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अध्याय 25 – टैक्‍स / कर प्रणाली पर प्रजा अधीन राजा समूह / राईट टू रिकॉल ग्रुप का प्रस्‍ताव : संपत्ति कर (संपत्ति टैक्स) लागू करें तथा वैट, सेवा कर (सेवा टैक्स), जी.एस.टी. को रद्द करें

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  • एक अन्‍य तरीका एक ऐसा कर लगाने का है जिसमें उच्‍चतर/ज्‍यादा सम्‍पत्ति वाले लोगों को अपने सम्‍पत्‍तियों के मूल्‍यों के मामले में उच्चतर कर चुकाना पड़ता है। यह कर प्रगामी कर (धन/सम्‍पत्‍ति के संबंध में प्रगामी टैक्स ) कहलाएगा ।

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    (25.3) क्‍या भारत में कुछ (प्रकार के) टैक्‍स प्रतिगामी / प्रत्‍यावर्ती (रिग्रेस्सिव) हैं ?

    अब भारत में लगाए जाने वाले कुछ करों का विश्‍लेषण करें –

    कर उदाहरण 1 चलचित्र/सिनेमा के टिकटों पर टैक्‍स

    मान लीजिए, एक व्‍यक्‍ति 3000 रूपए प्रति माह कमाता है। मान लीजिए, वह महीने भर में तीन सिनेमा देखता है। मान लीजिए, वह 50 रूपए वाले सस्‍ते टिकट खरीदता है। अहमदाबाद में ऐसे टिकटों पर कर 20 रूपए है। इसलिए, वह 3 × 20 रूपए = 60 रूपए प्रति माह टैक्‍स चुकाता है जो उसकी आय (3000 रूपए) का 2 प्रतिशत है। अब 30,000 रूपए प्रति महीने कमाने वाले एक व्‍यक्‍ति पर विचार कीजिए। ऐसी संभावना नहीं है कि वह एक महीने में 10 बार सिनेमा/फिल्‍म देखेगा। मान लीजिए, एक महीने में वह चार सिनेमा देखता है और हर बार वह ज्‍यादा महंगी यानि 100 रूपए वाली टिकट खरीदता है जिसमें 40 रूपया टैक्‍स का है और इस प्रकार वह व्‍यक्‍ति 160 रूपए टैक्‍स/कर चुकाता है। तो टैक्‍स/कर प्रतिशत होगा – 160/30,000 × 100 % = 16/30 = 0.54 % . इसलिए, सिनेमा पर लगने वाला कर आय के संबंध  में प्रतिगामी/प्रत्‍यावर्ती कर है। और भी प्रतिगामी/प्रत्‍यावर्ती यह है कि अहमदाबाद जैसे भारत के कुछ शहरों में साधारण फिल्मों पर लगने वाला टैक्‍स आधार-मूल्‍य का 80 प्रतिशत होता है जहां आधार-मूल्‍य केवल 20 रूपया है। जबकि महंगे थिएटरों (जिन्हें मल्‍टीप्‍लेक्‍स कहा जाता है) जहां आधार-मूल्य 100 रूपए अथवा 150 रूपए अथवा 200 रूपए और यहां तक कि 400 रूपए भी होता है, वहां टैक्‍स नाम-मात्र का अर्थात रु.1 प्रति टिकेट ही है यानि लगभग शुन्‍य प्रतिशत। दूसरे शब्‍दों में, एक व्‍यक्‍ति जो मुश्‍किल से 40 रूपए (सिनेमा पर) वहन/खर्च कर सकता है, उसे 15 रूपए का टैक्‍स चुकाना पड़ता है जबकि वे लोग जो 100 से लेकर 400 रूपए खर्च करते हैं उन्‍हें लगबघ शुन्‍य टैक्‍स ही देना होता है। यह वास्‍तव में आय के मामले में एक प्रतिगामी/प्रत्‍यावर्ती कर है ; एक प्रकार का टैक्‍स/कर जिसे भारत के विशिष्ट/ऊंचे वर्ग के लोग बहुत पसन्‍द करते/चाहते हैं।

