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अध्याय 16 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपके नेता कानूनों के ड्राफ्ट देने / बताने से मना करते हैं ?

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 प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपके नेता कानूनों के ड्राफ्ट देने / बताने से मना करते हैं ?

   

(16.1) इस पाठ का उद्देश्‍य

            इस पाठ का उद्देश्‍य कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को यह समझाने का है कि यदि आपका कार्यकर्ता नेता गरीबी/भ्रष्‍टाचार कम करने वाले कानून-ड्राफ्ट का खुलासा नहीं कर रहा है तो आपका यह कार्यकर्ता नेता जानबूझकर या अनजाने में आपका कीमती समय बरबाद कर रहा है। ऐसे समूह भ्रष्‍टाचार को बढ़ने से रोकने में असफल हो जाएंगे, वे गरीबी कम करने में असफल हो जाएंगे और वे भारत में अराजकता की स्थिति कम करने में असफल हो जाएंगे। अब मेरा लक्ष्‍य कार्यकर्ताओं से यह कहने का नहीं है कि वे अपने कार्यकर्ता नेताओं को छोड़ दें। मेरा उद्देश्‍य कार्यकर्ताओं से यह कहने का है कि वे अपने कार्यकर्ता नेताओं से कहें कि वे भ्रष्‍टाचार और गरीबी कम करने वाले कानून-ड्राफ्ट उपलब्‍ध कराऐं। आशा है कि मैं कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं को इस बात के लिए संतुष्‍ट करने में सफल हो जाउंगा कि वे कार्यकर्ता नेताओं पर कानून-ड्राफ्टों का खुलासा करने के लिए दबाव बनाएं। तब मैं यह देख पाउंगा कि क्‍या भ्रष्‍टाचार आदि को कम करने के लिए उनके प्रस्‍वावित कानून-ड्राफ्ट मेरे द्वारा प्रस्‍तावित प्रारूपों/ड्राफ्ट की तुलना में ज्‍यादा अच्‍छा काम करेंगे या नहीं? यदि वे ज्‍यादा प्रभावकारी/कार्य-कुशल हुए तो मैं उन कानून-ड्राफ्टों को अंशत: या पूर्णत: अपने ऐजेंडे/कार्यसूची में शामिल कर लूंगा और यदि उनके कानून-ड्राफ्ट मेरे कानून-ड्राफ्ट से खराब हुए तो मेरा अगला कदम कार्यकर्ताओं से यह कहने का होगा कि वे अपने कार्यकर्ता नेताओं से कहें कि वे अपने प्रारूपों/ड्राफ्ट में मेरे प्रारूपों/ड्राफ्ट के अच्‍छे बिन्‍दुओं को शामिल कर लें।

            साथ ही, जैसे ही कोई कार्यकर्ता नेता अपने कानून का खुलासा करता है तो मैं उससे पूछूंगा कि वह क्‍यों निम्‍नलिखित भागों को अपने क़ानून-ड्राफ्ट में जोड़ने का विरोध कर रहा है,  जिन भागों को मैने खण्‍ड `जनता की आवाज` ( सी वी = जनता की आवाज) का नाम दिया है, प्रस्‍तावित प्रारूपों में सी वी – 1 और सी वी – 2 नाम से दो खण्‍ड होंगे :-

            धारा/सैक्शन सी वी : `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली

सी वी – 1

जिला कलेक्‍टर

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला कलेक्टर या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट/हलफनामा को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ का शुल्‍क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

सी वी – 2

तलाटी (अथवा पटवारी/लेखपाल )

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

                        ऊपर उल्‍लिखित/वर्णित धारा -`जनता की आवाज़`(सी वी) नागरिकों की कोई भी प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट के विरुद्ध (जनता की) आवाज को ध्यान में लाने में सक्षम बनाता है , यदि कोई ऐसी आवाज़ हो तो । और यह धारा नागरिकों को भारत के किसी भी कानून-ड्राफ्ट में बदलाव लाने अथवा भारत में एक नए कानून-ड्राफ्ट बनाने में भी सक्षम बनाएगा। यदि कार्यकर्ता  नेता ऊपर उल्‍लिखित दोनों धाराओं को शामिल करने से इनकार करता है तो मैं उसे आम आदमी विरोधी अथवा लोकतंत्र विरोधी व्‍यक्‍ति के रूप में प्रचारित कर सकता हूँ। और यदि कार्यकर्ता नेता ऊपर उल्‍लिखित दोनों धाराओं को अपने कानून-ड्राफ्ट में शामिल करने पर सहमत हो जाता है तो उसका समूह निश्‍चित रूप से `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) समर्थक समूह बन जाएगा।

                        मैं वर्तमान समूहों के ऐजेंडे/कार्यसूची में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) क़ानून-ड्राफ्ट जोड़ने में रूचि रखता हूँ और मैं उनके कार्यकर्ताओं को चुराकर अपने राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह में शामिल करने में जरा भी रूचि नहीं रखता। क्‍यों? क्‍योंकि कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को बैठकों का स्‍थान और कार्यस्‍थल उपलब्‍ध कराने के लिए जरूरी कार्यालय चलाने का मेरे पास ना तो पैसा है और न ही समय। कार्यस्‍थल/रियल स्‍टेट महत्‍वपूर्ण लेकिन महंगा है और यदि मैं कार्यकर्ताओं को राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह में शामिल करने पर जोर दूं तो प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानूनों का प्रचार करने की मेरी योजना में यह एक बड़ी रूकावट बन जाएगा। लेकिन यदि मैं कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को इस बात पर राजी कर सकूं कि वे अपने समूह के ऐजेंडे/कार्यसूची में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानूनों को शामिल करवा सकें तो उनके समूह के कार्यस्‍थल को प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून का प्रचार करने के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा। इससे लागत 95 प्रतिशत तक कम हो जाएगा। इसलिए सबसे अच्‍छा यही है कि मैं किसी प्रकार कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं को प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) का एजेंडा उसके अपने समूह के एजेंडे/कार्यसूची में शामिल करवाने के लिए मना सकूं और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)-समर्थक कार्यकर्ताओं को उनका अपना समूह छोड़ने के लिए बाध्‍य न करूं। तब क्‍या होगा जब वह कार्यकर्ता नेता प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानूनों को अपने ऐजेंडे में शामिल करने से इनकार/मना कर दे? तब मेरा कदम कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को किसी ऐसे समूह में शामिल होने पर राजी करने का होगा जो समूह प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) का समर्थन करता है ताकि उस समूह के स्‍थल/कार्यालय और संचार-सूत्रों का उपयोग प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून-ड्राफ्टों का प्रचार करने में किया जा सके। मैं इसके बारे में विस्‍तार से बाद में बताउंगा।

