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महा-जूरीमंडल
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यदि कोई जूरी सदस्य अथवा कोई एक पक्ष उपस्थित नहीं होता है या देर से उपस्थित होता है तो महा-जूरीमंडल 3 महीने के बाद दण्ड/जुर्माने पर फैसला करेंगे जो अधिकतम 5000 रूपए अथवा अनुपस्थित व्यक्ति की सम्पत्ति का 5 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, तक हो सकता है।
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अध्यक्षता करने वाला जज
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जुर्माने/अर्थदण्ड के मामले में, हर जूरी सदस्य दण्ड की वह राशि/रकम बताएगा जो वह उपयुक्त समझता है। और यह कानूनी सीमा/लिमिट से कम ही होनी चाहिए। यदि यह कानूनी सीमा/हद से ज्यादा है तो जज इसे ही कानूनी सीमा मानेगा। वह जज दण्ड की राशियों को बढ़ते क्रम में सजाएगा और चौथी सबसे छोटी दण्डराशि को चुनेगा अर्थात उस राशि को जूरी मंडल द्वारा सामूहिक रूप से लगाया गया जुर्माना/दण्ड माना जाएगा जो 12 जूरी सदस्यों में से 8 से ज्यादा सदस्यों ने(उतना या उससे अधिक) अनुमोदित किया हो | उदहारण-जैसे जूरी-मंडल द्वारा लगायी हुई दण्ड-राशि यदि बदते क्रम में 400,400,500,600,700,700,800,1000,1000,1200,1200 रुपये हैं तो चौथी सबसे छोटी दण्ड-राशि 600 है और बाकी 8 जूरी-मंडल के लोगों ने इससे अधिक दण्ड-राशि का अनुमोदन/स्वीकृति किया है |
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अध्यक्षता करने वाला जज
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कारावास की सजा के मामले में जज, जूरी-मंडल/जूरर्स द्वारा दी गई/बताई गई सजा की अवधि को बढ़ते क्रम में सजाएगा जो उस कानून में उल्लिखित सजा से कम होगा, जिस कानून को तोड़ने का वह आरोपी है। और जज चौथी सबसे छोटी सजा-अवधि को चुनेगा यानि कारावास की वह सजा जो 12 जूरी-मंडल/जूरर्स में से 8 से ज्यादा जूरी सदस्यों द्वारा अनुमोदित हो को `कारावास की सजा जूरी-मंडल/जूरर्स द्वारा मिलकर तय किया गया` घोषित करेगा ।
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सैक्शन – 5 : निर्णय/फैसला,(फैसले का) अमल और अपील
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जिला पुलिस प्रमुख
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जिला पुलिस प्रमुख या उसके द्वारा निर्दिष्ट/नामांकित पुलिसवाला, जुर्माना अथवा कारावास की सजा जो जज द्वारा सुनाई गई है और जूरी-मंडल/जूरर्स द्वारा दी की गई है, पर अमल करेगा/करवाएगा।
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जिला पुलिस प्रमुख
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यदि 4 या इससे अधिक जूरी सदस्य किसी कुर्की/जब्ती अथवा जुर्माने अथवा कारावास की सजा की मांग नहीं करते तो जज आरोपी को निर्दोष घोषित कर देगा और जिला पुलिस प्रमुख उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेगा।
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आरोपी, शिकायतकर्ता
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दोनो ही पक्षों को राज्य के उच्च न्यायालय अथवा भारत के उच्चतम न्यायालय में फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए 30 दिनों का समय होगा।
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सैक्शन – 6 : नागरिकों के मौलिक / बुनियादी (मूल/प्रमुख) अधिकारों की रक्षा
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सभी सरकारी कर्मचारी
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निचली अदालतों के 12 जूरी सदस्यों में से 8 से अधिक की सहमति के बिना किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा तब तक कोई अर्थदण्ड अथवा कारावास की सजा नहीं दी जाएगी जब तक कि हाई-कोर्ट अथवा सुप्रीम-कोर्ट के जूरी-मंडल/जूरर्स इसका अनुमोदन/स्वीकृति नहीं कर देते। कोई भी सरकारी कर्मचारी किसी नागरिक को जिला अथवा राज्य के महा-जूरीमंडल के 30 में से 15 से ज्यादा सदस्यों की अनुमति के बिना 24 घंटे से अधिक से लिए जेल में नहीं डालेगा/बन्दी नहीं बनाएगा।
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सभी के लिए
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जूरी सदस्य तथ्यों के साथ-साथ इरादे/मंशा के बारे में भी निर्णय करेंगे और कानूनों के साथ-साथ संविधान की भी व्याख्या/अर्थ करेंगे।
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यह सरकारी अधिसूचना(आदेश) तभी लागू/प्रभावी होगी जब भारत के सभी नागरिकों में से 51 प्रतिशत से अधिक नागरिकों ने इस पर हां दर्ज किया हो और उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों ने इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का अनुमोदन/स्वीकृति कर दिया हो।
