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कानून बनाने (के कार्य में) सुधार करने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह` के प्रस्ताव |
(39.1) कानून बनाने (के कार्य) में समस्याएं |
1. पहली समस्या : सांसद, विधायक आदि वैसे कानून नहीं बनाते जैसा हम नागरिक चाहते हैं। उदाहरण : सांसदगण `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ कानून लागू करने से मना/इनकार करते हैं, जिस कानून से हम आम लोगों को `आई.आई.एम.ए.`प्लॉट, हवाई अड्डों आदि जैसे सरकारी प्लॉटों से जमीन का किराया मिल सकता था। इसी प्रकार, सांसदों ने प्रजा अधीन – सुप्रीम-कोर्ट के जज, प्रजा अधीन – हाई-कोर्ट के जज, प्रजा अधीन-प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन-मुख्यमंत्री आदि कानून लागू करने से मना/इनकार कर दिया है।
2. सांसद वैसे कानून बनाते हैं जो नागरिकगण नहीं चाहते है। उदाहरण – जब बहुराष्ट्रीय कम्पनियां सांसदों को घूस देती हैं तो सांसद पेटेंट कानून लागू करते हैं जो दवाइयों की कीमत कई गुना बढ़ा देती है।
क्यों सांसद, विधायक ऐसा बर्ताव/व्यवहार करते हैं? केवल भ्रष्टाचार के कारण, इसका और कोई कारण नहीं है। सांसद और विधायक कुछ कानूनों को पारित/पास न करने के लिए घूस लेते हैं और कुछ कानूनों को पास/पारित करने के लिए घूस लेते हैं। नागरिकों के पास उन्हें झेलते/सहन करते रहने के अलावा और कोई चारा/विकल्प नहीं है क्योंकि नागरिक इन्हें हटा/बर्खास्त नहीं कर सकते और ना ही कानून आदि ही बदल सकते हैं।
(39.2) पहली समस्या का समाधान |
‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’, प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री और प्रजा अधीन – सांसद कानून पहली समस्या का समाधान कर देते हैं। यदि सांसद कानून बनाने/लागू करने पर राजी नहीं होते तो ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’का प्रयोग करके नागरिक प्रधानमंत्री/सांसदों को उस कानून को लागू करने के लिए बाध्य कर सकते हैं। और प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री, प्रजा अधीन – सांसद का प्रयोग करके नागरिक उन प्रधानमंत्री व सांसदों को निकाल सकते हैं, जो सहयोग नहीं कर रहे हैं। इसलिए, यह समस्या कि सांसद `नागरिकों और सेना के लिए खनिज रॉयल्टी (एम. आर. सी. एम.)’ , प्रजा अधीन राजा/राईट टू रिकाल (भ्रष्ट को बदलने का अधिकार) आदि जैसे कानून लागू नहीं कर रहे हैं, का समाधान ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ से हो सकता है।
(39.3) दूसरी समस्या का समाधान |
कई बार, हम पाते/देखते हैं कि बहु-राष्ट्रीय कम्पनियां आदि सांसदों को घूस दे देती हैं और कानून पास/पारित करवा लेती हैं। इस समस्या को दूर/कम करने के लिए मैं क्या प्रस्ताव कर रहा हूँ?