   

(16.2) कानून – ड्राफ्टों के अभाव में सभी प्रयास व्‍यर्थ हो जाते हैं

प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट के अभाव में कार्यकर्ताओं और नागरिकों के सभी प्रयास व्‍यर्थ जाते हैं । सबसे खराब उदाहरणों में से एक है – 1950-1977 के बीच जय प्रकाश नारायण द्वारा चलाया गया “प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट रहित प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार)” का विचार।

            जय प्रकाश नारायण ने दावा किया कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के कट्टर समर्थक हैं । उन्‍होंने वास्‍तव में प्रजा अधीन- मंत्री,  प्रजा अधीन- विधायक को समर्थन दिया लेकिन यह स्पष्‍ट नहीं है कि क्‍या उन्‍होंने कभी प्रजा अधीन- प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन- मुख्‍यमंत्री, प्रजा अधीन-उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश/सुप्रीम कोर्ट जज, प्रजा अधीन-उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश/हाई-कोर्ट जज , प्रजा अधीन-जिला पुलिस प्रमुख , प्रजा अधीन-जिला पुलिस कमिश्‍नर/आयुक्‍त, प्रजा अधीन-भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर/अध्‍यक्ष आदि का भी समर्थन किया। लेकिन एक बात तो तय थी कि उन्‍होंने हमेशा उन ड्राफ्टों को देने का विरोध किया जो यदि संसद में पारित/पास हो जाते तो भारत में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) लागू हो सकते थे। 1950 से लेकर 977 तक, 27 वर्षों के लम्‍बे समय में जय प्रकाश नारायण ने दावा किया कि वह प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के कट्टर समर्थक हैं। लेकिन उन्‍होंने अपने इच्‍छित प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) का प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट लिखने के लिए जरूरी कुछ घंटे का समय नहीं निकाला और जिन कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं ने जय प्रकाश नारायण को अपना समय दिया उन्‍हें अन्‍त में अपना सारा समय व्‍यर्थ गंवाना पड़ा।

            नौजवान कार्यकर्ताओं ने अपने जीवन का मूल्‍यवान समय जय प्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के लिए प्रचार करने में लगा दिया। उनमें से कई तो वर्षों जेल में रहे। 1977 के चुनाव के दौरान, जय प्रकाश नारायण और जनता पार्टी जिसके लिए उन्‍होंने चुनाव प्रचार किया, उसका एक अहम नारा/मंच प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) था। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), 1977 में जनता पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र में भी था। और जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद जब कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं ने मंत्रियों से प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) लागू करने की मांग की तो मंत्रियों ने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का प्रस्‍ताव करने के लिए एक समिति का गठन कर दिया। इस समिति ने 2 वर्षों का समय बरबाद किया और तब किसी प्रकार कुछ व्‍यर्थ प्रारूपों का प्रस्‍ताव किया। जय प्रकाश नारायण ने 1977 में जनता पार्टी के चुनाव जीतने के बाद भी, कभी भी अपने प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का प्रस्‍ताव नहीं किया और न ही उन्‍होंने छात्रों से संसद का घेराव करने और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट के पारित होने तक घेराव जारी रखने के लिए ही कहा और कुल मिलाकर उन्‍होंने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई को प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून को लागू करवाने का अनुरोध करने वाले कुछ पत्र लिखे और उस समय के दौरान, बुद्धिजीवियों ने कार्यकर्ताओं का ध्‍यान धर्मनिरपेक्षता, साम्‍प्रदायिकता आदि जैसे छोटे मुद्दों की ओर भटका दिया। अन्‍त में, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के लिए चलने वाला आन्‍दोलन भंग हो गया। कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं की दशकों की मेहनत बरबाद हो गई। पर यदि कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं पर पहले क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्ध कराने का दबाव डाला होता और यदि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के क़ानून-ड्राफ्ट 1977 के चुनाव से पहले तैयार होते तो जनता पार्टी के सत्ता में आने के कुछ दिनों के अन्‍दर ही कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता मंत्रियों पर इन पहले से सहमत प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट को लागू कराने का दबाव डालने में सफल हो सकते थे। तब कार्यकर्ताओं की मेहनत बरबाद नहीं जाती।

            व्यर्थ गए प्रयासों का एक और उदाहरण 1996 का चुनाव था, जब अटल बिहारी बाजपेयी ने बयान दिया कि वे 3 वर्षों में ही “डर, भूखमरी और भ्रष्‍टाचार” हटा देंगे/समाप्‍त कर देंगे। लाखों कार्यकर्ताओं ने इस उम्‍मीद के साथ रात-दिन काम किया ।लेकिन दुखद बात है कि कार्यकर्ताओं ने अटल बिहारी बाजपेयी से वह क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्‍ध कराने की मांग ही नहीं की जिसके सहारे प्रशासन गरीबी और भ्रष्‍टाचार कम करता। मेहनत फिर बेकार गई। अटल बिहारी बाजपेयी और उनके मंत्रियों ने कांग्रेस के मंत्रियों से अलग कुछ नहीं किया।