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जिला कलेक्टर
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यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन/बदलाव का प्रस्ताव करता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क से परिवर्तन की मांग करते हुए एक एफिडेविट/शपथपत्र जमा करवा सकता है। नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क इसे 20 रूपए प्रति पृष्ठ का शुल्क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा।
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तलाटी अर्थात पटवारी
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यदि कोई नागरिक इस कानून या इस कानून के किसी क्लॉज/खण्ड पर अपना विरोध दर्ज कराना चाहता है अथवा उपर्युक्त क्लॉज/खण्ड के बारे में दायर किए गए ऐफिडेविट पर कोई समर्थन दर्ज कराना चाहता है तो वह पटवारी के कार्यालय में 3 रूपए का शुल्क जमा करके अपना हां/नहीं दर्ज कर सकता है। पटवारी नागरिकों के हां/नहीं को लिख लेगा और नागरिकों के हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा।
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(21.12) नागरिकगण भारत में जूरी प्रणाली (सिस्टम) कैसे ला सकते हैं?
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राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में मैं नागरिकों से निम्नलिखित कदम उठाने के लिए कहता हूँ :-
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वर्तमान प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और महापौरों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) कानून पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य/मजबूर/विवश करना
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`जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके प्रधानमंत्री को प्रजा अधीन–सुप्रीम कोर्ट प्रधान जज/ उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कानून पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य/विवश करना
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`जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके प्रधानमंत्री को प्रजा अधीन–प्रधानमंत्री कानून पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य करना
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`जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का प्रयोग करके प्रधानमंत्री को उपर उल्लिखित जूरी प्रणाली(सिस्टम) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट जारी करने के लिए बाध्य/विवश करना
(21.13) जजों की नियुक्ति / भर्ती में भाई-भतीजावाद कम करना
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राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में मैं यह मांग और वायदा करता हूँ कि जिला और उच्च न्यायालयों में सभी जजों की भर्ती केवल लिखित परीक्षा के द्वारा ही हो और कोई साक्षात्कार न लिया जाए। साक्षात्कार एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा जजों ने यह सुनिश्चित किया है कि उनके रिश्तेदार, नजदीकी मित्र और नजदीकी मित्रों के रिश्तेदारों का चयन हो जाए। उच्चतम न्यायालयों में जजों की नियुक्ति/भर्ती केवल और केवल वरियता के आधार पर की जानी चाहिए और साक्षात्कार का कोई प्रावधान ही नहीं होना चाहिए। यदि कोई गलत व्यक्ति जज बन जाता है तो नागरिकगण उसे हटा सकते हैं या बर्खास्त कर सकते हैं, लेकिन जजों का इसपर कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए कि कौन व्यक्ति जज नियुक्त होगा/बनेगा। इसके अलावा, हटाने या बदलने की जिस प्रक्रिया का प्रस्ताव मेरा राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह करता है वह भाई-भतीजावाद से अछूता/प्रतिरक्षित/मुक्त है। कोई भी व्यक्ति उन लाखों नागरिकों का रिश्तेदार नहीं हो सकता जो अपना अनुमोदन/स्वीकृति देने जा रहे हैं।
(21.14) सारी जनता को कानून की पढ़ाई पढ़ाना और अन्य परिवर्तनों के बारे में बताना
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मैं राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में यह वायदा करता हूँ कि सभी छात्रों को कक्षा VI से अथवा यदि अभिभावक(माता-पिता) अनुमोदन/स्वीकृति देते हैं तो इससे पहले से भी, कानून की शिक्षा दूंगा। इसके अलावा, सभी वयस्कों को भी संध्या/शाम की कक्षा या दूरदर्शन, आकाशवाणी, और अन्य माध्यमों से कानून की शिक्षा दी जाएगी। सर्वजन/सभी को हथियार की शिक्षा और सर्वजन/सभी को कानून की शिक्षा मेरी दो मांगें और वायदे हैं।