कानून बनाने में, कोई भी कानून प्रधानमंत्री के अनुमोदन के बिना शायद ही कभी पारित/पास होता है। सर्वाधिक भ्रष्ट कानून भी प्रधानमंत्री के सहयोग से ही पास/पारित होता है। आज की स्थिति के अनुसार, प्रधानमंत्री नागरिकों की परवाह नहीं करते क्योंकि नागरिकों के पास प्रधानमंत्री को हटाने/बदलने की कोई प्रक्रिया/तरीका नहीं है। इसलिए प्रजा अधीन – प्रधानमंत्री कानून प्रधानमंत्री को भ्रष्ट कानूनों को पारित/पास करने से रोकेगा। और प्रजा अधीन – सांसद (कानून) सांसदों को भी भ्रष्ट कानून पारित करने से रोकेगा। इसके अलावा, जिन कानूनों का प्रस्ताव मैंने किया है, उनमें से एक कानून नागरिकों को सांसदों तथा प्रधानमंत्री पर सच्चाई सीरम जांच(नार्को जांच) करने की इजाजत देता है यानि समर्थ बनाता है। और उन्हें जुर्माना लगाने, कैद में डालने और सांसदों/प्रधानमंत्री को बर्खास्त कर देने में भी सक्षम/समर्थ बनाता है। यह सांसदों/प्रधानमंत्री द्वारा घूस लेकर कानून पास करने में भयंकर रूकावट पैदा करेगा।
इसके अलावा, मान लीजिए, सांसद और प्रधानमंत्री अभी भी बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों से घूस लेकर या अन्य कारणों से किसी भ्रष्ट कानून को पारित करने का साहस करते हैं, तो प्रजा अधीन- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और प्रजा अधीन – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कानून इस बात की संभावना बढ़ा देगा कि उच्चतम न्यायालय के जज और उच्च न्यायालय के जज ऐसे कानून को तत्काल रद्द कर देंगे क्योंकि उन्हें भी यह चिन्ता रहेगी कि ऐसा न करने पर नागरिक उन्हें ही हटा/बर्खास्त कर देंगे।
‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ स्वयं ही इस बात की संभावना कम कर देती है कि सांसद और विधायक घूस लेकर किसी कानून को लागू भी करेंगे। क्योंकि मान लीजिए, कोई कम्पनी किसी कानून को लागू कराने के लिए हर सांसद को 1 करोड़ रूपए घूस देती है जिसका कुल योग 800 करोड़ रूपया होता है। अगले ही दिन, नागरिक ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके उस कानून को रद्द/समाप्त कर सकते हैं और इस प्रकार वह कम्पनी अपने सभी 800 करोड़ रूपए से हाथ धो बैठेगी और वास्तव में उसे कुछ भी नहीं मिलेगा।
इन सभी सुरक्षा उपायों को देखते हुए, इस बात की संभावना अब नहीं रह जाती है कि सांसद घूस लेकर कानूनों को लागू करेंगे। इतना ही नहीं, निम्नलिखित प्रक्रियाएं ऐसी किसी भी संभावना को और भी कम कर देती हैं –
1. ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके मैं एक ऐसी प्रक्रिया लागू करने का प्रस्ताव करता हूँ जिसका प्रयोग करके नागरिक पटवारी/तलाटी के कार्यालय में 3 रूपए का शुल्क देकर संसद में प्रभावशाली ढ़ंग से हां/नहीं दर्ज करवा सकते हैं।
2. ‘जनता की आवाज़ पारदर्शी शिकायत/प्रस्ताव प्रणाली(सिस्टम)’ का प्रयोग करके मैं, कानून बनाने (के कार्य) पर भी जूरी प्रणाली(सिस्टम) लागू करने का प्रस्ताव करता हूँ।
(39.4) नागरिकों को संसद में हां / नहीं दर्ज करने में समर्थ / सक्षम बनाने के लिए `राईट टू रिकाल ग्रुप`/`प्रजा अधीन राजा समूह`के प्रस्ताव |
जिस सरकारी अधिसूचना(आदेश) का मैं प्रस्ताव कर रहा हूँ, वह निम्नलिखित है –
1. कोई भी नागरिक लोकसभा अध्यक्ष के कार्यालय में जाकर किसी प्रस्तावित विधेयक/क़ानून/बिल का पाठ जमा करवा सकता है तथा एक निजी संख्या प्राप्त कर सकता है।
2. कोई भी नागरिक तलाटी (पटवारी) के पास जाकर अपना पहचान-पत्र दिखलाकर और 3 रूपए का शुल्क देकर किसी भी सुझाए गए बिल/विधेयक/क़ानून पर हां/नहीं दर्ज करवा सकता है। क्लर्क उसके हां/नहीं के लिए उसे रसीद देगा। नागरिक अपनी हां/नहीं किसी भी दिन बदल सकता है। इस हां/नहीं को अध्यक्ष की वेबसाईट पर प्रकाशित किया जाएगा (कृपया ध्यान दें कि इसमें कुछ भी नहीं छिपाया जाता है)।
3. कोई सांसद अध्यक्ष के सामने अपनी हां/नहीं दर्ज कर सकता है। यदि सांसद हां/नहीं दर्ज नहीं कराता है तो उसे ‘ना’ के रूप में गिना जाएगा।