पहले से सहमत प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट के होने का लाभ यह है कि सत्‍ता में आने के बाद यदि नेता प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना करता है तो कार्यकर्ताओं के सामने तुरंत ही उसका असली चेहरा सामने आ जाएगा। जब कोई नया नेता सत्‍ता में आता है तो उस समय का माहौल बहुत गर्म/जोशीला होता है। और उस समय नागरिकगण अपना समय देने को तैयार होते हैं। यदि पहले से सहमत प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट तैयार हो तो कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ता इस तथ्‍य/बात का लाभ उठा सकते हैं कि चुनाव नतीजे की घोषणा के ठीक बाद नागरिकगण जोश से भरे होते हैं। यदि पहले से सहमत प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट तैयार नहीं होगा तो कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता और नागरिक यह मूल्‍यवान/बहुमूल्‍य समय खो देंगे। उदाहरण के लिए, यदि 1977 में पहले से सहमत प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट मौजूद होता तो चुनाव जीतने के दिन का माहौल इतना जोशपूर्ण था कि कार्यकर्तागण उस समय के प्रधानमंत्री को उन कानूनों को लागू करने के लिए आसानी से बाध्‍य कर सकते थे। और यदि कार्यकर्तागण 1996 के चुनाव से पहले अटल बिहारी बाजपेयी पर भ्रष्‍टाचार कम करने का कानून-प्रारूप उपलब्ध कराने का दबाव डालते तो अटल बिहारी बाजपेयी के जीतने के दिन का माहौल इतना महत्‍वपूर्ण था कि कार्यकर्तागण (अटल बिहारी बाजपेयी) को कुछ ही दिनों के भीतर उन कानूनों को लागू कराने के लिए आसानी से बाध्‍य कर सकते थे । लेकिन बुद्धिजीवियों ने कार्यकर्ताओं को गुमराह किया और उन्‍हें बताया कि कानून-प्रारूप की जरूरत नहीं है और इस प्रकार कार्यकर्ताओं की सारी मेहनत बेकार गई।

            क़ानून-ड्राफ्ट किसको चोट पहुंचाते हैं? क़ानून-ड्राफ्ट हम आम लोगों को कभी चोट नहीं पहुंचाते। ये क़ानून-ड्राफ्ट कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को परेशान नहीं करते और ये ईमानदार कार्यकर्ता नेताओं को भी नुकसान नहीं पहुंचाते। ये प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट केवल वैसे कार्यकर्ता  नेताओं को हानि पहुंचाते हैं जो अपने किये गए वादें तोड़ने की योजना बनाते हैं। और यह प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट उन बुद्धिजीवियों को भी बहुत चोट पहुंचाते हैं जो ऐसे नेताओं के एजेंट/प्रतिनिधि होते हैं और उन्हें कार्यकर्ताओं को गुमराह करने के लिए पैसे दिए जाते हैं। इसलिए प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का न होना केवल बेईमान नेताओं और ऐसे बेईमान नेताओं के एजेंटों को ही लाभ पहुंचाते हैं। मैं सभी कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता हूँ कि वे इस तथ्‍य को अपने मन में अवश्‍य रखें, उन कारणों का विश्‍लेषण करते समय, जो कारण कार्यकर्ता नेता उन कानूनों के प्रारूपों का खुलासा नहीं करने के लिए देते हैं, जिनका समर्थन करने का वे दावा करते हैं ।

   

(16.3) नागरिकों और सांसदों का कार्य

सांसदों का कार्य है कि

(1) क़ानून-ड्राफ्ट को अध्यक्ष को प्रस्तुत करना/देना

(2)  अपनी हाँ/ना कहना जब अध्यक्ष उस क़ानून-ड्राफ्ट /मसौदे पर मतदान तय करे

सांसद को (1) और (2) नागरिकों की इच्छा के अनुसार करना होता है | ये नागरिकों का कर्तव्य है कि क़ानून-ड्राफ्ट / मसौदा तैयार करे और सांसद को प्रस्तुत करे/दे | जब तक कि नागरिकों ने कोई क़ानून-ड्राफ्ट नहीं दिया है, तब तक सांसदों को एक मांसपेशी भी नहीं हिलानी है (कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं )|

   

