सूची
- (22.1) पुलिस में सुधार के लिए प्रस्तावित परिवर्तन / बदलाव
- (22.2) प्रस्तावित प्रजा अधीन – जिला पुलिस कमिश्नर
- (22.3) कोरोनर्स जांच / इनक्वेस्ट (अर्थात कोरोनर की अदालत अथवा कोरोनर की जूरी) (कोरोनर= अपमृत्यु का कारण पता करनेवाला अफसर = मृत्यु समीक्षक )
- (22.4) पुलिसवालों पर प्रस्तावित जूरी प्रणाली (सिस्टम) का विवरण
- (22.5) पुलिस विभाग में सुधार करने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय / सुप्रीम-कोर्ट के हाल के आदेशों पर (राय)
- (22.6) सभी दलों और प्रमुख बुद्धिजीवियों की पुलिस में सुधार करने पर (राय)
सूची
- (22.1) पुलिस में सुधार के लिए प्रस्तावित परिवर्तन / बदलाव
- (22.2) प्रस्तावित प्रजा अधीन – जिला पुलिस कमिश्नर
- (22.3) कोरोनर्स जांच / इनक्वेस्ट (अर्थात कोरोनर की अदालत अथवा कोरोनर की जूरी) (कोरोनर= अपमृत्यु का कारण पता करनेवाला अफसर = मृत्यु समीक्षक )
- (22.4) पुलिसवालों पर प्रस्तावित जूरी प्रणाली (सिस्टम) का विवरण
- (22.5) पुलिस विभाग में सुधार करने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय / सुप्रीम-कोर्ट के हाल के आदेशों पर (राय)
- (22.6) सभी दलों और प्रमुख बुद्धिजीवियों की पुलिस में सुधार करने पर (राय)
पुलिस में सुधार लाने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह का प्रस्ताव |
(22.1) पुलिस में सुधार के लिए प्रस्तावित परिवर्तन / बदलाव |
मैं राइट टू रिकॉल ग्रुप/प्रजा अधीन राजा समूह के सदस्य के रूप में पुलिस में निम्नलिखित प्रशासनिक सुधार का प्रस्ताव करता हूँ :-
- वह प्रक्रिया/विधि लागू करें जिससे हम आम लोग जिला पुलिस आयुक्त/कमिश्नर को हटा/बदल सकें। इस प्रक्रिया का विस्तार/विवरण और इसके लिए आवश्यक सरकारी अधिसूचना(आदेश) का प्रारूप/क़ानून-ड्राफ्ट अगले भाग/हिस्से में दिया गया है।
- पुलिसवालों पर जूरी प्रणाली/व्यवस्था(सिस्टम) : किसी पुलिसवाले को हटाने या उसपर जुर्माना लगाने का अधिकार नागरिकों को देना।
- भूमि/जमीन पर सम्पत्ति-कर लगाकर ,पुलिसवालों की संख्या तीन गुना बढ़ाना।
- भूमि/जमीन पर सम्पत्ति-कर लगाकर ,पुलिसवालों का वेतन दो गुना करना।
- अपराधियों का रिकॉर्ड रखने और अपराधियों पर नजर रखने के काम में सुधार लाने के लिए राष्ट्रीय पहचान-पत्र प्रणाली/व्यवस्था(सिस्टम)।
- सभी पुलिस स्टेशनों और सभी आपराधिक रिकॉर्डों का कम्प्यूटरीकरण।
- कांस्टेबल से लेकर उप-महानिरीक्षक/डीआईजी तक सभी पुलिसवालों और उनके निकट रिश्तेदारों की सम्पत्ति का खुलासा/घोषणा इंटरनेट पर देना।
अब मैं इन परिवर्तनों को लाने का प्रस्ताव कैसे करूंगा? मैं नागरिकों को सुझाव दूंगा कि उन्हें `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम) कानून पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रधानमंत्री को बाध्य/विवश/मजबूर कर देना चाहिए और उसके बाद करोड़ों नागरिकों के हां का उपयोग/प्रयोग करके हमें मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री को बाध्य कर देना चाहिए कि वे ऊपर उल्लिखित सभी कानूनों को जारी/लागू कर दें।
