होम > प्रजा अधीन > अध्याय 31 – राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली (सिस्टम) लागू करने पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रस्‍ताव

अध्याय 31 – राष्‍ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली (सिस्टम) लागू करने पर `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रस्‍ताव

dummy
पी.डी.एफ. डाउनलोड करेंGet a PDF version of this webpageपी.डी.एफ. डाउनलोड करें

3.राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और आधार नंबर डाटाबेस में दर्ज की गई सूचनाओं को नष्ट करना और यूआई.डी.ए.आई को भंग करना
प्रधानमंत्री को यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और आधार डाटाबेस में दर्ज की गई सभी सूचनाओं को नष्ट कर दिया गया है और इस अधिनियम के 3 महीने के भीतर यू.आई.डी.ए.आई का विघटन किया जाता है (समाप्ति की जाती है) |

यू.आई.डी.ए.आई का अर्थ आधार अधिनियम 2016 जैसा ही है |

4.वर्तमान में आधार कार्ड से जुड़ी योजनाएं – आधार सिस्टम के रद्द होने के बाद, वर्तमान में चल रही योजनाएं उस बैंक खाते से जुड़ी रहेंगी, जिस बैंक खाते के साथ वे वर्तमान में जुड़ी हुई हैं जब तक कि नागरिक उस योजना को उसके किसी अन्य बैंक खाते से जोड़ने के लिए अनुरोध नहीं करता है |

5.नया राष्ट्रीय आई.डी नंबर जारी किया जाएगा | इसके बारे में उल्लेख बाद के खंडों में किया गया है |

 

(31.3) कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री को एक सुरक्षित और प्रभावी राष्ट्रीय आई.डी प्रणाली लागू करने के लिए दबाव डालने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए

1. राजपत्र में टी.सी.पी छपवाने के लिए प्रधानमंत्री को राजी करें : कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री को राजपत्र में टी.सी.पी उर्फ पारदर्शी शिकायत-प्रस्ताव प्रणाली को छपवाने के लिए राजी करना चाहिए, ताकि टी.सी.पी का प्रयोग करके, नागरिक और कार्यकर्ता कम प्रयास और समय देकर भी अन्य बदलाव ला सकें| (अधिक विवरण के लिए अध्याय 1, अनुभाग 1.2 को देखें)

2. टी.सी.पी का उपयोग करके, कार्यकर्ताओं और नागरिकों को प्रधानमंत्री को राईट टू रिकॉल-प्रधानमंत्री (प्रधानमंत्री को बदलने के अधिकार) को राजपत्र में छपवाने के लिए राजी करना चाहिए | इससे प्रधानमंत्री के काम में सुधार होगा और प्रधानमंत्री को बांग्लादेशियों को रोकने और मौजूदा बांग्लादेशियों को निष्कासित करने (देश से निकालने) के लिए जरूरी राजपत्र अधिसूचनाओं को छपवाने के लिए प्रेरित किया जा सकेगा |

3. राष्ट्रीय आई.डी सेक्रेटरी (सचिव) को बदलने का अधिकार (राईट टू रिकॉल) – एक बार राजपत्र में टी.सी.पी छपने के बाद, कार्यकर्ता प्रधानमंत्री को यू.आई.डी.ई प्रणाली को रद्द करने और एक नया राष्टीय आई.डी. प्रणाली बनाने के लिए मजबूर कर सकते हैं | प्रधनमंत्री एक पद राष्ट्रीय आई.डी सचिव बना सकते हैं और उस पर राईट टू रिकॉल (नागरिकों का बदलने का अधिकार) भी राजपत्र में छपवा सकते हैं | सेक्रेटरी पर राईट टू रिकॉल के बिना, सेक्रेटरी केवल प्रक्रिया में देरी करेंगे ताकि इस्लामवादियों, ईसाईवादियों और बेनामी भूमि धारकों को लाभ हो और राष्ट्रीय आई.डी प्रणाली को भी कमजोर बनाए रखेंगे | इसके अलावा, राईट टू रिकॉल की अनुपस्थिति में, सेक्रेटरी गलत खर्चों को बढ़ाने की पूरी कोशिश करेंगे | तो राष्ट्रीय आई.डी सचिव (सेक्रेटरी) पर राईट टू रिकॉल होना बहुत जरूरी है | कार्यकर्ता प्रधानमंत्री को राजपत्र में राष्ट्रीय आई.डी पर राईट टू रिकॉल प्रक्रिया छपवाने के लिए मजबूर कर सकते हैं और प्रधानमंत्री को राजपत्र में टी.सी.पी छपवाने के लिए मजबूर करने और टी.सी.पी का उपयोग करके वे राईट टू रिकॉल-राष्ट्रीय आई.डी-सेक्रेटरी के लिए व्यापक नागरिक सहयोग के मौजूद होने की बात को साबित कर सकते है |

