें कुछ मर गए होंगे, कुछ शहर से बहार गए होंगे |ये 2600 लोग क्रमरहित तरीके से 26-26 के 100 समूहों में क्रमरहित तरीके से बांटे जाएँगे , एक मामले के लिए एक समूह | दोंनो पक्ष के वकील उन 26 लोगों में से हरेक व्यक्ति को 20 मिनट इंटरवीयू/साक्षात्कार लेगा और हर पक्ष का वकील 4 लोगों को बाहर निकाल देगा(इस तरह किसी भी पक्ष को पूर्वाग्र/पक्षपात का बहाना नहीं मिलेगा ) | इस तरह 18 लोगों का जूरी-मंडल होगा जो 12 मुख्य जूरी सदस्य और 6 विकल्प जूरी सदस्य में क्रमरहित तरीके से बांटे जाएँगे |] |
16 |
जूरी प्रशासक |
जूरी प्रशासक मुख्य जिला प्रशासक से कहेगा कि वह मुकद्दमें की अध्यक्षता करने के लिए एक या एक से अधिक जजों की नियुक्ति कर दे। यदि विवादित संपत्ति का मूल्य लगभग 25 लाख से अधिक है अथवा दावा किए गए मुआवजे की राशि 1,00,000(एक लाख) रूपए से अधिक है अथवा अधिकतम कारावास का दण्ड 12 महीने से अधिक है तो जूरी प्रशासक 24 जूरी-मंडल सदस्य का चुनाव करेगा और उस मुकद्दमें के लिए मुख्य जज से 3 जजों की नियुक्ति करने का अनुरोध करेगा , नहीं तो वह मुख्य जज से 1 जजों की नियुक्ति करने का अनुरोध करेगा। विवादित समट्टी का मूल्य 50 करोड़ से अधिक होने पर 50-100 जूरी सदस्य और 5 जज होंगे | यदि मुलजिम के खिलाफ 10 से कम मामले हैं तो, जूरी-सदस्य 12, 10-25 मामले हों तो 24 जूरी सदस्य चुने जाएँगे और 25 से अधिक मामले होने पर 50-100 जी सदस्य होंगे| यदि मुलजिम श्रेणी 4 का अफसर है तो 12 जूरी सदस्य, श्रेणी 2 या 3 का होगा तो , 24 जूरी सदस्य होंगे और श्रेणी 4 या अधिक होने पर 50-100 जूरी सदस्य होंगे |इस मामले में नियुक्त किए जाने वाले जजों की संख्या के संबंध में मुख्य न्यायाधीश का फैसला ही अंतिम होगा | |
सैक्शन – 4 : सुनवाई/फैसला आयोजित करना | ||
17 |
अध्यक्षता करने वाला जज |
सुनवाई 11 बजे सुबह से लेकर 4 बजे शाम तक चलेगी। सभी 12 जूरी-मंडल/जूरर्स और शिकायतकर्ता के आ जाने के बाद ही सुनवाई शुरू की जाएगी। यदि कोई पक्ष उपस्थित नहीं होता है तो जो पक्ष उपस्थित है उसे 3 से 4 बजे शाम तक इंतजार करना होगा और तभी वे घर जा सकते हैं।यदि तीन दिन बिना कारण दिए , कोई पक्ष उपस्थित नहीं होता, तो उपस्थित पक्ष अपनी दलीलें देगा और जूरी तीन दिन और इन्तेजार करेगी ,अनुपस्थित पक्ष को बुलावा देने के पश्चात| यदि फिर भी अनुपस्थित पक्ष बिना कारण दिए नहीं आती, तो जूरी अपना फैसला सुनाएगी | |
18 |
अध्यक्षता करने वाला जज |
यह जज शिकायतकर्ता को 1 घंटे बोलने की अनुमति देगा जिसके दौरान कोई अन्य बीच में नहीं बोलेगा। वह जज प्रतिवादी(वह जिसपर मुकदम्मा चलाया जा रहा है) को भी 1 घंटे बोलने की अनुमति देगा जिसके दौरान कोई अन्य व्यक्ति बोलने में बाधा/व्यावधान पैदा नहीं करेगा। इसी तरह, बारी-बारी से दोनों पक्षों को बोलने देगा मुकद्दमा हर दिन इसी प्रकार चलता रहेगा। |
19 |
अध्यक्षता करने वाला जज |
मुकद्दमा कम से कम 2 दिनों तक चलेगा। तीसरे दिन या उसके बाद यदि 7 से अधिक जूरी सदस्य यह घोषित कर देते हैं कि उन्होंने काफी सुन लिया है तो वह मुकद्दमा एक और दिन चलेगा। यदि अगले दिन 12 जूरी सदस्यों में से 7 से ज्यादा सदस्य यह घोषित कर देते हैं कि वे और दलीलें सुनना चाहेंगे तो यह मुकद्दमा तब तक चलता रहेगा जब तक 7 से ज्यादा जूरी सदस्य यह नहीं कह देते कि (अब) मुकद्दमा समाप्त किया जाना चाहिए। |
20 |
अध्यक्षता करने वाला जज |
अंतिम दिन जब दोनों पक्ष/पार्टी अपना-अपना पक्ष/दलील 1 घंटे प्रस्तुत कर देंगे तो जूरी-मंडल/जूरर्स कम से कम 2 घंटे तक विचार-विमर्श करेंगे। यदि 2 घंटे के बाद 7 से ज्यादा जूरी-मंडल/जूरर्स कहते हैं कि और विचार-विमर्श की जरूरत नहीं है तो जज (जूरी-मंडल के) प्रत्येक सदस्य से अपना-अपना फैसला बताने/घोषित करने के लिए कहेगा। |
