(अथवा तलाटी का क्लर्क)
- यदि उच्चतम न्यायलय(सुप्रीम कोर्ट) के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के अन्य सभी जज यह संस्तुति कर देते हैं/बोलते हैं कि यह सर्वाधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्त राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) को भारत का नया मुख्य बनाया जा सकता है और भारत का वर्तमान मुख्य न्यायाधीश 30 दिनों के भीतर त्यागपत्र दे देता है केवल तभी प्रधानमंत्री उस राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) को भारत का मुख्य न्यायाधीश बना सकते हैं।
- तथापि, यदि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी जज यदि राष्ट्र-स्तरीय मान्यता प्राप्त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) की मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति को स्वीकार करने से मना कर देता है अथवा 30 दिनों के भीतर कोई जवाब नहीं देता है तो प्रधानमंत्री और सभी सांसद अपनी संस्तुतियां रद्द कर दे सकते हैं और त्यागपत्र/इस्तीफा दे सकते हैं और नए चुनाव की घोषणा कर सकते हैं। उनका निर्णय अंतिम माना जाएगा।
(7.4) पश्चिमी देशों में ऐसा कोई कानून नहीं है, तो हमें इसकी जरूरत क्यों है ? |
मैं उन प्रक्रियाओं/विधियों के प्रचार-प्रसार के लिए अभियान चलाता रहता हूँ जिससे हम आम लोग प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और जजों को हटा सकते हैं । सभी प्रमुख बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और यह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि यह असंवैधानिक है । इसमें असफल होने के बाद वे कहते हैं – पश्चिम के देशों में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है और इसलिए हम लोगों के यहां यह प्रक्रिया क्यों होनी चाहिए ? ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में लगभग 50 प्रतिशत वयस्कों के पास बन्दूक है जो यह सुनिश्चित कर देता है कि वे उच्चवर्ग/अभिजातवर्ग के लोग सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को एक सीमा के बाद न तो नीचे झुकने के लिए कहेंगे और न ही उन्हें झुकने की अनुमति देंगे। इतना ही नहीं, अमेरिका में तो निचली अदालत के सभी न्यायाधीशों पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू है और कुछ राज्यों में हाई कोर्ट के जजों/न्यायाधीशों पर भी लागू है। उदाहरण के लिए, कैलिफोर्निया के नागरिकों के पास प्रजा अधीन – कैलिफोर्निया के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कानून है जिसका पद हमारे देश के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बराबर है। ये कार्य-प्रणाली संघीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर हमेशा एक भय का स्तर बनाए रखती है । और अमेरिका में मुकदमों का फैसला पहले ज्यूरी द्वारा किया जाता है जिनके ऊपर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का कोई नियंत्रण नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने के लिए ज्यूरी बाध्य नहीं है। इसी कारण, अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के जज निचली अदालतों पर नियंत्रण नहीं करते। हमने भारत में ज्यूरी सिस्टम (ज्यूरी पद्धति) को लागू करने के लिए एक कानून की मांग की है। पर जब तक यह कानून लागू नहीं हो जाता , तब तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के पास ही अधिकार रहेंगे । इसलिए भारत की हम आम जनता के पास एक ऐसी पद्धति होनी ही चाहिए जिससे हम उच्चतम न्यायालयों के न्यायाधीशों पर नियंत्रण रख सकें।
इसके अलावा, अमेरिका की जो भी समस्याएं हैं वो उनके साथ हैं। जहाँ तक भारत की बात है तो सत्यार्थ प्रकाश में यह स्पष्ट उल्लेख है कि, “राजा को प्रजा के अधीन होना चाहिए नहीं तो वह प्रजा को लूटेगा ।“ उसी प्रकार, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को भी प्रजा-अधीन होना चाहिए नहीं तो वह जनता को लूट लेंगे। इसमें जरा भी आश्चर्य नहीं कि क्यों प्रायः जिन बच्चों का यौन शोषण करने वाले लोगों को हाई कोर्ट द्वारा सजा सुनाई जाती है, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से जमानत मिल जाती है ।