(22.2) प्रस्तावित प्रजा अधीन – जिला पुलिस कमिश्नर |
पहले पाठ में मैंने विस्तार से यह बताया कि क्यों अमेरिकी पुलिस में भ्रष्टाचार कम है, और सबसे प्रमुख कारण यह है कि अमेरिकी नागरिकों के पास वह प्रक्रिया/विधि है जिसके द्वारा वे जिला पुलिस प्रमुख को हटा सकते हैं।
मैं 200 से अधिक पदों के लिए प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) का प्रस्ताव किया है। जिन प्रक्रियाओं का मैंने प्रस्ताव किया है, उन सभी में खुले मतदान का प्रयोग किया जाता है। लेकिन जिला पुलिस कमिश्नर/आयुक्त के लिए मैंने इन प्रक्रियाओं के अलावा एक और प्रक्रिया का भी प्रस्ताव किया है जिसमें गोपनीय मतदान का प्रयोग किया जाता है। मैंने जिला पुलिस प्रमुख को बदलने/हटाने के प्रस्ताव के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया का प्रस्ताव किया है जो मेरे द्वारा बताए गए सह-मतदान (के तरीके) पर आधारित है :-
- मुख्यमंत्री 4 वर्षों की अवधि के लिए जिला पुलिस कमिश्नर/आयुक्त की नियुक्ति करेंगे(नौकरी पर रखेंगे) जैसा कि वे आज किया करते हैं।
- जब कभी भी किसी जिले में मतदान होगा, चाहे वह सांसद अथवा विधायक अथवा पंचायत सदस्य अथवा प्रधानमंत्री अथवा मुख्यमंत्री अथवा जिला महापौर का ही चुनाव क्यों न हो, तो कोई भी व्यक्ति जिसने सरकार में प्रथम श्रेणी के अधिकारी के रूप में काम किया हो, अथवा सेना में जुनिओर कमीशन अफसर(जेसीओ) के पद पर काम किया हो अथवा [—-योग्यता/गुणों की सूची पर खरा उतरता हो—] , वह यदि जिला पुलिस प्रमुख बनना चाहता हो तो वह सांसद के लिए जमा की जाने वाली राशि के बराबर धनराशि/रकम जमा करवाकर अपने आप को उम्मीदवार के रूप में खड़ा कर सकता है।
- यदि किसी उम्मीदवार ने सभी मतदाताओं, न कि केवल मतदान करने वालों का, के मतों का 50 प्रतिशत से ज्यादा मत प्राप्त किया हो, तब वह उम्मीदवार 4 वर्षों के लिए नया जिला पुलिस प्रमुख बन सकता है।
- राज्य के सभी नागरिक मतदाताओं के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों के अनुमोदन/स्वीकृति से, मुख्यमंत्री, जिला पुलिस प्रमुख(डी सी पी) को 4 वर्षों के लिए निलंबित/सस्पेंड कर सकते है और अपनी पसंद के किसी व्यक्ति को जिला पुलिस प्रमुख नियुक्त कर सकते हैं।
- भारत के सभी नागरिक-मतदाताओं के 50 प्रतिशत से अधिक लोगों के अनुमोदन/स्वीकृति से प्रधानमंत्री किसी राज्य के सभी जिला प्रमुखों को सस्पेंड कर सकते हैं और अपनी पसंद के व्यक्तियों को उस राज्य में जिला पुलिस प्रमुख नियुक्त कर सकते हैं।
उपर्युक्त प्रक्रिया से जिला पुलिस प्रमुख के कार्यालय में भ्रष्टाचार कम होगा और इससे पुलिस प्रमुख को यह सुनिश्चित करने का भी समय मिलेगा कि और कोई घूस तो नहीं ले रहा है अथवा अक्षम/बेकार ,घटिया और मनमाने ढ़ंग से तो काम नहीं कर रहा है।
प्रजा अधीन-पुलिस कमिश्नर(भ्रष्ट पुलिस-कमिश्नर को बदलने का नागरिकों का अधिकार) सरकारी-अधिसूचना(आदेश) का पूरा ड्राफ्ट
# |
निम्नलिखित के लिए प्रक्रिया |
प्रक्रिया/अनुदेश |
1 |
—- |