21 |
महा-जूरीमंडल |
यदि कोई जूरी सदस्य अथवा कोई एक पक्ष उपस्थित नहीं होता है या देर से उपस्थित होता है तो महा-जूरीमंडल 3 महीने के बाद दण्ड/जुर्माने पर फैसला करेंगे जो अधिकतम 5000 रूपए अथवा अनुपस्थित व्यक्ति की सम्पत्ति का 5 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, तक हो सकता है। |
22 |
अध्यक्षता करने वाला जज |
जुर्माने/अर्थदण्ड के मामले में, हर जूरी सदस्य दण्ड की वह राशि/रकम बताएगा जो वह उपयुक्त समझता है। और यह कानूनी सीमा/लिमिट से कम ही होनी चाहिए। यदि यह कानूनी सीमा/हद से ज्यादा है तो जज इसे ही कानूनी सीमा मानेगा। वह जज दण्ड की राशियों को बढ़ते क्रम में सजाएगा और चौथी सबसे छोटी दण्डराशि को चुनेगा अर्थात उस राशि को जूरी मंडल द्वारा सामूहिक रूप से लगाया गया जुर्माना/दण्ड माना जाएगा जो 12 जूरी सदस्यों में से 8 से ज्यादा सदस्यों ने(उतना या उससे अधिक) अनुमोदित किया हो | उदहारण-जैसे जूरी-मंडल द्वारा लगायी हुई दण्ड-राशि यदि बदते क्रम में 400,400,500,600,700,700,800,1000,1000,1200,1200 रुपये हैं तो चौथी सबसे छोटी दण्ड-राशि 600 है और बाकी 8 जूरी-मंडल के लोगों ने इससे अधिक दण्ड-राशि का अनुमोदन/स्वीकृति किया है | |
23 |
अध्यक्षता करने वाला जज |
कारावास की सजा के मामले में जज, जूरी-मंडल/जूरर्स द्वारा दी गई/बताई गई सजा की अवधि को बढ़ते क्रम में सजाएगा जो उस कानून में उल्लिखित सजा से कम होगा, जिस कानून को तोड़ने का वह आरोपी है। और जज चौथी सबसे छोटी सजा-अवधि को चुनेगा यानि कारावास की वह सजा जो 12 जूरी-मंडल/जूरर्स में से 8 से ज्यादा जूरी सदस्यों द्वारा अनुमोदित हो को `कारावास की सजा जूरी-मंडल/जूरर्स द्वारा मिलकर तय किया गया` घोषित करेगा । |
सैक्शन – 5 : निर्णय/फैसला,(फैसले का) अमल और अपील | ||
24 |
जिला पुलिस प्रमुख |
जिला पुलिस प्रमुख या उसके द्वारा निर्दिष्ट/नामांकित पुलिसवाला, जुर्माना अथवा कारावास की सजा जो जज द्वारा सुनाई गई है और जूरी-मंडल/जूरर्स द्वारा दी की गई है, पर अमल करेगा/करवाएगा। |
25 |
जिला पुलिस प्रमुख |
यदि 4 या इससे अधिक जूरी सदस्य किसी कुर्की/जब्ती अथवा जुर्माने अथवा कारावास की सजा की मांग नहीं करते तो जज आरोपी को निर्दोष घोषित कर देगा और जिला पुलिस प्रमुख उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा। |
26 |
आरोपी, शिकायतकर्ता |
दोनो ही पक्षों को राज्य के उच्च न्यायालय अथवा भारत के उच्चतम न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए 30 दिनों का समय होगा। |
सैक्शन – 6 : नागरिकों के मौलिक / बुनियादी (मूल/प्रमुख) अधिकारों की रक्षा | ||
27 |
सभी सरकारी कर्मचारी |
निचली अदालतों के 12 जूरी सदस्यों में से 8 से अधिक की सहमति के बिना किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा तब तक कोई अर्थदण्ड अथवा कारावास की सजा नहीं दी जाएगी जब तक कि हाई-कोर्ट अथवा सुप्रीम-कोर्ट के जूरी-मंडल/जूरर्स इसका अनुमोदन/स्वीकृति नहीं कर देते। कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी नागरिक को जिला अथवा राज्य के महा-जूरीमंडल के 30 में से 15 से ज्यादा सदस्यों की अनुमति के बिना 24 घंटे से अधिक से लिए जेल में नहीं डालेगा/बन्दी नहीं बनाएगा। |
28 |
सभी के लिए |
जूरी सदस्य तथ्यों के साथ-साथ इरादे/मंशा के बारे में भी निर्णय करेंगे और कानूनों के साथ-साथ संविधान की भी व्याख्या/अर्थ करेंगे। |
29 |
— |
