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अध्याय 16 – प्रिय कार्यकर्ता, क्‍या आपके नेता कानूनों के ड्राफ्ट देने / बताने से मना करते हैं ?

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            जय प्रकाश नारायण ने दावा किया कि वे प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के कट्टर समर्थक हैं । उन्‍होंने वास्‍तव में प्रजा अधीन- मंत्री,  प्रजा अधीन- विधायक को समर्थन दिया लेकिन यह स्पष्‍ट नहीं है कि क्‍या उन्‍होंने कभी प्रजा अधीन- प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन- मुख्‍यमंत्री, प्रजा अधीन-उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश/सुप्रीम कोर्ट जज, प्रजा अधीन-उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश/हाई-कोर्ट जज , प्रजा अधीन-जिला पुलिस प्रमुख , प्रजा अधीन-जिला पुलिस कमिश्‍नर/आयुक्‍त, प्रजा अधीन-भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर/अध्‍यक्ष आदि का भी समर्थन किया। लेकिन एक बात तो तय थी कि उन्‍होंने हमेशा उन ड्राफ्टों को देने का विरोध किया जो यदि संसद में पारित/पास हो जाते तो भारत में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) लागू हो सकते थे। 1950 से लेकर 977 तक, 27 वर्षों के लम्‍बे समय में जय प्रकाश नारायण ने दावा किया कि वह प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के कट्टर समर्थक हैं। लेकिन उन्‍होंने अपने इच्‍छित प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) का प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट लिखने के लिए जरूरी कुछ घंटे का समय नहीं निकाला और जिन कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं ने जय प्रकाश नारायण को अपना समय दिया उन्‍हें अन्‍त में अपना सारा समय व्‍यर्थ गंवाना पड़ा।

            नौजवान कार्यकर्ताओं ने अपने जीवन का मूल्‍यवान समय जय प्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के लिए प्रचार करने में लगा दिया। उनमें से कई तो वर्षों जेल में रहे। 1977 के चुनाव के दौरान, जय प्रकाश नारायण और जनता पार्टी जिसके लिए उन्‍होंने चुनाव प्रचार किया, उसका एक अहम नारा/मंच प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) था। प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार), 1977 में जनता पार्टी के चुनावी घोषणा-पत्र में भी था। और जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद जब कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं ने मंत्रियों से प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) लागू करने की मांग की तो मंत्रियों ने प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का प्रस्‍ताव करने के लिए एक समिति का गठन कर दिया। इस समिति ने 2 वर्षों का समय बरबाद किया और तब किसी प्रकार कुछ व्‍यर्थ प्रारूपों का प्रस्‍ताव किया। जय प्रकाश नारायण ने 1977 में जनता पार्टी के चुनाव जीतने के बाद भी, कभी भी अपने प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का प्रस्‍ताव नहीं किया और न ही उन्‍होंने छात्रों से संसद का घेराव करने और प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट के पारित होने तक घेराव जारी रखने के लिए ही कहा और कुल मिलाकर उन्‍होंने तत्‍कालीन प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई को प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून को लागू करवाने का अनुरोध करने वाले कुछ पत्र लिखे और उस समय के दौरान, बुद्धिजीवियों ने कार्यकर्ताओं का ध्‍यान धर्मनिरपेक्षता, साम्‍प्रदायिकता आदि जैसे छोटे मुद्दों की ओर भटका दिया। अन्‍त में, प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के लिए चलने वाला आन्‍दोलन भंग हो गया। कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं की दशकों की मेहनत बरबाद हो गई। पर यदि कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं पर पहले क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्ध कराने का दबाव डाला होता और यदि प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) के क़ानून-ड्राफ्ट 1977 के चुनाव से पहले तैयार होते तो जनता पार्टी के सत्ता में आने के कुछ दिनों के अन्‍दर ही कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता मंत्रियों पर इन पहले से सहमत प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट को लागू कराने का दबाव डालने में सफल हो सकते थे। तब कार्यकर्ताओं की मेहनत बरबाद नहीं जाती।