मुख्यमंत्री सरकारी अधिसूचना(आदेश) पर हस्ताक्षर करेंगे और यह केवल तभी लागू होगा जब सभी दर्ज मतदाताओं के 51 प्रतिशत से ज्यादा ने `जनता की आवाज` पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली/सिस्टम (कानून) का उपयोग करके इस सरकारी अधिसूचना(आदेश) की मांग करने वाले एफिडेविट पर हां दर्ज करा दिया हो। |
2 |
राज्य चुनाव आयुक्त/इलेक्शन-कमिश्नर |
मुख्य मंत्री और नागरिक , राज्य चुनाव आयुक्त से जिला पुलिस प्रमुख का सह-मतदान करवाने का अनुरोध/प्रार्थना करेंगे, जब कभी भी किसी जिले में जिला पंचायत, तहसील पंचायत, ग्राम पंचायत अथवा नगर निगम अथवा जिला भर में जिला स्तर का कोई भी आम चुनाव चल रहा हो। |
3 |
राज्य चुनाव आयुक्त |
30 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी भारतीय नागरिक जिसने 5 वर्षों से अधिक समय तक सेना में काम किया हो, पुलिस में एक भी दिन, सरकारी कर्मचारी के रूप में 10 वर्षों तक अथवा उसने राज्य लोक सेवा आयोग या संघ लोक सेवा आयोग की लिखित परीक्षा पास की हो, अथवा सिर्फ विधायक या सांसद या पार्षद या जिला पंचायत के सदस्य का चुनाव जीता हो, वह जिला पुलिस प्रमुख के उम्मीदवार के रूप में अपने को दर्ज करवा सकेगा | |
4 |
राज्य चुनाव आयुक्त |
राज्य चुनाव आयुक्त जिला पुलिस प्रमुख के चुनाव के लिए एक मतदान पेटी रख/रखवा देगा। |
5 |
नागरिक |
कोई भी नागरिक–मतदाता उम्मीदवारों में से किसी को भी वोट दे सकता है। |
6 |
मुख्यमंत्री |
यदि कोई उम्मीदवार सभी दर्ज नागरिक-मतदाताओं (सभी, न कि केवल उनका जिन्होंने वोट दिया है) के 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का मत/वोट प्राप्त कर लेता है तो मुख्यमंत्री त्यागपत्र/इस्तीफा दे सकते हैं अथवा सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उस व्यक्ति को उस जिले में अगले 4 वर्ष के लिए नया जिला पुलिस प्रमुख नियुक्त कर सकते हैं। |
7 |
मुख्यमंत्री |
मुख्यमंत्री एक जिले में अधिक से अधिक एक व्यक्ति को जिला पुलिस प्रमुख बना सकते हैं। |
8 |
मुख्यमंत्री |
यदि कोई व्यक्ति पिछले 3000 दिनों में 2400 से अधिक दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख रह चुका हो तो मुख्यमंत्री उसे अगले 600 दिनों के लिए जिला पुलिस प्रमुख के पद पर रहने की अनुमति नहीं देंगे। |
9 |
मुख्यमंत्री, राज्य के नागरिकगण |
राज्य के सभी नागरिक मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से मुख्यमंत्री किसी जिले में इस कानून को 4 वर्षों के लिए हटा/निलंबित कर सकते हैं और अपने विवेक/अधिकार से उस जिले में जिला पुलिस प्रमुख की नियुक्ति कर सकते हैं/रख सकते हैं। |
10 |
प्रधानमंत्री, भारत के नागरिक |
भारत के सभी नागरिक मतदाताओं के 51 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं के अनुमोदन/स्वीकृति से प्रधानमंत्री किसी राज्य में इस कानून को 4 वर्षों के लिए हटा सकते हैं और अपने विवेक/अधिकार से उस राज्य के सभी जिलों में जिला पुलिस प्रमुख की नियुक्ति कर सकते हैं। |
जनता की आवाज़(सी वी )1 |
जिला कलेक्टर(डी सी) |