यह सरकारी अधिसूचना(आदेश) तभी लागू/प्रभावी होगी जब भारत के सभी नागरिकों में से 51 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने इस पर हां दर्ज किया हो और उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों ने इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का अनुमोदन/स्वीकृति कर दिया हो। |
30 |
जिला कलेक्टर |
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन/बदलाव का प्रस्ताव करता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क से परिवर्तन की मांग करते हुए एक एफिडेविट/शपथपत्र जमा करवा सकता है। नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क इसे 20 रूपए प्रति पृष्ठ का शुल्क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा। |
31 |
तलाटी अर्थात पटवारी |
यदि कोई नागरिक इस कानून या इस कानून के किसी क्लॉज/खण्ड पर अपना विरोध दर्ज कराना चाहता है अथवा उपर्युक्त क्लॉज/खण्ड के बारे में दायर किए गए ऐफिडेविट पर कोई समर्थन दर्ज कराना चाहता है तो वह पटवारी के कार्यालय में 3 रूपए का शुल्क जमा करके अपना हां/नहीं दर्ज कर सकता है। पटवारी नागरिकों के हां/नहीं को लिख लेगा और नागरिकों के हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा। |
(21.12) नागरिकगण भारत में जूरी प्रणाली (सिस्टम) कैसे ला सकते हैं? |
राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में मैं नागरिकों से निम्नलिखित कदम उठाने के लिए कहता हूँ :-
- वर्तमान प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और महापौरों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) कानून पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य/मजबूर/विवश करना
- `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके प्रधानमंत्री को प्रजा अधीन–सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज/ उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कानून पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य/विवश करना
- `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके प्रधानमंत्री को प्रजा अधीन–प्रधानमंत्री कानून पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करना
- `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके प्रधानमंत्री को उपर उल्लिखित जूरी प्रणाली(सिस्टम) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट जारी करने के लिए बाध्य/विवश करना
(21.13) जजों की नियुक्ति / भर्ती में भाई-भतीजावाद कम करना |
राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में मैं यह मांग और वायदा करता हूँ कि जिला और उच्च न्यायालयों में सभी जजों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा ही हो और कोई साक्षात्कार न लिया जाए। साक्षात्कार एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा जजों ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके रिश्तेदार, नजदीकी मित्र और नजदीकी मित्रों के रिश्तेदारों का चयन हो जाए। उच्चतम न्यायालयों में जजों की नियुक्ति/भर्ती केवल और केवल वरियता के आधार पर की जानी चाहिए और साक्षात्कार का कोई प्रावधान ही नहीं होना चाहिए। यदि कोई गलत व्यक्ति जज बन जाता है तो नागरिकगण उसे हटा सकते हैं या बर्खास्त कर सकते हैं, लेकिन जजों का इसपर कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए कि कौन व्यक्ति जज नियुक्त होगा/बनेगा। इसके अलावा, हटाने या बदलने की जिस प्रक्रिया का प्रस्ताव मेरा राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह करता है वह भाई-भतीजावाद से अछूता/प्रतिरक्षित/मुक्त है। कोई भी व्यक्ति उन लाखों नागरिकों का रिश्तेदार नहीं हो सकता जो अपना अनुमोदन/स्वीकृति देने जा रहे हैं।
