होम > प्रजा अधीन > अध्याय 22 – पुलिस में सुधार लाने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह का प्रस्ताव

अध्याय 22 – पुलिस में सुधार लाने के लिए राइट टू रिकॉल ग्रुप / प्रजा अधीन राजा समूह का प्रस्ताव

dummy
पी.डी.एफ. डाउनलोड करेंGet a PDF version of this webpageपी.डी.एफ. डाउनलोड करें

दुख की बात है कि बुद्धिजीवियों के द्वारा दी जाने वाली गलत सूचना और दिमाग में उल्‍टी बात भर देने(ब्रेनवाश) के कारण `गैर 80 जी` कार्यकर्ताओं(जो कार्यकर्त्ता 80 जी कर छूट का विरोध करते हैं) ने ‘जनता द्वारा जांच’ जैसी किसी प्रक्रिया की मांग नहीं की और इसलिए भारत में पुलिसवालों का अत्याचार बहुत ज्‍यादा है। भ्रष्‍टाचार भी अत्याचार के अनुपात होता है अर्थात पैसे की जितनी अधिक मांग होती है, पुलिसवाले का अत्याचार उतना ही अधिक होता है। और लोगों को पीटने का कारण घूस की वसूली है। पश्‍चिमी देशों ने नागरिकों द्वारा जांच प्रक्रिया का प्रयोग करके अत्‍याचार/उत्‍पीड़न को समाप्‍त ही कर दिया और इसलिए भ्रष्‍टाचार भी कम हो गया। देखिए-

http://www.britannica.com/eb/article-9026387/coroners-jury

http://en.wikipedia.org/wiki/Coroner 

हम, नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्‍टी (एम. आर. सी. एम.)/प्रजा अधीन राजा समूह के लोग ऊपर लिखित तरीके की ही तरह की एक प्रक्रिया की मांग और उसका समर्थन करते हैं जिसे हमने पुलिसवाले के ऊपर जूरी सुनवाई का नाम दिया है।

 

(22.4) पुलिसवालों पर प्रस्‍तावित जूरी प्रणाली (सिस्टम) का विवरण

जिस प्रक्रिया का हम प्रस्‍ताव करते हैं वह पिछले सैकड़ों वर्षों से इंग्‍लैण्‍ड और अमेरिका में चल रही कोरोनर जूरी प्रणाली के ही समान है।

  1. प्रत्‍येक जिले के लिए जिला पुलिस प्रमुख 25 वर्ष से अधिक आयु के 25 नागरिक-मतदाताओं से मिलकर बने महा-जूरी-मंडल की स्‍थापना करेगा। इसके सदस्‍य क्रमरहित तरीके से मतदाता सूची में से चुने जाएंगे और दो वर्षों तक अपनी सेवाएं देंगे।

  2. यदि किसी नागरिक ने किसी पुलिसवाले के खिलाफ शिकायत की है तो वह महा जूरी-मंडल के समक्ष शिकायत दर्ज कराएगा। महा जूरी-मंडल उसे अपनी सफाई/अपनी बात विस्‍तार से बताने के लिए बुला भी सकते हैं या नहीं भी बुला सकते हैं।

  3. यदि महा जूरी-मंडल के 13 से अधिक सदस्‍य की राय में पुलिसवाला प्रथम दृष्‍टया/पहली नजर में दोषी है तो जिला कलेक्‍टर जिले से 15 नागरिकों को बुलावा भेजेगा। ये नागरिक दोनों पक्षों की दलीलें/बातें कम से कम 7 दिनों तक सुनेंगे।

  4. सात दिनों के बाद यदि 15 नागरिकों में से 8 से अधिक नागरिक यह फैसला करते हैं कि आरोपी पुलिसवाले को बर्खास्‍त कर दिया जाना चाहिए तो जिला पुलिस प्रमुख इस मुकद्दमें को गृह मंत्री को सौंप देगा।

  5. गृह मंत्री उस जिले को छोड़कर राज्‍य के अन्‍य जिलों से 15 नागरिकों को बुलावा भेजेंगे। यदि 8 से अधिक नागरिक सहमत होते हैं कि आरोपी पुलिसवाले को नौकरी से निकाल दिया जाना चाहिए तो गृह सचिव उसे नौकरी से निकाल देंगे। नहीं तो(छोटा अपराध हो तो ) गृह मंत्री उसे राज्‍य के उस जिले, जहां वह पहले काम कर चुका हो, को छोड़कर क्रमरहित तरीके से चुने गए किसी अन्‍य जिले में स्‍थानान्तरित कर देंगे।

 

(22.5) पुलिस विभाग में सुधार करने के लिए माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय / सुप्रीम-कोर्ट के हाल के आदेशों पर (राय)

उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों ने जिला पुलिस प्रमुख और गलती करने वाले पुलिसवालों के भाग्‍य का फैसला नागरिकों से करवाने से साफ तौर से मना कर दिया है। उन्‍होंने उन प्रक्रियाओं का समर्थन नहीं किया जिसके द्वारा हम आम लोग जिला पुलिस प्रमुख को हटा/बर्खास्‍त कर सकें और न ही उच्‍चतम न्‍यायालय(सुप्रीम-कोर्ट) के जजों ने पश्‍चिमी देशों द्वारा प्रयोग किए जा रहे कोरोनरी जूरी के समान किसी प्रक्रिया/विधि का ही समर्थन किया। उच्‍चतम न्‍यायालय के जज लोग एक पुलिस बोर्ड चाहते हैं जिसके सदस्‍य बुद्धिजीवी लोग, सेवानिवृत्‍त/रिटायर्ड जज, भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्‍ठ अधिकारी आदि हों। उच्‍चतम न्‍यायालय/सुप्रीम-कोर्ट के जजों द्वारा प्रस्‍तावित पुलिस बोर्ड में हम आम लोगों के पास बोर्ड के सदस्‍यों को हटाने/बर्खास्‍त करने की कोई प्रक्रिया नहीं है। इसलिए स्‍पष्‍ट है कि बोर्ड के ये सदस्‍य विशिष्ट/ऊंचे लोगों के ऐजेंट/प्रतिनिधि के रूप में काम करेंगे और हम आम नागरिकों को पीटेंगे। क्‍या ऐसा ही उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीशगण(सुप्रीम-कोर्ट के जज) चाहते हैं? मुझे ऐसे आसान प्रश्‍न पूछने का कोई मतलब नहीं दीखता/औचित्य  नहीं समझता।

चुनाव, आरक्षण और धीरे-धीरे शिक्षा में बढ़ोत्‍तरी के कारण `अन्‍य पिछड़े जातियों` के पुलिसवालों और `अन्य पिछड़े जातियों` के विधायकों/मंत्रियों की संख्‍या बढ़ती जा रही है। इससे `अन्‍य पिछड़े जातियों` के विशिष्ट/ऊँचे लोगों का प्रभुत्‍व/प्रमुखता बढ़ गया है। पुलिस बोर्ड से एकमात्र अंतर यह पड़ेगा कि इससे उच्‍च जाती के विशिष्ट लोगों का प्रभुत्‍व फिर से कायम हो जाएगा। इसके अलावा, पुलिस बोर्ड के प्रस्‍ताव से और कोई अंतर नहीं आएगा। पुलिस बोर्ड का प्रस्‍ताव हमलोगों द्वारा प्रस्‍तावित दो प्रक्रियाओं – भ्रष्ट जिला पुलिस प्रमुख को बदलने का आम आदमी का अधिकार(प्रजा अधीन-जिला पुलिस कमिश्नर) और `नागरिकों द्वारा (भ्रष्ट पुलिस कर्मियों पर) जांच – से बहुत ही कमजोर/निम्न है।

 

(22.6) सभी दलों और प्रमुख बुद्धिजीवियों की पुलिस में सुधार करने पर (राय)

वर्तमान दलों के सभी नेता और सभी बुद्धिजीवी पुलिस विभाग में सुधार किए जाने का एकदम से विरोध करने लगते हैं। हरेक दल के नेताओं ने पुलिसवालों की संख्‍या बढ़ाने से मना कर दिया है। वे ऐसी प्रक्रियाओं का खुलेआम विरोध करते हैं जिनसे हम आम लोग जिला पुलिस प्रमुख को हटा/बदल सकते हैं और इस बात पर जोर डाल सकते हैं कि पुलिस प्रमुखों की नियुक्‍तियां(नौकरी पर रखना) सर्वोच्‍च पद पर बैठे लोगों को करना चाहिए और आम जनता पर थोपी जानी चाहिए/लादा जाना चाहिए। साथ ही, वे पुलिस वालों के वेतन कम रखने पर जोर देते हैं ताकि पुलिसवालों को घूस पर निर्भर रहना पड़े और इस प्रकार उन पर दबाव बनाया जा सके। वर्तमान दलों के नेताओं ने जूरी प्रणाली(सिस्टम) को भी लागू करने से मना कर दिया है जिसके द्वारा नागरिकगण पुलिसवालों को बर्खास्‍त कर सकते हैं/ हटा सकते हैं। हम लोग सभी नागरिकों से अनुरोध करते हैं कि वे अपनी-अपनी पार्टी के प्रिय नेताओं से पूछें कि वे पुलिसवालों में भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर क्‍या करने का इरादा रखते हैं और तब यह निर्णय करें कि क्‍या वे वोट दिए जाने के लायक हैं ? और हम कार्यकर्ताओं से यह भी अनुरोध करते हैं कि वे बुद्धिजीवियों से इन मुद्दों पर प्रश्‍न पूछें और तब निर्णय करें कि क्‍या वे(बुद्धिजीवी) मार्गदर्शक बनने के योग्‍य हैं?

समीक्षा प्रश्‍न

 

  1. भारत में पुलिसवालों की कुल संख्‍या कितनी है?

  2. प्रति सप्‍ताह काम के घंटे के हिसाब से एक कांस्‍टेबल पर काम का दैनिक भार कितना है?

श्रेणी: प्रजा अधीन