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उनके पासपोर्ट से यह खुलासा हुआ कि वह दम्पत्ति वर्ष 1989 से ही हर वर्ष भारत आया करता था। वे कई देशों में अपना धन्धा चलाते थे और उनके लैपटॉप बच्चों की तस्वीरों से भरे पड़े थे जिसमें श्रीलंका और फिलिपिन्स के भी बच्चे थे। स्वयं को अकेला बुजुर्ग दम्पत्ति बताकर वे गली के बच्चों और उनके माता-पिता से दोस्ती करते थे और उन्हें दान की आड़ में खुशहाल जिन्दगी का वायदा करते थे। श्री मार्टी (जिसने स्वयं को एक बहुराष्ट्रीय दवा कम्पनी में महा-प्रबंधक/मेनेजर बताया था) और उसकी पत्नी, दोनों के पास से चिकनाई वाले पदार्थ/लुब्रिकेन्ट्स, कंडोम और लिंग के उपर छिड़काव करने वाले स्प्रे पाए गए थे। लिली मार्टिन एक प्रशिक्षित नर्स थी जो उत्पीड़न के शिकार बच्चों के घाव की दवा–पट्टी करती थी। लेकिन साक्ष्य के रूप में रिकार्ड की गई इन बातों में से किसी भी बात का उल्लेख मुंबई उच्च न्यायालय के फैसले में नहीं किया गया। उच्चतम न्यायालय की बेंच जिसके अध्यक्ष मुख्य न्यायाधीश वी. एन. खरे थे, उन्होंने 5 अप्रैल, 2004 को दिए गए अपने फैसले में इन बाल अपराध के दोनों दोषियों को जमानत दे दी ….. “
भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री खरे से जमानत मिल जाने के बाद दोनों धनवान स्विट्जरलैण्ड-वासी बाल यौन-शोषण अपराधी भारत से बच निकले। इस प्रकार के जमानत के आदेश ने पुलिसवालों और निचली अदालत के जजों/न्यायाधीशों के मनोबल गिरा दिए। उन्होंने अवश्य ही यह सोचा होगा कि अपराधी को सजा दिलाने का उनका प्रयास बेकार गया। और उन्हें इस बात का मन में दुःख भी रहा होगा कि घूस दिए जाने के प्रस्ताव को उन्होंने क्यों ठुकरा दिया। मुंबई उच्च न्यायालय के जज/न्यायाधीश द्वारा छोड़ दिए जाने का आदेश संविधान के खिलाफ था। और मुख्य न्यायाधीश/जज प्रधान `खरे` द्वारा दोनों धनवान स्विट्जरलैण्ड-वासी बाल अपराध के दोषियों को दिया गया जमानत का आदेश भी संविधान का घोर उल्लंघन था। संविधान के ऐसे उल्लंघन इसलिए होते हैं कि हम नागरिकों के पास संविधान का उल्लंघन करने वाले न्यायाधीशों/जजों/न्यायाधीशों को बर्खास्त करने/हटाने की कोई प्रक्रिया नहीं है।
(21.2) ऐसे अन्यायपूर्ण फैसलों का समाज पर प्रभाव |
यदि हम न्यायालयों/कोर्ट में सुधार नहीं लाऐंगे तो अमीरों द्वारा सबसे गरीब 99 प्रतिशत नागरिकों पर अन्याय तो बढ़ता ही जाएगा। समाज में मिल-जुलकर रहने की स्थिति कम होती जाती है और देश के प्रति आम-नागरिकों की वफादारी कम हो जाती है जब विशिष्ट/उच्च वर्ग के लोग आम लोगों का ज्यादा से ज्यादा अत्याचार करने लगते हैं। और समाज में मिल-जुलकर रहने की स्थिति में कमी आने से प्रशासन और सेना की ताकत भी कम होती है । जब व्यक्तियों को कोर्ट से खुला अन्याय मिलता है तो उन्हें राष्ट्र और समाज की रक्षा करने में कोई लाभ नजर नहीं आता है। पुलिस व न्यायालय आदि में अन्यायपूर्ण व्यवहार किए जाने से दिनों-दिन राष्ट्रीयता की भावना में कमी आती जाती है और इससे पूरा समाज, राष्ट्र और यहां तक कि राष्ट्र का प्रत्येक अंग प्रशासन, पुलिस, सेना आदि भी कमजोर हो जाता है। नागरिकगण जजों/न्यायाधीशों के अन्यायपूर्ण व्यवहार को कैसे रोक सकते है? और कैसे हम नागरिक सुप्रीम-कोर्ट और हाई-कोर्ट में संविधान की अवहेलना और जजों का अन्यायपूर्ण व्यवहार रोक सकते हैं? और कैसे नागरिकगण न्यायालयों/कोर्ट में तेजी से मुकद्दमों का निपटारा करने के कार्य में सुधार कर सकते हैं?