(16.4) क़ानून-ड्राफ्ट – रहित कार्यकर्ता : बिना डिजाइन का इंजिनियर

                                मान लीजिए, आप के पास लगभग 1000 वर्ग मीटर का एक प्‍लॉट है और आप उस पर एक बंगला बनाना चाहते हैं। मान लीजिए, आप किसी इंजिनियर के पास जाते हैं और अपनी आवश्‍यकता बताते हैं। वह इंजिनियर आपसे बड़े-बड़े वायदे करता है कि इस बंगले में बड़े कमरे, बड़ी गैलरी और अच्‍छे बाथरूम आदि होंगे। इसके बाद आप उसे डिजाइन और लागत का अनुमान देने के लिए कहते हैं और मान लीजिए यदि इंजिनियर कहता है “विस्‍तृत ब्‍यौरों की चिन्‍ता कृपया न करें। बस केवल मुझे दो तीन वर्षों के लिए अपने इस प्लॉट का वापस-न-किया-जा-सकने-वाला पावर आफ एटर्नी दे दें और तीन वर्षों में मैं आपको एक बहुत बढ़िया बंगला दे दूंगा !!”कोई भी जिम्मेदार इंजिनियर ऐसा गैर-जिम्‍मेदाराना जवाब नहीं देगा। लेकिन आश्‍चर्यजनक रूप से और दुखद रूप से सभी चुनावी उम्‍मीदवार और उनके समर्थक कार्यकर्ता पिछले 60 वर्षों से ऐसे ही जवाब देते आ रहे हैं। पिछले 60 वर्षों में, सभी उम्‍मीदवारों ने मतदाताओं से कहा कि मतदाताओं को संसद अथवा विधान सभा में पहुंचने के बाद उम्‍मीदवार द्वारा लागू करवाए जाने वाले कानून के प्रारूपों के बारे में चिन्‍ता नहीं करनी चाहिए। मेरे विचार से, वह 5 वर्षों के वापस-न-लिया-जा-सकने-वाला विशेष प्रतिनिधित्‍व का अधिकार चाहता है और अपने द्वारा प्रस्‍तावित किए जाने वाले प्रारूप/ड्राफ्ट तक उपलब्‍ध कराना नहीं चाहता। इसलिए कुल मिलाकर, ड्राफ्ट-रहित नेता उस इंजिनियर के समान हैं जो डिजाइन बताने से मना करते हैं और जमीन/पैसे की मांग करते हैं।

            निर्माण कार्य के लिए डिजाइन देना अनिवार्य होता है, ताकि यह पक्‍का हो सके कि डिजाइन स्‍थायी है और इसमें खराबी नहीं आएगी । इसी प्रकार, प्रशासन में प्रारूप/ड्राफ्ट-कानून यह विश्‍लेषण करने के लिए जरूरी हैं कि वह प्रारूप-कानून स्‍थिति को और बिगाड़ेगा या सुधारेगा। प्रत्येक कार्यकर्ता नेता प्रारूप/ड्राफ्ट का महत्‍व जानते हैं।

     क़ानून-ड्राफ्ट -रहित कार्यकर्ता : वैसे डॉक्‍टर जो दवा का नाम नहीं बताते

            मान लीजिए, एक रोगी है जो बीमार है। और मान लीजिए, रोगी डॉक्‍टर के पास जाता है जो बीमारी, इसके कारण आदि का विस्‍तृत ब्‍यौरा देता है। और फिर दवा का नाम बताने से इनकार करता है। क्‍या वह डॉक्‍टर सही है?

            प्रारूप/ड्राफ्ट-रहित कार्यकर्ता  नेता इससे ज्‍यादा अलग नहीं हैं। यह पता है कि गरीबी और भ्रष्‍टाचार जैसी कई समस्‍याओं के समाधान के लिए कानूनों में परिवर्तन की जरूरत है और कानूनों में बदलाव के लिए इसके प्रारूपों/ड्राफ्ट को विधानसभा, संसद में पारित करने/कराने की जरूरत है। और इसके लिए प्रारूप/ड्राफ्ट होना ही चाहिए। इसके बावजूद अधिकांश कार्यकर्ता  नेता भ्रष्‍टाचार और गरीबी कम करने के लिए आवश्‍यक प्रारूप/ड्राफ्ट देने/बताने से मना करते हैं। ये प्रारूप/ड्राफ्ट-रहित कार्यकर्ता  नेता उन डॉक्‍टरों के समान हैं जो दवाओं के नाम नहीं बताते।

            ठीक उसी प्रकार रोगी को यह तय करने के लिए किसी दवा का नाम चाहिए कि दवा का कोई गंभीर साइड-इफेक्‍ट/दुष्प्रभाव तो नहीं है, इसी प्रकार नागरिकों को कानून का प्रारूप देखने/समझने की जरूरत होती है ताकि वे निर्णय कर सकें कि ड्राफ्ट में ज्‍यादा साइड-इफेक्‍ट है या ज्‍यादा अच्‍छाई है। यदि कोई कार्यकर्ता नेता उस प्रारूप/ड्राफ्ट को देने से मना करता है जिस प्रारूप/ड्राफ्ट पर वह दावा करता है कि इससे समस्‍याएं कम होंगी, तब वह कार्यकर्ता नेता नागरिकों को इसके साइड-इफेक्‍ट के सत्यापन/निश्चित करने का अवसर नहीं दे रहा है। ऐसे मामले में वह उस डॉक्‍टर से ज्‍यादा खतरनाक/बुरा है जो दवा नहीं देते। वह उस डॉक्‍टर के समान है जो रोगियों को दवा के साइड-इफेक्‍ट के बारे में निर्णय करने का अवसर दिए बिना दवा देने में विश्‍वास करता है।

   

(16.5) कानून-ड्राफ्ट (प्रारूपों) का उपयोग करके आन्‍दोलन खड़ा करना नेताओं को आदर्श प्रतिनिधि / नुमाइंदा बनाकर पेश करने से कहीं ज्‍यादा आसान है

मान लीजिए मैं एक कार्यकर्ता नेता हूँ और मैने कई घंटों की बातचीत के बाद ,श्री `क.` को संतुष्‍ट कर दिया है कि मैं भरोसा करने लायक हूँ और मैं भ्रष्‍टाचार कम कर दे सकता हूँ। अब यदि श्री `क.` श्री `ख.` को इस बात पर राजी करने की कोशिश करते हैं कि मैं एक भरोसेमन्‍द नेता हूँ और मैं भ्रष्‍टाचार कम कर सकता हूँ, तब ऐसा करना एक बहुत ही कठिन काम है क्योंकि श्री `ख.` ने न तो मुझसे कभी बात की है और न ही कभी मुझसे मिले हैं और न ही उन्‍होंने कभी मुझे देखा है।