    टैक्‍स उदाहरण 2- चाय पर टैक्स :

    भारत के 100 करोड़ लोगों पर विचार कीजिए। मान लीजिए, लगभग 60 करोड़ लोग चाय पीते हैं। कुछ समय के लिए शेष 40 करोड़ लोगों को नजरअन्‍दाज कर दीजिए। अब मैं चाय की लत वाले इन 60 करोड़  लोगों को तीन समूहों में बांटता हूँ –

    1.     वे लोग, जो प्रतिदिन 100 रूपए से कम कमाते हैं।

    2.     वे लोग, जो प्रतिदिन 100 से 1000 रूपए कमाते हैं।

    3.     वे लोग, जो प्रतिदिन 1000 रूपए से ज्‍यादा कमाते हैं।

    अब मान लीजिए, एक कप चाय में 10 ग्राम चायपत्ती लगता है, जिसकी कीमत 2 रूपए है। मान लीजिए, चाय पर टैक्‍स लागत का 50 प्रतिशत है अर्थात एक कप चाय की चायपत्‍ती पर 1 रूपया टैक्‍स/कर। अब एक व्‍यक्‍ति जो प्रतिदिन 100 रूपए कमाता है, उसपर विचार कीजिए। वह 2 कप चाय (प्रतिदिन) पीता है। इसलिए वह 2 रूपए टैक्‍स के रूप में चुका रहा है अर्थात अपनी आय का 2 प्रतिशत। अब एक और व्‍यक्‍ति पर विचार कीजिए जो 10 गुना ज्‍यादा कमा रहा है अर्थात 1000 रूपए प्रतिदिन। निश्‍चित रूप से, ऐसा कोई व्‍यक्‍ति प्रतिदिन 10 कप चाय तो नहीं ही पीएगा। मान लीजिए, वह एक दिन में 5 कप चाय पीता है। तब इस मामले में वह 5 रूपए कर चुकाएगा अर्थात अपनी आय का 0.5 प्रतिशत कर के रूप में चुकाएगा। और इसी प्रकार, कोई व्‍यक्‍ति जो एक दिन में 10,000 रूपए कमाता है वह शायद 0.05 प्रतिशत ही चाय पर कर के रूप में खर्च करता है। इसलिए चाय पर लिया जाने वाला कर किसी व्‍यक्‍ति की आय के मामले में प्रतिगामी/प्रत्‍यावर्ती कर है।

    टैक्‍स/कर उदाहरण 3 : तंबाकू, कॉफी, गुटका, बीयर पर टैक्‍स

    ऐसी किसी वस्‍तु या उत्‍पाद, जैसे तम्‍बाकू पर लगने वाले टैक्‍स/कर पर विचार कीजिए। एक बार फिर मान लीजिए, भारत के 100 करोड़ लोगों में से, मान लीजिए, 40 प्रतिशत लोग तम्‍बाकू चबाते/पीते हैं। मैं तंबाकू की लत वाले लोगों को तीन समूहों में बांटता हूँ –

    1.    वे लोग, जो प्रतिदिन 100 रूपए से कम कमाते हैं।

    2.    वे लोग, जो प्रतिदिन 100 से 1000 रूपए कमाते हैं।

    3.    वे लोग, जो प्रतिदिन 1000 रूपए से ज्‍यादा कमाते हैं।

    किसी व्‍यक्‍ति पर विचार कीजिए जो प्रतिदिन 100 रूपए कमा रहा है। मान लीजिए, वह 10 ग्राम तंबाकू (प्रतिदिन) चबाता है जिसपर टैक्‍स 1 रूपया है। निश्‍चित रूप से, वे लोग जो 10 गुना अर्थात 1000 रूपए प्रतिदिन कमाते हैं वे 10 गुना ज्‍यादा तंबाकू तो नहीं ही चबाएंगे। शायद से 2-3 ज्‍यादा बार खा/चबा सकते हैं। इस प्रकार, कम आय वाले व्‍यक्‍ति तंबाकू के टैक्‍स/करों पर अपनी आय का ज्‍यादा बड़ा हिस्‍सा चुका रहे हैं। इसलिए कॉफी, तंबाकू आदि जैसी इन सभी वस्‍तुओं/सामग्रियों पर लगनेवाला टैक्‍स आय के दृष्‍टिकोण से प्रतिगामी/प्रत्‍यावर्ती कर है।

