सूची
- (17.1) इस पाठ का उद्देश्य
- (17.2) केवल चुनाव के तरीके की जगह व्यापक जन-आन्दोलन के लाभ तथा इसकी विशेषताएं
- (17.3) क्यों व्यापक (फैला हुआ) जन-आन्दोलन कार्यकर्ताओं के लिए चुनाव के तरीके की तुलना में कम समय लेने वाला होता है?
- (17.4) 100 कानून – ड्राफ्टों को पारित करने में जरूरी समय भी, एक चुनाव जीतने में लगने वाले समय से कम है
- (17.5) तब क्यों नेता भी “ चुनाव तक रूकने ” पर जोर देते हैं”?
- (17.6) पिछले तीन पाठों का सारांश (छोटे में बात )
सूची
- (17.1) इस पाठ का उद्देश्य
- (17.2) केवल चुनाव के तरीके की जगह व्यापक जन-आन्दोलन के लाभ तथा इसकी विशेषताएं
- (17.3) क्यों व्यापक (फैला हुआ) जन-आन्दोलन कार्यकर्ताओं के लिए चुनाव के तरीके की तुलना में कम समय लेने वाला होता है?
- (17.4) 100 कानून – ड्राफ्टों को पारित करने में जरूरी समय भी, एक चुनाव जीतने में लगने वाले समय से कम है
- (17.5) तब क्यों नेता भी “ चुनाव तक रूकने ” पर जोर देते हैं”?
- (17.6) पिछले तीन पाठों का सारांश (छोटे में बात )
प्रिय कार्यकर्ता, आन्दोलन में, चुनाव जीतने से कम समय लगेगा |
(17.1) इस पाठ का उद्देश्य |
एक व्यापक जन-आन्दोलन वह होता है जिसमें कार्यकर्तागण नागरिकों से कहते हैं कि वे चुनावों के आने का इंतजार किए बिना वर्तमान प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री और महापौरों पर दबाव डालें कि वे सरकार में कुछ परिवर्तन करें। इस पाठ का उद्देश्य कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को इस बात पर आश्वस्त/संतुष्ट करना है कि – `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्यापक आन्दोलन खड़ा करने में आप कार्यकर्ताओं का समय , आपकी अपनी पार्टी के लिए 300 सांसद और यहां तक कि 50 सांसद भी चुने जाने में लगने वाले समय से कम लगेगा। अनेक कार्यकर्ता नेता केवल चुनाव का तरीका अपनाने पर जोर देते हैं अर्थात वे अपने स्वयंसेवकों से एक व्यापक जन-आन्दोलन खड़ा करने के लिए नहीं कहते। कार्यकर्ता नेता कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करने की कोशिश करते हैं कि व्यापक आन्दोलन में भी बहुत ज्यादा समय लगेगा और यह कि नागरिकगण पूरे लापरवाह होते हैं और व्यापक जन-आन्दोलन समय की बरबादी है। यहां मैं यह दिखलाउंगा कि व्यापक जन-आन्दोलन कनिष्ठ/छोटे से कार्यकर्ता का कम समय लेगा और राष्ट्र का तो और भी कम समय-अवधि लेगा।
इस सिक्के का केवल एक ही दूसरा पहलू है कि कार्यकर्ता नेताओं को व्यापक जन-आन्दोलन से कुछ भी हासिल नहीं होगा। “कानून-ड्राफ्टों के लिए व्यापक जन-आन्दोलन ” के विरूद्ध एक गंभीर और जायज बिन्दु यह है : हमें भारत में सुधार के लिए 100-200 कानून-ड्राफ्टों की जरूरत पड़ेगी और 100-200 व्यापक जन-आन्दोलन नागरिकों के लिए संभव /व्यावहारिक नहीं हैं। इसलिए एक प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट के लिए एक व्यापक जन-आन्दोलन व्यावहारिक नहीं होगा। लेकिन मेरे प्रस्तावित `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) का आविष्कार इस समस्या का समाधान पूरी तरह से कर देगा। `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के बिना, ऐसा कहा जा सकता है कि चुनाव का तरीका 100 व्यापक आन्दोलनों से कम समय लेने वाला तरीका है लेकिन `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) 100 व्यापक आन्दोलनों को एक चुनाव से भी कम खर्चीला बना देता है। मैंने इस बात को इस पाठ में आगे विस्तार से बताया है।