            इसके विपरित, यदि मैं किसी कार्यकर्ता श्री `क.` को संतुष्‍ट कर देता हूँ कि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत प्रणाली, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) जैसे कुछ क़ानून-ड्राफ्ट भ्रष्‍टाचार कम कर सकते हैं तो कार्यकर्ता श्री क. आसानी से कार्यकर्ता श्री `ख.` को प्रस्‍तावित क़ानून-ड्राफ्ट के गुणों/अच्‍छाइयों के बारे में संतुष्‍ट कर सकते हैं। क्‍यों? क्‍योंकि प्रस्‍तावित क़ानून-ड्राफ्ट में ही इसकी सारी बातें मौजूद होती हैं और यह क़ानून-ड्राफ्ट अपनी अच्‍छाइयां/बुराइयां खुद ही बयान करता है। इस क़ानून-ड्राफ्ट में बहुत ज्‍यादा विपरित साइड-इफेक्‍ट हैं या ज्‍यादा गुण/अच्‍छाइयां है, इसे कार्यकर्ता श्री `ख.` मुझसे (इस उदाहरण में प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट लिखने वाले से) संपर्क/बातचीत किए बिना पता लगा सकते हैं। इस प्रकार, क़ानून-ड्राफ्ट को लोकप्रिय बनाना शुरू में तो कठिन होता है लेकिन बाद में यह बहुत आसानी से अपने-आप फैलने लगता है। जबकि किसी व्‍यक्‍ति को आईकॉन/आदर्श प्रतिनिधि के रूप में लोकप्रिय बनाने के लिए बहुत ज्‍यादा संपर्क समय की जरूरत पड़ती है और इसमें आखिरकार उन धनवान लोगों के समर्थन की जरूरत पड़ती ही है जो समाचारपत्रों और टेलिविजन चैनलों के मालिक होते हैं। ऐसा करना सम्‍पूर्ण प्रचार अभियान को इन उच्‍चवर्ग/विशिष्ट वर्ग का बन्धक/आधीन बना देता है।

   

(16.6) ऊंचे/विशिष्ट लोग क़ानून-ड्राफ्ट से ज्‍यादा व्‍यक्‍ति को प्राथमिकता देते हैं ; कार्यकर्ताओं को इसके विपरित काम करना चाहिए

                  धनवान लोग विचारों के स्‍थान पर व्‍यक्‍तियों को प्राथमिकता देते हैं क्‍योंकि आईकन/निर्मित आदर्श प्रतिनिधि को आसानी से तोड़कर अपनी ओर मिलाया जा सकता है जबकि विचार यदि एक बार लोकप्रिय हो जाएं तो इन्‍हें तोड़ना कठिन हो जाता है।इसलिए, जब धनवान व्‍यक्‍ति किसी व्यक्ति को सामने लाने/प्रचारित करने पर अपना पैसा लगाते/खर्च करते हैं तो उनके हाथों में कुछ नियंत्रण होता है। वे बाद में उस ऑइकन/`निर्मित आदर्श प्रतिनिधि` को उसे  बदनाम करने वाले प्रचार अभियान चलाने की धमकी दे सकते हैं। पर यदि कोई धनवान व्‍यक्‍ति प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) या `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) जैसे किसी कानून-ड्राफ्ट के पीछे निवेश करते/पैसा लगाते हैं तो बाद में उसके पास प्रस्‍तावित कानून-ड्राफ्ट के खिलाफ बदनामी के प्रचार अभियान चलाने का कोई साधन नहीं बचता। इसलिए विशिष्ट/उच्च वर्गों के लोग और उनके पालतु बुद्धिजीवी किसी ऑइकन/`निर्मित आदर्श प्रतिनिधि`  के पीछे निवेश करना ज्‍यादा पसंद करते हैं।

                  लेकिन कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को इससे ठीक विपरित/उल्‍टा ही करना चाहिए – उन्‍हें अपना समय और प्रयास कानून-ड्राफ्टों के प्रचार-प्रसार में लगाना चाहिए न कि किसी आईकन /`निर्मित आदर्श प्रतिनिधि` के प्रचार में। क्‍योंकि ऑइकन/`निर्मित आदर्श प्रतिनिधि` बाद में ब्‍लैकमेल और धमकी का शिकार बन सकते हैं और उन्‍हें कार्यकर्ताओं को धोखा देने पर मजबूर किया जा सकता है। जबकि क़ानून-ड्राफ्ट को कोई भी ब्‍लैकमेल नहीं कर सकता। और कोई क़ानून-ड्राफ्ट कभी भी कार्यकर्ताओं की पीठ में छुरा नहीं घोंप सकता या उन्‍हें धोखा नहीं दे सकता।

   

(16.7) “आपका प्रस्‍ताव असंवैधानिक है” के तर्क से निपटने के लिए क़ानून-ड्राफ्ट एकमात्र रास्‍ता है

           जब भी कभी कोई जनता के हित के प्रस्‍ताव जैसे प्रजा अधीन – उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश/जज अथवा प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री अथवा नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम.आर.सी.एम.) आदि बनाता है तो बुद्धिजीवी तुरंत ही यह कहने लगते हैं कि “प्रजा अधीन–उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश/सुप्रीम कोर्ट जज असंवैधानिक है” अथवा “ प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री असंवैधानिक है” अथवा “नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम.आर.सी.एम.) असंवैधानिक है” आदि आदि। अब इन बुद्धिजीवियों के पास अपनी वाकपटूता और वाणीचातुर्य का प्रयोग और सुधार करने के लिए हर दिन 12 घंटे का समय होता है। उन्‍हें (वाकपटूता और वाणीचातुर्य के सिवाय) बिना कुछ किए वेतन मिलता रहता है, जबकि हम कार्यकर्ताओं को वास्‍तविक अर्थव्‍यवस्‍था में काम करके वास्‍तविक/मेहनत का पैसा कमाना होता है इसलिए हमलोगों के पास कुतर्क करने का समय नहीं होता। इसलिए उनका यह कहना “आप जो भी कहते हो वह असंवैधानिक है” लोगों को चुप कैसे करवाया जा सकता है?