(21.14) सारी जनता को कानून की पढ़ाई पढ़ाना और अन्य परिवर्तनों के बारे में बताना |
मैं राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में यह वायदा करता हूँ कि सभी छात्रों को कक्षा VI से अथवा यदि अभिभावक(माता-पिता) अनुमोदन/स्वीकृति देते हैं तो इससे पहले से भी, कानून की शिक्षा दूंगा। इसके अलावा, सभी वयस्कों को भी संध्या/शाम की कक्षा या दूरदर्शन, आकाशवाणी, और अन्य माध्यमों से कानून की शिक्षा दी जाएगी। सर्वजन/सभी को हथियार की शिक्षा और सर्वजन/सभी को कानून की शिक्षा मेरी दो मांगें और वायदे हैं।
(21.15) कु-बुद्धिजीवी लोग जजों में भ्रष्टाचार को समर्थन देंगे |
क्या बुद्धिजीवी लोग (कुबुद्धिजीवी लोग) जजों में फैले भ्रष्टाचार का विरोध करेंगे? देखिए, आज तक मुझे एक भी बुद्धिजीवी नहीं मिला है जिसने किसी निकम्में/काम न करने वाले जज का त्यागपत्र मांगा हो (एक दलित न्यायमूर्ति को छोड़कर)। यहां तक कि जब माननीय न्यायमूर्ति खरे ने निचली अदालत द्वारा अपराधी ठहराए गए बाल यौन शोषण अपराधी को जमानत दे दी तो जिन बुद्धिजीवियों से मैं मिला, उन्होंने यही कहा कि उन्हें फैसला पढ़ने का समय ही नहीं मिला और तब यह भी कहा कि वे न्यायमूर्ति खरे को पद पर बनाए रखने का समर्थन करते हैं और उन पर महाभियोग(राज्य के किसी प्रमुख विशेषतः सर्वप्रमुख शासनिक अधिकारी पर चलाया जानेवाला मुकदमा) लगाने/चलाने का विरोध करते हैं। यहां तक कि जब गाजियाबाद भविष्यनिधि घोटाले में अनेक न्यायमूर्तिगण दागी करार दे दिए गए तब भी बुद्धिजीवियों ने उन माननीय न्यायमूर्तियों पर महाभियोग लगाने/चलाने की मांग करने से मना कर दिया।
मेरे विचार में, न्यायतंत्र में बुद्धिजीवियों के बहुत ही अधिक नजदीकी रिश्तेदार होते हैं और यही कारण है कि वे न्यायतंत्र में भ्रष्टाचार चलते रहने देना चाहते हैं। और मेरे विचार से, बुद्धिजीवी लोग खुद/स्वयं भ्रष्ट होने के साथ-साथ कायर भी होते हैं। उदाहरण के लिए, मैं उस घटना का जिक्र करना चाहूंगा जो हस्तिनापुर के उच्चतम न्ययालय में लगभग 5000 वर्ष पहले घटी थी। जैसा कि डॉ. वेदव्यास कहते हैं – लगभग 5000 वर्ष पहले हस्तिनापुर उच्चतम न्यायालय/सुप्रीम कोर्ट तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति/प्रधान जज धृतराष्ट्र के अधीन था। धृतराष्ट्र ने अपने बेटे माननीय न्यायमूर्ति दुर्योधन को “राजकुमार मुख्य न्यायाधीश” नियुक्त कर दिया था। न्यायमूर्ति दुर्योधन ने हस्तिनापुर की उच्चतम न्यायालय की भरी सभा में ही माननीय न्यायमूर्ति भीष्म, माननीय न्यायमूर्ति धृतराष्ट्र, प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य और अन्य सभी लोगों के ठीक सामने ही एक आम औरत द्रौपदी का उत्पीड़न/ छेड-छाड़ किया।
प्रोफेस्सर. डॉ. द्रोणाचार्य उन दिनों हस्तिनापुर विश्वविद्यालय के कुलपति थे और अपने ही/निजी-धन से चल रहे कालेजों के मालिक थे। जब माननीय न्यायमूर्ति दुर्योधन ने द्रौपदी का उत्पीड़न/छेड-छाड़ किया तो प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य ने न्यायमूर्ति दुर्योधन का तनिक/थोड़ा भी विरोध नहीं किया। बाद में भी, इस घटना के बाद प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य ने माननीय न्यायमूर्ति धृतराष्ट्र से यह नहीं कहा कि वे माननीय न्यायमूर्ति दुर्योधन को बन्दी बना लें, नहीं तो वे त्यागपत्र देकर हस्तिनापुर से चले जाएंगे। प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य ने क्यों माननीय न्यायमूर्ति दुर्योधन का समर्थन किया(विरोध नहीं किया)? प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य की मंशाओं/उद्देश्यों पर एक सरसरी निगाह डालने से इस क्यों का