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अध्याय 7 – चौथा आर.आर.जी (प्रजा अधीन समूह) का प्रस्ताव – प्रजा अधीन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (प्रधान जज)

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तलाटी ,

(अथवा तलाटी का क्‍लर्क)

जिले का कोई भी नागरिक तलाटी के कार्यालय में जाकर 3 रूपए का भुगतान करके अधिक से अधिक 5 व्‍यक्‍तियों को राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) के पद के लिए अनुमोदित कर सकता है। तलाटी उसके अनुमोदन/स्वीकृति को कम्‍प्‍युटर में डाल देगा उसे उसके वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र, दिनांक और समय, और जिन व्‍यक्‍तियों के नाम उसने अनुमोदित किए है, उनके नाम, के साथ रसीद देगा।

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तलाटी

1                    तलाटी नागरिकों की प्राथमिकता को प्रधान मंत्री की वेबसाइट पर उनके/नागरिकों के वोटर आईडी/मतदाता पहचान-पत्र संख्‍या और उसकी प्राथमिकता/पसंद के साथ डाल देगा।

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तलाटी

यदि कोई नागरिक अपना अनुमोदन/स्वीकृति रद्द करवाने के लिए आता है तो तलाटी उसका एक या अधिक अनुमोदन/स्वीकृति बिना कोई शुल्‍क/फीस लिए रद्द कर देगा।

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प्रधानमंत्री का सचिव

प्रत्‍येक महीने की पांचवी/5 तारीख को प्रधानमंत्री का सचिव प्रत्‍येक उम्‍मीदवार का अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती पिछले महीने की अंतिम तिथि की स्‍थिति के अनुसार प्रकाशित करेगा।

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प्रधानमंत्री

यदि किसी उम्‍मीदवार को भारत के 24 करोड़ से अधिक रजिस्‍टर्ड नागरिक-मतदाताओं का अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाता है तो प्रधानमंत्री उसे `एन आर जे` के रूप में नियुक्‍त कर सकते हैं।

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प्रधानमंत्री

यदि किसी राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) को 37 करोड़ से ज्‍यादा नागरिक मतदाताओं का अनुमोदन/स्वीकृति मिल जाता है और अनुमोदन/स्वीकृति-गिनती सभी राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) ओं (एन आर जे) से 2 करोड़ ज्‍यादा है तो प्रधान मंत्री इस सबसे अधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) का नाम भारत के मुख्‍य न्‍यायाधीश के पास यह पूछने के लिए भेज सकते हैं कि क्‍या यह व्‍यक्‍ति उच्‍चतम न्‍यायालय के मुख्‍य न्‍यायाधीश के पद के योग्‍य है।

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प्रधानमंत्री, लोकसभा के सभी सांसद

  1. यदि उच्चतम न्यायलय(सुप्रीम कोर्ट) के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के अन्‍य सभी जज यह संस्‍तुति कर देते हैं/बोलते हैं  कि यह सर्वाधिक अनुमोदन/स्वीकृति प्राप्‍त राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) को भारत का नया मुख्‍य बनाया जा सकता है और भारत का वर्तमान मुख्‍य न्यायाधीश 30 दिनों के भीतर त्‍यागपत्र दे देता है केवल तभी प्रधानमंत्री उस राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) को भारत का मुख्‍य न्‍यायाधीश बना सकते हैं।

  2. तथापि, यदि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी जज यदि राष्‍ट्र-स्‍तरीय मान्यता प्राप्‍त जूरिस्ट (जो क़ानून के विषय में विवेक बुद्धि रखता हो) (एन आर जे) की मुख्‍य न्‍यायाधीश के रूप में नियुक्‍ति को स्‍वीकार करने से मना कर देता है अथवा 30 दिनों के भीतर कोई जवाब नहीं देता है तो प्रधानमंत्री और सभी सांसद अपनी संस्‍तुतियां रद्द कर दे सकते हैं और त्‍यागपत्र/इस्‍तीफा दे सकते हैं और नए चुनाव की घोषणा कर सकते हैं। उनका निर्णय अंतिम माना जाएगा।

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जिला कलेक्‍टर

यदि कोई नागरिक इस कानून में कोई बदलाव चाहता है तो वह जिलाधिकारी/डी सी के कार्यालय में जाकर एक एफिडेविट जमा करा सकता है और डी सी या उसका क्लर्क उस एफिडेविट को 20 रूपए प्रति पृष्‍ठ/पेज का शुल्‍क लेकर प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाल देगा।