यदि कोई नागरिक इस कानून में किसी परिवर्तन का प्रस्ताव करना चाहता है तो वह नागरिक जिला कलेक्टर अथवा उसके क्लर्क के पास इस परिवर्तन की मांग करने वाला एक ऐफिडेविट/हलफनामा जमा करवा देगा। जिला कलेक्टर अथवा उसका क्लर्क 20 रूपए प्रति पृष्ठ/पेज का शुल्क लेकर इसे प्रधानमंत्री की वेबसाइट पर डाल देगा। |
जनता की आवाज़(सी वी )2 |
तलाटी यानि पटवारी/लेखपाल |
यदि कोई नागरिक इस कानून या इसके किसी क्लॉज/खण्ड के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के क्लॉज/खण्ड में प्रस्तुत किसी एफिडेविट/हलफनामा पर अपना समर्थन दर्ज कराना चाहे तो वह पटवारी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्क देकर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उस नागरिक के हां–नहीं को प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर भी डाल देगा। |
(22.3) कोरोनर्स जांच / इनक्वेस्ट (अर्थात कोरोनर की अदालत अथवा कोरोनर की जूरी) (कोरोनर= अपमृत्यु का कारण पता करनेवाला अफसर = मृत्यु समीक्षक ) |
क्यों पश्चिमी देशों की पुलिस ,भारत की पुलिस से कम भ्रष्ट और अत्याचारी है? आइए, इस प्रश्न को दूसरे तरीके से पूछते हैं – पश्चिमी देशों की पुलिस कब से और क्यों भ्रष्टाचार और अत्याचार कम करने पर मजबूर/बाध्य हुई?
लगभग वर्ष 800 ईस्वी में इंग्लैण्ड के नागरिकों ने राजा को मजबूर कर दिया कि जब कोई पुलिसवाला किसी आम आदमी की मौत अथवा किसी बड़े अपराध में सहभागी हो तो वे हर बार क्वेस्ट/जांच करवाएं । मौत की घटना होने पर जांच अनिवार्य था और अन्य प्रकार के आरोपों जैसे पीटने या घूसखोरी के मामले में यह वैकल्पिक था/जरूरी नहीं था। यह जांच राजा के अधिकारियों द्वारा की जाती थी जिनका लगभग हमेशा ही स्थानीय पुलिस प्रमुख अथवा अन्य पुलिसवालों के साथ गठजोड़ होता था और जांच तो केवल दिखावा मात्र हुआ करता था। यह जांच/इन्क्वेस्ट कोरोनर इनक्वेस्ट कहलाती थी जिसमें कोरोनर शब्द का अर्थ मुकूट अर्थात राजा होता था।
यह स्थिति आज की स्थिति की ही तरह थी।
आज हमारे देश में,लगभग हर मामले में ही, जब पुलिस हिरासत में मौत होती है तब मजिस्ट्रेट अथवा उससे ऊंचे पद के प्राधिकारी जैसे जिला जज द्वारा अथवा कभी-कभी सेवानिवृत्त/रिटायर्ड जजों के आयोग द्वारा जांच की जाती है लेकिन इन जांचों के प्रभारियों का अकसर भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के साथ सांठ-गाँठ/मिली-भगत होता है और इसलिए कुछ भी खास नतीजा नहीं आता।
इंग्लैण्ड के सच्चे कार्यकर्ताओं ने यह महसूस किया कि यदि जांच की अगुआई राजा द्वारा नियुक्त अधिकारी करते हैं तो ये जांच दिखावा मात्र से ज्यादा कुछ नहीं होती है। इसलिए लगभग वर्ष 950 ईस्वी. में कार्यकर्ताओं ने राजा को परिवर्तन के लिए मजबूर कर दिया – जिले के वयस्क लोगों में से क्रमरहित तरीके से चुने गए 6 से 12 नागरिक प्रश्न पूछेंगे और निर्णय लेंगे/फैसला करेंगे। जूरी-मंडल/जूरर्स में से प्रत्येक सदस्य आरोपी पुलिसवालों के कार्यों पर तीन में से एक फैसला देगा – न्यायोचित/न्यायसंगत, क्षमायोग्य अथवा आपराधिक। यदि जूरी-मंडल/जूरर्स उसकी कार्रवाई को आपराधिक ठहरा देता है तो लगभग हर मामले/मुकद्दमें