दूसरे शब्दों में , जहां जज प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद और परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद से भरा पड़ा है, वहीं जूरी प्रणाली(सिस्टम) भाई-भतीजावाद और परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद से अछुता/मुक्त है।
21.7.3 कैसे परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद के कारण जज प्रणाली(सिस्टम) में पेशेवर / कैरियर-अपराध बढ़ते हैं?
एक विशिष्ठ प्रकार के अपराध पर विचार कीजिए। एक सड़क छाप अपराधी (आम तौर पर जिसे भाई या दादा कहा जाता है) या कोई भी पेशेवर-अपराधी जो खुलेआम और निडर होकर छोटे दुकानदारों से उन्हें सुरक्षित छोड़ देने के बदले हर महीने पैसा वसूली करता है। अमेरिका/यूरोप में भी अधिक अपराध वाले स्थान मौजूद हैं, लेकिन कहीं भी कोई व्यक्ति दूकानदारों से खुलेआम पैसा वसूलते नहीं दिखता। भारत में पेशेवर-अपराधी के बेतहाशा होने का और पश्चिमी देशों में ऐसा बहुत कम दिखने का कारण है कि भारत में जज प्रणाली(सिस्टम) अपनाई जाती है जबकि पश्चिमी देशों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) अपनाई जाती है। जज प्रणाली(सिस्टम) भारत के न्यायालयों/कोर्ट को साँठ-गाँठ/मिली-भगत वाला बना देता है जबकि पश्चिमी अदालतों में जूरी प्रणाली(सिस्टम) ने साँठ-गाँठ/मिली-भगत की स्थिति को बहुत ही कम कर दिया है।
आइए देखें कि कैसे जूरी प्रणाली(सिस्टम) पश्चिमी देशों के न्यायालयों में साँठ-गाँठ/मिली-भगत-वाद को कम करता है। 50-100 अपराधियों वाले एक अपराधी गुट/गैंग के एक मध्यम-स्तरीय कैरियर-अपराधी पर विचार कीजिए। वह 5-10 क्षेत्रों में अपराध-कार्य चला रहा है। अब अपने अपराध को जारी रखने के लिए उसे और उसके गैंग के सदस्यों को, अनेक विधायकों, सांसदों, पुलिस अधिकारियों, अन्य अधिकारियों, सरकारी वकीलों और जजों/न्यायाधीशों आदि को मासिक घूस देने की जरूरत पड़ती है और उसे वकीलों, भाड़े के गुंडे आदि को समय-समय पर भाड़े पर लेने के लिए भी पैसे की जरूरत पड़ती है। इन सभी कार्यों के लिए उन्हें हर महीने लाखों रूपए की बंधी-बंधायी लागत आती है। अब ऐसे कैरियर-अपराधियों को हमेशा ऐसे 5-10 शिकार नहीं मिल सकते जिससे उसकी सभी लागतों की भरपाई हो सके और हर महीने उसे लाभ मिल सके। इसलिए लगभग हमेशा ही पेशेवर-अपराधियों के गैंग को हर महीने सैकड़ों शिकार पर सताना पड़ता है। संक्षेप में, एक कैरियर-अपराधी और उसके गैंग के सदस्यों को हर महीने सैकड़ों अपराध करने पड़ते है। इतने अधिक अपराधों में से लगभग 20-30 अपराध के शिकार लोग न्यायालयों में शिकायत दर्ज कराने तक ही सीमित रहते हैं। इससे लगभग 300-400 न्यायिक मुकद्दमें हर साल बन जाते हैं । अब यहीं पर कैरियर-अपराधियों से निबटने में जज प्रणाली(सिस्टम) और जूरी प्रणाली(सिस्टम) का अन्तर सामने आता है।
जज प्रणाली(सिस्टम) में कैरियर-अपराधी | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में कैरियर-अपराधी |