4. सभी नागरिकों के डी.एन.ए डाटा और वंशावली (फैमिली ट्री) का निर्माण किया जाना चाहिए : सभी नागरिकों के डी.एन.ए छाप को आई.डी सिस्टम में जोड़ा जाना चाहिए और परिवार डी.एन.ए का वृक्ष बनाया जाना चाहिए | शुरुआत में, सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए डी.एन.ए छाप अनिवार्य किया जाना चाहिए, फिर सभी नागरिक जो सालाना 10 लाख रुपये से अधिक कमाते हैं, फिर नागरिक जो प्रति वर्ष 5 लाख रुपये कमाते हैं, फिर उन सभी नागरिकों के लिए जो सालाना 200,000 रुपये कमाते हैं और अंत में सभी नागरिकों के लिए डी.एन.ए छाप अनिवार्य किया जाना चाहिए |

5. केवल डी.एन.ए डाटा के साथ राष्ट्रीय आई.डी नंबर जारी करना : राष्ट्रीय आई.डी सेक्रेटरी को केवल डी.एन.ए डाटा का उपयोग करके एक वर्ष के भीतर बच्चों सहित भारत में प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीय आई.डी नंबर जारी करना चाहिए | राष्ट्रीय आई.डी संख्या को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जाना चाहिए | यह जरूरी है क्योंकि लगभग 3 करोड़ नागरिकों (असली भारतीय नागरिक, बांग्लादेशी नहीं) के पास कोई मतदाता कार्ड या राशन कार्ड या कोई अन्य कार्ड नहीं है !! और जितनी जल्दी हो सके राष्ट्रीय आई.डी. नंबर जारी करना आवश्यक है | यदि अन्य आई.डी पूर्व शर्त के रूप में रखी जाती हैं, तो सभी 120 करोड़ नागरिकों को आई.डी जारी करने में विलंब होगा और लगभग 3 करोड़ भारतीय नागरिकों को यह कभी प्राप्त नहीं हो सकेगा |

6. गैर-नागरिक को जेल भेजने या मौत की सजा देने के प्रावधान को राजपत्र में छपवाना यदि वह राष्ट्रीय आई.डी संख्या के लिए आवेदन करता है : अभी तक, हम नागरिकों और सरकार के पास राष्ट्रीय आई.डी नंबर जारी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है यदि कोई व्यक्ति आता है और कहता है कि वह भारत का नागरिक है और दस्तावेजों या गवाहों के बिना आई.डी प्राप्त करना चाहता है | अभी तक, हम इसे रोकने के लिए कोई उपाय खोजने में समर्थ नहीं हुए हैं, क्योंकि लगभग 3 करोड़ असली भारतीय नागरिकों के पास कोई दस्तावेज नहीं है – यहाँ तक कि राशन कार्ड भी नहीं है | इसलिए यदि कोई अवैध अप्रवासी जैसे बांग्लादेशी आता हैं और कहता हैं कि वह भारत का नागरिक है और आई.डी की मांग करता है, तो क्लर्क उसे आई.डी दे देगा | लेकिन एक प्रतिरोध (रोक) के रूप में, हमें प्रधानमंत्री को राजपत्र में राष्ट्रीय आई.डी संख्या कानून में एक धारा छपवाने के लिए मजबूर करना चाहिए कि “यदि गैर-नागरिक राष्ट्रीय आई.डी नंबर के लिए आवेदन करता है, तो ज्यूरी सदस्य उसे अधिकतम 15 साल तक कैद की सजा या मृत्युदंड दे सकते है” | जब लगभग 1000-1500 बांग्लादेशों को कैद की सजा दी जाएगी और लगभग 10-15 को फांसी दे दी जाएगी, तो शेष एक करोड़ बांग्लादेशी अपने आप आवेदन करना बंद कर देंगे |

7. माता-पिता के राष्ट्रीय आई.डी. नंबर के साथ जोड़ना : व्यक्ति का राष्ट्रीय आई.डी नंबर डाटा उसके माता-पिता के राष्ट्रीय आई.डी नंबर से जुड़ा होना चाहिए | यदि आई.डी जारी करने से पहले माता-पिता की मृत्यु हो जाती है, तो सिस्टम को उन तथ्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख करना चाहिए | ऐसा कदम अधिक नए आने वाली बांग्लादेशियों को रोकने के लिए आवश्यक और पर्याप्त है | कैसे ? अधिक जानकारी के लिए कृपया अध्याय-33 देखें |

श्रेणी: प्रजा अधीन