में उन्हें हटा दिया जाता था और इसके बाद की सुनवाई में कारावास/जेल की सजा के बारे में निर्णय/फैसला किया जाता था। सजा का निर्णय अगली औपचारिक सुनवाई द्वारा किया जाता था। जांच/इनक्वेस्ट में जूरी-मंडल/जूरर्स को प्रश्न पूछने की अनुमति होती थी और किसी भी नागरिक को बोलने का अधिकार होता था, चाहे वह सीधा गवाह न भी हो, तो भी। दूसरे शब्दों में इंग्लैण्ड में वर्ष 950 ईस्वी. के आसपास कोरोनर्स जांच/इनक्वेस्ट किसी क्राउन/राजा द्वारा की जानेवाली जांच नहीं रह गई थी बल्कि यह नागरिकों द्वारा की/करवायी जाने वाली जांच हो गई थी। यह नागरिकों की जांच पुलिसवालों के व्यवहार में परिवर्तन लाने का मोड़ / टर्निंग प्वाइन्ट था।
अब यह पुलिसवालों के लिए संभव नहीं रह गया था कि वे जांच प्रभारी अथवा उनके रिश्तेदारों के साथ सांठ-गाँठ/मिली-भगत कायम कर लें क्योंकि ये प्रभारी हजारों या लाखों जनसंख्या में से क्रमरहित तरीके से(रैंडमली) चुने गए 12 नागरिक थे। इसलिए पुलिसवाले किसी प्रकार का अत्याचार करने से पहले 10 बार सोचते थे और प्रभारी अब उनपर वैसी दया नहीं दिखलाया करते थे जो वे सांठ-गाँठ/मिली-भगत हो जाने के बाद दिखलाते थे।
‘नागरिकों द्वारा जांच’ की इस प्रक्रिया के बारे में भारत के बुद्धिजीवी लोग क्या कहते हैं? देखिए, भारत के बुद्धिजीवियों ने इस प्रक्रिया के बारे में छात्रों को बताने से खुलेआम इनकार कर दिया है !! ताकि (कम से कम) कहीं वे इस प्रक्रिया को लागू करने की मांग ही न करने लगें। बुद्धिजीवी लोग ‘नागरिकों द्वारा जांच’ का विरोध करते हैं क्योंकि इससे विशिष्ट/ऊंचे लोगों की पुलिसवालों पर पकड़ ढ़ीली हो जाएगी और ऐसे में जब इन विशिष्ट/ऊंचे लोग को आम जनता पर जुल्म करवाने की जरूरत पड़ेगी तब पुलिसवाले आम जनता पर कम अत्याचार करेंगे। इसलिए बुद्धिजीवी लोग जो सभी विशिष्ट/ऊंचे लोगों के ऐजेंट/प्रतिनिधि हैं, उन्होंने इस ‘नागरिक द्वारा जांच’ प्रक्रिया का विरोध किया। आखिरकार, विकल्पों/पसंदों के बारे में सूचना/जानकारी मिलने पर इन पसंदों के लिए मांग उठ सकती है। और बदले में उन्होंने छात्रों के दिमाग में यह जहर भर दिया है कि भारतीय नागरिक जालसाज, अविवेकी, सनकी, मूर्ख, जातिवादी, साम्प्रदायवादी, असभ्य, अत्याचारी आदि होते हैं इसलिए इन्हें ऐसा कोई अधिकार/शक्ति नहीं दी जानी चाहिए। इसलिए यदि कोई छात्र इस प्रक्रिया के बारे में जानकारी प्राप्त कर भी लेता है तो भी बहुत संभावना है कि वह इसे नहीं मानेगा क्योंकि बुद्धिजीवियों ने उनके दिमागों में नागरिक विरोधी जहर काफी भर दिया है।
दुख की बात है कि बुद्धिजीवियों के द्वारा दी जाने वाली गलत सूचना और दिमाग में उल्टी बात भर देने(ब्रेनवाश) के कारण `गैर 80 जी` कार्यकर्ताओं(जो कार्यकर्त्ता 80 जी कर छूट का विरोध करते हैं) ने ‘जनता द्वारा जांच’ जैसी किसी प्रक्रिया की मांग नहीं की और इसलिए भारत में पुलिसवालों का अत्याचार बहुत ज्यादा है। भ्रष्टाचार भी अत्याचार के अनुपात होता है अर्थात पैसे की जितनी अधिक मांग होती है, पुलिसवाले का अत्याचार उतना ही अधिक होता है। और लोगों को पीटने का कारण घूस की वसूली है। पश्चिमी देशों ने नागरिकों द्वारा जांच प्रक्रिया का प्रयोग करके अत्याचार/उत्पीड़न को समाप्त ही कर दिया और इसलिए भ्रष्टाचार भी कम हो गया। देखिए-
