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अध्याय 17 – प्रिय कार्यकर्ता, आन्‍दोलन में, चुनाव जीतने से कम समय लगेगा

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 प्रिय कार्यकर्ता, आन्‍दोलन में, चुनाव जीतने से कम समय लगेगा

 

(17.1) इस पाठ का उद्देश्‍य

एक व्‍यापक जन-आन्‍दोलन वह होता है जिसमें कार्यकर्तागण नागरिकों से कहते हैं कि वे चुनावों के आने का इंतजार किए बिना वर्तमान प्रधानमंत्री/मुख्‍यमंत्री और महापौरों पर दबाव डालें कि वे सरकार में कुछ परिवर्तन करें। इस पाठ का उद्देश्‍य कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को इस बात पर आश्‍वस्त/संतुष्‍ट करना है कि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्‍यापक आन्‍दोलन खड़ा करने में आप कार्यकर्ताओं का समय ,  आपकी अपनी पार्टी के लिए 300 सांसद और यहां तक कि 50 सांसद भी चुने जाने में लगने वाले समय से कम लगेगा। अनेक कार्यकर्ता नेता केवल चुनाव का तरीका अपनाने पर जोर देते हैं अर्थात वे अपने स्‍वयंसेवकों से एक व्‍यापक जन-आन्‍दोलन खड़ा करने के लिए नहीं कहते। कार्यकर्ता नेता कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को आश्‍वस्त करने की कोशिश करते हैं कि व्‍यापक आन्‍दोलन में भी बहुत ज्‍यादा समय लगेगा और यह कि नागरिकगण पूरे लापरवाह होते हैं और व्‍यापक जन-आन्‍दोलन समय की बरबादी है। यहां मैं यह दिखलाउंगा कि व्‍यापक जन-आन्‍दोलन कनिष्ठ/छोटे से कार्यकर्ता का कम समय लेगा और राष्‍ट्र का तो और भी कम समय-अवधि लेगा।

इस सिक्‍के का केवल एक ही दूसरा पहलू है कि कार्यकर्ता नेताओं को व्‍यापक जन-आन्‍दोलन से कुछ भी हासिल नहीं होगा। “कानून-ड्राफ्टों के लिए व्‍यापक जन-आन्दोलन ” के विरूद्ध एक गंभीर और जायज बिन्‍दु यह है : हमें भारत में सुधार के लिए 100-200 कानून-ड्राफ्टों की जरूरत पड़ेगी और 100-200 व्‍यापक जन-आन्दोलन नागरिकों के लिए संभव /व्‍यावहारिक नहीं हैं। इसलिए एक प्रस्‍तावित क़ानून-ड्राफ्ट के लिए एक व्‍यापक जन-आन्दोलन  व्‍यावहारिक नहीं होगा। लेकिन मेरे प्रस्‍तावित `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का आविष्‍कार इस समस्‍या का समाधान पूरी तरह से कर देगा। `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के बिना, ऐसा कहा जा सकता है कि चुनाव का तरीका 100 व्‍यापक आन्‍दोलनों से कम समय लेने वाला तरीका है लेकिन `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) 100 व्‍यापक आन्‍दोलनों को एक चुनाव से भी कम खर्चीला बना देता है। मैंने इस बात को इस पाठ में आगे विस्‍तार से बताया है।

 

(17.2) केवल चुनाव के तरीके की जगह व्‍यापक जन-आन्दोलन के लाभ तथा इसकी विशेषताएं

व्‍यापक `जन-आन्दोलन आधारित तरीका` `चुनाव-मात्र` के तरीके से कहीं बेहतर है। निम्‍नलिखित तुलना इसे स्‍पष्‍ट कर देगा:-

`चुनाव-मात्र` की विधि / तरीका

कानून-ड्राफ्टों के लिए व्‍यापक (फैला हुआ) जन-आन्दोलन की विधि / तरीका

परिभाषा :

जब कोई कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता अपने नेता से पूछता है “हम भारत में कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों को कैसे बदलेंगे?” तो वरिष्‍ठ नेता कहता है “ हमलोग केवल चुनाव लड़ेंगे, नागरिकों को मनाएंगे कि वे हमें वोट दें। हम चुनाव जीतेंगे और सांसदों, विधायकों के सहारे हम कानून-ड्राफ्टों को बदल देंगे।” यह तरीका चुनाव-मात्र का तरीका है।

जब कोई कनिष्ठ/छोटे  कार्यकर्ता अपने नेता से पूछता है “हम कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों को कैसे बदलेंगे?” तो वरिष्‍ठ नेता कहता है “ हमलोग नागरिकों को इस बात के लिए मनाएंगे कि वे वर्तमान प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों और महापौरों/मेयरों पर दो-तीन विशिष्‍ठ कानून-ड्राफ्टों पर हस्‍ताक्षर करने के लिए दबाव डालें।” इस तरीके को  मैं “कानून-ड्राफ्टों के लिए व्‍यापक जन-आन्दोलन ” का तरीका कहता हूँ।