(17.2) केवल चुनाव के तरीके की जगह व्यापक जन-आन्दोलन के लाभ तथा इसकी विशेषताएं |
व्यापक `जन-आन्दोलन आधारित तरीका` `चुनाव-मात्र` के तरीके से कहीं बेहतर है। निम्नलिखित तुलना इसे स्पष्ट कर देगा:-
`चुनाव-मात्र` की विधि / तरीका | “कानून-ड्राफ्टों के लिए व्यापक (फैला हुआ) जन-आन्दोलन ” की विधि / तरीका |
परिभाषा :
जब कोई कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता अपने नेता से पूछता है “हम भारत में कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों को कैसे बदलेंगे?” तो वरिष्ठ नेता कहता है “ हमलोग केवल चुनाव लड़ेंगे, नागरिकों को मनाएंगे कि वे हमें वोट दें। हम चुनाव जीतेंगे और सांसदों, विधायकों के सहारे हम कानून-ड्राफ्टों को बदल देंगे।” यह तरीका चुनाव-मात्र का तरीका है। |
जब कोई कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता अपने नेता से पूछता है “हम कानूनों के प्रारूपों/ड्राफ्टों को कैसे बदलेंगे?” तो वरिष्ठ नेता कहता है “ हमलोग नागरिकों को इस बात के लिए मनाएंगे कि वे वर्तमान प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और महापौरों/मेयरों पर दो-तीन विशिष्ठ कानून-ड्राफ्टों पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालें।” इस तरीके को मैं “कानून-ड्राफ्टों के लिए व्यापक जन-आन्दोलन ” का तरीका कहता हूँ। |
समानता :
चुनाव भी एक व्यापक जन-आन्दोलन होता है जिसमें कार्यकर्तागण नागरिकों को पार्टी/दल – `क` के लिए वोट देने के लिए राजी करते हैं। |
“`जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्यापक जन-आन्दोलन ” में कार्यकर्ता नागरिकों को राजी करते हैं कि वे प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री पर `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) पर हस्ताक्षर करने का दबाव बनाएं। |
समानता :
कार्यकर्ताओं को करोड़ों नागरिकों के पास उन्हें इस बात पर राजी करने के लिए जाना होता है कि वे पार्टी – `क` को वोट दें। |
कार्यकर्ताओं को करोड़ों नागरिकों के पास `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्यापक जन-आन्दोलन के लिए जाना होगा। |
पीठ में छूरा घोंपना :
चुनाव-मात्र के तरीके में, चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार चुनाव जीत जाने के बाद हमेशा अथवा लगभग हमेशा भ्रष्ट हो जाते हैं और इसलिए व्यवस्था में कोई प्रभावकारी बदलाव/परिवर्तन नहीं आ पाता। दूसरे शब्दों में, चुनाव-मात्र के तरीका में पीठ में छूरा घोंपने/धोखा देने का खतरा इस हद तक बना रहता है कि इस चुनाव-मात्र तरीके/विधि पर मुझे भरोसा नहीं है। |
व्यापक जन-आन्दोलन में सक्रिय भूमिका में नागरिक रहते हैं और नागरिकों की संख्या करोड़ों में है। और उनका पाला बदलने का कोई प्रयोजन नहीं होता, और इसलिए व्यापक जन-आन्दोलन में धोखा का खतरा नहीं होता। |
पांच वर्षों का इंतजार :
चुनाव-मात्र के तरीके में, सबसे बड़ी कमी है “चुनाव का इंतजार करना” और इसका यह भी मतलब है “चुनाव के आने तक कष्ट/अवसाद मिलना जारी रहेगा।” |
व्यापक जन-आन्दोलन के तरीके में, दुखों को जितनी जल्दी हो सके, खत्म करने की मांग की जाती है। |
एक कदम आगे, दो कदम पीछे