http://www.britannica.com/eb/article-9026387/coroners-jury
http://en.wikipedia.org/wiki/Coroner
हम, नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)/प्रजा अधीन राजा समूह के लोग ऊपर लिखित तरीके की ही तरह की एक प्रक्रिया की मांग और उसका समर्थन करते हैं जिसे हमने पुलिसवाले के ऊपर जूरी सुनवाई का नाम दिया है।
(22.4) पुलिसवालों पर प्रस्तावित जूरी प्रणाली (सिस्टम) का विवरण |
जिस प्रक्रिया का हम प्रस्ताव करते हैं वह पिछले सैकड़ों वर्षों से इंग्लैण्ड और अमेरिका में चल रही कोरोनर जूरी प्रणाली के ही समान है।
- प्रत्येक जिले के लिए जिला पुलिस प्रमुख 25 वर्ष से अधिक आयु के 25 नागरिक-मतदाताओं से मिलकर बने महा-जूरी-मंडल की स्थापना करेगा। इसके सदस्य क्रमरहित तरीके से मतदाता सूची में से चुने जाएंगे और दो वर्षों तक अपनी सेवाएं देंगे।
- यदि किसी नागरिक ने किसी पुलिसवाले के खिलाफ शिकायत की है तो वह महा जूरी-मंडल के समक्ष शिकायत दर्ज कराएगा। महा जूरी-मंडल उसे अपनी सफाई/अपनी बात विस्तार से बताने के लिए बुला भी सकते हैं या नहीं भी बुला सकते हैं।
- यदि महा जूरी-मंडल के 13 से अधिक सदस्य की राय में पुलिसवाला प्रथम दृष्टया/पहली नजर में दोषी है तो जिला कलेक्टर जिले से 15 नागरिकों को बुलावा भेजेगा। ये नागरिक दोनों पक्षों की दलीलें/बातें कम से कम 7 दिनों तक सुनेंगे।
- सात दिनों के बाद यदि 15 नागरिकों में से 8 से अधिक नागरिक यह फैसला करते हैं कि आरोपी पुलिसवाले को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए तो जिला पुलिस प्रमुख इस मुकद्दमें को गृह मंत्री को सौंप देगा।
- गृह मंत्री उस जिले को छोड़कर राज्य के अन्य जिलों से 15 नागरिकों को बुलावा भेजेंगे। यदि 8 से अधिक नागरिक सहमत होते हैं कि आरोपी पुलिसवाले को नौकरी से निकाल दिया जाना चाहिए तो गृह सचिव उसे नौकरी से निकाल देंगे। नहीं तो(छोटा अपराध हो तो ) गृह मंत्री उसे राज्य के उस जिले, जहां वह पहले काम कर चुका हो, को छोड़कर क्रमरहित तरीके से चुने गए किसी अन्य जिले में स्थानान्तरित कर देंगे।
(22.5) पुलिस विभाग में सुधार करने के लिए माननीय उच्चतम न्यायालय / सुप्रीम-कोर्ट के हाल के आदेशों पर (राय) |
उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों ने जिला पुलिस प्रमुख और गलती करने वाले पुलिसवालों के भाग्य का फैसला नागरिकों से करवाने से साफ तौर से मना कर दिया है। उन्होंने उन प्रक्रियाओं का समर्थन नहीं किया जिसके द्वारा हम आम लोग जिला पुलिस प्रमुख को हटा/बर्खास्त कर सकें और न ही उच्चतम न्यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों ने पश्चिमी देशों द्वारा प्रयोग किए जा रहे कोरोनरी जूरी के समान किसी प्रक्रिया/विधि का ही समर्थन किया। उच्चतम न्यायालय के जज लोग एक पुलिस बोर्ड चाहते हैं जिसके सदस्य बुद्धिजीवी लोग, सेवानिवृत्त/रिटायर्ड