            व्यर्थ गए प्रयासों का एक और उदाहरण 1996 का चुनाव था, जब अटल बिहारी बाजपेयी ने बयान दिया कि वे 3 वर्षों में ही “डर, भूखमरी और भ्रष्‍टाचार” हटा देंगे/समाप्‍त कर देंगे। लाखों कार्यकर्ताओं ने इस उम्‍मीद के साथ रात-दिन काम किया ।लेकिन दुखद बात है कि कार्यकर्ताओं ने अटल बिहारी बाजपेयी से वह क़ानून-ड्राफ्ट उपलब्‍ध कराने की मांग ही नहीं की जिसके सहारे प्रशासन गरीबी और भ्रष्‍टाचार कम करता। मेहनत फिर बेकार गई। अटल बिहारी बाजपेयी और उनके मंत्रियों ने कांग्रेस के मंत्रियों से अलग कुछ नहीं किया।

पहले से सहमत प्रारूपों/क़ानून-ड्राफ्ट के होने का लाभ यह है कि सत्‍ता में आने के बाद यदि नेता प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट पारित करने से मना करता है तो कार्यकर्ताओं के सामने तुरंत ही उसका असली चेहरा सामने आ जाएगा। जब कोई नया नेता सत्‍ता में आता है तो उस समय का माहौल बहुत गर्म/जोशीला होता है। और उस समय नागरिकगण अपना समय देने को तैयार होते हैं। यदि पहले से सहमत प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट तैयार हो तो कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ता इस तथ्‍य/बात का लाभ उठा सकते हैं कि चुनाव नतीजे की घोषणा के ठीक बाद नागरिकगण जोश से भरे होते हैं। यदि पहले से सहमत प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट तैयार नहीं होगा तो कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता और नागरिक यह मूल्‍यवान/बहुमूल्‍य समय खो देंगे। उदाहरण के लिए, यदि 1977 में पहले से सहमत प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट मौजूद होता तो चुनाव जीतने के दिन का माहौल इतना जोशपूर्ण था कि कार्यकर्तागण उस समय के प्रधानमंत्री को उन कानूनों को लागू करने के लिए आसानी से बाध्‍य कर सकते थे। और यदि कार्यकर्तागण 1996 के चुनाव से पहले अटल बिहारी बाजपेयी पर भ्रष्‍टाचार कम करने का कानून-प्रारूप उपलब्ध कराने का दबाव डालते तो अटल बिहारी बाजपेयी के जीतने के दिन का माहौल इतना महत्‍वपूर्ण था कि कार्यकर्तागण (अटल बिहारी बाजपेयी) को कुछ ही दिनों के भीतर उन कानूनों को लागू कराने के लिए आसानी से बाध्‍य कर सकते थे । लेकिन बुद्धिजीवियों ने कार्यकर्ताओं को गुमराह किया और उन्‍हें बताया कि कानून-प्रारूप की जरूरत नहीं है और इस प्रकार कार्यकर्ताओं की सारी मेहनत बेकार गई।

            क़ानून-ड्राफ्ट किसको चोट पहुंचाते हैं? क़ानून-ड्राफ्ट हम आम लोगों को कभी चोट नहीं पहुंचाते। ये क़ानून-ड्राफ्ट कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को परेशान नहीं करते और ये ईमानदार कार्यकर्ता नेताओं को भी नुकसान नहीं पहुंचाते। ये प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट केवल वैसे कार्यकर्ता  नेताओं को हानि पहुंचाते हैं जो अपने किये गए वादें तोड़ने की योजना बनाते हैं। और यह प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट उन बुद्धिजीवियों को भी बहुत चोट पहुंचाते हैं जो ऐसे नेताओं के एजेंट/प्रतिनिधि होते हैं और उन्हें कार्यकर्ताओं को गुमराह करने के लिए पैसे दिए जाते हैं। इसलिए प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट का न होना केवल बेईमान नेताओं और ऐसे बेईमान नेताओं के एजेंटों को ही लाभ पहुंचाते हैं। मैं सभी कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता हूँ कि वे इस तथ्‍य को अपने मन में अवश्‍य रखें, उन कारणों का विश्‍लेषण करते समय, जो कारण कार्यकर्ता नेता उन कानूनों के प्रारूपों का खुलासा नहीं करने के लिए देते हैं, जिनका समर्थन करने का वे दावा करते हैं ।

श्रेणी: प्रजा अधीन