चुनाव-मात्र के तरीके में हमेशा एक संभावना रहती है कि अपने ऐजेंडे/कार्यसूची को आगे बढ़ाने के लिए आपकी पार्टी को पर्याप्त सांसद नहीं भी मिल सकते हैं। ऐसी स्थिति में, पांच सालों के लम्बे “समय/मुद्दत” का इंतजार हो जाता है। इसलिए चुनाव-मात्र तरीके में हर (चुनावी) असफलता के बाद पांच वर्ष/साल या “मुद्दत” का इंतजार करना ही पड़ता है। |
व्यापक जन-आन्दोलन में, आप हर दिन आगे बढ़ते हैं और एक बार यदि महत्वपूर्ण/बड़ी संख्या में लोग जन-आन्दोलन में शामिल हो जाते हैं तो इसके असफल होने की संभावना न के बराबर होती है। |
क्लोन निगेटिव
चुनाव-मात्र तरीके में अच्छे लोग विभिन्न/अलग-अलग पार्टियों से जुड़े होने के कारण एक दूसरे के खिलाफ/विरूद्ध ही काम करते हुए असफल होते रहते हैं। दूसरे शब्दों में, चुनाव-मात्र का तरीका बांटने वाला और क्लोन निगेटिव होता है। |
व्यापक जन-आन्दोलन के तरीके में, सभी लोगों का भारत में सुधार करने के लिए समर्पित होना, उनके अलग-अलग पार्टियों में होने पर भी पार्टियों की विचारधारा से उपर उठकर, जन-आन्दोलन को सहायता पहुंचाता है। इस प्रकार, व्यापक जन-आन्दोलन क्लोन पॉजिटिव है। |
मतदाताओं का डर कि बुरे व्यक्ति को लाभ हो सकता है :
चुनाव में, किसी मतदाता के लिए किसी ऐसे जीतने-योग्य उम्मीदवार को वोट देना समझदारी भरा कदम है जो किसी अन्य ऐसे जीतने-योग्य उम्मीदवार को हरा सके जिससे मतदाता डरता हो। इसलिए एक नई पार्टी को लम्बा इंतजार करना पड़ता है और एक भी सांसद को जीताने के लिए किस्मत के साथ देने का इंतजार करना पड़ता है। इसलिए यदि किसी पार्टी के पास अच्छी योजनाएं हैं लेकिन चुनाव जीतने का प्रत्यक्ष ज्ञान/परशेप्शन/बोध नहीं है तो इसे सफल होने के लिए कई-कई चुनावों का इंतजार करना पड़ सकता है। |
व्यापक जन-आन्दोलन में, नागरिक जीतने-योग्य उम्मीदवार की ओर नहीं देखा करते। इसलिए इस बात की बहुत संभावना/उम्मीद होती है कि एक अच्छे क़ानून-ड्राफ्ट की ओर नागरिकों का ध्यान जाएगा। |
कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं के लिए अंतर
चुनाव-मात्र तरीके में समय ज्यादा लगता है। |
व्यापक जन-आन्दोलन के तरीके में समय कम लगता है। कैसे, मैं यह विस्तार से बाद में बताउंगा। |
कार्यकर्ता नेताओं के लिए अंतर :
चुनाव-मात्र तरीका उन्हें बिक जाने और नियंत्रण हाथ में रखने की स्थितीय लाभ/ताकत देता है। |
व्यापक जन-आन्दोलन उन्हें इस प्रकार की न तो कोई स्थितीय लाभ/ताकत देता है और न ही बिक जाने का अवसर ही देता है। |
नागरिकों के लिए अंतर :
चुनाव-मात्र का तरीका नागरिकों का कम समय लेता है – पांच वर्षों में केवल 30 मिनट का समय। लेकिन उन्हें शायद ही कोई लाभ होता है। लेकिन नागरिकों को परिवर्तन लाने के लिए 5 वर्ष, फिर 5 वर्ष और फिर 5 वर्ष का इंतजार करते रहना पड़ता है। |
व्यापक जन-आन्दोलन में ज्यादा समय लगता है – प्रति व्यापक जन-आन्दोलन प्रति नागरिक कुछ दिनों का समय। लेकिन उन्हें ही सबसे ज्यादा लाभ भी मिलता है और उन्हें 5 वर्ष और यहां तक कि 5 दिन का भी इंतजार नहीं करना पड़ता। |
राष्ट्र के लिए अंतर :
चुनाव के बाद, नए-नए चुनकर आए सांसद/विधायक बिक जाते हैं और इस प्रकार बहुत ही थोड़ा परिवर्तन/बदलाव आ पाता है। हर चुनाव का मतलब 5 और वर्षों की बरबादी ही है। |
व्यापक जन-आन्दोलन में, नागरिकों और कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को 5 वर्षों का इंतजार करने की जरूरत नहीं होती। वे बिना इंतजार किए ही पूरे समय (5 वर्ष) काम कर सकते हैं। |