जज प्रणाली(सिस्टम) में, मान लीजिए, किसी गैंग मालिक के खिलाफ 4-5 वर्षों में लगभग 1000 मुकद्दमें दर्ज हुए। ये सभी मुकद्दमें केवल 5-10 जजों/न्यायाधीशों के ही पास जाऐंगे। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में हर मुकद्दमा 12-15 अलग-अलग जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास जाता है जो जिला, राज्य और राष्ट्र से क्रमरहित/रैंडम तरीके से चुने गए होते हैं। इस प्रकार, ये 1000 मुकद्दमें, 12000 से 15,000 जिले/राज्य अथवा राष्ट्र में जाऐंगे। |
इस प्रकार गवाहों को हतोत्साहित करने अथवा तत्काल छूटकारे के लिए मुकद्दमें में विलम्ब/देरी करने के उद्देश्य से गैंग नेता को केवल 5-10 जजों/न्यायाधीशों से साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाना पड़ता है। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में लम्बा विलम्ब शायद ही कभी होता है और हरेक जूरी को केवल एक ही मुकद्दमा दिया जाता है। 11 बजे सुबह से लेकर 4 बजे शाम तक उसके पास इस एकमात्र मुकद्दमें की सुनवाई होती है और अधिकांश अगली तारीख अगले दिन की ही होती है। और इसमें गैंग मालिक को 12,000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाना पड़ेगा। इसलिए, 5 वर्षों में 1000 मुकद्दमों में रिहाई प्राप्त करने के लिए गैंग नेता को 12,000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करने की जरूरत पड़ेगी। |
यदि गैंग मालिक 5-10 जजों/न्यायाधीशों के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करने में किसी तरह कामयाब हो जाता है तो वह 99 प्रतिशत मुकद्दमों में रिहाई/विलम्ब कराने में सफल हो सकता है। | इसलिए, पांच वर्षों में 1000 मुकद्दमों में रिहाई के लिए गैंग मालिक को 12000 जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के साथ साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करने की जरूरत पड़ेगी। |
इस प्रकार, जूरी प्रणाली(सिस्टम) में 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत मुकद्दमों में भी रिहाई करवा पाना असंभव ही है। दूसरे शब्दों में, भारत के न्यायालयों/कोर्ट में बड़ी संख्या में मुकद्दमें कुछ ही लोगों (अर्थात जजों/न्यायाधीशों) द्वारा सुलझाए जाते हैं, इसलिए पेशेवर-अपराधियों के साँठ-गाँठ/मिली-भगत बन जाया करते हैं और वे आजादी से आपराधिक काम करते रहते हैं। जबकि पश्चिमी देश बहुत अधिक लोगों का उपयोग मुकद्दमों को सुलझाने में करते हैं जिससे काफी अधिक संख्या में मुकद्दमों में साँठ-गाँठ/मिली-भगत कायम करना असंभव होने की हद तक कठिन हो जाता है। इसलिए, पश्चिमी देशों में पेशेवर-अपराध जैसे जबरन वसूली समाप्त हो गए हैं।
21.7.4 जज प्रणाली(सिस्टम) में जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत
इससे पहले का वर्णन जज-अपराधी साँठ-गाँठ/मिली-भगत के बारे में था। भारत में न्यायालय जज-वकील गठबंधनों से भरे पड़े हैं। जजों/न्यायाधीशों और संबंधी वकीलों के बीच का साँठ-गाँठ/मिली-भगत अब अपवाद के स्थान पर कानून ही बन गया है। लेकिन इससे हटकर भी कई जजों/न्यायाधीशों के साँठ-गाँठ/मिली-भगत वैसे वकीलों से भी रहते हैं जो उनके रिश्तेदार नहीं होते। यह जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत कैसे पनपता है? पश्चिमी देशों के न्यायालयों में किसी ने भी कभी जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत नहीं देखा है। इसके कारण संरचनात्मक ढ़ांचा है न कि संस्कृति।