1. जूरी प्रणाली(सिस्टम) – किसी विवाद को देखते हुए उसी जिले, राज्य अथवा राष्ट्र के सभी वयस्क नागरिकों की मतदाता सूची में से क्रमरहित/रैंडम तरीके से 10, 12 अथवा 15 नागरिकों का चयन किया जाता है जिन्हें जूरी/निर्णायक मण्डल का सदस्य कहा जाता है। ये जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य दलीलें सुनते हैं, साक्ष्यों का परीक्षण करते हैं और फैसले देते हैं । उदाहरण के लिए, भारत में वर्ष 1956 से पहले क्रमरहित/रैंडम तरीके से चुने गए 12 नागरिकों द्वारा कई मुकद्दमें सुलझाए गए थे।
2. जज प्रणाली(सिस्टम) – सरकार राष्ट्र की हर एक करोड़ जनता पर 200-2000 व्यक्तियों को जज बहाल/नियुक्त करती है जिनका कार्यकाल 20-35 वर्ष होता है। और ये निश्चित,कुछ सीमित संख्या में नियुक्त किए गए व्यक्ति(जज) ही विवादों को निपटाते हैं। उदाहरण – भारत में लगभग 13,000 जजों/न्यायाधीशों और लगभग 5000 ट्रायब्यूनल्स/न्यायाधिकरणों(किसी विशिष्ठ उद्वेश्य अथवा कार्य के लिए नियुक्त किया हुआ कोई न्यायालय/कोर्ट) द्वारा मुकद्दमें निपटाए जाते हैं।
अन्य प्रणालियों में इन दोनों का प्रयोग किया जाता है अर्थात क्रमरहित/रैंडमली चुने गए नागरिकों के साथ-साथ नियुक्त व्यक्ति, मुख्य रूप से जूरी प्रणाली(सिस्टम) और जज प्रणाली(सिस्टम) का मिला-जुला रूप है। जूरी का आकार, शैक्षणिक योग्यता,(जूरी के सदस्यों की ) छंटाई के नियम आदि अन्य कई बातें/कारक हैं जो एक जूरी प्रणाली(सिस्टम) को दूसरे जूरी प्रणाली(सिस्टम) से भिन्न/अलग बनाते हैं। लेकिन जूरी प्रणाली(सिस्टम) और जज प्रणाली(सिस्टम) के बीच मूलभूत/आधारभूत अन्तर इस प्रकार हैं –
जज प्रणाली(सिस्टम) | जूरी प्रणाली(सिस्टम) |
भारत में व्यक्तियों का एक छोटा समूह। मान लीजिए, 20,000 से 100,000 व्यक्ति भारत में सभी 20-25 लाख मुकद्दमों का फैसला/निर्णय करते हैं। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में, प्रत्येक मुकद्दमा 12-15 अलग-अलग उन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास जाता है जो जिले, राज्य और राष्ट्र से चुने गए होते हैं। 20-25 लाख मुकद्दमें 3 करोड़ नागरिकों द्वारा सुलझाए जाते हैं। |
अनेक मुकद्दमें एक ही व्यक्ति-समूह के पास चले जाते हैं। एक जज अपने पूरे सेवाकाल/कैरियर के दौरान लगभग 500 से 200,000 मामलों की सुनवाई करता है | | प्रत्येक मुकद्दमें के साथ जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य बदल जाते हैं। एक नागरिक कम से कम 5 वर्षों के लिए फिर से जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य नहीं बन सकता है। |
यदि किसी जिले में हर वर्ष 5000 मुकद्दमें/मामले आते हैं और मान लीजिए, 5 वर्षों में 25,000 मुकद्दमें आते हैं तो जज प्रणाली(सिस्टम) में लगभग 20-25 जजों/न्यायाधीशों द्वारा उन्हें निपटाया जाता है। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में, इन्हें 300,000 से 400,000 भिन्न-भिन्न नागरिकों द्वारा सुलझाया जाएगा। |
उपरी तौर पर, यह मुद्दा महत्वपूर्ण नहीं भी लग सकता है – इससे क्या फर्क पड़ता है, चाहे मुकद्दमों का फैसला क्रमरहित ढ़ंग से चुने गए नागरिकों द्वारा किया जाए अथवा तयशुदा/निर्धारित जजों/न्यायाधीशों द्वारा?लेकिन यह बहुत ही छोटा दिखने वाला अन्तर राष्ट्र को सुदृढ़/मजबुत बनाने या कमजोर करने में एक बड़ी भूमिका अदा करता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य में वर्ष 2006-2007 में कुल आपराधिक जूरी सुनवाइयों की संख्या लगभग 6000 थी। इसलिए फैसले लगभग 6000 × 12 = 72,000 अलग-अलग नागरिकों द्वारा दिए गए थे। जज प्रणाली(सिस्टम) में केवल कुछ सौ जजों/न्यायाधीशों ने ये निर्णय दिए होते। यदि 25 वर्षों की अवधि का हिसाब लगाया जाए तो इसका अर्थ होगा – 6000 × 25= 150,000 जूरी सुनवाइयां जिनमें मुकद्दमों की सुनवाई 15,000 × 12 1800,000 नागरिकों द्वारा किया जाएगा जबकि जज प्रणाली(सिस्टम) में ये सुनवाइयां कुछ सौ या 1000-1500 जजों/न्यायाधीशों द्वारा की जाएंगी। संख्याओं में 1800-2000 गुणा की बड़ी बढ़ोत्तरी जूरी प्रणाली(सिस्टम) में साँठ-गाँठ/मिली-भगत , भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार के अवसर बहुत ही कम कर देता है। जूरी-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत की संभावना जज-वकील साँठ-गाँठ/मिली-भगत की तुलना में बहुत ही कम होती है क्योंकि जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होती है।
21.7.2 जज प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद अथवा परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद तेज़ी से कैसे बढ़ जाते हैं?