(17.3) क्यों व्यापक (फैला हुआ) जन-आन्दोलन कार्यकर्ताओं के लिए चुनाव के तरीके की तुलना में कम समय लेने वाला होता है? |
चुनाव बनाम व्यापक जन-आन्दोलन में निम्नलिखित विशेष तुलनात्मक गुण होते हैं :-
किसी व्यापक जन-आन्दोलन में कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता को चुनावों की तुलना में कम समय लगाने की जरूरत होती है। व्यापक जन-आन्दोलन में नागरिकों को कुछ दिनों का समय देने की जरूरत पड़ेगी जबकि चुनाव में नागरिकों को केवल 30 मिनट का समय खर्च करना पड़ता है। लेकिन कार्यकर्ताओं को व्यापक जन-आन्दोलन खड़ा करने में कम समय की जरूरत पड़ेगी।
ऐसा क्यों है? कैसे क़ानून-ड्राफ्ट के लिए व्यापक जन-आन्दोलन में कार्यकर्ताओं का कम समय लगेगा, यह देखते हुए कि नागरिकों को ज्यादा समय देना पड़ता है? क्योंकि `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) अथवा नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.) अथवा प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) जैसे कानून-ड्राफ्टों का समर्थन करने के लिए नागरिकों को संतुष्ट करना ज्यादा आसान है। और नागरिकों को किसी उम्मीदवार `कखग` को वोट देने के लिए संतुष्ट करना कठिन है । इसलिए किसी क़ानून-ड्राफ्ट के लिए समर्थन हासिल करना, किसी उम्मीदवार के लिए समर्थन हासिल करने से ज्यादा आसान है क्योंकि मान लीजिए, चुनाव में दो बड़े उम्मीदवार `क` और `ख` हैं । अब मान लीजिए एक ज्यादा अच्छा नया उम्मीदवार `ग` आ जाता है। उम्मीदवार `क` के मतदाता इस बात से ड़रेंगे कि उम्मीदवार `ग` को वोट देने से केवल उम्मीदवार `ख` को लाभ होगा। और उम्मीदवार ख के मतदाता इसके उल्टा सोंचेंगे(कि उम्मीदवार `ग` को वोट देने से `क` को लाभ होगा )। इसलिए जब तक नई पार्टी मतदाताओं को संतुष्ट/राजी नहीं कर देती कि उम्मीदवार `ग` निश्चित रूप से जीतेगा तब तक ग के लिए वोट प्राप्त करना कठिन है। इस बात को प्रस्तुत करने का कोई समझदारी भरा तरीका नहीं है कि `ग` की जीत तब हो जाएगी जब `ग` पहली बार चुनाव लड़े और उसे किसी प्रमुख/प्रभावशाली पार्टी का समर्थन न हासिल हो। इसलिए कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ता को अपना बहुत लम्बा समय रैलियों में, बैठकों में, नारेबाजी में, चुनाव जीतने का प्रत्यक्ष-ज्ञान/बोध/परशेप्शन पैदा करने के लिए दूसरे कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने में देना होगा। उदाहरण के लिए आरएसएस /बीजेपी को लोकसभा में 180 सीट प्राप्त करने के लिए 45 वर्ष लगे। क्यों? क्योंकि हर चुनाव में उन्हें चुनाव जीतने की स्थिति का प्रत्यक्ष-ज्ञान/परशेप्शन पैदा करना पड़ा ताकि वे 15 प्रतिशत वोट भी ले सकें और ऐसा प्रत्यक्ष-ज्ञान/परशेप्शन पैदा करने के लिए किसी व्यक्ति को अपने जीवन-काल से कहीं अधिक समय चाहिए जबकि क़ानून-ड्राफ्ट के लिए समर्थन पैदा करने के लिए कार्यकर्ताओं को जीतने की स्थिति का प्रत्यक्ष-ज्ञान/बोध/परशेप्शन पैदा करने की जरूरत नहीं पड़ती। कार्यकर्ताओं को केवल नागरिकों को संतुष्ट करना होता है कि प्रस्तावित क़ानून-ड्राफ्ट राष्ट्र के साथ-साथ उनका भी भला करेगा। यह सबसे बड़ा समय-बचत करने वाला तरीका है। एक कनिष्ठ/छोटा कार्यकर्ता अपनी स्थिति में, अभी हो सकता है इसका अनुभव नहीं कर पाये । लेकिन चुनाव जीतने की स्थिति के लिए प्रत्यक्ष-ज्ञान/बोध/परशेप्शन पैदा करना सबसे ज्यादा समय लेने वाला कार्यकलाप है। जीतने का प्रत्यक्ष-ज्ञान/बोध/परशेप्शन पैदा करने के लिए कई घंटों तक हल्ला के साथ प्रचार करने का समय लगता है। यदि क़ानून-ड्राफ्ट वास्तव में नागरिकों के तत्काल और मुख्य हित में है, तब यह धारा के साथ तैरने के समान है, धारा के विपरित नहीं।
