जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत | कोई जूरी-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत नहीं |
मान लीजिए, 5 वरिष्ठ वकीलों के साथ 20 कनिष्ठ/जूनियर/छोटे वकील हैं जो उनके लिए काम करते हैं। मान लीजिए, ये लोग साथ मिलकर किसी जिले में लगभग 1000 मुकद्दमें 4 वर्षों की अवधि में लेते हैं। | मान लीजिए, 5 वरिष्ठ वकीलों के साथ 20 कनिष्ठ/जूनियर/छोटे वकील हैं जो उनके लिए काम करते हैं। मान लीजिए, ये लोग साथ मिलकर किसी जिले में लगभग 1000 मुकद्दमें 4 वर्षों की अवधि में लेते हैं। |
इनमें से अधिकांश मुकद्दमों के लिए उस जिले में लगभग 20 न्यायाधीश तैनात किए जाते हैं। | ये मुकद्दमें एक वर्ष में 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास जाते हैं। |
3-6 महीनों के भीतर, ये 5 वकील इन 10-20 न्यायाधिशों से साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेते हैं। | इनमें से 2 प्रतिशत के साथ भी ऐसे साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाने का समय नहीं होगा। |
जब किसी मुकद्दमें की सुनवाई के दौरान, कोई वकील किसी न्यायाधीश/जज के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेता है तो उस न्यायाधीश/जज का साथ उस वकील के लिए उन सभी मुकद्दमों के मामले में निश्चित ही उपयोगी साबित होगा जो मुकद्दमें उस न्यायाधीश/जज के सामने आएंगे। जबकि यदि कोई वकील किसी मुकद्दमें की सुनवाईयों के दौरान 12 जूरियों में से 7-8 के साथ भी किसी प्रकार साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम कर लेता है तो इन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ उसके ये साँठ-गाँठ/मिली-भगत उस वकील के अन्य सभी मुकद्दमों में बिलकुल भी काम नहीं आएंगे क्योंकि हरेक सुनवाई के बाद जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य बदल जाया करेंगे।
21.7.5 जजों की नियुक्ति-वर्त्तमान और 1992 से पूर्व
1992 से पहले प्रधानमंत्री(राष्ट्रपति द्वारा) के पास जजों की नियुक्ति में पर्याप्त अधिकार थे| और प्रधानमन्त्री सांसदों द्वारा ब्लैकमेल द्वारा उनके भी अधिकार/राय थी | लेकिन 1990 में पहली बार दलित/अन्य पिछड़ी जातियों के सांसदों की संख्या उच्च जाती के मंत्रियों से अधिक हो गयी | लेकिन विशिश्त्वर्ग/उच्चवर्ग और जज अधिकतर उच्च जाती के थे | दलित और अन्य पिछड़ी जातियों के सांसद ने प्रधानमन्त्री को मजबूर करना शुरू कर दिया कि वो दलित और अन्य पिछड़ी जातियों के लोगों को जज नियुक्त कर दे | जज और उच्च जाती के उच्च/विशिष्ट वर्गीय लोगों को ये अच्छा नहीं लगा और इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के जजों ने ये फैसला सुना दिया 1992 में, न्यायालयों/कोर्ट के स्वतंत्रता का बहाना लेकर और संविधान में शब्दों का गलत अर्थ जजों द्वारा निकाला गया (राष्ट्रपति को सुप्रीम-कोर्ट के जजों कि नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज के साथ `परामर्श करना है संविधान के अनुसार| ये `परामर्श` राष्ट्रपति पर बाध्य नहीं है लेकिन ये परामर्श को बाध्य लिया गया |),जिसने ये स्पष्ट कर दिया कि जज ही जजों को नियुक्त करेंगे |
जजों की नियुक्ति के लिए आज सुप्रीम कोर्ट के जज ही निर्णय लेते हैं |
प्रधानमन्त्री सुप्रीम कोर्ट के जजों को न माने की धमकी दे सकते हैं लेकिन क्योंकि प्रधानमन्त्री और वरिष्ट मंत्री भी उच्च जाती ,अमिर लोगों के एजेंट/प्रतिनिधि हैं, वो शायद ही उनमें सुप्रीम कोर्ट के जजों से मतभेद होता है |इसीलिए जजों अपने रिश्तेदार, अपनी जाती के लोग और जानपहचान के लोगों को ही नियुक्त करते हैं और जजों की नियुक्ति परस्पर(आपसी) भाई-भातिजेवाद और पक्षपात से पूर्ण है |
इस समस्या का ये ही समाधान है कि जूरी प्रणाली(सिस्टम) (भ्रष्ट को जनसाधारण द्वारा सज़ा दिए जाने का अधिकार) निचले अदालत, हाई-कोर्ट,और सुप्रीम कोर्ट में लागू किया जाये और चुने हुए और जनसाधारण द्वारा हटाये/बदले जाने वाले जजों का चुनाव हो |
21.7.6 कैसे जूरी प्रणाली(सिस्टम) में भ्रष्टाचार कम हो जाते हैं