(21.3) न्यायालय / कोर्ट में और सुधार की राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह की मांग और वायदे |
राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) को एक साधन के रूप में इस्तेमाल करके और नागरिकों से हां प्राप्त करके भारत की न्याय व्यवस्था में निम्नलिखित परिवर्तन/बदलाव लाने की मांग और इसका वायदा करता हूँ:-
1. प्रजा अधीन–उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश/प्रजा अधीन-सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज(भ्रष्ट सुप्रीम कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का आम लोगों का अधिकार )
2. प्रजा अधीन–उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश/ प्रजा अधीन-हाई कोर्ट प्रधान जज (भ्रष्ट हाई-कोर्ट के प्रधान जज को बदलने का आम लोगों का अधिकार )
3. प्रजा अधीन–निचली अदालत के मुख्य न्यायाधीश/प्रजा अधीन-निचली कोर्ट प्रधान जज (भ्रष्ट निचली अदालत के प्रधान जज को बदलने का आम लोगों का अधिकार )
4. साक्षात्कार समाप्त करना – सभी निचली अदालतों के जजों/न्यायाधीशों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा
5. सभी छोटे/कनिष्ठ उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों/हाई-कोर्ट के जजों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
6. सभी छोटे/कनिष्ठ सुप्रीम कोर्ट के जजों/न्यायाधीशों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
7. सजा के निर्णय/फैसले करने के लिए निचली अदालतों में जूरी व्यवस्था
8. अपीलों के लिए उच्च न्यायालय/हाई-कोर्ट में जूरी व्यवस्था
9. अपीलों के लिए उच्चतम न्यायालय में जूरी व्यवस्था
10. राष्ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली(व्यवस्था) (न्यायालयों में अभिलेखों/रिकार्ड में सुधार लाने के लिए)
11. केवल पुलिस व न्यायालय को धन उपलब्ध कराने के लिए 25 वर्ग मीटर प्रति व्यक्ति से अधिक की गैर-कृषि भूमि/जमीन पर बाजार मूल्य का 0.5 प्रतिशत सम्पत्ति-कर लागू करना
12. 100,000 और निचली अदालत की स्थापना/निर्माण
13. राज्य सरकार के किसी कर्मचारी को बर्खास्त करने या उसपर अर्थदण्ड/जुर्माना लगाने के लिए जूरी प्रणाली(सिस्टम) लागू करना
14. केन्द्र सरकार के किसी कर्मचारी को बर्खास्त करने या उसपर अर्थदण्ड/जुर्माना लगाने के लिए जूरी प्रणाली (सिस्टम) लागू करना
15. मुख्य राष्ट्रीय दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर को बदलने का नागरिकों को अधिकार प्रदान करना
16. मुख्य राज्य दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर को बदलने का नागरिकों को अधिकार प्रदान करना
17. मुख्य जिला दण्डाधिकारी/प्रोजिक्यूटर को बदलने का नागरिकों को अधिकार प्रदान करना
18. कनिष्ठ/जूनियर जिला दण्डाधिकारी की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
19. कनिष्ठ/जूनियर राज्य दण्डाधिकारी(प्रोजिक्यूटर) की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा (कोई साक्षात्कार नहीं)
20. राष्ट्रीय दण्डाधिकारी/नेशनल प्रोजिक्यूटर की भर्ती केवल वरियता आधार पर (कोई साक्षात्कार नहीं)
21. कक्षा VI से कानून की पढ़ाई
22. सभी वयस्कों को कानून की शिक्षा मुफ्त में देना
23. सभी सरकारी कर्मचारियों और उनके निकट संबंधियों, उनके ट्रस्टों/न्यासों, कम्पनियों की संपत्ति की घोषणा करना
24. सभी सरकारी कर्मचारियों और उनके निकट संबंधियों की निवासी होने की स्थिति और नागरिकता की स्थिति का खुलासा करना
25. अदालतों के सभी अभिलेख/रिकार्ड यथा-संभव, इंटरनेट पर रखे जाएंगे