साथ ही, अधिकांश नागरिक ठीक ही यह मानते हैं कि ज्यादातर नए सांसद चुने जाने के बाद उतने ही भ्रष्ट हो जाएंगे जितने वर्तमान सांसद हैं। इसलिए किसी कार्यकर्ता को नागरिकों को यह समझाने में कई घंटों का समय देना पड़ेगा कि उनका उम्मीदवार `क` बाकी उम्मीदवारों से “अलग” है। एक अविवेकपूर्ण और साबित न किए जाने योग्य बात के लिए किसी को संतुष्ट करने के कार्य में हमेशा घंटों का समय लगता है जबकि सही विचार के बारे में संतुष्ट करने के कार्य में कम समय लगता है और कई घंटों का समय इसके बाद भी बेकार हो जाता है क्योंकि नागरिक मूर्ख नहीं होते कि वे गलत विचार को स्वीकार कर लें।
यह भी ध्यान दें कि कानून-ड्राफ्टों (जैसे `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट ) के लिए व्यापक जन-आन्दोलन में कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि कानूनों को नागरिकों और साथी कार्यकर्ताओं को समझाने में समय देना पड़ता है। इससे कार्यकर्ताओं और नागरिकों के सोचने की बौद्धिक क्षमता में सुधार होता है। सूचना/जानकारी के आदान-प्रदान से कार्यकर्ताओं के साथ-साथ नागरिकों के बौद्धिक स्तर में सुधार होता है जबकि रैलियों में जाने, बैठकों में भाग लेने, जिनमें एक समान बात ही हमेशा दोहराई जाती है, और नारेबाजी आदि में समय और पैसे की बरबादी है। इसलिए, जीतने का प्रत्यक्ष-ज्ञान/बोध बनाने के लिए कनिष्ठ/छोटे कार्यकर्ताओं को रैलियों आदि बिना दिमाग के कार्यकलापों में कई घंटों और कई दिनों तक समय बरबाद करना पड़ता है।
आम चुनाव-मात्र तरीके में नागरिकों को तुलनात्मक रूप से कम समय देना पड़ेगा – वोट देने के लिए केवल 30 मिनट के समय की जरूरत है। जबकि व्यापक जन-आन्दोलन में नागरिकों को कई घंटों और कई दिन तक का समय देने की जरूरत पड़ेगी। लेकिन तब व्यापक जन-आन्दोलन से नागरिकों को चुनाव-मात्र की तुलना में कई गुणा ज्यादा लाभ भी मिलता है। इस प्रकार यह बात कि व्यापक जन-आन्दोलन नागरिकों के लिए ज्यादा समय लेने वाला कार्य है, को नैतिक रूप से संतुलित कर दिया जाता है(कई गुणा लाभ द्वारा)।
(17.4) 100 कानून – ड्राफ्टों को पारित करने में जरूरी समय भी, एक चुनाव जीतने में लगने वाले समय से कम है |
“क़ानून-ड्राफ्ट के लिए व्यापक जन-आन्दोलन ” में कार्यकर्ताओं को कम समय की जरूरत पड़ती है। इसमें नागरिकों को ज्यादा समय देना पड़ता है, जो कि सही भी है, क्योंकि नागरिकों को ही बहुत ज्यादा लाभ होता है। लेकिन राष्ट्र में सुधार के लिए हमें सैंकड़ों कानूनों की जरूरत है तो हमें इन सैकड़ों कानून-ड्राफ्टों में से प्रत्येक के लिए सैंकड़ों जन-आन्दोलन करने पड़ेंगे? यदि एक व्यापक जन-आन्दोलन के लिए नागरिकों को अपने जीवन का दस घंटा देना पड़ता है तब 100 व्यापक आन्दोलनों के लिए 1000 दिनों की जरूरत पड़ेगी जो कि अव्यावहारिक है क्योंकि नागरिकों को काम करने और आजीविका जुटाने की जरूरत पड़ती है।