                  उन्‍हें चुप कराने का सबसे प्रभावकारी तरीका यह है कि उनके सामने कानून का क़ानून-ड्राफ्ट रख दिया जाए और उनसे पूछा जाए कि “कृपया दिखाइए कि इस क़ानून-ड्राफ्ट का कौन सा क्‍लॉज/ खण्‍ड असंवैधानिक है?” अब बेशक आपका क़ानून-ड्राफ्ट इस प्रकार से लिखा जाना चाहिए कि इसका हरेक क्‍लॉज/खण्‍ड संवैधानिक हो। लेकिन यदि आप इस बात का ध्‍यान रख लेते हैं तो बुद्धिजीवी लोग एक भी क्‍लॉज/खण्‍ड एक भी खंड नहीं बता पाएंगे जो असंवैधानिक हो। और इस तरह के मामले में श्रोतागण संतुष्‍ट हो जाएंगे कि आपका प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट संवैधानिक है और वह बुद्धिजीवी सचमुच झूठा है। पर यदि आपके पास कोई प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट नहीं है तो श्रोतागण का शक बना ही रहेगा।

   

(16.8) प्रारूप / क़ानून-ड्राफ्ट न देने के लिए गलत कारण / बहाने

             मैं पिछले दस वर्षों से अधिक समय से अनेक कार्यकर्ता नेताओं से मिलता रहा हूँ और उन्‍हें उनके द्वारा प्रस्‍तावित प्रारूप/ड्राफ्ट देने के लिए कहता रहा हूँ। वे उस प्रारूप/ड्राफ्ट को न देने के सैकड़ों बहाने बनाते हैं जिस पर वे दावा करते हैं कि वह गरीबी/भ्रष्‍टाचार कम कर देगा। मैने इन बहानों में से कुछ को संकलित किया है और उनका खंडन भी किया है ताकि संबंधित कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता इन कारणों के खिलाफ तर्क-वितर्क कर सके और उनके कार्यकर्ता नेताओं को उनके ड्राफ्ट प्रस्‍तुत करने के लिए बाध्‍य कर सके :-

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 1 : भारत में आम लोग मूर्ख होते हैं और वे क़ानून-ड्राफ्ट को नहीं समझेंगे

खंडन : दवाओं/चिकित्‍सा-कार्य में रोगियों को हरेक दवा के हरेक ब्‍यौरे की पर्याप्‍त जानकारी नहीं दी जाती। लेकिन कम से कम उन सूचनाओं/जानकारियों को इंटरनेट पर डाला/रखा जाता है ताकि रोगी उसे देख सके। और कम से कम डॉक्‍टरों को तो हर दवा के हर ब्‍यौरे के बारे में बता ही दिया जाता है। यदि नागरिक मूर्ख और अल्‍पबुद्धि होते हैं (जैसा कि कार्यकर्ता नेता कहते हैं) तो आप इस बात के लिए स्‍वतंत्र हैं कि आप नागरिकों को दिए जाने वाले अपने भाषणों में क़ानून-ड्राफ्ट के विस्‍तृत ब्यौरे को शामिल न करें। और क्‍या आप अपने इन क़ानून-ड्राफ्ट के बारे में अपने कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को तनिक भी बताते हैं? यदि नहीं, तो क्‍या आप यह भी दावा करते हैं कि आपका कार्यकर्ता भी मूर्ख है और कानून-ड्राफ्टों को समझने में असमर्थ है?

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 2 : प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट व्‍यर्थ/बेकार हैं

खंडन : भारत सरकार द्वारा 1940 के दशक के मध्‍य मेंराशन कार्ड प्रणाली के प्रारूपों के प्रकाशन के बाद ही भारत में भूखमरी कम हो गई। कई विचाराधीन कैदी रिहा हो गए (उन्‍हें) राहत देने वाले कानूनों के क़ानून-ड्राफ्ट के पारित होने के बाद ही । शिक्षा का प्रसार, शिक्षा को अधिक सुलभ बनाने वाले अनेक ड्राफ्टों/प्रारूपों (विधानों के साथ-साथ सरकारी अधिसूचना(आदेश)ओं) के पारित होने के बाद ही हुआ। मैं इन सभी हजारों उदाहरणों का सारांश इस प्रकार से प्रस्‍तुत कर सकता हूँ : एक गरीब आम आदमी का केवल एक ही “दोस्तों का समूह” होता है – सरकार में बैठे ईमानदार आदमी। और ऐसे ईमानदार अधिकारियों के पास गरीब (आम) आदमी की सहायता करने के लिए केवल एक ही साधन होता है- कानूनों के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट । यदि ये क़ानून-ड्राफ्ट खराब/कमजोर हैं तो कोई ईमानदार अधिकारी भी कुछ नहीं कर सकता। यदि ये क़ानून-ड्राफ्ट अच्‍छे/मजबूत हैं तो वह आम आदमियों की मदद/सहायता कर सकता है। इसलिए यदि एक कार्यकर्ता नेता यह कहता है कि प्रारूपों की जरूरत नहीं या ये बेकार होते हैं तो जानबूझकर या अनजाने में ही वह सफेद झूठ बोल रहा है। मैं कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता हूँ कि वे ऐसे नेताओं को विस्‍तार से बताऐं कि क्‍यों क़ानून-ड्राफ्ट उपयोगी, हानिरहित और बहुत जरूरी भी हैं।

