सूची
- (16.3) नागरिकों और सांसदों का कार्य
- (16.4) क़ानून-ड्राफ्ट – रहित कार्यकर्ता : बिना डिजाइन का इंजिनियर
- (16.5) कानून-ड्राफ्ट (प्रारूपों) का उपयोग करके आन्दोलन खड़ा करना नेताओं को आदर्श प्रतिनिधि / नुमाइंदा बनाकर पेश करने से कहीं ज्यादा आसान है
- (16.6) ऊंचे/विशिष्ट लोग क़ानून-ड्राफ्ट से ज्यादा व्यक्ति को प्राथमिकता देते हैं ; कार्यकर्ताओं को इसके विपरित काम करना चाहिए
(16.3) नागरिकों और सांसदों का कार्य |
सांसदों का कार्य है कि
(1) क़ानून-ड्राफ्ट को अध्यक्ष को प्रस्तुत करना/देना
(2) अपनी हाँ/ना कहना जब अध्यक्ष उस क़ानून-ड्राफ्ट /मसौदे पर मतदान तय करे
सांसद को (1) और (2) नागरिकों की इच्छा के अनुसार करना होता है | ये नागरिकों का कर्तव्य है कि क़ानून-ड्राफ्ट / मसौदा तैयार करे और सांसद को प्रस्तुत करे/दे | जब तक कि नागरिकों ने कोई क़ानून-ड्राफ्ट नहीं दिया है, तब तक सांसदों को एक मांसपेशी भी नहीं हिलानी है (कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं )|
(16.4) क़ानून-ड्राफ्ट – रहित कार्यकर्ता : बिना डिजाइन का इंजिनियर |
मान लीजिए, आप के पास लगभग 1000 वर्ग मीटर का एक प्लॉट है और आप उस पर एक बंगला बनाना चाहते हैं। मान लीजिए, आप किसी इंजिनियर के पास जाते हैं और अपनी आवश्यकता बताते हैं। वह इंजिनियर आपसे बड़े-बड़े वायदे करता है कि इस बंगले में बड़े कमरे, बड़ी गैलरी और अच्छे बाथरूम आदि होंगे। इसके बाद आप उसे डिजाइन और लागत का अनुमान देने के लिए कहते हैं और मान लीजिए यदि इंजिनियर कहता है “विस्तृत ब्यौरों की चिन्ता कृपया न करें। बस केवल मुझे दो तीन वर्षों के लिए अपने इस प्लॉट का वापस-न-किया-जा-सकने-वाला पावर आफ एटर्नी दे दें और तीन वर्षों में मैं आपको एक बहुत बढ़िया बंगला दे दूंगा !!”कोई भी जिम्मेदार इंजिनियर ऐसा गैर-जिम्मेदाराना जवाब नहीं देगा। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से और दुखद रूप से सभी चुनावी उम्मीदवार और उनके समर्थक कार्यकर्ता पिछले 60 वर्षों से ऐसे ही जवाब देते आ रहे हैं। पिछले 60 वर्षों में, सभी उम्मीदवारों ने मतदाताओं से कहा कि मतदाताओं को संसद अथवा विधान सभा में पहुंचने के बाद उम्मीदवार द्वारा लागू करवाए जाने वाले कानून के प्रारूपों के बारे में चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मेरे विचार से, वह 5 वर्षों के वापस-न-लिया-जा-सकने-वाला विशेष प्रतिनिधित्व का अधिकार चाहता है और अपने द्वारा प्रस्तावित किए जाने वाले प्रारूप/ड्राफ्ट तक उपलब्ध कराना नहीं चाहता। इसलिए कुल मिलाकर, ड्राफ्ट-रहित नेता उस इंजिनियर के समान हैं जो डिजाइन बताने से मना करते हैं और जमीन/पैसे की मांग करते हैं।
निर्माण कार्य के लिए डिजाइन देना अनिवार्य होता है, ताकि यह पक्का हो सके कि डिजाइन स्थायी है और इसमें खराबी नहीं आएगी । इसी प्रकार, प्रशासन में प्रारूप/ड्राफ्ट-कानून यह विश्लेषण करने के लिए जरूरी हैं कि वह प्रारूप-कानून स्थिति को और बिगाड़ेगा या सुधारेगा। प्रत्येक कार्यकर्ता नेता प्रारूप/ड्राफ्ट का महत्व जानते हैं।
क़ानून-ड्राफ्ट -रहित कार्यकर्ता : वैसे डॉक्टर जो दवा का नाम नहीं बताते
मान लीजिए, एक रोगी है जो बीमार है। और मान लीजिए, रोगी डॉक्टर के पास जाता है जो बीमारी, इसके कारण आदि का विस्तृत ब्यौरा देता है। और फिर दवा का नाम बताने से इनकार करता है। क्या वह डॉक्टर सही है?