उत्तर मिल जाएगा। प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य को चिन्ता थी कि धृतराष्ट्र उन्हें हस्तिनापुर विश्वविद्यालय के कुलपति के पद से हटा सकते हैं और उनके अपने/निजी धन से चलने वाले कॉलेजों की जांच करवा सकते हैं। इसके अलावा, उन्हें शायद यह भी चिन्ता थी कि न्यायमूर्ति धृतराष्ट्र एकलव्य वाली घटना के लिए उन्हें जेल भिजवा सकते हैं जिस घटना में उन्होंने एक आदिवासी बालक पर अत्याचार किए थे जो कि एक अवयस्क/नाबालिग बच्चा था। प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अपना अंगूठा काट देने को कहा था। उन्होंने एकलव्य के माता-पिता से पूछने तक की चिन्ता नहीं की जो कि अनिवार्य था क्योंकि एकलव्य अभी अवयस्क/नाबालिग बालक था। इसलिए पैसे की लालच और सजा पाने के डर से प्रो. डॉ. द्रोणाचार्य ने माननीय न्यायमूर्ति दुर्योधन द्वारा द्रौपदी के उत्पीड़न के कार्य का समर्थन किया और उसका विरोध नहीं किया और न ही न्यायमूर्ति दुर्योधन के हटाने/बर्खास्तगी की ही मांग की। अब ये लोग तो त्रेता युग के बुद्धिजीवी लोग थे। इसलिए कलयुग के बुद्धिजीवी लोग क्या करेंगे? वे इससे भी एक कदम आगे बढ़ेंगे और द्रौपदी पर ही आरोप लगा देंगे (कि उसी ने कुछ गलत किया होगा),माननीय न्यायमूर्ति दुर्योधन को बचाने के लिए । और ऐसी घटनाएं आज हम लोग घटता देख ही रहे हैं। जब न्यायाधीशों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के बारे में पूछा जाता है तो आज के बुद्धिजीवी हम नागरिकों पर ही इस समस्या के लिए आरोप लगाते हैं !! और कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं से मेरा यही कहना है कि न्यायमूर्तियों/जजों में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद कम करने के लिए आवश्यक/जरूरी कदम उठाने में वे बुद्धिजीवियों के भूमिका अदा करने अथवा उनके द्वारा कार्रवाई में हिस्सा लेने का इंतजार न करें। बुद्धिजीवी लोग वैकल्पिक ऐजेंडों पर काम करने के लिए जोर देते रहेंगे और जोर देकर कहते रहेंगे कि माननीय न्यायमूर्तियों के भ्रष्टाचार/भाई-भतीजावाद की समस्या का समाधान करने की कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। मेरे विचार में, अब समय आ गया है कि (कार्यकर्ता) उन बुद्धिजीवियों को खुले आम दरकिनार कर दें और केवल अपनी समझ से ही काम करें।
(21.16) न्यायालयों / कोर्ट में सुधार करने पर सभी दलों और बुद्धिजीवियों का रूख |
सभी वर्तमान दलों के नेताओं और सभी बुद्धिजीवी न्यायालयों/कोर्ट में सुधार किए जाने का एकदम से विरोध करने लगते हैं। हरेक दल के नेताओं ने न्यायालयों/कोर्ट की संख्या बढ़ाने से मना कर दिया है। वे जूरी प्रणाली(सिस्टम) का खुलेआम विरोध करते हैं और जोर देकर कहते हैं कि फैसले केवल जजों द्वारा ही किए जाने चाहिएं क्योंकि आम लोग मूर्ख/अल्पबुद्धि होते हैं । वे ऐसी प्रक्रियाओं को लागू करने का विरोध करते हैं जिनमें हम आम लोग जजों को हटा/बदल सकें। सभी पार्टियों के नेताओं ने न्यायालय में भाई–भतीजावाद और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर चर्चा/ वादविवाद तक करने से मना कर दिया है, उनका समाधान करना तो दूर की बात है। हम लोग सभी नागरिकों से अनुरोध/प्रार्थना करते हैं कि वे अपनी-अपनी पार्टी के प्रिय नेताओं से न्यायालयों/कोर्ट की संख्या कम होने, जजों में भाई – भतीजावाद, जजों में भ्रष्टाचार, आदि मुद्दों पर प्रश्न पूछें और तब यह निर्णय करें कि क्या वे(नेता) वोट दिए जाने के लायक हैं ?। और हम कार्यकर्ताओं से अनुरोध करते हैं कि वे बुद्धिजीवियों से इन मुद्दों पर प्रश्न पूछें और निर्णय करें कि क्या वे(बुद्धजीवी) मार्गदर्शक बनने के योग्य हैं ?