यहीं वह प्रस्तावित `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) सरकारी अधिसूचना(आदेश) (कानून) सामने आता है जो खेल को बदलने वाला कानून है। `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) एक छोटे संशोधन की तरह दिखता है लेकिन यदि एक बार प्रधानमंत्री इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करने के लिए जनता के दबाव द्वारा बाध्य किये जाते हैं तो `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) व्यापक जन-आन्दोलन के लिए लगने वाले समय को 100 घंटे प्रति नागरिक से कम करके मात्र 10 मिनट प्रति नागरिक कर देता है और लागत को कई सौ रूपए प्रति नागरिक से कम करके मात्र 3 रूपए प्रति नागरिक कर देता है (क्योंकि इसके द्वारा अन्य क़ानून आ सकेंगे- देखें पाठ 1 )। इसलिए राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह की योजना जिसका प्रस्ताव मैं कर रहा हूँ , उसमें 200 क़ानून-ड्राफ्ट लागू कराने के लिए लगने वाला समय (200 क़ानून-ड्राफ्ट × 100 घंटा प्रति क़ानून-ड्राफ्ट ) = 20,000 घंटा प्रति नागरिक नहीं है । `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्यापक जन-आन्दोलन के लिए समय प्रति नागरिक 100 घंटे हैं लेकिन इसके द्वारा आने वाले, अगले 200 कानूनों के लिए जरूरी समय मात्र 200 × 5 = 1000 मिनट अर्थात प्रति नागरिक एक दिन से भी कम और `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) के लिए व्यापक जन-आन्दोलन में सामग्री की लागत प्रति नागरिक कई सौ रूपए हो सकती है लेकिन अगले 200 कानून-ड्राफ्टों के लिए यह लागत प्रति नागरिक प्रति कानून 3 रूपए मात्र या इससे भी कम होगी।
चुनाव-मात्र का तरीका पहली नजर में कहीं ज्यादा प्रभावकारी दिखता है । ऐसा लगता है मानों यदि एक बार चुनाव जीत लिया जाए तो सांसदगण कुछ ही दिनों में सभी 200 अच्छे कानूनों को पारित कर देंगे और इस प्रकार नागरिकों को एक भी मिनट का समय देने की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि यह एक झूठा सपना ही है – चुनाव के बाद सांसद बिक जाएंगे और इस प्रकार व्यापक जन-आन्दोलन के अभाव में एक भी प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि कानून पारित नहीं होगा। इसलिए एक बार फिर हमें व्यापक आन्दोलनों को चलाने के लिए कम लागत वाले तरीकों की जरूरत पड़ेगी और हमें `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) की ओर लौटना होगा | `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) एक व्यापक जन-आन्दोलन आयोजित करने के लिए सबसे सस्ता तरीका है।
(17.5) तब क्यों नेता भी “ चुनाव तक रूकने ” पर जोर देते हैं”? |
अब एक कनिष्ठ/छोटा कार्यकर्ता देख सकता है कि अनेक कार्यकर्ता-नेता चुनाव-मात्र के तरीकों पर ही जोर देते हैं। वे अपने कार्यकर्ताओं से जोर देकर कहते हैं कि जब तक चुनाव नहीं आ जाते तब तक कार्यकर्ताओं को केवल और अधिक सदस्य जुटाने अथवा चन्दा/दान वसूलना चाहिए, लेकिन किसी कानून को लागू करने के लिए किसी व्यापक जन-आन्दोलन का समर्थन करने के लिए नागरिकों से बिलकुल नहीं कहना चाहिए। ये सभी काम केवल चुनावों के बाद ही किए जाने चाहिए। मैंने दिखलाया है कि चुनाव-मात्र तरीके में भयंकर कमियां हैं क्योंकि इस बात की पूरी-पूरी संभावना होती है कि चुनाव के बाद चुने गए सांसद, विधायक आदि बिक जाएंगे, पाला बदल लेंगे और यहां तक कि भ्रष्टाचारी हो जाएंगे। इसलिए क्यों नेतागण चुनाव-मात्र तरीके पर ही जोर देते हैं?