समानता :

चुनाव भी एक व्‍यापक जन-आन्दोलन  होता है जिसमें कार्यकर्तागण नागरिकों को पार्टी/दल – `क` के लिए वोट देने के लिए राजी करते हैं।

“`जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्‍यापक जन-आन्दोलन ” में कार्यकर्ता नागरिकों को राजी करते हैं कि वे प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्री पर `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) पर हस्‍ताक्षर करने का दबाव बनाएं।

समानता :

कार्यकर्ताओं को करोड़ों नागरिकों के पास उन्‍हें इस बात पर राजी करने के लिए जाना होता है कि वे पार्टी – `क` को वोट दें।

कार्यकर्ताओं को करोड़ों नागरिकों के पास `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्‍यापक जन-आन्दोलन  के लिए जाना होगा।

पीठ में छूरा घोंपना :

चुनाव-मात्र के तरीके में, चुनाव जीतने वाले उम्‍मीदवार चुनाव जीत जाने के बाद हमेशा  अथवा लगभग हमेशा भ्रष्ट हो जाते हैं और इसलिए व्‍यवस्‍था में कोई प्रभावकारी बदलाव/परिवर्तन नहीं आ पाता। दूसरे शब्‍दों में, चुनाव-मात्र के तरीका में पीठ में छूरा घोंपने/धोखा देने का खतरा इस हद तक बना रहता है कि इस चुनाव-मात्र तरीके/विधि पर मुझे भरोसा नहीं है।

व्‍यापक जन-आन्दोलन में सक्रिय भूमिका में  नागरिक रहते हैं और नागरिकों की संख्‍या करोड़ों में है। और उनका पाला बदलने का कोई प्रयोजन नहीं होता, और इसलिए व्‍यापक जन-आन्दोलन  में धोखा का खतरा नहीं होता।

पांच वर्षों का इंतजार :

चुनाव-मात्र के तरीके में, सबसे बड़ी कमी है “चुनाव का इंतजार करना” और इसका यह भी मतलब है “चुनाव के आने तक कष्‍ट/अवसाद मिलना जारी रहेगा।”

व्‍यापक जन-आन्दोलन  के तरीके में, दुखों को जितनी जल्‍दी हो सके, खत्‍म करने की मांग की जाती है।

एक कदम आगे, दो कदम पीछे

चुनाव-मात्र के तरीके में हमेशा एक संभावना रहती है कि अपने ऐजेंडे/कार्यसूची  को आगे बढ़ाने के लिए आपकी पार्टी को पर्याप्‍त सांसद नहीं भी मिल सकते हैं। ऐसी स्‍थिति में, पांच सालों के लम्‍बे “समय/मुद्दत” का इंतजार हो जाता है। इसलिए चुनाव-मात्र तरीके में हर (चुनावी) असफलता के बाद पांच वर्ष/साल या “मुद्दत” का इंतजार करना ही पड़ता है।

व्‍यापक जन-आन्दोलन में, आप हर दिन आगे बढ़ते हैं और एक बार यदि महत्‍वपूर्ण/बड़ी संख्‍या में लोग जन-आन्दोलन  में शामिल हो जाते हैं तो इसके असफल होने की संभावना न के बराबर होती है।

क्लोन निगेटिव

चुनाव-मात्र तरीके में अच्छे लोग विभिन्‍न/अलग-अलग पार्टियों से जुड़े होने के कारण एक दूसरे के खिलाफ/विरूद्ध ही काम करते हुए असफल होते रहते हैं। दूसरे शब्‍दों में,  चुनाव-मात्र का तरीका बांटने वाला और क्‍लोन निगेटिव होता है।

व्‍यापक जन-आन्दोलन  के तरीके में, सभी लोगों का भारत में सुधार करने के लिए समर्पित होना, उनके अलग-अलग पार्टियों में होने पर भी पार्टियों की विचारधारा से उपर उठकर, जन-आन्दोलन  को सहायता पहुंचाता है। इस प्रकार, व्‍यापक जन-आन्दोलन क्‍लोन पॉजिटिव है।

मतदाताओं का डर कि बुरे व्‍यक्‍ति को लाभ हो सकता है :

चुनाव में, किसी मतदाता के लिए किसी ऐसे जीतने-योग्‍य उम्‍मीदवार को वोट देना समझदारी भरा कदम है जो किसी अन्‍य ऐसे जीतने-योग्‍य उम्‍मीदवार को हरा सके जिससे मतदाता डरता हो। इसलिए एक नई पार्टी को लम्‍बा इंतजार करना पड़ता है और एक भी सांसद को जीताने के लिए किस्‍मत के साथ देने का इंतजार करना पड़ता है। इसलिए यदि किसी पार्टी के पास अच्‍छी योजनाएं हैं लेकिन चुनाव जीतने का प्रत्‍यक्ष ज्ञान/परशेप्‍शन/बोध  नहीं है तो इसे सफल होने के लिए कई-कई चुनावों का इंतजार करना पड़ सकता है।

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