यदि एक जज एक साल में 200 मामलों में अधिकतम फैसला दे सकता है , तो हम को 3,00,00,000/200 = 1,50,000 अधिक जज चाहियें सभी मामलों को एक वर्ष/साल में निबटाने के लिए(जो एक काफी लंबा समय है) | और वर्त्तमान मामलों दर के अनुसार हमें 1,00,000 और जज चाहिए | और जैसे मामलों के फैसले आना शुरू होंगे, यह माने कि वे न्यायपूर्वक/उचित हों, तो अपराध दर और मामले के भार में कमी आने लगेगी | तो फिर 3-5 साल पश्चात, कोर्ट की संख्या जिसकी हमें जरुरत है, कम हो जायेगी | लेकिन निकट भविष्य में ,हमारे पास 2-3-4 सालों के लिए 1,50,000 से 2,00,000 (डेढ़ से दो लाख ) जज होना आवश्यक है |
अभी हमारे पास केवल 13,000 जज हैं | और जैसा मैंने दिखाया , हमें डेढ़ से दो लाख जज चाहिए |
बावजूद इस अत्यंत कमी के ,सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जज और प्रसिद्द बुद्धिजीवी खुलेआम जजों की संख्या बढाने के विरोधी हैं | क्यों?
सुप्रीम कोर्ट के जज और बुद्धिजीवी, जो ऊंची जाती के विशिष्ट वर्गीय लोगों के एजेंट/प्रतिनिधि हैं, को पता है कि यदि निचले अदालतों के जजों की संख्या 13,000(तेरह हज़ार) से 1,50,000(डेढ़ लाख) हो जाती है , तो उन्हें कोई 40,000 जजों की नियुक्ति करनी पड़ेगी हर साल तीन सालों तक जबकि अभी के समय हर वर्ष/साल 400 जजों की नियुक्ति करते हैं | यदि ऐसा होता है तो , निचले अदालतों में `अन्य पिछड़े जनजाती` का प्रतिशत बढ जायेगा| आज के समय में ,सुप्रीम कोर्ट के जज, सभी जजों के आधिकारिक जाति आंकड़े का खुलासा नहीं करते जाती/भाई-भातिजेवाद का पक्षपात छुपाने के लिए , लेकिन उच्च जाती की भारतीय निचले अदालतों में प्रतिशत 70% से अधिक है , ऐसी अफवाह है | यदि जजों की संख्या तेरह हज़ार से बढ कर डेढ़ लाख या अधिक हो जाती है और जाजों की हर साल भर्ती 300 से बढ कर 30,000 हो जाती है , तो उच्च जातियों का प्रतिशत गिरेगा और अन्य पिछड़ी जातियों का प्रतिशत 35 -40 % तक बढ जायेगा और दलितों और अनूसूचित जनजातियों का प्रतिशत 20% तक बढ जायेगा और उच्च जातियों का प्रतिशत 40% तक गिर जायेगा|
अब एक उच्च जाती का जज भाई-भातिजेवाद के कारण उच्च जाती के विशिष्ट वर्ग के लोगों का एजेंट/प्रतिनिधि की तरह काम करता है | एक दलित जज भाई-भातिजेवाद के कारण दलित विशिष्ट वर्ग के लोगों का एजेंट का काम करता है | आम आदमी/जनसाधारण , उच्च जाती के,अन्य पिछड़ी जाती, या दलित हों , किसी भी जज के लिए महत्त्व नहीं रखते | इसीलिए यदि `अन्य पिछड़ी जाती` या दलितों की प्रतिशत निचले अदालतों में बढती है , तो उच्च जाती के विशिष्ट वर्ग अन्य पिछड़ी जाती/दलित विशिष्ट वर्ग को अपना आधार खो देंगे | ये उच्च जाती के विशिष्ट वर्ग के लोगों को मंजूर नहीं है | और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट और हाई-कोर्ट के जज, बुद्धिजीवी , जो अभी अधिकतर उच्च जाती विशिष्ट वर्गों के एजेंट हैं, निचले अदालत के जजों की संख्या तेरह हज़ार से डेढ़ लाख बढाने का विरोध करते हैं|
निचली अदालतों को कोई भी भत्ता नहीं मिलना चाहिए जैसे ड्राईवर, माली, गाडी आदि | उनको अच्छी वेतन देनी चाहिए और उन्हें अपने दम पर प्रबंध करने देना चाहिए | लेकिन हाँ, एक अदालत/कोर्ट बनाने का मतलब है एक जज, 5क्लेर्क, 2 चपरासी, एक सहायक आदि और उसका प्रबंध हो सकता है |
(21.17) कुछ प्रश्न |
1. एक वकील पर विचार कीजिए जो 10 न्यायालयों वाले एक शहर में प्रैक्टिस करता है और एक वर्ष में 30 मुकद्दमें दायर करता/करवाता है। मान लीजिए, एक जज का कार्यकाल 4 वर्षों का है। वह वकील 10 वर्षों में कितने जजों से मिलेगा? वह 10 वर्षों में कितने जूरी-मंडल/जूरर्स से मिलेगा?