सबसे महत्वपूर्ण कारण कि क्यों कार्यकर्ता नेता क़ानून-ड्राफ्ट के लिए व्यापक जन-आन्दोलन से ज्यादा चुनाव-मात्र के तरीके को महत्व देते हैं। इसका कारण यह है कि व्यापक जन-आन्दोलन नेताओं को कोई नियंत्रण प्रदान नहीं करता जबकि चुनाव-मात्र तरीका में नियंत्रण नेताओं के हाथ में होता है। चुनाव-मात्र तरीके में नेताओं का नियंत्रण चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी रहता है। वे बिक सकते हैं और लाभ कमा सकते हैं। हालांकि व्यापक जन-आन्दोलन केवल नेताओं द्वारा ही खड़ा किया जाता है, फिर भी नेता इसे रोक नहीं सकते अथवा इसकी दिशा तक नहीं बदल सकते। इसलिए अधिकांश “व्यावहारिक” नेता कानून-ड्राफ्टों के लिए व्यापक जन-आन्दोलन का विरोध करते हैं।
(17.6) पिछले तीन पाठों का सारांश (छोटे में बात ) |
पिछले तीन पाठ सभी छोटे कार्यकर्ताओं (नेता नहीं) के साथ बातचीत थी । मेरा लक्ष्य छोटे कार्यकर्ताओं को समझाकर संतुष्ट करना था कि उन्हें कम से कम अपने सक्रिय समय का 10 प्रतिशत नागरिकों को इस बात पर राजी करने के लिए लगाना चाहिए कि वे प्रधानमंत्री मुख्यमंत्रियों व महापौरों को `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम), नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.), प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानूनों को पारित करने का दबाव बनाएं। इसलिए यदि एक कार्यकर्ता आज हर सप्ताह 10 घंटे का समय देता है तो मैं उससे अनुरोध करता हूँ कि वह इसे घटाकर 9 घंटे कर दे और एक घंटा प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार), `पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)` आदि के लिए प्रचार अभियान के लिए बचाए।
क्योंकि सामाजिक कार्य मोटे तौर पर अपर्याप्त होते हैं और इससे कानून-ड्राफ्टों में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। और चुनाव आदि भी अपर्याप्त और क्लोन निगेटिव होते हैं। सबसे बुरा है कि “चुनाव जीतो और कानून बदलो” तरीके में छोटे कार्यकर्ता को हठी लोगों को यह समझाने में सैंकड़ों घंटों का समय लगाना पड़ेगा कि नया व्यक्ति चुनाव जीतने के बाद भ्रष्ट नहीं होगा और चुनाव जीतने के प्रत्यक्ष-ज्ञान/बोध पैदा करने में सैंकड़ों घंटे देने पड़ेंगे। सैंकड़ों घंटे रैलियों, नारेबाजी, बैठकों में भाग लेने जैसे बिना दिमाग के कार्यकलाप आदि में लग जाएंगे, जिसमें बार-बार केवल एक जैसी दोहराने वाली बातें होती हैं। बैठकों में केवल संगठनात्मक और योजना बनाने के ही मुद्दे होंगे। जबकि यदि छोटे कार्यकर्ता `पारदर्शी शिकायत प्रणाली(सिस्टम)`, नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी , प्रजा अधीन राजा (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि कानूनों के लिए प्रचार करने में समय लगाने का विकल्प चुनता है तो इससे कार्यकर्ताओं के साथ-साथ नागरिकों के भी बौद्धिक स्तर में सुधार आएगा और सबसे बड़ी बात “`जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) क़ानून-ड्राफ्ट के लिए व्यापक जन-आन्दोलन ” क्लोन पॉजिटिव है, इसलिए इसपर लगाया गया हरेक क्षण लक्ष्य की प्राप्ति में सहयोग देता है |