जज प्रणाली(सिस्टम) में अधिकांश भ्रष्टाचार संगठित/संगठन वाले अपराधियों अथवा बड़े कॉरपोरेट लोगों के जरिए होता है जिनके किसी राज्य में सैंकडों मुकद्दमें होते हैं। ये मुकद्दमें निचली अदालतों में 100-300 न्यायाधीशों के पास जाते हैं। इसलिए, बड़े-बड़े अपराधी और कॉरपोरेट लोग 15-50 ऐसे वकीलों के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत बना लेते हैं जो या तो इन न्यायाधीशों के नजदीकी रिश्तेदार होते हैं या किसी अन्य प्रकार से इन न्यायाधीशों के नजदीकी होते हैं। अब, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में ये सैंकडों मुकद्दमें हजारों जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों के पास जाएंगे। उदाहरण – यदि किसी गैंग मालिक और उसके गैंग के सदस्यों के खिलाफ किसी राज्य में 100 मुकद्दमें हैं। ये मुकद्दमें 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों के पास जाएंगे। एक राष्ट्र-स्तरीय कॉरपोरेट के खिलाफ भारत भर में एक वर्ष में 1000 मुकद्दमें होंगे और उन्हें भारत भर में एक वर्ष में 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों से लड़ाई लड़नी होगी। कोई भी गैंग मालिक अथवा कम्पनी इतने अधिक नागरिकों को घूस देने में सफल नहीं हो सकती। इसलिए वे ऐसा करने का प्रयास छोड़ देंगे ।
भारतीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज 10-100 गुना अधिक भ्रष्ट हैं पुलिस सेवकों के बनिस्पत| केवल यातायात पुलिस वाले का भ्रष्टाचार जनसाधारण को दृश्य है, जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों का भ्रष्टाचार दृश्य नहीं है | और ऊपर से `न्यायालय की मानहानी` द्वारा जज किसी को भी बंदी बना लेते हैं जो उनपर आरोप लगाते हैं, आरोप सही भी हों तो भी |
इसके अलावा, जज प्रणाली(सिस्टम) में एक जज को घूस देने के बाद उस जज को अपना वायदा पूरा करना पड़ता है नहीं तो उसे फिर से घूस नहीं मिलेगा। जूरी प्रणाली(सिस्टम) में जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य प्रत्येक मुकद्दमें के साथ ही बदल जाते हैं और फिर उस जूरी-मंडल का कोई सदस्य अगले कई वर्षों तक जूरी में वापस नहीं आ सकता। इसलिए घूस देने वाले के लिए यह निश्चित नहीं होता कि जूरी-मंडल का वह सदस्य अपना वायदा पूरा करेगा और अधिकांश बार, अपराधियों के खिलाफ घृणा होने के कारण, जूरी-मंडल का सदस्य घूस ले लेने के बावजूद भी किसी व्यक्ति/अपराधी को सजा दे ही देगा। घूस लेने के बाद भी उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं होता।
21.7.7 कैसे जूरी प्रणाली(सिस्टम) में पुलिस और प्रशासन में भ्रष्टाचार कम हो जाता है?
अधिकांश पुलिसवाले और अधिकारी वर्षों से सेवा में होने के कारण जजों/न्यायाधीशों के संपर्क में आ जाते हैं। लगभग हर पुलिसवाला और अधिकारी यह जानता है कि किसी विशेष जज की अदालत में उसके खिलाफ कोई मुकद्दमा होने पर उस जज के किस रिश्तेदार वकील से संपर्क करना होगा। और उनके वर्षों के साँठ-गाँठ/मिली-भगत और संबंध होते हैं। वह रिश्तेदार वकील पुलिसवालों और जजों/न्यायाधीशों से मिलने वाली उपकार/फायदों के बदले उपकार/फायदा देने का व्यापार करता है। और इसलिए पुलिसवाले और अधिकारी अपने उपर किए गए मुकद्दमें से आसानी से बच निकलते हैं। फिर भी, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में उन्हें उन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के खिलाफ लड़ना होता है जो भ्रष्ट पुलिसवालों और अधिकारियों से नाराज रहते/होते हैं। और उनका इन हजारों जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ कोई साँठ-गाँठ/मिली-भगत भी नहीं होता। इसलिए, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में इस बात की संभावना/अवसर अधिक होते हैं कि भ्रष्ट पुलिसवालों और अधिकारियों को सजा मिलेगी। यही कारण है कि जूरी प्रणाली(सिस्टम) में पुलिस, राजस्व, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि जैसे अन्य विभागों में भ्रष्टाचार कम होते हैं।