2. एक राज्य पर विचार कीजिए जिसमें 5 करोड़ नागरिक हैं। मान लीजिए, एक वर्ष में 100,000 मुकद्दमें दायर किए जाते हैं। यदि एक जज एक वर्ष में 80 मुकद्दमें निपटाता है तो उस राज्य को कितने जजों की जरूरत होगी और वह जज अपने 30 वर्षों के कार्यकाल में कितने मुकद्दमें निपटाएगा? यदि जूरी-मंडल/जूरर्स को काम पर लगाया जाता है तो उन 30 वर्षों की अवधि में कितने जूरी-मंडल/जूरर्स से काम लिया जाएगा?
[ निम्नलिखित प्रश्नों में XII कक्षा की संभाव्यता/प्रोबैब्लिटी सिद्धांत के ज्ञान की जरूरत पड़ेगी। कैलकुलेटर/संघटक अथवा एक्स्केल(excel) का उपयोग जरूरत पड़ने पर करें]
3. जिला `क` पर विचार कीजिए जिसमें अगले 30 वर्षों में प्रतिवर्ष 80,000 मुकद्दमों को सुलझाने के लिए 1000 जजों की नियुक्ति की गई है। प्रत्येक मुकद्दमें में ईमानदार जजों के होने की संभाव्यता 0.001 मानिए, लेकिन वह एक बार यदि कोई जज भ्रष्ट हो गया तो मानकर चलिए कि उसके घूस लेने की संभाव्यता अब 0.2 है। तब पहले वर्ष में कितने प्रतिशत मुकद्दमों में भ्रष्टाचार दिखेगा? जिला `क` में अगले 30 वर्षों में से प्रत्येक वर्ष के लिए (भ्रष्टाचार वाले मुकद्दमों की) संख्या का आकलन कीजिए।
4. जिला `ख` पर विचार कीजिए जिसमें प्रति वर्ष 8000 मुकद्दमों के निर्णयों के लिए जूरी प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करने का निर्णय लिया गया है । मान लीजिए, एक जूरी-मंडल/जूरर्स 0.2 की संभाव्यता के साथ भ्रष्ट है। फैसला केवल तभी भ्रष्ट/गलत होगा यदि 4 या उससे अधिक जूरी-मंडल/जूरर्स भष्ट हो जाते हैं तो जिले ख के कितने प्रतिशत फैसले प्रतिवर्ष भ्रष्ट/गलत होंगे?
5 जिला `क` पर विचार कीजिए जिसमें अगले 30 वर्षों के लिए 8000 मुकद्दमों को सुलझाने के लिए 100 जजों की नियुक्ति/भर्ती की गई है। मान लीजिए कि जज के भ्रष्ट न होने की संभाव्यता 0.001 है जब सभी वकील और आसिल(वकीलों के ग्राहक/मुवक्किल) जजों के रिश्तेदार नहीं हैं और यह संभावना 25 प्रतिशत है यदि वकील जजों का रिश्तेदार है। प्रति/वर्ष कितने मुकद्दमों में भ्रष्टाचार/गलती होगी?
6. किसी पेशेवर अपराधी पर विचार कीजिए जो हर वर्ष 20 अपराध करता है। मान लीजिए, पकड़े जाने और सजा मिलने की संभावना 10 प्रतिशत है। तब 5 वर्ष के बाद उसके जेल ना जाने की कितनी संभावना है?
7. 50 अपराधियों के किसी गिरोह/गैंग पर विचार कीजिए। मान लीजिए, वे एक साल में 200 अपराध करते हैं। मान लीजिए, सजा देने की दर 3 प्रतिशत है। तब इस बात की कितनी संभावना है कि 2 वर्षों में एक भी सदस्य को सजा न मिले?