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 3 : ड्राफ्टों से विरोधियों को कमियां ढ़ूढ़ने का अवसर मिल जाता है

खंडन : पहली बात यह है कि कमियां होनी ही नहीं चाहिएं। और यदि विपक्ष कमियां निकालता है तो वह नागरिकों का भला ही कर रहा है – क्‍योंकि तब क्‍या होगा यदि कमियों वाला क़ानून-ड्राफ्ट पारित हो जाए? इसलिए कुल मिलाकर, प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट अवश्‍य दिए जाने चाहिएं ताकि चाहे सही हों या गलत, विपक्षी लोग कमियां निकाल/ढ़ूंढ़ सकें।

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 4क़ानून-ड्राफ्ट लिखना कानून विभाग का काम है

खंडन : यह एक सफेद झूठ है। कोई भी व्‍यक्‍ति क़ानून-ड्राफ्ट लिख सकता है। संविधान में ऐसा कोई अनुच्‍छेद नहीं है जो यह कहता हो कि केवल कानून विभाग ही प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट लिख सकता है। वास्‍तव में, कोई भी सांसद क़ानून-ड्राफ्ट लिख सकता है और इसे ‘निजी सदस्‍य का विधेयक’ (प्राइवेट मेंम्‍बरर्स बिल) के रूप में प्रस्‍तुत कर सकता है। और कोई भी नागरिक किसी सांसद से अनुरोध कर सकता है कि वह उसके क़ानून-ड्राफ्ट को ‘निजी सदस्‍य विधेयक’ (प्राइवेट मेंम्‍बरर्स बिल) के रूप में प्रस्‍तुत कर दे। वास्‍तव में, यह हरेक नागरिक या कम से कम किसी जागरूक नागरिक का कर्तव्‍य बनता है कि वह कानून-ड्राफ्टों को बदलने में सक्रिय होकर रूचि ले।

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 5 : कार्यकर्ताओं को धर्मार्थ आदि के काम की ओर ध्‍यान लगाना चाहिए न कि कानून-ड्राफ्टों की ओर

खंडन : मैं पिछले पाठ में इस बहाने का खंडन कर चुका हूँ।

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 6 : कार्यकर्ताओं को भ्रष्‍टाचार कम करने की ओर ध्‍यान लगाना चाहिए न कि कानून-ड्राफ्टों की ओर

खंडन : मैं पिछले पाठ में इस बहाने का खंडन कर चुका हूँ।

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 7 : कार्यकर्ताओं को कानून में सुधार करने की तरफ ध्‍यान लगाना चाहिए, कानून-ड्राफ्टों की तरफ नहीं

खंडन : मैं पिछले पाठ में इस बहाने का खंडन कर चुका हूँ।

क़ानून-ड्राफ्ट न देने का बहाना 8     : रिश्वत को ना कहो , क़ानून-ड्राफ्टों की आवश्यकता नहीं है|

खंडन : यदि कोई भी व्यक्ति काम-धंधा करता है तो उसे पुलिस वाले, आयकर विबाग के अफसर, जज(यदि कोर्ट में कोई मामला दर्ज होता है ) आदि रिश्वत के लिए परेशान करते हैं और उसके काम-धंधा चलने नहीं देते | इसीलिए “ रिश्वत को ना कहो , क़ानून-ड्राफ्ट की मांग मत करो” का तरीका केवल प्रोफेसरों के लिए है जिनको हर महीने तनखा मिलती है , उसके विद्यार्थी फेल भी हो जायें तो भी, लेकिन काम-धंधे वालों के लिए नहीं क्योंकि रिश्वत ना देने पर उन्हें ना भरने वाला नुक्सान हो सकता है | इसीलिए कार्यकर्ताओं को कानून-ड्राफ्टों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए |

   

(16.9) तब क्‍या होगा जब आपका कार्यकर्ता-नेता क़ानून-ड्राफ्ट देने के लिए राजी हो जाता है?

मैं अपने सभी विकल्‍प खुले रखुंगा ताकि कम से कम कोई कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता ठगा महसूस न करे। मेरा उद्देश्‍य/प्रयोजन हर कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता को प्रजा अधीन राजा (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम.आर.सी.एम.) कानून-ड्राफ्टों का प्रचारक बनाने का है और इसके लिए सम्पर्क सूत्र और कुछ कार्यालय/कार्य स्‍थल की जरूरत भी पड़ेगी। मैं `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) आदि पर जानकारी फैलाने के प्रयोजन के लिए वर्तमान दलों, गैर सरकारी संगठनों आदि के संपर्क सूत्रों और कार्यस्‍थलों का उपयोग करना चाहता हूँ। मेरा एक तात्‍कालिक लक्ष्‍य यह भी है कि छोटे कार्यकर्ताओं को संतुष्‍ट कर सकूं कि ड्राफ्ट-रहित कार्यकर्ता भ्रष्‍टाचार व गरीबी कम करने में समय की बरबादी मात्र है और इसलिए उन्‍हें अपने कार्यकर्ता नेताओं पर दबाव डालना चाहिए कि वे उस कानून के ड्राफ्ट को प्रकाशित करें जिनसे वे समझते हैं कि गरीबी/भ्रष्टाचार कम होगा। और जब एक बार कार्यकर्ता नेता अपना प्रारूप/ड्राफ्ट प्रकाशित कर देता है तो मैं उस कार्यकर्ता नेता से पूछूंगा कि क्‍यों वे अपने कानून-ड्राफ्टों में निम्‍नलिखित धारा `जनता की आवाज़`(सीवी) को शामिल करने से मना क्यों करते हैं :-

धारा `जनता की आवाज़`(सी वी) : `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)