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तलाटी (अथवा पटवारी)

यदि कोई नागरिक इस कानून या इसकी किसी धारा के विरूद्ध अपना विरोध दर्ज कराना चाहे अथवा वह उपर के कलम /खण्‍ड में प्रस्‍तुत किसी एफिडेविट पर हांनहीं दर्ज कराना चाहे तो वह अपने वोटर आई कार्ड के साथ तलाटी के कार्यालय में आकर 3 रूपए का शुल्‍क देगा। तलाटी हां-नहीं दर्ज कर लेगा और उसे एक रसीद/पावती देगा। यह हांनहीं प्रधानमंत्री की वेबसाईट पर डाला जाएगा।

 

(7.4) पश्चिमी देशों में ऐसा कोई कानून नहीं है, तो हमें इसकी जरूरत क्यों है ?

मैं उन प्रक्रियाओं/विधियों के प्रचार-प्रसार के लिए अभियान चलाता रहता हूँ जिससे हम आम लोग प्रधानमंत्री, मुख्‍यमंत्रियों और जजों को हटा सकते हैं । सभी प्रमुख बुद्धिजीवियों ने इस मांग का विरोध किया है और यह दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है कि यह असंवैधानिक है । इसमें असफल होने के बाद वे कहते हैं – पश्‍चिम के देशों में उच्‍चतम न्‍यायालय के न्‍यायाधीश को  हटाने की ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है और इसलिए हम लोगों के यहां यह प्रक्रिया क्‍यों होनी चाहिए ? ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका में लगभग 50 प्रतिशत वयस्कों के पास बन्दूक है जो यह सुनिश्चित कर देता है कि वे उच्चवर्ग/अभिजातवर्ग के लोग सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को  एक सीमा के बाद न तो नीचे झुकने के लिए कहेंगे और न ही उन्‍हें झुकने की अनुमति देंगे। इतना ही नहीं, अमेरिका में तो निचली अदालत के सभी न्यायाधीशों पर प्रजा अधीन राजा/राइट टू रिकॉल (भ्रष्‍ट को बदलने का अधिकार) कानून लागू है और कुछ राज्यों में हाई कोर्ट के जजों/न्यायाधीशों पर भी लागू है। उदाहरण के लिए, कैलिफोर्निया के नागरिकों के पास प्रजा अधीन – कैलिफोर्निया के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कानून है जिसका पद हमारे देश के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बराबर है। ये कार्य-प्रणाली संघीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर हमेशा एक भय का स्‍तर बनाए रखती है । और अमेरिका में मुकदमों का फैसला पहले ज्यूरी द्वारा किया जाता है जिनके ऊपर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों का कोई नियंत्रण नहीं होता।  सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानने के लिए ज्यूरी बाध्‍य नहीं है। इसी कारण, अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट के जज निचली अदालतों पर नियंत्रण नहीं करते। हमने भारत में ज्यूरी सिस्टम (ज्यूरी पद्धति) को लागू करने के लिए एक कानून की मांग की है। पर जब तक यह कानून लागू नहीं हो जाता , तब तक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के पास ही अधिकार रहेंगे । इसलिए भारत की हम आम जनता के पास एक ऐसी पद्धति होनी ही चाहिए जिससे हम उच्‍चतम न्‍यायालयों के न्यायाधीशों पर नियंत्रण रख सकें।

इसके अलावा, अमेरिका की जो भी समस्याएं हैं वो उनके साथ हैं। जहाँ तक भारत की बात है तो सत्यार्थ प्रकाश में यह स्पष्ट उल्‍लेख है कि, “राजा को प्रजा के अधीन होना चाहिए नहीं तो वह प्रजा को लूटेगा ।“ उसी प्रकार,  सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को भी प्रजा-अधीन होना चाहिए नहीं तो वह जनता को लूट लेंगे। इसमें जरा भी आश्‍चर्य नहीं कि क्यों प्रायः जिन बच्चों का यौन शोषण करने वाले लोगों को हाई कोर्ट द्वारा सजा सुनाई जाती है, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्‍यायाधीश से जमानत मिल जाती है ।

श्रेणी: प्रजा अधीन