8. 50 अपराधियों के किसी गिरोह/गैंग पर विचार कीजिए। मान लीजिए, हर बार जब (गिरोह के) किसी सदस्य को सजा होती है तो 2 सदस्य गिरोह छोड़ देते हैं। मान लीजिए, उन्होंने 1 वर्ष में N × 4 अपराध किए। N गिरोह में सदस्यों की संख्या है। मान लीजिए, सजा देने की दर 5 प्रतिशत है तो 5 वर्षों के बाद गिरोह का अनुमानित आकार क्या होगा/गिरोह कितना बड़ा हो जाएगा?
(21.18) अभ्यास |
9. भारत के किसी जिले पर विचार कीजिए। मान लीजिए, उस जिले में 50 न्यायालय/कोर्ट हैं। कृपया उस कानून के क़ानून-ड्राफ्ट दीजिए/बनाइए जिसके द्वारा वैसे परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद से बचा जा सकता है जिसमें जज `क`, जज `ख` के रिश्तेदारों का पक्ष लेता है और जज `ख`, जज `क` के रिश्तेदारों का पक्ष लेता है।
10. कृपया न्यायालयों में परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद कम करने के लिए संसद में श्री शौरी और अन्य बीजेपी सांसदों द्वारा प्रस्तुत किए गए क़ानून-ड्राफ्ट / प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट प्राप्त करें।
11. कृपया न्यायालयों/कोर्ट में परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद कम करने के लिए संसद में श्री यचूरी और अन्य सीपीएम सांसदों द्वारा प्रस्तुत किए गए क़ानून-ड्राफ्ट / प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट प्राप्त करें।
12. कृपया न्यायालयों/कोर्ट में परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद कम करने के लिए संसद में कांग्रेसी सांसदों द्वारा प्रस्तुत किए गए क़ानून-ड्राफ्ट / प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट प्राप्त करें।
13. भारत में कितनी निचली अदालतें हैं? लंबित मामलों की संख्या कितनी/क्या है? यदि 1 न्यायालय एक वर्ष में मान लीजिए, 80 मुकद्दमें निपटाता है तो सभी मुकद्दमें निपटाने में निचली अदालत को कितने वर्ष लगेंगे?
14. उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम कोर्ट) के नए जजों (की नियुक्ति) का निर्णय करने में किसके विवेकाधिकार का उपयोग किया जाता है?
15. किसी राज्य के उच्च न्यायालयों में नए जजों (की नियुक्ति) के बारे में निर्णय करने में किसके विवेकाधिकार का उपयोग किया जाता है?
16. आपके राज्य में उच्च न्यायालय(हाई-कोर्ट) के वर्तमान जजों में से कितने प्रतिशत जजों के पिता या सगे चाचा उच्च न्यायालय(हाई-कोर्ट) अथवा उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जज हैं?
17. पश्चिमी देशों में कोरोनरी(coronory) जूरी (व्यवस्था) क्या है? यह कब प्रारंभ/शुरू किया गया? भारत में ऐसी व्यवस्था/प्रणाली(सिस्टम) क्यों नहीं बनाई गई/बनाई जा सकी?
18. पश्चिमी देशों में कोरोनरी जूरी का क्या प्रभाव पड़ा?
19. भारत में जूरी प्रणाली(सिस्टम) कब और किसके द्वारा शुरू की गई? कब और किसके द्वारा इसे समाप्त कर दिया गया?
20 विश्व में जनसंख्या की दृष्टि से पहले 50 देशों में से कौन सा देश जूरी प्रणाली(सिस्टम) का उपयोग/प्रयोग करता है?
21. कृपया हांगकांग में जूरी प्रणाली(सिस्टम) के बारे में जानकारी/सूचना जुटाइए।
22. क्यों भारतीय बुद्धिजीवी लोग नागरिकों और छात्रों को पश्चिमी देशों के कोरोनरी प्रणाली(सिस्टम) के बारे में जानकारी/सूचना देने का विरोध करते हैं?
23. क्यों भारतीय बुद्धिजीवी लोग नागरिकों और छात्रों को पश्चिमी देशों के जूरी प्रणाली(सिस्टम) के बारे में जानकारी/सूचना देने का विरोध करते हैं?
24. अमेरिका के लगभग कितने प्रतिशत राज्यों ने जजों को चुना है? और कब से?
25. उस समय अमेरिका में साक्षरता दर क्या थी जब इन राज्यों ने जजों के चुनाव (का तरीका) शुरू किये?