    कई बार बुद्धिजीवी लोग तंबाकू पर लगाए जाने वाले टैक्‍स को ‘कल्‍याणकारी’ बताते हैं अर्थात तंबाकू पर लगने वाले टैक्‍स से तंबाकू की खपत में कमी आती हैं और इस प्रकार लत/नशे के आदि व्‍यक्‍ति का स्‍वास्‍थ्‍य सुधरता है। यह सरासर झूठ है और दर्शाता है कि बुद्धिजीवी लोग अपने धनवान मालिकों की सेवा करने के चलते तथ्‍यों को तोड़-मरोड़कर पेश कर सकते हैं। इसकी सच्‍चाई इस प्रकार है –

    1. मान लीजिए, एक व्‍यक्‍ति 100 रूपए प्रतिदिन कमाता है।

    2. मान लीजिए, वह तंबाकू, चाय, कॉफी, आदि का जितना सेवन/उपभोग करता है, उसकी कीमत टैक्‍स लगने से पहले 20 रूपए है।

    3. अत्‍यधिक टैक्‍स के कारण इन वस्‍तुओं के मूल्‍य 50 रूपए हो जाती है।

    अब 30 रूपए दाम बढ़ जाने से तंबाकू आदि के उपभोग/खपत में कोई कमी नहीं आती है। मूल्‍यों के 2 से 3 गुना बढ़ जाने के बाद भी वह उपभोक्‍ता पहले जितनी मात्रा का ही उपयोग करता रहता है, लेकिन अब खर्च बढ़ जाने के कारण उसके पास अन्‍य अच्‍छी वस्‍तुओं जैसे दूध, घी आदि खरीदने के लिए कमतर/कम ही पैसे बच जाते हैं। और उसके पास अपने कपड़ों के लिए कम ही पैसे बचते हैं और उसके पास अपनी पत्‍नी बच्‍चों के लिए भी कम ही पैसे बच पाते हैं और शायद उसके अपने माता-पिता के खाना, कपड़े और शिक्षा के लिए भी कम ही पैसे बच पाते हैं। उसके पास परिवार के दवा के लिए भी पैसे कम पड़ जाते हैं। दूसरे शब्‍दों में, तंबाकू, चाय आदि पर प्रतिगामी/प्रत्‍यावर्ती कर से इन “बुरी मदों/वस्‍तुओं” का उसका खर्चा कम नहीं होता लेकिन “अच्‍छी वस्‍तुओं” के उसका उपभोग/खपत में अत्‍यधिक कमी आ जाती है। इससे न केवल उसका और उसके परिवार के सदस्‍यों का जीवन बरबाद हो जाता है, बल्‍कि इससे सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में भी गिरावट आती है। कैसे? चूंकि उस व्‍यक्‍ति के पास खर्च करने वाली आय कमतर/बहुत कम है इसलिए वह बहुत सी बहुत सी वस्‍तुओं का उपभोक्‍ता भी बनने से रह जाता है। इसलिए, इन वस्‍तुओं का बाजार सिकुड़ता है और इससे इन वस्‍तुओं के निर्माताओं को इनका उत्‍पादन कम करने पर मजबूर होना पड़ता है। इससे उन श्रमिकों/मजदूरों की संख्‍या में भी कमी आती है जो (उत्‍पादन में) सहायता कर सकते हैं। और इस प्रकार एक नकारात्‍मक चक्र ही चल पड़ता है।

    श्रेणी: प्रजा अधीन