जज प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद समाप्त करने के लिए, किसी जज के रिश्तेदार को उस जज के कोर्ट में प्रैक्टिस/वकालत सम्बन्धी अभ्यास करने पर प्रतिबंध है। अब प्रमुख बुद्धिजीवी लोग जोर देते हैं कि हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि इस प्रतिबंध से हमारे न्यायालयों/कोर्ट में भाई-भतीजावाद की संभावना ही समाप्त हो जाती है। देखिए, इस प्रतिबंध से कोई अंतर नहीं पड़ता। आज तक जितने भी प्रख्यात/प्रमुख बुद्धिजीवियों से मैं मिला हूँ, वे सभी न्यायालयों/कोर्ट में परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद की समस्या पर चर्चा/वाद-विवाद करने तक के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं। और आज तक जूरी प्रणाली(सिस्टम) ही न्यायालयों में परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद का एकमात्र ज्ञात हल/समाधान है। यह परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद इतना बढ़ चुका है कि अपराधी और उद्योगपति केवल एकाध रिश्तेदार वकील (अपने लिए) रखते हैं और सभी पक्षपातपूर्ण फैसले अपने हक/पक्ष में लेते रहते हैं और आम आदमी तो न्यायालयों/कोर्ट में पिसता/प्रताड़ित ही होता रहता है। परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद ही वह महत्वपूर्ण कारण है कि क्यों सेज/एस ई जेड जैसे अधिनियम उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालयों में रद्द नहीं किए जा सके।
जूरी प्रणाली(सिस्टम) में भाई-भतीजावाद और परस्पर(आपसी) भाई-भतीजावाद (संरचनात्मक रूप से) असंभव है। यह लिखित परीक्षा के आधार पर भर्ती किए जाने के समान है जिसमें भाई-भतीजावाद से ज्यादा अंतर/फर्क नहीं पड़ता।
जज प्रणाली(सिस्टम) | जूरी प्रणाली(सिस्टम) |
एक जज का कार्यकाल 3-4 वर्षों का होता है। यह जजों/न्यायाधीशों और संगठित/व्यवस्थित अपराधियों के लिए सौदा करने के उद्देश्य से जजों/न्यायाधीशों के संबंधियों से संपर्क कायम करने के लिए लम्बा समय है। | जूरी प्रणाली(सिस्टम) में 12 जूरी(निर्णायक मण्डल) के सदस्य को 5 लाख से लेकर 100 करोड़ तक की जनसंख्या में से चुना जाता है। इसलिए, इन जूरी/निर्णायक मण्डल के सदस्य के पास केवल 1 ही मुकद्दमा होता है। इसलिए 99 प्रतिशत मुकद्दमें केवल 5 से 15 दिनों में ही समाप्त हो जाते हैं। इसलिए पहले तो ऐसा होने की संभावना न के बराबर है कि कोई वकील इस दुनिया में मौजूद हो जो इन 12 जूरी/निर्णायक मण्डल केसदस्यों का रिश्तेदार हो अथवा इनमें से 6 अथवा यहां तक कि इनमें से किन्हीं दो का भी रिश्तेदार निकले। और उन्हें 15 दिनों के भीतर ही खोज निकालना इस कार्य को और अधिक कठिन बना देता है। |
भारत में औसतन हर जिले में 5000 मुकद्दमें आते हैं और उन्हें उस जिले के 50-100 जजों/न्यायाधीशों के पास भेजा जाता है। इसलिए, वकील लोग व्यक्तिगत रिश्तों का उपयोग करके इतने कम जजों/न्यायाधीशों से साँठ-गाँठ/मिली-भगत बनाने में आसानी से सफल हो जाते हैं।
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