जज, भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी आदि हों। उच्चतम न्यायालय/सुप्रीम-कोर्ट के जजों द्वारा प्रस्तावित पुलिस बोर्ड में हम आम लोगों के पास बोर्ड के सदस्यों को हटाने/बर्खास्त करने की कोई प्रक्रिया नहीं है। इसलिए स्पष्ट है कि बोर्ड के ये सदस्य विशिष्ट/ऊंचे लोगों के ऐजेंट/प्रतिनिधि के रूप में काम करेंगे और हम आम नागरिकों को पीटेंगे। क्या ऐसा ही उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशगण(सुप्रीम-कोर्ट के जज) चाहते हैं? मुझे ऐसे आसान प्रश्न पूछने का कोई मतलब नहीं दीखता/औचित्य नहीं समझता।
चुनाव, आरक्षण और धीरे-धीरे शिक्षा में बढ़ोत्तरी के कारण `अन्य पिछड़े जातियों` के पुलिसवालों और `अन्य पिछड़े जातियों` के विधायकों/मंत्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे `अन्य पिछड़े जातियों` के विशिष्ट/ऊँचे लोगों का प्रभुत्व/प्रमुखता बढ़ गया है। पुलिस बोर्ड से एकमात्र अंतर यह पड़ेगा कि इससे उच्च जाती के विशिष्ट लोगों का प्रभुत्व फिर से कायम हो जाएगा। इसके अलावा, पुलिस बोर्ड के प्रस्ताव से और कोई अंतर नहीं आएगा। पुलिस बोर्ड का प्रस्ताव हमलोगों द्वारा प्रस्तावित दो प्रक्रियाओं – भ्रष्ट जिला पुलिस प्रमुख को बदलने का आम आदमी का अधिकार(प्रजा अधीन-जिला पुलिस कमिश्नर) और `नागरिकों द्वारा (भ्रष्ट पुलिस कर्मियों पर) जांच – से बहुत ही कमजोर/निम्न है।
(22.6) सभी दलों और प्रमुख बुद्धिजीवियों की पुलिस में सुधार करने पर (राय) |
वर्तमान दलों के सभी नेता और सभी बुद्धिजीवी पुलिस विभाग में सुधार किए जाने का एकदम से विरोध करने लगते हैं। हरेक दल के नेताओं ने पुलिसवालों की संख्या बढ़ाने से मना कर दिया है। वे ऐसी प्रक्रियाओं का खुलेआम विरोध करते हैं जिनसे हम आम लोग जिला पुलिस प्रमुख को हटा/बदल सकते हैं और इस बात पर जोर डाल सकते हैं कि पुलिस प्रमुखों की नियुक्तियां(नौकरी पर रखना) सर्वोच्च पद पर बैठे लोगों को करना चाहिए और आम जनता पर थोपी जानी चाहिए/लादा जाना चाहिए। साथ ही, वे पुलिस वालों के वेतन कम रखने पर जोर देते हैं ताकि पुलिसवालों को घूस पर निर्भर रहना पड़े और इस प्रकार उन पर दबाव बनाया जा सके। वर्तमान दलों के नेताओं ने जूरी प्रणाली(सिस्टम) को भी लागू करने से मना कर दिया है जिसके द्वारा नागरिकगण पुलिसवालों को बर्खास्त कर सकते हैं/ हटा सकते हैं। हम लोग सभी नागरिकों से अनुरोध करते हैं कि वे अपनी-अपनी पार्टी के प्रिय नेताओं से पूछें कि वे पुलिसवालों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर क्या करने का इरादा रखते हैं और तब यह निर्णय करें कि क्या वे वोट दिए जाने के लायक हैं ? और हम कार्यकर्ताओं से यह भी अनुरोध करते हैं कि वे बुद्धिजीवियों से इन मुद्दों पर प्रश्न पूछें और तब निर्णय करें कि क्या वे(बुद्धिजीवी) मार्गदर्शक बनने के योग्य हैं?
समीक्षा प्रश्न
- भारत में पुलिसवालों की कुल संख्या कितनी है?
- प्रति सप्ताह काम के घंटे के हिसाब से एक कांस्टेबल पर काम का दैनिक भार कितना है?
- भारत में जिला पुलिस प्रमुख को कौन बर्खास्त कर सकता है/हटा सकता है ?