प्रारूप/ड्राफ्ट-रहित कार्यकर्ता नेता इससे ज्यादा अलग नहीं हैं। यह पता है कि गरीबी और भ्रष्टाचार जैसी कई समस्याओं के समाधान के लिए कानूनों में परिवर्तन की जरूरत है और कानूनों में बदलाव के लिए इसके प्रारूपों/ड्राफ्ट को विधानसभा, संसद में पारित करने/कराने की जरूरत है। और इसके लिए प्रारूप/ड्राफ्ट होना ही चाहिए। इसके बावजूद अधिकांश कार्यकर्ता नेता भ्रष्टाचार और गरीबी कम करने के लिए आवश्यक प्रारूप/ड्राफ्ट देने/बताने से मना करते हैं। ये प्रारूप/ड्राफ्ट-रहित कार्यकर्ता नेता उन डॉक्टरों के समान हैं जो दवाओं के नाम नहीं बताते।
ठीक उसी प्रकार रोगी को यह तय करने के लिए किसी दवा का नाम चाहिए कि दवा का कोई गंभीर साइड-इफेक्ट/दुष्प्रभाव तो नहीं है, इसी प्रकार नागरिकों को कानून का प्रारूप देखने/समझने की जरूरत होती है ताकि वे निर्णय कर सकें कि ड्राफ्ट में ज्यादा साइड-इफेक्ट है या ज्यादा अच्छाई है। यदि कोई कार्यकर्ता नेता उस प्रारूप/ड्राफ्ट को देने से मना करता है जिस प्रारूप/ड्राफ्ट पर वह दावा करता है कि इससे समस्याएं कम होंगी, तब वह कार्यकर्ता नेता नागरिकों को इसके साइड-इफेक्ट के सत्यापन/निश्चित करने का अवसर नहीं दे रहा है। ऐसे मामले में वह उस डॉक्टर से ज्यादा खतरनाक/बुरा है जो दवा नहीं देते। वह उस डॉक्टर के समान है जो रोगियों को दवा के साइड-इफेक्ट के बारे में निर्णय करने का अवसर दिए बिना दवा देने में विश्वास करता है।
(16.5) कानून-ड्राफ्ट (प्रारूपों) का उपयोग करके आन्दोलन खड़ा करना नेताओं को आदर्श प्रतिनिधि / नुमाइंदा बनाकर पेश करने से कहीं ज्यादा आसान है |
मान लीजिए मैं एक कार्यकर्ता नेता हूँ और मैने कई घंटों की बातचीत के बाद ,श्री `क.` को संतुष्ट कर दिया है कि मैं भरोसा करने लायक हूँ और मैं भ्रष्टाचार कम कर दे सकता हूँ। अब यदि श्री `क.` श्री `ख.` को इस बात पर राजी करने की कोशिश करते हैं कि मैं एक भरोसेमन्द नेता हूँ और मैं भ्रष्टाचार कम कर सकता हूँ, तब ऐसा करना एक बहुत ही कठिन काम है क्योंकि श्री `ख.` ने न तो मुझसे कभी बात की है और न ही कभी मुझसे मिले हैं और न ही उन्होंने कभी मुझे देखा है।
इसके विपरित, यदि मैं किसी कार्यकर्ता श्री `क.` को संतुष्ट कर देता हूँ कि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत प्रणाली, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) जैसे कुछ क़ानून-ड्राफ्ट भ्रष्टाचार कम कर सकते हैं तो कार्यकर्ता श्री क. आसानी से कार्यकर्ता श्री `ख.` को प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट के गुणों/अच्छाइयों के बारे में संतुष्ट कर सकते हैं। क्यों? क्योंकि प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट में ही इसकी सारी बातें मौजूद होती हैं और यह क़ानून-ड्राफ्ट अपनी अच्छाइयां/बुराइयां खुद ही बयान करता है। इस क़ानून-ड्राफ्ट में बहुत ज्यादा विपरित साइड-इफेक्ट हैं या ज्यादा गुण/अच्छाइयां है, इसे कार्यकर्ता श्री `ख.` मुझसे (इस उदाहरण में प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट लिखने वाले से) संपर्क/बातचीत किए बिना पता लगा सकते हैं। इस प्रकार, क़ानून-ड्राफ्ट को लोकप्रिय बनाना शुरू में तो कठिन होता है लेकिन बाद में यह बहुत आसानी से अपने-आप फैलने लगता है। जबकि किसी व्यक्ति को आईकॉन/आदर्श प्रतिनिधि के रूप में लोकप्रिय बनाने के लिए बहुत ज्यादा संपर्क समय की जरूरत पड़ती है और इसमें आखिरकार उन धनवान लोगों के समर्थन की जरूरत पड़ती ही है जो समाचारपत्रों और टेलिविजन चैनलों के मालिक होते हैं। ऐसा करना सम्पूर्ण प्रचार अभियान को इन उच्चवर्ग/विशिष्ट वर्ग का बन्धक/आधीन बना देता है।
(16.6) ऊंचे/विशिष्ट लोग क़ानून-ड्राफ्ट से ज्यादा व्यक्ति को प्राथमिकता देते हैं ; कार्यकर्ताओं को इसके विपरित काम करना चाहिए |
धनवान लोग विचारों के स्थान पर व्यक्तियों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि आईकन/निर्मित आदर्श प्रतिनिधि को आसानी से तोड़कर अपनी ओर मिलाया जा सकता है जबकि विचार यदि एक बार लोकप्रिय हो जाएं तो इन्हें तोड़ना कठिन हो जाता है।इसलिए, जब धनवान व्यक्ति किसी व्यक्ति को सामने लाने/प्रचारित करने पर अपना पैसा लगाते/खर्च करते हैं तो उनके हाथों में कुछ नियंत्रण होता है। वे बाद में उस ऑइकन/`निर्मित आदर्श प्रतिनिधि` को उसे बदनाम करने वाले प्रचार अभियान चलाने की धमकी दे सकते हैं। पर यदि कोई धनवान व्यक्ति प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) या `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) जैसे किसी कानून-ड्राफ्ट के पीछे निवेश करते/पैसा लगाते हैं तो बाद में उसके पास प्रस्तावित कानून-ड्राफ्ट के खिलाफ बदनामी के प्रचार अभियान चलाने का कोई साधन नहीं बचता। इसलिए विशिष्ट/उच्च वर्गों के लोग और उनके पालतु बुद्धिजीवी किसी ऑइकन/`निर्मित आदर्श प्रतिनिधि` के पीछे निवेश करना ज्यादा पसंद करते हैं।