सी वी – 1

जिला कलेक्‍टर/

समाहर्ता

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून में बदलाव/परिवर्तन चाहता हो तो वह जिला कलेक्‍टर के कार्यालय में जाकर एक ऐफिडेविट/शपथपत्र प्रस्‍तुत कर सकता है और जिला समाहर्ता या उसका क्‍लर्क इस ऐफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ का शुल्‍क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

सी वी – 2

तलाटी (अथवा पटवारी)

यदि कोई गरीब, दलित, महिला, वरिष्‍ठ नागरिक या कोई भी नागरिक इस कानून अथवा इसकी किसी धारा पर अपनी आपत्ति दर्ज कराना चाहता हो अथवा उपर के क्‍लॉज/खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी भी ऐफिडेविट/शपथपत्र पर हां/नहीं दर्ज कराना चाहता हो तो वह अपना मतदाता पहचानपत्र/वोटर आई डी लेकर तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का शुल्‍क/फीस जमा कराएगा। तलाटी हां/नहीं दर्ज कर लेगा और उसे इसकी पावती/रसीद देगा। इस हां/नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल दिया जाएगा।

            यदि कार्यकर्ता नेता अपने प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट में धारा – `जनता की आवाज़`(सी वी) को शामिल करने से मना करता है तब वह इस बात का प्रमाण देता नजर आएगा कि वह आम आदमी- विरोधी है, नहीं तो वह नागरिकों को अपने द्वारा प्रस्‍तावित कानून-ड्राफ्ट/खण्डों पर ना दर्ज करने देने का विरोध क्‍यों करता है? कानून ड्राफ्टों में धारा –`जनता की आवाज़`(सी वी) शामिल करने से मना करना उसके अपने समूह के सभी गरीब-हितैषी व आम-जनता-हितैषी कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं के सामने कार्यकर्ता नेता की प्रतिष्‍ठा खराब कर देगा और अब यदि कार्यकर्ता  नेता अपने प्रस्‍तावित क़ानून-ड्राफ्ट में धारा –`जनता की आवाज़`(सी वी) शामिल करने पर सहमत हो जाता है तब वह `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) कानून का प्रचारक बन जाएगा। और इस प्रकार `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) को राजनीतिक रंग देने में उसके संगठन के हिस्‍से का उपयोग करने का मेरा लक्ष्‍य पूरा हो जाएगा। इसके अलावा कार्यकर्ता नेता द्वारा दिए गए प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट में निश्‍चित ही कोई नोडल प्रभारी अधिकारी भी होगा । मैं उससे अनुरोध करूंगा कि वह उस क्‍लॉज/खण्‍ड को शामिल करे जिससे नागरिकगण उस अधिकारी को बर्खास्‍त/बदल सकें। यदि वह सहमत हो जाता है तो उसके संगठन का एक हिस्‍सा अंत में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानूनों का प्रचार करता नजर आएगा। और यदि कार्यकर्ता  नेता इनकार करता है तो फिर से अंत में, अपने कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं के सामने अपनी ही प्रतिष्ठा धूमिल करता नजर आएगा।

   

(16.10) भारत में इतनी समस्याएं क्यों हैं?

इसका एक कारण ये है कि भारत में लोग, लंबे समय से, अपना अधिकतर समय का उपयोग समस्या वर्णन के लिए लगाते हैं न कि क़ानून के ड्राफ्ट/प्रारूप लिखने के लिए जो समस्या का हल कर सकते हैं | कोई भी प्रस्ताव उतना ही अच्छा या बुरा है जितना उसका ड्राफ्ट/प्रक्रिया | सरकार में लाखों कर्मचारी हैं और उन कर्मचारियों को कोई भी प्रस्ताव को लागू करने के लिए उन्हें निर्देश या ड्राफ्ट देना होगा | इतना प्रयाप्त नहीं है कहना कि `भ्रष्टाचार दूर करो` क्योंकि इससे प्रस्ताव या तो लागू नहीं होगा या अपूर्ण तरीके से लागू होगा | इसीलिए ड्राफ्ट/प्रारूप पर केंद्रित करें जो भारत की ज्वलंत समस्याओं को हल कर सके |

   

(16.11) सारांश (छोटे में बात ) :

मैंने अपना उद्देश्‍य विस्‍तार से बता दिया है, मेरा उद्देश्‍य `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) और नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम.आर.सी.एम.) कानून-प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट के महत्‍व को समझाना है और हरेक संगठन को उसके स्‍वार्थ-रहित कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं के अंत:मन को प्रभावित करके `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) और नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम.आर.सी.एम.) का प्रचारक बनाना है।

 इस प्रकार कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को अब यह निर्णय करना है कि क्‍या वह भ्रष्‍टाचार/गरीबी कम करने के कानूनों के प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट देने के लिए अपने कार्यकर्ता नेताओं से कहना चाहता है अथवा वह अपने क्‍लोन-निगेटिव और अपर्याप्‍त प्रारूप-रहित सक्रियतावाद की स्‍थिति को जारी रखकर अपना समय बरबाद करना चाहता है। समय बरबाद करते रहना घातक हो सकता है, क्‍योंकि दुश्‍मन समय बरबाद नहीं कर रहा है । इरान और इराक के बाद अब भारत का ही नम्‍बर है। दुश्‍मन दिनों-दिन अच्‍छे से अच्‍छा हथियार विकसित कर रहा है और तब वह बिलकुल इंतजार नहीं करेगा जब उसके हथियार भारत को इराक बनाने में सक्षम हो जाऐंगे और जब एक बार इरान पर कब्‍जा हो भी चुका है। अब समय बरबाद करना आने वाले वर्षों में करोड़ों जिन्‍दगियों का नाशक साबित हो सकता है।

श्रेणी: प्रजा अधीन